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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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बड़ी बहेन के तने चुचकों की घुंडी ना भीच पाने का गम विक्की ने उन्हे अति-कठोरता से मसल्ने में पूरा किया, हलाकी स्नेहा की चूचियाँ आकार में नीमा से कुच्छ कम थी मगर उनका माँस बेहद टाइट था. विक्की के हाथो की उंगलियाँ तेज़ी से उन्हे पंप करने लगी थी.


नीचे कुँवारी चूत पर भाई के होंठो का कसाव और अन्छुइ चूचियों पर उसके हाथो के दबाव ने स्नेहा को अपने चूतड़ उच्छालने पर मजबूर कर दिया, लगा जैसे वह खुद अपने भाई के मूँह को चोद रही हो.


"भाई" स्नेहा पुरजोर ताक़त से चीखी, अपनी चूत के अन्द्रूनि मार्ग में उसे रस उमड़ता महसूस हुआ "मर गयी" इतना कहते ही जो अवरुद्ध वास्तु उसकी चूत से बहार आने को लालायित थी, किसी फुहार की भाँति सैलाब बन कर निकल पड़ी.


"आहह" स्नेहा के गुदा-द्वार में अजीब सी सिरहन और चूचक जैसे भाले की नोक बन गये. पहली बार जब कोई कुँवारी स्त्री अपने ऑर्गॅज़म को प्राप्त करती है, उस आनंद की कल्पना शब्दो में लिख पाना महज एक चूतियापा ही होगा.


विक्की की सफलता का प्रमाण उसकी आँखों के सामने था, रस की काई मोटी-मोटी धारे वह सीधे अपने गले में उतारने लगा. उसके होंठ बेहद कड़कता से बहेन की जवानी चूसने में मगन थे और जीभ शीघ्र अति-शीघ्र चूत-मुख को रगड़ कर छील्ति जा रही थी.


लगभग पूरे एक मिनिट तक स्नेहा अपनी कमर उठाए झड़ती रही, उसके रति-रस का त्याग होता रहा. सगा भाई भी प्रेम-पूर्वक उसकी चूत सहलाता रहा, चूस्ता रहा, चाट-ता रहा, चुंबनो की झड़ी लगाता रहा और अंत में स्नेहा ने अपनी उखड़ी सांसो को समहालते हुए विक्की को अपने बदन के ऊपर खीच लिया.


"भाई" इससे ज़्यादा वह कुछ ना कह सकी और विक्की के चेहरे को गौर से देखा, जो पूरा स्वयं उसके काम रस से तर था, भीगा था.


"दीदी तू खुश है ना ?" विक्की की छाति के ठीक नीचे उसकी बहेन के स्तन थे, जिनकी कठोरता वह सॉफ महसूस करने लगा. बहेन की चूचियाँ किसी धुकनी के समान धड़क रही थी और वह खुद भी तेज़-तेज़ हंपायी ले रहा था.


"बहुत खुश मेरे भाई" स्नेहा ने अपने होंठ विक्की के होंठो से जोड़ कर उसकी मेहनत का पुरूस्कार उसे प्रदान किया, हलाकी चूत रस के स्वाद से वह वाकिफ़ थी मगर भाई के होंठो से लग कर जैसे उस रस का स्वाद अत्यधिक स्वादिष्ट हो गया था.


"अच्छा भाई !! तुझे कैसा लगा मेरी चूत चाटना ?" स्नेहा ने चुंबन तोड़ा और विक्की के चेहरे को अपने हाथो में थाम कर पुछा.


"मुझसे मत पुच्छ दीदी, मेरे लंड से पुच्छ. देख ना, कैसे दर्द के मारे मेरी जान निकल रही है" विक्की ने कहने के साथ ही अपने कड़क लंड को, स्नेहा की झाड़ चुकी चूत से रगड़ना शुरू किया तो जैसे दोनो ही पिघल कर रह गये.


"ना भाई !! ऐसा ग़ज़ब ना करना. रुक मैं कुच्छ करती हूँ" उत्तेजना-वश विक्की कहीं उसकी कुँवारी चूत के अंदर अपना विशाल लॉडा ना ठूंस दे, घबरा कर स्नेहा ने उसे अपने ऊपर से हटने का इशारा किया और खुद भी बेड पर उठ कर बैठ गयी.
 

