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पापी परिवार--41
इन पुणे :-
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काफ़ी देर तक पार्क में समय बिताने के बाद निकुंज वापस होटेल की तरफ लौटने लगा ...हॉस्पिटल जाने का टाइम नज़दीक था और शायद उससे पहले कम्मो शॉपिंग करने जाती.
कार में बैठ कर वो मेन रोड पर आ गया, उसका पीड़ित मन बार - बार उससे कह रहा था ...... " मत जा होटेल !!! कहीं भाग जा, तेरी पूरी फ्यूचर लाइफ स्पायिल हो गयी है ..अब तू किसी काम का नही रहा " ......सहसा उसे गालो पर आँसुओ की धार बहने लगी ...जिनमे कुछ बूँदें उसकी बहेन निक्की के पागलपन की भी साक्षी थी.
" तनवी से शादी के लिए मना करना पड़ेगा, वरना उस बेचारी की ज़िंदगी भी नर्क में तब्दील हो जाएगी ..बहुत बड़ा अन्याय हो जाएगा उसके साथ " ........निकुंज सोचने लगा, जब वो उससे पहली बार मिला था ...कितना मासूम भोला चेहरा, शरारती आँखें ...कैसे उसने निकुंज की बोलती बंद कर दी थी यह कह कर कि ...... " उसे खाना बनाना तो नही आता पर बना खाना ज़रूर आता है " ........उसकी बात सुनकर तो जैसे निकुंज के कानो से धुआ निकल गया था, एक पल तो लगा वहाँ से भाग जाए ...पर अगले ही पल जब वो ज़ोरो से हसी, निकुंज उसकी मुस्कुराहट पर मर मिटा था.
बाद में वे दोनो ज्यूयलरी शॉप पहुचे, तनवी के लाख मना करने के बावजूद उसने उसे कर्ध्नी गिफ्ट की ...यहाँ तक कि अपने हाथो से पहनाई भी, कितना कोमल बदन है उसका ...सोचने मात्र से भी मैला हो जाने वाला जिस्म और तो और शॉप से बाहर आते वक़्त कैसे उस अंजान लड़की ने, उसके डॅड के दोस्त के पैर छु कर आशीर्वाद माँगा था ...वो नज़ारा देख कर वाकाई निकुंज का सीना फक्र से चौड़ा हो गया था.
वहाँ से निकलने के बाद तनवी ने उसे बताया कि यह उनकी आख़िरी मुलाक़ात है ...अब वो सीधे शादी के मंडप में मिलेंगे, उससे पहले ना कोई फोन कॉल ना कोई डेट ...सिर्फ़ हिचक़ियों में एक दूसरे को याद करेंगे.
" मगर मैने उसे याद ही कहाँ किया, कभी निक्की और कभी मोम ..इनसे उबर पाउ तो याद करू भी " ......एक चिड के साथ निकुंज ने खुद से कहा, निक्की के रूप में उसकी एक परेशानी ख़तम नही हो पाई थी कि दूसरी ... कम्मो के रूप में चली आई.
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इन्ही सोचो के बीच वो होटेल पहुच गया ...लगभग 15 मिनिट तक खुद को नॉर्मल करने के बाद, लिफ्ट से वो अपने रूम कॉरिडर में आया और 2न्ड के से दरवाज़ा खोलने लगा.
गेट अनलॉक कर वो कमरे में एंटर हुआ, पर अंदर का नज़ारा देखते ही उसकी आँखें चौंधिया गयी, उसकी मा बेड पर करवट लिए लेटी थी और उसकी पीठ निकुंज की तरफ थी ...इस वक़्त कम्मो के ऊपरी बदन पर सिवाए ब्रा के कुछ और नही था, एक पतली सी स्ट्रीप के अलावा उसकी पूरी पीठ नेकेड थी ... 1स्ट टाइम ऐसा मौका आया जब निकुंज ने अपनी मोम की अधनंगी बॅक का दीदार किया, चाह कर भी कुछ पल के लिए उसकी निगाहें मा के गोरे बदन से ना हट सकी ... ब्रा स्ट्रीप ब्लॅक थी और अस्तव्यस्त साड़ी में कम्मो के चूतड़ो की स्टार्टिंग दरार सॉफ दिखाई पड़ रही थी ... एक भारी औरत के बदन में जितनी कशिश और सुदोलता होती है उतनी नौजवान लड़कियों में कहाँ, निकुंज के कदम जहाँ थे वही जमे रह गये.
अचानक से कम्मो ने करवट बदली और अपनी पीठ के बल लेट गयी, पिछले 1 घंटे से सिवाए करवट बदलने के वो और कर भी क्या रही थी ... हड़बड़ा कर निकुंज फॉरन फ्लोर पर लेट गया ताकि कम्मो, कमरे में उसकी मौजूदगी को महसूस ना कर सके ...डर तो आख़िर डर होता है, निकुंज की सोच में अगर मोम जान जाती, उनका बेटा इस वक़्त कमरे में उनके साथ मौजूद है ... वाकाई वो उससे और भी ज़्यादा खफा हो जाती और ऐसा सोचने के बाद निकुंज के माइंड में छुप्ने के अलावा और कोई बात नही आ सकी.
5 मिनिट तक वो ज़मीन पर ऐसे लेटा रहा जैसे कमरे में कोई बॉम्ब लगा हो ...साँसे तक थम सी गयी थी, जब उसने कोई और हरक़त की आवाज़ नही सुनी ...उठ कर वापस खड़ा हुआ, पर इस बार का नज़ारा तो कामुक़पन्न की सारी हदें पार करने लायक था.
