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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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हर चीज का अपना मजा है....Mene romance likhna usi kahani ke karan chalu kiya
अटूट bosom friend...रिश्तों के झुरमुट में गिनती भूल जाना स्वाभाविक है
लेकिन एक रिश्ता इसमें गिना नहीं गया, जो सब रिश्तों से ऊपर है और आनंद बाबू और रीत में सहज ही बन गया,
मित्र का, एक सहज संबंध
धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपति काल परखिये चारी
महतारी... बुआ भी नहीं छूटती ...ससुराल में कोई भी लड़का फंस जाए तो सबसे ज्यादा रगड़ाई उसके बहन की ही होती है और आनंद बाबू के साथ भी यही हो रहा है
शायद डॉ राजी कोई शीर्षक सजेस्ट कर दें तो....Maine yeh kahani jab naav mai antkakvadi chupa hua tha tab Tak padi hai.par mazaa aa raha hai dobara padne mai.komal ji maffi apki bhaki story na padne ke liye.aap itni achi writer ho khabi incest ya adultery pe hath kiu nahi azmati.kabhi sochiyega
मजा पहली होली का ससुराल में...Meri kahani छुटकी - होली दीदी की ससुराल में, adultery vaale group men hi hai aur usme INCEST ke bhi kayi parsang hain .
aagar aap story par jaayenge to usme Incest aur adultery ka tag milega . aur 1st page pe jo index aaap dekhenge usmen bhi INCSEST vaale prsang saaf najarr aayenge
usmen abhi bhi jo prasang chal rha hai uska bhi shirshak hai ननद के भैया बने उनके सैंया-
Adultery - छुटकी - होली दीदी की ससुराल में
छुटकी - होली दीदी की ससुराल मेंयह कहानी सीक्वेल है, मेरी एक छोटी सी लेकिन खूब मज़ेदार और गरमागरम होली की कहानी, मज़ा पहली होली का ससुराल में, जी अभी उसकी लिंक भी दूंगी , उसके पहले पेज को रिपोस्ट भी करुँगी, लेकिन उसके पहले इस कहानी की हलकी सी रूपरेखा, जिस कहानी से जुडी है ये कहानी दो चार...exforum.live
शेरनियों के पंजे में शिकार...फागुन के दिन चार भाग ११
आज रंग है - रस की होली
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फिर तो उंगलियों ने पहले पलकों के ही ऊपर और फिर कस-कसकर गालों को मसलना, रगड़ना। हाँ वो एक ओर ही लगा रही थी और होंठों को भी बख्श दिया था। शायद उसे मेरे सवाल का अहसास हो गया था।
रीत कान में बोली- “दूसरा गाल तेरे उसके लिए। दोनों हाथों का रंग एक ही गाल पे। कम से कम पांच-छ कोट और एक हाथ जो गाल से फिसला तो सीधे मेरे सीने पे। मेरे निपलों को पिंच करता हुआ।
मेरे मुँह से सिसकी निकल गई।
रीत- “अभी से सिसक रहे ही। अभी तो ढंग से शुरूआत भी नहीं हुई…”
और ये कहकर मेरे टिट्स उसने कसकर पिंच कर दिए और मुझे गुड्डी को आफर कर दिया-
“ले गुड्डी अब तेरा शिकार…” और ये कहकर उसने मेरे गाल पर से हाथ हटा लिया।
मैंने आँखें खोलकर शीशे में देखा- “उफफ्फ। ये शैतान। कौन कौन से पेंट। काही, स्लेटी। चेहरा एकदम काला सा लग रहा था और दूसरी ओर अब गुड्डी अपने हाथ में पेंट मल रही थी। एक वार्निश के डिब्बे से सीधे। सिलवर कलर का। चमकदार।
गुड्डी रीत से बोली- “हे मैंने कसकर पकड़ रखा था जब आप लगा रही थी तो अब आप का नंबर है। कसकर पकड़ियेगा जरा भी हिलने मत दीजिएगा…”
“एकदम…” रीत ने पीछे से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए। लेकिन वो गुड्डी से दो हाथ आगे थी। उसने हाथ पकड़कर सीधे अपनी पाजामी के सेंटर पे ‘वहीं’ लगा दिए और अपने दोनों पैरों के बीच मेरे पैरों को फँसा दिया।
