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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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न केवल कहानी बल्कि कमेंट के कमेंट पर भी आपकी सृजनता दिखती है...क्या बात कही आपने
" बेपनाह हुस्न , इनकी गदराई जिस्म की तपन , इनकी सिडक्टिव भरी बातें , इनकी कामातुर भाव- भंगिमा और इनकी कामुक हरकतों से '
इसलिए ही हर थ्रेड, हर लिखने वाला आपके कमेंट्स की प्रतीक्षा करता है।
एक अच्छा कमेंट न सिर्फ लिखने वाले को तृप्त करता है बल्कि कहानी की मीमांसा कर के उसकी की पकड़ को, पहुँच को और बढ़ाता है।
बात आपकी एकदम सही है अकेले आनंद बाबू की यह हालत नहीं होती,
फागु के भीर, अभीरन ते गहि, गोविंद ले गयी भीतर गोरी ।
भाय करि मन की पद्माकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी।
छीन पीतांबर कमर ते, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाय कही मुस्काय, लला फिर अइयो खेलन होरी।
मेरी एक होली की छोटी कहानी भी है, लला फिर अइयो खेलन होरी, तो होली में ये हालत तो होनी ही है, और आनंद बाबू किसको कहीं भी रंग लगाएं, देह की होली खेले, लेकिन नेह की होली तो गुड्डी के साथ ही है और इसलिए उस की हालत सब से ख़राब है
एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सोँ,
कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ
और होली का मशहूर गाना तो आपने सुना ही होगा, " रसिया को नार बनाउंगी, रसिया को " तो बस आज साली, सलहज सब को मौका मिला है और अगले कई पोस्टो तक होली का ये रंग छलकेगा और एक बात और होली में रंग लगाने का तो मजा है लेकिन लगवाने वाला भी इन्तजार करता है, जीजा हो, देवर हो , नन्दोई हो , उन गोरे गोरे मुलायम , चूड़ियों से सजे हाथों के स्पर्श, का
रंग तो बहाना है ,
कहानी के पहले भी और बाद भी...कोमल जी,
"लला फिर अइयो खेलन होरी", आपकी एक ऐसी कहानी है जो है तो छोटी ओर सुखांत पर उर्मी के रूप में एक ऐसी विद्रोही नायिका की कहानी है जो सामाजिक सीमाओं को अपने तरीकों से तोड़ डालती हैं और अपने मनचाहे को पा लेती हैं।
उर्मी की सामाजिक प्रस्थिति और विवाह समाज की उन अनेकों अभावग्रस्त ललनाओ की सच्ची मार्मिक कहानी है जिनका बेमेल विवाह ही नियति होता है।
"अपनी होली तो हो ली" कहानी की यह लाईन मन को अंदर तक भिगो देती हैं, अंतरात्मा को झकझोर कर रख देती हैं। भले ही ना रुला पाए पर आंखों को पानी से भर जरूर देती है।
वहीं नायक पर भी मन रीझ जाता है "शाबास, जै बात - ये हुई ना मर्दों वाली बात !!! " कहकर पीठ थपथपाने का मन करता है।
आपने इस कहानी को बहुत जल्दी खत्म कर दिया, आपकी कहानी - आपका निर्णय सर माथे।
परंतु मेरा विनम्र आग्रह है कि उर्मी का विद्रोह, उसकी बैचेनी, उसकी विवशता, नायक का आना, समाज से भिड़ जाना, भाभी का प्रभावी भूमिका निभाना इत्यादि - इत्यादि। बहुत कुछ ऐसा है जिसे आपकी लेखनी ही समृद्ध कर सकती थी, की जानी चाहिए।
आपकी सभी कहानियों में अपार संभावनाएं हैं, ऐसा मैंने पहले भी निवेदन किया था। और कहानियों को भले ही छोड़ दे पर इस कहानी के संदर्भ में मैं करबद्ध निवेदन करता हूं कि इसे पुनः नवीन और विस्तृत रूप में रिपोस्ट अवश्य करें।
पता नहीं क्यों आप पर अधिकार सा लगता है इसलिए आपसे ऐसे ही जूझ जाता हूं क्योंकि आपकी लेखनी से पूर्ण आशा भी हैं बाकी निर्णय आपका।
अन्यथा मत लिजियेगा।
सादर
And special dance sequence of रीत "Chikni Chameli" is noteworthy...Super duper update Madam...
The naughty saying in Hindi.."Bura naa Mano Holi Hai" fits perfectly for this update.
