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बड़ी बहेन के तने चुचकों की घुंडी ना भीच पाने का गम विक्की ने उन्हे अति-कठोरता से मसल्ने में पूरा किया, हलाकी स्नेहा की चूचियाँ आकार में नीमा से कुच्छ कम थी मगर उनका माँस बेहद टाइट था. विक्की के हाथो की उंगलियाँ तेज़ी से उन्हे पंप करने लगी थी.
नीचे कुँवारी चूत पर भाई के होंठो का कसाव और अन्छुइ चूचियों पर उसके हाथो के दबाव ने स्नेहा को अपने चूतड़ उच्छालने पर मजबूर कर दिया, लगा जैसे वह खुद अपने भाई के मूँह को चोद रही हो.
"भाई" स्नेहा पुरजोर ताक़त से चीखी, अपनी चूत के अन्द्रूनि मार्ग में उसे रस उमड़ता महसूस हुआ "मर गयी" इतना कहते ही जो अवरुद्ध वास्तु उसकी चूत से बहार आने को लालायित थी, किसी फुहार की भाँति सैलाब बन कर निकल पड़ी.
"आहह" स्नेहा के गुदा-द्वार में अजीब सी सिरहन और चूचक जैसे भाले की नोक बन गये. पहली बार जब कोई कुँवारी स्त्री अपने ऑर्गॅज़म को प्राप्त करती है, उस आनंद की कल्पना शब्दो में लिख पाना महज एक चूतियापा ही होगा.
विक्की की सफलता का प्रमाण उसकी आँखों के सामने था, रस की काई मोटी-मोटी धारे वह सीधे अपने गले में उतारने लगा. उसके होंठ बेहद कड़कता से बहेन की जवानी चूसने में मगन थे और जीभ शीघ्र अति-शीघ्र चूत-मुख को रगड़ कर छील्ति जा रही थी.
लगभग पूरे एक मिनिट तक स्नेहा अपनी कमर उठाए झड़ती रही, उसके रति-रस का त्याग होता रहा. सगा भाई भी प्रेम-पूर्वक उसकी चूत सहलाता रहा, चूस्ता रहा, चाट-ता रहा, चुंबनो की झड़ी लगाता रहा और अंत में स्नेहा ने अपनी उखड़ी सांसो को समहालते हुए विक्की को अपने बदन के ऊपर खीच लिया.
"भाई" इससे ज़्यादा वह कुछ ना कह सकी और विक्की के चेहरे को गौर से देखा, जो पूरा स्वयं उसके काम रस से तर था, भीगा था.
"दीदी तू खुश है ना ?" विक्की की छाति के ठीक नीचे उसकी बहेन के स्तन थे, जिनकी कठोरता वह सॉफ महसूस करने लगा. बहेन की चूचियाँ किसी धुकनी के समान धड़क रही थी और वह खुद भी तेज़-तेज़ हंपायी ले रहा था.
"बहुत खुश मेरे भाई" स्नेहा ने अपने होंठ विक्की के होंठो से जोड़ कर उसकी मेहनत का पुरूस्कार उसे प्रदान किया, हलाकी चूत रस के स्वाद से वह वाकिफ़ थी मगर भाई के होंठो से लग कर जैसे उस रस का स्वाद अत्यधिक स्वादिष्ट हो गया था.
"अच्छा भाई !! तुझे कैसा लगा मेरी चूत चाटना ?" स्नेहा ने चुंबन तोड़ा और विक्की के चेहरे को अपने हाथो में थाम कर पुछा.
"मुझसे मत पुच्छ दीदी, मेरे लंड से पुच्छ. देख ना, कैसे दर्द के मारे मेरी जान निकल रही है" विक्की ने कहने के साथ ही अपने कड़क लंड को, स्नेहा की झाड़ चुकी चूत से रगड़ना शुरू किया तो जैसे दोनो ही पिघल कर रह गये.
