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Erotica फागुन के दिन चार

Premkumar65

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गुड्डी



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फिर ब्रेक हो गया और दूबे भाभी की आवाज सुनाई पड़ी

" अरे खाली रगड़ा रगड़ी ही करती रहोगी या कुछ नाच गाना भी होगा। इतनी सूनी होली थोड़े ही होती है…”

चंदा भाभी ने और आग लगाई,

“अरे इत्ता मस्त जोगीड़ा का लौंडा खड़ा है, जब तक पैरों में हजार घुँघुरु वाला इसके पैरो में न बांधा जाये, तब तक तो होली अधूरी है। ढोलक मजीरा हो, जोगीड़ा हो, "

और गुड्डी तो जहा सुई का छेद तलवार घुसेड़ देती थी, बोल उठी,

" एकदम सही कहा आपने, अपनी बहिनिया को दालमंडी में बिठाएंगे, तो कुछ तो मुजरा उजरा करेगी, कल जब मेरे साथ बजार गए थे तो किसी भंडुए से बात कर रहे थे, की वो कत्थक सीखी है तो नाच तो लेगी ही, उसको फोटो भी दिए थे तो वो बोला, होली के बाद ले आना, बसंती बायीं के कोठे पे बैठा दूंगा। "

दूबे भाभी और खुश, बोलीं

“अरे असली भंडुवा है ये, और गंडुवा आज तो बच गया, अगली बार आएगा तो बन ही जाएगा। लेकिन ढंग से गाने के लिए ढोलक और मजीरा तो चाहिए, रीत तू नीचे जा के, संध्या के घर में ढोलक होगी” "



रीत कत्तई नहीं जानी चाहती थी, उसने बहाना बनाया,

" अरे उसकी चाभी संध्या भाभी के पास होगी और फिर दो तीन ढोलक हैं एक खराब भी है, संध्या भाभी को भेज दीजिये वो चेक कर लेंगी, लेती भी आएँगी "

संध्या भाभी तो नीचे जाना ही चाहती थीं, उनके मरद का अब तक दस मिस्ड काल आ चुका होगा। पर गुड्डी ने रीत को एक और काम पकड़ा दिया,

" हे तुझे वो सब भी तो ले आना है " मेरी ओर इशारा कर के वो बोली।

"चल मैं भी चलती हूँ, मैं ढोलक खुद चेक कर लुंगी और मजीरा तुम सब ढूंढ नहीं पाओगी, "

दूबे भाभी नीचे और साथ में रीत और संध्या भाभी भी।



उन लोगो के नीचे जाते ही चन्दा भाभी हंस के बोलीं, " पंद्रह मिनट की छुट्टी "

इशारा उनका साफ़ था संध्या भाभी का फोन, …. मरद इतनी जल्दी तो छोड़ेगा नहीं. फिर दूबे भाभी ढोलक के मामले में एकदम परफक्शनिस्ट थीं, खुद बजा के चेक कर के, और आएँगी सब लोग साथ साथ।

और मेरी निगाह बार बार गुड्डी की ओर जा रही थी, वो मेरा इरादा समझ रही थी, मुस्करा रही थी, चाह वो भी रही थी और दो चाहने वाले चाहते हैं तो हो ही जाता है


चंदा भाभी का फोन बजा, एक ख़ास रिंग और गुड्डी ने चिढ़ाया, क़तर से भतार, अब देखती हूँ पंद्रह मिनट लगता है की बीस मिनट,



चंदा भाभी ने कस के एक घूंसा गुड्डी की पीठ पे जमाया और बोलीं,

" अभी से इतनी चिपका चिपकी होती है तेरी एक बार लग्न हो जाएगी फिर देखूंगी, रहेगी तो इसी घर में "

और करीब दौड़ते हुए अपने कमरे में और दरवाजा भी बंद कर लिया अंदर से, …की हम लोग न सुने .



छत पर मैं और गुड्डी अकेले, और गुड्डी के रंग लगे हाथ

और उसके रंग लगे हाथों ने बर्मुडा में डालकर मेरे लण्ड पे बचा खुचा रंग लगा दिया और मेरे बांहों से निकलते हुए बोलने लगी-

“देख ली तुम्हारी ताकत। जरा सा भी रंग नहीं डाल पाए। और अगर रंग नहीं डाल पाए तो बाकी कुछ क्या डालोगे…”


आँख नचाकर नैनों में मुश्कुराकर जिस तरह उसने कहा की मैं घायल हो गया। मैं उसके पीछे भागा और वो आगे। दौड़ते हुए उसके हिलते नितम्ब, मेरे बर्मुडा का तम्बू तना हुआ था।

मैंने चारों और निगाह दौडाई।

कहीं रंग की एक भी पुड़िया नहीं, एक भी पेंट की ट्यूब नहीं। लेकिन एक बड़ी सी प्लेट में अबीर रखी हुई थी। वही उठाकर मैंने गुड्डी के ऊपर भरभरा कर डाल दी।



वो अबीर-अबीर हो गई। उसकी देह पहले ही टेसू हो रही थी। नेह के पलाश खिल रहे थे और अब। तन मन सब रंग गया।



“हे क्या किया?” वो कुछ प्यार से कुछ झुंझला के बोली।

“तुम ही तो कह रही थी डालो डालो…” मैंने चिढ़ाया।

“आँख में थोड़ी…” वो बोली- “कुछ दिख नहीं रहा है…”

“मैं तुम्हें दिख रहा हूँ की नहीं?” मैंने परेशान होकर पूछा।

“तुम्हें देखने के लिए आँखें खोलनी पड़ती हैं क्या? मुश्कुराकर वो बोली लेकिन फिर कहने लगी- “कुछ करो ना आँख में किरकिरी सी हो रही है…”