Reet &Guddi "terrorising" Anand Babu with their paints..(with special reference to his pichwada)...& Chanda Bhabhi adding her 2 cents to the proceedings about not just her fingers but her whole fist!!
Anand Babu's mind and his (your) reference to Chacha Chaudhury was amazing..I think there are very few story writers in this forum who can come up with such Gems!! Earlier also, you came up with PC Circar and Sherlock Holmes..Hats off!!
The "finger prints" on Guddi's Joban with the associated pic was awesome!!
And finally, description of Dubey Bhabhi's figure...kya kehna....
I think "more fun" awaits as the night will progress.
So, eagerly waiting for the upcoming updates...
Overall, awesome update Madam. Claps Worthy!!
komaalrani
आगे मायके में बोली तो अठन्नी से शुरू हुई थी...ससुराल में सबसे पहले रगड़ाई जो भी लड़का फंसे उसके बहन का नाम ले के होती है, लेकिन आनंद बाबू ने रंग न होते हुए भी मगज अस्त्र का प्रयोग किया और गालों में लगा रंग रीत और गुड्डी के जोबन के ऊपर
इत्ते रसभरे कमेंट्स के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अगर थोड़े व्यूज, थोड़े कमेंट्स मिलते रहें तो इस कहानी पर हर सप्ताह नियमित रूप से पोस्ट आ सकती है अब ये पाठको के हाथ में है वो कब पोस्ट चाहते हैं
आखिर गुड्डी की मम्मी भी उम्र के उस पड़ाव से गुजर चुकी थी...एकदम सही कहा आपने होली और चोली की तो तुक भी मिलती है और जोबन तो आता ही है लुटाने के लिए, हाथ का थापा लगा के आनंद बाबू ने जोबन रीत का अपने नाम कर लिया, गुड्डी पर तो उनका पूरा अधिकार उनके भैया की शादी से ही होगया ज्ब बरात में गुड्डी का फेंका बीड़ा सीधे उनकी छाती में लगा, और गुड्डी की मम्मी ने सबके सामने पूछ लिया, ' बियाह करोगे उससे '।
शायद लोग चुनाव में बिजी हों...Despite low views and fewer comments, i am planning to post next part in a few day.
सबका तो नहीं कह सकते...कहानी एक बार पोस्ट होने के बाद पाठक की सम्पत्ति हो जाती है। बहुत बहुत धन्यवाद
यह कहानी, इट्स अ हार्ड रेन और येलो रोजेज शायद मेरी छोटी कहानियों में अलग हैं और पहली और तीसरी सबसे रोमंटिक। इसके साथ ही मोहे रंग दे के कुहक शुरआती भाग, लेकिन इन सबको शायद पाठको का वो प्यार दुलार नहीं मिला,
हाँ आप ऐसे रसज्ञ पाठको के भरोसे ही मै ऐसी कहानी लिखने की हिम्मत कर पाती हूँ।
फागुन के दिन चार का अगला भाग, बस आज ही
दूबे भाभी के पास हर जोड़ का तोड़ है...फागुन के दिन चार- भाग १२
पहले रंगाई फिर धुलाई
1,42,810
“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”दूबे भाभी कड़क के बोलीं
“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।
बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -
“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”
दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।
वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।
“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?” वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।
“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…” मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”
हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”
“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।
“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।
तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।
“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।
तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया
दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”
उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”
“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।
तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। “चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।
उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-
“क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।
चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”
चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- “अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका…”
दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”
मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”
“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”
मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
दूबे भाभी ने सारा जायजा ले लिया...----दूबे भाभी और भांग के गुलाबजामुन
दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”
मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”
“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”वो मुस्कराते हुए बोलीं, उनकी निगाहे मेरे चिकने चेहरे पर चिपकी थी, जहाँ से गुड्डी और रीत ने रगड़ रगड़ कर एक एक दाग रंग का साफ़ कर दिया था, और चेहरा और साफ़ चिकना लग रहा था।
मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
“सच। अरे तब तो एक और…”
डबल डोज वाले नत्था के दो गुलाब जामुनों का असर तो होना ही था थोड़े देर में। उनकी निगाह बियर के ग्लासों पे पड़ी- “ये क्या है?”
