Shetan
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Matlab kahani me mushibat ka dor bhi hai. Koi bat nahi. Sona mona hai na.. कंपनी पर संकट
रिपोर्ट में लिखा था इनकी कंपनी ' पिंक जोन ' में है , यानी रेड जोन के ठीक पहले वाली हालत और अगर छह सात दिन तक कोई करेक्टिव एक्शन नहीं हुआ तो वो रेड जॉन में स्लाइड कर सकती है।
असल में उनकी कंपनी , एक अमेरिका बेस्ड मल्टीनेशनल की इंडियन सब्सिडयरी थी। लेकिन पैरेंट कम्पनी से बहुत ही क्लोज रिलेशन ,
दो तीन डेंजरस फैक्टर उस रिपोर्ट ने हाई लाइट की थीं ,
पहला तो था रुपये की वैल्यू में तेज गिरावट , और अब एक डालर सत्तर रूपये से ज्यादा चला गया था।
बिना रिपोर्ट में इंडिकेट हुए में समझ गयी सारी कहानी।
असल में हमारे लोकेशन में जो इक्विपमेंट बनता था ,
उसमें एक अमेरिकन इक्विपमेंट लगता था जो इनकी पैरेंट कम्पनी का प्रोप्रायटरी आइटम था। वॉल्यूम वाइज वो सिर्फ १५ % था , ७० % पार्ट जहाँ हम पोस्टेड थे वहीँ बनता था , बाकी १५ % आउटसोरस्ड था .
लेकिन वैल्यू वाइज वो पैरेंट कम्पनी से इम्पोर्टेड पार्ट, ४५ % था।
और अब रूपये की वैल्यू गिरने से इम्पोर्ट कास्ट बढ़ गयी , और वह पार्ट अब कुल कास्ट का ६५ % हो गया।
इससे प्रॉडक्ट की प्राइस भी बढ़ गयी , और जो हमें कम्पटीटिव एज थी वो सिर्फ ख़तम नहीं हुयी बल्कि एडवर्स हो गयी थी , और राइवल को फायदा हो रहा था।
और इससे कम्पनी की लिक्विडटी की प्राबलम भी पैदा हो गयी थी।
यह प्रॉब्लम सिर्फ एक्सचेंज रेट तक रहती तो गनीमत ,
पर एक पेंच और था , ... अमेरिका ने एडवर्स बैलेंस आफ पैम्नेट के चलते , ढेर सारे प्रॉडक्ट्स पर जो इण्डिया से आते हैं टैरिफ बढ़ा दी।
बस इण्डिया ने भी ,... और जिन प्रॉडक्ट्स पर ये एक्स्ट्रा सरचार्ज लगाए गए थे ,... उनमें स्टेटस से आनेवाला .. वो पार्ट भी शामिल था।
नतीजा , इनपुट कास्ट और बढ़ गयी , ... और लिक्विडटी क्राइसिस शुरू हो गयी थी।
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, बेचारा, ये मेरा सोना मोना ऐसी क्राइसिस में क्या कर सकता था, अब ग्लोबल टैरिफ वार में वो सीधा साधा लड़का क्या कर लेगा, और फिर रूपया डालर का एक्सचेंज रेट वो भी उसके बस में था क्या,
और मिस्टर मोइत्रा के हटने के बाद क्या क्या नहीं किया इन्होने, कम्पनी को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया, सप्लाई चेन इतनी फास्ट की कि, कम्पनी कि कास्ट तो कम हुयी ही, वेंडर्स कि भी इन्वेंट्री कम होने से उनको भी फायदा हुआ और उनके पेमेंट शेड्यूल चेंज कर के सप्लाई के रेट भी इन्होने कम करवाए
बीच में मिस्टर मोइत्रा, बल्कि मिसेज मोइत्रा और उनकी चमचियों के हस्बेंड जो मलाई खाते थे वो ख़तम करवा के भी उन्होंने प्रोडक्शन कास्ट काम करवाई,
और अब प्रोडक्शन कास्ट कम होने से जो थोड़े बहुत राइवल मार्केट में थे वो कम्पीट नहीं कर सकते थे तो मार्केट शेयर भी बढ़ रहा था। पर....
अब मेजर इनपुट प्रॉडक्ट जो हम लोगो के लिए प्रोप्राइटरी आइटम था, जिसका पेटेंट किसी और के पास नहीं था, उसी की इनपुट कास्ट बढ़ गयी तो प्रोडक्शन कास्ट बढ़नी थी,
फिर मार्जिन कम होता और फिर निगेटिव रिटर्न, तो जो एक्सपैंशन प्लान्स थे वो सब,....
