• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

Well-Known Member
22,337
58,267
259
फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
Last edited:

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
होली -गुड्डी और रीत साथ साथ , बिना हाथ



रीत चतुर चालाक थी, बड़े भोलेपन से बोली-

“अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से। वरना अपने मायके जाकर रोयेंगे। चल। वैसे भी हमारे हाथों को बहुत से और भी काम हैं…ठीक है हम दोनों हाथ का इस्तेमाल नहीं करेंगे और भी बहुत हथियार हैं हमारे पास ”
मैं भूल गया था रीत के मगज अस्त्र की ताकत


गुड्डी भी समझ गई।
शुरू हो गयी हैण्ड फ्री होली.
समझा मैं भी लेकिन थोड़ी देर से।

गुड्डी के उभार पे मैंने लाल गुलाबी रंग और दूबे भाभी ने जमकर कालिख रगड़ी थी, और रीत के जोबन का रस तो हम सबने मैंने, दूबे भाभी और चंदा भाभी ने सबने रंग लगाया था। बस उन दोनों हसीनाओं ने उन उभारों को ही हाथ बनाया।

और आगे से गुड्डी और पीछे से रीत ने कस-कसकर रंग लगाना, अपनी चूचियों से शुरू कर दिया, मेरे सीने और पीठ पे।

रंग लगाने का काम दोनों किशोरियों के रंगे पुते दोनों जोबना कर रहा थे थे और तंग करने का काम दोनों के नरम मुलायम हाथ।
गुड्डी की नरम हथेलियां तो मेरे लण्ड को वैसे ही तंग कर रही थी, अब रीत भी मैदान में आ गई।

उसका एक हाथ गुड्डी के साथ आगे और दूसरा मेरे नितम्बों की दरार पे पीछे।

अब मेरा चर्म दंड दोनों के हाथ में बीच में जैसे दो ग्वालिनें मिलकर मथानी मथें, बस बिलकुल उसी तरह। एक ही काफी थी, वहां दोनों, मेरी तो जान निकल रही थी। और साथ में अब रीत की दो उंगली मेरी गाण्ड की दरार में। ऊपर-नीचे रगड़-रगड़ कर। गुड्डी का एक हाथ भी वहां पहुँच गया था वो कस-कसकर मेरे नितम्बों को दबा रही थी।
मैं बोला- “अरी सालियों वहां नहीं। अगर मैं वहां डालूँगा ना तो बहुत चिल्लाओगी तुम…”

मजा जब एक सीमा के बाहर हो जाता है तो मुश्किल हो जाती है मेरी वही हालत हो रही थी।

गुड्डी बोली- “तब की तब देखी जायेगी अभी तो हमारा मौका है। डलवाओ चुपचाप…”

रीत बोली- “हाँ जैसे ये नहीं डालने वाले और हमारे रोकने से मान जायेंगे…” और उसकी उंगली पिछवाड़े घुसने की कोशिश कर रही थी।

तभी दूबे भाभी की आवाज आई- “सालियों, छिनार तुम दोनों को भेजा क्या बोलकर था और किस काम में लग गई?”


और अबकी मेरे कुछ बोलने के पहले ही गुड्डी और रीत के हाथ मेरे टाप पे और टाप बाहर। जो उन दोनों ने फेंका तो सीधे संध्या भाभी के ऊपर, उनका दूबे भाभी और चंदा भाभी के साथ थ्री-सम खतम ही हुआ था।


“अब आयगा मजा। तुमने हम सबकी ब्रा में हाथ डालकर बहुत रगड़ा मसला था, और अब तुम पूरे टापलेश हो गए हो…”गुड्डी और रीत साथ साथ बोली। और उसके बाद तो सब की सब मेरे ऊपर। जो हुआ वो न कहा जा सकता है न कहने लायक है।




