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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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आज प्रथम गाई पिक पंचम

आज प्रथम गाई पिक पंचम।
गूंजा है मरु विपिन मनोरम।

मस्त प्रवाह, कुसुम तरु फूले,
बौर-बौर पर भौंरे झूले,
पात-गात के प्रमुदित झूले,
छाई सुरभि चतुर्दिक उत्तम।

आँखों से बरसे ज्योतिःकण,
परसे उन्मन-उन्मन उपवन,
खुला धरा का पराकृष्ट तन,
फूटा ज्ञान गीतमय सत्तम।

प्रथम वर्ष की पांख खुली है,
शाख-शाख किसलयों तुली है,
एक और माधुरी घुली है,
गीत-गन्ध-रस वर्णों अनुपम।



बसंत पंचमी की शुभकामनाएं

थोड़ी ही देर में ' फागुन के दिन चार' का पहला भाग
सचमुच एक मनोरम और दिल को छू लेने वाली कविता....
 

motaalund

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बसंत पंचमी की शुभकामनाएं



बसंत का दिन हो और मन्मथ का जिक्र न हो, फूलों का जिक्र न हो

मदन के पांच शर फूलों के ही तो थे, अशोक, अरविन्द ( श्वेत कमल ), निलोत्प्ल ( नील कमल ) नवमल्लिका (चमेली) और आम्र मंजरी और धनुष गन्ने का बना हुआ।

लेकिन जब कंदर्प भस्म हुए, उनका उनका रत्नमय धनुष टूटकर खंड-खंड हो धरती पर गिर गया। जहाँ मूठ थी, वह स्थान रुक्म-मणि से बना था, वह टूटकर धरती पर गिरा और चंपे का फूल बन गया!

हीरे का बना हुआ जो नाह-स्थान था, वह टूटकर गिरा और मौलसिरी के मनोहर पुष्पों में बदल गया!

इंद्रनील मणियों का बना हुआ कोटि देश भी टूट गया और सुंदर पाटल पुष्पों में परिवर्तित हो गया।

लेकिन सबसे सुंदर बात यह हुई कि चंद्रकांत-मणियों का बना हुआ मध्य देश टूटकर चमेली बन गया और विद्रुम की बनी निम्नतर कोटि बेला बन गई, स्वर्ग को जीतनेवाला कठोर धनुष, जो धरती पर गिरा तो कोमल फूलों में बदल गया!


संहार में सृजन का इससे अच्छा उदाहरण क्या मिलेगा, खुद नष्ट होकर जहाँ एक आयुध भी फूलों की रचना करता है।

वह देह विहीन हो कर भी हर विवाह मंडप में अपने वाहन शुक के रूप में नव वर वधू के मन में कामना का संचार करता है, उनका वंश अक्षुण रहे, मानव जाति बनी रहे, इसका वर, वर वधू को देते हैं।

उन मन्मथ और रति की कृपा इस कथा यात्रा पर हो और इस कथा के सह यात्रियों पर भी ,

सभी पाठक मित्र, उनके प्रियजन, परिजन पर उनके अक्षुण आशीष की वर्षा हो


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बसंत पंचमी की शुभकामनाये


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फागुन के दिन चार -पहला भाग बस थोड़ी देर,
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पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं पर आपका ज्ञान अतुलनीय है...
 

motaalund

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सकल बन फूल रही सरसों

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सकल बन फूल रही सरसों।
बन बिन फूल रही सरसों।

अम्बवा फूटे, टेसू फूले,
कोयल बोले डार-डार,
और गोरी करत सिंगार,


मलनियाँ गेंदवा ले आईं कर सों,
सकल बन फूल रही सरसों।
तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गेंदवा हाथन में आए।



निजामुदीन के दरवज़्ज़े पर,
आवन कह गए आशिक रंग,
और बीत गए बरसों।

सकल बन फूल रही सरसों।

अमीर खुसरो
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं


फागुन के दिन चार -पहला भाग बस थोड़ी देर में
मौसम और वातावरण के अनुसार .. उनको चरितार्थ करती कविता....
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग 1

फागुन की फगुनाहट

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भाभी की चिट्ठी

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मेरे देवर कम नंदोई,

सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,

तुमने बोला था की इस बार होली पे जरूर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ? देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है, वही तुम्हारा पुराना माल। न सतरह से ज्यादा न सोला से कम। क्या उभार हो रहे हैं उसके।

मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया पिछले साल, अब इंटर में चली गयी हो तो अब तो इंटरकोर्स करवाना ही होगा, तो फिस्स से हँसकर बोली-

“अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती। अपने तो सैयां, देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और।“

तो उसकी बात काटकर मैं बोली अच्छा चल आ रहा है होली पे एक, और कौन तेरा पुराना यार, लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा। एकदम गाढ़ा बहुत दिन तक असर रहता है।
तो वो हँसकर बोली की ,”अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आ गया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन। बाद के असर का खतरा नहीं रहता,”

और हाँ तुम मेरे लिए होली की साड़ी के साथ चड्ढी बनयान तो ले ही आओगे, उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना। मेरी साइज तो तुम्हें याद ही होगी। मेरी तुम्हारी तो एक ही है। 34सी और मालूम तो तुम्हें उसकी भी होगी। लेकिन चलो मैं बता देती हूँ। 30बीबी हाँ होली के बाद जरूर 32 हो जायेगी…”

फागुन चढ़ गया था, फगुनाहट शुरू हो गयी थी, होली कुछ दिन बाद ही थी। भाभी की इस चिठ्ठी पर उसी का असर था, ... मैं अभी ट्रेनिंग में था, पिछले साल ट्रेनिंग में होली में छुट्टी नहीं मिल पायी थी, पर अब कुछ दिनों बाद ही ट्रेनिंग खतम होने वाली थी और मैंने बोला था की अबकी होली में जरूर आऊंगा और हफ्ते भर कम से कम,... छुट्टी मिल भी गयी थी भाभी की चिट्ठी में उसी का दावतनामा था, होली में घर आने का।

मैं समझ गया की भाभी चिट्ठी में किसका जिकर कर रही थी। मेरी कजिन, हाईस्कूल पास किया था उसने पिछले साल। अभी इंटरमीडिएट में थी. जब से भाभी की शादी हुई थी तभी से उसका नाम लेकर छेड़ती थी, आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी। शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम लेकर, और भाभी तो बाद में भी प्योर नानवेज गालियां। पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में,… वो भी कम चुलबुली नहीं थी।

कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलती, हे हो गई है ना लेने लायक, कब तक तड़पाओगे बिचारी को कर दो एक दिन। आखिर तुम भी 61-62 करते हो और वो भी कैंडल करके, आखिर घर का माल घर में। पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियां चल रही थी। छेड़-छाड़ थी,मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी। मैंने चिट्ठी फिर से पढ़नी शुरू की।



“माना तुम बहुत बचपन से मरवाते, डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की माँ को पसीना आता है वो तुम हँस हँसकर घोंट लेते हो। लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ 10 रूपये का नोट भी रख रही हू, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाड़े जरूर लगाना, सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी…”



लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़कर नाच उठा-

“अच्छा सुनो, एक काम करना। आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते। रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना। गुड्डी की लम्बी छुट्टी शुरू हो रही है, उसके स्कूल में बोर्ड के इम्तहान का सेंटर पड़ा है, तो पूरे हफ्ते दस दिन की होली की छुट्टी,... वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना। जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी…”



चिठ्ठी के साथ में 10 रूपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहुँचने पे करेंगी। आखिरी दो लाइनें मैंने 10 बार पढ़ीं और सोच सोचकर मेरा तम्बू तन गया
वाह... थ्रेड पर १०१ वां पोस्ट... शुभ होई छी...
ओह्ह. अब गुड्डी दसवें से एक क्लास आगे...
लेकिन इसकी जरूरत क्या थी... मेडिकल कोचिंग तो अब दो या और ज्यादा सालों के लिए भी होने लगी है...
बहरहाल बदलाव अच्छा लगा...
 

komaalrani

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चूंकि मेरा होम टाउन बनारस शहर से अधिक दूरी पर नही है इसलिए इस शहर से सम्बंधित या इस शहर के पड़ोसी शहर से सम्बंधित जो कुछ भी आप अपडेट देती है वह बिल्कुल ही फेमिलर लगता है मुझे ।
यहां के लोगों का रहन-सहन , खान-पान , शादी-ब्याह , बातचीत करने का ढंग , यहां की बोलचाल की भाषा , यहां के रिति - रिवाज , यहां की परम्परागत चीजें , आवागमन का साधन सबकुछ बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हूं मै ।

