पुनरावृत्ति पर बस इतना कहना चाहूंगा कि ये गीता ... छुटकी वाली गीता से अलग हट के है....
और एक पृथक नरेटिव को सेट करती है....
एकदम गीता और उसके साथ मंजू इस कहानी में सिखाने पढ़ाने में, ख़ास तौर से जो कुछ वर्ज्य है, सामन्यतया या शायद अन्य पात्रों के द्वारा जिन घटनाओं का उतने विस्तार से निरूपण नहीं हो सकता, वो सब , और सबसे बढ़कर बहन और माँ के रोल प्ले से इनके मन की सब दीवारों और वर्जनाओं को गिराने का काम,..
लेकिन साथ ही साथ मंजू और गीता एक तरह ट्रिब्यूट भी हैं, कथाप्रेमी जी को और उन की कुछ प्रसिद्ध रसरोचक दो कहानियां जो शायद इस फोरम में भी पी डी एफ में है,.... उनमें भी मंजू का चरित्र है और मंजू की एक बेटी भी है,
इसके पहले फागुन के दिन चार में भी पिछले फोरम में पहले छपी और अति पॉपुलर बात एक रात की, को ट्रीब्यूट्स थे और सत्यजीत राय को भी जिनकी जन्म शती पर मैं एक थ्रेड भी इस फोरम में शुरू किया था, उनकी फिल्मों और व्यक्तित्व के बारे में, तो फागुन के दिन चार में फेलू दा का चरित्र और कार्लोस दोनों ट्रिब्यूट थे डिटेक्टिव के कुछ महान राइटर्स को
पर छुटकी की कहानी में गीता का प्रवेश इन्सेस्ट पर मेरे पहले प्रथम प्रयास के लिए हुआ