- 22,070
- 57,068
- 259
फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
Last edited:
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पहले बेचारे आनंद को बिना कपड़ो के बाजार जाने का आदेश दे दिया लेकिन दुबे भाभी ने बचा लिया आनंद को कपड़े तो मिले लेकिन दुल्हन की तरह श्रृंगार कर दिया जैसे गावो में बारात जाने के बाद महिला दुल्हन और दूल्हा बनकर मस्ती करती हैंफागुन के दिन चार - भाग १७
रसिया को नार बनाउंगी
२,०८,२४९
--
----
मैं नंग धड़ंग छत पर खड़ा था, और मेरे चारो और वो पांचो, दो टीनेजर्स, गुड्डी और रीत और तीन भाभियाँ, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी सिर्फ देह से चिपकी रंग से लथपथ, आधी फटी खुली ब्रा और,
मेरा मुस्टंडा फड़फड़ा रहा था, खुली हवा में साँस लेकर और चारो ओर का नजारा देखकर,
लेकिन वो पांचो ऐसे बात कर रही थीं जैसे मैं हूँ ही नहीं वहां, हाँ कभी कभी चोरी चोरी चुपके चुपके एक निगाह उसे मोटे मुस्टंडे पर डाल ले रही थी, सबसे ज्यादा ललचायी संध्या भाभी लग रही थीं। रीत और गुड्डी से अलग,... वो स्वाद ले चुकी थीं तो उन्हें मजा मालूम था, लग रहा था अभी लार टपक जायेगी।
चंदा भाभी 'उसे' देख के खुश हो रही थीं, एक तो उनका शिष्य, दूसरे उनकी जो बात मैंने मानी थी। मुस्टंडे का मुंड ( सुपाड़ा ) खूब मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा, लाल और एकदम खुला, ... कल पहली सीख उन्होंने यही दी थी। अपने हाथ से 'उसका' घूंघट खोला और बोलीं अब इसको खुला ही रखना और कारण भी समझाया, ' कायदे से रगड़ रगड़ कर घिस घिस कर ये धुस्स हो जाएगा, फिर जल्दी नहीं झड़ेगा।
दूबे भाभी कभी उस तन्नाए बौराये मुस्टंडे को देखतीं तो कभी गुड्डी को, खूब खुश, मुस्कराती,.... मानो कह रही हों ,
" बबुनी, हम लोग तो कभी कभी इसका मजा लेंगे, होली दिवाली , लेकिन तुझे तो ये मूसल रोज घोंटना पडेगा। "और मैं दूबे भाभी की ये निगाहें देख कर खुश हो रहा था। जब गुड्डी का मेरा मामला फाइनल स्टेज में पहुंचेगा, और अगर गुड्डी की मम्मी इसे दूबे भाभी की अदालत में ले गयीं तो फैसला मेरे ही हक में होगा।
लेकिन सबसे जालिम थी और कौन, मेरी साली , रीत।
मैं गुहार लगा रहा था कपडे कपडे, ऐसे बाजार कैसे जाऊँगा, गुड्डी के साथ और उसने हुकुम सुना दिया , " क्यों नहीं जा सकते , बहुत नई दुल्हन की तरह लजाते हो तो एक हाथ से आगे एक हाथ से पीछे ढक लेना और नहीं तो मेरी छोटी बहन की, गुड्डी की चिरौरी करना, हाथ पैर जोड़ना तो चड्ढी , रुमाल कुछ दिलवा देगी, ढक लेना।
लेकिन बचाने आयीं मुझे दूबे भाभी।
“नहीं ये सब नहीं हो सकता…” अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।
मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।
“अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा…”
अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?
जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमें। जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।
रीत बोली- “देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े। लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के…”
मेरे पास कोई रास्ता बचा भी था क्या चुपचाप बात मानने के ? और अब तक मैं समझ चुका था ससुराल में, वो भी अगर बनारस की हो और साली सलहज के झुण्ड में फंस गए तो चुपचाप बात मान लेनी चाहिए, एक तो और कोई चारा भी नहीं दूसरे लांग टर्म बेनिफिट,...