कहानी की शुरुआत भाभी द्वारा अपने देवर ' आनंद ' को लिखी गई एक चिट्ठी से होता है । और जैसा हंसी-मजाक और छेड़खानी का रिश्ता एक भाभी - देवर के बीच होता है , ठीक वैसा ही इस अपडेट मे भी दिखाई दिया । वैसे मुझे याद है , उन दिनो हम भाभी को भौजी कहकर सम्बोधित करते थे ।
भाभी- देवर के रिश्ते मे उन दिनो सिर्फ प्रेम और स्नेह का ही रिश्ता नही था वरन एक बहुत ही अच्छे दोस्त का भी रिश्ता होता था । देवर जो बात अपने मां-बाप या भाई-बहन या अन्य किसी रिश्तेदार से नही कह पाते थे , वो बड़े आराम से , बिल्कुल ही सहज भाव से अपनी भाभी से कह देते थे ।
और ऐसा ही रिश्ता इस कहानी मे आनंद और उनकी भाभी के दरम्यान दिखाई देता है ।
वैसे मै जानता हूं यहां आनंद भाई साहब की फजीहत कुछ ज्यादा ही होने वाली है ।

भाभी का अपने देवर को " देवर - कम - ननदोई " कहकर सम्बोधित करना - खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार मे भाभियां अक्सर अपने देवर का मजाक उसे उसकी बहन के साथ जोड़कर करते है । और दोनो ही मतलब भाई-बहन के लिए उस दौरान बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो जाती है लेकिन इस सब का भी एक अलग ही स्थान होता है ।

आप के प्रजेंस आफ माइंड का क्या ही कहना !
कजिन टेन पास कर इंटर मे प्रवेश की है तो स्वभाविक है कजिन को इंटरकोर्स के बारे मे भी जानना चाहिए ।
रियल मे यह सेन्टेंस काफी फनी था ।

यह कहानी उस दौर की है जब ट्रेन की सुविधा अच्छी नही थी । एक स्टेट से दूसरे स्टेट या एक शहर से दूसरे शहर जाने पर कई बार ट्रेन चेंज करना पड़ता था । मैने उन दिनो ऐसा सफर कई बार किया था । बनारस से मुगलसराय जो अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन बन चुका है , जाने मे भी बहुत अधिक समय लग जाता था ।
शायद इसलिए आज के नौजवान उस वक्त के हालात को ठीक तरह से समझ न सके ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट था कोमल जी । इंतजार रहेगा हमारी सारंग नयनी हिरोइन गुड्डी और हमारे शर्मीले हीरो आनंद के प्रेम रस रंग से भरे होली मिलन समारोह का ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
कोई भी आभार के शब्द कम होंगे, ऐसे ही कुछ पाठक होंगे जो शब्दों के पीछे झाँक के, संस्कृति की चादर उठा के उस की भावना को समझ सकें।

कहानी की पहली लाइन, बल्कि पहले शब्दों के मर्म को आपने इतना अच्छा समझा,

' देवर कम नन्दोई '

आपने एकदम सही कहा, भाभियाँ ( यह भी आपने सही याद दिलाया, जो मिठास भौजी में है, कोल्हू से ताजा पेरे जाता गन्ने की तरह, वो भाभी में नहीं वो टेट्रापैक ऐसा ही लगता है ) देवर को ननद का नाम लेकर, उसकी बहन से उसका रिश्ता जोड़ के ही छेड़ती हैं. बहन सगी हो ममेरी हो चचेरी हो , . छोटी हो बड़ी हो इससे फर्क नहीं पड़ता। हाँ आसपास की उमर को हो तो उससे देवर को जोड़ के चिढ़ाने का मजा अलग ही है, और मजेदार बात ज्यादा ये है की देवर बेचारा जवाब भी नहीं दे सकता। और ये बात आपने एकदम सही कही की देवर और उसकी बहन दोनों के लिए एक थोड़ी ऑक्वर्ड हालत हो जाती है लेकिन मन ही मन मजा दोनों लेते हैं।

पूरी पोस्ट को आपने ध्यान से पढ़ा, वो उछल कूद वाली ट्रेन जर्नी, होली के पहले का महौल, जब तन पर पिचकारी चलने से पहले मन में पिचकारी चलती है,...