उड़त गुलाल लाल भये बादर,
----

मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे।

चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे।

चलो सहेली, चलो सहेली।
अंजाम का पहले से हीं अंदाजा है....
तभी तो डलवाने से पहले डालने का जुगाड़ कर लिया रीत और गुड्डी ने...
और टॉपलेस होने पर आनंद बाबू की गठीली काया का दीदार कर लिया...
फागुन के महीने में तो कण कण से संगीत बरसता है...
तो सहेलियां मिलकर गुलाल से शमा रंगीन बना रही हैं...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
. होली -बनारसी -वो पांच
--

मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे।

चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे।

चलो सहेली, चलो सहेली।
ये पकड़ो ये, पकड़ो इसे न छोड़ो,

अरे अरे अरे बैंया न तोड़ो,

ओये ठहर जा भाभी, अरे अरे शराबी,

क्या हो रजा गली में आ जा

होली होली गाँव की गोरी ओ नखरेवाली,

दूंगी मैं ग ली अरे साली, होली रे होली।




वो पांच मैं अकेले। मैं समझ गया निहत्थे लड़ाई में तो मैं जीत नहीं सकूँगा। दूबे भाभी की पकड़ मैं देख चुका था। अब रीत और गुड्डी के हाथ बर्मुडा से बाहर थे। लेकिन दूबे भाभी और चंदा भाभी ने आगे और संध्या भाभी ने पीछे का मोर्चा सम्हाला।


“हे संध्या जरा पकड़कर देख। बोल तेरे वाले से बड़ा है की छोटा?” चंदा भाभी ने बोला। वो नाप जोख क्या पिछली रात तीन-तीन बार अन्दर ले चुकी थी।

“अरे भाभी ये अभी बच्चा है, वो मर्द हैं…” संध्या भाभी टालते हुए बोली।

“चल पकड़ वरना तुझे लिटाकर अन्दर घुसेड़वा के पूछूंगी…” ये दूबे भाभी थी।


अब संध्या भाभी के पास कोई चारा नहीं था। दूबे भाभी ने हाथ बाहर निकाला और संध्या भाभी ने डाला। थोड़ी देर तक वो इधर-उधर करती रही।

“बोल ना?” चंदा भाभी ने पूछा।


“जिसको मिलेगा ना वो बड़ी किश्मत वाली होगी…” संध्या भाभी बुदबुदा रही थी।

मैंने गुड्डी की ओर देखा, वो मुश्कुरा रही थी और उसका चेहरा चमक रहा था। उसने मेरी आँखें चार होते ही थम्स-अप का साइन दिया।



“बोल ना कैसा लगा?” अब चंदा भाभी उनके पीछे पड़ गई थी।

संध्या भाभी ने पहले तो झिझकते-झिझकते पकड़ा था, लेकिन अब अच्छी तरह से और उनका अंगूठा भी सीधे सुपाड़े पे। मेरा लण्ड दूबे भाभी के एक्सपर्ट हाथों में मुठियाने से एकदम पागल हो गया था, खूब मोटा। और अब बिचारी संध्या भाभी लाख कोशिश कर रही थी लेकिन उनकी मुट्ठी में नहीं समां रहा था।

“बोल लेना है?” चंदा भाभी चिढ़ा रही थी- “गुड्डी से कहकर सोर्स लगवा दूँ?”


“ना बाबा ना…” संध्या भाभी ने हाथ बाहर निकाल लिया- “आदमी का है या गधे घोड़े का?”


“अरे तेरे आदमी का है या बच्चे का? अभी तो इसे बच्चा कह रही थी। हाँ एक बार ले लेगी ना तो तेरे मर्द से हो सकता है मजा ना आये…” दूबे भाभी अब मेरी ओर से बोल रही थी।


लेकिन मैं समझ गया था की यही मौका है।

अभी किसी का हाथ अन्दर नहीं था। गुड्डी किसी काम से अन्दर गई थी और रीत भी कहीं।

मैंने देख रखा था की छत के किनारे की ओर चंदा भाभी ने कई बाल्टियों में रंग और एक-दो पीतल की बड़ी लम्बी पिचकारियां भी रखी थी। लेकिन हम लोग तो हाथ पे उतर आये थे, और वहां तीन ओर से दीवार थी इसलिए जो भी हमला होगा सामने से होगा।