गुड्डी तब तक एक बैग ले आई।
ये वही बैग था जिसे रीत सुबह अपने घर से ले आई थी और गुड्डी लेकर चंदा भाभी के पास चली गई थी। बाद में उसे ही ढूँढ़ने वो चंदा भाभी को लेकर अन्दर ले गई थी। उसमें से ढेर सारी चीजें निकाली गई श्रृंगार की।
अब मैं समझ गया की ये सब नाटक था मुझे तंग करने का। ये सब प्लानिंग पहले से थी।
मैं भी उसे उसी तरह एन्जाय करने लगा। पेटीकोट दूबे भाभी का पहनाया गया। ब्रा और चोली संध्या भाभी की।
और यह काम संध्या भाभी कर रही थीं, पेटीकोट पहनाते हुए पहले तो उन्होंने मुस्टंडे को एक प्यार से हलकी सी चपत भी लगा दी और फिर सबकी नजर बचा के मसल भी दिया कस के और जैसे उससे बोल रही हों, बोलीं,
" हे, तुझी से बोल रही हूँ, उधार नहीं रखती मैं, आज ही, जाने के पहले और यहाँ तक पूरा लूंगी, देखती हूँ की खाली बड़ा और कड़ा ही है की रगड़ता भी है " और फिर मुस्टंडे के बेस पे कस के मुट्ठी से दबा के साफ़ कर दिया, कहाँ तक लेना है, और उस मुस्टंडे ने सर हिला के हामी भी भर दी।
संध्या भाभी सुंदर तो थी ही और जवान भी, रीत से मुश्किल से साल भर बड़ी, बी ए में गयी ही थीं की शादी हो गयी, और शादी के बाद तो जवानी और भड़क जाती है, दहकता रूप, सुलगता जोबन, लेकिन अभी इस मुस्टंडे को छूने पकड़ने और देखने के बाद जो कामाग्नि दहक रही थी, जोबन जिस तरह पथराया था, निप्स टनटना रहे थे, होंठ बार बार सूख रहे थे, वो और साफ़ साफ़ कहूं तो लेने लायक लग रही थीं,और मेरा भी मन यही कर रहा था, कब मौका मिले और उन्हें पटक के,
पेटीकोट के बावजूद तम्बू में बम्बू तना हुआ था।
संध्या भाभी रीत और गुड्डी से कम नहीं छेड़ने, चिढ़ाने में आखिर सबसे बड़ी बहन लगेंगी और फिर ब्याहता, ब्रा पहनाते हुए गुड्डी से बोलीं,
" हे इसके माल की, एलवल वाली बहिनिया की भी इस साइज की है या,... "
" कहाँ भाभी, कहाँ आपका ये माल और कहाँ, उसकी तो मुझसे भी १९ है , ३२ बी " गुड्डी मुंह बिचका के बोली।
लेकिन गुड्डी से तुलना करना ही गलत था, अपनी बाकी क्लास वालियों से उसका २० नहीं २४-२५ कम से कम होगा।
" हे फोटो खींच आज तेरे वाले ने पहली बार ब्रा पहनी है " संध्या भाभी ने गुड्डी को उकसाया, और गुड्डी ने मेरे ही मोबाइल से स्नैप स्नैप।
और फिर पहले संध्या भाभी फिर रीत फिर गुड्डी ने भी मेरे पीछे बैठे के ब्रा को दबाते मसलते , फोटो , और गुड्डी चालाकी में किसी से कम थोड़े ही थी, मैं बाद में डिलीट कर देता तो उसने अपने, रीत के संध्या भाभी के और बाद में पता चला की गुंजा और अपनी मम्मी और छुटकी को भी ,
फिर चोली भी संध्या भाभी ने, खूब टाइट, लाल रंग की,
श्रृंगार का जिम्मा रीत और गुड्डी ने लिया।
मेरे दोनों हाथों में कुहनी तक भर-भर लाल हरी चूड़ियां, रीत पहना रही थी।
रीत झुक के मेरे कान में बोली- “हे बुरा तो नहीं माना?”
