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-- " और कौन जीतेगा, मेरे प्यारे जीजू की छोटी साली, मेरे और शाजिया के आगे कौन टिकता स्साली छिनार ९ बी वालों की हम लोगो ने फाड़ के रख दी, पहला गाना मैंने शुरू किया,
"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."
कुछ समझ गया और कुछ गुड्डी ने समझा दिया,
क्लास नौ में दो सेक्शन हैं ९ ए और ९ बी, बस टीचर विचर के जाने के बाद, ये मुकाबला पहले तो दोनों ओर से पांच पांच गाने, फिर खुल के गालियां, दोनों क्लास की लड़कियों की ओर से फिर दोनों ओर की दो दो लड़किया और जब दो दो लड़कियों का मुकाबला होगा तो गाली एकदम नयी होनी चाहिए, घिसी पिटी नहीं
और आगे की बात गुंजा ने सम्हाली,
गाली के मामले में जैसे श्वेता है न आपकी सहेली,... वैसी ही शाजिया, और अब उसकी संगत में मैं भी भी , ...एक से एक नई नयी गाली, उधर से पूनम और चंदा थी तो बस शाजिया बोली,
'पूनम की माँ के भोंसडे में छाता डाल के खोल दूंगी" तो चंदा मेरे पीछे पड़ गयी,
'गुंजा के माँ के भोसड़े में छाते की दुकान '
तो शाजिया ने जवाब दिया तेरी माँ की गांड में झाड़ू पेल दूंगी, मोर बन के नाचेंगी,
लेकिन अंत में जीत मेरी ही वजह से मिली, वो सब बस माँ के पीछे, तेरी माँ के बुर में, ये तो हम लोग जैसे हम लोगो ने बोला की
पूनम और चंदा की माँ के भोंसडे में गोदौलिया तो वो सब बोली की
तेरी और शाजिया की माँ के भोंसडे में पूरा बनारस, तो शाजिया बोली की तुम दोनों छिनरों की माँ के भोंसडे में पूरा यूपी और उधर से जैसे जवाब आया तो मैं पहले से तैयार थी बोल दी,
तेरी माँ के भोंसडे में मेरी माँ ,.... बस हम सब जीत गए।
....
मेरी साली इस बेस्ट कह के मैंने कस के गुंजा को चूम लिया
लेकिन गुड्डी शरारत भरी मुस्कान से मुझे और गुंजा को देख रही थी और गुंजा को उकसाते हुए बोली,
"और तेरे जीजा की माँ के, ...."
और बात गुंजा के पाले में छोड़ दी।
गुंजा बदमाशी से अपनी शोख निगाहों से मुझे देखती रही फिर बोली,
"जीजू की माँ के भोसड़े में, जीजू तुम ही बोलो,... क्या जाएगा" और फिर झट्ट से बड़ी बड़ी आँखे नचाती, मुझे दिखाती वो शरारती बोली,
"जीजू की माँ के भोसड़े में, मेरे जीजू का,..."
और कुछ रुक के बात पूरी की
"जीजू के माँ के भोसड़े में मेरे जीजू का लंड. "
और हँसते हुए बोली, "अरे इनकी माँ का ही फायदा करा रही हूँ,"
बात टालने के लिए अब मुझे कुछ करना था वरना ये दोनों मिल के,... तो मैंने गुंजा से उसके क्लास की होली के बारे में पुछा और वो चालू हो गयी।
" वही साली सुनितवा,....
मैंने और महक ने तय कर रखा था आज कुछ भी हो कमीनी को पकड़ेंगे और सबसे कस के रगड़ेंगे, हर बार बच के निकल जाती थी .."