मैं उसे सहारा देकर वाश बेसिन के पास लेकर गया। पानी से उसका चेहरा धुलाया। फिर अंजुरी में पानी लेकर उसकी बड़ी-बड़ी रतनारी आँख के नीचे ले जाकर कहा- “अब इसमें आँखें खोल दो…”

और उसने झट से आँखें खोल दी। उसकी आँख धुल गई। फिर मैंने ताजे पानी की बुँदे उसकी आँखों पे मारा। दो-चार बार मिचमिचा के उसने पलकें खोल दी और जैसे कोई चिड़िया सोकर उठे। और पंख फड़फड़ाये।

बस उसी तरह उसकी वो मछली सी आँखें। पलकें खुल बंद हुई और वो मेरी और देखने लगी।



“निकला…” मैंने चिंता भरे स्वर में पूछा।



“नहीं…” वो शैतान मुश्कुराते हुए बोली। वो अभी भी वाश बेसिन पे लगे शीशे में अपनी आँखें देख रही थी।

“क्या अबीर अभी भी नहीं निकला?” मैं पूछा।


“वो तो कब का निकल गया…” ये शीशे में मेरे प्रतिविम्ब की ओर इशारा करती गुड्डी बोली- “ये, अबीर डालने वाला नहीं निकला…”


मैं उसकी बात समझ गया।

“चाहती हो क्या निकालना?” मैं उसके इअर लोबस को अपने होंठों से हल्के से छूकर बोला…”

“मेरे बस में है क्या? इतना अन्दर तक धंसा है। कभी नहीं चाहूंगी उसे निकालना। ऐसे कभी बोलना भी मत…”

मुश्कुराकर शीशे में देखती वो सारंगनयनी बोली।



पीछे से मैंने उसे अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया और रसीले गालों पे एक छोटा सा चुम्बन ले लिया।



फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी।

भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी॥

छीन पितंबर कमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी।


नैन नचाई, कह्यौ मुसकाइ, लला। फिर खेलन आइयो होरी॥



***** *****

एकै सँग हाल नँदलाल औ गुलाल दोऊ,दृगन गये ते भरी आनँद मड़गै नहीं।

धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौंह, अब तो उपाय एकौ चित्त में चढ़ै नहीं।

कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौं कौन सुनै,कोऊ तो निकारो जासों दरद बढ़ै नही।


एरी। मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सों,कढ़िगो अबीर पै अहीर को कढ़ै नहीं।



“होली देह का रंग तो उतर जाएगा लेकिन नेह का रंग कभी नहीं उतरेगा…” मैंने बोला।



उस पल कोई नहीं शेष रहा वहाँ… न चंदा भाभी न दूबे भाभी न संध्या भाभी। और शायद हम भी नहीं। शेष रहा सिर्फ फागुन। रग-रग में समाया रंग और राग। एक पल के लिए शायद श्रृष्टि की गति भी ठहर गई।



न मैं था न गुड्डी थी। सिर्फ हम थे। पता नहीं कितने देर तक चला वो पल। निमिष भर या युग भर?

मैं गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराया और वो मेरी और अब काहे का सूनापन।

लेकिन मान गया मैं गुड्डी को, मुझे किसी भी आसन्न खतरे से भविष्य की किसी आशंका से कोई बचा सकता था तो गुड्डी ही।



मुझसे बहुत पहले उसने सीढ़ियों से आती हुयी पदचाप सुन ली और जब तक मैं कुछ समझूं, सोचूं, वो छटक के दूर, एकदम से सीढ़ियों के पास और वहीँ से मुझे मीठे मीठे देख रही थी, फिर आँखो से उसने सीढ़ी की ओर इशारा किया,



और अगले ही पल सीढ़ी पर से हांफते,कांपते, रीत गले में खूब बड़ी सी ढोलक टाँगे, हाथ में एक बैग लिए, और उसके पीछे संध्या भाभी,हाथ में मजीरा और साथ में दूबे भाभी।


चंदा भाभी का भी क़तर से आया फोन ख़त्म हो गया और नेपथ्य से वह भी सीधे मंच पर।
Wowww gajab ho app Komal bhabhi.
 

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जा रे हट नटखट, न छू रे मेरा घूंघट


लेकिन पहले इनके पैरों में घुंघरू बंधेगा…” ये गुड्डी थी। उसने वो बैग खोल लिया जो रीत लायी थी। उस में खूब चौड़े पट्टे में बंधे हुए ढेर सारे घूँघरू।

“एकदम-एकदम…” संध्या भाभी ने भी हामी भरी।



मैं फिर पकड़ा गया और चंदा भाभी, संध्या भाभी और गुड्डी ने धर पकड़कर मेरे पैरों में घुंघरू बाँध दी। रीत दूर से मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

मैं क्यों उसे बख्शता। मैंने दूबे भाभी को उकसाया- “आप तो कह रही थी की आपकी ननद रीत बहुत अच्छा डांस कर है तो अभी क्यों?”