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"तूने मेरा दर्द मिटाया भाई, ला मैं तेरा मिटाती हूँ" स्नेहा का आशय समझ कर विक्की के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी "लेट कर चूस दीदी, साथ में मैं भी तेरी चूत से खेलूँगा" वह बोला.


स्नेहा :- "और अभी जो इतनी देर तक मेरी चूत से चिपका पड़ा था, मन नही भरा क्या तेरा ?"


"कभी भरेगा भी नही दीदी. फिकर ना कर, मैं उंगली अंदर नही डालूँगा बस ऊपर-ऊपर से थोड़ी देर सहलाउन्गा" विकी की बात से सुंतुष्ट हो कर स्नेहा ने हामी भर दी और पुनः लेट कर अपने भाई के गर्माते लौडे को अपने कोमल हाथ से हिलाने लगी.


विक्की के लिए उसने अपनी टाँगो की जड़ काफ़ी हद्द तक खोल रखी थी और जल्द ही दोनो अपने कार्य में जुट गये.


लंड को जड़ से पकड़ कर स्नेहा ने रस उगलते सुपाडे पर अपनी खुरदूरी जीभ से चाटना शुरू किया तो सिसक कर विक्की ने भी उसकी चूत को अपनी मुठ्ठी में भींचा.


कुच्छ देर अपनी जीभ को गोलाकार आक्रति में सुपाडे पर घुमाने के पश्चात स्नेहा ने लंड को मुठियाना शुरू किया और सुपाडा समेत आधा लंड अपने मूँह में प्रवेश करवा लिया. बिना किसी जानकारी के भी वह लंड की सतह पर अपना मूँह तेज़ी से ऊपर-नीचे कर रही थी.


"तेरी चूत तो टाइट है ही दीदी, तेरा मूँह भी बेहद गरम है. लग रहा है जैसे चूत की फांकों के भीतर हो" विक्की ने अपनी बहेन की हौसला-अफ़ज़ाइ की तो स्नेहा ने कठोरता से लॉडा चूसना आरंभ कर दिया.


लंड की जड़ मुठियाने से लगातार सुपाडा खाल के अंदर-बाहर होने लगा था और स्नेहा मूँह के भीतर कभी उस पर अपनी जीभ घुमाने लगती तो कभी कड़क होंठो से बलपूर्वक चूसना शुरू कर देती, विक्की को दोहरे आनंद की प्राप्ति हो रही थी.


स्नेहा की चूत के दाने ने संवेदनशील हो कर वापस अपना सर ऊपर उठाया और इस बार विक्की के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच फस कर दम तोड़ने लगा.


"दीदी मैं करीब हू" जाने कब से विक्की खुद पर नियंत्रण रखे था लेकिन आगे कब तक रख पाता, ज्यों ही स्नेहा के मूँह का कसाव प्रचंड हुआ, वह झाड़ पड़ा और साथ ही भाई के वीर्य का स्वाद मूँह में आते ही, स्नेहा ने भी दोबारा पानी छोड़ दिया.


अनेक प्रकार की कामुक चीखों ने कमरा दहला दिया और शुरुआत हुई उस पाप की, जो इंसानी समझ में सिवाए कलंक के, कुच्छ और ना था.
 

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पापी परिवार--57





ऑफीस के बाथरूम में दीप अपनी छोटी बेटी निम्मी के साथ नहाने में व्यस्त था और तभी रेस्टरूम में रखा उसका सेल बजने लगा.


दोनो शवर के नीचे नग्न खड़े एक दूसरे के होंठो का रस्पान कर रहे थे, निम्मी तो पूर्ण-रूप से मदहोशी का शिकार थी मगर दीप ने अपने सेल की धुन पहचान ली.


"बेटा !! अंदर मेरा सेल बज रहा है, मैं एक मिनिट में आया" दीप ने उस गहरे चुंबन को तोड़ा और रेस्टरूम में जाने लगा.


"डॅड !! प्लीज़ जल्दी आना" निम्मी ने कदम बढ़ाते दीप का हाथ थाम कर कहा. पिता ने देखा, उसकी बेटी को उस अखंड चुंबन के टूटने का बेहद अफ़सोस है.