“अरे यार बुर वाली की बात का क्या बुरा मानना वो भी होली में…” मैं बोला और हम दोनों हँस पड़े।
वो गाने लगी और बाकी सब साथ दे रहे थे-
रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को,
सिर पे उढ़ाय सुरंग रंग चुनरी, गले में माला पहनाऊँगी, रसिया को।
रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को,
सिर पर धरे सुरंग रंग चुनरी, अरे सुरंग रंग चुनरी।
जोबन चोली पहनाऊँगी,
रसिया को नार बनाऊँगी, रसिया को।
गाना चल रहा था और मेरे सामने सुबह से लेकर अभी तक का सीन पिक्चर की तरह सामने घूम गया, और मैं समझ गया की पर्दे पे भले ही अभी रीत हो लेकिन इसके पीछे गुड्डी का और थोड़ा बहुत रोल चंदा भाभी का भी था।और अब संध्या भाभी भी उस में शामिल हो गयी थीं।
कल शाम को जिस तरह चंदा भाभी ने मेरे कपड़े उतरवा के गुड्डी को दिए और इस दुष्ट ने उसे रीत तक पहुँचा दिए और फिर भाभी ने गुड्डी के हाथों ही मेरा पूरा वस्त्र हरण, मेरी बनयान चड्ढी सब कुछ, वो सारंग नयनी ले गई थी।
लेकिन उससे भी बढ़कर आज सुबह जिस तरह नहाते समय इस चालाक ने शेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूविंग क्रीम मेरे चेहरे पे अच्छी तरह लिथड़ के मेरी मूंछ का भी,... एकदम मुझे चिकनी चमेली बना दिया।
इसका मतलब प्लान तो सुबह से ही था और रीत जिस तरह बैग में सामान ले आई थी।
अब मैं बैठा हुआ किशोरियों युवतियों के हाथों अपना जेंडर चेंज देख रहा था, और सच कहूँ तो मजे भी ले रहा था। एक अलग तरह का मजा।
गुड्डी ने चेहरे का और रीत के साथ मिलकर बाकी श्रृंगार का जिम्मा सम्हाल रखा था और कमर के नीचे का काम संध्या भाभी के कोमल-कोमल हाथों के जिम्मे। लेकिन उसके पहले साड़ी पहनाई गई। पर उसमें भी रीत ने साड़ी उसी ने लाकर दी। लेकिन बोला पहनो।
अब मैं कैसे पहनता।
और रीत चालू हो गई- “अरे वाह रे वाह। पहले साड़ी दो फिर इन्हें पहनाना सिखाओ। मायाके वालियों ने कुछ सिख विखाकर नहीं भेजा ससुराल की सिर्फ अपनी ममेरी बहन से नैन मटक्का ही करते रहे…”
चंदा भाभी भी मौका क्यों चूकती- “अरे इनकी बिचारी मायकेवालियों को क्यों बदनाम करती हो? बचपन से ही उन्हें सिर्फ खोलने की आदत है चाहे अपनी साड़ी हो या नाड़ा। तो इस बिचारे को कहाँ से सिखाती? अरे मोहल्ले वाले साड़ी बाँधने देते तब ना। साथ में जांघें फैलाना, टांगें उठाना। तो वो बिचारी बांधती भी कैसे?”
संध्या भाभी भी अब हम सबके रंग में रंग गई थी और उन्होंने सबसे पहली साड़ी के एक छोर को साए में बांधकर मुझे सिखाया।
फिर तो कुछ मैंने, कुछ उन्होंने साड़ी बंधवा ही दी।
"साडी पेटीकोट खोलना तो सब मर्दों को आता है लेकिन तुम पहले हो जो बांधना सीख गए, पर इसकी फ़ीस लगेगी "
कान में फुसफुसा के वो बोलीं। समझ तो मैं भी रहा था लेकिन मैंने भी उसी तरह धीरे से बोला, " एकदम भाभी, बस एक बार हुकुम कीजिये "
" ये " मुस्टंडे को दबा के धीरे से बोलीं और फिर जोड़ा, आज और जाने के पहले। " और फिर रीत और गुड्डी के साथ सिंगार में जुट गयीं।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट हैसोलह सिंगार,
चूड़ी, महावर
अभी रीत और गुड्डी चूड़ियां पहना रही थी हरी-हरी और लाल कंगन।
और संध्या भाभी पैर में महावर लगा रही थीं,
रीत और गुड्डी एकदम चुड़िहारिनों की तरह बैठी थी। गुड्डी ने कलाई पकड़ रखी थी और रीत चूड़ियां पहना रही थी। और जैसे चुड़िहारिने नई नवेलियों को कुँवारी लड़कियों को छेड़ती हैं वो भी बस उसी तरह वो दोनों भी। गुड्डी ने मेरी कलाई को गोल मोड़ दिया चूड़ी अन्दर करने के लिए।
रीत ने छेड़ा- “हे हमारी तुम्हारी कब?”