इन पुणे :-
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काफ़ी देर तक पार्क में समय बिताने के बाद निकुंज वापस होटेल की तरफ लौटने लगा ...हॉस्पिटल जाने का टाइम नज़दीक था और शायद उससे पहले कम्मो शॉपिंग करने जाती.
कार में बैठ कर वो मेन रोड पर आ गया, उसका पीड़ित मन बार - बार उससे कह रहा था ...... " मत जा होटेल !!! कहीं भाग जा, तेरी पूरी फ्यूचर लाइफ स्पायिल हो गयी है ..अब तू किसी काम का नही रहा " ......सहसा उसे गालो पर आँसुओ की धार बहने लगी ...जिनमे कुछ बूँदें उसकी बहेन निक्की के पागलपन की भी साक्षी थी.
" तनवी से शादी के लिए मना करना पड़ेगा, वरना उस बेचारी की ज़िंदगी भी नर्क में तब्दील हो जाएगी ..बहुत बड़ा अन्याय हो जाएगा उसके साथ " ........निकुंज सोचने लगा, जब वो उससे पहली बार मिला था ...कितना मासूम भोला चेहरा, शरारती आँखें ...कैसे उसने निकुंज की बोलती बंद कर दी थी यह कह कर कि ...... " उसे खाना बनाना तो नही आता पर बना खाना ज़रूर आता है " ........उसकी बात सुनकर तो जैसे निकुंज के कानो से धुआ निकल गया था, एक पल तो लगा वहाँ से भाग जाए ...पर अगले ही पल जब वो ज़ोरो से हसी, निकुंज उसकी मुस्कुराहट पर मर मिटा था.
बाद में वे दोनो ज्यूयलरी शॉप पहुचे, तनवी के लाख मना करने के बावजूद उसने उसे कर्ध्नी गिफ्ट की ...यहाँ तक कि अपने हाथो से पहनाई भी, कितना कोमल बदन है उसका ...सोचने मात्र से भी मैला हो जाने वाला जिस्म और तो और शॉप से बाहर आते वक़्त कैसे उस अंजान लड़की ने, उसके डॅड के दोस्त के पैर छु कर आशीर्वाद माँगा था ...वो नज़ारा देख कर वाकाई निकुंज का सीना फक्र से चौड़ा हो गया था.
वहाँ से निकलने के बाद तनवी ने उसे बताया कि यह उनकी आख़िरी मुलाक़ात है ...अब वो सीधे शादी के मंडप में मिलेंगे, उससे पहले ना कोई फोन कॉल ना कोई डेट ...सिर्फ़ हिचक़ियों में एक दूसरे को याद करेंगे.
" मगर मैने उसे याद ही कहाँ किया, कभी निक्की और कभी मोम ..इनसे उबर पाउ तो याद करू भी " ......एक चिड के साथ निकुंज ने खुद से कहा, निक्की के रूप में उसकी एक परेशानी ख़तम नही हो पाई थी कि दूसरी ... कम्मो के रूप में चली आई.
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इन्ही सोचो के बीच वो होटेल पहुच गया ...लगभग 15 मिनिट तक खुद को नॉर्मल करने के बाद, लिफ्ट से वो अपने रूम कॉरिडर में आया और 2न्ड के से दरवाज़ा खोलने लगा.
गेट अनलॉक कर वो कमरे में एंटर हुआ, पर अंदर का नज़ारा देखते ही उसकी आँखें चौंधिया गयी, उसकी मा बेड पर करवट लिए लेटी थी और उसकी पीठ निकुंज की तरफ थी ...इस वक़्त कम्मो के ऊपरी बदन पर सिवाए ब्रा के कुछ और नही था, एक पतली सी स्ट्रीप के अलावा उसकी पूरी पीठ नेकेड थी ... 1स्ट टाइम ऐसा मौका आया जब निकुंज ने अपनी मोम की अधनंगी बॅक का दीदार किया, चाह कर भी कुछ पल के लिए उसकी निगाहें मा के गोरे बदन से ना हट सकी ... ब्रा स्ट्रीप ब्लॅक थी और अस्तव्यस्त साड़ी में कम्मो के चूतड़ो की स्टार्टिंग दरार सॉफ दिखाई पड़ रही थी ... एक भारी औरत के बदन में जितनी कशिश और सुदोलता होती है उतनी नौजवान लड़कियों में कहाँ, निकुंज के कदम जहाँ थे वही जमे रह गये.
अचानक से कम्मो ने करवट बदली और अपनी पीठ के बल लेट गयी, पिछले 1 घंटे से सिवाए करवट बदलने के वो और कर भी क्या रही थी ... हड़बड़ा कर निकुंज फॉरन फ्लोर पर लेट गया ताकि कम्मो, कमरे में उसकी मौजूदगी को महसूस ना कर सके ...डर तो आख़िर डर होता है, निकुंज की सोच में अगर मोम जान जाती, उनका बेटा इस वक़्त कमरे में उनके साथ मौजूद है ... वाकाई वो उससे और भी ज़्यादा खफा हो जाती और ऐसा सोचने के बाद निकुंज के माइंड में छुप्ने के अलावा और कोई बात नही आ सकी.
5 मिनिट तक वो ज़मीन पर ऐसे लेटा रहा जैसे कमरे में कोई बॉम्ब लगा हो ...साँसे तक थम सी गयी थी, जब उसने कोई और हरक़त की आवाज़ नही सुनी ...उठ कर वापस खड़ा हुआ, पर इस बार का नज़ारा तो कामुक़पन्न की सारी हदें पार करने लायक था.