दीप दोगुनी तेज़ी से पलट कर निम्मी के करीब आया "बजने दे, बाद में बात कर लूँगा" उसने अपनी वृहद बाहें फैलाई और अत्यंत खुशी से अभिभूत, उसकी बेटी उनमें समा कर क़ैद हो गयी.


"ओह्ह्ह्ह निम्मी !! जाने क्यों मैं पल भर के लिए भी तुझसे अलग नही रह पाता" दीप ने बलपूर्वक उसे दबोचा, उसके दोनो हाथ बेटी के मांसल व गीले चूतड़ पर कस चुके थे.


"उफफफफ्फ़ !! मैं भी डॅड" अपने पिता के हाथो की वास्तविक स्थिति महसूस कर निम्मी सिसक उठी, वह खुद अपनी चूत का मुलायम घर्षण पिता के अध्खडे लंड को, पुनः जाग्रत करने के उद्देश्य में भिड़ चुकी थी.


दीप अत्यधिक कठोरता से चुतडो के दोनो पाट भींचता और नियमित अंतराल से अपना हाथ उनकी गहरी घाटी में घुसाने लगता, नतिजन उसकी उंगलियाँ यादा-कदा बेटी के अती-संवेदनशील अन्छुए गुदा-द्वार से टकरा जाती और दोनो के नंगे बदन बुरी तरह काँप उठते.


जीभ का जीभ से जुड़ाव, छातियों का आपसी टकराव, चूत पर लंड का लिसलिसा घर्षण और गुदा-द्वार में उंगलियों का भेदन. जल्द ही दोनो असहनीय कामवासना के शिखर की तरफ प्रस्थान करने लगे थे.


दीप ने दोबारा चुंबन तोड़ा "निम्मी" वह अपनी बेटी का नाम पुकारने लगा जो उस वक़्त अपनी आँखें बंद किए, उत्तेजना के भंवर में अनगिनत गोते खा रही थी.


"ह्म्‍म्म" निम्मी ने बंद पलके खोली और काफ़ी लो वाय्स में जवाब दिया.


"और चुदेगि ?" डीप ने अपनी आँखों का कॉंटॅक्ट बेटी की आँखों से जोड़ कर पुछा और अपनी मिड्ल लोंग फिंगर को निम्मी की गंद के छेद के अंदर ठेलने की कोशिश की.


"औछ्ह डॅड !! दुख़्ता है" शरम और पीड़ा के एहसास मात्र से निम्मी दोहरी हो गयी, खुद ब खुद उसके बदन का सारा भार एडियों से हटा कर, पंजो के बल ऊपर उठने लगा.


"बोल ना बेटी, लेगी क्या डॅडी का लंड फिर से अपनी चूत में ?" निम्मी की आशय स्थिति का पूर्ण आनंद लेते हुए दीप ने अपना अश्लील सवाल दोहराया.
 

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निम्मी का चेहरा सुर्ख लाल था, वासना और लाज का मिश्रण उसे और भी ज़्यादा खूबसूरत बनाता जा रहा था. हलाकी दोनो बाप-बेटी अब काफ़ी खुल चुके थे मगर निम्मी से कुच्छ बोलते नही बन पाया और स्वतः ही उसकी पलकें झुकती चली गयी.


"क्या तुझे मज़ा नही आ रहा ?" दीप ने अपनी लंबी जिह्वा का इस्तेमाल करते हुए उसका दाहिना गाल चाटा, वह खुद बेहद उत्तेजित हो चुका था और इसका प्रमाण उसका विशाल लॉडा बेटी की रस छोड़ती चूत पर लगातार ठोकर मारते हुए दर्शा रहा था.


"डॅड" अचानक निम्मी के बंद होंठ फड़फडाए "जैसा आप को उचित लगे" गुदा के कुंवारे छेद पर अपने पिता की मोटी उंगली के असन्ख्य प्रहार ने उसे बोलने पर मजबूर कर दिया था.


"मेरा तो बहुत मन है मगर मैं तेरे मूँह से सुनना चाहता हूँ, बोल क्या दोबारा चुदेगि अपने बाप से ?" इस बार दीप की कोशिश रंग लाई और उसकी उंगली लगभग 2 इंच तक बेटी के नर्म गुदा-द्वार में घुस गयी.


"आहह डॅड !! बोला तो मैने जो आप चाहते हो कर लो" निम्मी ने अपनी सहमति जताई, उसके लिए अब एक भी क्षण रुक पाना नामुमकिन था.