गुंजा ने अपने क्लास की होली का हाल सुनाना शुरू किया, गुड्डी मुस्करा रही थी लेकिन तभी गुंजा को याद आया की मुझे उसकी क्लास की लड़कियों के बारे में तो मालूम नहीं है तो उसने पात्र परिचय कराना शुरू कर दिया,
" अरे जीजू सुनितवा, मेरे क्लास की सबसे बड़ी लंडखोर,"
साफ़ था क्लास की होली के बाद बियर और भांग का असर भी चढ़ गया था उस पे, और बियर की बोतल खाली कर के आगे बढ़ायी बात उसने,
" सबसे पहले उसकी चिड़िया उडी मेरे क्लास, में जानते हैं दो चार महीने पहले नहीं,... पूरे डेढ़ साल पहले "
मेरे मन में उत्सुकता जग गयी, और मैं पूछ बैठा,
" किसके साथ " तो गुंजा बड़े जोर से मुस्करायी और बड़ी बड़ी आँख नचा के, खिलखिलाती हुयी बोली,
" और किसके साथ,... " फिर मामला साफ़ किया,
" जीजा, वो भी कोई सगे रिश्ते के नहीं,... अरे स्साली छिनार खुद ही गर्मायी थी, चूत में आग लगी थी, पड़ोस के मोहल्ले की एक दीदीथीं , पांच छह महीने पहले शादी हुयी थी, बस होली में, ....और ये भी पहुँच गयी, तो जीजू आप ही बताइये, अरे सामने रखी थाली और होली में साली कोई छोड़ता है, ...तो बस उसके जीजू ने भी नहीं छोड़ा, पेल दिया। तो चलिए पेलवा लिया कोई बात नहीं, जीजा साली की बात, लेकिन होली के बाद जब स्कूल खुला तो हम लोगो को इत्ता जलाया,
' अरे यार बड़ा मजा आया जीजा के साथ, ऐसा था वैसा था,"
और उससे भी बढ़ के अपनी बुलबुल खोल के दिखाया, देख जीजू ने धक्के मार मार के कितना लाल कर दिया है। सच में हम लोगो की फांके जैसे चिपकी रहती हैं वैसी नहीं थी, हलकी सी दरार, और सुनीता ने फैला के भी दिखाया, आराम से फ़ैल गयी। "
और वो फिर चुप हो गयी और कभी गुड्डी को देख के, कभी मुझे देख के मुस्कराने लगी, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन गुंजा खुद ही मुस्करा के कस के मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,
..." उसी दिन मैं आके गुड्डी दी से बोली, दी पटाना आप, ...मजे मैं करुँगी,... छोडूंगी नहीं अभी से बोल दे रही हूँ। "
गुड्डी भी मीठा मीठा मुस्करा रही थी, डेढ़ साल पहले मैंने झट्ट से जोड़ लिया, उस समय तो मेरा गुड्डी का कस के, मामला थोड़ा बहुत देह तक पहुंच गया था, उसकी उँगलियों ने मेरे जंगबहादुर की नाप जोख कर ली थी।
मैं गुंजा या गुड्डी से कुछ बोलता उसके पहले गुंजा सुनीता के बारे में और किस्से चालु कर दी।
" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,... और अब खाली हम छह सात ही बची हैं "
लेकिन गुड्डी को होली का किस्सा सुनना था, वो भी उसी स्कूल में पढ़ती थी तो उसने कहानी को एड लगायी,
" अरे वो स्साली,सुनीता होली में फसी कैसे,तुम लोगो से "
"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,
लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "
मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,
" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...
बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,...महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।
कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।
उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "
"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये
वो जोर से खिलखिलाई, " मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "
हम तीनो ने मिल के चार बियर बॉटल और आधी दर्जन भांग वाली गुझिया ख़त्म कर दी थी और ज्यादा ही दोनों जीजा साली ने,
गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
गुंजा संग होली की मस्ती
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--- गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
