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अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६
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Komal ji bahar or andar dono jagah barish ka maja le rhi hai, lekin bada bedard sajan mila hai, hamari komal ji ko itna dard deta haiबरसती बूंदों में, पिछवाड़े का मज़ा
और अबकी , मैंने मुंह बनाया ना नुकुर की , लेकिन मेरी देह... मेरी टाँगे अपने आप फ़ैल गयीं , मेरे नितम्ब भी और वो मेरे पिछवाड़े, अपनी पूरी ताकत से,
और अब मैं सब कुछ भूल गयी थी, कुछ भी नहीं दिख रहा था , दर्द से मेरी आँखे एकदम बंद हो गयी थीं, मैंने कस कर , पूरी ताकत से खिड़की के दोनों पल्लों को पकड़ लिया था , कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था,
बस बारिश की बूंदो की टप टप सुनाई दे रही थी और मेरे पिछवाड़े धंसा हुआ, मुझे चीरता फाड़ता दर्द से फैलाता,
उस ने मेरी पतली कमर को पूरी ताकत से दबोच रखा था जैसे कोई शेर किसी हिरणी का शिकार कर रहा हो, मैं इंच भर भी नहीं हिल सकती थी,...अब मुझे भी मालूम था और उसे भी खेल के इस हिस्से में, दर्द सिर्फ दर्द,
दर्द ही मज़ा है,
दर्द लेनेवाली के लिए भी दर्द देने वाले के लिए भी और बेरहमी के बिना ये खेल होता भी नहीं। वो ठेल रहा था धकेल रहा था, गजब की ताकत थी मेरी मम्मी के दामाद में,
लेकिन मुझे मालूम था दर्द का असली द्वार तो अभी भी बाकी है, और उसे भी, पर इस दर्द को भुलवाने के लिए कुछ और दर्द का सहारा लेते हैं पर उसने मजे का सहारा लिया, अब मेरी देह का हर मंतर तो उसे मालूम पड़ गया था, बस. दो उँगलियाँ एक साथ पूरी जड़ तक तीनों पोर मेरी गुलबिया में और अंगूठा सीधे क्लिट पर, मेरी देह का हर इंच इंच उसने नाप रखा था , तो अंदर धंसी, घुसी दोनों उँगलियों को मेरी प्रेम गली के अंदर जी प्वाइंट ढूंढने में कोई दिक्क्त नहीं हुयी, और साथ में अंगूठे की क्लिट पर रगड़ घिस्स, आगे के मजे के आगे मैं पीछे का दर्द भूल गयी,
मेरी आँखे एक बार फिर खुल गयी थी, आसमान अभी भी काले घनघोर बादलों से घिरा था, एकदम घनघोर हाथ को हाथ न सूझे,
बड़ी जोर से बादल गरजे, गरजते ही रहे, गड़गड़ गड़गड़ , कहीं पास ही बिजली गिरी,
दर्द से मैं दहल उठी , पर पकड़ उसकी, ...
छल्ला पार,... और अब बिना पूरा अंदर किये, दुष्ट छोड़ने वाला नहीं ... मैं दर्द को पी गयी, घूँट घूँट, ...