गुड्डी ने अपने प्यारे हाथों से मेरे गाल पे सफेद सिल्वर कलर का पेंट लगाना शुरू कर दिया और मैं भी प्यार से लगवा रहा था। उसने पहले हल्के से फिर कस-कसकर रगड़ना शुरू कर दिया।
मैं गुड्डी के स्पर्श में डूबा था।
दुष्ट रीत, अब उसके दोनों हाथ फ्री हो गए थे और गुड्डी के साथ वो भी। पहले तो वो पीछे से गुड्डी को ललकारती रही-
“अरे कस को रगड़ ना। इत्ता इन्हें कहाँ पता चलेगा। हाँ ऐसे ही। थोड़ा नाक के नीचे। अरे मूंछ साफ करवाने का क्या फायदा अगर वो जगह बच जाय। गले पे भी…”
लेकिन कुछ देर में रीत का बायां हाथ मेरे बर्मुडा के ऊपर से।
एक तो आगे-पीछे से दो किशोरियां। एक का जोबन आगे सीने से रगड़ रहा हो और दूसरे के उभार खुलकर पीठ से से रगड़ रहे हों। ‘वो’ वैसे ही तन्नाया था। और ऊपर से रीत की लम्बी शैतान उंगलियां। पहले तो उसने बड़े भोलेपन से वहां छुआ फिर एक-दो बार हल्के से सहलाने के बाद कसकर साइड से एक उंगली से उसे रगड़ने लगी।
चन्दा भाभी दूर से उसकी शरारत देख रही थी और मुश्कुरा रही थी।
पीछे से उसने अपनी लम्बी उंगली मेरी पिछवाड़े की दरार में। पहले तो हल्के-हल्के और फिर जैसे बर्मुडा के ऊपर से ही घुसेड़ देगी। मैं थोड़ा चिहुंका। वो एक-दो पल के लिए ठहरी। फिर उसने दो उंगलियां कस-कसकर अन्दर ठेलनी शुरू कर दी।
“उईई… औउच…” मेरी आवाज निकल गई।
“अरे अभी एक-दो उंगली में ये हालात है। अभी तो तीन-चार उंगली वो भी पूरी अन्दर। आने दो दूबे भाभी को…” हँसकर रीत उंगली मेरी गाण्ड की दरार पे रगड़ती बोली।
“अरे उंगली। मजाक करती हो…” चंदा भाभी हँसकर बोली- “ऐसे मस्त लौंडे के तो पूरी की पूरी मुट्ठी अन्दर करूँगी। चीखने चिल्लाने दो साले को। इससे कम में इसे क्या पता चलेगा?”
कहकर चंदा भाभी ने रीत को और उकसाया।
“सही कहती हो भाभी अरे इनकी बहना राकी का अन्दर लेंगी। वो पूरी की पूरी गाँठ अन्दर ठेलेगा और वो छिनार। तो ये भी तो आखिर उसी के भाई है…”
और अब रीत खुलकर बर्मुडा के ऊपर से ‘उसे’ मुठिया रही थी।
“एकदम…” गुड्डी ने भी हाँ में हाँ मिलायी- “लेकिन गलती इनकी नहीं है। अपनी मायके वालियों को मोटा-मोटा घोंटते देखकर आखिर इनका भी मन मचल गया होगा…” गुड्डी फिर बोली। उसने थोड़ा सा वार्निश पेंट मेरे बालों पे भी लगा दिया।
“अच्छा अच्छा तू तो बोलेगी ही। इसकी ओर से…” चन्दा भाभी ने चिढ़ाया।
रीत का मेरे पिछवाड़े उंगली करना जारी था। वो बोली-
“अरे भाभी। कोई खास फर्क नहीं है बहन भाई में। एक आगे से लेती है और। एक पीछे से लेता है…”
“अरे बहिना छिनार। भाई गंड़ुआ है…” चंदा भाभी ने गाया।
“अरे अपनी बहिना साली का भंड़ुआ है…” रीत ने गाने को आगे बढ़ाया।
मैं समझ गया था की वो चंदा भाभी से कम नहीं है।
अब गुड्डी रंग करीब करीब लगा चुकी थी। उसका एक हाथ अब रीत के साथ बर्मुडा फाड़ते मेरे चर्म दंड पे।
जैसे दो किशोरियां मिलके मथानी चलाये, बस उसी तरह। दोनों के हाथ मिलकर। दाएं-बाएं, आगे-पीछे। आप सोच सकते हैं ऐसे फागुन की कल्पना और साथ में दोनों के उभार भी दोनों ओर हल्के-हल्के रगड़ रहे थे।
मैंने शीशे में देखा। मेरे एक ओर का चेहरा काला काही, और दूसरी ओर सफेद, चमकदार वार्निश।
“किसके साथ मुँह काला किया?” चंदा भाभी भी अब उन दोनों के साथ आ गईं थी।
रीत बोल रही थी- “और किसके साथ करेंगे? अपनी प्यारी-प्यारी मस्त सेक्सी। सबका दिल रखनेवाली…”
लेकिन उसकी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे यार सबका दिल रखती है तो अपने भय्या का भी रख दिया तो क्या बुरा किया?”