"तू बोलेगी तो चोदुन्गा वरना नही" दीप ने नटखते अंदाज़ में कहा, अब वह भी कहाँ रुक सकता था.


निम्मी समझ गयी "उसका पिता उसके मूँह से क्या सुनना चाहता है ?" उसने पुरजोर सह से अपनी शरम का त्याग किया, पिता की आँखों से अपनी रक्त-रंजीत आँखें जोड़ी और टूट कर बिखर गयी.


"हां डॅडी !! छोड़ो मुझे, किसी रंडी की तरह मसल डालो" वह चीखी और इसके फॉरन बाद दीप ने अपनी उंगली को उसके गुदा-द्वार से बाहर खीच लिया.


"रंडी की तरह नही निम्मी, अपनी बीवी की सौतन की तरह" मुस्कुरकर उसने बेटी के होंठो को कठोरता चूसा और तत्पश्चात उसे पलटा कर बाथरूम की दीवार से चिपका दिया.


"शवर का टॅप पकड़ ले, वरना गिर जाएगी" दीप ने समझाया और ज्यों ही निम्मी ने झुक कर टॅप को अपने हाथो से पकड़ा, उसके चूतड़ अनुमान से कहीं ज़्यादा ऊपर उठ कर दीप के लौडे को अपनी तरफ आकर्षित करने लगे.


यह नज़ारा देख दीप के लंड ने ठुमकीयाँ लेनी शुरू कर दी, कुच्छ क्षण तक वह अपनी बेटी के मांसल चूतड़ निहारता रहा और फिर नीचे ज़मीन पर बैठ गया.


निम्मी को अपने चुतडो पर पिता के कठोर हाथ महसूस हुए तो उसने अपना सर घुमा कर नीचे देखा "उफफफ्फ़" वह तड़प उठी.


दीप ने उसके चुतडो के पट खोल कर अपनी जीभ दरार के अंदर फेरनी शुरू कर दी थी और जल्द ही वह उसकी गान्ड के छेद से लेकर, उसकी चूत के दाने तक, पूरी लंबाई में अपनी जिह्वा घुमाने लगा.


निम्मी के अत्यधिक गरम होने का संकेत उसे बेटी की जाँघो पर बहते, उसके रति-रस को देख कर हुआ परंतु जाने क्यो वह अब तक उसकी योनि चाटने में मगन था. शायद काम सुख का सही अर्थ ही यही होगा होता.


"आईईई डॅडी !! अब बस भी करो, मैं मर जाउन्गि" हार-कर निम्मी पुनः चीख उठी.
 

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निम्मी के इतनी ज़ोर से चीखने का दीप पर लेश मात्र भी असर नही पड़ा और वह अपने कार्य में पूरी निपुणता, ईमानदारी से जुटा रहा. उसकी बेटी के चूतड़ बुरी तरह हिल रहे थे जैसे उसके बदन में बिजली के करारे झटके लग रहे हों.


"ओह्ह्ह डॅडी !! प्लीज़ मान जाओ" असह्नीय तकलीफ़ से निम्मी बिलख उठी. हलाकी उसे पता था, उसका पिता सनकी है मगर महा-ठरकी भी होगा, ऐसी आशा उसे कतयि ना थी. उसका रोम-रोम इस गहेन पीड़ा के अनुभव से सिहरता जा रहा था.


अनगिनत रंडियों के साथ सोने के बावजूद दीप ने उनमें से किसी की भी चूत पर अपना मूँह नही लगाया था और वाइल्ड सेक्स की, उसकी चाहत आज उसकी सग़ी छोटी बेटी के साथ पूरी हो रही थी. वह निम्मी की चीखों की परवाह किए बगैर उसकी जवानी को तब तक चूस्ता रहा, निचोड़ता रहा जब तक उसकी बेटी अपने चरम के बिल्कुल नज़दीक नही पहुच गयी.


"बस अब ठीक है" निम्मी को उसके ऑर्गॅज़म के बेहद करीब पहुचने के पश्चात अचानक दीप ने उसकी चूत से अपना मूँह हटाया और ज़मीन से उठ कर खड़ा हो गया.


