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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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हाँ अब तो आनंद बाबू की बारी है..आभार, धन्यवाद, थैंक्स
जो भी कहूं कम है। गुड्डी के रोमांस के प्रसंग के, पद्माकर की कविता को और एक एक पंक्ति को आपने जैसे पढ़ा, सराहा और पंक्तियों को रेखांकित किया, मैं और मेरी कहानी दोनों धन्य हो गए।
होली के प्रसंग का 'द एन्ड ' लगभग समझिये क्योंकि अभी एक पात्र जिस के साथ होली की छेड़छाड़ शुरू हुयी थी, जिसने सुबह सुबह मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिलाये थे आनंद बाबू को उस के साथ तो होली अभी बची है और वो कसम धरा के गयी थी, की जबतक मैं न आऊं आप जाइयेगा नहीं, आनंद बाबू की मुंहबोली, छोटी साली,
गुंजा
और छोटी साली के बिना तो होली अधूरी ही रहती है तो अगली पोस्ट पूरी तरह गुंजा पर
तो बस एक दो प्रसंग और होली के फिर कहानी धीरे धीरे करवट लेगी, फागुन के एक दूसरे रंग की ओर,
गुड्डी के घर से बाहर निकलेगी,
और एक बार फिर से इन्तजार रहेगा, आपके शब्दों की अमृत वर्षा का
एक बार फिर से आभार
जन्म जन्मांतर के गरियाने जाने वाले रिश्ते में बंधने को बेताब...उसी गारी वाली रिश्ते के पक्के होने के लिए तो व्याकुल हैं आनंद बाबू, अभी तो जो बात ढकी छिपी है ( लेकिन बहुतों को मालूम है ) एक बार संस्कार और समाज की मोहर लग गयी, फिर तो और खुल के,....
और फागुन में तो मस्ती हीं छा जाती है...रंग तो सिर्फ बहाना है,
असली चीज तो अंग ही है, चाहे नयन सुख हो, कालोनी, सोसायटी की, मोहल्ले की भाभियों की रंग से भीगी देह, देह से चिपकी साड़ी, सलवार, कुर्ती, हर उभार, कटाव को दिखाती, झलकाती
और कुछ होते हैं जो रिश्ते में देवर, ननदोई या जीजा होते हैं उन्हें नयन सुख के साथ स्पर्श सुख भी और ससुराल की होली हो, फिर तो,
मतलब रात का फसाना भी दिन वाले हंगामे से कम नहीं होने वाला...सुबह के पहले रात भी आएगी, जिसमे आनंद बाबू और गुड्डी साथ साथ आनंद बाबू के मायके में होंगे और उसके लिए तो गुड्डी ने पहले ही आनंद बाबू के सामने उन्ही के पर्स से आई पिल, माला डी और वैसलीन की बड़ी शीशी ली है , हाँ बाकी किसके साथ आंनद बाबू की पिचकारी सफ़ेद रंग बहायेगी, ये तो आनेवाली अगली एक दो पोस्टो में पता चल जाएगा,
मतलब विशिष्ट आसन...एकदम सही कहा आपने अश्व जाति का
वैसे तो अश्व जाति के साथ हस्तिनी नायिका का योग बनता है लेकिन सब कन्या, किशोरियां, गुड्डी रीत पद्मिनी हैं और उसके लिए कोका पंडित और आचार्य वात्स्यायन ने विशेष प्रावधान किये हैं।
अर्जुन की तरह...और आनंद बाबू इतने समझदार और फोकस्ड तो हैं ही, इसलिए दूबे भौजी की बात क्या कोई इशारा भी वो नहीं टालेंगे
असली टारगेट तो गुड्डी रानी हैं,
खुल तो चुकी है... इतने गर्व से गुड्डी के सामने छः इंच वाले का बखान...बोलेंगी बोलेंगी, कुछ अंग विशेष और झिझक, दोनों ही महिलाओं की खुलते खुलते ही खुलते हैं
संध्या भाभी का कल्याण होना चाहिए....एकदम इसलिए सबसे ज्यादा गर्मायी संध्या भाभी ही हैं
करोड़ की आकांक्षा...Super Heartiest Congratulations Komal Madam...your 3 stories (jkg + Phagun + Chutki) has combined views of 50 L...5 Million....wow!!
Amazing achievement. Congrats once again.
komaalrani
आनंद बाबू की तरह हम भी तरस रहे हैं...फागुन के दिन चार -भाग १८
मस्ती होली की, बनारस की
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रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।
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“अकेले अकले…” दोनों ने एक साथ मुझे और गुड्डी को देखकर बोला।
“एकदम नहीं…” और मैं गुझिया की प्लेट लेकर रीत के पास पहुँच गया। मैंने उसे गुझिया आफर की लेकिन जैसे ही वो बढ़ी मैंने उसे अपने मुँह में गपक ली।
“बड़ा बुरा सा मुँह बनाया…” तुम दिखाते हो ललचाते हो लेकिन देने के समय बिदक जाते हो…” वो बोली।
चंदा भाभी गुड्डी को लेकर अपने कमरे में चली गयी, कुछ उसे नहाने का सामन देना था। संध्या भाभी और दूबे भाभी पहले ही नीचे चले गए थे, छत पे सिर्फ मैं और रीत बचे थे और मुझे गुड्डी की आठवें जन्म वाली बात याद आ रही थी, न तुझे छोडूंगी, न तेरी माँ बहनो को न सहेलियों को।
“तुम्हीं से सीखा है…” गुझिया खाते हुए मैंने बोला।
“लेकिन मैं जबरदस्ती ले लेती हूँ…”
हँसकर वो बोली और जब तक मैं कुछ समझूँ समझूँ। उसके दोनों हाथ मेरे सिर पे थे, होंठ मेरे होंठ पे थे और जीभ मुँह में।
जैसे मैंने गुड्डी के साथ किया था वैसे ही बल्की उससे भी ज्यादा जोर जबरदस्ती से। मेरे मुँह की कुचली, अधखाई रस से लिथड़ी गुझिया उसके मुँह में। तब भी उसके होंठ मेरे होंठों से लाक ही रहे।
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