बस मैं उधर मुड़ लिया।

मैं सिर्फ बरमुडे में था, वो भी इत्ता छोटा की कमर से एक बित्ता ही नीचे होगा। लेकिन चंदा, दूबे भाभी और संध्या भाभी भी खाली ब्रा और सायें में। वो भी रंग में भीगने से ट्रांसपरेंट हो चुके थे।

रीत भी लेसी जालीदार ब्रा और पाजामी में और वो भी देह से चिपकी।
होली में...
कुछ समय के अंतराल पर ग्रुप बदलते रहते हैं...
अब पांचों इकट्ठा हो गई और...
आनंद बाबू द्रौपदी की तरह पांच पांच से घिर गए...
लेकिन ये क्या... जो संध्या भाभी किस्मत वाली होगी बोल रही थी... अब मना कर रही है...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
काउंटर अटैक -आनंद बाबू का


चंदा भाभी मेरी ओर बढी, तो मैंने उन्हें बढ़ने दिया। लेकिन जब वो एकदम पास आ गई तो मैंने बाल्टी का रंग उठाकर पूरी ताकत से, सीधे उनकी रंगों में डूबी ब्रा के ऊपर। इत्ती तेज लगी की लगा ब्रा फट ही गई। फ्रंट ओपेन ब्रा रंग के धक्के से खुल गई थी, और जब तक वो उसको ठीक करती बाकी बची बाल्टी का रंग मैंने उनके साए पे सीधे उनकी बुर पे सेंटर करके।

“निशाना बहुत सही है तम्हारा…” संध्या भाभी हँस रही थी।

मैंने संध्या भाभी को दावत दी- “अरे आप पास आइये ना अपनी पर्सनल पिचकारी से सफेद रंग डालूँगा। 9 महीने तक असर रहेगा…”

“अरे इसपे डाल। ये तुम्हारी बड़ी चाहने वाली है…” कहकर उन्होंने रीत को आगे कर दिया।

मेरे तो हाथ पैर फूल गए।

उन रंग से डूबी वैसे भी लेसी जालीदार हाफ-कट ब्रा में उसके उभार छुप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे। वो झुकी तो उसके निपल तक और उठी तो उसके नयन बाण।

“मैं नहीं डरती हूँ। ना इनसे ना इनकी पिचकारी से। पिचका के रख दूंगी। अपनी बाल्टी में…” हँसकर जोबन उभार के वो नटखट बोली।

वो जैसे ही पास आई मैंने पिचकारी में रंग भर लिया था, और वो जैसे ही पास आई लाल गुलाबी। छर्रर्रर। छर्रर्रर। पिचकारी की धार सीधे उसकी जालीदार ब्रा के ऊपर और अन्दर उसने हाथ से रोकने की कोशिश की तो पाजामी के सेंटर पे।




क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी। क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी।

देखो कुंवरजी दूँगी मैं गारी, दूँगी मैं गारी, भिगोई मेरी सारी

भाग सकूं मैं कैसे, भागा नहीं जात। भीगी मेरी सारी।





रीत मेरे एकदम पास आ गई थी।
लग रहा था की जैसे वो किसी पेंटिंग से सीधे उतरकर आ गई हो। बस मुगले आजम में जिस तरह मधुबाला लग रही थी- “मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे…” गाने में वैसे ही, एकदम संगमरमर की मूरत।



मुझे लग रहा था किसी ने मूठ मार दी हो, जादू कर दिया हो।


बस वैसे ही मैं खड़े का खड़ा रहा गया।

वो एकदम पास आ गई बस पिचकारी पकड़ ही लेती मेरी तो मैं जैसे सपने से जागा, और मैंने पूरी पिचकारी उसके उरोजों पे खाली कर दी। छर्रर्रर छर्रर्रर।

और उसके उरोज तो रंग से भर ही गए, पूरे खिले दो गुलाबी कमल जैसे और अब उसकी ब्रा भी उनका भार नहीं बर्दाश्त कर पायी।