रीत अब मेरी परफेक्ट असिस्टेंट बनती जा रही थी- “अरे भाभी ये इम्पोर्टेड ड्रिंक है, स्पेशल। ये लाये हैं…”
मेरे कहने पे वो शायद ना मानती लेकिन रीत तो उनकी अपनी ननद थी।
“हाँ एकदम। लीजिये ना मेरे हाथ से…” मैं बोला।
उन्होंने लेते समय मेरी उंगलियों को रगड़ दिया। बियर पीते-पीते उनकी निगाह गुड्डी की ओर पड़ी-
“तू पिछले साल बचकर आ गई थी ना होली में आज सूद समेत। सारे कपड़े उतारकर…” दूबे भाभी पे गुलाब जामुन का असर चढ़ रहा था।
चंदा भाभी ने कुछ उनके कान में फुसफुसाया। दूबे भाभी की भौंहें चढ़ गईं। लेकिन फिर बियर की एक घूँट लगाकर बोली-
“गलत मौके पे आती है तेरी ये सहेली…”
फिर कुछ सोचकर कहा- “चल कोई बात नहीं। आज छुट्टी है तो होली के दिन तक तो। होली के तो अभी 5 दिन है। उस दिन कोई नाटक मत करना…”
“लेकिन मैं तो आज, इनके साथ। मम्मी ने बोला था। अभी थोड़े देर में ही। होली वहीं…” गुड्डी घबड़ाते हुए बोल रही थी।
अब तो दूबे भाभी का पारा जैसे किसी के हाथ से शिकार निकल जाय। मुझसे बोली- “तुम तो आओगे ना इसको छोड़ने। तो फिर रंग पंचमी में। रुकोगे ना…”
“असल में मेरी ट्रेनिग. फिर हफ्ते में दो ही दिन यहाँ से सीधी गाडी है सिकंदराबाद के लिए और ट्रेन से टाइम लगता है, इसलिए इसको छोड़ने के बाद, मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की, कितने दिन रुकूंगा, कब आऊंगा लेकिन,...
दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा गायब हो गया। फिर उनकी भौंहे चढ़ गईं। उन्होंने कुछ चंदा भाभी से कहा। मैं और रीत थोड़ी दूर खड़े थे।
चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा।
उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।
दूबे भाभी ने जैसे गुड्डी के साथ जम के मस्ती करने की सोची हो और साथ में बोनस में मैं, लेकिन गुड्डी का वो पांच दिन का चक्कर
तो आज होली बिफोर होली में वो साफ़, मतलब उसकी चुनमुनिया साफ़ बच गयी,
और होली के दिन भी वो यहाँ नहीं होती, और सबसे बड़ी बात
होली आफटर होली में मैं बच निकलता, ट्रेनिंग पर जाने के नाम पर तो उनकी सारी प्लानिंग, न होली बिफोर होली में, न होली में न होली आफ्टर होली में मतलब रंग पञचमी में
गुड्डी तो आनंद बाबू के आर्गेनाइजर की तरह है...शर्त - होली आफटर होली की
चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा। उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।
फिर वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली-
“हे दूबे भाभी बहुत नाराज हैं। क्या तुम किसी तरह और नहीं रुक सकते। वो रंग पंचमी के दिन। कोई रास्ता निकालो प्लीज…”
"तुम्हें तो मेरी मजबूरी मालूम है ना। उसी दिन मेरी ट्रेनिंग शुरू होने वाली है। और फिर ट्रेन से कम से कम दो दिन लगता है। कैसे बताओ…” मैंने उसे समझाने की कोशिश की।
“लेकिन मैं भी क्या करूँ। तुम्हीं बताओ?” वो हाथ मसल रही थी।
मैं क्या बोलता।
मैंने फिर उसे समझाया- “अरे यार टिकट एयर का। मालूम है। चलो मान लो। लेकिन तुम्हारे मम्मी पापा भी तो आ जायेंगे।
भूल गए तुम गुड्डी ने हड़काया, गुड्डी के दिमाग में कुछ चमका और वो मुस्करायी
सच में भूल गया था,
एक तो रीत के हाथ के बनाये दहीबड़े में पड़े डबल डोज भांग का नशा, दूसरे रीत के जोबन का भी नशा, तीन दिन का रुकना तो कल ही तय हो गया था गुड्डी की मम्मी और बहनों के सामने फोन पे बात करते हुए और यही तो
और गुड्डी न होती न याद दिलाने के लिए तो मेरी कस के ली जाती वो भी बिना तेल लगाए और गुड्डी और उसी सब बहनों के सामने, लेती उसकी मेरा मतलब मम्मी, उन्होंने मुझसे वायदा किया था की मैं होली पे लौट के कम से कम तीन दिन यहाँ रहूं, गुड्डी की बहनो और श्वेता ने मुझे बाँट भी लिया था होली खेलने के नाम पे और फ्लाइट का टाइम भी मैंने देख लिया था, एकदम टाइम से पहुँच जाता, और गुड्डी के पापा तो कानपुर से ही दस बारह दिन के लिए बाहर
अब मुझे एक एक बात याद आ गयी थी, ये गुड्डी न हो तो मेरा एक पल काम न चले, और वो सरंगनायनी जिस तरह देख रही थी, मानो कह रही हो, क्यों नहुँ होउंगी मैं, ऊपर से लिखवा के लायी हूँ, पानी चाहे जहाँ इधर उधर गिराओ, लेकिन तुम और तेरा दिन मेरी मुट्ठी में है और रहेगा ,
आवाज से ज्यादा मन में, गुड्डी की मम्मी और उनका चेहरा, छेड़ती आँखे और बातें और सबसे बढ़ कर ब्लाउज फाड़ते,... और उनकी आवाज एक बार फिर चालू हो गयी
" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...
" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "
और मैं जल्दी जल्दी कैलकुलेट कर रहा था, बनारस से भी हफ्ते में दो ही दिन सिकंदराबाद के लिए ट्रेन थी, जिससे मैंने लौटने का रिजर्वेशन करा रखा था, उसके हिसाब से मुझे एक डेढ़ दिन मिलता गुड्डी के यहाँ, लेकिन एक दिन का गुड्डी का एक्स्ट्रा साथ,... इसके लिए तो मैं,... और मैंने हल भी ढूंढ लिए, बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट ) से दिल्ली की तो तीन चार फ्लाइट रोज हैं और दिल्ली से सिकंदराबाद की भी, ... तो अगर मैं फ्लाइट से प्लान बनाऊं ,... तो कम से कम डेढ़ दिन और मिल जाएगा, और ट्रेनिंग शुरू होने के चार पांच घंटे पहले पहुँच जाऊँगा तो थोड़ा लेट वेट भी हुआ तो टाइम से,... हाँ रगड़ाई होगी तो हो , गुड्डी तो रहेगी न पास में,... और मम्मी खुश हो गयी तो क्या पता जो सपने मैं इत्ते दिन से देख रहा हूँ इस लड़की को हरदम के लिए उठा ले जाने का, ... वो पूरा ही हो जाए , ...
फिर श्वेता और छुटकी की बात भी याद आ गयी,
" गुड्डी मेरा भी रिजर्वेशन " श्वेता की आवाज थी,
" दी आपका तो ये दौड़ के के कराएंगे,... सबसे पहले,... होली आफ्टर होली में आखिर आप नहीं होंगी तो इनके कपडे कौन फाड़ेगा अंदर तक रंग कौन लगाएगा "
गुड्डी चहक के बोली।
" देख यार गुड्डी, कपडे पे रंग लगाना, एक तो कपडे की बर्बादी, दूसरे रंग की बर्बादी। फिर कपड़े उतारने में बहुत टाइम बर्बाद होता है, इसलिए सीधे फाड़ ही देने चाहिए, ... मैं तो यही मानती हूँ " श्वेता, गुड्डी से एक साल सीनियर, बारहवीं वाली,बोली।
दो आवाजें और आयी, पहले छुटकी की फिर मंझली जो अब तक चुप थी, ' मैं भी यही मानती हूँ , दी "
" देख यार, मेरी जिम्मेदारी इन्हे इनके मायके से पकड़ के ले आने की है, फिर तीन दिन तक,... तुम सब जानो, तेरे हवाले वतन साथियों। " गुड्डी अंगड़ाई लेकर बोली,
और दूबे भाभी भी तो यही चाह रही हैं, तीन दिन कम से कम, अगर घर से थोड़ा पहले निकल लूँ, वहां भी तो गुड्डी से ही होली खेलने का लालच है तो गुड्डी की मम्मी के आने के पहले ही यहाँ और सबके मन की बात हो जायेगी, सबसे बढ़ के गुड्डी की।
और यही बात दूबे भाभी भी चाह रही थीं, की मैं होली के बाद की होली के लिए, तो दूबे भाभी भी खुश, मम्मी भी खुश और गुड्डी की बहने भी खुश
बस मैं मान गया
“तुम भी तो समझो। मैं कुछ कहती हूँ। कुछ करो ना और यार तुम तीन दिन रह लोगे यहाँ। रीत भी तो है। उसके साथ भी…”
समझ तो गुड्डी भी गयी थी, मैं सपने में भी उसकी, मेरा मतलब मम्मी की बात टालने की नहीं सोच सकता था लेकिन बोनस के ऊपर बोनस, सामने रीत खड़ी थी, उसे सुनाते हुए वो बोली
मैंने सामने देखा। रीत। एकदम सेक्सी, टाईट कुरते में उसके मस्त उभार छलक रहे थे। जवानी के कलशे रस से भरे, पतली बलखाती कमर और नीचे मस्त गदराये चूतड़, चिकनी केले के तने की तरह जांघें। मुझे देखकर मुश्कुराते हुये उसने अपने रसीले होंठों को हल्के से काट लिया और एक भौंह ऊँची कर दी। बस। बिजली गिर गई।
