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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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सच कहूँ तो दो चार शब्द चुराने आया था अपने लिये1. बनारस की शाम ( पूर्वाभास कुछ झलकियां )
हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। मेरी चोर निगाहें छुप छुप के उसके उभार पे,... और मुझे देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ गुड्डी ने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली, खुश।
“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।
“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” गुड्डी झिझक के बोली।
“अरे लोग जलते हैं। तो जलने दो ना। जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।
“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुस्करा के गुड्डी बोली।
“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”
मेरी बात काटकर तिरछी निगाहों से देख के वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”
“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।
“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।
“तुम भी ना,… चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर गुड्डी बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।
“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुस्करा दी।
“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”
मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने। मम्मी पापा दोनों ही ना। सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिय
“सच्ची?”
“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।
चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी। खरीदने वाले पटे पड़ रहे थे। जगह-जगह होली के गाने बज रहे थे। कहीं कहीं जोगीड़ा वाले गाने। कहीं रंग लगे कपड़े पहने। तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”
“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।
“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”उस सारंग नयनी ने हड़का के कहा।
वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।
“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…” मेरे पर्स से निकालकर उसने 100 की नोट पकड़ा दी।
रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”
“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर उस ने हड़का के कहा।
फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-
“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”
मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचकारियां चल पड़ी हों साथ-साथ। मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं रोक दो। चलो उतरो…”
गली के अन्दर पान की दुकान। तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।
पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”
मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”
वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”
“लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।
पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”
“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।
वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”
मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।
“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।
“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…” मैं बोला।
हँसकर वो बोली-
“जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…”
मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली- “लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”
“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”
“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”
“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”
“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…” गुड्डी, टिपिकल गुड्डी
तब तक मिठाई की दुकान आ गई थी ओर हम रिक्शे से उतर गए।
“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।
“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।
“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।
“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला।
“हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”
“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।
“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।
पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था-
“हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”
“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”
बनारसी बाला ने मुस्कराते हुए भेद खोला।
सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ।
रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।
जोगीरा सा रा सा रा। और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।
तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।
अभी होने वाली सासु माँ दूर हैं...बेचारे आनंद बाबू चाहे कुछ भी कर लो. तुम्हारी माँ बहन के नाम पर गरियाना तो होगा. और पूरा होगा.
क्या कहा रीत ने बहन आगे से लेती है. और भाई पीछे से. बहन का भडुआ. सही गली दीं है.
और माझा किस की ऊँगली से आ रहा है. भौजी की या रीत की ऊँगली से. पर माझा तो तुम्हे भी आ रहा है.
साली, सासु, और सजनी तुम्हारी होने वाली हम्म्म्म..
गजब की मस्ती है. होली की खुशियाँ उमंगो से भरी. और इरोटिक होली लिखने मे तो आप का जवाब नहीं.
अपनी मोटी पिचकारी की बारी तलाश रहे थे आनंद बाबू...सुन लो आनंद बाबू. किसका रेट लग रहा है. अरे तुम्हारी उस छिनार बहेनिया का. वो भी पूरा 100 रुपया. और तुम्हारी सजनी गुड्डी क्या कहे रही है. अरे रेट मत ख़राब करो. 10 रूपए भी ज्यादा है.
वाह 50 काम होने से पहले 50 काम के बाद. और पूरा बनारस लाइन मे लगा रहेगा. बारी बारी. एक आएगा एक जाएगा. तुम्हारी बहेनिया के आगे और पीछे. गुड्डी मौका ना छोड़े. एक मुँह मे.
पर साली की रागड़ाई का आनंद तो और ही है. उसका रंग उसपे ही. सच मे साली के जोबनो को भींच कर पूछवाड़े पर खुटा रागड़ने वाला इरोटिक सीन लिखा हेना माझा ही आ गया. बड़ी बोल रही थी अब मेरी बारी.
और तुम्हारी सजनी की कब बारी आएगी. अमेज़िंग.
ये तो बचपन के खेल थे...वाह जी वाह. वो होली ही क्या. जिसमे चोली ना फटे. जोबन ना लुटे. और लूटने वाला जीजा हो नन्दोई भी हो तो कहना ही क्या. छाप पड़ते ही रीत ने जोबन उसके नाम कर दिया.
पर सजनी प्रेमिका से होली ना खेली तो क्या होली. माझा आ गया. अरे उसकी बहेनिया ने ही तो कहा. सजा मिली है. जितनी जोरो से रीत की उस से भी ज्यादा जोर से गुड्डी रानी की.
अरे शादी से पहले वाली होली है पगली. साजन देवता को मायूस मत करना. लुटा दे होबान. और रंग कहा छुपाया है. फ्राक के निचे. अमेज़िंग.
साली के साथ हर मौसम ... प्यार का मौसम...वाह री गुड्डी रानी. प्रेमी से होली खेलने का तो माझा ही कुछ और है. वो बेचैनी वो शारारत उफ्फ्फ. फुले हुए गुब्बारो का राज हमेशा उसके दिल मे रहता है की इन गुब्बारो मे ऐसा क्या है. जो प्रेमी खिंचा चला आए. और ऊपर से बिन ब्याहे पहेली होली साथ खेलने को मिल जाए तो कहना ही क्या. वाह मतलब गुड्डी रानी ने भी अपने आनंद बाबू के नाम अपना जोबन हवाले कर ही दिया.