हुक चटाक-चटाक करके टूट गए और जब तक वो झुक के हुक ठीक करती उसके निपल दिख गए और जब उसने सिर ऊपर किया तो पलकों के बाण चल गए। लेकिन अबकी मैंने बाकी की पिचकारी भी खाली कर दी।

उसने दोनों हाथों से रोकने की कोशिश की।

तब तक गुड्डी भी आ गई, हँसकर बोली- “अरे यार चलो ना अब सब मिलकर तुम्हारा बलात्कार नहीं करेंगे…”

“बारी-बारी से करेंगे…” संध्या भाभी को भी अब एक बार मेरा लण्ड पकड़ने के बाद स्वाद मिल गया था, वो भी बोली।
संध्या भाभी का मन भी कर रहा है...
और ऊपर से ना-ना भी बोल रही हैं...
इनकी तो दोनों ओर से जड़ तक ठोंक देना चाहिए...
काल्पनिक मूरत रीत के रूप में साकार हो चुकी है...
तो जादुई अहसास से कैसे उभार पाएंगे आनंद बाबू...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
स्ट्रिप टीज


मैं उन दोनों के साथ छत के बीच में आ गया जहाँ चंदा भाभी, संध्या और दूबे भाभी बैठी थी। गुड्डी और रीत मेरे दोनों ओर खड़ी थी मुझे शरारत से ताकती। दोनों के अंगूठे मेरे बर्मुडा में फँसे थे और मेरी पीठ चंदा और दूबे भाभी की ओर थी। थोड़ा सा मेरा बर्मुडा उन्होंने नीचे सरका दिया।

“अभी कुछ नहीं दिख रहा है…” संध्या भाभी चिल्लायी।

“साले को पहले निहुराओ…” दूबे भाभी ने हुकुम दिया।

मैं अपने आप झुक गया, और रीत और गुड्डी ने एक झटके में बर्मुडा एक बित्ते नीचे सीधे मेरे नितम्बों के नीचे। दूबे भाभी और चंदा भाभी की आँखें वहीं गड़ी थी। लेकिन दुष्ट रीत ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को ढक लिया और शरारत से बोली-

“ऐसे थोड़ी दिखाऊँगी, मुँह दिखाई लगेगी…”

“दिखाओ ना…” संध्या भाभी बोली- “अच्छा थोड़ा सा…”

रीत ने हाथ हटा दिया लेकिन गाण्ड की दरार अभी भी हथेलियों के नीचे थी।

“चल दे दूंगी। माल तो तेरा मस्त लग रहा है…” दूबे और चंदा भाभी एक साथ बोली।

रीत ने हाथ हटा दिया, और दूबे भाभी से बोली-

“चेक करके देख लीजिये एकदम कोरा है। अभी नथ भी नहीं उतरी है। सात शहर के लौंडे पीछे पड़े थे लेकिन मैं आपके लिए पटाकर ले आई।

दूबे भाभी भी। उन्होंने अपनी तर्जनी मुँह में डाली कुछ देर तक उसे थूक में लपेटा और फिर थोड़ी देर तक उसे मेरी पिछवाड़े की दरार पे रगड़ा।

मुझे कैसा-कैसा लग रहा था

चंदा भाभी ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरे नितम्बों को कसकर फैलाया और दूबे भाभी ने कसकर उंगली घुसेड़ने की कोशिश की। फिर निकालकर वो बोली-


“बड़ी कसी है, इत्ती कसी तो मेरी ननदों की भी नहीं है…”

लेकिन संध्या भाभी तो कुछ और देखना चाहती थी उन्हें अभी भी विश्वास नहीं था, कहा-

" रीत आगे का तो दिखाओ। उतारकर खोल दो ना क्या?”

