Black horse
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शत शत नमनकाम और देह
और अब जो वो सेक्स इंजॉय करने लगे तो बस ,
मजे के समय मजा
और काम के समय काम ,काम भी अब वो ज्यादा मन लगा के बिना भटकाव के ,
मैं उनकी ओर देख रही थी , वो मजे से अपनी सास के साथ ,
और मैं सोच रही थी उन्होंने ने भी तो
अपनी सारी कमान मेरे हाथ में दे दी थी
…और एक बार जब निगेटिविटी चली गयी तो पॉजिटिविटी तो आनी ही थी ,
,
फिर संस्कृत एक तरह से उनकी दूसरी भाषा थी ,सारे पुराने टेक्स्ट ,... और मैं भी पढ़ने की ,... इस तरह की 'किताबों की 'खासतौर से वो तो,
और सिर्फ कामसूत्र का पेपर बैक सड़क छाप संस्करण नहीं ,
मम्मी के पास मैंने तो रिचर्ड बर्टन का कामसूत्र का ट्रांसलेशन पढ़ा था ,
पर उन्होंने तो न सिर्फ तेरहवीं शताब्दी का जयमङगल की टिप्पणी पढ़ रखी थी , बल्कि उनके पास थी भी ,
,और एक बार मैंने उनकी मन की गांठे सब खोल दीं, फिर तो ,
कामसूत्र के बाद की भी , कोकक की रति रहस्य ( तेरहवीं शताब्दी ) ,कल्याणमल की अनंग रंग ( सोलहवीं शताब्दी )
और वो किताबें जिंनका मैंने भी नाम नहीं सुना था ,उन्ही से मैंने सुना ,लव मेकिंग का पहला टेक्स्ट नंदी ने लिखा था
और जिसका सार श्वेतकेतु ने फिर बाद में चारायण ,सुवर्णाभ,दत्तक ,... पता नहीं कहाँ से उन्होंने मंगाई , पढ़ा भी मुझे भी पढ़ाया ,
सृष्टि का अगर कोई सबसे बड़ा रहस्य है , तो वो स्त्री की देह और उसका मन ,
और उसकी कोई सबसे बड़ी कुंजी है तो ये किताबें
क्या क्या नहीं लिखा था ,
स्त्री की देह के सबसे इरोजिनस जोन्स के बारे में ही नहीं ,बल्कि चन्द्रमा की गति के साथ , काम की गति कैसे बदलती है ,
वो भी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में अलग , किसी तिथि को सिर्फ स्कैल्प को हलके हलके सहलाने से ही जो आंनद आता है तो किसी तिथि को शोल्डर ब्लेड्स
और फिर हर वय की कन्याओं , नारियों के लिए , अज्ञात यौवना ( अर्ली और मिडल टीन्स ) से लेकर खेली खायी प्रौढ़ा तक ,
कितने तरीके तो सिर्फ चुम्बन के ,
देह के किस भाग में ( ज्यादातर मांसल ) काम अंदर छुपा रहता है , वहां नख क्षत ,दन्त क्षत
और इसकी गवाह तो मैं खुद हूँ , बाद में उन निशानों को देख के एकदम रात्रि के प्रेम कहानी की ऐसी याद आ जाती थी की फिर मन करने लगता था।
और प्रैक्टिस करने के लिए साथ देने के लिए तो मैं थी ,उनकी काम संगिनी ,
मेरे मन में कर्टसी मम्मी इन चीजों के बार में कभी कोई शक नहीं था , मैं जानती थी मन के मंदिर के शिखर पर चढने लिए देह की नसेनी ही काम आती है ,
देह से जुडी जितनी चीजें है सब आंनद के ही स्त्रोत हैं ,और उसमे कुछ भी गलत या बुरा नहीं है।
और एक बार जब इनके सो काल्ड संस्कार मैने रगड़ रगड़ के इनके देह से छुड़ा दिया, सेक्स के साथ जुडी गिल्ट फिलिंग से ये अलग हो गए , इस बात से की सेक्स सिर्फ रात के अँधेरे में बंद कमरे में एकदम छुप छुप कर करने वाली चीज है ,और बाद में उसके बारे में बात करना भी गलत है ,
और इनकी समझ में आ गया , जानते तो ये पहले से ही थे , पर वो सो काल्ड संस्कार
काम इन्होने मुझे खुद बताया ( बदलाव के बाद ) का स्थान , धर्म और मोक्ष के बराबर ही शास्त्रों ने दिया है। काम यानि कामना , ...और अगर कामना ही नहीं होगी तो कोई काम कोई करेगा ही क्यों।
यही बात तो मैं सोचती थी की हमारी संस्कृति में काम गिल्ट से नहीं जुड़ा है बल्कि सबसे आनदमयी अनुभूति है ,इसलिए तो शादी के मंडप में , मंडपकेबांस पर जो तोते लगाए जाते है वो कामदेव के वाहन के रूप में ,