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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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Dhanyawaad.पहले मै यहाँ के अपडेट तो पढ़ लू. एक दो दिन बाद आप की स्पेशल पर भी जारी रहेंगी
वाओ.... रीत तो काफ़ी मज़ेदार निकली. जितना गुंजा और गुड्डी ने नहीं छेड़ा उस से अधिक तो कुछ ही पल मे.रीत की क्लास
मेरी नाक अभी भी रीत के हाथ में थी। नाक पकडे पकडे वो बोली
" स्साले क्या बोल रहे थे तीन ठगिनियाँ, "
लेकिन मेरी निगाह रीत के खूब टाइट कमीज को फाड़ते दोनों उभारों पर थी, वाकई बड़े थे, और मेरे मुँह से निकल गया दो ठग, असल में मुझे एक दोहा याद आ गया था, दूसरी लाइन, मेरे होंठ से निकल गयी
एक पंथ दुई ठगन ते, कैसे कै बिच जाय॥
( एक रास्ता, जोबन के बीच की गहराई और दो दो ठग यानी दोनों जोबन, तो कैसे कोई बच के निकल सकता है )
मैं सोच भी नहीं सकता था, रीत के उरोज अब मेरे सीने को बेधते, जैसे दो बरछियाँ चुभ गयी हों, और रगड़ते उसने उस दोहे को पूरा कर दिया,
उठि जोबन में तुव कुचन, मों मन मार्यो धाय।
एक पंथ दुई ठगन ते, कैसे कै बिच जाय॥
और मुस्कराकर आँखों में आँखे डालकर पूछा, बचना चाहते हो, इन दो ठगों से, अपने दोनों ठगों, मेरे मतलब दोनों कबूतरों की ओर इशारा कर के पूछा
और चंदा भाभी के नाइट स्कूल और गुड्डी की इतनी झिड़कियां सुन के थोड़ा तो सुधर ही गया था, बोला, " एकदम नहीं "
मेरे गाल मींड़ते हुए वो शोख बोली,
" वो चुहिया थोड़ी बेवकूफ है, तेरा असर, वरना तेरे ऐसे चिकने लौंडे को तो पटक के रेप कर देना चाहिए , "
फिर कुछ सोच के समझाते हड़काते बोली,
" हे मेरी छोटी बहन है , पक्की सहेली है बचपन की, मैं चाहे चुहिया कहूं चाहे, तू कुछ मत कहना "
मैंने समझदारी में ना का इशारा किया
" और ये तीन ठगिनिया, " रीत की बात पूरी भी नहीं हुई थी,
" आप, मेरा मतलब तुम, गुड्डी और गुंजा। " मुस्कराते हुए मैंने कबूल किया।
" ठगे वो जाते हैं जो बने ही होते हैं ठगे जाने के लिए और खुद ठगे जाना चाहते हैं, और जो बुद्धू होते हैं उन्हें बनाना नहीं पड़ता वो होते ही वैसे हैं " मुस्कराकर रीत बोली और फिर एकदम से टोन बदलकर, स्कूल मास्टरनी की तरह से थोड़ी दूर खड़ी हो के कड़क आवाज में पूछा
" ठोस तरल और गैस सुना है , तरल क्या होता है ?
और मैंने भी क्लास के उन बच्चो की तरह जो सबसे पहले हाथ खड़ा करते हैं, तन कर बोला ( बस यस मैडम नहीं बोला ),
"तरल पदार्थ की मात्रा और आयतन नियत होता है लेकिन वह जिस पात्र में रखे जाते हैं उसका आकार ग्रहण कर लेते हैं "
" पानी सामान्यतया, रूम टेम्प्रेचर पर क्या होता है " रीत मैडम ने अगला सवाल पूछ।
" तरल " मैंने तुरंत जवाब दिया।
"नाश्ते की टेबल पर क्या कभी किसी तरल पदार्थ को प्लेट, कैसरोल में देखा है "
अब मैं समझ गया बात किधर मुड़ रही थी, लेकिन जो बात थी मैंने बोल दिया, नही।
" प्याले में क्या था ? " अगला सवाल था।
" प्याला था ही नहीं, चाय तो बाद में चंदा भाभी गरम गरम ले आयीं, " मैंने स्थिति साफ़ की।
" टेबल पर क्या था, चंदा भाभी के आने के पहले " रीत सवाल पर सवाल दागे जा रही थी।
मुझे अपनी याददश्त और ऑब्जर्वेशन पावर पर भरोसा था मैंने सब गिना दिया, प्लेट, कैसलरोल, ग्लास, जग, केतली
" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया
" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे उसके टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी )
और सिर्फ दो बूँद पानी "
पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा,
चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में ?
