बनारस का रस
कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाकात हो जायेगी। तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था। यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था।
तो मैंने जल्दी से जल्दी सारी तैयारी कर डाली।
पहले तो भाभी के लिए साड़ी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी, बनयान, एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी। फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं। बनारस के लिए कोई सीधी गाड़ी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहां से बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और आटो से बनारस। बड़ौदा में हम लोग एक फील्ड अटैचमेंट में थे और कह सुन के एक दो दिन पहले निकलना पॉसिबल था, पर कोई सीधी गाड़ी बनारस छोड़िये मुग़लसराय की भी उस दिन की नहीं थी जिस दिन का मेरा प्रोग्राम था इसलिए इतनी उछल कूद.
वहां मैंने एक रेस्टहाउस पहले से बुक करा रखा था। सामान वहां रखकर मैं फिर से नहा धोकर फ्रेश शेव करके तैयार हुआ। क्रीम आफ्टर शेव लोशन, परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुई सफेद शर्ट।
आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्की,...
शाम हो गई थी। मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाकर मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ। गुड्डी से मिल लूंगा और कल एकदम सुबह जाकर उसके साथ घर चला जाऊँगा। बस से दो-तीन घंटे लगते थे। रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली। मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं।
लेकिन वहां पहुँच कर तो मेरी फूँक सरक गई।
वहां सारा सामान पैक हो रहा था। भाभी की भाभी या गुड्डी की माँ (उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं। अचानक प्रोग्राम बन गया।
अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बनाकर आया था। मैंने मन ही मन अपने को गालियां दी और प्लानिंग कर बच्चू।
गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई। फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे। बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे। इसलिए सब जल्दी-जल्दी तैयारी करनी पड़ गई लेकिन अब सब पैकिंग हो गई है। मेरा चेहरा और लटक गया था।
हम लोग बगल के कमरे में थे।
भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे। गुड्डी एक बैग में अपने कपड़े पैक कर चुकी थी। वो बिना मेरी ओर देखे हल्के-हल्के बोलने लगी- जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं, है ना। वो उठकर मेरे सामने आ गई और मेरे गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर बोलने लगी-
“अरे बुध्धू। सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं। मैं तुम्हारे साथ ही जाऊँगी। पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी और तुम्हारी रगड़ाई करूँगी…”
मेरे चेहरे पे तो 1200 वाट की रोशनी जगमग हो गई-
“सच्ची…” मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
“सच्ची…” और उस सारंग नयनी ने इधर-उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भरकर एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़कर उधर ले गई जहां बाकी लोग थे। मेरे कान में वो बोली-
“मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे…”
“एकदम…” मैंने भी हल्के से कहा।
किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रही थी। मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाऊँगा रेस्टहाउस में रुका हूँ। कल सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा।
वो बोली
अरे ये कैसे हो सकता है। अभी तो आप रुको खाना वाना खाकर जाओ। लेकिन मैं तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाकात तो हो ही गई। आप लोग भी बीजी हैं। थोड़ी देर में ट्रेन भी है।
तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी।
गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। बह भी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी। लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।
मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।
भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर। अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा।
लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-
“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”
“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं। उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…”
भाभी को एक साथी मिल गया था।
“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के…” चंदा भाभी ने छेड़ा।
गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। “मेरे साथ की ही है, पिछले साल दसवां पास किया है
“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। भैया। जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”
लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं। “अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…” भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।
मैंने फिर वही रट लगाई- “मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”
“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।
“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। इम्तहान तो हो ही गया है उसका। लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी। लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”
चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
कोमल जी
बसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं और बहुप्रतीक्षित कहानी के लिए हार्दिक आभार।
सादर