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मोम डॅड को शक़ हो सकता है !! अभी पूरा सॉफ नही हुआ" कह कर निकुंज अपनी उंगली से कम्मो की ठोडी पर चिपके बाकी बचे वीर्य के कतरे पोंछ कर अपनी वह उंगली अपनी इक्षा-अनुसार अपनी मा के होंठो के भीतर घुसा देता है "ज़रूरी है मोम !! आप समझो" अपनी इस शैतानी हरक़त से वह अपनी मा को विवश करते हुए उसे अपने लंड के उपरांत अपनी वीर्य से लथपथ उंगली भी चुसवाने में कामयाब हो गया.
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"तू .. तू .. तू कुच्छ सोच बेटे" कम्मो की आवाज़ लड़खड़ाने लगी. प्रथम खुद के और बाद में उसके बेटे द्वारा ज़बरदस्ती करवाए गये नीच कार्य के प्रभाव से उस मा के मुलायम गाल अत्यधिक लजा कर लाल हो उठते हैं और खुद ब खुद उसकी पलकें शरम-ओ-हया से बंद होने की कगार पर पहुँचने लगती हैं.
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"आइ लव यू मोम !! पुच" निकुंज को अपनी मा की वर्तमान स्थिति पर बहुत प्यार आया और कम्मो की पलकों के बंद होने से पूर्व अचानक ही वह अपने होंठो को अपनी मा के कोमल होंठो से सटा देता है और फिर उतनी ही तेज़ी से उन्हें वापस पिछे भी खींच लेता है.
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"कामिनी !! भाई आख़िर तुम हो कहाँ ?" मा-बेटे के दरमियाँ दोबारा पनप रहे इस रंगीन माहॉल की धज्जियाँ उड़ाती दीप की गर्जना सुन वे दोनो अपने दिल में उफनते सैलाब को वहीं समाप्त कर देने पर मजबूर हो उठते हैं और तत-पश्चात निकुंज अपनी मा के कान में कुच्छ बोलने के उपरांत लगभग भागते हुए बाथरूम के अंदर प्रवेश कर जाता है.
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"पागल है पूरा" यह पहली बार हुआ जब निकुंज ने अपने होंठो से अपनी मा के होंठो को चूमा. भले ही वह चुंबन मात्र एक हल्की सी छुवन का एहसास देने वाला चुंबन था मगर उस मा के पुत्र ने स्वयं अपनी मर्ज़ी से उसे अंजाम दिया और अंत में जिस अंदाज़ से निकुंज अपनी नंगी अवस्था को छुपाते हुए दौड़ा था वह दृश्य देख कर अपने आप कम्मो के चेहरे पर गहरी मुस्कान छा जाती है.
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"अरे !! आप कब आए ?" निकुंज के कमरे से बाहर निकल कर कम्मो ने अपने पति से पुछा जो हॉल के सोफे पर विश्राम की मुद्रा में बैठा हुआ था.
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"अच्छा !! तो अपने छोटे बेटे की सेवा में इस कदर खो गयी हो कि अपने पति की चीख-पुकार भी तुम्हें सुनाई नही दे पाई" दीप अपनी पत्नी के दोनो कंधे निकुंज के कपड़ो से लदे देख उससे पूछता है मगर ज़रा भी संदेह नही कर पाता कि वे कपड़े हक़ीक़त में गंदे हैं या नही "और यह क्या हालत बना रखी है तुमने अपनी ?" पत्नी के बिखरे बाल, पिंदलियों तक ऊपर उठी उसकी सारी, कमर से लिपटा उसका पल्लू, पसीने से सराबोर उसका भीगा चेहरा, थक़ान की अधिकता से फर्श पर रगड़ते उसके बोझिल कदम इत्यादि सभी साक्ष्य दीप के समक्ष साबित होने को काफ़ी रहे थे कि उसकी पत्नी बड़ी लगन और मेहनत से अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही है.
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"आप खुद ही नही चाहते कि आप की बीवी को ज़रा सा भी सुख मिल सके" कम्मो शिक़ायती लहजे में जवाब देती है. उसके द्वि-अरथी कथन का मतलब सॉफ था कि उसे दीप द्वारा अपने आगमन की निर्धारित सूचना देने के बावजूद भी बे-वक़्त उसका घर लौट आना बिल्कुल पसंद नही आया. कितने आनंद से वह अपने पुत्र का लंड चूसने में मग्न थी और स्वयं उसका पुत्र भी अपनी मा के मूँह की गर्मी से पिघल कर उत्तेजञात्मक आहें भरने पर मजबूर हो चला था. अगर दीप उनके पापी कार्य के बीच बाधा उत्पन्न ना करता तो कम्मो के अनुमान-अनुसार वे दोनो मा-बेटे अब से कुच्छ समय पश्चात तक अपने प्रथम मधुर मिलन के साक्षी बन चुके होते.