लेकिन जवाब रीत ने दिया- “करूँगी। करूँगी मैं लेकिन साथ में नाचना पड़ेगा…”

“मंजूर…” मैं बोला और रीत ने एक दुएट वाले गाना म्यूजिक सिस्टम पे लगा दिया। होली का पुराना गाना। दूबे भाभी को भी पसंद आये ऐसा। क्लासिकल टाइप नटरंग फिल्म का-




धागिन धिनक धिन,

धागिन धिनक धिन, धागिन धिनक धिन,

अटक अटक झटपट पनघट पर,

चटक मटक इक नार नवेली,

गोरी-गोरी ग्वालन की छोरी चली,


चोरी चोरी मुख मोरी मोरी मुश्कुये अलबेली।



दूबे भाभी ढोलक पे थी, संध्या भाभी बड़े-बड़े मंजीरे बजा रही थी, चंदा भाभी हाथ में घुंघरू लेकर बजा रही थी। गुड्डी भी ताल दे रही थी।



कंकरी गले में मारी

कंकरी कन्हैया ने

पकरी बांह और की अटखेली

भरी पिचकारी मारी

सा रा रा रा रा रा रा रा

भोली पनिहारी बोली

सा रा रा रा रा रा रा रा


रीत क्या गजब का डांस कर रही थी। संध्या भाभी की रंग से भीगी झीनी साड़ी उसने उठा ली थी और अपने छलकते उरोजों को आधे तीहे ढंकी ब्रा के ऊपर बस रख लिया था। तोड़ा, टुकड़ा उसके पैर बिजली की तरह चल रहे थे-



अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा




सबने धक्का देकर मुझे भी खड़ा कर दिया और अगला पार्ट गाने का मैं पूरा किया-



आया होली का त्यौहार

उड़े रंग की बौछार

तू है नार नखरेदार, मतवाली रे

आज मीठी लगे है तेरी गाली रे

ऊ। हाँ हाँ हाँ आ। हो।




लेकिन वो चपल चपला, हाथों में उसने पिचकारी लेकर वो अभिनय किया की हम सब भीग गए। खास तौर से तो मैं। उसके नयन बाण कम थे क्या?



तक तक न मार पिचकारी की धार

हो। तक तक न मार पिचकारी की धार

कोमल बदन सह सके न ये मार

तू है अनाड़ी बड़ा ही गंवार

कजरे में तुने अबीर दिया डार

तेरी झकझोरी से बाज आई होरी से

चोर तेरी चोरी निराली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा




और उसके बाद तो वो फ्री फार आल हुआ की पूछो मत। लेकिन इसके पहले सबने तालियां बजायीं खूब जोर-जोर से सिवाय मेरे और रीत के हमारे हाथ एक दूसरे में फँसे थे। वो मेरी बांहों में थी और मैं उसकी।
Mast mast holi ka mazaaaa.
 

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होली बनारस की-देह की


जो चुनर उसने डांस के समय ओढ़ रखी थी अपनी ब्रा कम चोली के ऊपर।

वो तो मैंने नाचते नाचते ही उससे छीनकर दूर फेंक दी थी और अब उसके अधखुले उभार एक बार फिर मेरे सीने से दब रहे थे। उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे कंधे पे खरोंचे मार रहे थे।

फगुनाहट सिर्फ हम दोनों पे चढ़ी हो ऐसी बात नहीं थी।



संध्या भाभी अब चंदा भाभी के नीचे थी और चंदा भाभी ने जब उनकी टांगें उठायीं तो साया अपने आप कमर तक उठ गया। उनके भरतपुर के दर्शन हम सबको हो गए।

-- लेकिन अब किसी को उन छोटी मोटी चीजों की परवाह नहीं थी। चंदा भाभी का अंगूठा सीधे उनकी क्लिट पे। और दो उंगलियां अन्दर। माना संध्या भाभी ससुराल से होकर आई थी लेकिन अभी भी उनकी बहुत टाईट थी। जिस तरह से उनकी चीख निकली इससे ये बात साफ जाहिर थी पर चंदा भाभी को तो और मजा आ गया था। वो दोनों उंगलियां जोर-जोर से अन्दर गोल-गोल घुमा रही थी। दूसरा हाथ उनके मस्त गदराये जोबन का रस लूट रहा था।

संध्या भाभी सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी छटक रही थी। कभी मजे से कभी दर्द से।

लेकिन चंदा भाभी बोली-

“अरे ननद रानी ये छिनारपना कहीं और जाकर दिखाना। जब से बचपन में टिकोरे भी नहीं आये थे दबवाना शुरू कर दिया था। शादी के पहले 10-10 लण्ड खा चुकी हो। भूल गई पिछली होली मैंने ही बचाया था दूबे भाभी से। वरना मुट्ठी डालना तो तय था। तुमने वायदा किया था की जब शादी से लौटकर आओगी तो जरूर। और अब दो उंगली में चूतड़ पटक रही हो…”

“अरे लेगी-लेगी नहीं लेगी तो जबरदस्ती घुटायेंगे…” दूबे भाभी बोली।



वो गुड्डी को अब प्रेम पाठ पढ़ा रही थी। उसका एक किशोर उभार उनके हाथ में था और दूसरी टिट होंठों के बीच कस-कसकर चूसी जाती,

तो कभी दूबे भाभी के हाथ गुड्डी के जोबन को रगड़ते मसलते, और कस के निप पिंच कर लेती। गुड्डी की मस्ती में हालत खराब थी, फ्राक के ऊपर के हिस्से तो पहले ही चंदा भाभी ने चीथड़े चीथड़े कर दिए थे, ब्रा का ढक्कन बचा था, गुड्डी का। चंदा भाभी ने तो ब्रा के अंदर हाथ डाल के और हुक खोल के रंग लगा दिया था, लेकिन रंगो की होली तो कब की ख़तम हो चुकी थी अब तो सिर्फ देह की होली चल रही थी, और दूबे भाभी, दूबे भाभी थीं तो ऊपर झाँपर से उनका काम नहीं चलने वाला और उनके हाथ में ताकत भी बहुत थी, बस कस के ब्रा के बीच से

चरचरर र र

और गुड्डी की ब्रा की दोनों कटोरियाँ दो हिस्से में,


पर दूबे भाभी भी तो बड़ी बड़ी चूँचियाँ भी सिर्फ ब्रा से ढंकी थी, एक हुक रीत ने पहले ही तोड़ दिया था, बस एक हुक के सहारे और गुड्डी ने उसे भी खोल दिया और दूबे भाभी की ३६ ++ बड़ी बड़ी चूँचियाँ अच्छी तरह से रंग से लिपि पुती बाहर आ गयीं, आधे से ज्यादा रंग तो मेरे ही हाथ से लगा था दूबे भौजी के जोबन पे।

