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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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मोम डॅड को शक़ हो सकता है !! अभी पूरा सॉफ नही हुआ" कह कर निकुंज अपनी उंगली से कम्मो की ठोडी पर चिपके बाकी बचे वीर्य के कतरे पोंछ कर अपनी वह उंगली अपनी इक्षा-अनुसार अपनी मा के होंठो के भीतर घुसा देता है "ज़रूरी है मोम !! आप समझो" अपनी इस शैतानी हरक़त से वह अपनी मा को विवश करते हुए उसे अपने लंड के उपरांत अपनी वीर्य से लथपथ उंगली भी चुसवाने में कामयाब हो गया.


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"तू .. तू .. तू कुच्छ सोच बेटे" कम्मो की आवाज़ लड़खड़ाने लगी. प्रथम खुद के और बाद में उसके बेटे द्वारा ज़बरदस्ती करवाए गये नीच कार्य के प्रभाव से उस मा के मुलायम गाल अत्यधिक लजा कर लाल हो उठते हैं और खुद ब खुद उसकी पलकें शरम-ओ-हया से बंद होने की कगार पर पहुँचने लगती हैं.


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"आइ लव यू मोम !! पुच" निकुंज को अपनी मा की वर्तमान स्थिति पर बहुत प्यार आया और कम्मो की पलकों के बंद होने से पूर्व अचानक ही वह अपने होंठो को अपनी मा के कोमल होंठो से सटा देता है और फिर उतनी ही तेज़ी से उन्हें वापस पिछे भी खींच लेता है.


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"कामिनी !! भाई आख़िर तुम हो कहाँ ?" मा-बेटे के दरमियाँ दोबारा पनप रहे इस रंगीन माहॉल की धज्जियाँ उड़ाती दीप की गर्जना सुन वे दोनो अपने दिल में उफनते सैलाब को वहीं समाप्त कर देने पर मजबूर हो उठते हैं और तत-पश्चात निकुंज अपनी मा के कान में कुच्छ बोलने के उपरांत लगभग भागते हुए बाथरूम के अंदर प्रवेश कर जाता है.


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"पागल है पूरा" यह पहली बार हुआ जब निकुंज ने अपने होंठो से अपनी मा के होंठो को चूमा. भले ही वह चुंबन मात्र एक हल्की सी छुवन का एहसास देने वाला चुंबन था मगर उस मा के पुत्र ने स्वयं अपनी मर्ज़ी से उसे अंजाम दिया और अंत में जिस अंदाज़ से निकुंज अपनी नंगी अवस्था को छुपाते हुए दौड़ा था वह दृश्य देख कर अपने आप कम्मो के चेहरे पर गहरी मुस्कान छा जाती है.


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"अरे !! आप कब आए ?" निकुंज के कमरे से बाहर निकल कर कम्मो ने अपने पति से पुछा जो हॉल के सोफे पर विश्राम की मुद्रा में बैठा हुआ था.


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"अच्छा !! तो अपने छोटे बेटे की सेवा में इस कदर खो गयी हो कि अपने पति की चीख-पुकार भी तुम्हें सुनाई नही दे पाई" दीप अपनी पत्नी के दोनो कंधे निकुंज के कपड़ो से लदे देख उससे पूछता है मगर ज़रा भी संदेह नही कर पाता कि वे कपड़े हक़ीक़त में गंदे हैं या नही "और यह क्या हालत बना रखी है तुमने अपनी ?" पत्नी के बिखरे बाल, पिंदलियों तक ऊपर उठी उसकी सारी, कमर से लिपटा उसका पल्लू, पसीने से सराबोर उसका भीगा चेहरा, थक़ान की अधिकता से फर्श पर रगड़ते उसके बोझिल कदम इत्यादि सभी साक्ष्य दीप के समक्ष साबित होने को काफ़ी रहे थे कि उसकी पत्नी बड़ी लगन और मेहनत से अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही है.


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"आप खुद ही नही चाहते कि आप की बीवी को ज़रा सा भी सुख मिल सके" कम्मो शिक़ायती लहजे में जवाब देती है. उसके द्वि-अरथी कथन का मतलब सॉफ था कि उसे दीप द्वारा अपने आगमन की निर्धारित सूचना देने के बावजूद भी बे-वक़्त उसका घर लौट आना बिल्कुल पसंद नही आया. कितने आनंद से वह अपने पुत्र का लंड चूसने में मग्न थी और स्वयं उसका पुत्र भी अपनी मा के मूँह की गर्मी से पिघल कर उत्तेजञात्मक आहें भरने पर मजबूर हो चला था. अगर दीप उनके पापी कार्य के बीच बाधा उत्पन्न ना करता तो कम्मो के अनुमान-अनुसार वे दोनो मा-बेटे अब से कुच्छ समय पश्चात तक अपने प्रथम मधुर मिलन के साक्षी बन चुके होते.
 

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पापी परिवार--64





"अब मैने क्या कर दिया !! हमेशा तो कहा है नौकर-चाकर रख लो मगर तुम सुनती कहाँ हो" दीप कम्मो के शिकवे को बे-फ़िक्री में उड़ाते हुए कहता है मगर सच तो यह था कि वह हमेशा से अपनी पत्नी के लिए बहुत फिकर-मंद रहा था परंतु जिस रात कम्मो ने उसे पहली बार अपनी छूट देने से इनकार किया, दीप के दिल में वह आग तब से ले कर अब तक नही बुझ पाई थी.


