- 6,186
- 48,559
- 219
निक्की ने जल्द ही अपने कपड़े पहेन लिए और तब तक कम्मो का नहाना भी नही हो पाया था .... यहाँ निक्की अपने कमरे से बाहर निकली और वहाँ कम्मो बाथ - रूम से नंगे बदन अपने पति और बेटे रघु के सामने चली आई .... उसे इस वक़्त कोई होश नही था कि वह क्या किए जा रही है .... उसे तो बस कैसे भी कर निकुंज के संग पार्क जाना था.
कम्मो ने भरकस प्रयास किए .... उसकी आँखों में आँसू तक आ गये थे परंतु वह सही समय से पहले तैयार ना हो सकी और यह जानते हुए, कि अभी उसने जो सलवार - कमीज़ पहना है .... उसके अंदर वह बिल्कुल नंगी है और काफ़ी हद्द तक वह उसके गीले बदन से चिपक कर, उसके ब्रा - पैंटी ना पहने होने की गवाही दे रहा है .... वह सब कुछ भूल कर अपने कमरे का दरवाज़ा खोलती हुई सीढ़ियाँ उतरने लगी.
कम्मो ने हॉल में देखा जहाँ अब कोई मौजूद नही था और इसके बाद उसके कानो में कार स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी .... उसके कदम लड़खड़ाते हुए तेज़ी से घर के मेन गेट की तरफ बढ़े परंतु जब तक वह अपने घर की चौखट को पार कर पाती .... उसका लाड़ला निकुंज उसे यूँ ही तड़प्ता हुआ छोड़ कर .... उससे काफ़ी दूर निकल गया था.
वह असहाय पीड़ा से भर उठी .... निकुंज के साथ अब उसे अपनी बेटी निम्मी पर भी बेहद क्रोध आ रहा था .... एक जलन्भाव उसके अतर्मन्न में पैदा हुआ और वह अपनी फटी छाती पर हाथ की सहलाहट देती हुई .... नीचे ज़मीन पर बैठती चली गयी.
इसके बाद उसके अश्रु तीव्रता से बहने लगे ...... " मैने तुझे नव - जीवन प्रदान किया है निकुंज और तू मेरे साथ ही विश्वास - घात किए जा रहा है " ...... इस कथन को कहते वक़्त उसकी आँखें आग उगलने लगी थी ...... " तुझ पर सिर्फ़ मेरा हक़ है और मैं तुझे कभी पराया नही होने दूँगी " ...... वह ज़मीन से उठ खड़ी हुई और अपने अश्रु पोंछती हुई, वापस घर के अंदर आ गयी .... उसकी आंतरिक पीड़ा को बढ़ाने में आज उसकी बेटी निक्की ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी और अब उसे गहन विचार करना था ..... " क्या भाई - बहेन के दरमियाँ वह खुद दीवार बन कर खड़ी हो पाएगी ? "
कम्मो ने भरकस प्रयास किए .... उसकी आँखों में आँसू तक आ गये थे परंतु वह सही समय से पहले तैयार ना हो सकी और यह जानते हुए, कि अभी उसने जो सलवार - कमीज़ पहना है .... उसके अंदर वह बिल्कुल नंगी है और काफ़ी हद्द तक वह उसके गीले बदन से चिपक कर, उसके ब्रा - पैंटी ना पहने होने की गवाही दे रहा है .... वह सब कुछ भूल कर अपने कमरे का दरवाज़ा खोलती हुई सीढ़ियाँ उतरने लगी.
कम्मो ने हॉल में देखा जहाँ अब कोई मौजूद नही था और इसके बाद उसके कानो में कार स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी .... उसके कदम लड़खड़ाते हुए तेज़ी से घर के मेन गेट की तरफ बढ़े परंतु जब तक वह अपने घर की चौखट को पार कर पाती .... उसका लाड़ला निकुंज उसे यूँ ही तड़प्ता हुआ छोड़ कर .... उससे काफ़ी दूर निकल गया था.
वह असहाय पीड़ा से भर उठी .... निकुंज के साथ अब उसे अपनी बेटी निम्मी पर भी बेहद क्रोध आ रहा था .... एक जलन्भाव उसके अतर्मन्न में पैदा हुआ और वह अपनी फटी छाती पर हाथ की सहलाहट देती हुई .... नीचे ज़मीन पर बैठती चली गयी.
इसके बाद उसके अश्रु तीव्रता से बहने लगे ...... " मैने तुझे नव - जीवन प्रदान किया है निकुंज और तू मेरे साथ ही विश्वास - घात किए जा रहा है " ...... इस कथन को कहते वक़्त उसकी आँखें आग उगलने लगी थी ...... " तुझ पर सिर्फ़ मेरा हक़ है और मैं तुझे कभी पराया नही होने दूँगी " ...... वह ज़मीन से उठ खड़ी हुई और अपने अश्रु पोंछती हुई, वापस घर के अंदर आ गयी .... उसकी आंतरिक पीड़ा को बढ़ाने में आज उसकी बेटी निक्की ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी और अब उसे गहन विचार करना था ..... " क्या भाई - बहेन के दरमियाँ वह खुद दीवार बन कर खड़ी हो पाएगी ? "