पर साली के साथ तो किसी मौसम की जरुरत नहीं. बस होली फागुन मिल जाए. रीत जैसी साली हो तो कहना ही क्या. कैटरीना कैफ. जोबन से निचे तक माझा ही आ गया. खूब मशला है साली को.
और आनंद बाबू ऐसी प्रेमिका कहा मिलेगी जो खुद नई नई चिड़िया तुम्हे रोंदवाने लाए. जब तुम लगे तो चौकीदारी करें. माझा आ गया.
तो आनंद बाबू टोटल 3x3=9 बारमान गए चंदा भौजी को. एक पल तो डरा ही दिया. सभी सफाई देने लगे. पर सालियों का जोबन ऐसा हो तो रंग तो लगेगा ही. भौजी कोई माज़क का मौका नहीं छोड़ती.
रीत और गुड्डी दोनों ही सयानी निकली. पहले से ही तेल लगाकर आई थी. रीत के तो गोरे कबूतर सफ़ेद कर दिये आनंद बाबू ने. रिस्ता तिगना तो तीन बार. पर साली हो तो ऐसी. तीन बार का वो एक बार गिनेगी. माझा आ गया इस वाले अपडेट मे तो. बहोत सारा कहना था. पर कमैंट्स लिखते वक्त याद ही नहीं आ रहा.
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क्या पता हाथ धोने के बजाय.... ताल पोखर में डुबकी लगवा दें....रीत और गुड्डी जैसी दो - दो जवान और खुबसूरत युवती के बीच सैंडविच बन कर रंग - रस की होली खेलने से बढ़कर और उत्तेजक खेल क्या हो सकता था आनंद साहब के लिए !
इनके बेपनाह हुस्न , इनकी गदराई जिस्म की तपन , इनकी सिडक्टिव भरी बातें , इनकी कामातुर भाव- भंगिमा और इनकी कामुक हरकतों से आनंद साहब भस्म नही हो गए यही बड़ी बात थी ।
एक बार फिर से इस प्रसंग को आपने इरोटिका के शिखर पर पहुंचा दिया ।
एक मर्द और एक वक्त मे ही उसके अपोजिट इतनी सारी महिलाएं - यह आनंद साहब के लिए नाइंसाफी है या वरदान ! अवश्य आनंद साहब इसे वरदान ही समझ रहे होंगे । अवश्य ही वह अपने भाग्य पर इतरा रहे होंगे ।
चंदा भाभी के बाद एक और परिपक्व दूबे भाभी का पदार्पण हुआ है । दूबे भाभी शायद रीत की सगी भाभी है । देखते हैं यह मैडम बहती गंगा मे हाथ धोने को तैयार है या नही !
बहुत ही खूबसूरत अपडेट कोमल जी । आउटस्टैंडिंग , अमेजिंग एंड टू - टू हाॅट अपडेट ।
बल्कि साली सलहज के साथ न करने पर गुड्डी बुरा मान जाती है...पहले तो इस बात की बधाई की आप के कमेंट भी अब नियमित रूप से हिंदी में आने लगे, और हिंदी में पढ़ने का मजा अलग है
बात आपकी एकदम सही है, असली मजा तो सजनी का है, गुड्डी का, साली और सलहज तो बोनस हैं, फिर गुड्डी बुरा नंही मानती खुद अपने और अपने साजन के मायकेवालों के लिए ग्रीन सिग्नल दे रखा है और जानती है की एक बार आनंद बाबू की झिझक टूट गयी, बनारस का रस लग गया
तो अपने मायके पहुँच के, झिझक छोड़ के अपनी भाभी से साफ़ साफ़ बोल देंगे की वो अपनी देवरानी गुड्डी को बना लें, और एक बार उन्होंने बोल दिया फिर तो उनकी भाभी अपने देवर की बात नहीं टालने वाली, लेकिन वो झिझक टूटे तो
और एक बार बनारस की ससुराल का रस लग गया, हिम्मत बढ़ गयी, तो अपने मायके में मन की बात कहने की झिझक भी टूट जायेगी, हिम्मत भी हो जायेगी।
ऐसा लिखती हैं कि पांच छः पोस्ट भी कम लग रही है.....रीत सामने हो तो किसी को कुछ भी याद नहीं रहता।
होली अब शुरू हो गयी है और अगले पांच छह पोस्टों तक होली ही चलेगी, और होली वाले प्रसंग लिखने में मैं भी कंट्रोल खो देती हूँ, बाद में कई बार लगता है की ये शायद कुछ ज्यादा, पर
होली तो होती ही है मन की करने के लिए।
हाँ... शीर्षक की नायिका ... बहुत दिनों से लापता है...होली का इंतजार तो आप के सभी रिडर्स भी करते है. की कब होली आप की कहानियों मे शुरू होंगी. पर छुटकी वाली कहानी मे सब मेइन किरदार छुटकी को बहोत मिस कर रहे है.
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