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"मैने नौकरो की वजह से ऐसा नही कहा !! मैं तो सास वाले सुख की बात कर रही थी" बोल कर कम्मो चुप हो गयी लेकिन अपनी बात के ज़रिए अपने पति का क्रोध बढ़ा बैठी.


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"ह्म्‍म्म !! ठीक है मैं जीत से बात करता हूँ" अपने गुस्से को पीने की कोशिश करते हुए दीप अपनी पत्नी को आश्वासन देता है "अच्छा !! निकुंज कहाँ है ? उसकी कार तो बाहर खड़ी है" उसका पुछ्ना हुआ और फॉरन कम्मो को वह बात याद आ गयी जो निकुंज बाथरूम जाने से पूर्व उसके कान में कह कर गया.


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"वो पास की दुकान से डिटरजेंट खरीदने गया है. चलिए आप के लिए चाइ बना देती हूँ, जब तक आप कमरे में आराम कीजिए" इतना कह कर कम्मो मंन ही मंन मुस्कुराती हुई सीढ़ियाँ चढ़ने लगती है क्यों कि शुरुआत से ही उनके घर की वॉशिंग मशीन फर्स्ट फ्लोर वाले एक्सट्रा बाथरूम में स्थापित थी.


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कम्मो ने देखा उसके पिछे-पिछे दीप भी फर्स्ट फ्लोर पर आ पहुँचा था और जहाँ वह एक्सट्रा बाथरूम में घुसने लगी वहीं उसका पति अपने बेडरूम के अंदर चला जाता है.


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"उफ़फ्फ़ !! आज तो बाल-बाल बचे. चलो चाइ बनाने के बहाने निकुंज को भी बता देती हूँ" सोच कर कम्मो बाथरूम के दरवाज़े की आड़ से फ्लोर के गलियारे में झाँकति है और रास्ता सॉफ जान पड़ते ही आती-तीव्रता से दोबारा सीढ़ियाँ उतरती हुई वह सीधे निकुंज के कमरे में प्रवेश कर गयी.


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"बेटा बाहर आ जा !! तेरे डॅड अपने कमरे में जा चुके हैं" बोल कर कम्मो ने अपने पुत्र के बाथरूम का दरवाज़ा खटखटाना चाहा लेकिन इसके पूर्व ही निकुंज दरवाज़ा खोल कर अपनी मा के हाथ को बल-पूर्वक थामते हुए उसे भी अपने पास बाथरूम के अंदर खींच लेता है और इसके पश्चात उसने दरवाज़ा वापस बंद कर दिया.


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"ओह्ह्ह मोम" उसने अपनी मा को अपने नंगे बलिष्ठ सीने से चिपका कर संतुष्टि-पूर्वक आह ली "मैं बहुत बेचैन था मोम. मुझे बड़ा डर महसूस हो रहा था कि कहीं हॉल में डॅड आप की घबराहट को पहचान कर कोई उल्टा-सीधा अनुमान ना लगा बैठें" निकुंज अपनी मा के बाएँ कंधे पर अपना सर टिका कर सिसकने लगता है बल्कि सच तो यह था उसने पिच्छले 10 मिनिट से इसी उम्मीद में खुद को रोने से रोक रखा था कि उसकी मा पर कोई आँच नही आएगी.


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"निकुंज !! बेटा जब तेरी मा की खातिर सारा इल्ज़ाम तू अकेले ही अपने ऊपर लेने को राज़ी हो सकता है तो क्या तेरी मा अपने लाल को यूँ ही फस जाने देगी" बोलते वक़्त कम्मो भी रुआंसी हो जाती है. हलाकी जब निकुंज ने अचनाक उसे बाथरूम के भीतर खींचा तब अपने पुत्र की उस जबरदारसती के मद्देनज़र एक पल को वह मा बुरी तरह काँप उठी थी. उसका मंन शंका से भर गया था कि यक़ीनन निकुंज ने उसके प्यार को उसका छिनाल्पन समझ लिया है और अब वह बिना अपनी मा की इजाज़त लिए अपनी मंन-मर्ज़ी से उसके जिस्म को नोच-नोच कर खा जाने का इक्शुक हो चला है मगर ज्यों ही कम्मो ने अपने बेटे को आंतरिक पीड़ा से बिलखते देखा स्वयं उसकी आँखें भी आँसुओ की बूँदें छल्काने से खुद को रोक नही पाई.
 

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"चुप हो जा मेरे बच्चे !! तू फिकर क्यों करता है जब तेरी मा तेरे साथ है" निकुंज के बालो में अपनी उंगलियाँ घुमाते हुए कम्मो उसे सहारा देने का प्रयत्न करती है और जल्द ही वह अपनी पूचकारो के ज़रिए अपने पुत्र के गले से निरंतर बाहर निकलती उसकी विह्वल हिचक़ियों को पूरी तरह समाप्त कर देने में सफल हो जाती है.


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"मोम !! क्या डॅड अपने रूम में रिलॅक्स कर रहे हैं ?" निकुंज ने अपनी मा को अपनी मजबूत बाहों की क़ैद से आज़ाद करते हुए पुछा.


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"क्यों !! ऐसा क्यों पुच्छ रहा है. क्या तुझे अपनी मा के साथ अभी और छेड़खानी करनी है ?" कम्मो बेहद प्यार से निकुंज का कान पकड़ते हुए उल्टे उससे सवाल करती है "वैसे तेरे लंड की हालत देख कर तो नही लगता कि इस वक़्त तू अपनी मा के साथ कोई और शरारत करने के मूड में है" कम्मो ने मुस्कान के साथ अपनी निगाहों को अपने बेटे के सिकुडे लंड से जोड़ कर कहा.