लेकिन मैं भी उनकी सास की बेटी थी, कुछ देर में जैसे प्रकृति बारिश की ताल पर झूम रही नाच रही थी मैं भी उनके साथ, हिम्मत कर के उनके दो चार धक्कों के बाद एक दो धक्के मैं भी पीछे लगा देती कभी कस के अपने पिछवाड़े उस बदमाश को, मोटे खूंटे को अंदर भींच लेती, मुझे न मेरी कमर को दबोचे उसके हाथों का अंदाजा था , न झुक के मेरे गालों को चूमते होंठों का , सिर्फ मेरे पिछवाड़े धंसे घुसे मोटे बदमाश का , बदमाश तो वो नम्बरी था , लेकिन मीठा मीठा , खूब प्यारा सा,
मैं खिड़की पकड़ एकदम झुकी थी , निहुरी और वो मेरे ऊपर, अंदर धँसा , और उसकी ताकत बाहर चल रही तेज हवाओं का, झमक कर बरसते बादलों का का मुकाबला कर रही थी, और मेरा मरद २ २ होगा , २० भी नहीं, ... और मैं भी उनके साथ कभी धक्के का जवाब धक्के से तो कभी अपने नितम्बों को गोल गोल घुमाती, वो मेरे अंदर मेरे पिछवाड़े पूरी तरह जड़ तक धंसा घुसा फंसा, और मैं उससे एकदम चिपकी
जैसे सावन के झूले में ननद भौजाइयां बारी बारी से पेंग देती हैं न तो बस अब पेंग देने का काम मेरा था , अगर वो मेरी मम्मी के दामाद थे , तो मैं अपनी मम्मी की बेटी थी ,
कुछ देर में पिछवाड़े के उस खेल में हम दोनों साथ साथ, वो निकाल कर पूरी तेजी से तो मैं भी कस के उसे निचोड़ लेती, दबोच लेती अपने अंदर और कभी एक धक्का मैं भी पीछे की ओर, खूब मजे ले लेकर, ...
धक्के दोनों ओर से बराबर की तेजी से लग रहे थे,धक्कों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी ,
थोड़ी देर पहले ही तो, इस बदमाश लड़के ने मेरे पिछवाड़े चूस चूस के चाट चाट के , बिना और कहीं छुए सिर्फ अपनी जीभ से मेरी हालत खराब कर दी थी,
और अब वही हालत उस लड़के के जादू के डंडे ने मेरी कर दी थी,
और कुछ देर में बाहर बारिश की बूंदे झड़ रही थीं ,
और अंदर मैं, बूँद बूँद , और फिर जैसे कोई बाँध टूट पड़ा हो,
मेरी देह काँप रही थी, मेरे कंट्रोल में नहीं थी , मैं सिसकती , कांपती रूकती और फिर दुबारा,...
जैसे बारिश रुकने के बाद भी पत्तियों पर से घर की अटारी पर से टप टप बूंदे चूती रहती हैं, बस उसी तरह बार बार , मेरी देह में एक लहर रूकती थी की दूसरी शुरू हो जाती थी ,
सावन भादों की बारिश की तरह, कभी धीमी कभी तेज पर बूँद टूटती नहीं, ...
लेकिन तभी जोर की आवाज हुयी कहीं पेड़ की डाल गिरी, और बिजली चली गयी. हम लोगों के कमरे में जल रही नाइट लैम्प की रौशनी गुल हो गयी और पंखा बंद।
एकदम घुप्प अँधेरा,
Kitni baar, kaise kiya, kuchh hosh nahi. Kyaa baatटिप टिप बरसा पानी
लेकिन तभी जोर की आवाज हुयी कहीं पेड़ की डाल गिरी, और बिजली चली गयी. हम लोगों के कमरे में जल रही नाइट लैम्प की रौशनी गुल हो गयी और पंखा बंद।
एकदम घुप्प अँधेरा,
असल में एकदम अँधेरा तो नहीं था, जैसे झड़ झड़ के मैं थेथर हो गयी थी वही हालत मेरी सहेली कजरारी बदरियों की भी हो गयी थी और चांदनी का सांवला आवरण हल्का हो गया था, हलकी हलकी चांदी, बादलों के परदे को भेदकर छिटक रही थी जैसे नयी दुल्हन का रूप घूंघट के पार छलकता रहता है, देवरों नन्दोईयों को ललचाता रहता है,
एक पल के लिए ऊपर अपने कमरे के बारे में बता दूँ, एक दरवाजा तो था , जो सीढ़ी वाले कमरे से लगा था, जिस सीढ़ी की ओर इनके मायके आने के अगले दिन से ही मैं निहारती थी कब मौक़ा मिले और धड़ धड़ चढ़के मैं इस शैतान लड़के के पास आ जाऊं, एक खिड़की जो घर के पिछवाड़े की ओर थी, जिस ओर पेड़, थोड़ा सा खेत, एक छोटा सा पोखर , और एक दरवाजा था जो छत की ओर खुलता था, पर हमेशा बंद रहता था। पहले दिन से ही मुझे जेठानी ने दस बार बताया होगा , छत पर जाने की कोई जरूरत नहीं। आस पास कुछ घर भी थे , लेकिन हम लोगों के घर से सटे नहीं थोड़ी दूर, एक मकान सड़क के उस पार,...
