मेरे कपड़े?
सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।
“हे मेरे कपड़े?” मैं जोर से चिल्लाया।
“अरे लाला पहने तो हो, इत्ते मस्त माल लग रहे हो…” दूबे भाभी मुश्कुराकर बोली।
“लेकिन इसको पहनकर। अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्टहाउस। फिर घर…” मैं परेशान होकर बोला। अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो?
“मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहनकर बाजार चलेंगे। जोगीड़े में तो लड़के लड़कियां बनते ही हैं। लौंडे के नाच में भी। तो लोग सोचेंगे होगा कोई स्साला चिकना नमकीन लौंडा ” गुड्डी हँसकर बोली।
रीत ने भी टुकड़ा लगाया- “हे, अगर गुड्डी को आपको साथ ले जाने में परेशानी नहीं है तो फिर किस बात का डर?”
“हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो…” मैं गुड्डी से गिड़गिड़ा रहा था।
“वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना…” गुड्डी खिलखिलाती हुई बोली।
“अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही माँगते हैं। मांग लो ढंग से। दे देगी…” संध्या भाभी ने आँख मारकर मुझसे कहा।
“एकदम…” रीत ने हँसकर कहा।
मैं- “तो फिर कैसे मांगूं?”
“अरे पैर पड़ो। हाथ जोड़ो। दिल पसीज जाएगा तो दे देगी। अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोली।
खैर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। मैंने पूछा- “क्यों दंडवत हो जाऊं?”
और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के हँस पड़ी। संध्या भाभी बोली- “क्या बोले। लण्डवत?” और तीनों फिर खिलखिला के हँस पड़ी।
रीत बोली- “अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती। चल गुड्डी…दे देते हैं, जब ढोलक मजीरा और घुंघरू आये थे तो रीत एक बैग भी लाद के ले आयी थी।
और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया। साड़ी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था, वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी। इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह-जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे।
हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कहकर की सुहाग की निशानी हैं और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्की साफ-साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं, गान्डूओं की निशानी है।
मैंने बहुत जोर दिया की महंगे होंगे तो हँसकर बोली, रीत से कहना। ये सब उसी की कारस्तानी है। लेकिन मैं बताऊं सब 20 आने वाला माल है।
तब तक रीत और गुड्डी ने जादूगर की तरह उस बैग में से हाथ डाल के साथ साथ निकाला।
एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी।
“हे भाभी किसे 20 आने वाला माल कह रही हो। कहीं मुझे तो नहीं…” हँसकर रीत ने पूछा।
“हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को 20 आने वाला माल कह दे। जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा हो…” चंदा भाभी बोली।
“पीछे मतलब। मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज मस्त-मस्त है…” संध्या भाभी भी रीत को चिढ़ाने में शामिल हो गईं।
“अरे आगे-पीछे इसकी सब मस्त-मस्त है। लेकिन इत्ते मस्त गोल-गोल चूतड़ हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना। चूची चूतड़ दोनों का साथ-साथ। क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं…”
मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया।
रीत की बड़ी-बड़ी हँसती नाचती कजरारी आँखें मुझे ही देख रही थी।
मैं शर्मा गया।
रीत शर्ट लेकर मेरी और बढ़ी- “चलो पहनो…”
शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चुका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन।
मैंने 34सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गई थी और उसमें भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया- “अरे यार इन्हें तो पहले उतारो…”
“क्यों क्या बुरा है इनमें अच्छे तो लग रहे हो…” गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।
“हे बाबू ये सोचना भी मत। मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे…” रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी।
“वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है…” गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया।
मैं- “हाँ मेरी बनयान और चड्ढी। वो…”
“अरे जो मिल रहा है ले लो। तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है। एक से संतोष नहीं है। एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गड़ाएंगे और तीसरी का नंबर लगाकर रखेंगे…” रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया।
मैं सच में घबड़ा गया। इन बनारस की ठग से कौन लगे- “अच्छा चलो रहने दो। ऊपर से ही शर्ट पहना दो…” मैं हार कर बोला।
“अरे ब्रा पहनने का बहुत शौक है तुम्हें लगता है। बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लण्ड में लगाकर मुट्ठ मारते थे। लाला…” संध्या भाभी बोली। चित भी उनकी पट भी उनकी।
रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा। होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना। बस वैसे। लेकिन। रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी।
रीत और गुड्डी ने मिलकर मुझे शर्ट पहनाई।
गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा-मोटा लिखा था- “बहनचोद। "
इत्ता बड़ा बड़ा की बहुत दूर से भी साफ दिखे…” और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था-
“बहन का भंड़ुआ। होली डिस्काउंट। बनारस वालों के लिए खास…”
और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता (गुड्डी) लिखा था। लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका। वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो,
लिखा था रेट लिस्ट पीछे।
अब तक मैंने पीछे नहीं देखा था। जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गई। जैसे कोई सस्ते विज्ञापन। ऊपर लिखा था-
खुल गई। चोद लो। मार लो। और उसके नीचे,--- गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।
उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-
चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया
चूची मिजवायी- 40 रूपया
चुसवायी- 50 रूपया
चुदवाई- 75 रूपया
सारी रात 150 रूपया।
और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे। बस गनीमत ये थी की सिर्फ 9 नंबर ही दिए गए थे। एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था। लेकिन दूसरा?
मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली- “मेरा है…” गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेती हूँ आखीरकार, तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बिना ऐड के कहाँ बिकता है?