मैं सीधा खड़ा हो गया। रीत और गुड्डी ने एक साथ मेरा बरमुडा खींच दिया।

वो नीचे तो आया लेकिन बस मेरे तने लण्ड पे अटक गया और रीत और गुड्डी ने फिर उसे अपनी हथेलियों में छिपा लिया, बेचारी भाभियां बेचैन हो रही थी। इस स्ट्रिप शो में।

“दिखाओ ना पूरा…” सब एक साथ बोली।

और अगले झटके में बरमुडा दूर। मैं हाथ से छिपा भी नहीं सकता था। वो तो पहले ही संध्या भाभी की ब्रा में बंधा था। रीत अपने हाथ से उसे छिपा पाती, इसके पहले ही संध्या भाभी ने उसका हाथ पकड़ लिया, और जैसे स्प्रिंगदार चाकू निकलकर बाहर आ जाता है वो झट से स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर।

लम्बा खूब मोटा भुजंग। बीच-बीच में नीले स्पोट, धारियां।

ये उसका असली रंग नहीं था। लेकिन उसको सबसे ज्यादा रगड़ा पकड़ा था रंग लगाया था दूबे भाभी ने और ये उनके हाथ की चमकदार कालिख थी। जिसने उसे गोरे से काला बना दिया था। उसे आखिरी बार पकड़ने वाली संध्या भाभी थी इसलिए उनके हाथ का नीला रंग, उनकी उंगलियों की धारी और स्पोट के रूप में थी।

गुड्डी और रीत ने जो लाल गुलाबी रंग लगाये थे, वो दूबे भाभी की लगाई कालिख में दब गए थे। सब लोग ध्यान से देख रहे थे, खासतौर से संध्या भाभी। शायद वो अपने नए नवेले पति से कम्पेयर कर रही थी।

“अरे लाला ससुराल का रंग है वो भी बनारस का, जाकर अपनी छिनार बहना से चुसवाना तब जाकर रंग छूट पायेगा…” दूबे भाभी बोली।

“कोई फायदा नहीं…” ये चंदा भाभी थी- “अरे रंग पंचमी में तो आओगे ही फिर वही हालत हो जायेगी…”
अब तक देखने का मौसम चल रहा था...
अब दिखाने की बारी है...

दर्शक मंडली कुछ भी मुँह(पिछवाड़ा) दिखाई में देने को तैयार...
लेकिन संध्या भाभी के अरमान तो कुछ दूसरे हीं हैं...

शायद पति से मुकाबला कर रही हैं...
और मायके में भी ऐसे हथियार से पाला नहीं पड़ा होगा...
तो लालसा और बलवती हो उठी होगी...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
रीत


रीत ने एक अंगड़ाई ली और जैसे बोर हो रही हो। बोली-

“भाभी चलो न शो खतम। देख लिया। होली भी हो ली। अब इन्हें जाने दो। ये कल से अपने मायके जाने की रट लगाकर बैठे थे। ये तो भला हो गुड्डी और चंदा भाभी का इन्हें रोक लिया की कहीं रात में ऊँच नीच हो जाय। तो इन्हें क्या? नाक तो हमीं लोगों की कटेगी ना। और सुबह से होली का था तो चलो होली भी हो ली। इन्होंने गुझिया और दहीबड़े भी खा लिए। हम लोग भी नहा धोकर कपड़े बदले वरना, चलो न।

गुड्डी तुम भी तैयार हो जाओ, वरना ये कहेंगे की तुम्हारे कारण देर हुई। जल्दी जाओ वरना देर होने पे फिर इनके मायके में डांट पड़े. मुर्गा बना दिया जाय…”

“मैं आपके बाथरूम में नहा लूं भाभी? कपड़े मैंने पहले से ही निकालकर रख दिए हैं बस। वैसे मुझे आज थोड़ा टाइम भी लगेगा नहाने में सिर धोकर नहाना होगा…”

गुड्डी ने चंदा भाभी से पूछा।

“तो नहा लो ना। इसके पहले कभी नहाई नहीं क्या? गुंजा के साथ कित्ती बार। उसी के कमरे वाले बाथरूम में नहा लेना…” चंदा भाभी बोली।

