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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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इसी बीच कम्मो बाथ - रूम से बाहर निकली और फिर वही हुआ जो आप पढ़ चुके हैं.

पेशाब से मुक्ति पा कर निकुंज ने अपने दैनिक कार्य आरंभ कर दिए ...उसके लंड में तनाव आ गया, मूत भी निकला था ...लेकिन उसे इस बात से कोई खुशी नही महसूस हो पा रही थी, बार - बार उसका ध्यान बस इस बात पर चला जाता ....... " मैं कितना पापी बेटा हूँ !!! अपनी प्यारी और भोली मा को कितना विवश कर दिया था मैने, वह कितना प्रेम करती है मुझसे और मैं उससे अपना ....छीईईइ !!! " .......निकुंज पॉट पर बैठा बस खुद को कोसने में मगन हो गया ...... " ऐसी मा किसी की नही होगी, जो अपने बेटे के लिए इस हद्द तक टूट जाए ..कहाँ मैने मोम को हमेशा व्यवस्थित कपड़ो में देखा था, लेकिन मेरी चोट के चलते मेरे लंड को खड़ा करने के लिए ..वह कयि बार नग्न हुई, आख़िर कार जब सफलता नही मिली ..मोम को विवश हो कर मेरा लंड चूसना ही पड़ा और उस पर भी मैने उन्हे दो बार अपनी तरफ से टोका ..छीईइ !!! लानत है मुझ पर " ......यह सोचते वक़्त निकुंज को रोना आ गया लेकिन उसने अपने आँसू नही बहने दिए ..... " सिर्फ़ मेरे रोने से कुछ नही होगा ..मुझे प्राशयाचित करना पड़ेगा और इसका एक ही उपाए है, मैं मोम से दूरी बना लूँगा ..उसने बातें कम करूँगा और जितना हो सकेगा उनकी नज़रो के सामने अपना पापी चेहरा नही आने दूँगा " ......इतना प्रण कर वह बाथ - रूम से बाहर निकल आया.

" आप नहा लीजिए ..हमे आधे घंटे से हॉस्पिटल पहुचना है और हम आज ही रघु को लेकर मुंबई वापस निकल जाएँगे " .....निकुंज ने भर्राई गले से कहा और खुद के कपड़े ले कर बाथ - रूम में वापस चला गया ...अगले 5 मिंट से ज़्यादा का वक़्त नही लिया उसने और वहीं से तैयार हो कर उतनी ही तेज़ी से ...कमरे से बाहर भी निकल गया.

कम्मो भी सोफे से उठ कर हौले - हौले कदमो से बाथ - रूम पहुचि और जल्द ही दोबारा उसी लिबास को धारण कर कमरे से बाहर निकल गयी.

होटेल के नीचे निकुंज सफ़ारी में बैठा उसकी मा के आने का इंतज़ार कर रहा था और कम्मो के आते ही वे दोनो हॉस्पिटल जाने के लिए आगे बढ़ गये.

चलती कार में निकुंज ने एक - बार भी अपनी मा की तरफ निगाह नही डाली, बस अपना सारा ध्यान रोड पर केंद्रित किए ड्राइव करता रहा ...जब कम्मो उसके इस रूखे बर्ताव से अत्यधिक तंग गयी ..तब उसके मश्तिश्क में फिर से द्वन्द शुरू हो गया.

" ये ऐसे रिक्ट क्यों कर रहा है जैसे हमारे बीच कोई बहुत बड़ा पाप हो गया हो ..अरे !!! मा हू इसकी ..लंड चूस भी लिया तो क्या ग़लत किया, नीमा तो रोज़ाना चूस्ति है और तो और वह चुदवाने भी लगी है अपने बेटे से ..मैने तो फिर भी इसके इलाज के रूप में ऐसा किया था " ......कम्मो ने क्रोध में बढ़ते हुए सोचा ...... " और मैं अकेली ऐसी मा नही जिसने यह किया होगा, फिर क्यों ये मूँह फुलाए बैठा है ..बस मेरी ग़लती इतनी रही कि मैने बहुत ज़्यादा प्यार कर लिया इससे, अरे !!! मैं भी तो औरत हूँ ..मेरी भी कयि लालसाएँ हैं, सबसे बड़ी बात ..लाख मनाने के बावजूद भी जो सुख मैने कभी अपने पति को नही दिया, वह मैने इसे दिया ..मैं तो वापस भी लौट रही थी, पर इसने खुद नही लौटने दिया ..अब जब मुझे इससे अत्यधिक प्रेम हो गया है, तब क्यों ये ऐसी बातें सोच रहा है " ......कम्मो ने एक नज़र निकुंज पर डाली लेकिन हालात पहले जैसे रहे ....... " देखो !!! जान कर भी अंजान बना बैठा है ..मैं ग़लत नही, ग़लत ये खुद है ..पहले मुझसे ग़लती करवाई, मुझे नग्न होने पर मजबूर किया और जब मैने अपनी ग़लती को सुधारा तो अब इसके भाव बढ़ रहे हैं ..इतना सब होने के पश्चात यदि मेरी कुछ नयी इक्छाये पैदा हो गयी हैं, तो क्या ग़लत है ..मैं कोई चुदाई थोड़ी करवाना चाहती हू इससे, मैं तो चाहती हूँ अब यह मेरा बेटा नही दोस्त बने ..मैं जो भी कहु मेरी सुने, मुझे छेड़े ..परेशान करे, मुझे बेहद प्यार करे, अपना वक़्त दे ..हां !!! मानती हूँ, रोमांच के वशीभूत बहेक कर मैने दोबारा अपनी मर्ज़ी से इसका लंड चूसा ..तो इसमें इसका क्या बिगाड़ दिया, मैं उसे काट कर तो अपने पास रखने नही वाली ..भले शादी के बाद इसके लंड के ऊपर तनवी का हक़ होगा, पर मैं बहकी क्यों ..अरे !!! इतना झुकाने के बाद तो मेरी बात समझनी चाहिए थी ....मैने कभी कोई शिक़ायत नही की ऊपर वाले से, हर दुख और ज़ुल्म से कर भी कभी उदास नही हुई और अब जब मेरी उदासी छ'टनी चाहिए ..तब यह मेरे साथ ऐसा कर रहा है " ......सोचते - सोचते कम्मो की आँखों की किनोरे गीली होने लगी ...... " मुझे सब ने धोखा दिया, एक आस थी कि मेरा बेटा मेरे साथ है, लेकिन अब मैं कहाँ जाउ ..पिछे हट कर भी क्या फ़ायदा, मैने तुझसे बहुत सी आशायें लगा रखी थी निकुंज ..पर तूने मेरे पूरे विश्वास की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी, तू क्या सोचता है तेरी मा बाज़ारू है ..जो यूज़ किया और छोड़ दिया, अरे !!! मुझ जैसी मा तुझे 7 जन्मो में नही मिलेगी लेकिन मैं तो ऊपर वाले से हमेशा यही प्रार्थना करूँगी, जब भी मेरी कोख भरे ..उसमें से तू ही बाहर निकले " ......कम्मो का सिसकना शुरू हुआ और उनकी कार हॉस्पिटल की पार्किंग में जा कर खड़ी हो गयी.