“अरे पकड़ा पकड़ी होय जब…” गुड्डी ने जवाब दिया।
रीत ने जब चूड़ी घुसाई तो दर्द तो हुआ लेकिन रीत की बात सुनकर वो काफूर हो गया।
“अरे उह्ह… आह्ह… कब?” रीत ने पूछा।
“आधा जाय तब…” गुड्डी ने जवाब दिया।
“अरे मजा आये कब? निक लागे कब?” रीत ने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर पूछा।
“अरे पूरा जाय तब…” गुड्डी भी अब पीछे रहने वाली नहीं थी, और एक चूड़ी अन्दर चली गई।
उसके बाद तो उन दोनों ने मिलकर एकदम कुहनी तक चूड़ियां पहना दी। और दोनों मिलकर अपने इस द्विअर्थी पहेली कम डायलाग पे हँस पड़ीं।
“सुहागरात का पता कैसे चलेगा। जानू?” गुड्डी ने मुझे चिढ़ाते हुए पूछा।
“अरे जब रात भर चूड़ियां चुरूर मुरुर करें और आधी सुबह तक चटक जायं…” रीत मेरे गाल पे चुटकी काटकर बोली।
“क्यों संध्या याद है ना तुम्हारी सुहागरात में,... महावर वाली बात…” चंदा भाभी ने मुश्कुराकर पूछा।
“आप भी ना भाभी। वो तो सब की सुहागरात में होता है। आप भी कहाँ की बात ले बैठीं। वो भी इन बच्चियों के सामने…” रीत और गुड्डी की ओर देखकर, मेरे पैरों में महावर लगाती वो बोली।
रीत ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई गलत बात उन्होंने कह दी हो।
लेकिन बोली दूबे भाभी- “हे बच्चियां किन्हें कह रही हो? जब वो घूम-घूम के चूचियां दबवाने लगें तो ये बच्चियां नहीं रह जाती और ऊपर से मेरी ननदों की झांटे बाद में आती हैं, लण्ड पहले ढूँढ़ने लगती हैं। और वैसे भी कल के पहले इन दोनों की भी चटक-चटक के फट जायेगी। हम सब की कैटगरी में आ जायेंगी…” वो हड़का के बोली।
रीत और गुड्डी ने सहमति में सिर हिलाया।
रीत से संध्या भाभी अपनी सुहागरात के महावर का पूरा किस्सा सुनाया,
“ मेरी ननदों ने नाउन को चढ़ा दिया था। फिर उसने ये रच-रच के महावर लगाया, खूब गाढ़ा और गीला। आगले दिन सुबह जब हम दोनों कमरे से बाहर आये तो वो सब छिपकलियां मेरी ननदें पहले से तैयार बैठी थी। नाश्ता के समय पकड़ लिया उन्होंने तुम्हारे जीजू को- “हे भैया आपके माथे पे ये लाल-लाल? ये भाभी के पैर का रंग कैसे? कहीं रात भर भाभी ने आपसे पैर तो नहीं छूलवाया? ये बहुत गलत बात है…”
कोई बोली- “अरे भैया को कोई चीज चाहिए होगी इसलिए भाभी ने,... क्यों भैय्या? लेकिन भाभी ने दिया की नहीं। खूब तंग किया…”
संध्या भाभी बता भी रही थी और उस दिन की याद करके मुश्कुरा भी रही थी।
गुड्डी भी बोली- “लेकिन मेरी समझ में नहीं आया की कैसे जीजू के माथे पे आपके पैरों की महावर?”