आज वो दरवाजा भी खुला था, ... और बस थोड़ी देर में ये मुझे अपनी गोद में उठाकर छत पर,
घटाटोप अँधेरा, बूँद बूँद बरसता पानी, अँधेरे में छलकती हलकी हलकी चांदनी, और बड़ी सी छत पर भीगते हम दोनों, एक दूसरे को पकडे, एक दूसरे में डूबे,
और मैंने हलके हलके गाना शुरू कर दिया मेरा इनका दोनों का फेवरिट,
टिप टिप बरसा पानी
आहा हा हा हा आहा.. टिप-टिप बरसा पानी
टिप-टिप बरसा पानी
पानी ने आग लगाई
जल उठा मेरा भीगा बदन अब तू ही बताओ साजन मैं क्या करूं..
और उस दुष्ट लड़के के होंठ मेरे होंठों से सरक कर कुछ देर तक तो मेरे उभारों पर, मेरे कड़े खड़े पथराये निप्स पर, और फिर सीधे शहद के छत्ते पर
उसके हाथ कस के मेरे दोनों नितम्बों को पकडे थे , उसके दोनों होंठ मेरे मेरे भीगे कुछ पानी से कुछ रस से गीले निचले होंठों से चिपके
मुझे पागल करने को ये बारिश ही कम थी क्या की उसके होंठ भी,
बारिश एक बार फिर तेज हो गयी, मेरी सहेली लजीली बदरियों से चाँद की ये शरारत भरी लुका छिपी नहीं देखी गयी और एक बार फिर उन्होंने ने कस के उस की आँखे मूँद दी, ...
भीगते पानी में मैं छत पर लेटी , ये लड़का मेरा छाता बना मेरे ऊपर छाया,
मैंने कस के अपने भुजबंध में इसे बाँध रखा था,
कितनी बार, कैसे क्या, ... मुझे कुछ अहसास नहीं , बस मुझे अपने भीतर अपने चारों ओर इस लड़के का अहसास था, छत पर टप टप बरसती बूंदों का,
हाँ सुबह मेरी नींद खुली तो बस पंखा चल रहा था,बिजली आ गयी थी, दरवाजे खिड़किया अभी भी वैसे ही, ... ये पलंग पर नहीं थे ,... और अलसाते हुए सामने लगी मैंने मैडम टिकटिकी पर निगाह डाली
साढ़े नौ बज रहे थे।
अरे नहीं मेरी ननद बहुत बहादुर है," एकदम भाभी और मेरे भइया तो,.... आज सांड मात हो जाएगा उनके आगे , चार पांच राउंड तो कम से कम ,... और ये पान और दूध अगर,... फिर तो सुबह तक उनकी बहिनिया चलने को कौन कहे ,बिस्तर से उठ नहीं पाएगी ,... "
कहीं फिर से हॉस्पिटल में एडमिट करवाने की तैयारी तो नहीं हो रही....
कहीं हदस न जाए.. ये कुंवारी कन्या.....
जड़ी-बूटी और टोटकों की आजमाइश से एकदम गधा छाप ...
