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जोरू का गुलाम भाग १७३
गुड्डी की सुहागरात, भैया के साथ,

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मज़ा पलंग तोड़ जोड़ा पान का
मैं किचेन में काफी का मग रख के आयी , मम्मी से बात भी हुयी और दो ढाई बजे तीसरा राउंड
क्या सीन था , वो पलंग तोड़ पान का जोड़ा , उनकी ममेरी बहन के हाथ में ,उन्हें दिखा के ललचा रही थी , फिर गप से उस किशोरी ने अपने मुंह में ,
" भैय्या , कुछ लेने का मन करे न तो मांगना पड़ता है ,ऐसे नहीं मिलता। " उन्हें छेड़ते हुए वो कोमलांगी बोली।

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उन्हें धक्का दे कर उस शोख ने उन्हें पलंग पर गिरा दिया , फिर उनके सीने पर सर रख कर , गुड्डी के रसीले होंठों से निकला पान , एकदम उनके मुंह से बस थोड़ी ही दूर ,...
" हे दो साल पहले मांगता तो दे देती , ...? "
गुड्डी के हाईस्कूल के दिन की याद दिला कर उन्होंने पूछा।
कहते हैं महिलायें अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं , गुड्डी ने भी वही किया , उसके जिस कच्चे टिकोरे के उसके हाईस्कूल के दिनों से वो दीवाने थे , उनकी छुटकी बहना ने उनकी छाती पर रगड़ दिया , और शोख अंदाज में बोली,
" भैय्या जो तुम देख देख के ललचाते थे न मुझे बहुत अच्छा लगता था। मुझे , ...अरे मुझे क्या ,... मेरी सारी सहेलियों को पता था की तुम देख देख के ,.. सब मुझे खूब चिढ़ाती थीं। बोलती थीं , अरे यार दे दे न ,... क्या करेगी बचा के ,... कोई न कोई तो रगड़ेगा ही ,... वो बिचारा बहुत सीधा है ,तुझे ही उसका पैंट खोलकर ,... "

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और अब उस शोख टीनेजर के होंठ , मुश्किल से इंच भर दूर थे ,... गुड्डी ने फिर इन्हे चिढ़ाया ,
" वैसे मांगने के भी जरुरत नहीं थी , सीधे से ले लेते न मैं मना थोड़े ही करती। और उन्होंने ले लिया।
उनके होंठ उस इंटरवाली के होंठों पर , और गुड्डी के मुंह में दबा घुसा ,पान अब उनके मुंह में।
पर पान तो बहाना था ,उनकी जीभ अब अपनी बहना के मुंह में घुसी और वो धीमे धीमे चूस रही थी साथ साथ में अपनी कच्ची अमिया इनकी चौड़ी छाती पर रगड़ रही थी।

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कुछ ही देर में वो जोड़ा पान दोनों भइया बहन ने आपस में बाँट लिया था और उस पलंग तोड़ पान का रस दोनों के मुंह में घुल रहा था. कभी गुड्डी की जीभ इनके मुंह में तो कभी इनकी जीभ गुड्डी के मुंह में ,इनके मुंह से लार टपक कर उस किशोरी के चिकने चम्पई गालों पर टपक रही था ।
और उन की छुटकी बहिनिया ने वो अपने ऊँगली में लपेट कर चाट लिया।
मैं देख रही थी, मुस्करा रही थी,...
इस पलंग तोड़ पान का असर बस अब शुरू होने वाला था और दो चार घंटे तो चलता ही कम से कम, ... पान में असली चीज होती है चूना, बहुत जरा सा भी काफी है,... और मुंह के अंदर लगते ही मुंह के अंदर के म्यूकोसा में हलका सा वो काटता है, जैसे कोई रगड़ लगा जाए,, छिल जाए,... और गुड्डी रानी की प्रेम गली तो इससे सौ गुना ज्यादा छिली होगी, तो बस छिलने का असर मुंह के अंदर और जो पान का सत्त घुलता है मुंह में वो छिले हुए हिस्से से सीधे, शिराओं और धमनियों में, फिर मस्तिष्क में,... सोच नयी, वर्जिन विद वियाग्रा या हिन्दुस्तानी उदहारण दूँ तो कातिक की कुतिया जैसे गर्मायी रहती है, बस उससे भी दो हाथ आगे.