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"क्या मोम आप भी" अपने आप ही निकुंज का मायूस लटका चेहरा अपनी मा की बात को सुन कर खुशनुमे चेहरे में परिवर्तित हो गया.


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"अरे देखो कैसे शर्मा रहा है !! पता है अब तक मेरा गला दर्द से उबर नही पाया. मुझे तो लगा कहीं मैं उस दर्द को सहते-सहते बेहोश ही ना हो जाउ. वा तो भला हो जो ऐन-मौके पर तेरे लंड से वीर्य निकलने लगा और उसके बाद लंड की विशालता भी धीरे-धीरे अपने आप ख़तम होती गयी वरना पता नही आज मेरा क्या होता" कम्मो ने उसे डाँटने का नाटक किया मगर उसके कथन में पूरी सच्चाई थी कि अब तक वह अपने कंठ को दुख़्ता महसूस कर रही थी.



"वो मोम !! अगर मैं आप को ज़बरदस्ती बेड पर नही गिराता तो पक्का आज हम डॅड के हाथो पकड़े जाते" कहने के उपरांत निकुंज ने अपनी मा को उन सभी हलातो से रूबरू करवाया जिन्हें कम्मो अपने पुत्र की टाँगो की जड़ के नीचे दबी होने की वजह से नही जान पाई थी और साथ ही निकुंज ने यह भी स्वीकारा कि उसे अपने पिता के उनके कमरे में आ पहुँचने के पूरे आसार नज़र आ चुके थे और तभी वह अपनी टाँगो के नीचे फसि अपनी मा के मूँह में जान-बूझ कर निर्दयता से धक्के मारने पर मजबूर हो गया था ताकि उसके डॅड की पहली नज़र में ही सब कुच्छ पानी की तरह सॉफ हो जाए कि असली कुसूरवार उनका बेटा निकुंज है ना कि उनकी पत्नी कामिनी.


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"ओह्ह्ह निकुंज !! कितना सोचता है तू अपनी मा के बारे में" कम्मो ने अत्यंत खुशी से झूमते हुए अपने बेटे के चौड़े माथे को चूम कर कहा. उसका हृदय गदगद हो गया था जब उसे निकुंज द्वारा सारी सत्यता मालूम चली क्यों कि संपूर्ण ग़लती स्वयं उस मा की ही रही थी. अगर वह अपने पति की कार की ध्वनि को सुनने के फॉरन बाद ही अपने कामलूलोप मन पर काबू कर लेती तो इतना बड़ा बखेड़ा कभी शुरू ना होता.


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"चल अब तू नहा धो कर तैयार हो जा और मैं तेरे डॅड के लिए चाइ बनाती हूँ" अपनी पुरानी ग़लती याद आने के उपरांत कम्मो अपनी दूसरी पनपती ग़लती को वहीं ख़तम कर तेज़ गति से अपने पुत्र के बाथरूम से बाहर निकल जाती है ताकि उसका पति चाइ के इंतज़ार में दोबारा अपनी पत्नी को आवाज़ ना देने लग जाए.


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कम्मो ने अल्प समय में चाइ तैयार की और दीप को देने अपने बेडरूम में पहुँचती है मगर वहाँ उसका पति पहले ही नींद के आगोश में समा चुका था और उसके ज़ोरदार खर्राटे सुन कम्मो का चंचल मश्तिश्क फिर से बावला हो उठता है.


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"अब तक उसने नहा नही पाया होगा. अच्छा मौका है कम्मो देख तेरा पति तो सो गया फॉरन जा क्यों कि अब तू बड़े आराम से अपने बेटे को अपने हाथो से नहेलवा भी सकती है" कम्मो ने चाइ का कप बिस्तर के पास वाली टेबल पर रख दिया और अपने बेडरूम से बाहर जाने के लिए अपने कदम दरवाज़े की ओर बढ़ाने लगी.


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"पक्की रंडी बन गयी है तू कम्मो, अपने सगे बेटे के जिस्म की प्यासी !! अरे जी भर कर तो उसे नंगा देख लिया, मंन भर कर उसका लंड चूसा, उसके स्वादिष्ट गाढ़े वीर्य का स्वाद चखा, अपने पति द्वारा पकड़े जाने से बची, दोबारा उसी ग़लती की पुनरा-व्रत्ती की. अब क्या तू एक ही दिन में अपनी सारी पापी लालसाओ को पूरा कर लेना चाहती है. क्या सोचेगा वह अपनी मा के बारे में अगर तू वापस उसके पास पहुँच गयी. क्या बोलेगी उसे कि तेरा पति सो गया और तू अपने बेटे को नहलवाने आ गयी. छिनाल समझेगा वह तुझे और यदि ना भी समझे तो क्या तू इन मर्दो की फ़ितरत से अंजान है, उन्हें तो बस औरत की अदाओ का आनंद मिलना चाहिए भले चाहे वह औरत तुझ जैसी कोई व्यभिचारी मा ही क्यों ना हो" स्वयं के अंतर-मंन का दूसरा पहलू कम्मो के निरंतर बढ़ते कदमो को रोक तो नही पाता लेकिन उनका रुख़ ज़रूर बदल देता है जो अब निकुंज के कमरे में उसे नहेलवाने के स्थान पर दोपहर का खाना बनाने के उद्देश्य से किचन के भीतर पहुँच चुके थे.
 