“तुम ना अभी से इसका इत्ता साथ दे रही है। तो आगे का क्या हाल होगा?” चन्दा भाभी बोली।
मैं शीशे में अपनी दुर्गति देख रहा था। एक ओर गुड्डी ने सफेद वार्निश से तो दूसरी ओर रितू ने गाढ़े काही, स्लेटी रंग के पेंटों से। मेरा हाथ कब का उनकी गिरफ्त से छूट चुका था। उन दोनों को इसका अंदाज नहीं था।
उधर रीत ने मेरी दोनों हथेलियों को अपनी पाजामी के अन्दर और जैसे ही मेरा हाथ ‘वहां’ पहुँचा। कसकर उसने अपनी गदराई गोरी-गोरी जांघों को भींच लिया। अब न तो मेरा हाथ छूट सकता था, और ना मैं उससे छुड़ाना चाहता था।
“आ ना मेरी माँ। क्या वहां से। देख ना तेरे यार ने कितनी कसकर दबोच रखा है। प्लीज गुड्डी। अगर ना आई ना। तो जब तेरी फटेगी ना। तो मैं भी ताली बजाऊँगी…” रीत ने फिर पुकार लगायी।अब मेरी बारी
मैं झटके से मुड़ा, और बोला- “कर लिया तुम दोनों ने, जो कर सकती थी। चलो अब मेरी बारी है। ऐसा डालूँगा ऐसा डालूँगा…”
और वो दोनों हिरणियां 1- 2- 3- फुर्र। और छत के दूसरी ओर से मुझे अंगूठा दिखा रही थीं।
चन्दा भाभी भी मुश्कुरा रही थी।
मैंने बोला- “एक बार पकड़ लूंगा तो ऐसा रंगूंगा ना…”
“तो पकड़ो न…” हँसकर मेरी जान बोली।
“रंग है भी क्या? क्या लगाओगे?” कैटरीना, मेरा मतलब मस्त-मस्त चीज, रीत बोली। बात तो उसकी सोलह आना सही थी। मेरे पास तो रंग था नहीं। और पेंट की सब ट्यूबें उन दोनों ने हथिया ली थी। यहाँ तक की मेज पे रखा अबीर गुलाल भी।
“रंग चाहिये तो पैसा लगेगा…” रीत बोली।
“लेकिन पैसा भी तो बिचारे के पास है नहीं…” गुड्डी ने छत के दूसरे कोने से आवाज लगायी।
रीत बोली- “अरे यार इन्हें पैसे की क्या कमी? इनके पास तो पूरी टकसाल है। थोड़ा एडवांस पैसा ले लेंगे अपने माल का और क्या? दो दिन दो रात का 100 रूपये मैं दे दूँगी। है मंजूर?”
गुड्डी बोली- “यार तू तो रेट खराब कर देगी। अभी तो 10 रूपये में चलती होगी वो। लेकिन किसके लिए। दो दिन दो रात?”