और इतनी अच्छी टिप्पणी भी दी।

मुझे मालूम है आप अनेक कहानियां पढ़ते हैं उनकी समीक्षा करते हैं अपनी राय देते हैं लेकिन इस समयाभाव में भी मेरा यही अनुरोध है की अपनी टिप्पणियों का संबल इसे जरूर प्रदान करें।

कोई भी बेल बिना सहारे के ऊपर तक नहीं चढ़ सकती और यह अंकुरित होती कहानी अभी तो इसे बहुत सहारे की सपोर्ट की समर्थन की जरूरत है।

एक बार फिर से आभार, धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏
 

motaalund

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गुड्डी -बनारस वाली
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गुड्डी- देखकर कोई कहता बच्ची है। मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें।

एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी, सिवाय चेहरे को छोड़के। एकदम भोला। लम्बी तो थी ही, 5’3” रही होगी। असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे, 30सी।


और दूसरी मेरे सामने डेढ़ साल पहले का का दृश्य नाच उठा। मेरा सेलेक्शन हो गया था, रैंक भी अच्छी थी और मैं श्योर था की कैडर भी मुझे होम कैडर यू पी का मिल जाएगा। फर्स्ट अटेम्प्ट था.पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुई थी। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी और गुड्डी भी आई थी।

सब लोग पिक्चर देखने गए। डिलाईट टाकिज, अभी भी मुझे याद है। कोई पुरानी सी पिक्चर थी। रोमांटिक। हाल करीब खाली सा था। घर के करीब सभी लोग थे। गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी। हम लोग मूंगफली खा रहे थे। सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था, उसने मेरा हाथ पकड़कर अपने सीने पे रख लिया।

गुड्डी अच्छी तो लगती ही बल्कि बहुत अच्छी लगती थी और खासतौर से उसके चूजे से जस्ट आ रहे उभार, मैं चुपके चुपके नजर चिपकाए रहता था वही, पर जैसे गुड्डी मेरी ओर नजर करती, मैं आँखे हटा लेता। लेकिन क्या मुझे मालूम था की जवान होती लड़कियों की एड़ी में आँख होती है और कौन नजरों से उन्हें दुलरा रहा है, उनकी नजरें देख लेती। लेकिन मेरी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ती थी और ये बात वो भी समझ गयी थी।

मैं कुछ समझा नहीं और वहीं हाथ रहने दिया। अच्छा तो बहुत लग रहा था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। थोड़ी देर रहकर उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हल्के से दबा दिया।

अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं। हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्लफ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था। मैंने दोनों ओर देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे। यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी।

अब मैंने हल्के से उसके उभार दबा दिए।

उसके ऊपर कोई असर नहीं पड़ा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली, हे जरा मूंगफली बगल में पास कर दो, सब तुम ही खाए जा रहे हो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया।

थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया। अब इससे ज्यादा सिगनल क्या मिलता। मैंने उसके छोटे-छोटे चूचियों हल्के से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कसकर दबा दिया। वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जीन्स के ऊपर रख दिया।

लेकिन तभी इंटरवल हो गया। हम सब बाहर निकले। वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया। मैंने लाख समझाया की बहुत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों। कूद काद के मैं ले आया। लेकिन दो ही मिली। उन दोनों को पकड़ाते हुए मैंने कहा, लो दो ही थी मेरे लिए नहीं मिली।

तब तक पिक्चर शुरू हो गई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो लेकर। लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली, तुम मेरी ले लेना ना।

मैंने उसी टोन में जवाब दिया, लूँगा तो मना मत करना। इंटरवल के पहले जो हुआ मेरी हिम्मत बढ़ रही थी।

उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है। हाँ तुम्ही घबड़ा जाते हो। बुद्धू

और वो हाल में घुस गई। मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सुना के बोली, कुछ लोग एकदम बुद्धू होते हैं, है ना। और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खिस से हँस दी। मैं बिचारा बीच में।

कोरेनेटो की एक बाईट लेकर उसने मुझे पास की और बोलि- देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना।

मैंने कसकर एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हल्के से उसके कान में फुसफुसाया- मजा तो पूरा लेने में है।

जवाब उसने दिया- मेरी जांघ पे एक कसकर चिकोटी काटकर, ठीक ‘उसके’ बगल में। और मुझसे कार्नेटो वापस लेकर। बजाय बाईट लेने के उसने हल्के से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगाकर मुझे दिखाकर पूरा गप्प कर लिया।


---



अगले दिन तो हद हो गई।
आनंद बाबु का भी थोड़ा मिसिंग लिंक... अब पूर्ण होता लगा...
और गुड्डी तो सिग्नल पे सिग्नल दिए जा रही है... लेकिन बेचारे शर्मीले आनंद बाबू...
थोड़ा बोल्डपना गुड्डी उन्हें उधर दे दे...
 

