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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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सब रीत का दिमाग, शैतान की चरखी है वो, लोग कहते हैं चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है लेकिन रीत का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, क्या सही प्लानिंग बनाई, गुड्डी चंदा भाभी को ले कर अंदर, दूबे भाभी नए माल में उलझीं और रीत और संध्या भाभी ने मिल कर पहली बार होली में दूबे भाभी का चीर हरण कर लिया।
और साया खुद दूबे भाभी ने ऊपर कर लिया और आनंद बाबू ने ऊपर हाथ डाल कर गदराए जोबन का नाप-जोख कर लिया...
 

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद, होली का मौका ही ऐसा है और सोचिये ये देख देख के आनंद बाबू की क्या हालत हो रही होगी।
जब हमारी हालत दयनीय है...
तो आनंद बाबू प्रत्यक्षदर्शी और भुक्तभोगी हैं..
 

motaalund

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ननदें पकड़ी भी गयीं, रगड़ी भी गयीं, गुड्डी चंदा भाभी के हाथ तो रीत दूबे भौजी के लेकिन नयनसुख आनंद बाबू को मिला
कई बार रिंग के बाहर बैठ कर देखने मजा भी अभूतपूर्व होता है...
 

motaalund

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Sayad ye story bahot lambi chalne vali hai. Aur isme aap ke stail ke alava action aur thriller bhi hoga??? Abhi ham sayad story ka ek hi hissa padh rahe hai???

Par muje ab bhi Banaras ka intjar hai komalji.
कुछ सस्पेंस और मगज अस्त्र का इस्तेमाल भी...
 

motaalund

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होली पर्व के आगमन के पूर्व की यह रंगीन होली जहां महिलाओं का चीरहरण हो रहा था , वस्त्र हरण हो रहा था लेकिन इस हरण मे कोई शोक संताप नही बल्कि हर्षोल्लास का वातावरण था , आनंद का फिजां था , उत्तेजना का माहौल था ।
आनंद साहब के धन्य भाग्य जो इन हसीन युवतियों के साथ इस दुर्लभ पल का लुत्फ उठाए ।

नो डाऊट , यह पुरा शमां आपने रंगीन मे बदल दिया । लड़के शायद इससे बेहतर आनंद लेस्बियन वीडीओ क्लिप देखकर भी नही उठा पाते ।

कभी दूबे भौजी का वस्त्र हरण हुआ , कभी चंदा भाभी इस हरण का शिकार बनी , कभी संध्या भाभी इस वस्त्र हरण के थ्रू आनंद साहब पर बिजली गिराई तो कभी रीत ने अपने वस्त्र हरण से आनंद भाई साहब के साथ साथ हमें भी अपना गुलाम बना लिया ।

आनंद साहब के लिए क्या कहें - लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए ।

बहुत बहुत ही जबरदस्त अपडेट कोमल जी ।
अमेजिंग , आउटस्टैंडिंग , हाॅट और जो कुछ भी हो सकता है वह सबकुछ ।
सचमुच .. बेहतरीन नजारा और नजराना पेश किया है .. कोमल रानी ने...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग 16 -
गुड्डी और रीत -होली की मस्ती

१,९६, ८१४



“अरे सिर्फ इसकी क्यों? इसकी दोनों सहेलियों के भी तो…” चंदा भाभी ने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करते हुए कहा- “अब कहाँ कुँवारी बचने वाली ये दोनों…” उनकी निगाह मेरी ओर मुश्कुराती हुई टिकी थी।

“कल का सूरज निकलने के पहले दोनों चुद जानी चाहिए…” दूबे भाभी ने फरमान जारी किया, और वो भी मेरी ओर देख रही थी।

गुड्डी और रीत दोनों शैतान, एक साथ बोली- “मंजूर लेकिन करने वाले से पूछिए…”

उसी जोश में मैं भी बोला- “एकदम मंजूर…”

थोड़ी देर बाद मैंने गुड्डी को ड्रिंक्स इंटरवल में भेजा ड्रिंक्स लेकर, बियर, ठंडाई और चारों ने जमकर पिया। लेकिन वहीं एक गलती हो गई। दूबे भाभी और चंदा भाभी ने पहले कुछ आपस में बातचीत की फिर गुड्डी और रीत से। दोनों एक साथ मेरे पास आकर खड़ी हो गईं।

मैं- “क्यों क्या हुआ?”