"अभी, और कस के, ... अच्छा हुआ ये नहा वहा के थोड़े बहुत चिकने मुकने हो गये हैं, जितना आप छह लोगों ने मिल के लगाया होगा, उससे ज्यादा रगडूंगी, और जब होली के हफ्ते बाद लौटेंगे न तब भी छोटी साली का लगाया रंग नहीं छूटेगा। और कोई जगह नहीं बचेगी, बल्कि अंदर तक, "
दो ऊँगली मेरी ओर दिखा की उसे शोख, शरारती साली ने अपना इरादा साफ़ किया और स्कूल का बैग खोल लिया।
और गुंजा के बैग खोलते ही मैं सहम गया,
बैग खूब फूला हुआ लेकिन, न एक कॉपी, न एक किताब, न पेन न पेन्सिल। सिर्फ रंग, पेण्ट और वार्निश की ढेर सारी डिबिया, एक दो खुली, सफेद चांदी के रंग की, और बाकी बंद।
उस टीनेजर ने मुड़ के अपनी चपल निगाहों से मुझे देखा और हलके से मुस्करायी, फिर रंग का सब भण्डार खाली करने में जुट गयी, सच में जितना रीत, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी ने मिल के लगाया था उससे ज्यादा मेरी छोटी साली ले के आयी थी।
और मेरे पास रंग की एक पुड़िया भी नहीं, लेकिन मुझे दूबे भाभी की सीख याद आयी,
" अरे स्साली, सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत पड़ती है क्या, एकदम बौरहे हो। गाल लाल करो चूम के, चूँची रंगो रगड़ के और बुरिया रंग डालो चोद चोद के "
और मैंने गुंजा को पीछे से धर दबोचा और उस किशोरी के मुलायम मुलायम मक्खन से गालों पर, कस के पहले चुम्मा, फिर होंठों के बीच में दबा के चूसना शुरू कर दिया, और हाथ मेरे कम लालची थे क्या और किस जवान मर्द की उँगलियाँ न होंगी जो दर्जा नौ वाली के छोटे छोटे बस आये आये टिकोरों को न छूना चाहें और यहाँ तो कच्ची मसलने का मौका था, तो गुंजा के छोटे छोटे उभार मेरी हथेलियों में, ... मसला सुबह भी था, लेकिन कपड़ो के अंदर से, थोड़ा सहमति झिझकते,
गुंजा गरमा रही थी, मस्ता रही थी, पीछे से अपने स्कर्ट में ढंके चूतड़ मेरे खड़े पागल खूंटे पे रगड़ रही थी पर हाथ उसके , हाथों में रंग लगाने पेण्ट के डिब्बे खोल के तैयारी करने में लगे थे।
लेकिन मन मेरा भी कर रहा था, यार एक दो लाल रंग की पुड़िया ही मिल जाती कहीं से,
गुंजा छुड़ाते हुए मुझे याद करती, फिर कुछ सोच के वो रंग छोड़ देती,... उसकी सहेलियां उसे चिढ़ाती, ' हे ये रंग किसने लगाया, हमने तो नहीं लगाया,"
और वो छेड़ती सहेलियों को अदा से बोलती, " नहीं बताउंगी, है न कोई ,... एकदम खास वाला। "
एक चीज मैंने जिंदगी में सीख ली थी की जब कहीं से भी मदद मिलने की उम्मीद बंद हो जाए, कोई चांस न बचे तो, ... गुड्डी मदद करती है, और बिना कहे। मेरी हरचीज बिना मेरे कहे उसे जादूगरनी को पता चल जाती है, जो बोलने की मेरी हिम्मत भी नहीं पड़ती वो भी,
तो गुड्डी ने मेरे हाथ में पक्के वाले गुलाबी रंग की एक डिबिया और काही रंग की दी चार पुड़िया कहीं से निकाल के पकड़ा दी , और जब कृपा बरसती है तो हर ओर से, मेरी छोटी साली जब रंगों का जखिरा सम्हाल रही थी तो सफ़ेद वार्निश की एक डिबिया लुढ़की और मेरे हाथ में ,
और होली मैंने ही शुरू कर दी,
और गुड्डी ने हड़का लिया, " हे वो छोटी है, पहले उसे लगाने दो "
लेकिन कहते हैं जब बीबी का मूड खराब हो तो साली काम आती है और मेरी साली तो बहुत ही काम वाली, वो मेरी ओर से बोली,
" लगाइये न जीजू,... दी, लगाने दो इनको, जब मैं लगाउंगी न तो उसके बाद बेचारे लगाने लायक नहीं रहेंगे, इनकी बहिन महतारी सब कर दूंगी आज, ...अभी एकलौती छोटी साली हूँ , "
और जब साली हाँ कर दे, वो भी एक सेक्सी टीनेजर चढ़ती उम्र वाली तो कौन जीजा छोड़ेगा, आठ दस कोट रंग के तो गुंजा पहले ही लगवा के आयी थी, अपनी सहेलियों से , बस मैंने वही वार्निश वाला डिब्बा खोला, और आराम से अपने दोनों हाथों में लगाया फिर,..
उस शोख, चढ़ती उमरिया वाली कोरी कच्ची कली के दोनों गाल मेरे हाथों में,...