“अरे और कौन? अपने…” और आँख नचाकर वो चुप हो गई।
मैं उसे ध्यान से देख रहा था, कि क्या बोलने वाली है। अब वो मेरे पास आ चुकी थी।
पास से रीत बोली- “ये आफर कहीं नहीं मिलेगा। दो दिन दो रात राकी के साथ। पचास आज और पचास कराने के बाद…”
वो जान गई थी की मेरे पास रंग तो है नहीं।
पर मेरा दिमाग भी ना। कभी-कभी चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, रीत के साथ का असर ।
मैंने अपने दोनों हाथों में अपने गालों का रंग रगड़ा और जब तक रीत समझे-समझे। वो मेरी बांहों की गिरफ्त में। रंग से सनी मेरी हथेलियां उसके गुलाबी गालों की ओर बढीं। पर उस चतुर बाला ने झट से अपने कोमल कपोल अपनी हथेलियों के पीछे।
यही तो मैं चाहता था, मेरे दोनों हाथ सीधे उसके टाईट कुरते को फाड़ते जवानी के खिलौनों, उसके गदराये गोरे उभारों की ओर, और एक पल में वो मेरे मुट्ठी में थे।
वो बिचारी। अब लाख कोशिश कर रही थी पर बहुत देर हो चुकी थी। मैं जमकर दबा रहा था, बिना रगड़े मसले। सिर्फ मेरी उंगलियों का दबाव उसके कुरते पे ठीक जोबन के ऊपर।
सिर्फ चंदा भाभी मेरा मतलब समझ रही थी और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
“हे छुड़ा ना क्या खड़ी-खड़ी, टुकुर-टुकुर देख रही है…” उस कातर हिरनी ने गुड्डी की ओर देखकर गुहार लगाई।
गुड्डी भी दूर खड़ी मुश्कुराती रही। वो समझ गई थी की कहीं वो नजदीक आई तो रीत को छोड़कर मैं उसे ना गड़प कर लूँ।
“आ ना मेरी माँ। क्या वहां से। देख ना तेरे यार ने कितनी कसकर दबोच रखा है। प्लीज गुड्डी। अगर ना आई ना। तो जब तेरी फटेगी ना। तो मैं भी ताली बजाऊँगी…” रीत ने फिर पुकार लगायी।
“क्या दीदी। पता नहीं कब फटेगी। अरे आपसे चिपके हैं तो आप ही। मेरी तो वैसे भी छुट्टी के दिन चल रहे हैं…” हँसकर गुड्डी बोली।
क्या मस्त उभार थे, मुझसे नहीं रहा गया और अपने आप मेरा ‘जंगबहादुर’ उसकी पाजामी के ऊपर से ही। उसके मस्त चूतड़ों के ऊपर से रगड़ने लगा। मेरी उंगली ने एक निपल को पकड़ लिया और कसकर पिंच कर दिया।
रीत जानबूझ कर चीखी और बोली- “उईईईई…” “हे अपनी बहन की समझ रखी है क्या? जा कर रहे हो ना। जाकर उसकी इस तरह से दबाना, मसलना, या वो जो सामने खड़ी खिलखिला रही है। बहुत चींटे काटते हैं उसको। जाकर उसकी…”
और जवाब में मैंने दूसरे निपल पे भी पिंच कर दिया।
अब तो रीत के मुँह से,… वो एकदम चंदा भाभी की ननद लग रही थी-
“हे। हे अच्छा, आएगी ना वो तुम्हारी बहना कम रखैल मेरी पकड़ में। ना अपने सारे भाईयों को चढ़वाया उसके ऊपर। एक निकालेगा दूसरा डालेगा। एक आगे से एक पीछे से…” उसकी गालियां भी मजे दे रही थी, लेकिन उसकी बात गुड्डी ने पूरी की।
“और एक मुँह में…” गुड्डी अब तक पास आ गई थी।
" और असली मजा तो उस छिनार को तब आएगा जब रॉकी चढ़ेगा और उसकी गाँठ बनेगी, तेरी बहना के बिल के अंदर। तेरा असली जीजा वही होगा, एक बार रॉकी चढ़ जाएगा न तो खुद उस के सामने जाके कुतिया बन के निहुरी रहेगी वो " रीत ने रगड़ाई का लेवल और बढ़ाया।
“ये कोई तरीका है किसी जवान लड़की से पेश आने का। मेरी तो इत्ती कस-कसकर दबा रहे थे की अब तक दुःख रहा है और उसकी। फूल से छू रहे हो। क्या मजा आएगा बिचारी को और फागुन में सब लोग बनारस में एकदम खुल्लम खुल्ला बोलते हैं और तुम…”उंगली के निशान