निम्मी जो किसी भी वक़्त झाड़ सकती थी, दीप के उसे बीच मजधार में यूँ तड़प्ता छोड़ देने से से, उसकी आँखों में क्रोध की ज्वाला जल उठी और फॉरन पलट कर उसने अपने पिता के निचले होंठ पर अपने नुकीले दाँत बेरहमी से गढ़ा दिए.


"हमेशा सताते हो !! इतना भी नही समझते, मुझे तकलीफ़ होती होगी" निम्मी ने उसके होंठ पर ज़ुल्म करने के बाद कहा, दांतो के प्रहार से पिता का निचला होंठ काफ़ी ज़ख़्मी हो गया था.


"इसी तकलीफ़ के बाद तो असली आनंद मिलता है निम्मी !! देख तूने मुझे कितनी ज़ोर से काटा लेकिन मैने कोई शिक़ायत नही की. अरे चुदाई का असली मज़ा तो दर्द सहने में है" दीप मुस्कुराते हुए बोला और निम्मी का गुस्सा शांत होते ही उसे अपनी ग़लती पर अफ़सोस होने लगा.


"आइ आम सॉरी डॅडी !! मुझे इतनी ज़ोर से काटना नही चाहिए था" कहते हुए निम्मी ने माफी स्वरूप बड़े प्यार से पिता के चोटिल होंठ को चूसना शुरू किया तो दीप का अंतर-मॅन भी गद-गद हो उठा.


कितना आनंद-तिरेक नज़ारा था, एक पिता की बाहों में क़ैद उसकी जवान बेटी, दोनो पूर्ण नग्न, पानी की हल्की-हल्की फुहारें और होंठो का अकल्प्नीय चुंबन, वाकाई कल्पना से परे द्रश्य.


बुझते अंगारों में वापस चिंगारी भड़क उठी थी और अब ना तो चैन निम्मी को था और ना ही दीप को.


पिता ने पुत्री के होंठ चूस्ते हुए अपना विशाल लॉडा हाथ से पकड़ा और सूजा सुपाडा उसकी गीली चूत की फांकों पर रगड़ने लगा. फिर अगले ही क्षण एक हाथ से बेटी की कमर को जाकड़ कर उसने अचूक निशाना साध दिया.


एक झटके में लंड का आधा हिस्सा किसी मिज़ाइल की तरह चूत की संकरी दीवारें चीरता हुआ अंदर जा घुसा और निम्मी के साथ-साथ दीप की आह भी बाथरूम में गूँज उठी.


"उफफफफफफ्फ़" दोनो कराहे. जहाँ निम्मी अपना कुँवारा-पन खोने के बावजूद पीड़ा का अनुभव करने लगी वहीं दीप को अपनी बेटी की चूत की कसावट बेहद आनंद-दायक लगी.
 

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दीप ने प्रथम झटके के उपरांत ही निम्मी की चूचियों पर अपने हाथो का क़ब्ज़ा जमाया और जिससे उनके बीच चल रहा चुंबन टूट गया "बेटी तकलीफ़ ज़्यादा हो, तो थोड़ी देर रुकु ?" उसने अगला धक्का मारने से पूर्व निम्मी की राय जान-नी चाही.


"डॅड !! मेरी पुसी की झिल्ली तो फॅट चुकी है फिर भी इतना दर्द क्यों हो रहा है ?" शरम-वश यह सवाल पुच्छने के पश्चात निम्मी का चेहरा वर्तमान से कहीं ज़्यादा लाल हो उठा. चूत की जगह पुसी शब्द का उच्चारण भी वह मुश्क़िल से कर पाई थी.


"तेरी पुसी को रेस्ट नही मिला तभी दर्द हो रहा होगा मगर तू फिकर ना कर, तेरे डॅडी के पास इस दर्द की बेहद सटीक दवा है" दीप की शैतानी मुस्कान जाग्रत हुई और अगले ही पल उसकी कमर ने दूसरा झटका खाया, जो पहले से कहीं ज़्यादा दर्दनाक और घातक था.


"आईईई मम्मी !! मर गयी" बेटी की चूत के साथ ही एक पिता ने उसके अनुमान की भी धज्जियाँ उड़ा दी और ताबड-तोड़ धक्को का सिलसिला चल निकला.