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और पान में क्या क्या पड़ा था ये तो मंजू, गीता की माँ किसी को नहीं बताती, हाँ जहाँ से लाती है ये खास पान, उसमें कुछ अपना भी,,... उसने मुझसे खुद कहा कितनी भी चुदी थकी चिल्लाती लौंडिया हो बस पांच मिनट ये पान उसके मुंह में घुल जाए,... ,
और फिर ये मेरे सैंया, मेरी ननदिया के रसिया,...
आज चुम्मा भी एकदम पागल की तरह ले रहे थे अपनी बहिनिया का, दस जगहों पर होंठ उन्होंने चूसते हुए काटा होगा, और दुल्हन का तो सुहागरात में यही आभूषण है,.. चुदती तो सब हैं ( उनकी माँ बहने भाई भेजते इसी लिए हैं, बिदा होके बेटी, बहन दिन में पंहुचे और रात में उसकी टाँगे उठ जाएँ )
पर नुचती कितनी है हैं उसी से लगता है की सुहागरात कितनी गरम थी, तो बस उन कटे हुए होंठों से भी होकर पान का रस गुड्डी रानी के अंदर,...
फिर आज तो एकदम ये डीप किस ले रहे थे, दो बार चोदने और चुदने के बाद जल्दी तो किसी को थी नहीं,...
तो बस इन्होने अपनी जीभ भी भी अपनी बहन, मेरे ननद के मुंह पे ठेल बल्कि पेल दिया था,... जहाँ वो डबल जोड़ा पलंग तोड़ पान का रिस रहा था था और फिर पांच मिनट क्या सात आठ मिनट तक भाई बहन की टंग फाइट ही चलती रही, और पान का मादक रस , मुंह के अंदर चूने से छिली जगह, होंठों पर सैंया मेरा मतलब भैया की काटी जगह से गुड्डी रानी के अंदर,... उसकी आँखों से चेहरे से लग रहा था खूब मस्त हो रही है, गरमा रही है,...
फिर वो अपने भैया के ऊपर चढ़ के, अपने मुंह से लार की तरह टपका टपका के पान की पीक अपने भैया के गौरेया की तरह खुले मुँह के अंदर एक धागे की तरह , धीरे धीरे,...
ये बात भी मंजू बाई ने मुझे बताई थी मरद पे असली असर तब पड़ता है जब गोरी आठ दस मिनट अपने मुंह में रचा बसा लेती है और उस का असर मर्द को एकदम पागल बना देता है बस उस का एक मन करता है, स्साली को पटक के चोद दें,...
और गुड्डी तो पक्की शरारती, जब से जोबना आने शुरू हुए थे तभी से लाइन मार रही थी अपने भाई को , ..

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लेकिन ये तो महा बुद्धू,...
पर अब ये एकदम बदल गए थे, ... गुड्डी इनके ऊपर सिर्फ चढ़ी नहीं थी बल्कि अपने छोट छोट जुबना इनकी चौड़ी छाती पे रगड़ रही थी, पान का असर शुरू होगया था, वो मद में डूबी टीनेजर अभी अभी फटी चुनमुनिया जो दर्द से चूर थी, अभी भी खून की बंदे लिपटी लिथड़ी थी,... उस प्यारी प्यारी गुलाबो को जिसकी सिर्फ एक झलक पाने के सारे शहर के लौंडे कुर्बान थे, अपने भैया के खूंटे पे रगड़ रही थी,... और वो थोड़ा सोया ज्यादा जागा एकदम तनतना के उठ खड़ा हुआ,...
थोड़ी ही देर में वो ऊपर और गुड्डी फिर नीचे , और उसके बाद जो होना था वही हुआ ,वो अंदर ,..

