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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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बाहर आते ही उसे निम्मी सोफे पर बैठी दिखाई दी ...वह सोई नही थी, इस वक़्त उसकी पीठ दीप की तरफ थी और वह अपने लॅपटॉप को गोद में रखे ...उसकी स्क्रीन पर नज़र गढ़ाए हुए थी.

" उफफफफफफ्फ़ !!! यह लड़की भी ना पूरी पागल है ..घड़ी - घड़ी रंग बदलते हैं इसके " .......दीप हौले - हौले सीढ़ियाँ उतरने लगा, उसके पैरो की आवाज़ निम्मी आराम से सुन सकती थी ...पर ताज्जुब की बात, ना तो अब तक उसने पीछे मूड कर देखा था ना ही उसके बदन में आवाज़ को लेकर कोई कंपन हुआ था ...बस निरंतर वह लॅपटॉप की स्क्रीन देखने में खोई हुई थी.

जैसे - जैसे दीप सोफे के नज़दीक आता गया, स्क्रीन पर छायि ढुँधलाहट का भी अंत होता गया और जब उसने स्क्रीन पर अपनी खुद की तस्वीर देखी वह चौंक पड़ा ...स्वतः ही उसके कदम जहाँ थे वहीं जमे रह गये.

तस्वीर कुल 4 - 5 साल पुरानी थी, जिसमें वह रघु की मार से रोती निम्मी को अपनी गोद में बिठाए चुप करवा रहा था, साथ ही फोटो खीचने वाला भी कोई और नही वह खुद था ...हलाकी जल्दबाज़ी में क्लिक हुई वह फोटो ज़्यादा क्लियर तो नही थी पर जितनी थी, उसे देख कर कोई भी अन्य शॅक्स बाप - बेटी के निर्मल प्यार को नमन ज़रूर करता.

" कितना बदलाव आ गया है " .......उसने सोचा और फॉरन वह अधीर हो उठा, बेटी का मासूम रोता चेहरा ना तो वह पहले कभी देख सकता था ना ही आज देखने की हिम्मत कर सका ...उसके अवरुद्ध पाँव खुद - ब - खुद आगे बढ़ गये और जल्द ही वह निम्मी के ठीक सामने पहुच गया.

" निम्मी !!! " ......प्रेम से सराबोर उसका अपनी बेटी को पुकारना हुआ, तभी उसे एक करारा झटका लगा और जब तक वह खुद को संभाल पाता, बाप के दिल को मार कर उसके अंदर छिपा मर्द अंगड़ाई लेने लगा ...निच्छले धड़ से पूरी नंगी उसकी सग़ी बेटी, अपने पिता की तस्वीर देखते हुए अपनी कुँवारी चूत सहलाने में मग्न थी.

दीप के जड़ होते शरीर का सिर्फ़ एक भाग निरंतर तरक्की पाए जा रहा था और जाने कब निम्मी ने उसे आवाज़ दी उसे पता भी ना चला.

" बैठ जाइए डॅड !!! " .......उसने ने अपनी लेटी, सीधी टाँगो को विपरीत दिशा में फैलाते हुए कामुकता का वह नज़ारा पेश किया कि दीप स्थिर अवस्था में भी उसके आदेश का पालन करने को विवश हो उठा.

" आप मुझे कितना प्यार करते थे लेकिन आज मुझे कोई प्यार नही करता ..ना मोम, ना दोनो भाई और ना ही दीदी " .......लॅपटॉप फोल्ड करते हुए निम्मी ने उसे नीचे फ्लोर पर रख दिया और पूरी बेशर्मी से अपनी रस से भीगी चूत की फाँकें मरोड़ती रही, इस वक़्त उसके चेहरे पर उत्तेजना का अंबार छाया हुआ था और उसकी रक्त - रंजीत आँखें एक - टक अपने पिता की पॅंट में बने विशाल तंबू पर टिकी हुई थी.

दीप की चेतना तब लौटी जब उसने अपने लंड में उठते दर्द को महसूस किया और इसके तुरंत बाद ही उसकी आँखें नीचे को झुकती चली गयी, वह असमंजस की स्थिति में फस चुका था ...नग्न बेटी के साथ सोफे पर बैठा रहे या उठ कर अपने कमरे में वापस चला जाए.

" डॅड !!! प्लीज़ मेरी तरफ देखो ना ..क्या आप को अपनी बेटी की इस बुरी हालत पर ज़रा भी तरस नही आता ..आख़िर इतने कठोर कैसे हो सकते हो आप ? " .......निम्मी ने उसे अपनी तरफ देखने को मजबूर करते हुए कहा और साथ ही वह अपनी चूत की लकीर के ऊपर विराजमान, मोटे भग्नासे को ज़ोरो से मसल्ति हुई आहें भरने लगी.

दीप किन्कर्तव्य विमूढ़, अपनी बेटी के नीच कर्म को चोर निगाहो से देखने लगा साथ ही उसने जाना ...उसके लंड में आते तनाव ने उसके दिमाग़ पर अपना क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया है ....... " नही !!! मैं इतनी जल्दी नही हार सकता, वह मेरी सग़ी बेटी है ..मुझे उससे बात करनी होगी " ......ऐसा फ़ैसला कर दीप ने अपना चेहरा निम्मी की तरफ मोड़ लिया.
 

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" ऑल राइट निम्मी !!! मैं कहता हूँ इसी वक़्त अपना हाथ हटा वहाँ से " .......दीप ने थोड़ा नाराज़गी के लहजे में कहा तो निम्मी की उंगलियों का घर्षण स्वतः ही चूत की फांको पर रुक गया और अपने डॅड की बात को मानते हुए उसने अपने दोनो हाथ अपने सर के पीछे बाँध लिए ...परंतु अपनी टांगे ज़रा भी बंद नही होने दी और ना ही चूत छिपाने की कोई कोशिश की ...उसकी स्पंदानशील चूत के गुलाबी होंठ, उसकी गहरी साँस लेने के हिसाब से खुलते - बंद हो रहे थे और बेहद सुगंधित गाढ़ा रस निरंतर गति से बहता हुआ, उसके मनमोहक गुदा द्वार में भिड़ता जा रहा था ...जैसे सारा रस उसमें समाता जा रहा हो.

दीप ने लाख प्रयत्न किए कि वह इस अद्भुत नज़ारे को ना देखे लेकिन उसकी आँखें मंत्रमुग्ध हो कर बेटी की खूबसूरत, चिकनी कुँवारी चूत से बुरी तरह चिपक चुकी थी और तभी उसके कठोर लौडे ने भी उसके पॅंट में रिसना शुरू कर दिया.

" जल्दी कहो डॅड ..मैं ज़्यादा देर रुक नही पाउन्गि " ......बिना किसी लाज - शरम के निम्मी बुदबुदाई और अपने खुश्क होंठो पर जीभ फेरती हुई ...अपने पिता के सामने अपनी अश्लील कामुकता का नंगा प्रदर्शन करने लगी.

" निम्मी मैं कयि दीनो से देख रहा हूँ कि तू अपना सारा समय इन व्यर्थ की बातों में गवाती रहती है ..तू जानती है, यह एक ऐसा गंभीर मुद्दा है जिस पर हमे खुल कर बात करने की सख़्त ज़रूरत है, बेटी !!! इस तरह से तू अपना संपूर्ण जीवन नॅस्ट कर लेगी ..समझ मेरी बात को " ........दीप ने इस बार उसे प्यार से समझाया और साथ ही उसके खुले बालो पर अपना हाथ फेरने लगा ...उसकी छोटी बेटी सदैव ही उसकी चहेती रही थी और वह उसके ऐसे ग़लत बर्ताव को बर्दाश्त नही कर पा रहा था.