जल्द ही पिता का विशाल लंड बेटी की चूत के अंदर गहरा और गहरा जाने लगा. मोटे सुपाडे के कुच्छ जघन्य प्रहार तो सीधे निम्मी के गर्भाशय को छु रहे थे.


"अह्ह्ह्ह डॅडी !! अपनी बेटी पर कुच्छ तो रहम खाओ" निम्मी की सहेन-शक्ति जवाब देने लगी, रह-रह कर उसे लगता कहीं वह बेहोश ना हो जाए परंतु दीप तो जैसे वासना रूपी राक्षस बन चुका था.


वह पल भर को नही रुका, जवान चूत का सन्कीर्न मुख उसके लंड की चोटों से खुल चुका था. यौवन से भरपूर अपनी बेटी के गोल-मटोल मम्मे अपने कठोर हाथो में वह किसी गुब्बारे की तरह महसूस कर रहा था.


अत्यधिक पीड़ा व उत्तेजना में निम्मी अपना निचला होंठ दांतो में दबाए रीरियाती रही. उसकी चूत की कोमल फाँकें पिता के आक्रमणकारी लंड की मोटाई के कारण बुरी तारह फैल कर लंड को जकड़े हुए थी और जिस रफ़्तार से लॉडा उसकी चूत के अंदर-बाहर होता, उसे लग रहा था जैसे उसकी चूत का माँस भी लंड के साथ ही ताल से ताल मिला का खिंचता जा रहा हो.


लगातार होते घर्षण से जल्द ही चूत के अंदर रस की बहार उमड़ने लगी थी और जो अब कभी भी फूटने को तैयार थी, जैसे ही दीप ने अपना एक हाथ मम्मे से हटाकर उसका अंगूठा निम्मी के गुदा-द्वार के अंदर ठेलने का प्रयास किया, उसकी बेटी किसी भी अग्रिम-चेतावनिके झाड़ पड़ी.


"फाड़ दो !! और अंदर डॅडी और अंदर" रंडी में परिवर्तित दीप की बेटी के अंतिम लफ्ज़ यही थे.



निम्मी की चूत मन्त्रमुग्ध कर देने वाले स्खलन के सुखद एहसास मात्र से फॅट पड़ी और सुंकुचित हो कर इतना रस उगलती है, जिसे उसके पिता का विशाल लॉडा चूत के भीतर फसे होने के बावजूद भी बाहर निकलने से नही रोक पाता.


दीप के धक्को की रफ़्तार निरंतर जारी रही और वह कोशिश करता है कि इस बार अपनी बेटी को दो स्खलनो का सुख प्रदान कर सके. मन में ऐसा विचार आते ही उसके लंड की नसों में प्रचंड रक्त-स्ट्राव होने लगा और बेटी के चुचक की घुंडी मसलते हुए वह उसकी सोई कामवासना को दोबारा जगाने में जुट गया.


"ओह्ह्ह डॅड !! पूरे जानवर हो आप" निम्मी अपने पिता की चोदन क्षमता की कायल हो चुकी थी. कभी पिता का उसे लाड करना और फिर अचानक से दर्द देना. आज पहली बार उसने जाना था कि सेक्स में रिश्ते, मर्यादा, शरम इत्यादि का कोई महत्व नही. सर्वोपरि सिर्फ़ काम-वासना है.


"बड़ी जल्दी समझ गयी तू अपने डॅड को, खेर अभी हम दोनो ही जानवर हैं" दीप बोला. चूत के एक बार झाड़ जाने के उपरांत अन्द्रूनि मार्ग पर चिकनाई बढ़ गयी थी जिससे उसका लॉडा बिना किसी रोक-टोक के सीधे गहराई में चोट करने लगा था.


"हे हे !! मैं थोड़ी हू जानवर" निम्मी मुस्कुराइ, दीप को प्रसन्नता हुई बेटी की जघन्य पीड़ा ख़तम होने से.
 

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"देख !! अभी तू आगे को झुकी हुई है और तेरे पिछे मैं तुझ पर झुका हुआ हूँ. हम दोनो ही चुदाई में मगन हैं, तो बता जानवर हुए या नही ?" दीप की बेशरम समीक्षा से हैरान निम्मी की आँखें बड़ी हो गयी "इसे डॉगी पोज़िशन कहते हैं !! भाओ-भाओ" वह हँसने लगा. यदि उसने खुद को कुत्ता कहा था तो निम्मी को भी कुतिया की उपाधि से नवाज़ा.