रिपोर्ट में शेयर की पिछले महीने की अनिलिसीस भी थी , ... और उसके हिसाब से शेयर अपने रियल वैल्यू से करीब २२-२५ % ज्यादा कोट हो रहा था।
रिपोर्ट का इंडिकेशन एजेंसी के अनुसार ये था की कोई इस कंपनी को एक्वायर करने की कोशिश कर रहा है , और वो अग्रेसिव बाइंग कर रहा है।
तीसरी प्राबलम थी ,
कंपनी ने एक डेब्ट ले रखा था , जो एक तरह से डेब्ट कम इक्विटी थी। अगर डेट की मैच्योरिटी या जब भी डेट देने वाली कम्पनी डेट वापस पन्दरह दिन की नोटिस देकर मांगे ,... और कंपनी अगर उसे न दे पाए तो उसे एक राइट था , की वो करेंट शेयर के वैल्यू के बेसिस पर उस डेब्ट को शेयर में कन्वर्ट करने के लिए इंसिस्ट सकता था। वो करीब १४ % शेयर होता।
मार्केट रयूमर्स थीं की जो कंपनी इसे एक्वायर करने की कोशिश कर रही है , उसने भी करीब पांच साढ़े पांच परसेंट शेयर खरीद रखे हैं , और वो बहुत अग्रेसिवली अभी भी शेयर खरीदने की कोशिश कर रही थी। अगर उसके जहाँ ८-९ % भी शेयर हुए वो उस डेब्ट वाली कम्पनी के साथ मिलकर , अटैक कर सकती थी। हमारी कम्पनी के पास अभी २२ -२३ % शेयर हैं। इस पूरे मामले में गवर्मेंट एजेंसीज जिनके पास करीब ५ % शेयर हैं न्यूट्रल ही रहतीं।
एक और प्रॉब्लम इनकी कम्पनी उस रिपोर्ट के अनुसार फेस कर रही थी , वो डिस्ट्रेस्ड असेट की , कम्पनी ने पावर बिजनेस में इन्वेस्ट कर रखा था , बैकवर्ड एरिया में एक पावर प्लांट भी लगाया और वो आलमोस्ट रेडी था , लेकिन ट्रांसमिशन नेटवर्क के चोक होने से , और जहाँ पावर प्लांट था वहां डिमांड न होने से , वो एकदम घाटे का मामला था , और बैंक्स के डेब्ट भी थे.
लेकिन आखिरी बात चौंकाने वाली थी , जिस कम्पनी ने डेब्ट दिया था , वो उसी मार्केट में घुसना चाहता था , जिसमें इनकी कम्पनी थी।
लेकिन पेरेंट् कंपनी का प्रोप्रायटरी आइटम होने से , जो हमें कास्ट अडवांटेज और टेक्नोलॉजी के अपग्रेडेशन की अडवांटेज थी , वो उसे नहीं मिलती। दूसरी उस प्रॉडक्ट में इनकी कम्पनी की आलमोस्ट ,... मोनोपोली तो नहीं लेकिन ४४ % मार्किट शेयर था , जो नंबर २ से १८ % ज्यादा था।
वो कम्पनी एक्वायर कर , सिर्फ हमारी कम्पनी किल करती।
उसे हमारा पूरा मार्केटिंग चैनल मिल जाता।
जो शेयर एक्वायर कर रहा था , वो जब अक्वीजिशन के बाद शेयर के दाम बढ़ते , उस समय शेयर बेच कर बाहर निकल जाता , और हेल्प के लिए न्यू ओनरशिप उसे रियल एस्टेट ( कम्पनी तो उन्हें ख़तम ही करनी थी एक दो साल में, कम्पटीशन एलिमिनेट करने के लिए ) के लिए जहाँ प्लांट थे वहां की टाउनशिप , उसे सस्ते दाम में बेच देती।
इस बात को कनफर्म करने के लिए , उसने कुछ इ मेल की कॉपीज और एक कम्पनी का प्रजेंटेशन भी , जो किसी हैकर की कृपा थी , अटैच किया था।
मेरे तो बस पैरों के नीचे से जमीन नहीं सरकी।
हमारी कम्पनी पर उस कम्पनी की रेड बस सात आठ दिन बाद , ...
एक बात जो उसने लिखी थी और मैं भी समझ रही की एक्विजशन करने वाले ने पहले तो शेयर खरीद कर शेयर की वैल्यू बढ़ाई , लेकिन वो रेड तब करेगा जब शेयर की वैल्यू गिरने लगेगी। इससे एक तो जिससे इनकी कम्पनी ने डेब्ट लिया था , उस डेब्ट को जब शेयर में कन्वर्ट करते तो ज्यादा शेयर होते। दूसरे कम्पनी के ओनरशिप शेयर का दाम भी उन्हें औने पौने में लगाने में मदद मिलती.
मेरे आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था , ब्रेकफास्ट की तैयारी छोड़ कर मैं वहीँ किचेन में बैठ गयी। कित्ती प्लानिंग थी ,
तीज की , रसगुल्लों की ,
और बाहर वो लड़की बैठी डाक्टर बनने की तैयारी कर रही है , उसका क्या होगा ?
आज शाम को कमल जीजू , फुल टाइम मस्ती ,...
लेकिन तभी मेरा व्हाट्सऐप
हग्स किसेज , फिर ढेर सारे किसेज और थम्स अप