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" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।
जबरदस्त. माझा आ गया. रीत की एंट्री और बस कुछ पलों की गुफ्तगू मज़े का लेवल ही अप कर दिया.लेडी शर्लोक होल्म्स
" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया
" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे गुँजा के टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी) और सिर्फ दो बूँद पानी "
" पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। "
रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा, चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में?
" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।
" तो गलती किस की है तेरी या मेरी दो बहनो की, ऑब्जर्वेशन , ओब्जेर्वेंट होना चाहिए पानी जग और ग्लास में नहीं है, प्लेट और कैसरोल में भी नहीं तो केतली, ऑब्जर्वेशन और एनालिसिस, एलिमेंट्री माय डियर वाट्सन "
वो एकदम लेडी शर्लाक होम्स की तरह बोली और मैं ये सेंटेंस बोलता की उसने एक नया मोर्चा खोल दिया।
" कभी जादू का शो देखा है, मजमे वाले की बात नहीं कर रही , जिसमे टिकट लगता है, स्टेज शो " रीत ने पूछ लिया,
" एकदम कितनी बार " और जबतक मैं गोगिया पाशा, पी सी सरकार जूनियर से लेकर आठ दस नाम गिनवाता रीत ने एक टेढ़ा सवाल कर दिया,
" जादू देखते थे या जादूगर के साथ की लौंडियों को, जो मटकती चमकती रहती हैं ? "
मैं क्या बोलता, पहली बार रीत से मिला था और ये बात समझ गया था की रीत के आगे बोलती बंद हो जाती है।
" बस उसी का फायदा उठा के जादूगर हाथ की सफाई दिखा देता है और ये बताओ जब तुझे मिर्ची लग रही थी, पानी पानी चिल्ला रहे थे तो किसे देख रहे थे ? "
रीत का सवाल और मैं समझ गया की इससे झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं, वो बोलने के पहले पकड़ लेगी ।
" वो, वो गुंजा को, उसी ने ब्रेड रोल खिलाया था, " मैंने कबूल भी किया और बहाना भी बनाया और पकड़ा भी गया।
" गुंजा को या गुंजा का, "
कह के वो मुस्करायी, फिर बोली,
" अरे यार तेरा तो जीजा साली का रिश्ता है, और तुम बुद्धू टाइप जीजा हो इसलिए देख देख के ललचाते हो, देखता तो सारा मोहल्ला है, सड़क और गली के लड़के हैं,"
और फिर रीत का टोन बदल गया वो अंग्रेजी में आ गयी।
when you have eliminated the impossible, whatever remains, however improbable, must be the truth.
और तुरंत मेरे दिमाग में शर्लाक होम्स की कहानी गूंजी, साइन आफ फोर,
लेकिन रीत फिर तुरंत उस बनारसी बालाओं के रूप में वापस आ गयी जो इस धरा पर अवतरित ही होती हैं, मेरी रगड़ाई करने के लिए,
" गुड्डी तुझे सही ही बुद्धू कहती है, तो टेबल पर अगर प्लेट, कैसरोल, ग्लास और जग में पानी नहीं था तो बची केतली न, तो भले ही अजीब लगे, लेकिन देखने में क्या,... और चंदा भाभी ने देखो एक पल में, "
रीत की मुस्कराहट देख के मैंने हार भी मान ली और बात भी बदल दी,
" कई बार बुद्धू होने का फायदा भी हो जाता है, "
" एकदम तेरा तो हो गया न तीन ठगिनिया मिल गयीं, लेकिन फिर रोते क्यों हो ठगिनियों ने लूट लिया, होली है, बनारस है ससुराल है तो लुटवाने तो आये ही हो, क्या बचाने की कोशिश कर रहे हो, हाँ एक बात और ये बोल, दहीबड़ा खाने में तेरी फट क्यों रही थी, ?"