धन्यवाद बस थोड़ा आना जाना,सपने पूरे होने शुरू हो गए, बधाई
Baarish ka mausam hai aisa romantic hota hai , aasaha hai dubaar padh ke bhi aako duhreaav ya boriyat nahi lg rahi hogi , bas kabhi hunkaari bharte rage varana khanaani sunaate sunaate jab koyi hunkaari bharane vaala na ho to jhapki aane lagti hai thanks so muchKitni baar, kaise kiya, kuchh hosh nahi. Kyaa baat
कुछ समय का अभाव, कुछ आपके लेखन को धयान से पढ़ने की आदत. इसलिए देरी थीधन्यवाद बस थोड़ा आना जाना,
कम से कम जब फोरम में आये तो उस दिन तारीख को झाँक झुक लिया करें तो हिम्मत मिलती है की लम्बे सफर का कोई साथी अभी भी साथ है
Apki kahani or boriyat, yeh to possible nhi hai, har baar new maja. Abhi bhi kai bar me solha savan or mohe rang de padhta hoon. Baaki ek dar lgta hai mujhe. Apki story me main character ka naam or apka name same hi rehta hai KOMAL. Guddi, geeta or baki character pr comment krne me koi dikkat nhi hai, but komal ke kirdar pr comment krne me dard lgta hai kahi aap bura na maan jaoBaarish ka mausam hai aisa romantic hota hai , aasaha hai dubaar padh ke bhi aako duhreaav ya boriyat nahi lg rahi hogi , bas kabhi hunkaari bharte rage varana khanaani sunaate sunaate jab koyi hunkaari bharane vaala na ho to jhapki aane lagti hai thanks so much
Wow kya Naam rakha hai K2भाग १६३
लेडीज ओनली नाइट
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" ख़ास तो वो अभी भी हैं , ... लेकिन गड़बड़ मिसेज खन्ना से ही हो गयी ,जो हम लोगों की एक नाइट लांग लेडीज ओनली पार्टी का प्लान था न ,... तूने जो सजेस्ट किया था वोमेन इम्पॉवरमेन्ट से फंडिंग करा लेंगे , ...लेडीज क्लब की ओर से ,..सी एस आर से भी , बस वही उन्होंने मिसेज दीर्घलिंगम को बता दिया। "
अब मैं घबड़ायी।
" तो क्या मिसेज दीर्घलिंगम उखड गयीं , मैडम भी न ,... " मैंने घबड़ा के सुजाता से पूछा।
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" नहीं यार परेशानी उलटी हो गयी , ज्यादा खुश हो गयीं। उन्होंने कह दिया की वो भी आएँगी। और फंडिंग भी उन्होंने कह दिया की वो कराएंगी , सेंट्रल फंड कुछ एन जी ओ से स्पांसर कराएंगी ,जिसको कम्पनी रेगुलर सी एस आर में फंडिंग करती है। वो बोली मैडम से की तुम लोग अपना चिल्लर अपने वीकली पार्टी के लिए रखो।
यहां तक तो ठीक था लेकिन उन्होंने दो काम टेढ़ा पकड़ा दिया ,
एक तो इवेंट का नाम , वो ऐसा हो जिस पर फंडिंग या स्पांसरिंग मुश्किल न हो लेकिन उसका एक और मतलब भी हो , जो लेडीज ओनली पार्टी का ,... समझ गयी न ,.. अब लेडीज ओनली नाइट के नाम से तो कोई स्पांसर करेगा नहीं। दूसरी चीज उसका एक लोगो और थीम भी होगी , लोगो में लड़की होनी चहिये और थीम में पर्ल ,.. अब ये सब झमेले , और टाइम सिर्फ एक घंटा ,.. "
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सुजाता ने सारी परेशानी बताई और मेरे कंधे पे डाल दी , आखिर सेक्रेट्री तो मैं ही थी लेडीज क्लब की और वो वैसे भी मेरी छोटी बहन की तरह
मेरा दिमाग चरखी की तरह चलने लगा।
मिसेज खन्ना की परेशानी ठीक थी ,अगर नाम , थीम और लोगो मैडम दीर्घलिंगम को पसंद आ गया फिर तो कारपोरेट लेवल में भी उनकी ,.. लेकिन अगर नहीं पसंद आया तो और मिस्टर मोइत्रा फिर अपने कनेक्शन से ,...
" हे लेडीज ओनली में लड़के तो होंगे नहीं तो मिसेज दीर्घलिंगम को ,.. " मैंने सुजाता से पूछा।
मेरी बात समझ कर खिलखिलाते हुए बोली वो ,
" एकदम मेरी तुम्हारी तरह वो भी जेंडर में भेदभाव नहीं करतीं। "
और अगली बात मेरे बिना पूछे उसने बता दी ,..