" डॅड !!! मैं खुद को बेबस महसूस करती हूँ, आज कल मेरे जिस्म में, ख़ास यहाँ बहुत खुजली होती है और ना चाहते हुए भी मेरे हाथ मजबूर होकर यहाँ पहुच जाते हैं ...लेकिन मेरी इस असहाय खुजली का अंत नही होता, दर्द ओर भी ज़्यादा बढ़ता जाता है " .......मूँह से निकली बात को सत्य साबित करने के लिए वाकाई उसके हाथ काफ़ी द्युत गति से, वापस चूत के रसीले मुहाने पर पहुच गये और बिना किसी संकोच के दोबारा उसकी उंगलियों ने चूत की लकीर को बेरहमी से खुजाना शुरू कर दिया.

दीप अपनी बेटी की इस शर्मनाक हरक़त पर स्तब्ध रह गया और अपने अंदर के मर्द को भरकस कोशिशों के बाद भी जागने से रोक नही पाया, उसके हाथ पॅंट की ज़िप खोलने को आतुर होने लगे और लंड की कठोरता उसकी सहेन - शक्ति की सीमा लाँघने को तैयार होने लगी.

" बस कर निम्मी, मैं तुझे इस हालत में ओर नही देख सकता ..मैं तेरा डॅड हूँ कम - से - कम बातचीत के दौरान तो अपना शॉर्ट्स पहन ले " .......दीप समझ गया उसकी बेटी इस वक़्त अपने होशो - हवास पूरी तरह से खो चुकी है और उसकी खुद की स्थिति उसे निम्मी से ज़्यादा दयनीय लगने लगी ...एक तरफ वह उसे समझाने का भरकस प्रयत्न कर रहा था और दूसरी तरफ उसके मन में उठती काम लूलोप इच्छाये प्रबलता से बढ़ती जा रही थी.
 

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" मेरी इस हालत के ज़िम्मेदार आप खुद हो डॅड ..मैं आज भी उस पल को याद कर सिहर उठती हूँ, जब आप ने इलाज के झूठे बहाने से मेरी चूत को चाटा था ..आप खुद सोचो, क्या उस दिन से पहले मैं आप को कभी ऐसी नीच हरक़त करती दिखाई दी, या कभी मैने आप को परेशान किया हो " .......पूर्ण रूप से खुमारी के हाथो विवश होकर निम्मी के मूँह से सीधे चूत शब्द का उच्चारण हो गया और इसके ठीक बाद उसकी तर्जनी उंगली चूत की फांको को चीरती हुई अंदर प्रवेश कर गयी.

" आआईयईईई !!! डॅड प्लीज़ हेल्प मी " .......चीखते हुए निम्मी ने अपनी उंगली बाहर खीची और फॉरन अपने सर पर रखा हुआ दीप का हाथ तेज़ी से उसने अपनी टाँगो की जड़ से चिपका दिया ....... " डॅड !!! चाटो ना एक बार फिर से ..नही तो मैं मर जाउन्गि " ......जैसे ही उसने दीप का हाथ अपनी चूत से सटाया, दीप को उसकी पीड़ा का सही अनुमान हो गया.

इस वक़्त उसकी बेटी की चूत, धधकति भट्टी समान हो गयी थी और उससे बाहर आते लावे ने उसका हाथ झुलसा कर रख दिया था.

यह निम्मी का कोई नाटक नही था, वह वाकाई त्रप्त होने को मचल रही थी ...वह चाहती थी आज उसका कौमार्य सदा के लिए भंग हो जाए और चूत में उठती ऐंठन से वह फॉरन मुक्त हो जाए ...इसके लिए उसे अपने पिता का साथ भी मज़ूर था, वह दिल खोल कर अपनी जवानी दीप को पिलाना चाहती थी ...उस पर निच्छावर करना चाहती थी

वहीं दीप से भी सबर नही हुआ और बेटी की मर्मभेदी चीखो ने उसका सारा बना सैयम तोड़ दिया ...अपने आप मजबूर होकर वा सोफे से खिसकता हुआ नीचे ज़मीन पर बैठ गया और बेटी की नर्म व चिकनी जाँघो को पूरी तरह से ऊपर उठाते हुए ...उसकी छाती से चिपका दिया.

इसके बाद उस अनियंत्रित पिता ने अपनी बेटी की नीच माँग को स्वीकारते हुए उसकी उबल्ति चूत पर अपने काँपते होंठ रख दिए और इसके एहसास मात्र से ही निम्मी ने अपने हाथो से ...अपने पिता का सर बेहद मजबूती से पकड़ लिया ....... " आहह डॅड !!! चाटो ज़ोर से " .......अपनी उत्तेजित बातो से वह दीप का साहस बढ़ाते हुए उसका सर अपनी चूत पर दबाने लगी.

दीप ने भी हथियार डाल दिए, सग़ी बेटी की रस से सराबोर चूत और उससे उठती मादक सुगंध ने उसके अंदर सनसनी फैला दी और एक आख़िरी बार संतुष्टिपूर्वक उस खुश्बू को सूंघने के बाद वह अपनी खुरदूरी जीब पूरी प्रचंडता के साथ बेटी के चूत मुख पर रगड़ने लगा.

" हां ऐसे ही डॅड !!! लव्व्व्व मी " ........निम्मी ने रुन्वासे स्वर में कहा, वह एक आनंदमई सुख के सागर में गोते लगाने लगी थी ...अंगार सी धधकति चूत की चिकनाई में अपने पिता की ठंडी लार की मिलावट उसे मदहोशी से अपनी आँखें बंद करने को मजबूर कर गयी और बड़े प्रेम से दीप के बालो में अपनी उंगलियाँ फिराती वह हाहाकार मचाने लगी.

दीप के अंदर का प्रत्भाव उस वक़्त डगमगा गया जब उसने बेटी की चूत के बंद होंठ, अपनी कठोर उंगलियों की मदद से विपरीत दिशा में काफ़ी ताक़त से फैला दिए और उसकी चूत का अन्द्रूनि संकीर्ण, सँकरा गुलाबी मार्ग ...अपनी जिहवा के मर्दन के लिए पूरी तरह से खोल दिया ...वह जानता था ऐसा करना एक कुँवारी लड़की के भविश्य के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ है, पर वह इस वक़्त पूरी तरह से कामांध हो गया था.

दीप ने अपनी लपलपाटी जिहवा चूत रस के छुपे उस खजाने तक पहुचा दी ...जिसके फॉरन बाद उसके होंठो ने मजबूती से बेटी की जवानी को बुरी तरह से चूसना शुरू कर दिया ...... " हाए डॅड !!! चूसो ऐसे हो चूसो " .......नातियाई आँखों से निम्मी अपने पिता की पापी करतूतों का लुफ्त उठाते हुए फुसफुसाने लगी.

मगर अब दीप को उसकी किसी बात से कोई सरोकार नही रहा और निरंतर चूत चूस्ते हुए वह उसके रस की गाढ़ी मलाई से अपना गला तर करने में व्यस्त हो गया, उस निष्ठुर पिता के बढ़ते कौतूहल का मुख्य विषय उसकी आँखों के ठीक सामने ..बेटी का सूजा भांगूर था, जो किसी ताजपोशी की तरह, चूत की लकीर के ऊपर उभरा हुआ ...उसे बेहद सुंदर दिखाई दे रहा था.