" वो असल में, सुबह वाली बात, मिर्च, " हकलाते हुए मैंने अपना डर बताया ।
" भोले बुद्धू , मिर्च से भी खतरनाक भी कोई चीज भी तो हो सकती थी उसमे, सोचो, सोचो , " आँख नचाते उस खंजननयनी ने छेड़ा,
और सोच के मेरी रूह काँप गयी, गुझिया ठंडाई से इसलिए मैं दूर था तो कहीं, फिर मैंने ये सोच के तसल्ली दी की डबल डोज वाला गुलबाजामुन मैंने रीत को खिला दिया है, भांग की दो गोलियां बल्कि गोले, बनारस का पेसल गुलाबजामुन।
लेकिन अबकी रीत ने ट्रैक बदल दिया, पूछा उसने
" शाम को मुग़ल सराय किस ट्रेन से पहुंचे, गुड्डी बोल रही थी बहुत उठापटक कर के बड़ौदा से, चलो जानेमन से मिलना है तो थोड़ी उछल कूद तो करनी ही पड़ती है, "
और मैंने अपनी पूरी वीरगाथा ट्रेनगाथा सुना दी, मुग़लसराय तो कालका से, लेकिन बड़ौदा में कोई ट्रेन बनारस के लिए सीधी थी नहीं , तो अगस्त क्रान्ति से मथुरा, फिर दस मिनट बाद ताज एक्सप्रेस मिल गयी, उस से आगरा, और फिर वहां से किसी तरह बस से टूंडला और वहां बस कालका मिल ही गयी, तो कल शाम को आ गया वरना आज सुबह ही आ पाता । "
वो बड़ी देर तक मुस्कराती रही, फिर बोली,
"देवर कम जीजू कम स्साले, फिर तुम दिल्ली कब पहुँच गए नत्था के यहाँ से गुलाब जामुन लेने,"
और मेरे गुब्बारे की हवा निकालने के बाद जोड़ा
: उस गोदौलिया वाले नत्था के गुलाबजामुन का स्वाद मैं पहचानती हूँ, अच्छे थे, लेकिन मेरे बनाये दहीबड़े में भांग की मात्रा उससे दूनी थी, चलो इस बात पर एक और दहीबड़ा हो जाए, मुंह खोलो, अरे यार इतनी देर में तो तेरी बहना अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों खोल देती, खोल स्साले"
और मैंने मुंह खोल दिया, सुन कौन रहा था, समझने का सवाल ही नहीं था, मैं तो सिर्फ रीत को देख रहा था, उसकी देह की सुंदरता के साथ उसकी सोचने की ताकत को,
दहीबड़ा उसने मेरे मुंह में डाल दिया, दही मेरे गाल पे पोंछ दिया, और बाकी उँगलियों में लगी दही चाटते हुए बोली,
" आब्जर्वेशन आनंद बाबू, आब्जर्व, देखते तो सब है लेकिन आब्जर्व बहुत कम लोग करते हैं "
और मैंने तुरंत आब्जर्व किया जो बहुत चालाक बन कर गुलाब जामुन मैंने रीत को खिलाया था उस की चौगुनी भांग रीत के दो दहीबड़ों से मैं उदरस्थ कर चुका हूँ और बस दस मिनट के अंदर उसका असर,...और रीत की ओर अचरज भरी निगाहों से देखता बोला
" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "
" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,
" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "
" सच्ची, " मैं चीखा।
अमेज़िंग...... माझा आ गया.. पर रीत तो आनंद बाबू से भी 2 कदम आगे निकली. ग्लास कोल्ड्रिंक उन्हें ही पीला गई. साथ जाते हुए कुछ बोल भी दिया. अमेज़िंग.भूतनाथ की मंगल होरी,
रीत का ध्यान कहीं और मुड़ गया था- “हे म्यूजिक का इंतजाम है कुछ क्या?”