बस मैंने रीत को छोड़कर गुड्डी को पकड़ लिया, और दोनों हाथ पीछे करके कसकर मोड़ दिया।
“दीदीईई…” वो रीत को देखकर चिल्लाई। पर वो कहाँ आती।
“अच्छा। आप आई थी ना मुझे बचाने जो। छुट्टी तेरी नीचे है ऊपर थोड़ी है। रगड़वा कस-कसकर। सच में बहुत मजा आता है…” वो आँख नचाकर बोली।
मेरी और सब की निगाह अब रीत के ऊपर पड़ी। उसके टाईट कुरते को फाड़ते उभार और उस पर मेरी पाँचों उंगलियों के निशान।
मैंने रगड़ा मसला नहीं था सिर्फ कसकर, कचकचा के दबाया था। इसलिए। साफ-साफ सारी उंगलियां अलग-अलग, जैसे शादी वादी में हाथ का थापा लगाते हैं ना दरवाजे पे। बिलकुल उसी तरह। एक गदराये मस्त रसीले जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरी ओर सफेद वार्निश। दोनों निपल जो मैंने पिंच किये थे। वो खड़े बाहर झाँक रहे थे और दोनों पे रंग के निशान सबसे ज्यादा।
चंदा भाभी, मैं और गुड्डी तीनों वहां देखकर मुश्कुरा दिए।
रीत ने नीचे झाँक के देखा और अपने उरोजों पे मेरी उंगली के निशान देखकर शर्मा गई।
उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसका दुपट्टा पहले ही गायब हो चुका था। जो चन्दा भाभी की करतूत थी।
“उंगली के निशान एकदम साफ-साफ हैं। चोर जरूर पकड़ा जाएगा…” गुड्डी ने चिढ़ाया।
“चोर की डाकू। दिन दहाड़े…” मुझे देखकर रीत कुछ गुस्से में, कुछ प्यार में बोली।
“जो भी सजा हो मुझे मंजूर है…” मैंने हँसकर इकबाल-ए-जुर्म किया।
“अरे नहीं। इसने अपना निशान लगा दिया है। रीत अब ये जगह इनकी हो गई, समझी? फागुन में जोबन लुट गया तेरा…” चंदा भाभी ने चिढ़ाया।
“चलिए भाभी दिया। अरे मेरा देवर है, मेरा ननदोई है…” रितू ने बोल्ड होकर कहा और मुझसे मुड़कर बोली-
“पर चोर जी। तुम्हारी सजा ये है की मुझसे भी ज्यादा कसकर निशान इसके उभारों पे नजर आने चाहिए…”
“एकदम मंजूर…” मैं बोला। लेकिन जब तक मेरा हाथ गुड्डी के जोबन के ऊपर पहुँचता, उस चपल बाला ने अपने दोनों हाथों से छुपा लिया था और मुड़कर मुझे विजयी निगाह से देखा।
गुड्डी चपल थी तो मैं चालाक। मैंने अपने हाथ उसकी जांघों की ओर बढ़ा दिए और फ्राक उठाने लगा। वो चिल्लाई- “नहीं नहीं। प्लीज वहां नहीं। आज नहीं, अभी नहीं प्लीज…” और उसके दोनों हाथ फ्राक पे।
यही तो मैं चाहता था। पलक झपकते फ्राक नीचे से छोड़कर मैंने ऊपर पकड़ लिया और जब तक वो समझती, सम्हलती। दोनों उभार मेरी मुट्ठी में थे। वो कुछ शिकायत, कुछ खीझ, कुछ गुस्से में मेरा हाथ छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली-
“तुम ना। ये फाउल है…”
“प्यार और जंग में कुछ भी फाउल नहीं होता मेरी सोन चिरैया…” मैं कसकर उसके उभार दबाते बोला।
गुड्डी समझ गई थी की अब मेरी मुट्ठी नहीं खुलने वाली। उसने उरोजों से मेरा हाथ छुड़वाने की कोशिश छोड़ दी और मुँह फुलाकर बोली-
“तुम भी ना। सबके सामने इस तरह कैसे बोलते हो? सब लोग…”
“क्यों चंदा भाभी। आपको कुछ बुरा लगा?” मैंने पूछा।
“एकदम नहीं। तुमने कुछ कहा क्या मैंने तो सुना ही नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली।
“और रीत तुम्हें। कुछ गलत लगा?”