motaalund

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गुड्डी

देह की नसेनी

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अगले दिन तो हद हो गई।



गरमी के दिन थे। भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे।

एक दिन रात में बिजली चली गई। उमस के मारे हालत खराब थी। मैंने अपनी चारपायी बरामदे में निकाल ली। थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा की बगल में एक और चारपाई। मेरी चारपाई से सटी। और उसपे वो सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। हल्की-हल्की खर्राटे की आवाजें। मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक-दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में।

मैंने हिम्मत की और चारपाई के एकदम किनारे सटकर उसकी ओर करवट लेकर लेट गया और सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। थोड़ी देर बाद हिम्मत करके मैंने उसकी चद्दर के अंदर हाथ डाला। पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे। वो टस से मस नहीं हुई। मुझे लगा की शायद गहरी नींद में है। लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़कर मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया। पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर।

पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे। समझ में ना आये की क्या करूँ। तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया, फिर तो।

कभी मैं सहलाता, कभी हल्के से दबाता, कभी दबोच लेता। दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ। अब मैं बल्की पावर कट का इंतजार करता था और उस दिन वो शलवार कुरते में थी। थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाड़ा पहले से खुला था। पहली बार मैंने जब ‘वहां’ छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा। बस जो कहा है ना की गूंगे का गुड बस वही। सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला।

कुछ कुछ होता है टाइप जो टीनेज में होता है बस वो शुरू हो गया था, वो टीनेज की मझधार में थी, और मेरे भी टीनेज गुजरे बहुत दिन नहीं हुए थे।



उसे देखकर मुझे कुछ कुछ होता है, मुझसे पहले उसे पता चल गया था।

चार आँखों का खेल चलता रहता था, बस देखना, मुस्कराना और बात जो जबान तक आ के रुक जाए वही हालत थीं, वो सोचती थी मैं कुछ बोलूंगा पर मैं कभी शेरो का सहारा लेता,


क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये।

--
कौन लेता है अंगड़ाइयाँ,

आसमानों को नींद आती है।




और फिर वो क्या जबरदस्त अंगड़ाई लेती थी, दोनों कबूतर लगता था पिंजरा तोड़ के उड़ जाएंगे, उभार, कड़ाव, ऊंचाई,... और वो जानती थी क्या असर होता था उसका। तम्बू तन जाता था मेरा और वो बेशर्मी से देखती मुस्कराती,

कभी चिढ़ा के बोलती, होता है, होता है। कभी मैंने ज्यादा शायरी की बात करता तो मेरी नाक पकड़ के हिला के बोलती,

" मुझे शेर वेर नहीं मालूम, सर्कस में देखा था। लेकिन एक चीज मालूम है की जो बुद्धू हैं वो बुद्धू ही रहते हैं।"

और मैं उसकी आँखों में डूब जाता।


लेकिन उसे मालूम था की देह की नसेनी लगा के ही मन की गहराई में उतर सकते है, प्यार के अरुण कमल को पाने के लिए,, बिना तन के मन नहीं होता।

दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो। भाभी भी साथ होती और वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती। यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगाकर खुलकर मजाक करती या गालियां सुनाती तो भी। ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिलकर गर्मी की लम्बी दुपहरियों में और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलती क्यों देवरजी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा। लगता है मुझे ही ट्रेन करना पड़ेगा वरना मेरी देवरानी आकर मुझे ही दोष देगी तो वो भी हँसकर तुरपन लगाती,

"हाँ एकदम अनाड़ी हैं।"

उस सारंग नयनी की आँखें कह देती की वो मेरे किस खेल में अनाड़ी होने की शिकायत कर रही है।

जिस दिन वो जाने वाली थी, वो ऊपर छत पर, अलगनी पर से कपड़े उतारने गई। पीछे-पीछे मैं भी चुपके से- हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला।

‘ना’ हँसकर वो बोली। फिर हँसकर डारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी।

अब मुझसे नहीं रहा गया।

मैंने उसे कसकर दबोच लिया और बोला-


हे दे दो ना बस एक बार "

और कहकर मैंने उसे किस कर लिया। ये मेरा पहला किस था। लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गई और थोड़ी दूर खड़ी होकर हँसते हुए बोलने लगी.

“ इंतजार बस थोड़ा सा इंतजार। “

एक-दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट में, जवानी की आहट एकदम तेज हो गई थी। मैंने उससे पूछा हे पिछली बार तुमने कहा था ना इंतजार तो कब तक?