“है तो नहीं। पर चंदा भाभी के कमरे में मैंने स्पीकर और प्लेयर देखा था। लगा सकते हैं। तुम्हें अच्छा लगता है?” मैंने पूछा।
“बहुत…” वो मुश्कुराकर बोली- “चल उसी से कुछ कर लेंगे…”
“और डांस?” मैंने कुछ और बात आगे बढ़ाई।
“एकदम…” उसका चेहरा खिल गया- “और खास तौर से जब तुम्हारे जैसा साथ में हो। वैसे अपने कालेज में मैं डांसिंग क्वीन थी…मजा आजयेगा, बहुत दिन से डांस नहीं किया किसी के साथ, चल यार गुड्डी तो तुझे जिंदगी भर नचाएगी, आज मैं नचाती हूँ , शुरुआत बड़ी बहन के साथ कर लो, जरा मैं भी तो ठोक बजा के देख लू , मेरी बहन ने कैसा माल पसंद किया है। "
तब तक मैंने उसका ध्यान टेबल पे रखे कोल्ड ड्रिंक्स की ओर खींचा- “हे स्प्राईट चलेगा?”
रीत ने गौर से बोतल की सील को देखा, वो बंद थी। मुश्कुराकर रीत बोली- “चलेगा…”मैंने एक ग्लास में बर्फ के दो क्यूब डाले और स्प्राईट ढालना शुरू कर दिया।
उसे कोल्ड-ड्रिंक देते हुए मैंने कहा- “स्प्राईट बुझाए प्यास। बाकी सब बकवास…”
“एकदम…” चिल्ड ग्लास उसने अपने गोरे गालों पे सहलाते हुए मेरी ओर ओर देखा,
और एक तगड़ा सिप लेकर मुझे ऑफर किया, और जबतक मैं कुछ सोचता बोलता अपने हाथों में पकडे पकडे ग्लास मेरे होंठों में
रीत को कौन मना कर सकता है, मैंने भी एक बड़ी सी सिप ले ली।
लेकिन तब तक उसे कुछ याद आया, वो बोली, यार वो चंदा भाभी के कमरे का म्यूजिक सिस्टम मेरे हाथ लगे बिना ठीक नहीं होता, उसका प्लग, कनेक्टर, सब इधर उधर, बस दो मिनट में मैं चेक कर लेती हूँ, फिर सच में मजा आ जाएगा आज होली बिफोर होली का
वो चंदा भाभी के कमरे में घुसी लेकिन दरवाजे के पास रुक के वो कमल नयनी बोली,
" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
और वह अंदर चली गयी और मैं सोचने लगा बल्कि कुछ देर तक तो सोचने की भी हालत में नहीं था, ये लड़की क्या बोल के चली गयी।
मैं सन्न रह गया। बात एकदम सही थी और कितनी आसानी से मुस्कराते हुए ये बोल गयी,
बीता हुआ कल, बल्कि बीता हुआ पल कहाँ बचता है, कुछ आडी तिरछी लकीरों में कुछ भूली बिसरी यादों में जिसे समय पुचारा लेकर हरदम मिटाता रहता है जिससे नयी इबारत लिखी जा सके, और उस बीते हुए पल के भी हर भोक्ता के स्मृतियों के तहखाने में वो अलग अलग तरीके से,
अभी गुड्डी रीत का बैग लेकर चंदा भाभी के पास गयी, बस वो पल गुजर गया, उसका होना, उसका अहसास,
और आनेवाला कल, जिसके बारे में अक्सर मैं, हम सब, वो,
पल भर के लिए मेरा ध्यान नीचे सड़क पर होने वाले होली की हुड़दंग की ओर चला गया, बहुत तेज शोर था, लग रहा था कोई जोगीड़ा गाने वालों की टोली,
सदा आनंद रहे यही द्वारे, कबीरा सारा रा रा ,
वो टोली बगल की किसी गली में मुड़ गयी थी,
और अचानक कबीर की याद आ गयी,
साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी
चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास
चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।
और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.