गुड्डी मुश्कुराते हुए बोली- “कुछ खास नहीं…” और उसने और रीत ने एक साथ मेरा टाप पकड़ लिया और एक झटके में ऊपर खींच दिया।

मैं चीखता रहा मना करता रहा लेकिन,मैं पूरी तरह टॉपलेस, सिर्फ छोटे से गूंजा के बारमूडा में

वो दोनों, रीत और गुड्डी तो कम से कम ब्रा में थीं, और वो क्यों दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी भी ब्रा में सिर्फ अच्छी खासी रंगी पूरी और सबकी ब्रा में हाथ डाल के मैं जोबन सुख भी ले चुका था और कबूतरों को अच्छी तरह रंग भी चुका था,

पर मैं तो पूरी तरह टॉपलेस

तभी गुड्डी बोली- “जाने दो यार। साल्ला बहुत चीख रहा है…”


रीत बोली- “अरे यार अभी खोलने में इत्ता नखड़ा कर रहा है तो डलवाने में कित्ता करेगा? लेकिन तू कहती है तो छोड़ देती हूँ। आखीरकार, तेरा माल है…”


गुड्डी ने हँसकर जवाब दिया- “अरे नहीं यार, माल तो तुम्हारा भी है, बड़ी दी हो, पक्की सहेली, पहले तुम्ही नंबर लगा लेना लेकिन देख ना कित्ता हल्ला कर रहा है जैसे हम लोगों ने उसकी बहन की, …”

“अरे पूरा क्यों नहीं बोलती की जैसे हम लोगों ने उसकी बहन चोद दी है। लेकिन उसे तो यही चोदेगा। आखीरकार, घर का माल है उसका हक है। फिर वो नहीं चोदेगा तो कहीं न कहीं तो चुदवायेगी ही वो, तो फिर ये मेरा यार ही क्यों नहीं? चल तू बोलती है तो छोड़ देते हैं, ये भी क्या याद करेगा साल्ला की बनारस में ससुराल में किन दिलदार सालियों से पाला पड़ा था…” रीत बोली

और उन दोनों ने छोड़ दिया मेरा टाप, लेकिन ऐसे की मेरे टॉपलेस होने में कोई कसर थी, टॉप ऊपर मेरे सर में फंसा था और सीना खुला हुआ।



मेरा नहीं गुंजा का जो मैंने पहन रखा था, मेरे कपड़े तो इन दोनों ने हड़प कर लिए थे। मेरे गले तक अटका हुआ था। नुकसान ये हुआ की टाप अब मेरे चेहरे पे फँसा हुवा था और मैं कुछ देख नहीं पा रहा था। फायदा उन दोनों हिरणियों को हुआ, मेरे ऊपर कम्प्लीट कब्ज़ा।



“चल आगे से तू पीछे से मैं…” ये रीत की शहद सी आवाज थी जो मैं सोते हुए भी पहचान सकता था।


“रीत दीदी। अभी आगे का क्या फायदा? हाँ शाम के बाद बात अलग है…” मुँह बनाते हुए गुड्डी बोली।



“अरे तू भी ना,यहाँ सब उसी के लिए तड़प रहे हैं। पकड़ तो सकती है ना…” रीत ने उसे हड़काते हुए उकसाया।



और उस दुष्ट ने वही।


वो भी ऊपर से नहीं सीधे बर्मुडा के अन्दर हाथ डालकर। बारमुडा पहले से तना था, दो दो किशोरियां, उनकी चुलबुली बातें, छेड़छाड़ और शैतान उँगलियाँ, खड़ा तो होना ही था