और अब मुकबला था ११ वी में पढ़ने वाली की उभरती हुयी चूँचियों और भौजी के पहाड़ों के बीच, गुड्डी नीचे दूबे भौजी ऊपर और जैसे चक्की के दो पाटे चल रहे हों, बीच बीच में वो गुड्डी के कान में कुछ कहती और मेरी ओर देखतीं,



अब मैं समझ गया ये सेक्स एजुकेशन का क्लास मेरे लिए चल रहा था की आज रात मुझे गुड्डी के साथ क्या करना है और आज रात ही क्यों मेरे मन की बात चल जाए तो हर रात,



ये नहीं था की मैं मस्ती नहीं कर रहा था, रीत मेरी गोद में और अब उसकी भी जालीदार ब्रा खुल चुकी थी और वो मुझसे भी एक हाथ आगे अपने चूतड़ों को कस कस के कपड़ो में ढंके मेरे जंगबहादुर पे रगड़ रही थी,


लेकिन दूबे भाभी की मज़बूरी थी, गुड्डी के कमर के नीचे अभी दूकान बंद थी, और असली मजा तो उसी खजाने में है।



चंदा भाभी की उँगलियाँ संध्या भाभी के उस खजाने में सेंध लगा चुकी थी, और संध्या भाभी बार बार सिसक रही थीं तो मन तो दूबे भौजी का भी कर रहा था किसी कच्ची कली के प्रेम गली में होली की सैर करने का,

तो जैसे युद्धबंदियों की अदला बदली होती है तो बस उसी तरह उन्होंने रीत की ओर इशारा किया, और रीत पांच कदम दूबे भाभी की ओर तो गुड्डी पांच कदम मेरी ओर, और थोड़ी देर में गुड्डी मेरी गोद में और रीत और दूबे भाभी की देह की होली शुरू हो गयी थी।


रीत के जिस भरतपुर स्टेशन पे मेरी उँगलियाँ आज सुबह से कई बार चक्कर काट चुकी थीं पर दर्शन नहीं हुआ था,

दूबे भाभी जिंदाबाद उनकी कृपा से भरतपुर का आँखों ने नयन सुख लिया। होली में तब से आज तक कितनी बार देखा है, समझदार भाभियाँ ननद की शलवार हो पाजामी हो, नाड़ा कभी खोलती नहीं, सीधे तोड़ देती हैं और दूबे भाभी ने वही किया, और जब तक रीत समझे,

सररर सररर

दूबे भाभी के हाथ, रीत की पजामी सरक के उसके घुटने तक, और दिख गयी,

गुलाबी गुलाबी चिकनी चिकनी



लेकिन बहुत देर तक नहीं वो दूबे भाभी के होंठों के बीच कैद हो गयी और क्या चूस रही थीं वो, और रीत जोर जोर से सिसक रही थी


और चंदा भाभी ने अब तीसरी उंगली भी संध्या भाभी की चूत में घुसेड़ दी। और क्लिट पे कसकर पिंच करके, मेरी ओर इशारा करके, दिखा के बोली-

“अरे चूत मरानो, इसको देख। अपनी कुँवारी अनचुदी बहन को बस दूबे भाभी और अपनी यार के एक बार कहने पे लेकर आने पे तैयार हो गया है भंड़ुआ, यही नहीं राकी से भी चुदवायेगी वो। और तू ससुराल में दिन रात टांगें उठाये रहती होगी और यहाँ उंगली लेने में चीख रही है…”

संध्या भाभी मुश्कुराते हुए बोली- “रात दिन नहीं भाभी सिर्फ रात में। दिन में तो कभी कभी। जब मेरे देवर को मौका मिल जाता था या। नंदोई जी आ जाते थे…”


और इसके जवाब में चंदा भाभी ने अपनी तीनों उंगलियां बाहर निकल ली और अपने होंठ चिपका दिए संध्या भाभी की चूत पे। दो हाथों से उनकी जांघें कसकर फैलाए हुए थी वो।

चंदा भाभी और संध्या भाभी एक दूसरे की चूत के ऊपर कस-कसकर रगड़ घिस कर रही थी।

रीत और दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी एकदम खुल के मस्ती कर रहे थे, उन्हें कुछ फरक नहीं पड़ रहा था की मैं और गुड्डी बैठे सब देख रहे हैं,

और पहल गुड्डी ने ही की, जरा सा ही सही,

दूबे भाभी के पास से निकलने के समय गुड्डी ने अपनी फटी दो टुकड़ो में बँटी ब्रा को किसी तरह से अपने उभारों पर टिका लिया था, मन तो मेरा बहुत कर रहा था की जैसे दूबे भाभी कस कस के गुड्डी की छोटी छोटी अमिया मसल रही थी, रगड़ रही थी, मैं भी उसी तरह, लेकिन, बस वही

पर गुड्डी, मुझसे भी ज्यादा मुझको जानती थी, और उसने हाथ उठा के बस वहीँ, जैसे उस दिन पिक्चर हाल में, आज से डेढ़ दो साल पहले, जब वो नौवीं में थी और मैंने पहली बार जोबन रस लिया था, भले ही फ्राक के ऊपर से,

और आज तो फ्राक चंदा भाभी ने चीर दी थी और ब्रा दूबे भाभी ने दो टूक कर दी थी,

और जैसे ही मेरा हाथ पड़ा फटी हुयी ब्रा खुद सरक के, उसे मालुम हो गया की इस जोबन का असली मालिक आ गया है और अब मैं कस के खुल के दबा रहा था, मसल रहा था, कभी रीत को रगड़ती दूबे भाभी देख लेती, मुझे देख के मुस्कराती और कभी चंदा भाभी