हम अतीत का बोझ लाद कर वर्तमान की कमर तोड़ देते हैं, कभी उसके अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं, कभी उन्ही पलों में जीते रहते हैं और जो पल हमारे साथ है उसे भूल जाते हैं।
जहां छत पर गुड्डी का और चंदा भाभी का घर था वो छत बहुत बड़ी थी और खुली थी, ऊँची मुंडेर से आस पास से दिखती भी नहीं थी, लेकिन अगल बगल के घरों की गलियों की आवाजें तो मुंडेर डाक के आ ही जाती थी। पड़ोस के किसी घर में किसी ने होली के गाने लगा रखे थे और अब छुन्नूलाल मिश्र की होरी आ रही थी,
खेलें मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी,
भूत पसाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी।
लखि सुंदर फागुनी छटा के मन से रंग गुलाल हटा के,
चिता भस्म भर झोरी, दिगंबर खेलें मसाने में होरी।
यही बात एकदम यही बात, मृत्यु के बीच जीवन, यही तो बोल के गयी वो, कल नहीं रहा, कल का पता नहीं, लेकिन जो पल पास में है उसका रस लो, यही आनंद है आनंद बाबू। उसे जीना, उसका सुख लेना, उस पल का क्षण का अतीत को, भविष्य को भूल कर,
और यही बनारस का रस है। बनारसी मस्ती है, जीवन के हर पल को जीना, उसके रस के हर बिंदु को निचोड़ लेना,
" हे म्यूजिक सिस्टम मिल भी गया, ठीक भी हो गया, आ जाओ अंदर और स्प्राइट भी ले आना " अंदर से रीत की आवाज आयी
बगल से होरी की आखिरी लाइने बज रही थीं,
भूतनाथ की मंगल होरी, देख सिहायें ब्रज की गोरी।
धन धन नाथ अघोरी, दिगंबर मसाने में खेले होरी।
अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
फेलू दा और कुछ और बातें
फेलुदा , या प्रोदोष चंद्र मित्रा [मित्तर] , भारतीय निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे द्वारा निर्मित एक काल्पनिक जासूस , निजी अन्वेषक है । फेलुदा 21 रजनी सेन रोड, बालीगंज , कलकत्ता , पश्चिम बंगाल में रहते हैं । फेलुदा ने पहली बार 1965 में रे और सुभाष मुखोपाध्याय के संपादकीय में संदेश नामक बंगाली बच्चों की पत्रिका में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । उनका पहला साहसिक कार्य फेलुदर गोएन्डागिरी था ।
फेलुदा के साथ अक्सर उनका चचेरा भाई, जो उनके सहायक भी है, तपेश रंजन मित्तर (फेलुदा उसे प्यार से टॉपशे कहते हैं) आता है, जो कहानियों में सुनाने का काम करता है।
छठी कहानी, सोनार केला (द गोल्डन फोर्ट्रेस) से, यह जोड़ी एक लोकप्रिय थ्रिलर लेखक जटायु (लालमोहन गांगुली) से जुड़ गई है।
फेलुदा को कई बार फिल्माया गया है, जिसमें सौमित्र चटर्जी , सब्यसाची चक्रवर्ती , अहमद रुबेल , शशि कपूर , अबीर चटर्जी , परमब्रत चटर्जी , टोटा रॉय चौधरी और इंद्रनील सेनगुप्ता ने किरदार निभाया है । सत्यजीत रे ने दो फेलुदा फिल्में निर्देशित कीं - सोनार केला (1974) और जोई बाबा फेलुनाथ (1978)।
फेलुदा का चरित्र शर्लक होम्स से मिलता जुलता है और तपेश/टॉपशे का चरित्र डॉ. वॉटसन से मिलता जुलता है । [ फेलुदा की कहानियों में, उन्हें शर्लक होम्स के एक बड़े प्रशंसक के रूप में प्रदर्शित किया गया है जिसका उल्लेख उन्होंने कई बार किया है।
मार्शल आर्ट में निपुण एक मजबूत शरीर वाले व्यक्ति होने के बावजूद , फेलुदा ज्यादातर इस पर निर्भर रहते हैं शारीरिक शक्ति या हथियारों का उपयोग करने के बजाय मामलों को हल करने के लिए उनकी शानदार विश्लेषणात्मक क्षमता और अवलोकन कौशल (मजाक में इसे मगजस्त्र या मस्तिष्क-हथियार कहा जाता है) वह मामलों को लेने के बारे में बहुत चयनात्मक हैं और उन मामलों को प्राथमिकता देते हैं जिनमें मस्तिष्क के प्रयास की आवश्यकता होती है।
लेकिन एक बात
फेलू दा का संबंध इस कहानी से और विशेष रूप से रीत से एक अलग ढंग से भी है पर वह अपने आप कहानी के साथ पता चल जाएगा।
मैं मानती हूँ की कहानी अपनी बात खुद कहती है और एक बार पोस्ट होने के बाद हर पाठक उसे अपने ढंग से पढ़ने, समझने के लिए आजाद है, लेकिन आप ऐसे पाठको से कथा शिल्प की बात, जिस तरह से मैंने लिखा वह कहना भी अनुचित नहीं