" और यंगर द बेटर। "
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मेरे दिमाग में बिजली चमकी मैंने सुजाता को बोला ,
" यार फिर ,.. उन्हें ,...मिसेज दीर्घलिंगम को ,... बंगाली रसगुल्ला न खिला दें ,उन्हें जरूर पसंद आएगा। "
वो जोर जोर से हंसी , फोन पर हम लोगों ने हाई फाइव किया ,फिर वो बोली।
" अरे तो निचोड़ निचोड़ के रस लेगी , रसगुल्लों का ,... एकदम सही आइडिया है। "
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" बस तो इवेंट का नाम तय के २ यानि कच्ची कलियाँ , हमलोगों के लिए , और स्पांसर के लिए दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चोटी के 2 और इस नाम के एन जी ओ भी हैं ,.. थीम पेपर तुमबना देना। "
" वो कट पेस्ट मैं कर लुंगी लेकिन वो पर्ल्स का क्या करें "सुजाता की एक परेशानी बची थी।
" वो मैं कुछ डिजायन कर के मैडम को अभी व्हाट्सऐप कर दूंगी। "
मैंने जिम्मेदारी ले ली।
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मैं जुगत लगा रही थी फिर मुझे स्ट्राइक कर गया , यह महिला की मूर्ती, जैसे फिल्मफेयर अवार्ड्स में मिलता है , बस थोड़ा ज्यादा करवेसस , लेकिन सवाल पर्ल्स का था , बस , ... निप्स और नीचे , टच आफ पर्ल्स ,... उभार और कटाव डार्क और कंट्रास्ट में निप्स ,
मैंने स्केच किया ,फिर कंप्यूटर पे , थोड़ा फोटोशॉप , और बेसिक ड्राइंग बना के सुजाता और मैडम दोनों को भेज दिया ,
थम्स अप सुजाता का आया और उसने दोनों रसगुल्लों की लेटेस्ट फोटो भी मिसेज खन्ना के पास भेज दी थी ,
टाइट टेनिस ड्रेस में मिसेज मोइत्रा के दोनों कबुतरियों के छोटे छोटे कबूतर खूब उभर के सामने आ रहे थे और गोरी चिकनी जाँघे भी ,
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के 2 टायटल और थीम के मेजर प्वाइंट्स भी ,
मैंने एक छोटा सा थीम पेपर भी बना दिया k 2 थीम पे अपने देश की सबसे ऊँची चोटी और चढ़ने के लिहाज से सबसे कठिन माउंट एवरेस्ट से भी कठिन,... तो हम वोमेन एम्पॉवरमेंट की बात करते हैं , पर कैच देम यंग की बात जीतनी स्पोर्ट्स के फील्ड में सही है उतनी ही एम्पावरमेंट के मामले में, ... इसलिए महिलाओं के साथ किशोरियों को वय संधि की अवस्था में ही हमें प्रोत्साहित करना होगा जब वह संशय संदेह और उहापोह की हालत में होती हैं , उन्हें गाइड करना एम्पॉवर करना बहुत जरूरी है और असली वोमेन इम्पॉवरमेंट की शुरआत किशोर कन्याओं से होगी जो उन्हें के २ ऐसी कठिन जीवन की चोटियों पे चढ़ने की सीख देगा, ऊँगली पकड़ के उन्हें परिचय कराएगा जीवन के अनेक आयामों से,...
इतना काफी था फिश , टार्टार सास और शेरी के बीच मिसेज दीर्घलिंगम को समझाने के लिए
मिसेज खन्ना की भी स्माइली आ गयी थी , एक डेढ़ घंटे बाद मिसेज से दीर्घलिंगम मीटिंग के बाद वो फोन करेंगी , ये भी मैसेज आ गया।
इनसे भी एक बार बात हुयी , ये काम में फंसे थे।
और अब मैंने गुड्डी के कमरे की सुधि ली।
\
Jethani k to maje hi maje hai......दिया और जेठानी
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और सच्ची में दिया के भाई का था भी बहुत मस्त , खूब बड़ा ,मोटा कड़ा ,... मेरे भी मुंह में पानी आ रहा था , और जेठानी तो बचपन की छिनार ,...