लेकिन मेरी मस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, और मैंने झुक के गुड्डी के रसीले होंठो को चूम भी लिया, लेकिन गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठेल दी और मैं कस के चूसने लगा,


हाथों को गुड्डी के जोबन रस का सुख मिल रहा था और होंठों को गुड्डी के मुख रस का, और वो भी सबके सामने,



लेकिन तभी छोटा सा विघ्न हो गया, रीत की कोई सहेली आयी थी, वो नीचे से आवाज लगा रही थी, तो रीत और दूबे भाभी दोनों सीढ़ी से उतरकर धड़ धड़ नीचे


पर हम चारों का जोश और बढ़ गया,


चंदा भाभी के तरकस में एक से एक हथियार थे, कभी वो कस कस के संध्या भाभी की चूत कस कस के चाटती और चूस चूस के उन्हें झड़ने के कगार पे ले आती पर जब संध्या भाभी, सिसकती चिरौरी करतीं

" भौजी झाड़ दो, हफ्ता हो गया पानी निकले, मोर भौजी "

बस चंदा भाभी चूसना बंद कर के कस के संध्या भौजी का जोबन रगड़ने लगती, उनके मुंह के ऊपर बैठ के चंदा भाभी अपनी बुर चुसवाती और संध्या भाभी की खूब चासनी से गीली तड़पती, फड़फड़ाती बुर साफ़ साफ़ दिखती और गुड्डी मुझे छेड़ती,

" हे देख तोहरी संध्या भौजी की कितनी रसीली गली है, घुस जाओ न अंदर "


गुड्डी के गाल चूम के मैं बोला " लेकिन मुझे तो इस लड़की की गली में घुसना है "



" तो घुसना न रात भर, मैंने कौन सा मना किया है अरे अभी छुट्टी है वरना यही छत पे तेरी नथ सबके सामने उतार देती " गुड्डी हँसते हुए बोली

संध्या भाभी के ऊपर चढ़ी चंदा भाभी ने गुड्डी को इशारा किया की मेरे मोटे जंगबहादुर को आजाद कर दे, और बस अगले पल वो तन्नाए , फनफनाये बाहर,

और गुड्डी ऊपर से मुठियाते हुए संध्या भाभी को दिखा रही थी, जैसे पूछ रही हो चाहिए क्या,



चंदा भाभी ने संध्या भाभी के मुंह को आजाद कर दिया और अब वो भी गुड्डी के साथ खेल तमाशे में शामिल हो गयीं और संध्या भाभी से बोली

" अरे ननद रानी कुछ मन कर रहा हो तो मांग लो, गुड्डी एकदम मना नहीं करेगी "

" अरे दिलवा दो न अपने यार का " संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोली लेकिन गुड्डी कम नहीं थी, मेरे गाल पे खुल के चुम्मा लेते हुए बोली


" यार तो है मेरा, थोड़ा बुद्धू है तो क्या अब मेरी किस्मत में यही है, लेकिन क्या चाहिए ये खुल के बोलिये न "

" लंड चाहिए, इत्ता मोटा लम्बा कड़क है, एक बार चोद देगा तो घिस थोड़े ही जाएगा, हफ्ते भर से उपवास चल रहा है चूत रानी का, गुड्डी तुझे बहुत आशिरवाद मिलेगा, मुझे एक बार दिलवा देगी तो तो तुझे ये हर रोज मिलेगा, जिंदगी भर, सात जनम। "

संध्या भाभी सच में गर्मायी थीं।

लेकिन चंदा भाभी उन्हें अभी और तड़पाना चाहती थी, जैसे मेन कोर्स के चक्कर में लोग स्टार्टर कम खाते हैं एकदम उसी तरह, किनारे पे ले जाके बार बार रुक जाती थीं


चंदा भाभी ने संध्या भाभी को छोड़ दिया और गुड्डी को चुम्मा लेने का, मेरे खूंटे को दिखा के इशारा किया और गुड्डी ने झुक के एक लम्बी सी चुम्मी मेरे सुपाड़े पे जड़ दी।

संध्या भाभी की हालत और खराब हो गयी।

तब तक सीढ़ियों से फिर पदचाप की आवाज सुनाई पड़ी और हम सब के जो भी थोड़े बहुत कपडे थे, देह पर, जंगबहादुर अंदर।

पहले रीत आयी, अपनी उस सहेली को गरियाती और मेरे और गुड्डी के पास बैठ गयी, फिर दूबे भाभी।

हम सब चुप थे, और ये चुप्पी टूटी दूबे भाभी की आवाज से,
Bahut hi erotic update hai Komal ji. maje ki inteha ho gai hai.
 

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. जोगीड़ा


और ये टूटा दूबे भाभी की घोषणा के साथ- “अरी छिनारों एक गाना सुनाने के बाद वो भी फिल्मी। चुप हो गए। क्या मुँह में मोटा लण्ड घोंट लिया है। अरे होली है जरा जोगीड़ा हो इस साले को कुछ सुनाओ…”

रीत बोलना चाहती थी- “नहीं भाभी लण्ड मुँह में नहीं है कहीं और है…”

लेकिन मैंने उसके मुँह पे हाथ रख दिया। और झट से हम दोनों ने कपड़े ठीक किये और इस तरह अलग हो गए जैसे कुछ कर ही नहीं रहे थे।

“भाभी जोगीड़ा सुना तो है लेकिन आता नहीं…” रीत बोली।

“अरे बनारस की होकर होली में कबीर जोगीड़ा नहीं। क्या हो गया तुम सबों को, चल मैं गाती हूँ तू सब साथ दे…” चंदा भाभी बोली।

