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Erotica फागुन के दिन चार

Tiger 786

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3 (b) अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है।

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गुड्डी जोर से चिल्लाई, फिर पूछा।
“कुछ बोला उसने?”
रीत मुश्कुराती रही।

“बोल ना आई लव यू बोला की नहीं…” गुड्डी पीछे पड़ी रही।

“ना…” रीत ने मुश्कुराकर जवाब दिया

“कुछ तो बोला होगा…” गुड्डी पीछे पड़ी थी।

“हाँ। रीत ने मुश्कुराकर जुर्म कबूल किया। वो बोला- “मुझे तुमसे एक चीज मांगनी है…”

अब गुड्डी उतावली हो गई- “बोल ना दिया तुमने की नहीं…”


रीत बिना सुने बोलती गई-

“मैंने बोला मेरे पास तो जो था मैंने बहुत पहले तुम्हें दे दिया है। मेरा तो अब कुछ है नहीं। फिर हम दोनों बहुत देर तक चुपचाप, बिना बोले, हाथ पकड़कर बातें करते रहे…”

“बिना बोले बातें कैसे?” गुड्डी की कुछ समझ में नहीं आया।

“तू बड़ी हो जायेगी ना तो तेरे भी समझ में आ जायेंगी ये बातें…” हँसते हुए रीत बोली।

उसका घर आ गया था। बस एक बात उसे रोकते हुए गुड्डी बोली- “किस्सी ली उसने?”

एक जोर का और पड़ा गुड्डी की पीठ पे और रीत धड़धड़ाते हुए ऊपर चल दी। लेकिन दरवाजे से गुड्डी को देखते हुए मीठी निगाहों से, हल्के से हामी में सिर हिला दिया।

गुड्डी ने बोला की रीत ने बाद में बताया था। एक बहुत छोटी सी गाल पे। लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।

करन का आई॰एम॰ए॰ ( इंडियन मिलेट्री अकेडमी) देहरादून में एडमिशन हो गया। ये खबर भी उसने सबसे पहले रीत को दी और उसे स्टेशन छोड़ने उसके घर के के लोगों के साथ रीत भी गई और भी कालेज के बहुत से लोग, मुँहल्ले के भी।

गुड्डी ने हँसकर बोला-

“जो काम पहले वो करती थी। डाक तार वालों ने सम्हाल लिया। और बाद में इंटर नेट वालों ने। मेसेज इधर-उधर पहुँचाने का। गुड्डी उसकी अकेली राजदां थी। लेकिन वो दिन कैसे गुजरते थे। वो या तो रीत जानती थी या दिन।

अहमद फराज साहब की शायरी का शौक तो करन ने लगा दिया और दुष्यंत कुमार उसने खुद पढ़ना शुरू कर दिया। कविता समझने का सबसे आसन तरीका है इश्क करना, फिर कोई कुंजी टीका की जरूरत नहीं पड़ती। जो वो गाती गुनगुनाती रहती थी। उसने करन को चिट्ठी में लिख दिया:


मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे

इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत

हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता

हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे।




जब वह करन को स्टेशन छोड़ने गई थी तो करन ने उसे धर्मवीर भारती की एक किताब लेकर दे दी थी और जब कोई विरह में हो तो संसार की सारी विरहणीयों का दुःख अपना लगने लगता है। वह बार-बार इन लाइनों को पढ़ती, कभी रोती, कभी मुश्कुराती-



कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था, तुम्हारे आश्लेष में

आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है, दुगुना सुनसान है

बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले सा मेरा यह जिस्म-

टूटे खँडहरों के उजाड़ अन्तःपुर में,

छूटा हुआ एक साबित मणिजटित दर्पण-सा-

आधी रात दंश भरा बाहुहीन

प्यासा सर्वीला कसाव एक, जिसे जकड़ लेता है

अपनी गुंजलक में

अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है

मन्त्र-पढ़े बाण-से छूट गये तुम तो कनु,

शेष रही मैं केवल, काँपती प्रत्यंचा-सी।




विरह के पल युग से बन जाते, वो एक चिट्ठी पोस्ट करके लौटती तो दूसरी लिखने बैठ जाती और उधर भी यही हालत थी करन की चिट्ठी रोज। जिस दिन नहीं आती। गुड्डी उसे खूब चिढ़ाती।

