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अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६
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एकदम गीता और उसके साथ मंजू इस कहानी में सिखाने पढ़ाने में, ख़ास तौर से जो कुछ वर्ज्य है, सामन्यतया या शायद अन्य पात्रों के द्वारा जिन घटनाओं का उतने विस्तार से निरूपण नहीं हो सकता, वो सब , और सबसे बढ़कर बहन और माँ के रोल प्ले से इनके मन की सब दीवारों और वर्जनाओं को गिराने का काम,..पुनरावृत्ति पर बस इतना कहना चाहूंगा कि ये गीता ... छुटकी वाली गीता से अलग हट के है....
और एक पृथक नरेटिव को सेट करती है....
अरे रीनू बहुत रसीली है,पिछली बार भी उसी ने तो ट्रुथ और डेयर वाले खेल से इनकी सब झिझक,.. और पिछली बार वो छुट्टी पे थी पांच दिन वाले तो अपने जीजू को ललचा के वादा करा के गयी है तो इस बार तो ये भी इन्तजार कर रहे हैं अपनी साली का, छोटी न सही बड़ी ही सही,... और इतनी बड़ी भी नहीं है,लेकिन आपकी बहन रीनू भी तीनों मर्दों से....
चीनू तो पता नहीं कहाँ....
Thanks so muchये यात्रा तो अब कारवां बन गया है...
हम सब इस कारवां के संगी-साथी...
एकदम सही कहा आपने,सीधा मनुष्य हीं किसी को मना नहीं कर पाता....
aur ab is yatra ki gati thodi tej hogi, kuch kirdaar jo ab tak door the phir se manch pe aaynge kuch naye judengeBhut shandaar tarike se leke chal rahe ho aap hame Iss Pyaar bhari yatra par....