बस थोड़ा सा और।हंस के वो बोली

मैं शायद उदास हो गया था। वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली

पक्का- बहुत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस।

मेरे चेहरे पे तो वो खुशी थी की, कुछ देर बोल नहीं फूटे

मैंने फिर कहा सब कुछ।

तो वो हँसकर बोली एकदम। लेकिन तब तक बारात आ गई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर।

भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उसने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और। उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस होकर ही जाऊँगा। मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दी।



ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।

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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।
गाँव की गर्मी का माहौल..
हमलोग तो कभी चटाई बिछा के छत पर..
या फिर शादी वगैरह के समय... तिरपाल पर चादर बिछा कर हीं पड़ जाते थे...
और नैन मटक्कों और नजरों के खेल चलते रहते थे...
 

motaalund

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पात्र परिचय

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ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।

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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।

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सबसे पहले मैं यानी आनंद। उम्र जब की बात बता रहा हूँ। 23वां लगा था, लम्बाई 5’11…” इंच कोई जिम टोंड बदन वदन नहीं लेकिन छरहरा कह सकते हैं, गोरा। चिढ़ाने के लिए खास तौर से भाभी, चिकना नमकीन कह देती थी पर आप जानते हैं भाभी तो भाभी हैं। हाँ ये बात सही थी की मैं जरा शर्मीला था और शायद इसलिए मैं अब तक “कुँवारा…” था। मेरी इमेज एक सीधे साधे लड़के की थी। चलिए बहुत हो गई अपनी तारीफ। हाँ अगर आप “उस…” चीज के बार मैं जानना चाहते हैं की। तो वो इस तरह की कहानियों के नायक की तरह तो नहीं था लेकिन उन्नीस भी नहीं था।



मेरी भाभी- बहुत अच्छी थी। शायद वो पहली महिला लड़की जो चाहे कह लीजिये जो मुझसे खुलकर बातचीत करती थी।

जो लोग कहते हैं भाभी को माँ के समान समझना चाहिए वैसा कत्तई नहीं था, और वो बात उन्होंने मुझसे पहले खुद साफ कर दी थी, लेकिन जो ' देवर भाभी के किस्से ' टाइप किताब होती है वैसा भी कत्तई नहीं था. वो मुझे चिढ़ा लेती थी, मौका पड़ने पर अच्छी वाली गारी भी देती थीं पर मैं चुप ही रहता था, कभी बहुत हिम्मत की तो थोड़ा बहुत बोल दिया।


रिश्ता देवर भाभी का ही था लेकिन एक तरह से मेरी अकेली दोस्त, सहेली जो कहिये,...

कारण दो थे घर में और कोई नहीं था उनके अलावा। भाई साहेब मेरे प्रेमचंद के बड़े भाई साहेब टाइप बल्कि और सीरियस, उमर में भी बहुत बड़े। भाभी चार पांच साल ही बड़ी रही होंगी और ये दूसरा कारण था। चिंता भी जरूरत से ज्यादा करती थीं, एक दो बार मैंने बोला भी तो उन्होंने टोक दिया, " तेरे बस का तो है नहीं, और देवरानी मेरी अभी आयी नहीं। जिस दिन देवरानी मिल जायेगी, उसके हाथ में तेरा हाथ दे दूंगी तब चिंता करना बंद कर दूंगी।

मेरे सेलेक्शन में, सिविल सर्विस के इम्तहान में कहते हैं जितना पढाई का रोल होता है उतनी किस्मत का,... तो पढ़ाई वाला काम तो मैंने किया लेकिन देवी देवता मनाने का भाभी ने, गली मोहल्ले के देवी देवता से लेकर गंगा मैया की आर पार की चुनरी सब मान ली थी उन्होंने और ख़ुशी भी मुझसे ज्यादा उन्हें हुयी।

हर चीज , यहाँ तक की मेरे लिए मस्तराम किराए पे लाने की फंडिंग भी वही करती थी। और उनका भी हर काम बाजार से कुछ लाना हो, उन्हें मायके ले जाना और वहां से लाना। बस चिढ़ाती बहुत थी और खास तौर पर मेरी कजिन का नाम लेकर, मजाक करने में तो एक नम्बर की।

और जो मजाक में भाभी थोड़ी झिझकती थी, गारी सुनाने में गाने में तो उनकी एक साथी सहेली थी मंजू।
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मंजू उम्र में भाभी से दो तीन साल छोटी होगी, लेकिन साइज में मेरा मतलब,.... ओके ३६ डी नहीं डबल डी , बाहर एक कोठरी में रहती थी शादी हुए दो साल हुए होंगे, मरद उसका पंजाब गया था कमाने, और घर का सारा काम काज करने में भाभी का हाथ बटाती थी, और हम लोगों के लिए भाभी ही। उसके आने से होली से लेकर मजाक तक में भाभी २० पड़ने लगी थीं,



