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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
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motaalund

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होली तो बहुत ही शानदार और मजेदार मना ली अपने सुसराल में आनंद ने लेकिन अभी तक दुबे भाभी आनंद का पीछा नहीं छोड़ने वाली अभी तक तो और बाकी रह गई है रगड़ाई
क्या पता कितना मौका मिलता है...
इसीलिए बार-बार आनंद बाबू को रंग पंचमी की दावत है...
 

motaalund

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आपने एकदम सही कहा, यह कोई यूरोप या अमेरिका नहीं है, ग्रुप सेक्स का तो कोई सवाल नहीं है

हाँ होली में रंगो से भीगी, देह से साड़ी, ड्रेस जिसमें कोई कटाव उभार नहीं छुपते, बचते, वही देख देख के, देखने वाले आँख भर नयन सुख ले लेते हैं

हाँ साली, सलहज हों, ससुराल हो तो बात देखने से छूने तक, ज्यादा हिम्मत की तो रगड़ने मसलने तक बढ़ जाती है और यहाँ इस लिए मामला अभी वहीँ तक है, हाँ अगले अपडेट्स में मामला थोड़ा और आगे बढ़ेगा, साथ साथ गुड्डी के रोमांस के भी कुछ दृश्य आएंगे।

३-४ पोस्टों तक अभी होली के ये दृश्य चलेंगे और उसके बाद, कहानी घर से निकलकर आगे बढ़ेगी

एक बार फिर से आपका आभार, धन्यवाद

अगली पोस्ट कुछ दिनों में ही, इसी हफ्ते
लेकिन क्या होली का धमाल मच रहा है...
अपनी अपनी जोड़ी बनाकर भी मजे पर मजे लिए जा रहे हैं...
 

motaalund

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क्योंकि आनंद बाबू का साथ मिल गया और गुड्डी की शह,
और रीत जैसी मास्टर माइंड...
और साथ में आनंद बाबू जैसा तगड़ा और जानदार अश्व प्रजाति का युवक...
 

motaalund

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एकदम जैसे बड़ी उम्र के मरदों को कच्चे टिकोरे पसंद हैं, उसी तरह बड़ी उम्र की औरतें भी कोरे, बिना खेले खाये, कमसिन लड़कों को पंसद करती हैं तो दूबे भाभी को तो आनंद बाबू पसंद आ गए
और आनंद बाबू पर भी... चंदा भाभी ने रात में हीं उनके कोरेपन को लूट लिया..
तो चंदा भाभी दूबे भाभी से एक कदम आगे...
 

motaalund

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दूबे भाभी से बचना मुश्किल ही नहीं असम्भव है और रीत और संध्या भाभी भी नहीं बचाएगी,

उन्होंने ही तो खरगोश को शेरनी की मांद में भेजा है, शिकारी जो बकरे को बांध के शिकार करते हैं , वो बकरे को बचाते थोड़ी हैं,

अब तो जो करना होगा दूबे भाभी ही करेंगी
मतलब बकरा हलाल...
 

motaalund

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एकदम आनंद बाबू का त्याग बलिदान व्यर्थ नहीं गया, रीत और संध्या भाभी की बरसो की इच्छा पूरी हुयी

दूबे भौजी का चीर हरण,
मिला जुला प्रयास रंग लाया..
बल्कि रंग लगाया...
 

motaalund

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नाप जोख तो पूरी हो गयी, और दूबे भौजी सिर्फ अपने लिए नहीं अपनी ननदो के लिए

और आनंद बाबू को शायद जाने अनजाने में ये अंदाज अब तक लग गया होगा की चार परिवार के घर में ( गुड्डी की मम्मी, चंदा भाभी, संध्या भाभी का परिवार और दूबे भाभी ) चलती दूबे भाभी की ही है और अगर गुड्डी के बारे में कोई जन्म जिंदगी का फैसला लेना हुआ तो गुड्डी की मम्मी सबसे पहले दूबे भौजी की राय मांगेगी और ' उस ' पैरामीटर में तो दूबे भौजी आनंद बाबू को दस में से कम से कम बीस नंबर देंगी।

और आनंद बाबू का असली मन तो यही है जनम जिंदगी के लिए, कुछ करके, कुछ भी करके

गुड्डी
बीस तो देंगी हीं...
आखिर सबसे बीस जो ठहरा .. हर मामले में....
 

motaalund

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और क्या पता वो चाहती भी हों, नयी उमर की नयी फसल को अपने जोबना का जादू दिखा के लुभाना

और इसी तरह आनंद बाबू ने विपक्षी टीम के हर बॉलर की गेंदों का फायदा उठाया, अलग अलग तरह की गेंदबाजी लेकिन बल्ला आनंद बाबू का उसी तरह से,

गूंजा (३०), रीत (३२) संध्या भाभी (३४) और दुबे भाभी (३६ +)

साइज अलग अलग मजा
वही
मतलब हार में भी जीत...
और नए पुराने हर बॉल का जायजा ले लिया...
सिर्फ प्रेम गली में इन स्विंग या फ्रंट स्विंग का प्रयास भर हुआ..
और बल्ले ने सिर्फ बाहरी किनारा लिया...
 

motaalund

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गुड्डी की रगड़ाई कई कारणो से जरूरी थी,

एक तो आनंद बाबू को ललचाने के लिए

दूसरे चंदा भाभी ने कहा था रात की पाठशाला में की कल तुझे और तेरी वाली दोनों को नंगे करके नचाएंगे न तो झिझक ख़तम होगी तेरी

तो गुड्डी को बॉटम लेस तो नहीं किया जा सकता था तो टॉपलेस ही सही
शर्मीले आनंद बाबू के लिए ये पाठ अति आवश्यक था..
वरना गुड्डी तो आनंद बाबू की अलग से क्लास लेती...
 

motaalund

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संध्या भाभी भी नव विवाहिता, कैशोर्य की वय को बस पार ही किया है और अब एक बार पति के साथ खेल खेल लेने के बाद सब रंग, रस में पारंगत और दूबे भाभी का तो कहना ही क्या इसलिए जोड़ी बराबर की

लेकिन असली फायदा तो आनंद बाबू का हुआ, गुड्डी मिल गयी। अकेले, और बाकी सब लोग बिजी
लेकिन दूबे भाभी मायके के यारों पर कमेंट..
कि ननदें झांट आने से पहले हीं संध्या भाभी चुदवाने लगी थी...
वो क्या मजाक था... या फिर सचमुच यारों की लाइन लगी रहती थी...
 
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