उसकी बात काटकर संध्या भाभी मुश्कुराते हुए उसके उरोजों पे एक चिकोटी काटकर बोली-
“अरी बन्नो सब समझ में आ जाएगा। जब रात भर टांगें कंधे पे रहेंगी और रगड़-रगड़कर, ये चूची पकड़कर चोदेगा ना तो सब पता चल जाएगा की महावर का रंग कैसे माथे पे लगता है?”
रीत ने पाला बदला और संध्या की ओर हो गई- “आज जा रही है ना तू कल सुबह ही हम सब फोन करके पूछेंगे तुझसे। की रात भर टांगें उठी रही की नहीं? समझ में आया की नहीं?”
सब हो-हो करके हँसने लगी लेकिन गुड्डी शर्मा गई और मैं भी।
संध्या भाभी ने महावर के रंग की कटोरी में जाने क्या और मिलाया और मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं-
“मैं लेकिन उससे भी गाढ़ा लगा रही हूँ और चटक भी, पंद्रह दिन तक तो नहीं छूटेगा, लाख पैर पटक लेना…”
महावर के साथ उन्होंने पैरों के नाखून भी रंगे और जैसे गाँव में औरतों की विदाई होने के समय महावर के साथ पैरों पे डिजाइन बनाते हैं। वैसे डिजाइन भी बना दी। वो तो मैंने बाद में देखा।
एक पैर पे डिजाइन में उन्होंने लिखा था बहन और दूसरे पे चोद।
दूबे भाभी और चंदा भाभी बड़ी देर से चुप बैठी मजे ले रही थीं, लेकिन दूबे भाभी अपने रूप में आयी, " तो कोई लौण्डेबाज इसकी गांड माएगा तो उसके माथे पे लगेगा "
और अब सब हो हो,
लेकिन मैंने फुसफुसा के भाभी से सिफारिश की, भाभी, गुड्डी के पैर में भी लगा दीजिये न "
वो महावर ख़तम करते, उसी तरह धीरे से बोलीं,
" लगाउंगी, लगाउंगी, इससे भी चटक और गाढ़ा, जब तुम इसको हरदम के लिए बिदा करा के ले जाओगे, और अगली सुबह वीडियो काल में तेरे माथे पे वही महावर देखूंगी "
फिर वो और चंदा भाभी पैरों में पायल और बिछुए पहनाने लगी वो भी खूब घुंघरू वाले। चौड़ी सी चांदी की पायल।
चंदा भाभी गुड्डी से हँसकर बोली “अब ये मत पूछना की दुल्हन को ये क्यों पहनाते हैं?” फिर कहने लगी- “इसलिए बिन्नो की जब रात भर दुल्हन की चुदाई हो तो रुनझुन, रुनझुन। ये पायल बजे और बाहर खड़ी सारी ननद भौजाइयों को ये बात मालूम चल जाय की अब नई दुल्हन चुद रही है, "
बिछुवे बहुत ही ज्यादा घुंघरू वाले थे।
Thanks so much for sharing your views and appreciation.Superb Komal ji. You describe small small details so nicely, it feels as if you yourself are present amongst them.
your support of my stories helps me to do better.Very very nicely brought out conversation in detail. keeps you excited throughout.
Superb update Komal ji. Mesmerising.
Girls are teasing him, and that is the joyBaj rahi hai Anand babu ki.
yes Lekin Dube Bhabhi ne bol diya hai agali baar nahi bachegaa pichvadaBach gaye Anand babu. Dude bhabhi bar bar bacha leti hain.
Thanks so much, isase tagda aur bada compliment kya ho skata haiSuperb update Komal ji. Pure update padhne me ek baar bhi Jang Bahadur Sustaye nahin. Ekdam alert shade rahe.
Uffff Komal ji thodi to mere hathiyaar ko sans lene diya karo. Ek se badhkar ek erotic passage de deti ho aap.
Thanks so muchWowww gajab ho app Komal bhabhi.