बेहद टूट जाने पर कम्मो को रघु से मिलने की भी कोई खुशी नही रही ...वे दोनो जल्द ही उसके कमरे में पहुच गये, वह चेर पर बैठा था ...जैसा की निर्देश मिला था, उसकी दाढ़ी काफ़ी बढ़ी हुई थी ...स्टाफ को सॉफ कहा गया था, उसे शेव्ड रहना कतयि पसंद नही ...बदन पर हॉस्पिटल के कपड़े और उसका सर चेर स्टॅंड के साथ बाँधा गया था.

" जी आप बिल्कुल ले जा सकते हैं इसे ...मैं कुछ ज़रूरी बातें बता दूँगा, बस उनका ख़याल रखें ...बाकी सच कहूँ तो मैं भी यही चाहता था, इसे फेमिलियर एन्वाइरन्मेंट की सख़्त ज़रूरत है ..अगर फ्यूचर में कभी सही होगा, तो उसमें आप सब का योगदान प्रमुख रहेगा " .....ड्र. शर्मा इतना कह कर वॉर्ड से बाहर जाने लगे और अपने साथ उन्होने कम्मो को भी आने को कहा.

" मिसेज़. चावला !!! चूँकि आप घर की बड़ी हैं, कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान आप ही रख सकती हैं ..इसी लिए मैने निकुंज को यहाँ नही बुलाया " ......ड्र. शर्मा ने अपनी चेर पर बैठते हुए कहा.

" जी कहिए " ......कम्मो ने जवाब दिया पर उसकी आवाज़ में उतना दम नही था.

" जी थॅंक्स !!! मैं डाइरेक्ट मुद्दे पर आता हूँ ...रघु की बॉडी का कोई भी पार्ट वर्क नही करता, यह आप जानती हैं ..तो आप को या परिवार के अन्य सदस्यो को दिन - रात इसका ध्यान रखने की ज़रूरत है, वह पूरी तरह से आप सब के ऊपर आश्रित रहेगा ..गर्मियाँ ज़ोरो पर हैं, दिन में दोनो टाइम आप इसे ज़रूर नहलवाएँ ..साथ ही बड़ी बारीकी से इसके प्राइवेट पार्ट्स, जहाँ अक्सर गंदगी ज़्यादा रहती है ..हमेशा सॉफ और सूखे रखें ताकि कोई इन्फेक्षन उन्हे ना घेरे, इसके कपड़े नियमित बदलें ..बाकी मेडिकल संबंधी जितनी भी दिक्कतें हैं, मुंबई में भी हल हो जाएँगी ..आप के घर पर साप्ताह में दो बार वहाँ की ब्रांच से नर्स आ जाया करेगी ..मैं समझता हूँ आप को बड़े सैयम से काम लेना पड़ेगा, वादा तो नही करता पर मेरा अनुभव कहता है, वह ज़रूर ठीक होगा ..बेस्ट ऑफ लक मिसेज़. चावला, आप के बेटे को अब उसके परिवार का प्यार ही दोबारा से जीवित कर सकता है " .......इतनी समझाइश देने के बाद ड्र. शर्मा चुप हो गये और रघु के हॉस्पिटल छोड़ने के मैन दस्तावेज़ो पर दस्तख़त करने लगे.

" हम इसे कब तक ले जा सकते हैं ? " ......कम्मो ने पूछा साथ ही वह अपने मन में कुछ प्रण भी करने लगी ..... " निकुंज से नाराज़ हूँ तो क्या हुआ, मैं रघु को कोई कष्ट नही होने दूँगी ..हर हाल में उसका ख़याल रखूँगी, अगर मा अपने बच्चों का ध्यान नही रख पाई ..तो उसके मा होने पर लानत है " ......वह फिर से जीवित हो उठी, रघु भी उसे कम प्रिय नही था ...लेकिन वह चाह कर भी कभी उसके लिए कुछ कर नही पाई थी ....... " अब करूँगी ..मेरा बेटा ज़रूर ठीक होगा "

" चाहें तो 2 घंटे बाद ले जा सकते हैं ..बस एक लास्ट आंड; फाइनल चेक - अप करना चाहता हूँ, उसके बाद मैं निकुंज को कॉल कर दूँगा " ......इतना बोलने और सुनने के बाद दोनो चेंबर से बाहर आए ...ड्र. शर्मा ने निकुंज को भी कुछ हिदायतें दी और फिर दोनो मा बेटे सामान पॅक करने की गरज से वापस होटेल पहुच गये ..
 

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पापी परिवार--44

निकुंज जब तक कमरे के अंदर फैला सामान पॅक करने लगा ...कम्मो बाथ - रूम के अंदर चली गयी, उसके पास तो सिवाए छोटे से हॅंड बॅग के कुछ और नही था ...बाथ - रूम के अंदर जाने के बाद उसने हॅंगर पर टँगे सारे कपड़ो को समेट लिया, जिनमें उसकी पुरानी साड़ी, मॅचिंग के अन्य कपड़े और ख़ास बेटे का वा कुर्ता था ...जो उसके भारी - भरकम सुडोल बदन पर बीती रात शुशोभित हुआ था, इसके बाद वह पलट कर बाहर आने लगी तभी उसकी नज़र फ्लोर पर पड़ी अपनी गीली और पेशाब से तर पैंटी पर गयी ...उसने कोई देरी नही की और बिना किसी घिंन के, दोबारा से उसी गंदी पैंटी को अपनी कमर पर चढ़ा लिया.