मुझे बड़ी परेशानी हो रही थी। सब लोग ऐसे बातें कर रहे थे जैसे मैं वहां होऊं ही नहीं। मैंने पूछ ही लिया- “लेकिन मेरा क्या? मैं कैसे नहा, तैयार…”

“तो कोई आपको नहलाएगा, तेल फुलेल लगाएगा, श्रृंगार कराएगा, सोलहों श्रृंगार…” रीत तो जैसे खार खाए बैठी थी।

“अरे जहाँ सुबह नहाया था वहीं नहा लेना। ये भी कोई बात है। मेरे कमरे वाले बाथरूम में…” चंदा भाभी बोली।

“अरे इसकी क्या जरूरत है भाभी। यहीं छत पे नहा लेंगे ये। कहाँ आपका बाथरूम गन्दा होगा रंग वंग से। फिर इनका आगा भी देख लिया पीछा भी देख लिया फिर किससे ये लौंडिया की तरह शर्मा रहे हैं?” कहकर रीत ने और आग लगाई।

“नहीं वो तो ठीक है नहाना वहाना। लेकिन कपड़े। कपड़े क्या मैं। कैसे मेरे तो…” दबी आवाज में मैंने सवाल किया।

“ये कर लो बात कपड़े। किस मुँह से आप कपड़े मांग रहे हो जी? सुबह कितनी चिरौरी विनती करके गुंजा से उसकी टाप और बर्मुडा दिलवाया था, और आपने उसको भी,... आपको अपने कपड़े की पड़ी है और मैं सोच रही हूँ की किस मुँह से मैं जवाब दूंगी उस बिचारी को? कित्ता फेवरिट बर्मुडा था। क्या जरूरत थी उसे पहनकर होली खेलने की?”

गुड्डी किसी बात में रीत से पीछे रहने वाली नहीं थी।

“अरे ऐसे ही चले जाइए ना। बस आगे हाथ से थोड़ा ढक लीजियेगा। और किसी दुकान से गुड्डी से कहियेगा तो मेरी सहेली ऐसी नहीं है, चड्ढी बनयान दिलवा देगी…” रीत बोली।

“सही आइडिया है सर जी…” गुड्डी और संध्या भाभी साथ-साथ बोली।

“नहीं ये नहीं हो सकता…” चंदा भाभी बोली-

“अरे तुम सब अभी बच्ची हो तुम्हें मालूम नहीं इसी गली के कोने पे सारे बनारस के एक से एक लौंडेबाज रहते हैं और ये इत्ते चिकने हैं। बिना गाण्ड मारे सब छोड़ेंगे नहीं, इसीलिए तो इन्हें रात में नहीं जाने दिया। और अगर दिन दहाड़े तो इनकी गाण्ड शर्तिया मारी जायेगी।



रीत बोली- “भाभी आप भी ना बिना बात की बात पे परेशान। गाण्ड मारी जायेगी तो मरवा लेंगे इसमें कौन सी परेशानी की बात है? कौन सा ये गाण्ड मरवाने से गाभिन हो जायेंगे? फिर कुछ पैसा वैसा मिलेगा तो अपनी माल कम बहना के लिए लालीपाप ले लेंगे। वो साली भी मन भर चाटेगी चूसेगी, गाण्ड मारने वाले को धन्यवाद देगी…”

“नहीं ये सब नहीं हो सकता…” अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।

मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।

“अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा…”

अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?

जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमेंm जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।



रीत बोली-

“देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े,... लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के…”
अरे ये क्या...
संध्या भाभी अबकी बार भी बच गईं..
ये तो आनंद बाबू और पाठकों .. दोनों की KLPD हो गई...
या फिर कोई और मौका सोच रखा है आपने...
आखिर शो खत्म होने की घोषणा कर दी गई है...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,731
173
Best part tha jab chutki sach main belan le aayi

Us time padte hue main bhi hasi nahi rok paaya

Amazing
यही छोटे-छोटे वन लाइनर तो एक मुस्कान बिखेर जाते हैं...
 
Top