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कलयुगी मनुष्य की इंद्रियाँ यदि हमेशा उसे भटकाव की ओर धकेलने का प्रयत्न करती हैं तो कभी-कभार उन्हें सकारात्मक सोच भी प्रदान करती हैं और कम्मो ने अपनी सोच के दूसरे पहलू को स्वीकार कर मानो स्वयं के ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया था वरना बाथरूम के भीतर स्टूल पर बैठे नंगे निकुंज ने तो अब तक अपने बदन पर पानी की एक भी बूँद का छिड़काव नही किया था बल्कि अपनी मा के वापस लौट आने के यकीन में अपना लंड सहलाते हुए वह जवान मर्द सिर्फ़ अपना वक़्त काटे जा रहा था.


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निकुंज के जाने के मात्र 5 मिनिट बाद नीमा के फ्लॅट का मैन गेट दोबारा नॉक हुआ.


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"क्या बात है !! वापस लौट आया क्या ?" घनघोर चुदाई की प्यास बुझने के उपरांत भी नीमा के चेहरे पर मुस्कान च्छा जाती है. अब तक उसने अतिथि-कक्ष को सँवारा नही था और किचन में उबल रही चाइ को धीमी आँच पर पकता छोड़ वह तेज़ कदमो से दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ती है.


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"मोम !! जल्दी खोलो ना. मुझे ज़ोर से पॉटी आ रही है" वह मैन गेट को खोल पाती इससे पहले ही उसके कानो में अपने बेटे विक्की के यह शब्द खलबली मचा देते हैं. उस मा को फॉरन अपने नन्ग्पन्न का ख़याल आ जाता है और वह बिजली की तेज़ी से ग्वेस्टर्म के फर्श पर बिखरे पड़े अपने पुराने कपड़े समेट कर अपने बेडरूम में आ पहुँचती है. उसने अत्यंत-तुरंत ही वॉर्डरोब खोल उस ड्रेस पर झपट्टा मारा जो उसे अपने पहले प्रयास में आसानी से प्राप्त हो गयी और तत-पश्चात ही बिना कोई अंडरगार्मेंट्स पहने छर्हरे बदन की स्वामिनी वह सुंदर नारी उस झीनी ब्लॅक नाइटी से अपना ना छुप सकने वाला जिस्म धाँकने की असफल कोशिश करने लगती है.


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"आ .. आ रही हूँ बेटे" नीमा ने चिल्ला कर कहा मगर अपने बेटे द्वारा लगातार दरवाज़ा पीटने के कार्य में ज़रा भी रुकावट ना डाल पाई "बस आ गयी" एक लम्हा अपने दिल पर हाथ रख उसकी असामान्य धड़कनो को महसूस करने के उपरांत नीमा ने अपने घर का मेन गेट खोल दिया.




"दरवाज़ा खोलने में कितनी देर लगा दी मम्मी" विक्की ज़ोर से चिल्लाया "अब हटो सामने से वरना मेरा पॅंट गंदा हो जाएगा" बोल कर वह अपनी मा को धक्का देते हुए सीधे अपने कमरे की दिशा में दौड़ जाता है.


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विक्की के उपरांत स्नेहा का भी घर के अंदर प्रवेश हुआ और जल्दबाज़ी में जिस बात पर उसके भाई गौर नही कर पाया था वह अपनी मा के गदराए बदन पर उस छोटी सी नाइटी को देख दंग रह जाती है.
 

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"मा !! आप ने नाइटी के नीचे ब्रा नही पहनी ?" दरवाज़ा बंद होने से पूर्व ही स्नेहा ने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के स्पष्ट-रूप से अपनी मा से पुछा. नीमा के गोल मटोल मम्मे और उन पर तने उसके लंबे चूचक उस पारदर्शी नाइटी में बिल्कुल सॉफ नज़र आ रहे थे "और पैंटी भी नही" अपनी मा की चूत पर अपनी हैरत भरी निगाहें डालती हुई वह अपने खुले मूँह पर अपना हाथ रख कर बेहद अचंभित स्वर में कह उठती है.


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"वो .. हू स्नेहा मैं" अपनी बेटी के विध्वंशक सवाल को सुन नीमा की सिट्टी-पिटी गुम हो गयी "तू .. तू पहले अंदर आ" नीमा ने फॉरन दरवाज़े से बाहर झाँकते हुए कहा और सब कुच्छ व्यवस्थित देख दरवाज़े को बंद कर देती है जब कि कुच्छ देर पहले उत्तेजना के भंवर में वही रमणीय नारी निकुंज को विदा करने नंगी ही लिफ्ट तक आ पहुँची थी जो उनके फ्लॅट के मैन दरवाज़े के ठीक सामने परंतु उससे 10 गज के फ़ासले पर स्थापित थी और तब यक़ीनन नीमा को ज़रा भी घबराहट महसूस नही हुई थी कि उसके पड़ोस का कोई भी बंदा किसी भी पल अपने फाल्ट से बाहर निकल कर उसे उसकी नग्न अवस्था में देख सकता है मगर अपने खून द्वारा टोके जाने की शरम में वह मा फ्लोर की गॅलरी का मुआइना करने को विवश हो चली थी.