बाहर निकल कर उसने देखा निकुंज लगभग सारा सामान पॅक कर चुका था ...कम्मो ने उसका कुर्ता देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया और बिना कोई भाव दिए, कुर्ता पकड़ा कर अपनी साड़ी की तय बनाने लगी ...अब वे दोनो फ्री थे हॉस्पिटल वापस जाने के लिए, पर उन्हें इंतज़ार था ड्र. शर्मा के कॉल का ...जो निकुंज के पास अब तक नही आया था.

वक़्त बिताने के लिए कम्मो थोड़ी देर बेड पर लेट गयी और निकुंज सोफे पर बैठ गया ...दोनो चुप थे, लेकिन उनके मन अशांत थे ...वे चाहते थे कुछ बात तो उनके दरमियाँ हो, लेकिन क्या ...बस यही ग्यात नही हो पा रहा था.

कमर पर लिपटी गीली कछि पहेन'ने के बाद से ही कम्मो बड़ा अनकंफर्टबल महसूस कर रही थी, रह - रह कर उसकी योनि और उसके आस पास के एरिया में खुजली का अनुभव हो रहा था ...लेकिन वह खुजली भी उसे बहुत सुकून पहुचा रही थी, एक तो कछि का गीलापन और साथ ही उसका, कम्मो की गरम वा धधकति योनि पर बुरी तरह से चिपक जाना ...उसे आनंद से भरने लगा था, उसे सॉफ महसूस हो रहा था उसकी योनि में बेहद सूजन आ गयी है ...योनि के होंठ और भज्नासे में भी काफ़ी दर्द उठ रहा है, वजह सॉफ थी ...ना तो वह इन दो दिनो में एक बार भी खुल कर झड़ी थी और ना ही उसने अपनी खराब हालत पर इतना गौर कर पाया था ...वह अपने बेटे को कतयि अपनी कामुकता का भान नही कराना चाहती थी और शायद इसीलिए अब तक उसके मन में बेटे के साथ संसर्ग स्थापित करने की लालसा का जनम नही हो पाया था.

" जब मैने कोई ग़लती की ही नही, तो स्वीकारू क्यों ..जो कुछ हुआ उसमें मेरी निकुंज की भलाई शामिल थी, लेकिन बदले में मैने क्या पाया ..तिरस्कार, उसका रूठना ..उसकी नाराज़गी " ......बेड पर लेटे - लेटे वा अपनी चोर नज़रो से बेटे की तरफ देखने लगी थी, जो अपनी आँखें बंद किए बैठा हुआ था ...... " बात तो तब होती जब निकुंज मुझे समझता, क्या एक मा कभी अपने बेटे की तरफ आकर्षित नही हो सकती ..ज़रूर हो सकती है, आख़िर उसका बेटा होने से पहले वह एक मर्द है और उसकी मा होने से पहले वह स्त्री एक औरत ..अब जो कुछ अंजाने में हो गया, क्या उसे इतनी जल्दी अपने दिमाग़ से बाहर किया जा सकता है ..कुछ कम भी तो नही हुआ, जो मैने कभी सपने में भी नही सोचा था ..उसे करने पर विवश हुई, हां !!! माना मैं अभी भी उस हादसे को नही भुला पाई हूँ ..अपना मन नही बदल पा रही, मैं चाह रही हूँ, वह हादसा दोबारा हो और मुझे फिर से विवश होना पड़ जाए ..आख़िर इसमें ग़लत क्या है, ऊपर वाले ने उत्तेजना चीज़ ही ऐसी बनाई है ..जो हर मर्यादा, हर पवित्र रिश्ते की सीमा को लाँघने तैयार रहती है ..खेर जब तक मैं विवश नही हुई थी तब तक क्या मेरा मन इसी व्याकुलता से भरा रहता था ..नही !!! मैने एक पल को भी अपने बेटे के बारे में ग़लत सोच नही रखी, पर अब हालात बदल चुके हैं ..मैं वह कर चुकी हूँ जिसकी छाप सदैव मेरे मश्तिश्क में छायि रहेगी ..मैं चाह कर भी उसके प्यारे व नवजवान सुंदर लिंग को भुला नही पा रही हूँ और मन कर रहा है ..अभी सारा सच निकुंज पर बयान कर दूं " ......कम्मो पागल होने लगी, जाने क्या - क्या सोचने में व्यस्त हो गयी थी .......
 

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" अब दूसरा पहलू :- अभी मेरी योनि में दर्द है, सूजन है ..मैं चाहती हूँ मुझे इस असहनीय पीड़ा से फॉरन मुक्ति मिल जाए और यदि मैं इसके लिए अपने बेटे का सहारा लूँ ..क्यों नही ले सकती, आख़िर मैने भी तो उसके दर्द का निवारण किया था ..मैं यह कतयि नही चाहती वह अपना लिंग इसमें प्रवेश करवा कर अपनी मा की पीड़ा का अंत करे ..कम - से - कम जो क्रिया मैने उसके लिंग के साथ की थी, वह तो करवा ही सकती हूँ ..फिर देखूँगी !!! एक बेटे के लिंग में तनाव आता है या नही ..मा की योनि क्या दूसरी योनियों से भिन्न है, नही है !!! जिस तरह इस वक़्त मैं आकर्षित हूँ ..वह भी खुद पर काबू नही रख पाएगा और क्या पता ज़बरदस्ती अपनी मा को चोद भी डाले ..कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है, मैं ग़लत नही हूँ " .....कहाँ कुछ दिन पहले तक कम्मो को एहसास ही नही था कि वह एक औरत है ...शायद इसीलिए उसका पति भी उससे दूरी बनाए रखता था, लेकिन आज जैसे उसका मन रोमांच से भरता जा रहा था ...कितना नीचे गिर चुकी थी वह, उसकी मनोदशा बिल्कुल नीमा जैसे हो गयी थी ...जिसने उसके अंदर भी काफ़ी सैलाब उमड़ा दिए थे, वह सही या ग़लत में अंतर नही कर पा रही थी ...उसे तो बस अथाह प्रेम करना था, वापस पाना था, फिर चाहे इसके लिए वह रंडी ..घोर पापिन तक बन'ने तैयार थी.

" निकुंज !!! " ......बेड पर बैठते हुए उसने अपने बेटे को आवाज़ दी, उसके भारी गले से निकली ध्वनि में एक तरह के अपवाद शामिल था.

" जी " ......कुछ पल बाद निकुंज ने अपनी आँखें खोली और जवाब दिया, लेकिन उसकी आँखों की पुतलियों की थिरकन ...एक बार भी अपनी मा के चेहरे पर नही टिक पाई.