“एकदम लगा…” चमक के वो बोली। अपनी मुश्कान छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने कहा-
“ये कोई तरीका है किसी जवान लड़की से पेश आने का। मेरी तो इत्ती कस-कसकर दबा रहे थे की अब तक दुःख रहा है और उसकी। फूल से छू रहे हो। क्या मजा आएगा बिचारी को और फागुन में सब लोग बनारस में एकदम खुल्लम खुल्ला बोलते हैं और तुम…”
गुड्डी ने को रीत को देखकर जीभ निकालकर मुँह चिढ़ा दिया, और मैंने कसकर अब उसके उभार दबा दिए।
मैंने कहा- “क्या करूँ तुम्हारी दीदी। बोल रही है…”
“दीदी का तो बहाना है मजा तुम ले रहे हो। बदमाश। रात को देखना। बहुत तंग कर रहे हो ना…” फुसफुसा के वो बोली।
मेरी उंगलियां उसके किशोर उभारों पे भी मेरे गालों का रंग छोड़ रही थी। लेकिन ज्यादा रंग तो रीत के उभारों पे ही लग गया था। तभी मेरी खोजी निगाह। गुड्डी के पीठ की ओर पड़ी, चड्ढी के पास फ्राक फूली हुई थी।
“ये बात है…” मैंने झट से हाथ डालकर निकाल लिया। रंग की सारी ट्यूबें। लाल, गुलाबी, काही, नीला, पीला। जैसे किसी हारती हुई सेना को रसद का भंडार मिल जाय वो हालत मेरी थी। मैंने उसे पकड़े-पकड़े एक हथेली पे गुलाबी दूसरे पे लाल रंग मला।
गुड्डी- “हे हे। क्या करते हो?” कहकर वो नखड़ा दिखा रही थी।रंग
दीदी का तो बहाना है मजा तुम ले रहे हो। बदमाश। रात को देखना। बहुत तंग कर रहे हो ना…” फुसफुसा के वो बोली।
मेरी उंगलियां उसके किशोर उभारों पे भी मेरे गालों का रंग छोड़ रही थी। लेकिन ज्यादा रंग तो रीत के उभारों पे ही लग गया था। तभी मेरी खोजी निगाह गुड्डी के पीठ की ओर पड़ी, चड्ढी के पास फ्राक फूली हुई थी।
-“ये बात है…”
मैंने झट से हाथ डालकर निकाल लिया। रंग की सारी ट्यूबें। लाल, गुलाबी, काही, नीला, पीला। जैसे किसी हारती हुई सेना को रसद का भंडार मिल जाय वो हालत मेरी थी। मैंने उसे पकड़े-पकड़े एक हथेली पे गुलाबी दूसरे पे लाल रंग मला।
“दीदी…” कहकर वो चीख रही थी, छटपटा रही थी।
“हाँ। आप आई थी ना मुझे बचाने…” कहकर रीत मुश्कुरा रही थी और उसकी बड़ी-बड़ी आँखें मुझे उकसा रही थी।
“तू कह रह थी ना की सबके सामने। सही बात है तो चलो अन्दर हाथ डाल देता हूँ…”
मेरे एक हाथ ने आराम से उसके बटन खोले और रंग लगाने दूसरा हाथ अन्दर।
“और क्या छुट्टी नीचे वाली की है। ऊपर थोड़े ही है…” चंदा भाभी बोली।
गुड्डी- “हे हे। क्या करते हो?” कहकर वो नखड़ा दिखा रही थी। लेकिन मैं भी जानता था की उसे अच्छा लग रहा है और वो भी जानती थी की मैं रुकने वाला नहीं हूँ।
मुझे रात की चंदा भाभी की बात याद आ रही थी की उसे खूब रगड़ो, सबके सामने रगड़ो। सारी शर्म गायब कर दो तब वो मजे ले लेकर करवाएगी। पहले तो मैंने दोनों हाथों से उसके मस्त उभार पकड़े, दबाये। अब मैं सीख गया था की कैसे उंगलियों के निशान वहां छोड़े जाते हैं। मैं बस कस-कसकर दबा रहा था जोबन रस लूट रहा था।
रीत दूर खड़ी चिढ़ा रही थी उसे- “क्यों गुड्डी मजा आ रहा है। अरे यही तो उम्र है इन उभारों का रस लूटने का…”
मैं भी अब मेरी उंगलियां, कभी उसके निपल को फ्लिक करती कभी पिंच कर देती। रंग तो बस एक बहाना था।
गुड्डी भी अब खुलकर दबवा रही थी, मजे ले रही थी। फिर वो मेरे कान में बोली-
“अरे यार मेरे साथ तो रात भर खुलकर और खोलकर लोगे। वो जो खिलखिला रही है ना। कामरस मेरा मतलब आम-रस वाली। उसके आमों का रस लूटो ना फिर कब पकड़ में आएगी…”
रीत तंग पीली कमीज और शलवार में हम दोनों को देखकर मुश्कुरा रही थी- “क्या पक रहा है तोता मैना में?” फिर वो बोली- “क्यों साजिश तो नहीं हो रही?”