रंग वंग तो बस,... असली मजा तो उंगलियों को उन कोमल, पुरइन के पात ऐसे चिकने गालों को छूने में सहलाने में आते हैं, जिन स्निग्ध, मालपुआ ऐसे गालों को छू के जब नजर फिसल जाती है तो उसी में मूसल चंद बौरा जाते हैं, ...आज तो वो गाल मेरे हाथ में थे।
सुबह की होली के बाद जिस तरह से संध्या भाभी और दूबे भाभी ने मुझे रंग लगाया था और नहाने में, छुड़ाने में जो हालत हुयी थी मैं भी कुछ कुछ सीख गया था, ऐसी जगह रंग लगाना जहाँ पहली बात तो जल्दी दिखाई न पड़े और दूसरी बात छुड़ाते समय वहां ठीक से हाथ भी न पहुंचे, तो एक बार वार्निश का कोट उस कोमलांगी के चन्द्रबदन पर लगाने के बाद, मैंने कान के पीछे और ईयर लोब्स पे, गर्दन के पीछे, कन्धों पर, नाक के किनारे किनारे, उन जगहों पर ढूंढ ढूंढ के वार्निश के कोट,
और थोड़ी देर तक उस शोख ने मेरे हाथों को पकड़ने की छुड़ाने की कोशिश भी की, लेकिन फिर बोली,
" ठीक है, जीजू मेरी बारी आएगी न तो मैं भी ऐसी ऐसी जगह लगाउंगी न की आप भी याद करेंगे बनारस में एक साली मिली थी, "
" वो तो हरदम याद रहेगी, छोटी साली वो भी मेरी गुंजा जैसी,... कोई भूल सकता है क्या "मैंने गुंजा को मक्खन लगाया
लेकिन साली तो साली होती है, और मेरी वाली बदमाश नहीं महाबदमाश,
दोनों हाथ तो उसने मेरे छोड़ दिए लेकिन उसके चूतड़ अब खुल के कस के टॉवेल में छुपे ढंके मूसलचंद को रगड़ने लगे, और ये आदत उसकी एकदम उसकी दी गुड्डी पे, दोनों को मुझसे ज्यादा जंगबहादुर से लगाव था और दोनों चाहती थी की वो खुली हवा में सांस ले, पिंजड़े में न रहे, इसलिए वो मुझसे ज्यादा अब वो गुड्डी की बात मानते थे और अब गुंजा की भी।
उस शरारती टीनेजर की शरारत का दो असर हुआ, मूसलचंद फनफनाने लगे और तौलिया सरसराकर नीचे,
" हे उठाने की नहीं होती, "
गुंजा और गुड्डी दोनों एक साथ बोलीं,
लेकिन मैंने भी जब तक गुंजा मेरी अगले कदम के बारे में सोचे हाथ सरक कर सीधे साली की पतली कटीली कमरिया पे, और स्कर्ट भी तौलिये के साथ दोस्ती निभा रही थी,
" जीजू बहुत महंगा पड़ेगा और अब चेहरे से आप का हाथ हट गया है तो दुबारा नहीं जा सकता " गुंजा खिलखिलाते हुए बोल।
और अब चेहरे पर मैं जाना भी नहीं चाहता था,
पहली बात वार्निश की एक ही डिबिया और मैं पूरी की पूरी उसे उस चंद्रमुखी के चेहरे पर खाली कर चुका था और हाथ ललचा रहे थे उस किशोरी के बस आते हुए जुबना का रस लेने को,
वार्निश ख़तम हो गयी थी तो गुड्डी का दिया रंग तो था, तो बस मैंने आराम से हाथ अब रंग पोता, और दोनों जोबन पे,, बस मैं यही सोच रहा था साली हो तो गुंजा ऐसी और ससुराल हो तो गुड्डी के मायके जैसी।
होली में कभी टॉप के ऊपर से हलके से किसी टीनेजर साली के आते हुए उभार छूने का मौका मिल जाए, अगर साथ देने वाली सलहज हो , साली के हाथ पैर पकड़ने को तैयार तो कभी टॉप के अंदर सेंध लगा के उभारो के ऊपरी हिस्से को भी जीजा छू ले तो बस लगता है होली सफल हो गयी, और वैसी साली की जिंदगी भर गुलामी करने को तैयार,
पर यहाँ तो खुद साली अपने हाथ से,
और उभार भी कैसे, एकदम गुदाज, मुलायम, टेनिस बाल की तरह स्पंजी कड़े कड़े भी और मुलायम भी,
मेरे हाथ कुछ देर तक तो मुरव्वत करते रहे फिर कस के कभी दबाते, कभी रगड़ते और थोड़ी देर में पूरा रंग, लेकिन तभी गुड्डी बोली
