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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
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komaalrani

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ऐसी देह की होली न कभी खेली गई और न ही फ्यूचर मे किसी के नसीब मे होगी ।
दूबे भाभी , चंदा भाभी , संध्या भाभी , रीत और गुड्डी के साथ आनंद साहब की यह रंगीन होली वर्षों - वर्ष तक रीडर्स के मन मस्तिष्क पर अंकित रहेगी ।

सभी महिलाओं ने पहले तो आनंद साहब को रंगो से सराबोर किया , वस्त्रहीन कर उसे औरत का ड्रेस पहनाया , साज श्रृंगार कराया और अंत मे जब उसे कपड़े पहनाने की बात आई तो फिर अश्लील शब्दकोश से उस कपड़े का ऐसा क्रिया कर्म किया जो शब्दों मे बखान करना मुश्किल है ।
तौबा तौबा !
यह कहने की जरूरत नही कि इस देह की होली मे क्या क्या कारनामे हुए !

इन अपडेट मे कुछ सेन्टेन्स जो कही गई वह नो डाऊट आउटस्टैंडिंग थे ।
" दिखाना , ललचाना और , समय पर बिदक जाना " -- रीत ।
" हमे तो लूट लिया बनारस की ठगनियों ने " -- आनंद ।
" तुम्हे देखने के लिए आंख खोलनी पड़ती है क्या !" -- गुड्डी ।

गुड्डी की यह बात और फिर उसी दौरान कवि पद्माकर साहब की रचना - " एकै संग हाल नंद लाल...." इस अपडेट का सबसे खुबसूरत लम्हात था ।
राधा अपने प्रियतम से कहती है -- " गुलाल तो आंख से धुल जाए , पर नंद लाल कैसे जाए । "


इन अपडेट मे संध्या और रीत ने जिस तरह शब्दों को बिगाड़ कर उसे अश्लील रूप मे परिवर्तित किया , वह भी अद्भुत था । सहज नही होता है किसी अच्छे खासे शब्दों का अश्लील रूपांतरण करना । वह शब्द जो परिस्थिति के अनुरूप हो ।

शायद इस अध्याय के बाद होली पर्व का ' द एंड ' हो जाए पर , यह हकीकत है कि यह होली हमे भुलाए नही भुलेगी । ना हमे और न ही आनंद को और न ही इस पर्व मे सम्मिलित सभी महिलाओं को ।

आउटस्टैंडिंग अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।
आभार, धन्यवाद, थैंक्स

जो भी कहूं कम है। गुड्डी के रोमांस के प्रसंग के, पद्माकर की कविता को और एक एक पंक्ति को आपने जैसे पढ़ा, सराहा और पंक्तियों को रेखांकित किया, मैं और मेरी कहानी दोनों धन्य हो गए।

होली के प्रसंग का 'द एन्ड ' लगभग समझिये क्योंकि अभी एक पात्र जिस के साथ होली की छेड़छाड़ शुरू हुयी थी, जिसने सुबह सुबह मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिलाये थे आनंद बाबू को उस के साथ तो होली अभी बची है और वो कसम धरा के गयी थी, की जबतक मैं न आऊं आप जाइयेगा नहीं, आनंद बाबू की मुंहबोली, छोटी साली,

गुंजा

और छोटी साली के बिना तो होली अधूरी ही रहती है तो अगली पोस्ट पूरी तरह गुंजा पर

तो बस एक दो प्रसंग और होली के फिर कहानी धीरे धीरे करवट लेगी, फागुन के एक दूसरे रंग की ओर,

गुड्डी के घर से बाहर निकलेगी,

और एक बार फिर से इन्तजार रहेगा, आपके शब्दों की अमृत वर्षा का

एक बार फिर से आभार
 

komaalrani

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सालियों और भाभियों का तो सिर्फ चीरहरण हीं हुआ..
बेचारे आनंद बाबू का तो इज्जत हरण.. साथ में दर्जनों गारियां...
और बनारस के लौंडेबाजों से खतरा.. वो अलग...
उसी गारी वाली रिश्ते के पक्के होने के लिए तो व्याकुल हैं आनंद बाबू, अभी तो जो बात ढकी छिपी है ( लेकिन बहुतों को मालूम है ) एक बार संस्कार और समाज की मोहर लग गयी, फिर तो और खुल के,....
 

komaalrani

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ऐसा गदराया हुश्न...
तन से तन रगड़ने का मजा...
रंग रगड़ने से कहीं ज्यादा है...
रंग तो सिर्फ बहाना है,