“अरे नहीं, मैं ये देख रहा था की किसका बड़ा है? गुड्डी का या…” मैं हँसकर बोला।
“बड़ा तो रीत दीदी का ही है। मुझसे बड़ी भी तो हैं…” गुड्डी बोली।
रीत ने चिढ़ाया- “घबड़ा मत घबड़ा मत। लौटकर आयेगी न एक हफ्ते के बाद तब देखूंगी। कम से कम दो नंबर बढ़ जायेंगे ये…”
मैं जैसे ही रीत की ओर बढ़ा, वो चालाक मेरा इरादा भांप गई और तेजी से मुड़ी,
लेकिन पीछे चंदा भाभी। आखिर रीत उनकी भी तो ननद थी-
“अरे कहाँ जा रही हो ननद रानी, कौन सा यार इन्तजार कर रहा है?” उन्होंने उसका रास्ता रोका और इतना समय काफी था मेरे लिए।
“मुझसे बड़ा यार कौन होगा। मेरी भाभी भी, साली भी…” मैंने बोला और पीछे से पकड़ लिया।
मछली की तरह वो फिसली, लेकिन सामने चंदा भाभी और मेरी पकड़ भी। वो समझ रही थी की मेरे हाथ कहाँ जाने वाले हैं इसलिए उसने दोनों हाथ सीधे अपने उभारों पे।
“एक बार ले लेने दो ना अन्दर से। प्लीज…” मैंने अर्जी लगाई।
“तो ले लो न। मैंने कब मना किया है…” उस शैतान ने बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोला।
वो भी जानती थी और मैं भी की बिना ऊपर का हुक खोले। मेरा हाथ ऊपर से अन्दर नहीं जा सकता और जब तक वो हाथ हटाएगी नहीं।
मैं हाथ नीचे नाड़े की ओर ले गया पर वो एक कातिल अदा से मुश्कुराकर बोली- “हे हे। एक ट्रिक दो बार नहीं चलती…” वो देख चुकी थी की मैंने कैसे गुड्डी के साथ।
लेकिन मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही था। मेरे दोनों हाथ उसकी जांघों तक पहुँचे फिर एक झटके में उसका कुरता ऊपर उठा दिया। कुरता ऊपर से तो टाईट था लेकिन नीचे से घेर वाला। और जब तक वो सम्हले सम्हले मेरा हाथ अन्दर।
तुरंत वो ब्रा के ऊपर, लेसी ब्रा में उसके उड़ने को बेताब गोरे-गोरे कबूतर और मेरे हाथ में लगा लाल गुलाबी रंग ब्रा के ऊपर से ही उसे रंगने लगा।
“अब ताला लगाने से क्या फायदा जब चोर ने सेंध लगा ली हो…” चंदा भाभी ने रीत को छेड़ा और ये कहते हुए अन्दर किचेन में चली गईं की वो दस पन्दरह मिनट में आती हैं।
बिचारी रीत। उसने मुझे देखा और अपने हाथ हटा लिए। एक बार पहले ही मैं उन कबूतरों को आजाद करा चुका था और मुझे मालूम था की ये फ्रंट ओपन ब्रा है। इसलिए अगले पल चटाक-चटाक।
हुक खुल गया और वो जवानी के रसीले खिलौने बाहर।
“थैंक्स रीत…” मैं बोला और अगले ही पल उसके गदराये रसीले जोबन, मेरी मुट्ठी में।
क्या मस्त उभार थे, एकदम परफेक्ट, खूब कड़े भी मुलायम भी, जस्ट पके। पहले तो बस मैं छूता रहा, सहलाता रहा। तभी मुझे होश आया की यार ये टाइम ऐसे ही। मैंने गुड्डी को आवाज दी-
“हे यार। जरा सीढ़ी के पास। चंदा भाभी तो बोलकर गई हैं की दस पन्दरह मिनट के लिए तो बस सीढ़ी ही। अगर कोई आता दिखाई दे न तो आवाज लगा देना…”
“अच्छा जी। मुझसे चौकीदारी करवाई जा रही है…”गुड्डी चमक के बोली
रीत ने भी उसकी ओर रिक्वेस्ट के तौर पे देखा। और गुड्डी सीढ़ी के पास जाकर खड़ी हो गई।
मुस्कराते हुए उसने मुझे ग्रीन सिग्नल भी दे दिया,
चंदा भाभी खुद ही जान बुझ के बोल के गयी थीं की पंद्रह बीस मिनट में आती हैं, इतना समय काफी होगा उनकी ननदिया की बिल में सेंध लगाने के लिए,
रीत की पीठ हम दोनों की ओर थी, गुड्डी मुझे मीठी निगाहों से देख रही थी चाहती तो वो भी थी की मैं रीत के साथ, एक बार डांट भी चुकी थी और अब उससे नहीं रहा गया तो चुदाई का इंटरनेशनल सिग्नल, अंगूठे और तर्जनी से गोल बना के और
रंग लगाते-लगाते मैं रीत को टेबल के पास लेकर आ गया था। सहारे के लिए झुक के उसने टेबल पकड़ ली थी और झुक गई थी। अब उसके मस्त चूतड़ ठीक मेरे तन्नाये लिंग से ठोकर खा रहे थे। मैंने खुलकर मम्मे मसलने शुरू कर दिए। क्या चीज है ये भी यार, मैं सोच रहा था। कभी दबाता, कभी मसलता, कभी रगड़ता और कभी निपल पकड़कर कसकर खींच देता।
वो सिसकियां भर रही थी, अपने मस्त चूतड़ रगड़ रही थी। सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी वो बेस्ट थी।
“रीत इज बेस्ट…” मैंने उसके कान में फुसफुसाया।
जवाब में वो सिर्फ सिसक दी। खुली छत। लेकिन मैं जैसे पागल हो रहा था। थोड़ा सा बरमूडा सरका के मैंने अपना हथियार सीधे,
“ओह्ह… नहीं फिर कभी अभी नहीं…” वो सिसकियां भर रही थी। लेकिन साथ ही उसने अपनी टांगें चौड़ी कर ली।