" जो कुछ हुआ !!! उस बात का जिकर घर पर किसी से मत करना " .....कम्मो ने अपने मन की पीड़ा को दर्शाते हुए कहा.

" जी " ......एक बार फिर निकुंज के मूँह से वही शब्द दोबारा निकला ...शायद इसके अलावा वह ओर कहता भी क्या.

" तनवी से भी नही !!! " .....कम्मो ने ठीक उसी लहजे में कहा, लेकिन अपनी बहू ...बेटे की होने वाली धरम - पत्नी का नाम ज़ुबान पर आते ही उसके दिल में सैकड़ो सूइयां चुभने लगी ...उसे अपना दिल जलता हुआ सा प्रतीत हुआ, लगा जैसे वह अपनी किसी ख़ास दुश्मन का नाम ले रही है और जो प्यार उसे अपनी होने वाली बहू से अब तक था ...एक पल में छ्ट कर क्रोध में भर उठा.
 

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जब निकुंज ने कोई जवाब नही दिया तब कम्मो फिर से बोली ...... " पत्नी मिल जाने के बाद बेटा अपनी मा तक को भूल जाता है, कहीं ऐसा ना हो ..प्रेमवश तू उसे अपनी मा की करतूत बता दे " ......कम्मो की इस बात का सीधा असर निकुंज के टूटे दिल पर हुआ, लगा जैसे कोई खंजर बेरहमी से उसके सीने में धस्ता जा रहा हो और वह उसे रोकने में पूरी तरह से नाकाम साबित होने लगा हो ...फॉरन उसके दिल में आया, अभी अपनी मा के पवित्र चर्नो में गिर जाए ...अपने किए की माफी माँगे, गिड़गिडाए ...पर ऐसा कुछ करने की हिम्मत उसके अंदर नही आ सकी और वह मन मसोस कर रह गया.

" बोल ना बेटा !!! नही बताएगा ना ? " ......यहाँ कम्मो उसके मार्मिक दिल के तार छेड़ती रही और निकुंज छिड़वाता रहा, आख़िरकार जब उससे सहन नही हो पाया तब इस बार भी वा अपने जवाब में ...... " जी " ..... कहते हुए सोफे से उठ खड़ा हुआ.

" हमे निकलना चाहिए ..आप कार तक पहुचो, मैं रिसेप्षन पर पेमेंट कर के आता हूँ " ......फॉरन वह अपना बॅग लेकर कमरे से बाहर निकल गया, वह जानता था कुछ पल बाद वह ज़रूर रोने लगता ...या अपनी मा से लिपट जाता, उससे अपने गुनाह की माफी माँगता, लेकिन वह नही चाहता था कि उसकी मा का दिल ओर दुखे ...उसे बीता हुआ घ्रानित पल वापस याद आए, शरम का अनुभव हो ...... " यादें भुलाने में वक़्त तो लगता है, सब ठीक हो जाएगा " ......यही सोचता हुआ वह रिसेप्षन तक पहुच गया और फाइनल पेमेंट करने के बाद दोनो हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े.

हॉस्पिटल पहुचने के बाद उन्हें रघु एक - दम तैयार मिला ...सारे स्टाफ ने उसे गम - गीन विदाई दी, ड्र. शर्मा उनकी कार तक चले आए थे ...उन्होने बड़ी हौसला - अफज़ाइ की और इसके बाद कम्मो सेंटर की सीट पर बैठ गयी, रघु का सर उसकी गोद में था ...आख़िरी शुक्रिया अदा कर निकुंज ने सफ़ारी में गियर डाला और वे तीनो अपने घर जाने के लिए निकल पड़े.
 

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निकुंज काफ़ी ध्यानपूर्वक ड्राइव कर रहा था, अब उसकी मा के अलावा उसका भाई भी उनके साथ था ...सड़क के गड्ढो को देखने में वह पूरी तरह से अपना मन केंद्रित कर चुका था.

वहीं कम्मो की मुश्क़िलें लगातार उसे परेशान पर परेशान किए जा रही थी और अब उसे अफ़सोस हो रहा था ...क्यों उसने गंदी पैंटी को अपनी कमर पर चढ़ाया, उसकी स्पंदानशील, रिस्ति योनि सूज कर कचोरी से भी बड़ा आकार ले चुकी थी और रघु का सर उसकी गोद में होने से वह, अपने हाथो का ज़रा भी प्रयोग नही कर सकती थी.

अत्यधिक उठती खुजली ने उसे बार - बार अपनी गान्ड हिलाने पर मजबूर कर दिया था, लेकिन इससे भी वह कोई राहत ना पा सकी, तक - हार कर उसने अपनी आँखें मूंद ली ताकि अपनी योनि में उठती सरसराहट, तीव्र पीड़ा को भुला सके.

समय तेज़ी से बीत'ता गया और कम्मो सपनो की दुनिया में भ्रमण करने लगी, लेकिन अपने सपनो में काफ़ी हद तक उसने वह देखा ...जो यथार्थ में नही देख पाई थी, या देखने की कल्पना की थी.

.

उसने देखा :-

.

निकुंज के वीर्य से अपना गला तर करने के बाद भी जब वह पूरी लगान से उसकी आँखों में झाँकते हुए, कठोरता के साथ उसका विशाल लॉडा चूस्ति जा रही थी ...उस वक़्त उसके बेटे के सख़्त हाथो का स्पर्श ठीक अपनी मा के मांसल, गद्देदार चूतड़ो पर दबाव दे रहा था ...वह मस्ताते हुए उन्हें अपने पंजो में ज़ोरो से भीचता और फिर अपनी मा की आँखों में देख कर मुस्कुराने लगता, इस तरह अपने चूतड़ मसले जाने का आनंद कम्मो को सीधा अपनी फड़फड़ाती योनि पर महसूस हुआ और अत्यधिक कामोत्तजना में भर कर उसकी आँखें बंद होने लगी, लेकिन निकुंज ने उसे वापस अपनी आँखें खोलने को कहा ..... " मोम !!! प्लीज़ अपनी आँखें खोलो " .....विवशता में भी कम्मो को बहुत मज़ा आ रहा था, उसने अपनी आँखें खोल कर देखा तो उसके बेटे ने उसके मुलायम, दूधिया गालो पर अपने हाथ फेरने शुरू कर दिए ...फॉरन कम्मो के होंठ खुल गये और बेटे का ढीला लिंग पल भर में उसके मूँह से सरक कर बाहर निकल आया ...लेकिन इसके बाद जो हरक़त निकुंज ने की, एहसास मात्र से ही कम्मो की योनि बहने को तैयार हो गयी.