देखकर आती हूँ, कहीं डाक तार वालों की हड़ताल तो नहीं हो गई। और जब करन आता, तो काले कोस ऐसे विरह के पल, कपूर बनकर उड़ जाते। लगता ही नहीं करन कहीं गया था स्कूल और मुँहल्ले की खबरों से लेकर देश दुनियां का हाल।

बस जो रीत उसे नहीं बताती, वो अपने दिल का हाल। लेकिन शायद इसलिए की ये बात तो उसने पहले ही कबूल कर ली थी की अब उसका दिल अपना नहीं है।

आई॰एम॰ए॰ से वो लौट कर आया। तो सबसे पहले रीत के पास, वो भी यूनिफार्म में, और उसने रीत को सैल्यूट किया। गुड्डी वहीं थी। रीत ने उसे बाहों में भींच लिया।

दोनों कभी हँसते कभी रोते।


रीत हाई स्कूल पास कर एलेव्न्थ में पहुँच गई।

करन की ट्रेनिंग करीब खतम थी।
3 (b) अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है।

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गुड्डी जोर से चिल्लाई, फिर पूछा।
“कुछ बोला उसने?”
रीत मुश्कुराती रही।

“बोल ना आई लव यू बोला की नहीं…” गुड्डी पीछे पड़ी रही।

“ना…” रीत ने मुश्कुराकर जवाब दिया

“कुछ तो बोला होगा…” गुड्डी पीछे पड़ी थी।

“हाँ। रीत ने मुश्कुराकर जुर्म कबूल किया। वो बोला- “मुझे तुमसे एक चीज मांगनी है…”

अब गुड्डी उतावली हो गई- “बोल ना दिया तुमने की नहीं…”


रीत बिना सुने बोलती गई-

“मैंने बोला मेरे पास तो जो था मैंने बहुत पहले तुम्हें दे दिया है। मेरा तो अब कुछ है नहीं। फिर हम दोनों बहुत देर तक चुपचाप, बिना बोले, हाथ पकड़कर बातें करते रहे…”

“बिना बोले बातें कैसे?” गुड्डी की कुछ समझ में नहीं आया।

“तू बड़ी हो जायेगी ना तो तेरे भी समझ में आ जायेंगी ये बातें…” हँसते हुए रीत बोली।

उसका घर आ गया था। बस एक बात उसे रोकते हुए गुड्डी बोली- “किस्सी ली उसने?”

एक जोर का और पड़ा गुड्डी की पीठ पे और रीत धड़धड़ाते हुए ऊपर चल दी। लेकिन दरवाजे से गुड्डी को देखते हुए मीठी निगाहों से, हल्के से हामी में सिर हिला दिया।

गुड्डी ने बोला की रीत ने बाद में बताया था। एक बहुत छोटी सी गाल पे। लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।

करन का आई॰एम॰ए॰ ( इंडियन मिलेट्री अकेडमी) देहरादून में एडमिशन हो गया। ये खबर भी उसने सबसे पहले रीत को दी और उसे स्टेशन छोड़ने उसके घर के के लोगों के साथ रीत भी गई और भी कालेज के बहुत से लोग, मुँहल्ले के भी।

गुड्डी ने हँसकर बोला-

“जो काम पहले वो करती थी। डाक तार वालों ने सम्हाल लिया। और बाद में इंटर नेट वालों ने। मेसेज इधर-उधर पहुँचाने का। गुड्डी उसकी अकेली राजदां थी। लेकिन वो दिन कैसे गुजरते थे। वो या तो रीत जानती थी या दिन।

अहमद फराज साहब की शायरी का शौक तो करन ने लगा दिया और दुष्यंत कुमार उसने खुद पढ़ना शुरू कर दिया। कविता समझने का सबसे आसन तरीका है इश्क करना, फिर कोई कुंजी टीका की जरूरत नहीं पड़ती। जो वो गाती गुनगुनाती रहती थी। उसने करन को चिट्ठी में लिख दिया:


मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे

इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत

हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता

हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे।




जब वह करन को स्टेशन छोड़ने गई थी तो करन ने उसे धर्मवीर भारती की एक किताब लेकर दे दी थी और जब कोई विरह में हो तो संसार की सारी विरहणीयों का दुःख अपना लगने लगता है। वह बार-बार इन लाइनों को पढ़ती, कभी रोती, कभी मुश्कुराती-



कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था, तुम्हारे आश्लेष में

आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है, दुगुना सुनसान है

बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले सा मेरा यह जिस्म-

टूटे खँडहरों के उजाड़ अन्तःपुर में,

छूटा हुआ एक साबित मणिजटित दर्पण-सा-

आधी रात दंश भरा बाहुहीन

प्यासा सर्वीला कसाव एक, जिसे जकड़ लेता है

अपनी गुंजलक में

अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है

मन्त्र-पढ़े बाण-से छूट गये तुम तो कनु,

शेष रही मैं केवल, काँपती प्रत्यंचा-सी।




विरह के पल युग से बन जाते, वो एक चिट्ठी पोस्ट करके लौटती तो दूसरी लिखने बैठ जाती और उधर भी यही हालत थी करन की चिट्ठी रोज। जिस दिन नहीं आती। गुड्डी उसे खूब चिढ़ाती।

देखकर आती हूँ, कहीं डाक तार वालों की हड़ताल तो नहीं हो गई। और जब करन आता, तो काले कोस ऐसे विरह के पल, कपूर बनकर उड़ जाते। लगता ही नहीं करन कहीं गया था स्कूल और मुँहल्ले की खबरों से लेकर देश दुनियां का हाल।

बस जो रीत उसे नहीं बताती, वो अपने दिल का हाल। लेकिन शायद इसलिए की ये बात तो उसने पहले ही कबूल कर ली थी की अब उसका दिल अपना नहीं है।

आई॰एम॰ए॰ से वो लौट कर आया। तो सबसे पहले रीत के पास, वो भी यूनिफार्म में, और उसने रीत को सैल्यूट किया। गुड्डी वहीं थी। रीत ने उसे बाहों में भींच लिया।

दोनों कभी हँसते कभी रोते।


रीत हाई स्कूल पास कर एलेव्न्थ में पहुँच गई।

करन की ट्रेनिंग करीब खतम थी।
Ghazab lazwaab
 

komaalrani

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komaalrani

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Bahut hi gab ka update diya hai komal ji. Main padhte hue hi jhad gaya. Majaaa aa gaya.
That is the best compliment for any erotica. can just say only thank your aur bane rahiye saath, jude rahiye is kahani se
 

komaalrani

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Bahut hi shandaar update diya hai Komal ji.
Phagun ka mahina, bahar phagaun ke gaane aur phagunahat ka mahual aur andar devar bhabhi, bas isi ko capture karne ki koshish thi , aapko accha laga, thanks so much
 

komaalrani

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वाह भाई वाह. नई मुँह बोली साली गुंजा. जबरदस्त शारारत के वो पल. हाईलाइट मे तो पहले ही ये वाला किस्सा पढ़ा. जो एक अलग ही मान मचल देने वाला किस्सा था.

देखने वाली चीज है तो देखेंगे ही ना.

ये पल मे शारारत के साथ थोड़ी सी जलन और प्रेम का मिला एक अनोखा संगम है. बहोत प्यारा. एकदम दिल मचलने वाला. हलकी सी जलन हलका सा डर मानो दिल मचल रहा हो.

पर साली पर जीजा का हक़ नहीं तो फिर किसी का नहीं.


अपनी प्रेमिका के उपनाम को जान कर शारारत का एक अलग ही अंदाज़. बिग बूब्स. बिग बी. पर किस्सा गुंजा के आकर्षन पर मूड गया. एक अच्छी चीज सीखी मेने.