रीत भी कोई कम नहीं थी।

उसके दोनों हाथ मेरे टिट्स पे थे और जैसे कोई किसी लड़की के चूचुक सहलाए दबाये बस उसी तरह, और साथ में उसके आलमोस्ट खुले मस्त उभार, जिनका दीदार भी मैं कर चुका था और जिसके बारे में मैं श्योर था की सिर्फ सोच कर ही जिसके ऊपर वियाग्रा की फुल डोज भी असर ना करे, उसका भी लिंग खड़ा हो जाए। मेरे पीठ के पीछे से, कभी हल्के से दबा देते, कभी रगड़ देते और आगे से गुड्डी की चूचियां, जो अभी भी पूरी तरह फ्राक से बाहर थीं।



आप सोच सकते हैं फागुन का मौसम हो और दो मस्त रीत और गुड्डी की तरह की किशोरियां।

आगे-पीछे से अपने रंग लगे, गदराये गोरे-गोरे किशोर जोबन।

जो चूचियां उठान कहते हैं न बस उस तरहकर रगड़ रही हों तो क्या हालत होगी? बस वही हालत मेरी थी। बल्की उससे भी बदतर। क्योंकि गुड्डी के कोमल, मस्त लेकिन जबर्दस्त पकड़ वाले हाथ मेरे लण्ड पे थे। कभी वो शैतान अपने अंगूठे से उसके बेस पे रगड़ देती तो कभी सुपाड़े पे और साथ में रंग लगाने के साथ-साथ उसे हल्के-हल्के मुठिया तो वो रही ही थी।



रीत की आवाज मेरे कान के पास गूंजी-

“हे पीठ पे तो तुझे रंग लगाना था ना। देख कित्ती सारी जगह बच गई है…”



गुड्डी ने अदा से जवाब दिया- “मेरी अच्छी दीदी, आप लगा दो न देखो मेरे हाथ अभी कित्ते जरूरी काम में बिजी हैं। प्लीज…”


“बिजी की बच्ची तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं…” रीत बोली और पेंट लगे उसके हाथ मेरी पीठ पे बिजी हो गए।

“अरे दीदी, उसकी तो मारेंगे ही…”

खिलखिला के गुड्डी बोली और कसकर मेरे लण्ड को दबा दिया और कहा-

“जब मैं आऊँगी तो इन्होंने तो दूबे भाभी से वादा किया है की उसे, अपनी बहना को लेकर आयेंगे न रंग पंचमी में और कोई दिक्कत होगी तो इन्हीं से मरवा लेंगे। क्यों मारोगे न? आखीरकार, रीत का कहना तो तुम टालते नहीं…”


मैं क्या बोलता। एक से पार पाना मुश्किल था लेकिन यहाँ तो दोनों, बनारस के रस में रसी पगी, रसीली। लेकिन तभी मेरा बल्ब जला।

मैं हँसकर बोला- “मैं एक तुम दो-दो, लेकिन चलो। सालियों से क्या बहस करना। हाँ मेरी भी एक शर्त है। तुम दोनों लगाओ तो सही, लेकिन हाथ का इश्तेमाल नहीं करोगी…”

“तुम बहुत नखड़ा दिखाते हो। वो आएगी ना तेरी बहना। देखना एक साथ तीन-तीन चढ़ेंगे उसपे, और दो इंतेजार करेंगे, तो भी वो बुरा नहीं मानेगी और तुम दो-दो पे ही…” गुड्डी ने मुँह बनाया।

लेकिन रीत चतुर चालाक थी, बड़े भोलेपन से बोली-

“अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से। वरना अपने मायके जाकर रोयेंगे। चल। वैसे भी हमारे हाथों को बहुत से और भी काम हैं…ठीक है हम दोनों हाथ का इस्तेमाल नहीं करेंगे और भी बहुत हथियार हैं हमारे पास ”
मैं भूल गया था रीत के मगज अस्त्र की ताकत


गुड्डी भी समझ गई।
अब बारी आनंद बाबू की है टॉपलेस होने की..
वो भी उनकी चहेतियों के हाथों...

गुड्डी तो सब के साथ मिल बांट कर खाने में यकीन करती है...
अब प्लान के साथी रंग पंचमी तक का प्लान तैयार कर रही हैं...
और उनके निशाने पर आनंद बाबू और उनकी बहिनी भी
 
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