गुड्डी और रीत ने तुरंत हामी में सिर हिलाया।



चंदा भाभी और दूबे भाभी चालू हो गईं बाकी सब साथ दे रही थी। यहाँ तक की मुझे भी फोर्स किया गया साथ-साथ गाने के लिए। इन सारंग नयनियों की बात मैं कैसे टाल सकता था।




अरे होली में आनंद जी की, अरे देवरजी की बहना का सबकोई सुना हाल अरे होली में,

अरे एक तो उनकी चोली पकड़े दूसरा पकड़े गाल,

अरे इनकी बहना का, गुड्डी साली का तिसरा धईले माल। अरे होली में।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कोई उनकी चूची दबलस कोई कटले गाल,

तीन-तीन यारन से चुदवायें तबीयत भई निहाल।

जोगीड़ा सा रा सा रा

अरे हमरे खेत में गन्ना है और खेत में घूंची,

गुड्डी छिनरिया रोज दबवाये भैया से दोनों चूची,

जोगीड़ा सा रा सा रा। अरे देख चली जा।

चारों और लगा पताका और लगी है झंडी,

गुड्डी ननद हैं मशहूर कालीनगंज में रंडी।

चुदवावै सारी रात। जोगीड़ा सा रा रा ओह्ह… सारा।

ओह्ह… जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा।

अरे ओह्ह… जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा। अरे

अरे इनकी बहन की अरे इनकी बहन की बुर से पानी बहता

और गुड्डी की बुर हो गई लासा।

एक ओर से सैंया चोदे एक ओर से भैया।

यारों की लाइन लगी है। जरा सा देख तमाशा


जोगीड़ा सा रा सा रा।



तभी कोई बोला- “अरे डेढ़ बज गए चलो देर हो गई…” रीत का चेहरा धुंधला गया। चाँद पे बदली छा गई।

मैंने बात सम्भालने की कोशिश की। दूबे भाभी से मैं बोला- “अरे आप लोगों ने तो गा दिया। लेकिन आपकी इन ननदों ने। सब कहते हैं रीत ये कर सकती है वो कर सकती है…”


“मैं फिल्मी गा सकती हूँ होली के भी…” रीत बोली।

“नहीं नहीं जोगीड़ा। गा सकती हो तो गाओ वरना चलते हैं देर हो रही है…” दूबे भाभी बोली।

“अच्छा चलो। फिल्मी ही लेकिन जोगीड़ा स्टाइल में एकदम खुलकर…” मैंने आँख मारकर रीत को इशारा किया। वो समझ गई और बोली ओके चलो तुम्हारे पसंद का।

“मेरा तो फेवरिट वही है, मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त। लेकिन याद रखना होली स्टाइल में…” मैं बोला- “और साथ में डांस भी…”


फिर तो रीत ने क्या जलवे दिखाए। रवीना टंडन भी पानी भरती।


पहले तो उसने जो घुंघरू मुझे पहनाये गए थे। वो अपने दोनों पैरों में बाँधा और फिर उसने जो चुनरी मैंने हटा दी थी एक बार फिर से अपनी चोली कम ब्रा के ऊपर बस इस तरह ढंकी की एक जोबन तो पूरी तरह खुला था और एक थोड़ा सा चुनर के अन्दर। सिर्फ म्यूजिक उसने स्टार्ट कर दी और साथ में उसके अपने बोल। जो ढप गुड्डी के हाथ में थी वो भी उसने ले ली और चालू हो गई।



मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त,

नहीं मुझको कोई होश होश, उसपर जोबन का जोश जोश।




ये कहते हुए उसने चूनर उछाल के सीधे मेरे ऊपर फेंक दी और वो चूचियां उछाली की बिचारे मेरे लण्ड की हालत खराब हो गई। मसल रही थी और जैसे इतना नाकाफी हो मुझे दिखाकर वो अपने दोनों उरोज रगड़ रही थी मसल रही थी।



म्यूजिक आगे बढ़ा।




नहीं मेरा- कोई दोष दोष मदहोश हूँ मैं हर वक्त वक्त,

मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त।




बस मैं ये इंतजार कर रहा था की ये इसमें होली का तड़का कैसे लगती है। गाना वैसे भी बहुत भड़काऊ हो रहा था। उसपर जोबन का जोश जोश गाते वो अपनी चोली नीचे कर थोड़ा झुक के चक्कर लेकर चूचियों को बड़ी अदा से पूरी तरह दिखा दे रही थी। फिर उसने अपना हाथ पाजामी की ओर बढ़ाया और थोड़ा और नीचे सरका के वो चूत उभार-उभार के ठुमके लगाये-



मेरी चूत बड़ी है मस्त मेरी चूत बड़ी है चुस्त चुस्त,

करती है लण्ड को पस्त पस्त। करती है लण्ड को पस्त पस्त।

रख याद मगर तू मेरे दीवाने

तेरा क्या होगा अंजाम न जाने।




और ये कहते-कहते रीत मेरे पास आ गई और उसने मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। और अपने हाथ से सीधे मेरे लण्ड पे रगड़ते हुए गाने लगी।



रखूंगी अन्दर हर वक्त वक्त। लण्ड को कर दूंगी एकदम मस्त-मस्त।



और हम सबने जोरदार ताली बजायी। मेरी ओर विजयी मुश्कान से उसने देखा। मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। संध्या भाभी ने फिर गुहार लगाई। चलो ना। सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।
Wowww Anand babu to chhori ke kapdon me hi maje le rahe hain.
 

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मेरे कपड़े?


सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।

“हे मेरे कपड़े?” मैं जोर से चिल्लाया।

“अरे लाला पहने तो हो, इत्ते मस्त माल लग रहे हो…” दूबे भाभी मुश्कुराकर बोली।

“लेकिन इसको पहनकर। अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्टहाउस। फिर घर…” मैं परेशान होकर बोला। अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो?

“मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहनकर बाजार चलेंगे। जोगीड़े में तो लड़के लड़कियां बनते ही हैं। लौंडे के नाच में भी। तो लोग सोचेंगे होगा कोई स्साला चिकना नमकीन लौंडा ” गुड्डी हँसकर बोली।

रीत ने भी टुकड़ा लगाया- “हे, अगर गुड्डी को आपको साथ ले जाने में परेशानी नहीं है तो फिर किस बात का डर?”

“हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो…” मैं गुड्डी से गिड़गिड़ा रहा था।

“वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना…” गुड्डी खिलखिलाती हुई बोली।

“अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही माँगते हैं। मांग लो ढंग से। दे देगी…” संध्या भाभी ने आँख मारकर मुझसे कहा।

“एकदम…” रीत ने हँसकर कहा।

मैं- “तो फिर कैसे मांगूं?”

“अरे पैर पड़ो। हाथ जोड़ो। दिल पसीज जाएगा तो दे देगी। अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोली।
खैर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। मैंने पूछा- “क्यों दंडवत हो जाऊं?”

और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के हँस पड़ी। संध्या भाभी बोली- “क्या बोले। लण्डवत?” और तीनों फिर खिलखिला के हँस पड़ी।

रीत बोली- “अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती। चल गुड्डी…दे देते हैं, जब ढोलक मजीरा और घुंघरू आये थे तो रीत एक बैग भी लाद के ले आयी थी।

और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया। साड़ी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था, वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी। इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह-जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे।

हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कहकर की सुहाग की निशानी हैं और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्की साफ-साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं, गान्डूओं की निशानी है।


मैंने बहुत जोर दिया की महंगे होंगे तो हँसकर बोली, रीत से कहना। ये सब उसी की कारस्तानी है। लेकिन मैं बताऊं सब 20 आने वाला माल है।

तब तक रीत और गुड्डी ने जादूगर की तरह उस बैग में से हाथ डाल के साथ साथ निकाला।

एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी।



“हे भाभी किसे 20 आने वाला माल कह रही हो। कहीं मुझे तो नहीं…” हँसकर रीत ने पूछा।

“हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को 20 आने वाला माल कह दे। जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा हो…” चंदा भाभी बोली।

“पीछे मतलब। मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज मस्त-मस्त है…” संध्या भाभी भी रीत को चिढ़ाने में शामिल हो गईं।



“अरे आगे-पीछे इसकी सब मस्त-मस्त है। लेकिन इत्ते मस्त गोल-गोल चूतड़ हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना। चूची चूतड़ दोनों का साथ-साथ। क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं…”


मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया।

रीत की बड़ी-बड़ी हँसती नाचती कजरारी आँखें मुझे ही देख रही थी।

मैं शर्मा गया।

रीत शर्ट लेकर मेरी और बढ़ी- “चलो पहनो…”

शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चुका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन।

मैंने 34सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गई थी और उसमें भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया- “अरे यार इन्हें तो पहले उतारो…”

“क्यों क्या बुरा है इनमें अच्छे तो लग रहे हो…” गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।

“हे बाबू ये सोचना भी मत। मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे…” रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी।

“वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है…” गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया।

मैं- “हाँ मेरी बनयान और चड्ढी। वो…”

“अरे जो मिल रहा है ले लो। तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है। एक से संतोष नहीं है। एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गड़ाएंगे और तीसरी का नंबर लगाकर रखेंगे…” रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया।

मैं सच में घबड़ा गया। इन बनारस की ठग से कौन लगे- “अच्छा चलो रहने दो। ऊपर से ही शर्ट पहना दो…” मैं हार कर बोला।

“अरे ब्रा पहनने का बहुत शौक है तुम्हें लगता है। बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लण्ड में लगाकर मुट्ठ मारते थे। लाला…” संध्या भाभी बोली। चित भी उनकी पट भी उनकी।

रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा। होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना। बस वैसे। लेकिन। रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी।

रीत और गुड्डी ने मिलकर मुझे शर्ट पहनाई।



गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा-मोटा लिखा था- “बहनचोद। "

इत्ता बड़ा बड़ा की बहुत दूर से भी साफ दिखे…” और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था-

“बहन का भंड़ुआ। होली डिस्काउंट। बनारस वालों के लिए खास…”

और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता (गुड्डी) लिखा था। लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका। वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो,



लिखा था रेट लिस्ट पीछे।

अब तक मैंने पीछे नहीं देखा था। जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गई। जैसे कोई सस्ते विज्ञापन। ऊपर लिखा था-


खुल गई। चोद लो। मार लो। और उसके नीचे,--- गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।



उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-



चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया

चूची मिजवायी- 40 रूपया

चुसवायी- 50 रूपया

चुदवाई- 75 रूपया

सारी रात 150 रूपया।




और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे। बस गनीमत ये थी की सिर्फ 9 नंबर ही दिए गए थे। एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था। लेकिन दूसरा?

मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली- “मेरा है…” गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेती हूँ आखीरकार, तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बिना ऐड के कहाँ बिकता है?

“तो उस साली का नम्बर क्यों नहीं दिया?” संध्या भाभी ने पूछा।

“अरे तो इस भंड़ुए का क्या होता। मेरे ये कहाँ से नोट गिनते…” गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा।

“नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं। अरे उसके पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे। मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ। जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए। तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को। अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं। डिमांड ज्यादा होगी होली में। टर्न ओवर की बात है। बोल?”