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"तू .. तू .. तू कुच्छ सोच बेटे" कम्मो की आवाज़ लड़खड़ाने लगी. प्रथम खुद के और बाद में उसके बेटे द्वारा ज़बरदस्ती करवाए गये नीच कार्य के प्रभाव से उस मा के मुलायम गाल अत्यधिक लजा कर लाल हो उठते हैं और खुद ब खुद उसकी पलकें शरम-ओ-हया से बंद होने की कगार पर पहुँचने लगती हैं.
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"आइ लव यू मोम !! पुच" निकुंज को अपनी मा की वर्तमान स्थिति पर बहुत प्यार आया और कम्मो की पलकों के बंद होने से पूर्व अचानक ही वह अपने होंठो को अपनी मा के कोमल होंठो से सटा देता है और फिर उतनी ही तेज़ी से उन्हें वापस पिछे भी खींच लेता है.
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"कामिनी !! भाई आख़िर तुम हो कहाँ ?" मा-बेटे के दरमियाँ दोबारा पनप रहे इस रंगीन माहॉल की धज्जियाँ उड़ाती दीप की गर्जना सुन वे दोनो अपने दिल में उफनते सैलाब को वहीं समाप्त कर देने पर मजबूर हो उठते हैं और तत-पश्चात निकुंज अपनी मा के कान में कुच्छ बोलने के उपरांत लगभग भागते हुए बाथरूम के अंदर प्रवेश कर जाता है.
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"पागल है पूरा" यह पहली बार हुआ जब निकुंज ने अपने होंठो से अपनी मा के होंठो को चूमा. भले ही वह चुंबन मात्र एक हल्की सी छुवन का एहसास देने वाला चुंबन था मगर उस मा के पुत्र ने स्वयं अपनी मर्ज़ी से उसे अंजाम दिया और अंत में जिस अंदाज़ से निकुंज अपनी नंगी अवस्था को छुपाते हुए दौड़ा था वह दृश्य देख कर अपने आप कम्मो के चेहरे पर गहरी मुस्कान छा जाती है.
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"अरे !! आप कब आए ?" निकुंज के कमरे से बाहर निकल कर कम्मो ने अपने पति से पुछा जो हॉल के सोफे पर विश्राम की मुद्रा में बैठा हुआ था.
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"अच्छा !! तो अपने छोटे बेटे की सेवा में इस कदर खो गयी हो कि अपने पति की चीख-पुकार भी तुम्हें सुनाई नही दे पाई" दीप अपनी पत्नी के दोनो कंधे निकुंज के कपड़ो से लदे देख उससे पूछता है मगर ज़रा भी संदेह नही कर पाता कि वे कपड़े हक़ीक़त में गंदे हैं या नही "और यह क्या हालत बना रखी है तुमने अपनी ?" पत्नी के बिखरे बाल, पिंदलियों तक ऊपर उठी उसकी सारी, कमर से लिपटा उसका पल्लू, पसीने से सराबोर उसका भीगा चेहरा, थक़ान की अधिकता से फर्श पर रगड़ते उसके बोझिल कदम इत्यादि सभी साक्ष्य दीप के समक्ष साबित होने को काफ़ी रहे थे कि उसकी पत्नी बड़ी लगन और मेहनत से अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही है.
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"आप खुद ही नही चाहते कि आप की बीवी को ज़रा सा भी सुख मिल सके" कम्मो शिक़ायती लहजे में जवाब देती है. उसके द्वि-अरथी कथन का मतलब सॉफ था कि उसे दीप द्वारा अपने आगमन की निर्धारित सूचना देने के बावजूद भी बे-वक़्त उसका घर लौट आना बिल्कुल पसंद नही आया. कितने आनंद से वह अपने पुत्र का लंड चूसने में मग्न थी और स्वयं उसका पुत्र भी अपनी मा के मूँह की गर्मी से पिघल कर उत्तेजञात्मक आहें भरने पर मजबूर हो चला था. अगर दीप उनके पापी कार्य के बीच बाधा उत्पन्न ना करता तो कम्मो के अनुमान-अनुसार वे दोनो मा-बेटे अब से कुच्छ समय पश्चात तक अपने प्रथम मधुर मिलन के साक्षी बन चुके होते.