आपके विचारों से पूर्णतः सहमत होते हुए, मैं यह कहना चाहूंगा कि कहानी का सार वास्तव में उसकी बहुआयामीता में निहित होता है.. कहानी केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसा दर्पण है जो समाज, मनुष्य और उसके अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को प्रतिबिंबित करता है.. यह दर्पण कभी मनोरंजन के रंगों से सजा होता है, तो कभी गहन दार्शनिक विमर्श की गहराइयों में डूबा हुआ.. और हाँ, यह जरूरी नहीं कि यह दर्पण हमेशा नैतिकता के सिद्धांतों को ही दिखाए...
आपने जिस तरह से कहानी के "लेयर्स" पर जोर दिया है, वह वाकई सराहनीय है.. एक अच्छी कहानी वही होती है जो पाठक को सतह पर तो मनोरंजन से भर दे, लेकिन गहराई में उसे विचारों के समुद्र में गोता लगाने पर मजबूर कर दे.. यही वह बिंदु है जहाँ कहानी साधारण से असाधारण हो जाती है.. और हाँ, देह संबंधों की ऊष्मा में भी यदि कहानी के ये स्तर मिस हो जाएँ, तो यह एक तरह से "रसभंग" ही हो जाता है.. आपका यह प्रयास कि आप इन बातों को रेखांकित करती हैं, वह आपकी कहानी को एक नया आयाम देता है..
कहानी लिखना कुछ वैसा ही है जैसे खाना बनाना.. अगर आप केवल मसालों पर ध्यान देंगे, तो खाना चटपटा तो हो जाएगा, लेकिन पौष्टिक नहीं.. और अगर केवल पौष्टिकता पर ध्यान देंगे, तो खाना स्वादहीन हो जाएगा.. इसलिए, एक अच्छी कहानी, जैसे एक अच्छा खाना, मसाले और पौष्टिकता का सही संतुलन चाहती है..
मैं यह मानता हूँ कि कहानी का असली मकसद केवल पाठक को बांधे रखना नहीं, बल्कि उसे सोचने पर मजबूर करना भी है.. और अगर इसमें थोड़ा सा हास्य, थोड़ा सा तिलिस्म, और थोड़ी सी ऊष्मा मिल जाए, तो कहानी और भी यादगार बन जाती है..