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दरवाज़ा बंद करने के उपरांत नीमा पलटी और जाना स्नेहा अब तक उसके समीप खड़ी थी और अपनी मा के मोटे-मोटे चुतडो के दर्शन करने के पश्चात उसके चेहरे का रंग फीका पड़ चुका था, भय-स्वरूप स्वयं नीमा की चढ़ि साँसों और उसके दिल की अनियंत्रित धड़कनो का कोई परवार नही था और निरंतर वह मा किसी अंजानी शंका के तेहेत बुरी तरह काँपती जा रही थी.


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"तू भी फ्रेश हो जा स्नेहा !! मैं अभी आती हूँ, कहीं किचन में बन रही चाइ उबल कर बाहर ना छलक आई हो" नीमा ने अपनी वर्तमान दयनीय स्थिति पर काबू करने का प्रयत्न करते हुए कहा और शीघ्रता से अपने कदमो को किचन की दिशा की ओर चलायमान कर देती है.


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"मा !! जब आप को पता था कि विक्की दरवाज़ा खटखटा रहा है. क्या तब भी आप को ख़याल नही आया कि दरवाज़ा खोलने से पहले इस ट्रॅन्स्परेंट नाइटी के नीचे आप को अपने अंडरगार्मेंट्स पहेन लेने चाहिए थे ?" नीमा किचन के अंदर पहुँच भी नही पाई थी उससे पूर्व ही स्नेहा ने उसके बढ़ते कदमो को अपने दूसरे विस्फोटक प्रश्न के ज़रिए वहीं रोक दिया "क्या आप को नही लगता कि नाइटी पहनने के बावजूद भी आप नंगी दिख रही हो ?" वह टहलती हुई अपनी मा के समक्ष आ कर खड़ी हो जाती है.


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"उम्म्म !! बेटी मैं घर पर अकेली थी तो सोचा केवल नाइटी मेरा से काम चल जाएगा और जब तेरे भाई ने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़े को पीटा तब वाकाई मुझे इस बात एहसास ना रहा कि मैने क्या पहेन रखा है, क्या नही" अपने मष्टिशक पर दबाव डालने के उपरांत नीमा हौले से फुसफुसाई. सोचते हुए उसका दिल दहेलता जा रहा था कि वह तो नंगी ही दरवाज़ा खोलने वाली थी और यदि विक्की ने उसे आवाज़ दे कर अपनी उपस्थिति से अवगत नही करवाया होता तो निकुंज को वापस लौट आया जान वह बेफिक्री से दरवाज़ा खोल भी देती.


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"चलो कोई ना !! वैसे मेरी मा इस वक़्त कयामत ढा रही है" अचानक मुस्कुराते हुए स्नेहा ने अपना रंग बदला. जितना ख़ौफ्फ वह अपनी मा की आँखों में देखना चाहती थी, तत्काल के लिए उतना उसे पर्याप्त जान पड़ता है और तभी वह अपने क्रोध को अत्यंत तुरंत शांत कर अपना पूर्व प्रेम अपनी मा पर उडेल रही थी.


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"धत्त" जहाँ अपनी बेटी की कटु वाणी में आकस्मात प्रेम-रूपी बदलाव आया महसूस कर नीमा को बहुत सुकून प्राप्त होता है वहीं उसके गाल स्नेहा के शरारती कथन को सुनने के उपरांत शरम से लाल भी हो उठते हैं.


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"चलो मा !! आप इतमीनान से चाइ बना लो, फिर एक-साथ पिएँगे" कह कर स्नेहा हॉल के सोफे की ओर मूड गयी और नीमा अपना पिच्छा छूटते देख अति-तीव्रता से किचन के अंदर प्रवेश कर लेती है.


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"उफ़फ्फ़ ये लड़की और इसके सवाल" नीमा ने गॅस के बरनर को ऑफ किया और अपनी धुकनी-समान अनियंत्रित सांसो की रफ़्तार को सामान्य करने लगी "इससे पहले की विक्की अपने कमरे से बाहर निकले मुझे चेंज कर लेना चाहिए वरना यह इश्यू दोबारा भी क्रियेट हो सकता और क्या पता वह पागल अपनी बहेन के सामने ही मेरे साथ उल्टी-सीधी हरक़त करना शुरू ना कर दे" सोच कर वह हॉल में वापस लौटी मगर वहाँ पनपे मौजूदा दृश्य पर नज़र पड़ते ही उसकी गान्ड फट जाती है. उसकी बेटी स्नेहा उसी सोफे को बड़े गौर से देख रही थी जिस पर कुच्छ वक़्त पूर्व नीमा और निकुंज ने चुदाई का पापी खेल खेला था.





डर से बहाल नीमा ने फॉरन अपने कमरे की ओर प्रस्थान कर जाना उचित समझा लेकिन स्नेहा की अगली हरक़त देख उसकी रूह काँप उठती है. उसकी बेटी सोफे की रेक्सिन सतह पर फैले चुदाई के गाढ़े रस की कुच्छ बूँदें अपने हाथ की उंगली में लपेटने के पश्चात, उस पदार्थ की जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से अपनी वह उंगली अपनी नाक के काफ़ी करीब पहुँचा कर उसकी सुगंध सूंघने वाली रही थी.
 