मेरी कजिन पास के ही मोहल्ले में रहती थी और भाभी की एकलौती ननद थी। जैसा की भाभी ने अपनी चिठ्ठी में लिखा था की

वह दसवें का बोर्ड का इम्तहान पास करके ग्यारहवे में गयी थी। बनारस वाली गुड्डी की समौरिया, और दोनों पक्की सहेली। एक दूसरे से झगड़ा करने में, चिढ़ाने में गरियाने में, ... बताया तो पिक्चर हाल में जब गुड्डी ने मेरा हाथ पकड़ के अपने सीने पर रखा था,.... जैसे सांप सीढ़ी के खेल में किसी को २१ वाली सीढ़ी मिल जाए और सीधे ९३ पर पहुँच जाय, जिस गुड्डी को देख के मैं सिर्फ ललचाता रहता था, बस सोचता रहता था ये मिल जाये, उसके चूजों के बारे में सोच के पजामे में तम्बू बन जाता था, खुद उसने,... तो उस समय गुड्डी के बगल में वही थी, पिक्चर हाल में।




मेरी ममेरी बहन, और भाभी की रिश्ते नाते में भी जोड़ कर एकलौती ननद, तो सारे मजाक का सेंटर वही बनती थी और मुझे बी ही भी उसी से जोड़ कर. लम्बी थी अच्छी खासी, पढ़ने में भी तेज थी, ... और वो जिस गली में रहती थी उसके शुरू के घर कुछ धोबियों के थे, वहां गदहे बंधे रहते थे तो मजाक का एक जड़ वो भी था, भाभी के लिए।

भाभी की भाभी और गुड्डी की मम्मी -

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ये रिश्ता भी उतना ही दिलचस्प है जितना जिनका रिश्ता है। असल में वो कोई भाभी की सगी भाभी नहीं थी, लेकिन एक बात की भाभी की कोई सगी भाभी वैसे भी नहीं थीं,... दूसरे रिश्ता वो जो माना जाए और रखा जाये,... और जिसका लिहाज हो।


वो भाभी से दस बारह साल बड़ी रही होंगी, लेकिन मजाल की कभी नाम लिया हो, ननद का नाम नहीं लिया जाता तो बस बिन्नो। गाँव में घर दोनों लोगों का सटा था, और उनका घर, मेरा मतलब की भाभी के भाभी का घर बहुत बड़ा, जैसे पहले के गाँव के घर होते थे, दो खंड के मरदाना -जनाना वाले, काफी कुछ पक्का, दो मंजिला, ... और वहीँ से भाभी की शादी हुयी थी, सामने बड़ी सी आम की बाग़,... डेढ़ दो सौ पेड़ तो रहे होंगे, उसी बाग़ में बरात टिकी थी। अभी भी मुझे याद है तीन दिन की बरात,... मैं एकलोता छोटा भाई, शहबाला,... खिचड़ी की रस्म में भाभी की भाभी ने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की नाम ले ले के असली वाली गारियाँ सुनायीं, ...


लेकिन गाँव घर के रिश्ते उलझे भी रहते हैं, मेरी भाभी की ननिहाल और भाभी की भाभी का मायका एक ही था और वहां वो रिश्ते में बड़ी थीं। पर उन्होंने चुना अपनी ससुराल का रिश्ता,... ननद भाभी से ज्यादा रसीला रिश्ता कौन होगा।


देखने में , ओके चलिए वो भी बता देता हूँ, ३५ -३६ की होंगी तो थोड़ी स्थूल लेकिन मोटी एकदम नहीं, जो एम् आई एल ऍफ़ वाली कैटगरी होती है समझिये उसके पहले पायदान पे कदम रख चुकी थीं दीर्घ नितंबा, दीर्घ स्तना, .. गोरी खूब, गुड्डी उन्ही पर गयी थी। तीन लड़कियों की माँ, सबसे बड़ी, और बाकी दोनों भी दो तीन साल के अंदर,... लेकिन देख के कोई कह नहीं सकता था। और मजाक करते समय या गारी गाते समय उन्हें इस बात का कोई फरक नहीं पड़ता था की उनकी बेटियां उनके पास हैं।

भाभी कुछ दिन उनके यहाँ रह के पढ़ी भी थीं, इसलिए वो रिश्ता और तगड़ा हो गया था.