ऐसे मनभावन नज़ारे को देखने के बाद दीप ने अपनी जिह्वा उस मोटे दाने पर घुमानी शुरू कर दी और साथ ही चूत की गहराई का ख़ालीपन उसने ...अपनी दो उंगलियों को उसके अंदर तेल का पूरा कर दिया.

" ना ना नही डॅड !!! उउईईईईईईईईई आज तक मैने भी अंदर उंगली नही डाली ..निकालो बाहर " .......निम्मी तड़प से भर गयी, उसका रुंधता गला बेहद भारी हो गया ...वह इसी वक़्त अपने डॅड की मजबूत पकड़ से आज़ाद होना चाहती थी परंतु उसे भान था, थोड़ी देर बाद वह अपने डॅड का विकराल लॉडा भी तो अपनी इसी छोटी सी चूत के अंदर लेगी ...ऐसा सोचते ही उसने अपने जबड़े भींचकर खुद को साहस देना शुरू कर दिया और उस असहनीय दर्द की परवाह ना करते हुए उसे झेलने लगी.

चिकनाईयुक्त दीप की दोनो उंगलियाँ बड़ी तेज़ी के साथ बेटी की चूत के अन्द्रूनि संकरे मार्ग पर फिसलने लगी और अब वह पूरी तत्परता से मटर समान उसके दाने को चूसने लगा था ...उसे शुरूवात से ही लड़कियों का भज्नासा बेहद आकर्षित करता आया था और जब कभी उसे मौका मिलता ...वह इसके ज़रिए लड़की को उसका गुलाम बनने पर मजबूर कर देता था.

लगातार रफ़्तार से अंदर - बाहर होती उंगलियों ने निम्मी के कष्ट को मज़े में बदल दिया पर वह अंजान यह नही समझ पाई कि उसके दर्द में आई कमी की मुख्य वजह उसके दाने को प्रवीनता से चूसा जाना था और जिसमे उसके पारंगत पिता को पीएचडी का सम्मान प्राप्त था.

" अब हो रहा दर्द ? " .......दीप ने जैसे ही उसके भांगूर से अपने होंठ हटाए निम्मी वापस उस दर्द को महसूस करने लगी ...यह मात्र एक संकेत के रूप में दीप ने उसे बताया था और इसके बाद वह फिर से दाने को कड़ाई से चूसने लगा.

कुछ देर बाद ही दीप को अपने कठिन परिश्रम का फल मिलने लगा और निम्मी के बदन में तीव्र गति से बढ़ते कंपन ने उसे स्पस्ट कर दिया ....... " अब मंज़िल दूर नही "

वहीं निम्मी भी अब महसूस करने लगी जैसे उसके गुदा - द्वार में अजीब सी सिरहन आनी शुरू हो गयी हो ...वह तेज़ी से काँपने लगी और उसकी ऊपर को उठी टाँगो में भी ऐंठन लगातार बढ़ती गयी.

" डॅड !!! हां हां चूसो ज़ोर से ..वरना मैं पागल हो जाउन्गि, चाट लो अपनी बेटी की चूत को ..खा ज़ाआआआओ इसे " .......निम्मी की गर्दन हवा में ऊपर को उठ गयी और उसकी गान्ड ने अपने - आप ही पिता के चेहरे पर थपथपाहट देनी शुरू कर दी, वह इस अपरिचित स्खलन को पहले कभी महसूस नही कर पाई थी ( कम्मो के साथ वाला किस्सा महज एक सपने में हुआ हादसा मात्र था ) उसे लग रहा था ...जैसे उसकी छोटी सी चूत से कोई बड़ी सी वस्तु, काफ़ी प्रेशर से बाहर निकलना चाहती हो.
 

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दीप ने फॉरन तेज़ी दिखाई और उसके सूजे भांगूर पर अपने हल्के - हल्के दाँत गढ़ाते हुए ...दो के साथ अपनी तीसरी उंगली भी चूत के अंदर प्रवेश करवा दी और उसी हाथ के अंगूठे को बड़ी कोमलता से बेटी के नाज़ुक गुदा - द्वार पर दबाने लगा ...वह चाहता था निम्मी आज के बाद उसे कभी परेशान ना करे और इसीलिए वह उसकी गर्मी को पहली और आख़िरी बार अपने मूँह से बाहर खीचने में इतना मगन था.

" आईईईईईईईईईई !!! " ........यह वह अंतिम क्षण था ...जब निम्मी के मूँह से कोई आवाज़ बाहर निकली और इसके बाद वह अपने चरम को प्राप्त करने लगी ...उसकी चूत से निकलते गाढ़े रस को दीप ने ज़रा भी व्यर्थ नही जाने दिया और पूरे ज़ोर - शोर से अपनी तीनो उंगलियाँ चूत के अंदर - बाहर ठेलते हुए ..अपनी बेटी को उसके मनभावन स्खलन के शिखर तक ले गया.

उसके सख़्त होंठो के बीच फँसे भगांसे ने भी वहीं अपनी हार स्वीकार ली और धीरे - धीरे वह सूजा दाना सिकुड कर चूत की लकीर में शामिल होता गया ...निम्मी लगातार झाड़ रही थी, और दीप पुर उत्साह से उसकी गर्मी निचोड़ रहा था, पिए जा रहा था, चूसे जा रहा था, चाटे जा रहा था ...इस वक़्त वे दोनो ही दीन - दुनिया की पहुच से बेहद दूर चले गये थे.

पूरे एक मिनिट तक निम्मी झड़ती रही और वक़्त पूरा होते ही उसकी चूत का संकुचित होना बिल्कुल ख़तम हो गया ...इसके बाद दीप ने जैसे ही अपनी जिह्वा चूत की गहराई से बाहर खीची, निम्मी को महसूस हुआ जैसे उसके भीतर एक - दम से काफ़ी ख़ालीपन आ गया हो ...उसके मश्तिश्क में अजीब सी नयी तड़प का संचार हुआ, जिस कारण उसने स्वय्म अपनी तीन उंगलियाँ चूत मुख के अंदर ठूंस ली.

विध्वंसक रति - स्खलन के पश्चात दीप ने निम्मी की जाँघो के बीच से हट'ते हुए वापस उसका निचला धड़ ...ज्यों - का - त्यों सोफे पर टिका दिया, परंतु जैसे ही उसकी निगाह चूत के अंदर प्रविष्ट हुई ...बेटी के तीन उंगलियों पर पड़ी, वह समझ गया फॉरन उसका हॉल से खिसक जाना ही बेहतर होगा, लेकिन इससे पहले वह उठ कर खड़ा हो पता ...निम्मी ने सिसकते हुए उसके कदम वहीं पर रोक लिए.

" डॅड !!! यह क्या किया आपने, मुझे तो और ज़्यादा जलन होने लगी है " ......तेज़ी से अपनी उंगलियाँ चूत की गहराई तक धाँसते हुए निम्मी सिक्सकी ...उसकी पीड़ा घटने की बजाए प्रबलता से बढ़ती ही जा रही थी.