उसके बेटे ने एक हाथ से अपने लिंग को पकड़ कर दोबारा उसे अपनी मा के मूँह में प्रवेश करवाना चाहा ..... " मूँह खोलो मोम !!! बस चूस्ति रहो और कभी ना रुकना " ......सुनकर कम्मो स्तब्ध रह गयी उसे समझ नही आया, निर्लज्जता से अपना मूँह खोले या मना कर दे.

" आप ने मेरी खुशी के लिए क्या कुछ नही किया !!! इसलिए आज से मेरे लंड पर सिर्फ़ आप का हक़ है ..तनवी का नही, आप वाकाई बहुत अच्छा लंड चूस्ति हो " .....बेटे के मूँह से यह शर्मनाक, घ्रानित टिप्पणी सुनकर कम्मो लज्जा से भर उठी, उसका रोम - रोम सिहर उठा, उसकी योनि लावा उगलने को तैयार बैठी थी .....इंतज़ार था तो मात्र एक हल्की सी छेड़ - छाड़ का.

" पहले ..पहले !!! मुझे बाथ - रूम जाना है निकुंज " .......कम्मो ने ऊपर उठते हुए फुफूसाया और बेड से नीचे उतर कर, चलने लगी ...... " चली जाना मोम !!! पर उससे पहले मैं आप की गोद में अपना सर रख कर लेटना चाहता हूँ " .......निकुंज ने उसका हाथ मजबूती से थामते हुए उसे रोक कर कहा, नीचे खड़ी उसकी मा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले बेहद गोल - मटोल, भारी - भरकम चूतड़, पूरी तरह से नग्न दिखाई दे रहे थे ...टाइट कुर्ता अब तक उसकी कमर पर लिपटा हुआ था और प्रत्यक्ष रूप से यह नज़ारा देखते हुए निकुंज ने अपने दूसरे हाथ का अंगूठा, मा के चूतड़ो की दरार के अंदर रगड़ना शुरू कर दिया.
 

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" उफफफफफ्फ़ !!! मैं आ तो रही हूँ " ......कम्मो की बात और सिसकी, दोनो पूरी नही हो पाई और निकुंज ने बलपूर्वक उसे बेड पर बिठा लिया ..... " मैं भी मना थोड़ी ना कर रहा हूँ मों !!! बस थोड़ी देर बाद चली जाना " ......मजबूरन कम्मो को उसकी बात मान'नि पड़ी, लेकिन अपनी योनि में धधक रही गर्मी निकालना उसके लिए बेहद ज़रूरी हो गया था ...अब वह हैरत भरी निगाहो से अपने बेटे के अंगूठे को देखने लगी, जिसे उसके चूतड़ो की गहरी घाटी में रगड़ने के बाद वह, उसमें से उठती मादक सुगंध सूंघ रहा था, मदहोश हो रहा था.

" मोम !!! ऊपर आओ ना ..मुझे आप की गोद में सर रख कर लेटना है " .....कम्मो किसी गुलाम की भाँति अपने बेटे की हर बात माने जा रही थी, उसने नीचे लटके अपने दोनो पैरो को आती शीघ्रता से बेड पर चढ़ा लिया और इसी बहाने उसके बेटे को कुछ छनो के लिए ...अपनी मा की झांतो से भरी रसीली योनि का दीदार हो गया.

फॉरन निकुंज ने अपनी जगह से हट'ते हुए, कम्मो को टेक लगा कर वहाँ बिठा दिया और उसके पैरो को विपरीत दिशा में फैलाने के बाद ...उसके दोनो घुटने भी काफ़ी ज़्यादा मोड़ दिए और फिर खुद उसकी नंगी टाँगो के बीच आ कर बैठ गया ...लेकिन इससे पहले वह अपना चेहरा मा की टाँगो की जड़ के बीचो - बीच रखने के लिए, उसे नीचे झुका पाता ...कम्मो ने पहना कुर्ता सरकाते हुए अपनी झांतो से भरी योनि पूरी तरह से ढक ली.

" मोम !!! आप बेहद खूबसूरत हो " ......निकुंज ने उसकी आँखों में देखते हुए, उसकी चिकनी जाँघ पर चूमा तो कम्मो के मूँह से एक ज़ोरदार चीख निकल गयी और स्वतः ही उसके हाथो से कुर्ते की कीनोर भी छूट गयी.

सही मौका मिलने के बाद निकुंज ने अपनी मोम की लंबी टाँगो के बीच पसरते हुए, उसकी जाँघो को हवा में उपर उठा दिया ताकि अपना मूँह, मा की फूली हुई गीली और धधकति योनि तक आसानी से पहुचा सके ...कम्मो को एक मिनिट के बाद जाकर कहीं समझ में आ पाया कि उसका अपना बेटा, उसकी योनि चाटना चाहता है और जब उसके बेटे की जीभ ने कामरस से लबालब भरी हुई ...उसकी योनि की सुगंधित परतों पर पहला दबाव दिया तो उसका जिस्म थर्रा उठा ...उसके रोंगटे खड़े हो गये और वह मदहोसी में अपने होंठ काटने लगी.

" नही !!! आअहह ..नही निकुंज ..उंगघह " ......कम्मो की सीत्कार के जवाब में निकुंज ने उसकी घनी घुंघराली, सुनहरी झांतो को चाटना शुरू कर दिया ...अब वह जान कर योनि के आस - पास के एरिया को चाट रहा था, ताकि उसकी मा मजबूर हो कर उससे अपनी योनि चटवाने, चुसवाने की माँग करने लगे, गिड़गिदाने लगे ..क्यों कि उसकी मा ने उसकी लंबी जीभ का पहला स्पर्श, पहला कहर झेल लिया था ...... " हाए मोम !!! आप तो बहुत गीली हो ..मुझे तो यकीन ही नही हो रहा " ......निकुंज ने अट्टहास करते हुए कहा, वह जानता था उसकी मा बाथ - रूम क्यों जाना चाहती थी ...वह अपनी बढ़ती कामोत्तजना का अंत करने को मचल रही थी, लेकिन अब सारा खेल उसके बेटे के हाथ में है ...वह जैसे चाहे अपनी मा को शांत कर सकता है, कम्मो भी उसकी बात सुनकर जोश से भर उठी ...बेटे का अपनी मा को इस शर्मनाक अंदाज़ में छेड़ना उसे बेहद पसंद रहा था.