“चलो तुम इतना कहती हो तो आ जायेंगे रंगपंचमी तो नहीं लेकिन उसके पहले तीन दिन, …” मैं मुश्कुराकर बोला।
रीत पास आ गई थी।
“लौटकर आयेंगे भी ये और तीन दिन रुकेंगे भी, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाएंगे "…” गुड्डी बोली।
“अरे वाह फिर तो…र हम लोग रंगपंचमी पहले मना लेंगे, तीन दिन मना लेंगे, जैसे आज होली बिफोर होली ” रीत ने अपनी गोरी कलाई ऊँची की और दोनों ने दे ताली। गुड्डी चंदा भाभी की ओर गई। रीत ने मेरी ओर हाथ किया और हम दोनों ने भी दे ताली।
“हे तुम्हें मालूम है ना की मैं क्यों लौट रहा हूँ?” मैंने रीत से पूछा।
“एकदम…” और उसकी निगाहों ने मेरी आँखों की चोरी, उसके किशोर जोबन को घूरते पकड़ ली थी- “नदीदे। लालची। बदमाश…” वो बोली और मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ा दिया।
तब तक गुड्डी लौट आई थी। उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। वो बोली-
“चंदा भाभी कह रही थी की तुम खुद दुबे भाभी से बोलो ना तो उन्हें अच्छा लगेगा…”
“चलो…” और मैं गुड्डी का हाथ पकड़कर दूबे भाभी की ओर चल पड़ा।
“मैं, हम दोनों रंग पंचमी के पहले ही आ जायेंगे। और मैं तीन दिन रुक के जाऊँगा। गुड्डी बोल रही थी की यहाँ पे रंग पंचमी जबरदस्त होती है तो मैंने सोचा की पहले तो मैंने कभी देखी नहीं हैं फिर आप लोगों के साथ…फिर आप की बात टालने की तो, आपने कहा तो, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाऊँगा लेकिन तीन दिन पूरा यहीं,
लेकिन दूबे भाभी समझदार नहीं, महा समझदार, रीत की भी भाभी, उन्होंने एक बार मेरी ओर देखा फिर गुड्डी की ओर और जोर से मुस्करायी, फिर चंदा भाभी की ओर, मानों उनसे कह रही हो लोग तो शादी के बाद जोरू का गुलाम होते हैं ये तो पहले से ही, एक बार गुड्डी ने बोला और,
लेकिन मैं रुकने को मान गया था मुझे चिढ़ाए गरियाये बिना क्यों छोड़ती
" अगर न रुकते न तो तेरी भी गांड मारती और तेरी महतारी की भी, वो भी सूखे, कडुवा तेल बहुत महंगा हो गया है। "
मेरी निगाहें रीत के कटाव पे, गदराये मस्त उभारों पे टिकी हुई थी। आज भले बच जाय उस दिन तो, चाहे जो हो जाय और वो सारंग नयनी भी मुश्कुरा रही थी। मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली-
“होना है तो हो जाय। अब इत्ते दिनों से बचाकर तो ये जोबन रखा है। लुट जाय तो लुट जाय…”
हमारी आँख का खेल रुका दूबे भाभी की आवाज से- “अरे ये तो बहुत अच्छी बात है चलो कुछ मीठा हो जाय…” और प्लेट से उठाकर उन्होंने एक गुलाब जामुन मेरे मुँह में।
मैंने बहुत नखड़ा किया। मुझे तो मालूम था कि ये दिल्ली के नहीं नत्था के भंग के डबल डोज वाले हैं और मेरे अलावा चंदा भाभी को और गुड्डी को भी।
लेकिन चंदा भाभी भी दूबे भाभी के साथ- “अरे ये ऐसे कोई चीज नहीं घोटते, जबरदस्ती करनी पड़ती है। ये बिन्नो के ससुराल वालों की आदत है…” और ये कहकर उन्होंने दबाकर मेरा मुँह खुलवा लिया। जैसे रात में पान खिलाने के लिए उन्होंने और गुड्डी ने मिलकर किया था। और गप्प से बड़ा सा गुलाब जामुन मेरे अन्दर, मैं आ आ करता रह गया।