दीप जानता था ऐसा क्यों हो रहा है ...एक सेक्स एक्सपीरियेन्स्ड पुरुष होने के नाते उसे पता था, अक्सर ओरल का चरम सुख प्राप्त करने के बाद भी स्त्रीया कामविभोर हो उठती है, उनकी चाहत में उस वक़्त पुरुष का कठोर लंड समा जाता है ...जिससे वे अपनी चूत के अंदर पनपे उस ख़ालीपन का भराव कर सकें, ठीक यही उसकी अपनी पुत्री के साथ भी हो रहा था ...परंतु अब तक के हाल को देखने के बाद दीप यह भी अच्छे से समझ गया था कि निम्मी अभी अनाड़ी है, उसे काम - क्रिया के बारे में ख़ास कोई ग्यान नही.

" कुछ नही, सब ठीक है ..थोड़ा सो लेगी, अपने आप जलन भी मिट जाएगी " .....उसे बेवकूफ़ बनाते हुए दीप आगे का रास्ता मापने लगा ....... " अच्छा !!! भला नींद का जलन से क्या लेना देना ...डॅड कुछ करो वरना मैं पागल हो जाउन्गि " .......निम्मी के स्वर में अब नम्रता का भाव आ गया था ...वह उससे एक मदद की गुहार लगाते हुए बोली.

" मैने कहा ना सो जा ..सब ठीक हो जाएगा " .......हल्की सी डाट लगाते हुए दीप ने कहा ...इस वक़्त उसकी खुद की हालत भी निम्मी से कम नही थी, अगर कुछ देर वह और हॉल में रुकता या उसकी बेटी हॉल से ना जाती ...यक़ीनन उसका खुद पर बनाया सैयम टूट जाता और ना चाहते हुए भी वह निम्मी का भोग करने से खुद को नही रोक पाता.
 

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" चल जा अपने कमरे में ..निक्की आती ही होगी " ........दीप मूड कर सोफे पर वापस बैठ गया, यह भी उसकी एक मजबूरी थी ...वह जानता था निम्मी इसी हालत में सोफे पर लेटी रहेगी और निक्की अपनी बहेन को नंगी देख कर ...अपने डॅड पर भी उंगली उठा सकती है.

" ना मैं कहीं जा रही हूँ ना आप ..पहले बताओ ये जलन क्यों हो रही है ? " ........निम्मी अपनी ज़िद पर आड़ गयी ...आख़िर जैसा बाप वैसी बेटी.

" देख बेटा ..पहली बार तुझे ऑर्गॅज़म हुआ है, तभी ऐसा लग रहा होगा ..चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा " ........दीप उसे प्यार से समझाते हुए बोला, पर निम्मी का सिसकना बंद नही हुआ और दर्द की तड़प से वह रुआंसी हो उठी ....... " आप कुछ करते क्यों नही, घर के बाहर तो खूब प्यार लुटाते फिरते हो ..पर अपनी खुद की बेटी के लिए ज़रा भी प्यार नही " .......एक लान्छन लगाते हुए निम्मी जो कभी ना कहना चाहती थी ...कह गयी, बाद में उसे अफ़सोस भी हुआ लेकिन अब तीर कमान से निकल चुका था ...जो सीधा दीप के दिल में जा कर बुरी तरह धँस गया.

" म ..म ..मेरा मतलब है, मोम से तो आप के रीलेशन हैं ही नही " ......हड़बड़ाहट में एक और ग़लत बात उसके मूँह से निकलने को हुई पर उसे रोकते हुए निम्मी ने अपनी चूत से उंगलियाँ बाहर खीच ली और फॉरन अपनी शॉर्ट्स ढूँढने लगी ...शायद अब वह हॉल से अपने कमरे में जाना चाहती थी.

" रुक जा !!! " ......भौचक्के दीप की कठोर आवाज़ सुन कर निम्मी का पूरा बदन काँप उठा ...उसकी सारी पीड़ा का निदान भी खुद - ब - खुद हो गया और उसकी आँखों से आँसुओ की बरसात शुरू हो गयी.

" तुझे कैसे पता क़ी हम मिया - बीवी के बीच कोई रीलेशन नही है और मैं घर के बाहर प्यार लुटाता फिरता हूँ " .......दीप ने मजबूती से उसका वही हाथ थाम लिया ...जिससे उसकी बेटी ने अपना शॉर्ट्स पकड़ रखा था ....... " जवाब दे कर जा "

निम्मी कुछ ना बोली बस लगातार रोए जा रही थी ...उसके बहते आँसू देख कर दीप का दिल मानो पानी - पानी हो गया, वह ऊपर से कितना भी कठोर क्यों नही ...लेकिन आज भी उसे निम्मी से उतना ही प्यार है ...जितना कल था.

" इधर आ " ......उसने बलपूर्वक अपनी बेटी को, अपनी गोद में बिठा लिया और उसके आँसू पोछते हुए उसका माथा चूमने लगा ...इस वक़्त उसके मन से यह ख़यालात भी मिट गये थी कि उसकी जवान बेटी ...अपने निचले धड़ से पूरी नंगी, उसके लंड के ठीक ऊपर बैठी हुई है.

" रो मत ..मैं नही डान्टुगी तुझे, बस मेरे सवालो के जवाब दे दे " ......दीप ने उसके गाल को चूम लिया, वह भी जानता था निम्मी खुद अपनी आदतो से परेशान है ...मगर उसकी बेटी के दिल में ज़रा भी मैल नही और यही सबसे बड़ा कारण था, जो इतना सब हो जाने के बाद भी दीप उसे रोन्द सकने का मन नही बना पाया था.

पिता के प्यार जताने पर निम्मी ने उसे हर वो इन्सिडेंट सच - सच बता दिया ...जो वह पिच्छले कयि महीनो की जासूसी में देखती आई थी और जब उसने, उसे उसकी जेब से कॉंडम निकालने वाली बात याद दिलाई ...दीप सारा माजरा समझ गया और इसके साथ ही उसने निम्मी को पूरी तरह से माफ़ भी कर दिया.

" वादा कर, यह जो भी बातें हमारे बीच हुई हैं ..किसी तीसरे को पता नही चलेंगी " .......दीप ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर कहा ...जिसपर फोरम निम्मी ने अपना हाथ रख दिया और इसके बाद वह अपने डॅड के गले से चिपक गयी ..दीप भी महसूस कर रहा था कि निम्मी को अपने किए पर बेहद पछ्तावा हो रहा है और वह उसकी पीठ पर अपना हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना देने लगा
 

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" चल अब जा अपने कमरे में ..निक्की आती होगी " ......इस बार अपने डॅड की बात मानती हुई निम्मी उसकी गोद से नीचे उतार कर खड़ी हो गयी और इसके साथ ही एक बार फिर से दीप की आँखों के ठीक सामने उसकी बेटी की कुँवारी चूत आ गयी ...उसने अपना चेहरा ऊपर उठा कर देखा तो निम्मी एक - टक उसे ही देखती हुई दिखाई पड़ी.

" डॅड एक सच बात कहूँ जो मैने आपसे आज तक नही कही " .......निम्मी ने दीप का हाथ पकड़ कर अपनी सख़्त छाति से चिपका लिया ..... " इस दिल में आप के अलावा, आज तक कोई नही रह पाया है और ना ही कभी कोई रह पाएगा " ......इतना कहने के बाद उसने सोफे पर रखा अपना शॉर्ट्स उठाया और नंगी ही दौड़ती हुई सीढ़ियाँ चढ़ने लगी.

दीप उसे दौड़ते हुए गौर से देखने लगा, बेटी के मांसल चूतड़ आपस में रगड़ खाते हुए ज़ोरो से मटक रहे थे, सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त उसकी चूत की लकीर इतनी दूर से भी दीप सॉफ देख सकता था या फिर उसके मष्टिशक में अब बेटी की चूत के अलावा कुछ और शेष बचा ना था.