जैसे क्रिकट के मैच में जिस बाल पर बैट्समन बोल्ड हो जाये, बॉलर खुशिया मनाये लेकिन नो बाल का हूटर बज जाए, एकदम उसी तरह
" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "
" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "
मेरी हिम्मत जो गुड्डी की बात नहीं मानता और मैं अलग, वैसे भी गुड्डी का दिया रंग ख़तम हो गया और गुंजा की निगाहें मुझे चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थी और मुझे दिखा दिखा के नीले, काही और बैंगनी रंग की कॉकटेल अपने हाथों पे बना रही थी, और फिर वो हाथ मेरे चेहरे पे
और अब मुझे समझ में आया, गुड्डी की बात,
अबतक तो मैं गुंजा को मैं पीछे से पकड़ के रंग लगा रहा था, मूसल चंद भी चूतड़ों के रस में डुबकी लगा रहे थे और अब तो गुंजा सामने थी,
उसके दोनों हाथ मेरे चेहरे पे बिजी, एकदम मुझसे चिपकी, अपने जोबन को मेरे सीने पे रगड़ती और उस पे जो मैंने रंग अभी पोता था वो मेरी चौड़ी छाती पे,
गुंजा की कोमल मुलायम उँगलियाँ मेरे चेहरे पे, किसी गोरी कुँवारी किशोरी की ऊँगली कहीं गलती से भी इधर उधर लग जाए तो लगता है की किसी बिच्छी ने डंक मार दिया, पूरी देह झनझना उठती है और अब मेरे गालों पे, पूरे चेहरे पे, वही बिच्छियां इधर उधर रेंग रही थी, सरसरा रही थीं, उस टीनेजर के कोमल कपोत, मुलायम सफ़ेद पंख मेरे सीने में रगड़ रहे थे और मैं उड़ रहा था,
नीले, काही और बैंगनी रंगों का खतरनाक कॉकटेल, और ऊपर से उस चतुर सुजान का हाथ,
कोई जगह नहीं बच रही थी, नाक के किनारे, कानों के पीछे, और कम से कम दो चार कोट, लेकिन ये तो रंगों का बेस था,
उसके बाद गुंजा ने डिब्बे पे डिब्बे खोलने शुरू किये, सफ़ेद वार्निश के, मुझे तो चोरी से एक मिल गया था, वो कोई दूकान लूट के लायी थी,बीसों, और वो मेरे चेहरे पे, और जो जगहें मैं सोच भी नहीं सकता था,
आँखें बंद करवा के, पलकों और भौंहो तक पे, क्या कोई कोई ब्यूटी पार्लर बाला आयी शैडो और मस्कारा लगाएगी, और गालों पर तो पता नहीं कितनी बार , लेकिन रंग तो बहाना था असली मजा तो गालों को रगड़ने मीसने का है, वार्निश के साथ उस किशोरी के हाथों के रस भी मेरे गालो पे,
पोता चेहरा जा रहा था पर होली तो पूरी देह की हो रही थी,
कभी उसके जोबन, नशीले मतवाले, बरछी ऐसे मेरे सीने में चुभ जाते, धंस जाते कभी वो जान बुझ के अपनी चूँचियों को रंगड़ देती, दबा देती, ये चढ़ती जवानी और उभरते जोबन वाली छोरियां, देखन में छोटे लगे गाह्व करे गंभीर, और जब वो इतनी नजदीक होती तो मेरे बावरे हुरियार मूसल चंद को भी अपनी गुलाबी सहेली को चुम्मा लेने का मौका मिल ही जाता
और अब मुझसे नहीं रहा गया,
मैंने कस के अपनी छोटी साली को गुंजा को दबोच लिया, कस कर मतलब, कस कर, खूब कस के, भींच के
और वो शोख चिंगारी भी लता की तरह लिपट गयी, मुझसे भी कस के, हाँ उसके हाथ दोनों अभी भी मेरे चेहरे पे वार्निश की चौथी कोट कर रहे थे पर अब उसके किशोर ३० सी उभार खुल के मेरे सीने में धंसे हुए रगड़ रहे थे, उसने अपनी दोनों लम्बी टांगों से मेरी टांगों को बाँध लिया था, नागपाश की तरह और कुछ अपनी चुनमुनिया, रस टपकाती जलेबी, मेरे बौराये खूंटे पे, खुले सुपाड़े पे रगड़ रही थी।
और मैं बस पागल नहीं हुआ,