“तो उस साली का नम्बर क्यों नहीं दिया?” संध्या भाभी ने पूछा।
“अरे तो इस भंड़ुए का क्या होता। मेरे ये कहाँ से नोट गिनते…” गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा।
“नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं। अरे उसके पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे। मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ। जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए। तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को। अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं। डिमांड ज्यादा होगी होली में। टर्न ओवर की बात है। बोल?”
रीत वास्तव में बी॰काम॰ में पढ़ने लायक थी। उसका बिजनेस सेन्स गजब का था।
और जब तक मैं रोकूँ रोकूँ, ...गुड्डी ने दनदनाते हुए। नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया-
तब तक मुझे ध्यान आया, गुड्डी ने तो पूरा ही दसों नंबर बता दिया।
“हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने?” मैंने बोला।
गुड्डी को भी लगा तो वो रीत से बोली- “हे यार उसका तो पूरा नम्बर लिख गया। एक मिटा दे ना…”
रीत सीधी होती हुई बोली- “अब कुछ नहीं हो सकता। ये ना मिटने वाली स्याही है…” और ये नम्बर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे।
पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया। मैं हाथ जोड़ता रहा- “हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो…”
“बता दूं किसके पास है?” गुड्डी ने आँख नचाकर रीत से पूछा।
“बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं…” हँसकर अदा से रीत बोली।
“तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है। गुंजा के पास वो पहनकर स्कूल गई है। कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी और वैसे भी उसने तुम्हें अपनी रात भर की पहनी हुई टाप और बर्मुडा दिया था। तो क्या सोचते हो ऐसे ही। एक्सचेंज प्रोग्राम था…”
गुड्डी ने हँसते हुए राज खोला।
पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गई थी।
गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उसपे सफेद, गोल्डेन पेंट से।
पीछे मेरे चूतड़ पे खूब बड़े लेटर्स में गान्डू लिखा था। आगे भंड़ुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियां। शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे, उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे।
“चलो न अब नीचे नहाने बहुत देर हो रही है। और इनको गुड्डी को जाना भी है…” संध्या भाभी बोली और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थी। एक अजीब तरह की चमक। और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में।
और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया- “चल तू भी…”
रीत की निगाहें मेरी और गड़ी थी।
और दूबे भाभी भी दुविधा में थी- “मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़कर जाने के लिए…” मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोली।
“अरे आएगा वो हफ्ते भरकर अन्दर। फिर तो तीन-चार दिन रहेगा ना। बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है…” चंदा भाभी ने उन्हें समझाया।
तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी। गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धोकर नहाना था, ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके “वो पांच दिन…” खतम हो रहे थे। इसलिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी।
“और मैं?” मैं फिर बोला।
“अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे। रंग वंग…” लेकिन रीत की बात खतम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी।
“अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी। फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो। जा तो रहे हैं अपने मायके। अपनी उस एलवल वाली बहन से साफ करवा लेंगे…”
चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा। कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा। मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे।
तय ये हुआ की मैं छत पे ही रंग साफ कर लूँगा और उसके बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में। भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गईं।
सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही। जाते-जाते मेरा हाथ दबाकर बोली,..... मिलते हैं ब्रेक के बाद.
लगभग एक दशक और कहानी का नवीकरण..
कोई भी दर्जी पुराने कपड़े को छोटा बड़ा करने या कुछ चेंज करने के बजाय नए कपड़े पर काम करना आसान समझता है..
लेकिन आपकी हिम्मत को सलाम...
क्या ही खूब घटनाओं और किरदारों के बीच समन्वय किया है...
नई पात्र श्वेता... छुटकी भी अपने अलग रंग में..
संध्या भाभी के किरदार में इजाफा ..
गुंजा... चंदा भाभी.. दूबे भाभी.. और सबसे बढ़कर गुड्डी...
और रीत तो एवरग्रीन है हीं..
आनंद बाबू का तो जैसे द्रौपदी की चीरहरण हीं हो रहा है... और कृष्ण की तरह दूबे भाभी ने आनंद बाबू को बचा लिया..
हर पात्र अपनी एक अलग छाप छोड़ रहा है...
आपके लिखने की शैली और विविधता साथ में संवादों में हास्य व्यंग्य..
होंठों पर बरबस मुस्कान ले आती है...
और होली के सीन तो जैसे ऊपर से नीचे तक सराबोर कर जाते हैं...
जोगीड़ा... कबीरा.. तो होली का एक अलग हीं समां बना लेते हैं...
साथ में लोकगीत और फिल्मी गानों का सम्मिश्रण ..
छवियों को आँखों के रास्ते दिल में उतार देता है...
और क्या कहूं .. इतना लिखने में हीं एक घंटे से ऊपर लग गया...
तो आपको इतनी बड़ी कहानी के हर सीन को सोचने और फिर लिखने में कितना समय और मेहनत लगता होगा...
और ऊपर से सीन के मुताबिक पिक्चर और GIF खोजना भी कम दुष्कर कार्य नहीं है...
ये तो स्वतः सोचने वाली बात है.. कि आपके इस प्रयास के लिए जितनी भी सराहना करें कम है...
लेकिन शायद आपके कहानी के अनुसार बराबरी करने वाले कमेंट्स लिखने की क्षमता सबमे नहीं है...
यही दिल से कामना है कि आप लिखती रहें और हम अनवरत पढ़ते रहें.
आपका आभार और धन्यवाद.