कमरे में पहुच कर निम्मी सीधे अपने बेड पर गिर पड़ी, आज पहली बार उसने ध्यान से कमरे का दरवाज़ा भी अंदर से लॉक किया था ...बेड पर लेट'ते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी परंतु उसकी इस मुस्कान में कमीनेपन की झलक लेश मात्र नही थी, वह यह तो शुरूवात से ही जानती थी कि दीप उसे हमेशा से प्यार करता आया है, लेकिन आज उसे भी महसूस हो रहा था कि वह भी उससे उतना ही प्यार करती है ...बस कभी जता नही पाई थी, या कभी उसे इस बात का एहसास नही हो पाया था.

वहीं दीप नीचे हॉल में बैठा अपने ख़यालों में खोया हुआ था ...उसके गहन - चिंतन में आज ना तो शिवानी थी ना ही तनवी, बल्कि अब जो नया चेहरा उसकी आँखों पर पूरी तरह से अपना क़ब्ज़ा बना चुका था ...वह उसकी खुद की सग़ी छोटी बेटी का था.

यूँ ही सोचते - सोचते दोनो बाप - बेटी नींद के आगोश में पहुच गये, कुछ देर बाद निक्की भी कॉलेज से घर लौट आई ...आज तीनो में से किसी से लंच नही किया था तो दीप ने डिन्नर के लिए बाहर जाने का प्लान बनाया.

तीनो शाम को ही घर से घूमने के लिए निकल गये, निक्की ने हमेशा की तरह सलवार - सूट पहना था और निम्मी ने जीन्स - टॉप ...घूमने के पश्चात उन्होने डिन्नर किया और वापसी में थोड़ी देर के लिए बीच पर भी रुके.

दीप लगातार निम्मी की हरक़तें नोट कर रहा था, स्वयं निक्की भी हैरान थी कि आज इस बोलती मशीन को जंग कैसे लग गया ...उसने काई बार कोशिश की अपनी छोटी बहेन से बात करने की लेकिन हर बार निम्मी ने सिर्फ़ उतना ही जवाब दिया ...जीतने में उनकी बात पूरी हो सके, इसके साथ ही दीप ने यह भी महसूस किया कि निम्मी का चेहरा लाज और शरम से भरा हुआ है ...वह अपने डॅड से अपनी आँखें चुरा रही है और कयि बार पकड़े जाने पर घबराहट में अपने होंठ चबाने लगती है, उसकी साँसें भारी हो जाती हैं ...जिसके कारण खुद दईप को ही अपनी आखें उसके लज्जा से पूर्ण चेहरे से हटानी पड़ती.

घूमने के बाद तीनो घर लौट आए ...घर आते ही निम्मी सीधा अपने कमरे में चली गयी, दीप ने निक्की से कुछ नॉर्मल सी बातें की और वे दोनो भी अपने - अपने कमरो में परवेश कर गये.

रात के ठीक 1 बजे दीप के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई, वह उस वक़्त सिर्फ़ अंडरवेर में सो रहा था ...उठने के बाद उसने बेड पर पड़ी चादर को अपने जिस्म पर लपेट लिया और दरवाज़े की तरफ बढ़ गया.

दरवाज़ा खोते ही उसे बाहर निम्मी खड़ी दिखाई दी ....... " डॅड मुझे नींद नही आ रही, क्या मैं अंदर आ जाउ ? " ........दीप हथ्प्रथ उसके खूबसूरत चेहरे में खो गया ...निम्मी नहा कर आई थी और उसके बदन से उठती मादक सुगंध ने दीप के नथुने फूला दिए, कुछ देर तक जड़ बने रहने के बाद दीप दरवाज़े से पीछे हट गया और निम्मी उसके कमरे में प्रवेश कर गयी.

दरवाज़े को लॉक करने के बाद दीप भी बेड के नज़दीक आने लगा, निम्मी इस वक़्त एक छोटी सी नाइटी पहेने अपनी टांगे बेड के किनोर पर लटकाए बैठी थी ...उसकी उंगलियाँ अपने पानी से नीचूड़ते गीले बालो को सुलझा रही थी और यह कामुक नज़ारा देखते ही दीप का हलक सूखने लगा और वह ना चाहते हुए भी ठीक निम्मी के बगल में बैठ गया.

" डॅड शायद में आप के रूम में 2 - 3 साल बाद आई हूँ " .......इतना कहने के बाद जब निम्मी ने अपने पिता की आँखों में झाँका वह उनमें छुपि वासने के लाल डोरे सॉफ देख सकती थी ...हड़बड़ाकर निम्मी बेड की पुष्ट की तरफ सरकने लगी और जल्द ही वे दोनो बेड पर पूरी तरह से लेट गये.

" डॅड मैं आप के बारे में सब कुछ जानना चाहती हूँ " .....इतना कह कर निम्मी ने दीप की तरफ करवट ले ली और उसके अंडरवेर में बने तंबू को देखने लगी, वह जानती थी इस वक़्त उसके पिता की हालत खुद उसके जैसी है ...एक जवान लड़की का एक मर्द के इतने नज़दीक होना, उसे उत्तेजना से भरने को काफ़ी था.

" डॅड बोलिए ना " ......निम्मी ने सपने में खोए अपने पिता की नंगी छाती पर अपना हाथ रख दिया, अथाह बालो से भरी दीप की कठोर छाति बड़ी तेज़ी से धड़क रही थी ...खुद निम्मी ने भी महसूस किया ऐसा करते ही उसके अपने बदन में भी कंपन आया है और इसका सीधा असर उसकी चूत में सिरहन पैदा करने लगा.

" क्या जानना चाहती है ? " .....होश में आने पर दीप फुसफुसाया ...वह अपनी बेटी के ठंडे व कोमल हाथ का स्पर्श अपनी छाती पर महसूस कर रोमांच से भर उठा था, वह देख रहा था इस वक़्त उसकी बेटी की नज़रें, अपने पिता के अंडरवेर में बने उभार पर टिकी हैं और वह उस उभार को देखती हुई अपने पिता की मजबूत छाती पर ...अपने हाथ की रगड़ दिए जा रही है.

" सब कुछ डॅड ..आप मोम से अलग क्यों हुए, क्या मोम आप से खुश नही ? " .......यह कहती हुई निम्मी सरक कर दीप से बिल्कुल सॅट गयी, उसका सवाल बेहद पर्सनल था पर वह जानना चाहती थी कि इतने बड़े व कठोर लंड के होते हुए भी उसकी मा अपने पति को कैसे ठुकरा सकती है ...इतने उम्रदराज होने के बाद भी जब वह खुद अपने पिता की तरफ आकर्षित है, तो उसकी मा को भला क्या दिक्कत हो सकती है.

" तेरी मोम मुझे झेल नही पाती और मैं हमेशा से अपनी शारीरिक ज़रूरतो के हाथो विवश होता आया हूँ " .....इतना कहने के बाद दीप रुक गया, वह आगे बोल पाता इससे पहले ही उसे महसूस हुआ जैसे निम्मी का हाथ उसकी छाती से नीचे फिसलने लगा हो ...वह एक बार फिर से विवश हो उठा, चाह कर भी अपनी बेटी का हाथ रोक नही पा रहा था और जल्द ही वक़्त आ गया जब उसकी बेटी ने अपना हाथ पिता की अंडरवेर में प्रवेश करवा दिया.