“रीत। रीत, बस थोड़ा सा। खाली टच। ओह्ह…” और मैं खुला सुपाड़ा उसकी पुत्तियों पे रगड़ रहा था। वो पिघल रही थी। मैंने कसकर उस सुनयना की पतली बलखाती कमर पकड़ ली।
तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- “अरे दूबे भाभी जल्दी…”
मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया।
गुड्डी भी, उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।
अब तो हेडमास्टरनी के सामने सबकी बोलती बंद...दूबे भाभी
तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- “अरे दूबे भाभी जल्दी…”
मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया। गुड्डी भी। उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।
चंदा भाभी भी बाहर आ गई थी और हम लोगों को देखकर मुश्कुरा रही थी। उन्हें अच्छी तरह अंदाजा था।
तब तक सीढ़ी पर से दूबे भाभी आई।
मैं उन्हें देखता ही रह गया।
जबरदस्त फिगर, दीर्घ नितंबा, गोरा रंग, तगड़ा बदन, भारी देह लेकिन मोटी नहीं। मैं देखता ही रह गया। लाल साड़ी, एकदम कसी, नाभि के नीचे बँधी, सारे कर्व साफ-साफ दिखते, स्लीवलेश लो-कट आलमोस्ट बैक-लेश लाल ब्लाउज़, गले से गोलाइयां साफ-साफ झांकती, कम से कम 38डीडी की फिगर रही होगी। नितम्ब तो 40+ विज्ञापन वाली जो फोटुयें छपती हैं। एकदम वैसे ही। पूरी देह से रस टपकता। लेकिन सबसे बड़ी बात थी, एकदम अथारटी फिगर। डामिनेटिंग एकदम सेक्सी।
उन्होंने सबसे पहले रीत और गुड्डी को देखा और फिर मुझे। नीचे से ऊपर तक।
उनकी निगाह एक पल को मेरे बरमुडे में तने लिंग पे पड़ी और उन्होंने एक पल के लिए चंदा भाभी को मुश्कुराकर देखा।
लेकिन जब मेरे चेहरे पे उनकी नजर गई तो एकदम से जैसे रंग बदल गया हो। मेरे रंग लगे पुते चेहरे को वो ध्यान से देख रही थी। फिर उन्होंने गुड्डी और रीत को देखा, तो दोनों बिचारियों की सिट्टी पिट्टी गम।
“ये रंग। किसने लगाया?” ठंडी आवाज में वो बोली।
किसी ने जवाब नहीं दिया। फिर चंदा भाभी बोली- “नहीं होली तो आपके आने के बाद ही शुरू होने वाली थी लेकिन। बच्चे हैं खेल खेल में। जरा सा…”
“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”
“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।
बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया-
“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही। पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”
दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।
वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।
“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?”
वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।
“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर कहा- “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…”
मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”
हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”
“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।
“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।
“करूँगा रीत और तीन बार करूंगा कम से कम। आखीरकर, तुम्हीं ने तो कहा था की हमारा रिश्ता ही तिहरा है। मुझे मेरी और तेरी किश्मत के बारे में पूरी तरह से मालूम है…” हँसकर मैंने हल्के से कहा।
रीत का चेहरा खिल गया। बोली- “एकदम और मेरी गिनती थोड़ी कमजोर है। तुम तीन बार करोगे और मैं सिर्फ एक बार गिनूंगी। फिर दुबारा से…”
तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।
“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।
तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया
दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”
उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”
“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।
तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया।
“चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।
उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर- “क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।
चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली-
“उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा-
“क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”