वो दिया के के भाई ऊपर चढ़ी , खूंटा एकदम अंदर तक घुसा ,
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अपनी मोटी मोटी चूँचिया दिया के भइया के सीने पर वो मस्ती से रगड़ रही थीं ,उन्होंने नहीं देखा की दिया ने कैसे कस के अपने भइया को आँख मारी और उसके भैया ने भी आँख मार के उसे ग्रीन सिंग्नल दे दिया।
दिया के भैय्या ने कस के अपनी बाहों में मेरी जेठानी की लपेट लिया और पैरों से भी बाँध लिया ,
दिया जो मैंने गिफ्ट किया था दस इंच वाला डिल्डो ,स्ट्रैप आन काला भुजंग , उसे बाँध रही थी।
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आराम से उसने जेठानी की गांड फैलाई ,लूब के नाम पर फैली गांड पर दिया ने बस झुक कर जोर से थूक दिया , थोड़ा थूक डिल्डो के सुपाड़े पर रगड़ा और
घचाक
उईईईईई उईईईईईई ,
जेठानी जोर से चिल्लाईं
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और उनकी ननदिया ने दूसरा धक्का दूने जोर से मारा ,
ओह्ह्ह्ह मर गयी , नहीं उईईईईई , फट्ट्ट्ट गयी उईईईईई
जेठानी की चीख पूरे मोहल्ले में सुनायी पड़ी होगी।
जवाब में दिया ने चटाक चटाक चार चांटे अपनी भौजी के चूतड़ पर ,
और कमर पकड़ कर अब जो धकका मारा तो गांड का छल्ला पार ,
और साथ में ही उनकी ३६ डी डी चूँचियाँ भाई बहन ने बाँट ली ,
एक पर दिया के भाई ने तो दूसरे पर दिया ने कस कस के नाखून गड़ा दिये।
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और गांड से ज्यादा उनकी चूँचिया दर्द से ,
दिया का एक हाथ ऊके निपल को मरोड़ रहा था तो दूसरा सटाक सटाक उनके चूतड़ पर चांटे बरसा रहा
चूतड़ एकदम लाल ,
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फिर दिया ने जेठानी के लम्बे घने केश , मरोड़ कर जैसे लगाम बना ली और खींच खींच कर ,
साथ में धक्के पर धक्के , ... थोड़ी देर तक डिल्डो पूरा दस इंच जेठानी की गांड के अंदर जड़ तक धंसा
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पर असली बदमाशी तो अभी बाकी थी ,गांड में घुसाते समय जेठानी की टाँगे फैली थीं ,लेकिन पूरा घुसाने के बाद दिया ने उनकी टाँगे एकदम चिपका दी
फिर अपनी टांगों से कस कर दिया ने उनकी टांगों को अपनी टांगों के बीच में दबोच लिया , और फिर सटासट सटासट
गांड जो मारी है उस दस इंच के डिलडो से ,...
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पूरे आधे घंटे ,
मैंने दिया को वीडियो काल लगाया
रात का स्कोर दिया ने बताया ४ / ५। मतलब भी उसने समझा दिया , चार बार बुर में और पांच बार गांड का बाजा बजा है।
अभी एक घंटे पहले दिया के भइया और उसके दोस्त गए हैं , आधे घंटे दिया ने अपनी भौजी को सोने का टाइम दिया था और आधे घंटे में नहा धो के उन्हें फ्रेश होना है ,
बस थोड़ी देर में तीन मुस्टंडे और अगले चार पांच घंटे के लिए , शाम को दो फ्रेश ,
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दिया से बातें हो ही रही थीं की बाहर घंटी बजी , दिया ने बोला वही तीनो होंगे ,
वो दरवाजा खोलने गयी और मैं गुड्डी के कमरे में।
दबे पाँव।
Full maje chal rahe hai.... diya k bhi aur shahar k sabhi k londe ke sath sath bhabhi k nbhiदिया और जेठानी
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और सच्ची में दिया के भाई का था भी बहुत मस्त , खूब बड़ा ,मोटा कड़ा ,... मेरे भी मुंह में पानी आ रहा था , और जेठानी तो बचपन की छिनार ,...