रीत वास्तव में बी॰काम॰ में पढ़ने लायक थी। उसका बिजनेस सेन्स गजब का था।

और जब तक मैं रोकूँ रोकूँ, ...गुड्डी ने दनदनाते हुए। नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया-
तब तक मुझे ध्यान आया, गुड्डी ने तो पूरा ही दसों नंबर बता दिया।

“हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने?” मैंने बोला।

गुड्डी को भी लगा तो वो रीत से बोली- “हे यार उसका तो पूरा नम्बर लिख गया। एक मिटा दे ना…”

रीत सीधी होती हुई बोली- “अब कुछ नहीं हो सकता। ये ना मिटने वाली स्याही है…” और ये नम्बर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे।

पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया। मैं हाथ जोड़ता रहा- “हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो…”

“बता दूं किसके पास है?” गुड्डी ने आँख नचाकर रीत से पूछा।

“बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं…” हँसकर अदा से रीत बोली।

“तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है। गुंजा के पास वो पहनकर स्कूल गई है। कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी और वैसे भी उसने तुम्हें अपनी रात भर की पहनी हुई टाप और बर्मुडा दिया था। तो क्या सोचते हो ऐसे ही। एक्सचेंज प्रोग्राम था…”

गुड्डी ने हँसते हुए राज खोला।

पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गई थी।

गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उसपे सफेद, गोल्डेन पेंट से।


पीछे मेरे चूतड़ पे खूब बड़े लेटर्स में गान्डू लिखा था। आगे भंड़ुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियां। शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे, उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे।

“चलो न अब नीचे नहाने बहुत देर हो रही है। और इनको गुड्डी को जाना भी है…” संध्या भाभी बोली और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थी। एक अजीब तरह की चमक। और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में।

और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया- “चल तू भी…”

रीत की निगाहें मेरी और गड़ी थी।

और दूबे भाभी भी दुविधा में थी- “मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़कर जाने के लिए…” मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोली।

“अरे आएगा वो हफ्ते भरकर अन्दर। फिर तो तीन-चार दिन रहेगा ना। बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है…” चंदा भाभी ने उन्हें समझाया।

तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी। गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धोकर नहाना था, ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके “वो पांच दिन…” खतम हो रहे थे। इसलिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी।


“और मैं?” मैं फिर बोला।


“अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे। रंग वंग…” लेकिन रीत की बात खतम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी।
“अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी। फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो। जा तो रहे हैं अपने मायके। अपनी उस एलवल वाली बहन से साफ करवा लेंगे…”

चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा। कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा। मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे।

तय ये हुआ की मैं छत पे ही रंग साफ कर लूँगा और उसके बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में। भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गईं।



सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही। जाते-जाते मेरा हाथ दबाकर बोली,..... मिलते हैं ब्रेक के बाद.
Bahut hi sunder aur Kamuk update. Your writing is superb.
 

komaalrani

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भाग ८९ -इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास


अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर जरूर करें
 

komaalrani

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Sandhya

Sandhya bhabhi or reet dono bar bar bach jati hai
होली में भाभी कब तक चाभी से बचेगी, ताला है तो ताली लगेगी ही और जल्द ही लगेगी, और कस के लगेगी। बस इन्तजार कीजिये अगली पोस्टों का।
 

komaalrani

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Fi

Fir se klpd ho gya
इन्तजार का फल मीठा होता है, जैसे मैं व्यूज और कमेंट्स का इन्तजार करती हूँ उसी तरह आनंद बाबू को भी बस सही मौके का इन्तजार है, वो टू मिनट नूडल तो हैं नहीं उन्हें कम से १५-२० मिनट फुर्सत से चाहिए, चंदा भाभी के साथ तो पूरी रात थी तो संध्या भाभी के साथ घंटा भर तो मिले, हम सब की दुआ रहेगी तो क्या पता होली की असली मिठाई खाने को मिल ही जाए।

बहुत बहुत धन्यवाद आपका सपोर्ट तीनो कहानियों पर रहता है, कोई भी आभार कम होगा , आपके कमेंट घोड़े की लगाई गयी ऐड की तरह काम करते हैं, बस इसी तरह साथ बनाये रखिये। इस कहानी में ढेर सारे नए प्रंसग जुड़ रहे हैं।
 

komaalrani

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Comment on update 18:

Wow...what a super update...I have never been to Banaras but reading your updates gives a distinct feel of how Holi is celebrated in Banaras (which btw, is very famous)
and when you mix it with erotica..its a deadly combo...the foreplay of Reet and Anand babu giving ample indications of that...

The erotic sex scene of Chanda and Sandhya bhabhi was truly awesome albeit with KLPD of Anand Babu 😜 😜 😀 😀
I fully agree with Raji's comments as well..."Awesome Gajab Updates"..truly super..

and your post ends with a cliff hanger..."मिलते हैं ब्रेक के बाद"...
The "possibilities" are many...and many might be mouth watering as well...

Truly awesome updates...👏👏👏👍👍👍

komaalrani
Thanks so much, such nice words coming from a very popular writer, who is a great reviewer too, enthuses me a lot. You have been a constant support thanks again.


:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 

komaalrani

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तन से तन की होली...
मन से मन की होली...
तन तो कइयों से लग जाता है लेकिन मन, तो कोई बहुत पहले चुरा ले गया आंनद बाबू का

इसके पहले वाली पोस्ट में एक पोस्ट थी, गुड्डी के बारे में, जिसका मन उसका तन और वही अगर उकसा रही तो हो बेचारे आनंद बाबू कैसे रुक पाएंगे
 
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