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आभार, धन्यवाद, थैंक्सऐसी देह की होली न कभी खेली गई और न ही फ्यूचर मे किसी के नसीब मे होगी ।
दूबे भाभी , चंदा भाभी , संध्या भाभी , रीत और गुड्डी के साथ आनंद साहब की यह रंगीन होली वर्षों - वर्ष तक रीडर्स के मन मस्तिष्क पर अंकित रहेगी ।
सभी महिलाओं ने पहले तो आनंद साहब को रंगो से सराबोर किया , वस्त्रहीन कर उसे औरत का ड्रेस पहनाया , साज श्रृंगार कराया और अंत मे जब उसे कपड़े पहनाने की बात आई तो फिर अश्लील शब्दकोश से उस कपड़े का ऐसा क्रिया कर्म किया जो शब्दों मे बखान करना मुश्किल है ।
तौबा तौबा !
यह कहने की जरूरत नही कि इस देह की होली मे क्या क्या कारनामे हुए !
इन अपडेट मे कुछ सेन्टेन्स जो कही गई वह नो डाऊट आउटस्टैंडिंग थे ।
" दिखाना , ललचाना और , समय पर बिदक जाना " -- रीत ।
" हमे तो लूट लिया बनारस की ठगनियों ने " -- आनंद ।
" तुम्हे देखने के लिए आंख खोलनी पड़ती है क्या !" -- गुड्डी ।
गुड्डी की यह बात और फिर उसी दौरान कवि पद्माकर साहब की रचना - " एकै संग हाल नंद लाल...." इस अपडेट का सबसे खुबसूरत लम्हात था ।
राधा अपने प्रियतम से कहती है -- " गुलाल तो आंख से धुल जाए , पर नंद लाल कैसे जाए । "
इन अपडेट मे संध्या और रीत ने जिस तरह शब्दों को बिगाड़ कर उसे अश्लील रूप मे परिवर्तित किया , वह भी अद्भुत था । सहज नही होता है किसी अच्छे खासे शब्दों का अश्लील रूपांतरण करना । वह शब्द जो परिस्थिति के अनुरूप हो ।
शायद इस अध्याय के बाद होली पर्व का ' द एंड ' हो जाए पर , यह हकीकत है कि यह होली हमे भुलाए नही भुलेगी । ना हमे और न ही आनंद को और न ही इस पर्व मे सम्मिलित सभी महिलाओं को ।
आउटस्टैंडिंग अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।
जो भी कहूं कम है। गुड्डी के रोमांस के प्रसंग के, पद्माकर की कविता को और एक एक पंक्ति को आपने जैसे पढ़ा, सराहा और पंक्तियों को रेखांकित किया, मैं और मेरी कहानी दोनों धन्य हो गए।
होली के प्रसंग का 'द एन्ड ' लगभग समझिये क्योंकि अभी एक पात्र जिस के साथ होली की छेड़छाड़ शुरू हुयी थी, जिसने सुबह सुबह मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिलाये थे आनंद बाबू को उस के साथ तो होली अभी बची है और वो कसम धरा के गयी थी, की जबतक मैं न आऊं आप जाइयेगा नहीं, आनंद बाबू की मुंहबोली, छोटी साली,
गुंजा
और छोटी साली के बिना तो होली अधूरी ही रहती है तो अगली पोस्ट पूरी तरह गुंजा पर
तो बस एक दो प्रसंग और होली के फिर कहानी धीरे धीरे करवट लेगी, फागुन के एक दूसरे रंग की ओर,
गुड्डी के घर से बाहर निकलेगी,
और एक बार फिर से इन्तजार रहेगा, आपके शब्दों की अमृत वर्षा का
एक बार फिर से आभार