कुछ देर तक झांतो में उलझे रहने के बाद निकुंज नीचे की तरफ अपनी जीभ ले जाने लगा ...उसकी आँखों के ठीक सामने उसकी मा की गान्ड का मुलायम भूरा छेद दिखाई देने लगा, उसने सॉफ महसूस किया ...बार - बार उसकी मा तेज़ सांसो के ज़रिए, अपने गुदा - द्वार को सिकोड कर अंदर की तरफ खीच रही थी और फिर स्वतः ही वह छेद अपने आप ढीला पड़ जाता ...... " न ..न ..निकुंज नही !!! वहाँ नही बेटा ..प्लीज़ " ......बेटे की जीभ का गीला स्पर्श, उसकी थिरकन अपनी गान्ड के कोमल छिद्र पर महसूस कर कम्मो की आँखें नतिया गयी और उसने बेटे का सर ज़ोरो से थाम लिया ..... " आऐईयईईईई !!! मान जा निकुंज ..मैं मर जाउन्गि " .....वह चीखने लगी ..इतने आनंद की कल्पना तो उसने कभी नही की थी, उसे तो पता तक नही था ...शरीर के इस गंदे छेद को भी चूसा या चाटा जा सकता है और सबसे बड़ी बात ...उसमें उठती सिरहन तो वाकाई प्राणघातक थी.
 

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" नही मोम !!! मुझे मज़ा आ रहा है ..आप का आस होल बहुत टेस्टी है " ......निकुंज ने उस छेद को काफ़ी गीला कर दिया था और अब वह उसे अपने होंठो में भीचते हुए, बड़ी कठोर व ताक़त के साथ चूसने लगा था ...जैसे उस छेद के अंदर से भी कोई तरल पदार्थ बाहर निकल कर अपना गला तर करना चाहता हो ...... " ह्म्‍म्म्ममम !!! " .....एक ज़ोरदार अंगड़ाई लेकर कम्मो ने उसके सर को मजबूती से ऊपर खीचा और उसके होंठ ठीक अपनी उबलटी योनि द्वार से टिका कर ...उतनी ही ताक़त से अंदर की तरफ दबाने लगी, जैसे इसी वक़्त अपने लाड़ले का पूरा चेहरा अपनी फूली योनि में परवेश करवा देगी ...... " यहाँ चूस बेटा ...चूस डाल अपनी मा को " .......आख़िर कार कम्मो गिडगीडाने लगी और जैसा निकुंज ने सोचा था ...वह उसमें सफल हो गया.

अब उसने अपनी मा की बात का कोई जवाब देना उचित नही समझा और उसकी योनि चूसने में पूरी तरह से व्यसत हो गया, स्पष्ट था कि उसे अपनी मों की योनि का ज़ायका बहुत स्वादिष्ट लग रहा था ...अपनी जीभ को रस से चमक रही गुलाबी योनि पर ऊपर - नीचे, अंदर - बाहर करने में उसे बड़ा मज़ा आ रहा था.

कम्मो ने तुरंत ही अपने मन में एक दर महसूस किया, कि मालूम नही वह अपने बेटे के सामने अब कैसा बर्ताव करेगी ...वह अपने बेटे द्वारा योनि चूसे जाने से पहले ही बहुत ज़्यादा कामोत्तेजित थी और जब उसके बेटे ने मात्र अपनी जीभ के इस्तेमाल से ही उसकी कुलबुला रही योनि को ओर भी गीला कर दिया था ...उसकी खुजली में ऑर भी इज़ाफ़ा कर दिया था तो आगे चलकर उसकी क्या हालत होगी ...उसे यह बात सोचते हुए भी डर लग रहा था की कहीं वह मदहोशी में अपनी सूदबुध ना खो बैठे और बेटे के सामने एक रंडी की तरह बर्ताव ना करने लग जाए.

" बस बेटा !!! अब बाथ - रूम जाने दे ...बहुत कर लिया तूने अपनी मोम से प्यार, चल अब मुझे जाने दे " ......ना चाहते हुए भी अंजाने डर के वशीभूत होकर कम्मो ने पीछे हटना चाहा लेकिन इस बार भी निकुंज ने कोई जवाब नही दिया, उसकी उंगलियाँ योनि के कोमल होंठो को काफ़ी हद्द तक फैला चुकी थी ...ताकि वह अपनी लप्लपाति जीभ, अपनी मा के गीले ओर सुगंधित छेद में पूरी गहराई तक थेल सके ...योनि के अंदर से गाढ़े मलाईदार रस का बहना लगातार जारी था और योनि का भज्नासा सूज कर ओर भी
 

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निकुंज अपनी जीभ को योनि के ऊपरी छोर पर घुमाने लगा, उसने योनि चूसने के कौशल में अपनी प्रवीनता उस समय साबित कर दी ..जब वह किसी पारंगत मर्द की भांति अपनी जीभ, अपनी मा की योनि के सूजे दाने पर एक तरफ से दूसरी तरफ तक ...बड़ी कोमलता से रगड़ने लगा, निच्छले धड़ से निर्वस्त्र उस मा ने सीत्कार करते हुए फॉरन अपने बेटे के सर को दोनो हाथों में जाकड़ लिया और फिर वह अविलंब, धड़ा - धड़ अपने बड़े - बड़े चूतड़ो को तेज़ी से ऊपर हवा में उच्छालती हुई ...अति शीघ्रता से अपने बेटे का मूँह, अपनी गीली योनि पर रगड़ने लगी ...उसका मूँह चोदने लगी.

निकुंज ने योनि को चूमते हुए उसकी चुसाई चालू रखी, कभी - कभार वह अपनी मा की सुनहरी झांतो के गुछो पर अपना संपूर्ण चेहरा रगड़ देता ...कुछ देर बाद उसने अपनी उंगलियाँ सीधी की और उन्हें अपनी मा की योनि के सन्कीर्न व बुरी तरह से चिपके अन्द्रूनि मार्ग पर धकेलने लगा ...कम्मो के जिस्म में कपकपि दौड़ने लगी, जब उसके बेटे ने लगातार उसकी योनि में उंगली करते हुए उसके सूजे भांगूर को मूँह में भरकर चूसा ...वह पागलो जैसी अपने मोटे - मोटे स्तनो को खुद ही दबाने लगी, उसके हाथो का ज़ोर इतना तगड़ा था की कब उसका कुर्ता फॅट जाता ...उसे पता भी नही चलता.