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"मा !! हमारे घर आने से पहले आप इस सोफे पर बैठ कर फिंगरिंग कर रही थी ना और तभी आप ने नाइटी के नीचे पैंटी नही पहेनी है और दरवाज़ा खोलने में भी आप को काफ़ी देर लगी ?" अपनी मा को हॉल में खड़ा देख स्नेहा ने बेहद सीधे और सरल लफ़ज़ो में सवाल पुछा "मैं आप की पुसी को लीक़ कर चुकी हूँ और मुझे आप के ऑर्गॅज़म की पूरी पहचान है" साथ ही वह खुद ही अपने प्रश्न का उत्तर भी देती है.


क्यों कि सोफे पर फैला रस अब तक गीला था इसलिए स्नेहा यह कयास लगाने पर मजबूर हुई कि उसकी मा ने घर के सूनेपन का फ़ायदा उठा कर पूरी रात अपनी चूत मरवाई है और अंतिम चुदाई सोफे पर करवाने के उपरांत अब से कुच्छ ही समय पूर्व उस बाहरी मर्द को घर से बाहर निकाला होगा. वहीं अपने छोटे भाई विक्की के वीर्य को चख लेने के पश्चात यक़ीनन वह मर्दो के मर्दाने रस के स्वाद से पूरी तारह वाकिफ़ हो चुकी थी.


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"ह .. हां स्नेहा यह सच है मगर बेटी थोड़ा आहिस्ते बोल, कहीं तेरे भाई तक तेरी आवाज़ ना पहुँच जाए" अपनी बेटी की निर्लज्जता पर नीमा को जितना आश्चर्य हुआ उससे कहीं ज़्यादा वह खुश हुई. स्नेहा ने सिर्फ़ उसकी मा के ऑर्गॅज़म का ही अनुमान लगा पाया था जब कि उस रस में सम्मिलित मर्द के वीर्य के अंश की वह कोई जानकारी नही जुटा पाई थी और शायद यही मुख्य वजह बनी जो नीमा ने मास्टरबेट करने वाली झुटि बात को भी फॉरन स्वीकार कर लिया.


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"मा !! मुझे आप के ऑर्गॅज़म का टेस्ट बहुत पसंद है" अपने कथन से उस बेशर्म बेटी ने अपनी मा को चौंका दिया और अपनी उंगली अपने मूँह के अंदर घुसा कर बेहद कामुकता-पूर्वक उसे चूसने लगती है "यूम्मी !! आप फिकर मत करो, भाई के आने से पहले मैं इसे पूरी तरह सॉफ कर दूँगी" स्नेहा ने उंगली अपने मूँह से बहार निकाल कर ज़ोर से चटकारा लिया और तत-पश्चात अपने संपूर्ण हाथ में उस रस को समेटने के उपरांत अपनी मा को दिखा-दिखा कर अपना हाथ अपनी लंबी जीभ द्वारा चाटने लगती है. चक्कर खाती नीमा चाह कर भी अपनी बेटी की यह अश्लील हरक़त रोक नही पाई बस शरम से सराबोर अपना चेहरा झुका कर अपने बोझिल कदमो से अपने बेडरूम की दिशा की ओर आगे बढ़ जाती है.


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बेड-रूम में पहुँच कर नीमा ने दरवाज़े को अंदर से लॉक कर लिया और अपने बिस्तर पर पाँव पसार वह सुबह से ले कर अब तक हुए पूरे घटना-क्रम पर विचार करने लगती है. आज उस कामलूलोप नारी ने अपनी इक्षा-अनुसार अपनी एक और मर्यादा का उलंघन किया था और यक़ीनन अब से कुच्छ वक़्त पूर्व वह नारी पराए पुरुष निकुंज के साथ निश्चिंतता-पूर्वक पापी संसर्ग स्थापित करने में सफल भी हुई थी मगर अपनी सग़ी बेटी स्नेहा की निर्लज्ज क्रियाओ पर गौर फरमाने के उपरांत उस मा की आँखों में अंगार भड़क उठते हैं.


"वाकाई आज उसने बहुत नीच और घिनौनी हरक़तें की हैं" फॉरन नीमा को अपना जिस्म सुलगता महसूस हुआ जो सिवाए उसके स्वयं के क्रोध के कुच्छ और ना था मगर अत्यंत तुरंत वह मा यह भी स्वीकार करती है कि उसके निरंतर बढ़ते जा रहे पापो के फल-स्वरूप ही उसकी बेटी अपनी मा जैसी व्यभिचारी स्त्री बनने पर विवश हो चली है.
 

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"मम्मी !! चाइ ठंडी हो रही है" पुत्र विक्की के लफ्ज़ कानो में सुनाई पढ़ते ही नीमा वर्तमान में वापस लौट आई "हां बस 5 मिनिट में आती हूँ" वैसे तो वह दोबारा हॉल में नही जाना चाहती थी मगर स्नेहा अन्य कोई हड़कंप ना मचा दे, मजबूरी-वश नीमा को व्यवस्थित हो कर हॉल में आना ही पड़ता है.


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"स्नेहा !! आज से तेरी क्लासस री-स्टार्ट हो रही हैं ना, तो जा फटाफट तैयार हो जा. जब तक मैं तेरे लिए नाश्ता बना देती हूँ" नीमा ने चाइ के कप समेट-ते हुए कहा. वह अपनी बेटी की आँखों में झाँकने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी और जल्द ही उसे अपनी नज़रो से दूर कर देने की अभिलाषी थी.