गुड्डी लेकिन मेरी भाभी को दीदी कहती थी, और उसके भी दो कारण थे एक तो भाभी को उनके मायके में सब लोग दीदी ही कहते थे, दूसरी बात जब भाभी वहां रह के पढ़ती थीं तो गुड्डी से दोस्ती भी बहुत हो गयी थी और उम्र का अंतर् भी उतना नहीं था,...
भाई साहब के कैरेक्टर का भी थोड़ा वर्णन...
और भाभी तो भाभी कम दोस्त ज्यादा थी...
छेड़-छाड़ और मस्ती में हीं देवर को ट्रेंड करने की शुरुआत करते रहती हैं...
 

motaalund

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बनारस का रस


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कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाकात हो जायेगी। तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था। यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था।


तो मैंने जल्दी से जल्दी सारी तैयारी कर डाली।

पहले तो भाभी के लिए साड़ी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी, बनयान, एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी। फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं। बनारस के लिए कोई सीधी गाड़ी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहां से बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और आटो से बनारस। बड़ौदा में हम लोग एक फील्ड अटैचमेंट में थे और कह सुन के एक दो दिन पहले निकलना पॉसिबल था, पर कोई सीधी गाड़ी बनारस छोड़िये मुग़लसराय की भी उस दिन की नहीं थी जिस दिन का मेरा प्रोग्राम था इसलिए इतनी उछल कूद.

वहां मैंने एक रेस्टहाउस पहले से बुक करा रखा था। सामान वहां रखकर मैं फिर से नहा धोकर फ्रेश शेव करके तैयार हुआ। क्रीम आफ्टर शेव लोशन, परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुई सफेद शर्ट।

आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्की,...

शाम हो गई थी। मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाकर मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ। गुड्डी से मिल लूंगा और कल एकदम सुबह जाकर उसके साथ घर चला जाऊँगा। बस से दो-तीन घंटे लगते थे। रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली। मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं।

लेकिन वहां पहुँच कर तो मेरी फूँक सरक गई।

वहां सारा सामान पैक हो रहा था। भाभी की भाभी या गुड्डी की माँ (उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं। अचानक प्रोग्राम बन गया।

अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बनाकर आया था। मैंने मन ही मन अपने को गालियां दी और प्लानिंग कर बच्चू।


गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई। फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे। बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे। इसलिए सब जल्दी-जल्दी तैयारी करनी पड़ गई लेकिन अब सब पैकिंग हो गई है। मेरा चेहरा और लटक गया था।

हम लोग बगल के कमरे में थे।

भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे। गुड्डी एक बैग में अपने कपड़े पैक कर चुकी थी। वो बिना मेरी ओर देखे हल्के-हल्के बोलने लगी- जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं, है ना। वो उठकर मेरे सामने आ गई और मेरे गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर बोलने लगी-

“अरे बुध्धू। सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं। मैं तुम्हारे साथ ही जाऊँगी। पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी और तुम्हारी रगड़ाई करूँगी…”

मेरे चेहरे पे तो 1200 वाट की रोशनी जगमग हो गई-


“सच्ची…” मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

“सच्ची…” और उस सारंग नयनी ने इधर-उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भरकर एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़कर उधर ले गई जहां बाकी लोग थे। मेरे कान में वो बोली-

“मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे…”
“एकदम…” मैंने भी हल्के से कहा।

किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रही थी। मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाऊँगा रेस्टहाउस में रुका हूँ। कल सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा।

वो बोली

अरे ये कैसे हो सकता है। अभी तो आप रुको खाना वाना खाकर जाओ। लेकिन मैं तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाकात तो हो ही गई। आप लोग भी बीजी हैं। थोड़ी देर में ट्रेन भी है।

तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी।
गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। बह भी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी। लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।

मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।
भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर। अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा।

लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं। उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…”

भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के…” चंदा भाभी ने छेड़ा।

गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। “मेरे साथ की ही है, पिछले साल दसवां पास किया है

“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। भैया। जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं। “अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…” भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।

मैंने फिर वही रट लगाई- “मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”

“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।

“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। इम्तहान तो हो ही गया है उसका। लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी। लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”



चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
बनारस... बना रस..
और रस की तो खान है....
हमारे तरफ भी ननदों को बुन्नी और देवरों को बबुआ हीं कहा जाता है... न कि नाम से बुलाया जाता है...
 
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