मटर समान दाने को अपने होंठो में भीचे निकुंज, पूरी रफ़्तार से अपनी 3 उंगलियाँ मा की योनि में अंदर - बाहर करने लगा और इसके प्रभाव से जल्द ही कम्मो को अपनी योनि की भीतरी गहराई में रस उमड़ता महसूस हुआ ...जिसके कारण उसके निपल और गुदा - द्वार में भी सिहरन सी दौड़ गयी और स्खलनपूर्व होने वाले एहसास से उसके जिस्म में आनंदमयी खलबली मचने का आगाज़ शुरू हो गया ...इसके बाद वह अनियंत्रित ढंग से अपनी टाँगो को निकुंज की गर्दन पर लपेट कर ज़ोरो से रो पड़ी.

" हां बेटा ..ऐसे ही !!! " .....कम्मो भर्राए गले से बोली, उसका बदन ऐंठने लगा था ...... " चूस डाल अपनी मा की योनि और अंदर तक थेल ..हां हां !!! दाने को काट ले ...ज़ोर से दाँत गढ़ा बेटा, ज़ोर से ..अरे ज़ोर लगा ना !!! " ......कम्मो की आशाए चीखें उस बंद कमरे में भूचाल लाए जा रही थी, इस वॉक्ट यदि कोई उनके कमरे के सामने से गुज़रता तो हाल समझ जाता ..अंदर क्या चल रहा होगा ...... " मेरा स्खलन करवा दे बेटा !!! मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ ..तेरी प्यारी मा अपनी योनि में उठता दर्द सहते - सहते दम तोड़ देगी ..चूस बेटा और ज़ोर से चूस ..मैं जीवन - पर्यंत तुझसे इसी तरह प्रेम करती रहूंगी, पर आज तू मुझे बचा ले निकुंज .......आऐईयईईईईईईई !!! पी जा मेरे लाल, तेरी मा की योनि का गाढ़ा रस है बेटे ..अमृत है यह तो ...मिन्नत है मेरी निकुंज पूरा पीजा, छोड़ना नही कुछ भी " ......कम्मो ज़ोरदार, मनभावन स्खलन को पाने लगी और उसकी सन्कीर्न व सूजी योनि द्वार से बाहर आती हर फुहार, हर झटके पर उसका दर्द ...हल्के से हल्का होता गया.

.

5 मिनिट पहले :-

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ड्राइव करते वक़्त निकुंज ने के पल को भी पीछे पलट कर नही देखा था ...लेकिन अपने सपने में जैसे ही कम्मो का मननवांच्छित चरम पर पहुचना हुआ, उसकी अनियंत्रित हिचक़ियों और अजीबो - ग़रीब क्रिया - कलापो ने उसके बेटे को फ्रंट मिरर से पिच्छली सीट पर झाँकने को मजबूर कर दिया ...निकुंज ने देखा उसकी मा ने ड्राइविंग सीट जहाँ वह खुद बैठा था, अपने दोनो हाथो को वहाँ टिकाया हुआ है और अपने नाख़ून उसने ...सीट के मुलायम गद्दे पर बुरी तरह से धाँस रखे हैं, मा का सर हवा में ऊपर उठा हुआ और साथ ही गर्दन बेहद कड़ी हुई है ..वह ज़ोरो से काँप रही है और अपने भर्राए गले से कुछ बुदबुदा भी रही है.

यह नज़ारा देखते ही वह सकते में आ गया ...उसे लगा, जैसे उसकी मा को हार्ट - अटॅक या मिर्गी का दीर्घ दौरा पड़ गया है और इसी घबराहट में तेज़ी से ब्रेक लगाते हुए वह चीखा ...... " मोम !!! " .......और कार के रुकते ही वह ड्राइविंग सीट से नीचे उतर कर पिच्छली सीट पर जा पहुचा.

" क्या हुआ मोम ? " ......उसका गेट खोलना हुआ और ठीक उसी वक़्त सपने में उसकी मा झाड़ पड़ी, उसके बदन में कंपन के साथ तेज़ झटके लगने लगे ...कुछ पल को निकुंज भी हत - प्रत रह गया, उसके रोंगटे खड़े हो गये ...परंतु जल्द ही होश संहालते हुए उसने मजबूती से अपनी मा का कंधा थाम लिया ...... " मोम आँखें खोलो ..क्या हुआ आप को ? " ......इसी तरह के कयि सवाल उसके नन्हे से मस्तिष्क में बवाल मचाने लगे, वह रुन्वासा हो गया.
 

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बेटे द्वारा झक - झोरे जाने पर कम्मो की बंद पॅल्को में हलचल होने लगी और शीघ्र ही उसकी रक्त - रंजित आँखें खुल गयी ...उसने अपना चेहरा घुमाया तो बेटे को अपने बहुत करीब पाया, वह लगातार झाड़ रही थी और उसका संपूर्ण निचला धड़ ऐथन की जकड़न से लिप्त था ...धधकति योनि से निकलती धारा - प्रवाह रस की गरम बौछारे उसकी पैंटी से नीचूड़ कर नीचे सारी को भिगो रही थी ...उसे सॉफ महसूस हो रहा था, इस वक़्त उसके गुदा - द्वार में इस कदर सनसनी मची है कि वह मरणासन्न हुई जा रही है ...लग रहा था जैसे उसका लाड़ला उसकी मिन्नत मानकर, पूरी गहराई तक उसकी योनि चाट रहा है और बाहर बहता गाढ़ा रस चूस - चूस कर अपना गला तर कर रहा है.

" मोम !!! कुछ बोलो तो सही " .......निकुंज को खुशी तो हुई कि उसकी मा ने अपनी आँखें खोल दी हैं, पर वह कुछ बोल क्यों नही रही ..बस यही सोच कर उसकी सारी खुशी फीकी पड़ने लगी.

" थॅंक यू बेटा !!! " ........असीम सुख प्राप्त करने के बाद कम्मो होश में लौटने लगी, वह अब पूरी तरह से संतुष्टि पा चुकी थी ...उसके बदन की ऐथन और योनि में उठती असहनीय पीड़ा का अंत हो चुका था, उसने मुस्कुराते हुए बेटे के चेहरे को निहारा ...उसकी लाल व पनियाई आँखों में उसके पापी सपने की झलक सॉफ देखी जा सकती थी ...परंतु वह बेटे का शुक्रिया अदा करने के अलावा कुछ और कहने की स्थति में नही लौट पाई थी.

