“तुम्हें देखने के लिए आँखें खोलनी पड़ती हैं क्या? मुश्कुराकर वो बोली लेकिन फिर कहने लगी- “कुछ करो ना आँख में किरकिरी सी हो रही है…”
“वो तो कब का निकल गया…” ये शीशे में मेरे प्रतिविम्ब की ओर इशारा करती गुड्डी बोली- “ये, अबीर डालने वाला नहीं निकला…”
कहानी ऐसी होनी चाहिए कि कुछ डायलोग दिल को छू ले..
उपरोक्त दोनों पंक्तियाँ .. दिल से निकली प्रतीत होती है...
फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी।
भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी॥
छीन पितंबर कमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाई, कह्यौ मुसकाइ, लला। फिर खेलन आइयो होरी॥
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एकै सँग हाल नँदलाल औ गुलाल दोऊ,दृगन गये ते भरी आनँद मड़गै नहीं।
धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौंह, अब तो उपाय एकौ चित्त में चढ़ै नहीं।
कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौं कौन सुनै,कोऊ तो निकारो जासों दरद बढ़ै नही।
एरी। मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सों,कढ़िगो अबीर पै अहीर को कढ़ै नहीं।
ऐसी चौपाइयां /दोहे कहीं और पढ़ने को कहाँ मिलती है...
जो खुद इन सबका अध्ययन करता रहता हो...
यानि लेखक होने के पहले एक अच्छा पाठक होना जरुरी है...
और ये गुण आपमें मौजूद है...
वही उपयुक्त स्थान पर इन्हें अपनी कहानियों में प्रस्तुत कर सकता है...
और इसी कारण आपकी कहानी सबसे हटकर है...