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"मा !! मैं नामिता से पुच्छ कर बताती हूँ क्यों कि मुझे एक पेंडिंग असाइनमेंट को पूरा करने में उसकी मदद चाहिए" नीमा के कथन के जवाब में ऐसा बोल कर स्नेहा अपने कमरे की ओर चली गयी मगर अपनी दोस्त के ज़िक्र से वह दोबारा अपनी मा का ध्यान अपनी उसी दोस्त के भाई निकुंज की तरफ मोड़ देने में कामयाब रही और अंत-तह नाश्ता करने के पश्चात वह अपने इन्स्टिट्यूट जाने के लिए निकल पड़ी.


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निम्मी को इन्स्टिट्यूट की पार्किंग में खड़ा देख स्नेहा भी अपनी अक्तिवा ठीक उसके बलग में पार्क कर देती है.


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"अरे वाह !! तू तो मुझसे पहले यहाँ पहुँच गयी" गले मिलने के उपरांत स्नेहा बोली.


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"कामिनी !! तेरे कॉल ने आज मेरी नींद खराब कर दी" मुस्कुराते हुए निम्मी शिक़ायत करती है.
 

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"मम्मी !! चाइ ठंडी हो रही है" पुत्र विक्की के लफ्ज़ कानो में सुनाई पढ़ते ही नीमा वर्तमान में वापस लौट आई "हां बस 5 मिनिट में आती हूँ" वैसे तो वह दोबारा हॉल में नही जाना चाहती थी मगर स्नेहा अन्य कोई हड़कंप ना मचा दे, मजबूरी-वश नीमा को व्यवस्थित हो कर हॉल में आना ही पड़ता है.


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"स्नेहा !! आज से तेरी क्लासस री-स्टार्ट हो रही हैं ना, तो जा फटाफट तैयार हो जा. जब तक मैं तेरे लिए नाश्ता बना देती हूँ" नीमा ने चाइ के कप समेट-ते हुए कहा. वह अपनी बेटी की आँखों में झाँकने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी और जल्द ही उसे अपनी नज़रो से दूर कर देने की अभिलाषी थी.


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"मा !! मैं नामिता से पुच्छ कर बताती हूँ क्यों कि मुझे एक पेंडिंग असाइनमेंट को पूरा करने में उसकी मदद चाहिए" नीमा के कथन के जवाब में ऐसा बोल कर स्नेहा अपने कमरे की ओर चली गयी मगर अपनी दोस्त के ज़िक्र से वह दोबारा अपनी मा का ध्यान अपनी उसी दोस्त के भाई निकुंज की तरफ मोड़ देने में कामयाब रही और अंत-तह नाश्ता करने के पश्चात वह अपने इन्स्टिट्यूट जाने के लिए निकल पड़ी.


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निम्मी को इन्स्टिट्यूट की पार्किंग में खड़ा देख स्नेहा भी अपनी अक्तिवा ठीक उसके बलग में पार्क कर देती है.


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"अरे वाह !! तू तो मुझसे पहले यहाँ पहुँच गयी" गले मिलने के उपरांत स्नेहा बोली.


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"कामिनी !! तेरे कॉल ने आज मेरी नींद खराब कर दी" मुस्कुराते हुए निम्मी शिक़ायत करती है.
 

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"क्यों !! सपने में क्या अपनी चूत चुदवा रही थी जो तेरी नींद खराब हो गयी" हंस कर स्नेहा ने भी चुटकी ली.




"अरे अपनी किस्मत में लंड कहाँ !! तू जानती तो है मेरा कोई बाय्फ्रेंड नही" निम्मी ने उदासी भरे लफ़ज़ो में कहा जब कि अपने पिता के विशाल लंड से थूकने के बाद अब तक उसकी चूत के भीतर मीठा-मीठा दर्द बना हुआ था.


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"हां पता है मुझे !! अशोक भी अब तेरी लाइफ में नही है" स्नेहा ने दुख जताया.


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"उस गान्डू का तो नाम ही मत ले !! बीसी ने पहले शिवानी को धोखा दिया और फिर मुझे भी उल्लू बना रहा था" निम्मी भड़कते हुए बोलती है "चल छोड़ !! ये बता आंटी और छोटू कैसे हैं ?" उसने बात को बदल कर पुछा.


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"सब मज़े में हैं !! अच्छा सुन, कल रात मैने निकुंज भैया को देखा" जिस मक़सद से स्नेहा ने निम्मी को वहाँ मिलने बुलाया था आख़िर-कार वह उससे जानकारी हासिल करने की कोशिश में जुट जाती है.


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निम्मी :- "कल रात में !! कितने बजे की बात है और तूने उन्हें कहाँ देखा ?"


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"वो क्या है !! कल रात 10 बजे के लगभग मैने निकुंज भैया को हमारी मल्टी की मेन रोड के सामने से गुज़रते देखा. मैं उस वक़्त रोड पर ही टेहल रही थी" स्नेहा बेहद नॉर्मल टोन में बोली.


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निम्मी :- "10 बजे !! फिर तो ज़रूर तुझे कोई ग़लत फहमी हुई है. उस वक़्त तो हम तीनो भाई-बहेन साथ में डिन्नर कर रहे थे"


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"तुझे पक्का यकीन है कि उस समय निकुंज भैया घर पर ही मौजूद थे ?" स्नेहा ने दोबारा पुछा.


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"अब क्या स्टंप पेपर पर लिख कर दूं !! भैया की ऑफीस टाइमिंग है 11:00 से 7:00 और उसके बाद अगर बहुत अर्जेंट हुआ तभी घर से बाहर निकलते हैं वरना नही" निम्मी ने अपने भाई की दिनचर्या से स्नेहा को रूबरू करवाया.