" उफफफफफ्फ़ !!! " ......दोनो के मूँह से करारी आह निकल गयी ...अपने पिता का पूर्ण विकसित लंड निम्मी अपने हाथ की मुट्ठी में जकड़ने की कोशिश करने लगी, वह मदहोशी से भर उठी थी ...लेकिन फड़फड़ाते उस दानव लौडे की मोटाई इतनी ज़्यादा थी कि वह चाह कर भी उसे अपनी छोटी सी मुट्ठी में क़ैद करने से महरूम रह गयी.
 

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दीप ने अपनी कामुक मनोदशा को फॉरन झटका और वह उठ कर बैठने लगा ....... " निम्मी छोड़ दे बेटा ..यह सही नही है " .......परंतु उसके समझाने के बावजूद निम्मी ने फुर्ती दिखाते हुए उसकी अंडरवेर को नीचे खीच दिया.

" डॅड आपने मेरी हेल्प की है तो मैं आप की करूँगी ..इसमें ग़लत क्या है और अब मैं आप को कभी विवश नही होने दूँगी ..प्रॉमिस " ......दीप भौचक्का अपनी बेटी के चेहरे को देखने लगा ..हलाकी नाइट बल्ब की रोशनी इतनी ज़्यादा नही थी, लेकिन फिर भी काफ़ी हद्द तक दोनो एक दूसरे की हरक़तें सॉफ देख सकने में सक्षम थे.

" मुझे कोई हेल्प नही चाहिए निम्मी ..मैं ठीक हूँ " ......दीप बड़बड़ाया, निम्मी उसकी छाती पर अपना चेहरा रगड़ने लगी और साथ ही नीचे उसकी उंगलियाँ लंड के मोटे सुपाडे से छेड़खानी करने लगी.

" आहह !!! " .......दीप उच्छल पड़ा निम्मी ने उसके निपल पर अपने दाँत गढ़ा दिए थे ...वह पूरी तरह से काम लूलोप व अंधी हो चुकी थी, उसके लिए इस बात पर विश्वास करना कठिन नही था कि वह अपने पिता पर पूरी तरह से मोहित हो चुकी है ...धीरे - धीरे वह अपनी जीब रगड़ती हुई पिता की नाभि तक आ गयी ...उसे अपने पिता के जिस्म से आती अजीब सी मर्दाना महक उत्साह से भर रही थी.

दीप भी कब तक कंट्रोल कर पाता ...वह भी काफ़ी दिनो से भरा बैठा था, आख़िर कार उसका सैयम डगमगा गया और उसके हाथ स्वतः ही निम्मी के सर को नीचे की तरफ धकेलने लगे.

कुछ देर तक पिता की गहरी नाभि और हल्की बाहर को निकली तोंद का नमकीन पसीना चाटने के बाद निम्मी को उसका लक्ष्या बेहद करीब दिखाई देने लगा ...उसकी आँखें चमक उठी और इसके बाद उसने अपनी दोनो टांगे दीप के कंधो के आजू - बाजू से ऊपर ...उसके सर के पार निकाल दी.

दीप फॉरन उसका आशय समझ गया और बेटी की नाइटी उसकी कमर के ऊपर पलटने के बाद उसकी रस भीगी पैंटी नीचे सरका दी .... " डॅड उतार कर अलग कर दो " ......निम्मी ने अपना निचला ढीला कर लिया और दीप ने एक - एक कर उसकी दोनो टाँगो से पैंटी को बाहर खीच लिया ...अब दोनो मुक्त थे पूरी तरह से अनाचार का लुफ्त उठाने को.

दोनो ही एक - दूसरे के रस से सराबोर नाज़ुक अंग की सुगंध से अपना नियंत्रण खोने लगे और यहाँ पहला वार निम्मी का रहा ...उसने अपने खुश्क होंठ पिता के सिरहन से काँप रहे लंड के अग्र भाग से बुरी तरह चिपका दिए और फिर अपनी लंबी जिहवा बाहर निकालते हुए मोटे सुपाडे पर स्थित गाढ़े प्रेकुं को चाट लिया.

" ह्म्‍म्म्मम !!! " ........दीप आनंदविभोर हो उठा और बदले में उसने भी निम्मी के चूतड़ो को अपने पंजो में भीचते हुए उसकी संपूर्ण चूत एक बार में ही अपने मूँह के अंदर भर ली ...निम्मी ने उसके सुपाडे को तेज़ी से चाटना शुरू कर दिया और फिर पुरजोर मूँह फाड़ते हुए उस छोटे सेब समान सुपाडे को अपने होंठो के अंदर लेने लगी ...वह आश्चर्य चकित थी और एक अंजाना भय भी उसके मश्तिश्क में बवाल करने लगा था, हलाकी वह सुपाडे को अपने छोटे से मूँह के अंदर प्रवेश करवाने में कामयाब हो गयी थी लेकिन उसे चूसने के लिए उसके मूँह में ज़रा भी गॅप नही बन पा रहा था.
 

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पापी परिवार--46

दीप को कल्प्नास्वरूप यह एहसास हुआ जैसे उसका मोटा सुपाड़ा इस वक़्त किसी कुँवारी चूत के अंदर फस गया हो और वह जान गया कि निम्मी को लंड चूसने का सही ग्यान नही होने से वह कुछ भी कर सकने में असमर्थ है ...... " दिक्कत हो रही हो तो मत कर " ......कुछ देर तक जब निम्मी के मूँह ने कोई हलचल नही की तब दीप ने उसे समझाइश दी और इसके परिणामस्वरूप निम्मी आहत हो उठी ..... " नही ठीक है " .....बस इतना कहने के लिए उसने सुपाडे को मूँह से बाहर निकाला और फिर जितना मूँह फाड़ सकती थी, फाड़ने के बाद पुनः मूँह के अंदर दाखिल कर लिया ...दूसरी बार की कोशिश में वह काफ़ी हद्द तक सफल हुई थी और अब उसके होंठ भी लगभग संपूर्ण सुपाड़ा चूसने में कामयाब होने लगे थे, बेटी की इस कोशिश ने दीप को नयी ऊर्जा से भर दिया और वह भी पूरी तत्परता से उसकी चूत का मर्दन करने लगा.

निम्मी की कोशिशें लगातार ज़ारी रही और उसने अपनी थूक से लंड को भिगो डाला, तत्पश्चात अपनी जीब को सुपाडे पर गोल - गोल घुमाती हुई पूरी कठोरता से उसे चूसने भिड़ गयी ...उसके मश्तिश्क में दिक्कत और विवशता बस यही दो शब्द उथल - पुथल मचाए हुए थे ....... " वह अपने पिता से अत्यधिक प्रेम करती है, फिर उसे कैसी दिक्कत ? " ......हौले - हौले वह भी सारी काम - कलाओं का अच्छा - ख़ासा ग्यान अर्जित कर लेगी और फिर अपने पिता की सारी विवशता का पूर्ण रूप से अंत कर देगी ...शारीरिक सुख की चाहत को तो वह भी कभी नज़र - अंदाज़ नही कर सकती है, भले ही वे सुख उसे अपने पिता से प्राप्त होंगे ...परंतु उसे यह मज़ूर है, आख़िर वे दोनो ही सूनेपन से गुज़र रहे हैं फिर इसमें कैसा पाप ...जो है बस आनंद ही आनंद है.