असली चीज तो अंग ही है, चाहे नयन सुख हो, कालोनी, सोसायटी की, मोहल्ले की भाभियों की रंग से भीगी देह, देह से चिपकी साड़ी, सलवार, कुर्ती, हर उभार, कटाव को दिखाती, झलकाती

और कुछ होते हैं जो रिश्ते में देवर, ननदोई या जीजा होते हैं उन्हें नयन सुख के साथ स्पर्श सुख भी और ससुराल की होली हो, फिर तो,
 

komaalrani

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होली.. वो भी बनारस की..
अब तो आनंद बाबू के साथ जो न हो वो थोड़ा है...
सुबह के पहले रात भी आएगी, जिसमे आनंद बाबू और गुड्डी साथ साथ आनंद बाबू के मायके में होंगे और उसके लिए तो गुड्डी ने पहले ही आनंद बाबू के सामने उन्ही के पर्स से आई पिल, माला डी और वैसलीन की बड़ी शीशी ली है , हाँ बाकी किसके साथ आंनद बाबू की पिचकारी सफ़ेद रंग बहायेगी, ये तो आनेवाली अगली एक दो पोस्टो में पता चल जाएगा,
 

komaalrani

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और रीत जैसी मास्टर माइंड...
और साथ में आनंद बाबू जैसा तगड़ा और जानदार अश्व प्रजाति का युवक...
एकदम सही कहा आपने अश्व जाति का

वैसे तो अश्व जाति के साथ हस्तिनी नायिका का योग बनता है लेकिन सब कन्या, किशोरियां, गुड्डी रीत पद्मिनी हैं और उसके लिए कोका पंडित और आचार्य वात्स्यायन ने विशेष प्रावधान किये हैं।
 

komaalrani

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इसलिए दूबे भाभी का राजी होना जरुरी है...
और आनंद बाबू इतने समझदार और फोकस्ड तो हैं ही, इसलिए दूबे भौजी की बात क्या कोई इशारा भी वो नहीं टालेंगे
असली टारगेट तो गुड्डी रानी हैं,
 

komaalrani

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दुविधा में तो नहीं लग रही हैं संध्या भाभी...
लेकिन अंदर से चाहते हुए भी खुल के बोल नहीं रहीं...
बोलेंगी बोलेंगी, कुछ अंग विशेष और झिझक, दोनों ही महिलाओं की खुलते खुलते ही खुलते हैं
 

komaalrani

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स्वाद चखने के बाद तो और लार टपक रहा है...
ऐसी नयकी बियाहल के तो एक बार जम के कम से कम...
एवमस्तु
 

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नहीं.. नहीं..
आपकी कलम में जादूगरी..
लेकिन शायद लोगों का स्वाद अलग हो...
या फिर फोरम पर इंसेस्ट लिखने पढ़ने वालों की भरमार हो..
या फिर वैसे पाठक हों जो देवनागरी लिपी के बजाय हिंग्लिश को तरजीह देते हों या फिर देवनागरी पढ़ नहीं पाते हों...
तो रीडरशिप लिमिटेड हो जाती है...
अगर आप इरोटिका सेक्शन में अन्य थ्रेड्स को देखें तो आपकी कहानियां व्यूज और कमेंट्स में सर्वोच्च स्थान पर है...
:thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 

komaalrani

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दूबे भाभी काफी दूरंदेशी हैं..
ऐसे बिना कपड़ों के भेजने का खतरा मोल नहीं ले सकती...
और आनंद बाबू को होली में ससुराल आने की नई सीख भी मिल गई...

संध्या भाभी सुंदर तो थी ही और जवान भी, रीत से मुश्किल से साल भर बड़ी, बी ए में गयी ही थीं की शादी हो गयी, और शादी के बाद तो जवानी और भड़क जाती है, दहकता रूप, सुलगता जोबन, लेकिन अभी इस मुस्टंडे को छूने पकड़ने और देखने के बाद जो कामाग्नि दहक रही थी, जोबन जिस तरह पथराया था, निप्स टनटना रहे थे, होंठ बार बार सूख रहे थे, वो और साफ़ साफ़ कहूं तो लेने लायक लग रही थीं,और मेरा भी मन यही कर रहा था, कब मौका मिले और उन्हें पटक के,

एकदम सही कहा.. शादी के बाद तो जवानी की आग में और घी पड़ जाता है.. और धधक उठती है...
एकदम इसलिए सबसे ज्यादा गर्मायी संध्या भाभी ही हैं
 
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