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"ओह्ह्ह !! फिर तो सच में मुझे ग़लत फ़ेमही हो गयी होगी" स्नेहा का मन तो नही माना लेकिन ज़्यादा पुच्छ-ताच्छ स्वयं उसका ही का नुकसान कर सकती थी "तो फिर और कौन हो सकता जिसने रात भर मा के साथ चुदाई की" वह सोचने पर मजबूर हो उठी और सबसे बड़ी बात कि उसे अपनी मा के इस छिनाल्पन पर क्रोध आना चाहिए था जब की स्नेहा अपने जिस्म में अजीब सा रोमांच भरता महसूस कर रही थी.


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"अब जब यहाँ तक आ ही गये हैं तो क्यों ना इन्स्टिट्यूट का माहॉल भी देख लिया जाए ?" निम्मी ने अपनी अक्तिवा से नीचे उतर कर कहा.


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"हां क्यों नही" अपनी सोच को वहीं विराम देने के पश्चात मायूस स्नेहा उसके साथ चल पड़ती है.


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अपनी बहेन के घर से बाहर जाते ही विक्की ने अपनी मम्मी को अपनी मजबूत बाहों में दबोच लिया.


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"छोड़ विक्की !! मेरा मन नही है" नीमा झुंझला कर कहती है.


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"मगर मेरा तो है ना मम्मी" बोल कर विक्की अपना लोवर अपनी अंडरवेर समेट एक ही झटके में उतार कर दूर फेंक देता है और अपना सोया लंड बल-पूर्वक अपनी मम्मी के कोमल हाथ की मुट्ठी में पड़कवाने का प्रयत्न करता है.
 

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"विक्की मान जा !! मैने कहा ना अभी मेरा मूड नही है" नीमा के अत्यधिक विरोध जताने के बावजूद विक्की ने उसके हाथ की मुठ्ठी को अपने शुषुप्त लंड की गोलाई पर कस लिया और फॉरन अपना लंड मुठियाना आरंभ कर देता है.


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"उफफफ्फ़ दो दिन हो गये हैं मम्मी !! अब और मुझसे सहेन नही हो पाएगा" उसने आह भरी और साथ ही अपने दूसरे हाथ से अपनी मा की दाईं चुचि कठोरता से मसल्ने लगा.


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"तू समझता क्यों नही, छोड़ मुझे !! वरना मैं थप्पड़ मार दूँगी" नीमा ने चिल्ला कर कहा. जहाँ कल तक वह मा अपने बेटे के सुंदर लंड की एक झलक पाने के लिए अपनी लार टपकाती फिरती थी वहीं अभी उसे मानसिक कष्ट हो रहा था. शायद स्नेहा की हृदय-विदारक हरक़त से नीमा बुरी तरह टूट चुकी थी.


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"मगर क्यों ?" विक्की ने थप्पड़ वाली बात सुनते ही अपनी गति-विधियों को तुरंत रोक कर पुछा "जब आप का मन होता है तब क्या मैं आप को मना करता हूँ ?" वह खीज़ा.


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"म .. मेरा मतलब है !! देख ना घर कितना गंदा पड़ा है, मैं सॉफ-सफाई कर लूँ फिर तू जो चाहेगा मैं करूँगी" नीमा की ज़ुबान लड़खड़ाने लगी जब उसने अपने पुत्र का चेहरा क्रोध-वश लाल होते देखा.


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"सफाई की मा की चूत !! मुझे कुच्छ नही सुनना, बस फटाफट अपने कपड़े उतारो" अपनी टी-शर्ट उतारने के उपरांत विक्की पूरी तरह नंगा हो गया.


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"मैं तुझे मना थोड़ी ना कर रही हूँ" अपने बेटे के स्वाभाव में अचानक आए परिवर्तन को महसूस कर नीमा सिहर जाती है "चल नाराज़ ना हो, अभी मैं तेरा लंड चूस कर तुझे झाड़वा देती हूँ. बाद में तू जो कहेगा मैं करने को तैयार रहूंगी" वह फर्श पर अपने घुटनो के बल बैठती हुई बोली.


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"तो फिर ठीक है !! आज रात मैं आप की गान्ड मारूँगा" कह कर विक्की के होंठो पर कुटिल मुस्कान छा गयी.


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"क्या !! नही-नही मैं अपनी गान्ड नही मरवाउन्गि" नीमा ने घबरा कर कहा. विक्की की बातें और तीव्रता से बढ़ती जा रही उसकी माँगे, सब उसकी मा के होश उड़ाने को काफ़ी थी.


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"अब अपने वादे से मूकरो मत मम्मी !! वरना मुझे ज़बरदस्ती करनी पड़ेगी" विक्की अपनी मा पर दबाव बनाते हुए बोला.


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"त .. तेरी हिम्मत कैसे हुई जो तू अपनी मा से इस लॅंग्वेज में बात कर रहा है" नीमा भी थर्रा उठती है.


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"क्यों ना करूँ !! जब आप का मन होता है, अपनी मर्ज़ी से मेरे साथ सब कुच्छ कर लेती हो और आज मेरा मन है तो मना कर रही हो. मुझे आज रात आप की गान्ड मारनी है, मतलब मारनी है" कह कर विक्की अपने पाव पटकते हुए नंगा ही अपने कमरे की ओर प्रस्थान करने लगा और नीमा टुकूर-टुकूर अपनी हैरत भरी निगाहों से उसे जाता देख रही थी.
 
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