"ना भाई !! ऐसा ग़ज़ब ना करना. रुक मैं कुच्छ करती हूँ" उत्तेजना-वश विक्की कहीं उसकी कुँवारी चूत के अंदर अपना विशाल लॉडा ना ठूंस दे, घबरा कर स्नेहा ने उसे अपने ऊपर से हटने का इशारा किया और खुद भी बेड पर उठ कर बैठ गयी.
नीचे कुँवारी चूत पर भाई के होंठो का कसाव और अन्छुइ चूचियों पर उसके हाथो के दबाव ने स्नेहा को अपने चूतड़ उच्छालने पर मजबूर कर दिया, लगा जैसे वह खुद अपने भाई के मूँह को चोद रही हो.
"भाई" स्नेहा पुरजोर ताक़त से चीखी, अपनी चूत के अन्द्रूनि मार्ग में उसे रस उमड़ता महसूस हुआ "मर गयी" इतना कहते ही जो अवरुद्ध वास्तु उसकी चूत से बहार आने को लालायित थी, किसी फुहार की भाँति सैलाब बन कर निकल पड़ी.
"आहह" स्नेहा के गुदा-द्वार में अजीब सी सिरहन और चूचक जैसे भाले की नोक बन गये. पहली बार जब कोई कुँवारी स्त्री अपने ऑर्गॅज़म को प्राप्त करती है, उस आनंद की कल्पना शब्दो में लिख पाना महज एक चूतियापा ही होगा.
विक्की की सफलता का प्रमाण उसकी आँखों के सामने था, रस की काई मोटी-मोटी धारे वह सीधे अपने गले में उतारने लगा. उसके होंठ बेहद कड़कता से बहेन की जवानी चूसने में मगन थे और जीभ शीघ्र अति-शीघ्र चूत-मुख को रगड़ कर छील्ति जा रही थी.
लगभग पूरे एक मिनिट तक स्नेहा अपनी कमर उठाए झड़ती रही, उसके रति-रस का त्याग होता रहा. सगा भाई भी प्रेम-पूर्वक उसकी चूत सहलाता रहा, चूस्ता रहा, चाट-ता रहा, चुंबनो की झड़ी लगाता रहा और अंत में स्नेहा ने अपनी उखड़ी सांसो को समहालते हुए विक्की को अपने बदन के ऊपर खीच लिया.
"भाई" इससे ज़्यादा वह कुछ ना कह सकी और विक्की के चेहरे को गौर से देखा, जो पूरा स्वयं उसके काम रस से तर था, भीगा था.
"दीदी तू खुश है ना ?" विक्की की छाति के ठीक नीचे उसकी बहेन के स्तन थे, जिनकी कठोरता वह सॉफ महसूस करने लगा. बहेन की चूचियाँ किसी धुकनी के समान धड़क रही थी और वह खुद भी तेज़-तेज़ हंपायी ले रहा था.
"बहुत खुश मेरे भाई" स्नेहा ने अपने होंठ विक्की के होंठो से जोड़ कर उसकी मेहनत का पुरूस्कार उसे प्रदान किया, हलाकी चूत रस के स्वाद से वह वाकिफ़ थी मगर भाई के होंठो से लग कर जैसे उस रस का स्वाद अत्यधिक स्वादिष्ट हो गया था.
"अच्छा भाई !! तुझे कैसा लगा मेरी चूत चाटना ?" स्नेहा ने चुंबन तोड़ा और विक्की के चेहरे को अपने हाथो में थाम कर पुछा.
"मुझसे मत पुच्छ दीदी, मेरे लंड से पुच्छ. देख ना, कैसे दर्द के मारे मेरी जान निकल रही है" विक्की ने कहने के साथ ही अपने कड़क लंड को, स्नेहा की झाड़ चुकी चूत से रगड़ना शुरू किया तो जैसे दोनो ही पिघल कर रह गये.
"ना भाई !! ऐसा ग़ज़ब ना करना. रुक मैं कुच्छ करती हूँ" उत्तेजना-वश विक्की कहीं उसकी कुँवारी चूत के अंदर अपना विशाल लॉडा ना ठूंस दे, घबरा कर स्नेहा ने उसे अपने ऊपर से हटने का इशारा किया और खुद भी बेड पर उठ कर बैठ गयी.