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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
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Last edited:
कहानी का बैकग्राउंड बनाने के लिए ये जरुरी था...haha...i know..this story has thrill element as well...(as you have mentioned previously)...
but as is your forte...story Holi se hi shuru hui...
may not be holi festival per se...but in the larger context...
Btw, Congrats for starting the story on time...which is once again your well known trait...
look forward to the next parts...
komaalrani
इस दोहरे अवसर पर पोस्ट करने के लिए हार्दिक शुभकामनाएं...Thanks so much for posting the first comment on the first post of the story. I thought today being Basant Panchmi is the most auspicious day also. I am sure you must have also read my post on ' Basant" and on Kamdev on the previous page, page 10.
Once again thanks so much.
Next part will come on Sunday 18.02. * ( t&c applies)
चूंकि मेरा होम टाउन बनारस शहर से अधिक दूरी पर नही है इसलिए इस शहर से सम्बंधित या इस शहर के पड़ोसी शहर से सम्बंधित जो कुछ भी आप अपडेट देती है वह बिल्कुल ही फेमिलर लगता है मुझे ।
यहां के लोगों का रहन-सहन , खान-पान , शादी-ब्याह , बातचीत करने का ढंग , यहां की बोलचाल की भाषा , यहां के रिति - रिवाज , यहां की परम्परागत चीजें , आवागमन का साधन सबकुछ बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हूं मै ।
कहानी की शुरुआत भाभी द्वारा अपने देवर ' आनंद ' को लिखी गई एक चिट्ठी से होता है । और जैसा हंसी-मजाक और छेड़खानी का रिश्ता एक भाभी - देवर के बीच होता है , ठीक वैसा ही इस अपडेट मे भी दिखाई दिया । वैसे मुझे याद है , उन दिनो हम भाभी को भौजी कहकर सम्बोधित करते थे ।
भाभी- देवर के रिश्ते मे उन दिनो सिर्फ प्रेम और स्नेह का ही रिश्ता नही था वरन एक बहुत ही अच्छे दोस्त का भी रिश्ता होता था । देवर जो बात अपने मां-बाप या भाई-बहन या अन्य किसी रिश्तेदार से नही कह पाते थे , वो बड़े आराम से , बिल्कुल ही सहज भाव से अपनी भाभी से कह देते थे ।
और ऐसा ही रिश्ता इस कहानी मे आनंद और उनकी भाभी के दरम्यान दिखाई देता है ।
वैसे मै जानता हूं यहां आनंद भाई साहब की फजीहत कुछ ज्यादा ही होने वाली है ।
भाभी का अपने देवर को " देवर - कम - ननदोई " कहकर सम्बोधित करना - खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार मे भाभियां अक्सर अपने देवर का मजाक उसे उसकी बहन के साथ जोड़कर करते है । और दोनो ही मतलब भाई-बहन के लिए उस दौरान बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो जाती है लेकिन इस सब का भी एक अलग ही स्थान होता है ।
आप के प्रजेंस आफ माइंड का क्या ही कहना !
कजिन टेन पास कर इंटर मे प्रवेश की है तो स्वभाविक है कजिन को इंटरकोर्स के बारे मे भी जानना चाहिए ।
रियल मे यह सेन्टेंस काफी फनी था ।
यह कहानी उस दौर की है जब ट्रेन की सुविधा अच्छी नही थी । एक स्टेट से दूसरे स्टेट या एक शहर से दूसरे शहर जाने पर कई बार ट्रेन चेंज करना पड़ता था । मैने उन दिनो ऐसा सफर कई बार किया था । बनारस से मुगलसराय जो अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन बन चुका है , जाने मे भी बहुत अधिक समय लग जाता था ।
शायद इसलिए आज के नौजवान उस वक्त के हालात को ठीक तरह से समझ न सके ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट था कोमल जी । इंतजार रहेगा हमारी सारंग नयनी हिरोइन गुड्डी और हमारे शर्मीले हीरो आनंद के प्रेम रस रंग से भरे होली मिलन समारोह का ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
यहाँ मैं आपसे सहमत नहीं हूँ..Thanks so much for your appreciation and support. This fledgling story will require continuous support in the form of likes and comments. I am sure i can always rely on you. Thanks once again.
Yess... it has already created a big impact on readers mind since it was posted first.Why do you think that this is a "fledging" story?? Yeh story to super hit story hain..aap ise just repost kar rahi ho... apne naye paathak ke liye
komaalrani
I request you to visit Book fair.. being held in Delhi right now..Only about a thousand views and about half a dozen comments, on the first day ( mostly old friends ) but may be it is early days. But i am sure with your support and wishes, this story too will attract some readership.
Aapne woh kahawat to suna hoga...(sometimes) slow and steady wins the race....
komaalrani
उनकी समीक्षाएं संपूर्ण और विस्तार पूर्वक होती है...कोई भी आभार के शब्द कम होंगे, ऐसे ही कुछ पाठक होंगे जो शब्दों के पीछे झाँक के, संस्कृति की चादर उठा के उस की भावना को समझ सकें।
कहानी की पहली लाइन, बल्कि पहले शब्दों के मर्म को आपने इतना अच्छा समझा,
' देवर कम नन्दोई '
आपने एकदम सही कहा, भाभियाँ ( यह भी आपने सही याद दिलाया, जो मिठास भौजी में है, कोल्हू से ताजा पेरे जाता गन्ने की तरह, वो भाभी में नहीं वो टेट्रापैक ऐसा ही लगता है ) देवर को ननद का नाम लेकर, उसकी बहन से उसका रिश्ता जोड़ के ही छेड़ती हैं. बहन सगी हो ममेरी हो चचेरी हो , . छोटी हो बड़ी हो इससे फर्क नहीं पड़ता। हाँ आसपास की उमर को हो तो उससे देवर को जोड़ के चिढ़ाने का मजा अलग ही है, और मजेदार बात ज्यादा ये है की देवर बेचारा जवाब भी नहीं दे सकता। और ये बात आपने एकदम सही कही की देवर और उसकी बहन दोनों के लिए एक थोड़ी ऑक्वर्ड हालत हो जाती है लेकिन मन ही मन मजा दोनों लेते हैं।
पूरी पोस्ट को आपने ध्यान से पढ़ा, वो उछल कूद वाली ट्रेन जर्नी, होली के पहले का महौल, जब तन पर पिचकारी चलने से पहले मन में पिचकारी चलती है,...
और इतनी अच्छी टिप्पणी भी दी।
मुझे मालूम है आप अनेक कहानियां पढ़ते हैं उनकी समीक्षा करते हैं अपनी राय देते हैं लेकिन इस समयाभाव में भी मेरा यही अनुरोध है की अपनी टिप्पणियों का संबल इसे जरूर प्रदान करें।
कोई भी बेल बिना सहारे के ऊपर तक नहीं चढ़ सकती और यह अंकुरित होती कहानी अभी तो इसे बहुत सहारे की सपोर्ट की समर्थन की जरूरत है।
एक बार फिर से आभार, धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवादकोमल जी
बसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं और बहुप्रतीक्षित कहानी के लिए हार्दिक आभार।
सादर