रीत सेंसुअस, सुन्दर वाक् पटु तो है ही लेकिन इस के इन भागों से उसके आबजर्वेंट होने का भी संकेत मिलता है,
दूसरी बात की एक घटना , ब्रेकफास्ट में ब्रेड रोल में मिर्चे और पानी वाला मामला शुरू में ( और है भी ) दो टीनेजर कन्याओं की छेड़खानी के तौर पर आता है, लेकिन उसी का विशेलषण रीत अपने ढंग से कर के अपने ऑबजर्वेंट होने को भी दिखाती है और आनंद बाबू इम्प्रेस हो जाते है।
लेकिन तीसरी बात है रीत के मन की गहराई जो इस प्रसंग के आखिरी पोस्ट में मिलती है जिसमें रीत की एक बात
'कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
रीत के मन की गहराई का जीवन के प्रति उसके नजरिये को दिखता है और उसकी पुष्टि के लिए मैंने कबीर के एक पद ' मुर्दों का गाँव " और एक मशहूर होरी का सहारा लिया।
आनंद बाबू का रीत के प्रति दृष्टिकोण जो बना उसमें ये सभी बिंदु समाहित हैं
मैं मानती हूँ की कहानी मल्टी लेयर्ड होनी चाहिए, अलग अलग स्तरों पर मन को, मस्तिष्क को छुए, और चरित्र भी मल्टी डायमेंशनल होने चाहिए, हम लोग जो कहानी लिखते हैं उनकी यह जिम्मेदारी है की भले हम इरोटिका लिख रहे हैं लेकिन हम कथाकारों की एक लम्बी परम्परा की कड़ी है। और कहानी को कुछ कहना चाहिए, अपने पात्रों के जरिये, संवादों के जरिये।
इस कहानी के पाठक अभी कम है लेकिन मैं मानती हूँ कुछ पाठक ही हों जिन्हे कहानी में रूचि हो जिनसे कहानी के बारे में बातचीत की जा सके तो मेहनत वसूल हो जाती है।
बहुत - बहुत आभार कोमल जी
Thanks so muchHum to sirf aapke fan hain Komal didi.
Is ke sivay hum na hi kuchh jan te hain aur na hi jan na chahte hain.Oaky
" कल अब नही है ......" - यही मेरे प्रोफाइल के शब्द है ।इस पोस्ट के आखिरी हिस्से में ( भूतनाथ की मंगल होरी ) रीत ने जो ये बात कही
" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
उसी के संदर्भ में उसी हिस्से में कबीर की कुछ लाइने उद्धृत की गयी हैं,
" और अचानक कबीर की याद आ गयी,
साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी
चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास
चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।
और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.
कबीर का पूरा भजन, " साधो यह मुर्दो का गाँव " जिसकी यह लाइने हैं, यहाँ सूधी पाठको के लिए उद्धृत कर रही हूँ और साथ ही एक वीडियों लिंक भी उस भजन का जो कबीर सीरियल का हिस्सा था
साधो ये मुरदों का गांव!
पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,
मरि हैं ज़िन्दा जोगी,
राजा मरि हैं, परजा मरि हैं,
मरि हैं बैद और रोगी।
साधो ये मुरदों का गांव!
चंदा मरि है, सूरज मरि है,
मरि हैं धरणी आकासा,
चौदह भुवन के चौधरी मरि हैं
इन्हूँ की का आसा।
साधो ये मुरदों का गांव!
नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं,
मरि हैं सहज अठ्ठासी,
तैंतीस कोटि देवता मरि हैं,
बड़ी काल की बाज़ी।
साधो ये मुरदों का गांव!
नाम अनाम अनंत रहत है,
दूजा तत्व न होइ,
कहे कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो मत कोई।
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Thanks so much, your comments take care of the tiniest details and you commend the efforts made in every area including pictures. Such attentive readers are rare and I am privileged to have you as a regular reader. No words of thanks will be enough, Please bas kahani se jude rahiye, story need readers like you.Wonderful update madam...the conversation between Reet and Anand Babu was really free flowing...the references to PC Sarkar and Sherlock Holmes was outstanding...
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Great work!!
komaalrani