वो दिया के के भाई ऊपर चढ़ी , खूंटा एकदम अंदर तक घुसा ,
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अपनी मोटी मोटी चूँचिया दिया के भइया के सीने पर वो मस्ती से रगड़ रही थीं ,उन्होंने नहीं देखा की दिया ने कैसे कस के अपने भइया को आँख मारी और उसके भैया ने भी आँख मार के उसे ग्रीन सिंग्नल दे दिया।
दिया के भैय्या ने कस के अपनी बाहों में मेरी जेठानी की लपेट लिया और पैरों से भी बाँध लिया ,
दिया जो मैंने गिफ्ट किया था दस इंच वाला डिल्डो ,स्ट्रैप आन काला भुजंग , उसे बाँध रही थी।
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आराम से उसने जेठानी की गांड फैलाई ,लूब के नाम पर फैली गांड पर दिया ने बस झुक कर जोर से थूक दिया , थोड़ा थूक डिल्डो के सुपाड़े पर रगड़ा और
घचाक
उईईईईई उईईईईईई ,
जेठानी जोर से चिल्लाईं
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और उनकी ननदिया ने दूसरा धक्का दूने जोर से मारा ,
ओह्ह्ह्ह मर गयी , नहीं उईईईईई , फट्ट्ट्ट गयी उईईईईई
जेठानी की चीख पूरे मोहल्ले में सुनायी पड़ी होगी।
जवाब में दिया ने चटाक चटाक चार चांटे अपनी भौजी के चूतड़ पर ,
और कमर पकड़ कर अब जो धकका मारा तो गांड का छल्ला पार ,
और साथ में ही उनकी ३६ डी डी चूँचियाँ भाई बहन ने बाँट ली ,
एक पर दिया के भाई ने तो दूसरे पर दिया ने कस कस के नाखून गड़ा दिये।
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और गांड से ज्यादा उनकी चूँचिया दर्द से ,
दिया का एक हाथ ऊके निपल को मरोड़ रहा था तो दूसरा सटाक सटाक उनके चूतड़ पर चांटे बरसा रहा
चूतड़ एकदम लाल ,
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फिर दिया ने जेठानी के लम्बे घने केश , मरोड़ कर जैसे लगाम बना ली और खींच खींच कर ,
साथ में धक्के पर धक्के , ... थोड़ी देर तक डिल्डो पूरा दस इंच जेठानी की गांड के अंदर जड़ तक धंसा
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पर असली बदमाशी तो अभी बाकी थी ,गांड में घुसाते समय जेठानी की टाँगे फैली थीं ,लेकिन पूरा घुसाने के बाद दिया ने उनकी टाँगे एकदम चिपका दी
फिर अपनी टांगों से कस कर दिया ने उनकी टांगों को अपनी टांगों के बीच में दबोच लिया , और फिर सटासट सटासट
गांड जो मारी है उस दस इंच के डिलडो से ,...
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पूरे आधे घंटे ,
मैंने दिया को वीडियो काल लगाया
रात का स्कोर दिया ने बताया ४ / ५। मतलब भी उसने समझा दिया , चार बार बुर में और पांच बार गांड का बाजा बजा है।
अभी एक घंटे पहले दिया के भइया और उसके दोस्त गए हैं , आधे घंटे दिया ने अपनी भौजी को सोने का टाइम दिया था और आधे घंटे में नहा धो के उन्हें फ्रेश होना है ,
बस थोड़ी देर में तीन मुस्टंडे और अगले चार पांच घंटे के लिए , शाम को दो फ्रेश ,
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दिया से बातें हो ही रही थीं की बाहर घंटी बजी , दिया ने बोला वही तीनो होंगे ,
वो दरवाजा खोलने गयी और मैं गुड्डी के कमरे में।
दबे पाँव।