अपने अजीबो - ग़रीब तर्क - वितर्क में उलझने के बाद भी निम्मी पूरे होशो - हवास में थी ...दीप भी पूरे ज़ोर - शोर से उसके भग्नासे को चूस रहा था और साथ ही अपनी तीन उंगलिओ की मदद से वह, बेटी की चूत की आंतरिक गहराई में उमड़ते गाढ़े रस को बाहर निकाल कर उसे सुड़कने लगता ...उसने कई बार अपनी लंबी जिह्वा चूत मुख से लेकर गुदा - द्वार तक रगडी थी और उसके ऐसा करने से निम्मी का उत्साह दोगुना हो जाता ...वह कयि - कयि बार अपने मूँह को नीचे दाबति हुई पूरा लंड निगलने की असफल कोशिश करने लगती ...जो अभी मुश्किल से सुपाड़ा भी क्रॉस नही कर पाया था.

कमरे में पाप और वासना का अच्छा ख़ासा खेल चल रहा था, जिसमें जीत एक बाप की होगी या फिर एक बेटी की और अब वे दोनो ही हारने के बेहद करीब आ चुके थे ...इस जद्दो - जहद में निम्मी का हौसला पहले पस्त हुआ और वह अपने पिता के मूँह पर तेज़ी से अपनी चूत थप्तपाने लगी, वह झड़ने लगी और इसी जोश में उसके होंठ इंचो में सरकते हुए सुपाडे के नीचे की खाल पर अपना क़ब्ज़ा जमाने लगे.

दीप ने इस बार भी बेटी की जवानी का अंश मात्र भी व्यर्थ नही जाने दिया और ...... " गून - गून " ......करती निम्मी को और भी ज़्यादा सुख पहुचाने की गर्ज से उसके अति संवेदनशील, कोमल गुदा - द्वार पर अंगूठे की मालिश करने लगा ...जब उसने चूत की फांको के अंदर छिपा सारा गाढ़ा रस चूस्ते हुए अपने गले के नीचे उतार लिया ...इसके फॉरन बाद वह अपनी दूसरी मनपसन्द चीज़ गान्ड के सिकुदे छेद पर टूट पड़ा.

गुदा - द्वार पर दीप की जिह्वा का स्पर्श पाते ही निम्मी सिहर उठी और अपना सारा ज़ोर इकट्ठा करते हुए उसने लगभग आड़ा लंड अपने मूँह के अंदर उतार लिया ...पित्रप्रेम में वह इससे भी आगे बढ़ना चाहती थी लेकिन अब ऐसा कुछ भी संभव नही हो पाता, लंड का अग्र भाग सीधा उसके गले को चोट करते हुए अंदर फस गया और इसके साथ ही निम्मी की साँसे उखाड़ने लगी ...उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और अपना दम घुट'ता देख वह घबरा गयी, उसने ऊपर उठने की भरकस कोशिशें की लेकिन उसके जिस्म की ताक़त को इस आशाए पीड़ा ने लकवा मार दिया था.

अपना अंत इतने करीब से देखने के बाद निम्मी ने एक अंतिम गुहार अपने पिता से लगानी चाही और इसके लिए उसने अपने दाँत सख्ती से दीप के विकराल लौडे पर गढ़ा दिए ...दीप चीख उठा, हलाकी उसकी चीख निक्की के कमरे तक नही पहुच पाती परंतु उसने झटके से निम्मी की कमर थाम ली और उसे ऊपर को खीचने लगा ...लंड मूँह से बाहर आते ही निम्मी बेहोश हो गयी और उसका पस्त शरीर अपनी पिता के शरीर पर ढेर हो गया.

" निम्मी !!! " ......अपने दर्द की परवाह ना करते हुए दीप ने फॉरन अपनी बेटी का सुस्त जिस्म पलट दिया और अब निम्मी अपनी पीठ के बल बेड पर लेट गयी ...दीप ने उसके मूँह से बहती लार देख कर अनुमान लगाया कि आख़िर ऐसा क्यों हुआ है और काफ़ी कुछ उसका अनुमान सही बैठा ...इसके बाद उसने बेटी के कंधे थामते हुए उसे अपनी छाति से चिपका लिया ...वह रुन्वासा होने लगा था, कयि बार उसने निम्मी के चेहरे को थपथपाया और अथक कोशिशों के बाद उसकी बेटी की आँखें खुल गयी.

अपनी आँखें खोलने के बाद कुछ पल तक निम्मी खाँसती रही ...उसके गले में उसे अब भी काफ़ी तीव्र पीड़ा महसूस हो रही थी ....... " सॉरी डॅड !!! मैं हार गयी " .......बस उसने इतना ही कहा और अपनी बाहें दीप के पीठ पर बाँध ली और वह सिसकती हुई जाने कब सो गयी ...खुद दीप भी नही जान पाया.

इस हादसे ने दीप को विचलित कर दिया था, उसका अंतर्मन कुंठित हो कर उसके तोचने लगा ...वह इसी तरह सारी रात अपनी बेटी को अपनी धधकति छाती से चिपकाए बैठा रहा और जब सुबह के 5 बज गये ...उसे गोद में उठा कर उसके कमरे में सुला दिया.
 

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सुबह नाश्ते की टेबल पर निक्की और दीप ...निम्मी का इंतज़ार कर रहे, कयि बार उसकी बड़ी बहेन उसे पुकार चुकी थी और जब निम्मी अपने कमरे से बाहर आई ...एक चमत्कार हो गया.

वह तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरती हुई नाश्ते की टेबल पर आ गयी, पहले उसने दीप को पीछे से हग किया और इसके बाद अपनी बड़ी बहेन निक्की के भी गले लगी ...आज के चमत्कार में शामिल था उसके बदन पर चढ़ा लिबास.

इस वक़्त वा बिल्कुल प्लेन वाइट सलवार - कमीज़ पहने थी, जिसे देख कर निम्मी और दीप दोनो सकते में आ गये ...... ओ हेलो !!! मैं कोई भूत नही हूँ और अब से यही मेरा ड्रेस कोड है " ......और इतना कह कर वह ज़ोर से हँसने लगी, दीप तो जैसे उसकी खूबसूरती में खो सा गया था ...वह बेटी जिसे हमेशा उसने लगभग नग्न ही देखा था, आज अपना पूरा बदन ढके किसी परी समान दिख रही थी.

निम्मी अपने पिता की गोद में बैठ गयी ...... " चलो खिलाओ मुझे " ......और ज़बरदस्ती उसके हाथो से नाश्ता करने लगी ...यह देख कर निक्की भी अधीर हो उठी, आख़िर वह भी तो कुछ ऐसा ही प्यार चाहती थी लेकिन वह प्यार उसे अपने पिता से नही अपने भाई निकुंज से पाना था.

उसने अपने मर्म को ज़ाहिर ना करते हुए निम्मी को खूब चिढ़ाया ..खूब हसी, खूब मज़ाक किया और फिर नाश्ता ख़तम कर कॉलेज के लिए रवाना हो गयी.

" डॅड !!! आज मैं पूरा दिन आप के साथ घूमूंगी, मुझे मूवी देखना है ..थोड़ी शॉपिंग करनी है &; हां !!! कार ड्राइविंग भी सीखनी है " ......दीप अपनी बेटी के अंदर आए इतने बदलाव को देख कर हैरान था, लेकिन कल रात की बात को भी नही भुला पाया था ...हलाकी कम्मो से किया वादा निभाने में वह काफ़ी कामयाब हुआ था, लेकिन उसकी इस कामयाबी में उसके बड़े - बड़े पाप शामिल थे.