" आप ठीक हो ना ? " .......मा का मुस्कुराना निकुंज के ज़ख़्मी दिल पर मलम का काम कर गया और उसने मा के कंधे से हाथ हटाते हुए पूछा.

" हां निकुंज !!! मैं ठीक हूँ " .....इतना कह कर कम्मो खुद को रोक नही पाई और नज़दीक खड़े अपने पुत्र के माथे का गहरा चुंबन ले लिया ...... " बेटा हम कब कब तक घर पहुच जाएँगे ? " ......बात पूरी करते हुए उसने अपने चेहरे पर आए पसीने को अपने आँचल से पोन्छा और तब तक निकुंज भी उसकी साइड का गेट लगाने के बाद ड्राइविंग सीट पर वापस पहुच गया.

" बस 2 घंटे में ? " .....निकुंज ने गियर डाला और वे तीनो फिर सफ़र पर निकल पड़े.

जहाँ निकुंज कुछ देर पहले हुई घटना का अंश मात्र भी समझ नही पाया था ...अब घटना से संबंधित ढेर सारे सवाल उसे परेशान करने लगे थे ...वहीं कम्मो प्रफुल्लता से भरि हुई थी, इक्षास्वरूप स्खलन के पश्चात भी उसे लग रहा था जैसे उसके लाड़ले की खुरदूरी जीभ हौले - हौले योनि की सूजी फांको पर भ्रमण कर रही हो, जैसे वह अपनी मा का कष्ट पूरी तरह से निचोड़ना चाहता हो और बीच - बीच में उसे चिढ़ाने या रोमांचित करने की गरज से ..उसकी संपूर्ण योनि अपने मूँह में भर कर चूसने लगता हो.

एक बार फिर से दोनो अधीर हो उठे थे ...जाने उनकी इस अधीरता का अंत कहाँ पर होना निश्चित होगा.
 

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पापी परिवार--45

वैसे तो कहानी काफ़ी आगे बढ़ चुकी है, लेकिन शुरूवात वहीं से ...जहाँ ख़तम किया था.

अपने रूम में सेफ्ली पहुचने के बाद दीप ने चैन की साँस ली, परंतु अपने दिल की बढ़ी अनियंत्रित धड़कनो को सामान्य करने में उसे वक़्त लगना था ...वह हैरान भी था और बेहद परेशान भी ....... " ह्म्‍म्म्म !!! मेरी ही लगाई हुई आग ..आज मुझे खुद झुलसाना चाहती है " .......बंद कमरे में भी वह धीरे से फुसफुसाया, जैसे उसके मूँह से निकलने वाली बात उसकी बेटी के कानो तक पहुच जाएगी ...वह अब तक खुद को नॉर्मल नही कर पाया था और जानते हुए भी, कि वह कमरे को अंदर से लॉक कर चुका है ...दोबारा उसकी नज़र दरवाज़े से चिपक गयी और फिर फुल्ली कन्फर्म होने के बाद वह तेज़ी से बाथ - रूम की तरफ बढ़ गया.

शवर के नीचे खड़े नहाते हुए 15 मीं से ज़्यादा बीत गये थे ...पर अब तक उसे अपने बदन की गर्मी से छुटकारा नही मिल पाया था ........ " यह वाकाई काफ़ी गंभीर मुद्दा है, मुझे हल्के में नही लेना चाहिए इसे " ........वह सोचने लगा कैसे दिन - प्रति - दिन वह, अपनी बेटी के दबाव में झुकता ही जा रहा है ...अगर कुछ दिन और ऐसा चलता रहा, यक़ीनन उसकी बेटी ...उसकी सारी बनी छवि धूमिल कर देगी.

" दीप कभी कठपुतली नही बना, ख़ास कर औरतो के हाथो ..चाहु तो अगले 1 घंटे में निम्मी को अपना गुलाम बना लूँगा ..लेकिन नही, ज़बरदस्ती से कुछ हासिल नही होना ...ना ही मुझे कुछ हासिल करना है, आख़िर वह मेरी सग़ी छोटी बेटी है " .......दीप सोचते हुए बाथ - रूम से बाहर निकल आया, इस वक़्त वह पूरी तरह नंगा था और रह - रह कर उसका ध्यान बीती अपनी पिच्छली ज़िंदगी की तरफ मुड़ने लगा था.

शिवानी से मिलने के पश्चात उसमें ढेरो बदलाव आए थे, हलाकी इसकी असल शुरूवात तनवी से हुई थी ...परंतु आज के दिन और पिच्छले कयि दिनो से वह, ना तो नशे में रहा था, ना ही उसमें चुदाई की तलब जागी थी और तो और वह अपने कर्तव्यों से विमुख होने की अपनी पत्नी से माफी भी माँग चुका था.

" अब जब सब इतना अच्छा चल रहा है ..तब क्यों निम्मी मेरे साहस की परीक्षा ले रही है " ........उसने यह वाक्य अपने ढीले लंड की तरफ देखते हुए कहा, जो सुषुप्त अवस्था में भी बेहद विकराल दिखाई दे रहा था ...यक़ीनन वह इस बात को अपनी जवानी में ही समझ गया था कि उसके लंड तक पहुचने के बाद, हर जनाना जिस्म टूट कर ही वापस जुड़ पाता है और आज उमर के चौथे पड़ाव को पार करने के बाद भी उसके लंड में अद्भुत शक्ति का संचार निरंतर जारी है.

कुछ देर तक यूँ ही विचारो को सोचते हुए वह अंतिम निर्णय लेने की स्थिति में आ गया ........ " मुझे प्यार से उसे स्मझाना पड़ेगा, उसका पिता नही ..दोस्त बनना पड़ेगा " ........फ़ैसला लेते ही वह मुस्कुरा उठा, एक मेच्यूर वयस्क की भाँति अब तक उसके जहेन में निम्मी को चोदने की बात नही आ पाई थी ...हलाकी बहेक तो हर कोई जाता है, बेटी होने से पहले वह एक नारी जो ठहरी ...... " मैं उसे समझाने में कामयाब ज़रूर होऊँगा " ......इतना कह कर उसने अपने नंगे बदन को बेहद सॉफ सुथरे वस्त्रो से ढक लिया और पुनः कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल आया.
 
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