ये खुद के हाथ से नहीं खाते. इन्हे खिलाना पड़ता है.
ये शारारत से भरी लाइन मानो सजनी पत्नी की शारारत हो जैसे. माझा ला दिया. और फिर मिर्च वाला ब्रेड रोल. माझा ही ला दिया.


बहोत सारे डायलॉग है. जिसकी तारीफ मे पेज भर जाए. पर एक डायलॉग के बहाव से निकलते ही दूसरे मे लीन हो जाती हु. तो पहले बाले को भूल गई. बहोत कुछ बोलने का मान था. पर जता नहीं पा रही. लव इट


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एक अच्छे पॉपुलर लेखिका से जिसकी मैं खुद फैन हूँ , तारीफ़ सुन के कौन नहीं खुश होगा

और जीजा साली वाली बात आपने एकदम सही कही, जीजा का साली पर पहला हक होता है।
 

komaalrani

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Wow...what an update madam...simply dripping with pure erotica...
Chanda and Anand Babu's early morning leg pulling was awesome..coupled with sexy double meaning dialogs
Btw, a "very goodway" to give a "wake up" call in the morning
Even the mundane "breakfast table" conversation was mouth watering (literally and figuratively) with sexy and double meaning dialogs...
Converting a routine breakfast conversation into a super sexy one is truly your speciality..
An erotica connoisseur would be over the moon to read this episode.

As usual..the episode ends with a whole lot of possibilities that lay ahead..
ashok babu after taking bath and heading to chanda bhabhi's room with with minimal clothing and the "adventures" that wait for him in her room...
Outstanding!!

komaalrani
I am flattered, speechless.

probably there is a typo about the names, It is Ananad, but as they say, what is in the name?

You have not only read the story in detail, absorbed it, enjoyed it but shared the joy with the author. and coming from a discerning reader and authour makes it doubly important. thanks so much.
 

komaalrani

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Wah ri Guddi.
Guddi ne din ki shuruaat hi acchi kar di, Thanks.
 

komaalrani

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komaalrani

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अरे मांग लो दे देगी आनंद बाबू. आप ही की तो साली है. शारारत अगर जीजा साली मे ना हुई तो कहे के जीजा साली. बड़ी जल्दी मे हो.

माझा आ गया. शारारत की तो कोई सीमा नहीं.

क्या हुआ. प्यास लगी है. अपनी साली से मांग लो. वो प्यास भूजा देगी. बुज़ा देगी ना गुंजा???


दिल जीत लेने वाला अपडेट. माझा आ गया. लव इट.

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साली जितनी चुलबुली, शोख, तंग करने वाली हो, ख़ास तौर से छोटी टीनेजर साली, उतनी अच्छी।
 

komaalrani

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अमेज़िंग.... माझा आ गया. अरे आनंद बाबू तुम्हे तो तुम्हारी वाली ने अपनी दुल्हन बना दिया. अब तो सुहागदीन पक्का समझो.

क्या शारारत थी. खास कर गुड्डी तो बिलकुल मौका नहीं छोड़ती. डालमंडी मे एलवल वाली का सौदा कर रहे थे.

चन्दा भाभी का भी जवाब नहीं टेबल के निचे से ही खुटा पकड़ लिया. माझा ही आ गया.


हाई रे गुंजा रानी. छोटी साली तो मै ही बनूँगी कर के आनंद बाबू और गुड्डी रानी की मनसा जाहिर कर दी. अब बात बनेगी.

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एकदम अब तो चंदा भाभी से खूंटे की अच्छी दोस्ती हो गयी है। नाप जोख लिया रात में, घोड़े पर सवारी भी कर ली, दौड़ा कर देख भी लिया, और एक किशोरी चढ़ते जोबन वाली किशोरी और प्रौढ़ा में तो यही फर्क है, प्रौढ़ा सीधे मुद्दे पे आ जाती है, फिर वो खुश भी हो गयी, आनंद बाबू ने जो पढ़ाया था वो बात मानी भी, बस अब झिझक है तो वो भी आज ' होली बिफोर होली ' में दूर हो जाएगी।
 
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