"जानवर के साथ पूरे पागल भी हो" उत्साह से परिपूर्ण निम्मी का मन और तंन खुशी से झूम रहा था, इतने आनंद की कल्पना उसने बीते जीवन में कभी नही की थी.


"हम ने अपना रिश्ता कलंकित किया है निम्मी मगर क्या तू इससे खुश है ?" दीप ने इस सवाल से अपनी बेटी के अंतर-मन की सोच जान-नी चाही और फॉरन निम्मी ने अपना सर हिला कर, हां में इसकी स्वीकृिती दे दी.


"डॅड !! मैं इस रिश्ते से बहुत खुश हूँ और आप फिकर ना करो, हम हमेशा दुनिया की नज़र में एक बाप-बेटी ही रहेंगे भले चाहे बंद कमरे में पति-पत्नी की तरह रहें" निम्मी ने ज़ाहिर किया कि वह अपने और अपने पिता के बीच चल रहे अनाचार को दुनिया की नज़र में कभी नही आने देगी और जब भी मौका मिलेगा दोनो खुल कर चुदाई किया करेंगे.


"बस मुझे तुझसे यही उम्मीद थी. हमे पूरा ख़याल रखना होगा, लोगो की नज़र में हमारा रिश्ता पाक-सॉफ ही बना रहे बाकी मैं तुझे एक पत्नी होने के सारे हक़ देता हूँ" दीप ने ऐलान किया.


चुदाई के बीच चल रहे इस कामुक वार्तालाप का यह नतीजा निकला कि दोनो बाप-बेटी अब सिर्फ़ काम-क्रीड़ा पर ही अपना ध्यान केंद्रित करने लगे.


पिच्छले आधे घंटे से दीप का मूसल लगातार बेटी की चूत के अंदर-बाहर हो रहा था और ज्यों ही पिता ने अपने धक्को की रफ़्तार में तेज़ी लाई, निम्मी की चूत का संवेदनशील भंगूर सूजने लगा.


"डॅड इस बार अंदर ही डिसचार्ज होना, मैं महसूस करना चाहती हू" अचानक से निम्मी के दिल में तमन्ना जागी.


"मगर क्या यह सेफ रहेगा ?" दीप खुद भी यही चाहता था मगर बेटी की पर्मिशन के बिना उसे ऐसा करने में दिक्कत थी और अगर वह निम्मी की चूत के अंदर अपना वीर्य-पात करता भी, तो भी थोड़ी देर पहले खिलाई गयी ई-पिल की गोली उसे अनचाहे गर्भ से मुक्त रखती.


"डॅड !! आप मुझे कभी हर्ट नही होने दोगे, मैं जानती हूँ. तो अंदर ही फिनिश कर दो" निम्मी की माँग के उपलक्ष में दीप ने इस खेल के अंतिम पड़ाव की तरफ प्रस्थान किया और गहरे धक्को के साथ जल्द ही बेटी को दोबारा चरम के शिखर पर पहुचाने का प्रयत्न करने लगा.


निम्मी की साँसें उसके कंट्रोल से बाहर होती हैं और गुदा-द्वार में उठती सिरहन के एहसास-मात्र से ही वह रस छोड़ना शुरू कर देती है "आह डॅड !! मैं गयी" वह चीखी और इस बार का ऑर्गॅज़म पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा आनंददाई था.


बेटी की चूत के गरम लावे ने दीप की टांगे कंप्वा दी और वह अपने सुपाडे को उसके गर्भाशय से सटाकर हौले-हौले वीर्य की दर्जनो धाराएँ अंदर उगलने लगा.


कुच्छ देर पश्चात बाथरूम में आया उत्तेजना का तूफान लगभग थम चुका था, दोनो बाप-बेटी के पापी मिलन का सबूत, निम्मी की जाँघो से बह कर नीचे फर्श से होते हुए, नाली के अंदर प्रवेश करने लगा.


दीप ने अपना लंड चूत से बाहर खींचा, अंदर तो जैसे रस का सैलाब भरा हुआ था. यक़ीनन दोनो ही पूर्ण-रूप से संतुष्ट हो चुके थे.