दिन भर दोनो बाप - बेटी सारे शहेर की खाक छानते रहे .... पीवीआर टॉकीज में मूवी देखते वक़्त भी निम्मी ने एक पल को अपने पिता का हाथ नही छोड़ा .... वह अब पूर्ण रूप से दीप पर मंत्रमुग्ध हो चुकी थी.

लेकिन जो अदायें उसमें कल से पहले थी .... उतावलापन, चंचलता, नटखटिया अंदाज़, छेड़ - खानी करना या सीधे शब्दो में उंगली करना, दूसरो को हलाल करना .... वह इतने कम समय में अपनी इन हरक़तों में सुधार तो कतयि नही ला सकती थी और ना लाना चाहती थी .... बस एक चीज़ जिससे उसका नया नाता जुड़ा, वह था ...... ' प्रेम ' ..... और जिस पुरानी चीज़ का उसने त्याग किया, वह थी ...... ' जलन '

टॉकीज से बाहर आने पर दोनो शॉपिंग स्टोर्स के गलियारे में घूमने लगे, दीप जानता था निम्मी को खरीद - दारी करना बेहद पसंद है और इसलिए वह जान कर उसे एक मेगा स्टोर के सामने ले आया ...... " चल बोल !!! कितने से काटेगी मुझे ? " ...... उसने बेटी की हर वक़्त चिड - चिड़ी दिखने वाली सुंदर नाक को अपने अंगूठे व तर्जनी के बीच फ़साते हुए पूछा और साथ हस्ते हुए उसका दाहिना कान भी पकड़ लिया.

" औचह !!! डॅड " ....... निम्मी क्रत्रिम क्रोध व दर्द भरा चेहरा बनाते हुए बोली ...... " क्यों !!! आज क्या मेरा हॅपी वाला बर्थ'डे है या आप का हलाल होने का ज़्यादा मन कर रहा है " ....... यह कहते हुए उसने पहले तो दीप के पंजे को जी भर के सूँघा और फिर अचानक से अपनी लंबी जिह्वा पूरे पंजे पर घुमाने लगी.

" यह !!! यह क्या कर रही है बेटा ? " ....... भरे हुज़ूम के बीच बेटी की इस हरक़त पर दीप हैरान रह गया और फॉरन उसके चेहरे से अपने दोनो हाथ पीछे खीच लिए.
 

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एक - आह - निम्मी को भी पता नही चला, आख़िर उसने यह ग़लती कैसे कर दी और वह भौचक्की हो कर अपनी नज़रें इधर - उधर घुमाने लगी .... दीप ने भी सॉफ पाया, एक - दम से निम्मी की साँसे काफ़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़ी हैं पर ऐसा क्यों हुआ .... जिग्यसावश उसने पूछ लिया ...... " सब ठीक है ना ? "

" डॅड !!! आप की बॉडी से बड़ी स्ट्रेंज स्मेल आती है और आप का पसीना भी बहुत नमकीन है " ...... निम्मी ने फुसफुसाते हुए कहा ..... " और डॅड आप यकीन नही करोगे .. मुझे पता नही कैसा फील होता है बट लगता है जैसे मैं इन दोनो चीज़ो को हमेशा अपने बेहद करीब महसूस करती रहूं " ...... इतना कह कर उसने अपना चेहरा सीधा दीप की बाईं आर्म्पाइट से चिपका दिया और कुछ पल तक गहरी साँसे लेती हुई .... वहाँ से उठती मादक मर्दाना सुगंध सूंघति रही ...... " देखा डॅड !!! मैं पागल हो जाती हूँ इस स्मेल से .. और " ...... इसके आगे वह जो कुछ कहना चाहती थी नही कह पाई और उसका लज़्जतरण चेहरा नीचे झुक गया.

दीप ने उसका कहा हर लफ्ज़ बड़े गौर से अपने जहेन में उतारा और कुछ देर विचार्मग्न रहने के बाद उससे पूछा ..... " और क्या ? " ..... सवाल पूछ्ते वक़्त उसका चेहरा बेहद शांत व गंभीर हो चला था था ... वह आतुर था इस ...... " और " ....... शब्द के पीछे का रहस्य जान'ने को.

पिता की इस हैरानी को निम्मी सह नही पाई और हौले - हौले कुछ बुदबुदाने लगी, ऐसा जो शायद वह खुद भी नही सुन सकती थी.

" बोल ना !!! मैं सुन'ना चाहता हूँ " ...... यह कहते हुए दीप ने बेटी की ठोडी को थाम कर उसे ऊपर उठाया और एक प्यार भरी मुस्कान देते हुए उसे पूचकारने लगा.

" वो वो डॅड !!! स्मेल करते ही मुझे अपनी पुसी में पेन होने लगता है " ...... इतना कहते ही निम्मी की साँसे मानो उसके नियंत्रण से बाहर हो गयीं और अपने ही अश्लील कथन को सुन'ने के बाद उसका चेहरा उत्तेजनावश लाल हो उठा .... जिसे उसने दोबारा नीचे झुकाना चाहा परंतु उसके ऐसा करने से पहले ही दीप ज़ोरो से हँसने लगा.

" ओह माइ गॉड !!! तू जोक अच्छा मारती है .... अरे पागल मैने कल भी नही नहाया था और आज भी नही नहाया .... वो खुश्बू नही बदबू है " ....... दीप ने अपना अति - गंभीर चेहरा पल भर में बदलते हुए कहा ...... " वैसे सोच रहा हूँ मेरी बेटी ने इतनी तारीफ़ की है तो दो - चार दिन और नही नहाउ " ...... उसने निम्मी के गाल पर हल्की चपत लगा दी.

वहीं निम्मी उसकी बातों में फॉरन उलझ गयी .... उसका स्वाभाव ही कुछ ऐसा था, वह घड़ी - घड़ी कभी अंतरिक्ष में पहुच जाती थी और कहो तो अगले ही क्षण धरातल पर वापस लौट आए ...... " डॅड फिर तो मैं भी नही नहाउन्गि .. एक काम करते हैं, हम मस्त वाला पर्फ्यूम ले लेते हैं और देखना किसी को हमारे नहाने के बारे में पता भी नही चलेगा " ..... वह खिलखिला कर हंस दी .... जाने क्यों दीप को अपनी बेटी की बेवकूफी पर इतना प्यार आया कि भारी भीड़ में उसने उसे अपनी छाति से चिपका लिया.

" कभी ना बदलना निम्मी .. तू नही जानती मैं तुझे कितना प्यार करता हूँ " ...... दीप ने लगभग दो मिनिट तक उसे अपनी छाति से चिपका कर रखा ....... " चल आज तुझे खुली छूट दी, जो लेना है ले .. डॅड पेमेंट करेंगे " ...... वह उसका हाथ थामते हुए मेगा स्टोर की तरफ बढ़ गया.

यहीं निम्मी को एक शरारत सूझी और वह स्टोर के अंदर जाते ही काउंटर गर्ल से बोल पड़ी ...... " देखिए मेरे बाय्फ्रेंड को मेरे लिए कुछ हॉट ड्रेसस ख़रीदनी हैं .. क्या आप हेल्प करेंगी ? " ...... इतना कह कर उसने अपने पिता के हाथ पर ज़ोर से चींटी काट ली और फॉरन दीप हतप्रभ निम्मी को घूर्ने लगा परंतु वह अब उससे कहता भी क्या .... अपने दाँत बाहर निकाले उसकी बेटी उसे, सुंदरता की मूरत दिखाई पड़ रही थी .... जिसे वह हमेशा वैसा ही खुश देखने का आदि था.
 
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