बहुत बहुत धन्यवाद,
जिस डगर को को मैं जानती नहीं उधर चलने से डरती हूँ, हाँ अभी छुटकी की कहानी में मैंने इन्सेस्ट की एक उप कथा जो एक कहानी सी ही थी, लिखने की कोशिश की और उसको कुछ मित्रों ने पसंद भी किया, पर मैं किसी भ्रम में नहीं हूँ. वह भाग इस लिए नहीं पसंद किया गया की मैंने इन्सेस्ट के आधार पर कुछ अच्छा लिखा,... वो मेरे बेबी स्टेप से हैं और यह सिर्फ आप सबका स्नेह और विश्वास है जिन्होंने उसकी तारीफ़ की।
इस फोरम में एक से एक इन्सेस्ट लिखने वाले हैं, सबसे ज्यादा कहानियां उसी पर लिखी जाती है और पढ़ी जाती है,
पर मेरे लिए वह कठिन इस लिए लगता है की मैं चाहे कहानी हो या नॉन फिक्शन, लिखूं या पढूं , क्या और कब ( ) के साथ क्यों और कैसे ( ) को भी थोड़ा बहुत समझना चाहती हूँ, वर्जनाओं को तोड़ते समय मन में जो उहापोह होती है उसे दिखाना चाहती हूँ,... और वह समझना थोड़ा कठिन होता है,...
दूसरे मेरे लिए इन्सेस्ट की एक सीमा यह भी है की एक लड़की के कितने भाई होंगे,... तो कित्ती देर तक वो कहानी शुद्ध इन्सेस्ट पर चल पाएगी।
फिर मेरे पाठको में भी दो तरह के लोग है, कुछ ने छुटकी की कहानी सिर्फ इसलिए पढ़नी छोड़ दी क्योंकि उसमे इन्सेस्ट का एक बड़ा प्रसंग था,... कई बार पाठक अपनी फैंटेसी में कहानी का हिस्सा बन जाता है और उसे वह नागवार गुजरता है
इस तरह की कई बातें है जो सिर्फ मेरी सीमाओं को दिखाती है
यह नहीं है की मैं फैंटेसी नहीं लिखती लेकिन वो सिर्फ होली के दृश्यों में वो भी एक सीमा तक, कुछ ख़ास रिश्तों में जैसे देवर भाभी, ननद भाभी या जीजा साली जो ग्राह्य लगते है या जिन फैंटेसी से मैं अपने जो जोड़ कर सहज पाती हूँ,...
मैं मना नहीं कर रही, सिर्फ अपनी सीमा बता रही हूँ , और मैंने अरविन्द गीता का प्रसंग लिखा और मुझे न लिखते समय न पढ़ते समय और न अभी भी , कोई ग्लानि सेन्स आफ गिल्ट नहीं होता,... लेकिन उस प्रसंग के अंत में दो पोस्टें ग्राम्य जीवन की सच्चाई, माइग्रेशन के दर्द पर भी थी,... गीता की माँ का कष्ट भी था उस में जो शुद्ध इन्सेस्ट वाली कहानियों में नहीं होता,...
एक बार फिर से आभार , बस यही निवेदन कर सकती हूँ दोनों कहानियों से जुड़े रहिये।