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नमस्कार कोमल जी
काफी समय से आपकी काहनियो को पढने की सोच रहा था । गत महीने मे कुछ झलकिया पढी थी लेकिन आपकी लेखनी ने हमे आपका मुरीद कर दिया और हमने तय किया कि जल्द से जल्द आपकी कहानी का रुख करू ।
फिर पिछली 4 दिनो से थोडा खाली समय मिला तो झटपट मे जे के जी के 48 भाग खतम कर दिये । लेकिन मसला सिर्फ पढने का होता तो आगे पढ भी लेता लेकिन आपके शब्दों ने कहानी मे जो जिवंत चित्रण किये । शब्द नही है मेरे पास उनको परिभाषित कर सकू और उन्ही शब्दो मे ऐसा खोया कि थकान और स्वास्थ्य दोनो ने जबरजस्ती कर ली मेरे साथ
आपके शब्दो मे वो जादू है कि खुद उस जगह पर रख कर सब कुछ मह्सूस करने को जी चाहता
सच कहू तो फिल्हाल मेरे पास शब्द नही आपकी इस बहुमूलय रचना के लिए
फिर भी दो शब्द आपकी इस जाँनशिन सी पेशकश के लिए
हालांकि ये पहले भी लिख चुका हूँ
भाव मत पुछ बालम मेरे गोल कच्ची केरियो के
इनसे तो महगे मेरे मुह की बोली है
जल्द ही मिलता हू अगले रेवियू मे
स्वागत है आपका बहुत ख़ुशी हुयी आपके शब्द पढ़कर, अब तो कहानी जल्द ही १०० भागों को छू लेगी, तो प्लीज लाइक करने के साथ अपनी बात भी जरूर बताइये, क्या अच्छा लगा, कैसा लगा,...
इन्तजार करुँगी,
और हाँ अगली पोस्ट आज ही, पक्का।