शवर का टॅप पकड़े झुकी निम्मी अब कहीं जा कर अपनी कमर सीधी कर पाई थी और जैसे ही वह खड़ी हुई, दीप ने फॉरन उसे पलटा कर अपने सीने से चिपका लिया.


"डॅड !! चाहो तो शवर बढ़ा दो" निम्मी ने अनुरोध किया. शवर के बढ़ते ही भर-भर करता पानी दोनो के तंन का मैल धोने में जुट गया मगर मन का क्या, अनाचार में लिप्त जो आज के बाद शायद कभी सॉफ नही हो पाना था.


निम्मी ने अपने पिता को नहलाया और दीप ने बेटी के अंग धोए और जल्द ही वे स्नान समाप्ति के पश्चात रेस्टरूम में दाखिल हो गये लेकिन अब भी कपड़ो के बंधन से आज़ाद थे.


दीप ने बिस्तर पर रखा अपना सेल उठाया, तो जाना उसके दोस्त जीत के 7 मिस कॉल्स थे और जिसे देखते ही उसकी सारी खुशी, मानो गम में तब्दील हो चुकी थी.



बेटी के साथ संपन्न हुई घमासान चुदाई की खुमारी छटने से पूर्व ही डीप का खुशनुमा चेहरा, गहेन चिंता में परिवर्तित होने लगा और वह सोच में पड़ा गया कि जीत को रिटर्न कॉल किया जाए या नही.


रह-रह के उसकी आँखों में दोस्त की बेटी तनवी की छिनाल मूरत उभरने लगती है और तत-पश्चात उसका ध्यान अपनी बेटी निम्मी के नग्न बदन में उलझ कर रह जाता है, जो वॉर्डरोब से अटॅच मिरर के सामने खड़ी, अपने गीले बाल सुलझा रही थी.


यह रमणीय दृश्य देख फॉरन दीप के मष्टिशक में तनवी जैसी औरत को लेकर कुच्छ विचार घर करने लगते हैं.


आख़िर क्यों उसे, उसके घर बहू बन कर नही आना चाहिए :-
 

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यह रमणीय दृश्य देख फॉरन दीप के मष्टिशक में तनवी जैसी औरत को लेकर कुच्छ विचार घर करने लगते हैं.


आख़िर क्यों उसे, उसके घर बहू बन कर नही आना चाहिए :-


(1) उसकी पत्नी कम्मो बेहद सीधी एवं घरेलू महिला है व दिल की कमज़ोर भी और वह कभी नही चाहेगी, उसकी बहू उसका विश्वास तोड़े या परिवार की इज़्ज़त को सरे बाज़ार नीलाम करे.


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(2) बीमार रघु की देखभाल का जिम्मा भी तनवी को नही सौंपा जा सकता क्यों कि उसमें समर्पण की भावना नही है.


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(3) निकुंज के लिए लड़की उसके पिता ने ढूंढी है और यदि कल को कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो ज़िम्मेदार भी उसका पिता ही माना जाएगा.


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(4) बड़ी बेटी निक्की के भोलेपन और सभ्य विचार-धारा से तनवी का मेल खाना असंभव है.


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(5) शिवानी को दीप ने रघु के लिए पसंद किया क्यों कि वह उसे ठोक-बजा कर परख चुका था, उसके मन से भी और तंन से भी. भले शादी संपन्न होने के बाद वह तनवी की जेठानी कहलाती मगर इज़्ज़त उसे दो-कौड़ी की भी नसीब नही हो पानी थी.


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(6) 18 बरस की यौवन से भरपूर नारी उसकी छोटी बेटी निम्मी, किसी भी मर्द के होश उड़ा देने में सक्षम थी और सबसे बड़ी बात, स्वयं दीप का दिल भी उस पर पूर्ण-रूप से फिदा हो चुका था.


यक़ीनन निम्मी का चंचल स्वाभाव, शातिर तनवी से उसका मेल बढ़ने में मददगार साबित होता और इसके पश्चात तनवी, बाप-बेटी के बीच पनपे पापी प्यार को चुटकियों में समझ जाती या निम्मी को अपने सानिध्य में भी ले सकती है.


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(7) खुद दीप के उतावले-पन ने तनवी को उसके खुश-हाल घर का रास्ता दिखाया था और शायद वह उसे भविश्य में ब्लॅकमेल या सेक्स के लिए विवश भी कर सकती है.
 
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