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गौरेया जो अबतक बहुत चहक रही थी ,चीख उठी पहले ही धक्के में।
मैंने टीवी का वॉल्यूम थोड़ा कम कर दिया
लेकिन उनका दूसरा धक्का और गुड्डी की कानफाड़ने वाली चीख एक बार फिर से ,... मैं समझ गयी गीता की शरारत ,... उसने भले ही परदे बंद किये होंगे लेकिन कोई खिड़की खुली छोड़ दी थी थोड़ी , जिससे होकर गुड्डी रानी की चीखें ,... यानी जब रात में फटी उस टीनेजर की ,तो सच में दूर दूर तक ,
टीवी मैंने म्यूट ही रहने दिया , एक के बाद एक चीखें , अब हर धक्का सीधे बच्चेदानी पर ,
यही तो मैं चाहती थी, बस ऐसी ही कुटाई ऐसी जबरदस्त की जिंदगी भर याद रखे,... एकदम मेरे मन की बात,
सच में जो बिन समझे मन की बात की समझ जाए, बिन बिन बोले मन की बात करे,... वही है साजन मेरा,... बहुत प्यार उमड़ रहा था मेरा उनके ऊपर, इस कुँवारी टीनेजर को देख के सोच के जो फैंटेसी मेरे मन में उभरती थी वो सब आज पूरी हो रही है , साथ में एच डी क्वालिटी में रिकार्डिंग,... एक एक पल की,...
खूब रगड़ता दरेरता फाड़ता, उस जस्ट फटी छिली झिल्ली को घिसता, ... वो आठ इंच का खूंटा, मेरी कलाई से बीयर कैन से भी मोटा और हर धक्के में आलमोस्ट पूरा निकाल के जब वो पेलते तो सीधे जड़ तक, ... जैसे ही घुसना शुरू करता मेरी ननदिया की कान फाडू चीखें कमरे को पार कर के निकलती

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और जब मोटा सुपाड़ा उस स्साली के बच्चेदानी पे पूरी ताकत से ठोकर मारता तो उसकी पूरी देह काँप जाती,... एकदम उसे दुहरी कर के जैसे उसके घुटने उसके चेहरे को छू रहे हों, दोनों हाथों से कुछ देर तक तो उसके छोटे छोटे चूतड़ों कप पकड़ के, फिर पतली कमरिया को बिना रुके, गिन के सौ धक्के तो मारे होंगे ही उन्होंने,...
मैं बीच बीच में सामने लगी दीवाल घडी देख रही थी पूरे दस मिनट तक बिना रुके , और दस मिनट तक वो चीखती रही, बिसूरती रही हाथ गोड़ जोड़ती रही, पर आज उसके भैया पर कोई असर नहीं हो रहा था चोद चोद के , क्या कोई धुनिया रुई धुनेगा,
और जो रुके भी तो मैं मुस्कराने लगी उनकी बदमाशी देख के , सच में उनकी सास ने पंद्रह दिन में एक दम मस्त ट्रेनिंग दी थी,... एक तो लगातार उन्हें मादरचोद बहन चोद बोल के उनसे ही उनकी माँ बहन को रोज दस दस गाली दिन में दस बाद दिलवा के सब झिझक ख़तम कर दी थी और उसके बाद एक से एक ट्रिक,... बस वही सीखा हुआ, उनका मोटा पिस्टन उनकी बहन की बुर में जड़ तक धंसा, फट रही होगी स्साली की दर्द के मारे,...
और अब वो लंड के जड़ से उसकी क्लिट रगड़ रहे थे, ... पहले धीरे धीरे फिर जोर जोर से,...

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और साथ में जिस तरह से वो उस छिनार की चूँची मसल रहे थे ... मसल तो स्साली की तभी देना चाहिए था जब वो हाईस्कूल में पहुंची चूजों ने सिर उठाना शुरू किया था, अभी भी खैर हफ्ते भर पहले पास किया था,... पर वो दो तीन साल का सूद समेत,.. मैं उन्हें चिढ़ाती थी,
" ननदी क छोट छोट जोबन दाबे में मजा देय
अरे बहिनी तोहार चोदे में मजा देय।

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सच में जो बिन समझे मन की बात की समझ जाए, बिन बिन बोले मन की बात करे,... वही है साजन मेरा,... बहुत प्यार उमड़ रहा था मेरा उनके ऊपर, इस कुँवारी टीनेजर को देख के सोच के जो फैंटेसी मेरे मन में उभरती थी वो सब आज पूरी हो रही है , साथ में एच डी क्वालिटी में रिकार्डिंग,... एक एक पल की,...
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