मेरे दोनों हाथ कभी गुंजा की गोरी, खुली चिकनी पीठ पे टहलता तो कभी नीचे चक्कर लगा कर उस कमसिन के छोटे छोटे चूतड़ों को कस के दबोच लेता, आज होली के तरह तरह के रस मिले थे लेकिन ये बिना चढ़ती जवानी वाली छोटी साली से होलिका जो रस मिल रहा था वो सबसे अलग था। जितना मैं गुंजा की पीठ को कस के पकड़ के अपनी ओर खींचता उसके दूने जोर से वो अपनी कच्ची अमिया मेरी छाती में धंसाती, रगड़ती।
मेरे मन के सबसे भीतरी परत में जो बात दबी रहती है, जिसे मुझसे मेरा मन मुझसे भी बोलते सहमता है, वो गुड्डी न सिर्फ सुन लेती है बल्कि कर भी डालती है और तभी मेरा मन उसका बेखरीदा गुलाम है।
गुड्डी ने मेरे हाथों को खोला और आपने हाथों से ढेर सारा गाढ़ा ललाल रंग मेरी हथेलियों में लगा दिया,
और होली दो तरफा शुरू हो गयी, गुंजा की पीठ, कमर, पेट और सबसे ज्यादा मेरा मन जिसके लिए ललचा रहा था , जिसे ठुमका के वो चलती तो उसके मोहल्ले से स्कूल तक सारे लौंडो की पेंट टाइट हो जाती, उस किशोरी के छोटे लेकिन एकदम कसे चूतड़ , बार बार मेरे हाथ वही, और लाल रंग बीच की दरार में भी,
सफ़ेद पेण्ट की गुंजा को कोई कमी तो थी नहीं तो चेहरे के बाद, छाती, कन्धा पेट, पीठ यहाँ तक की हाथ पैर की उँगलियों के बीच और पैरों के तलुवे में भी, फिर वो गुड्डी से बोली,
" दी जरा निहराओ न इनको "
गुंजा के साथ गुड्डी और बौरा जाती है, जैसे सुबह इन दोनों ने मिल के मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिला के मेरी बुरी हालत कर दी थी, वही हाल फिर हो रही थी, दस गुना ज्यादा, वो मुझसे बोली,
' अबे स्साले निहुर, मेरी बहन कुछ कह रही है,... हाँ चूतड़ ऊपर और उठा, टांग फैलाओ कस के जैसे, " और कस के एक हाथ मेरे पिछवाड़े,
" अरे दी साफ़ साफ़ बोलिये न, जैसे, ...कह के क्यों छोड़ दिया, "
खिलखिलाते हुए पिछवाड़े सफेद वार्निश पोतते गुंजा ने गुड्डी को उकसाया।
गुंजा की हंसी, जैसे किसी ने दर्जनों मोती जमीन पर लुढ़का
" तुही बोल दे न, तेरी बात का ज्यादा असर होगा " गुड्डी ने गुंजा को लहकाया,
भांग और बियर का असर मुझसे और गुड्डी से ज्यादा असर गुंजा पे पड़ रहा था, वो मेरे नितम्बो के बीच की दरार पे रंग रगड़ते बोली,
" जीजू जैसे, फिर एक पल के लिए रुक गयी और हंस के बोली, ..."जैसे गाँड़ मरवाने के लिए उठाते हैं, हाँ ऐसे ही " और
जो काम रीत नहीं कर पायी, नौ इंच का डिलडो बाँध के आयी थी,... पर दूबे भाभी ने बचा लिया, ये कह के की अरे छुआ के सगुन कर दो, बाकी का जब होली के बाद आएंगे, तब तो असली वाले से,...वो गुंजा ने कर दिया
,
और गुंजा की ऊँगली गप्प से पूरी की पूरी अंदर,
फिर बाहर निकली तो उसके नीचे दूसरी ऊँगली लगा के, ...वो गुड्डी से बोली
" दी जरा कस के चियारना इनकी,,,,, और जोर लगाओ न " और गुड्डी एकदम गुंजा के साथ, वो दोनों मिल जाए तो किसी की भी ऐसी की तैसी कर दें,
और गुड्डी ने एक खुश खबरी गुंजा को सुनाई,
"तेरे जीजू जब होली के बाद आएंगे तीन चार दिन के लिए तो अपने साथ अपनी ममेरी बहन को ले आएंगे, अब उनकी कोई सगी तो है नहीं तो वो सगी से भी बढ़के,..."
" वाह जीजू हों तो है ऐसे " गुंजा खुश होके बोली, पर गुड्डी ने उसे गरियाया,
" अरे स्साली, जीजू की चमची, पूरी बात तो सुन ली, अपना जो रॉकी है न, दूबे भाभी वाला, उस से गाँठ बँधवायेगी वो, "
गुंजा मुंह फुला के बोली,
" दी आप भी न ऐसे जीजू किस के होंगे, लोग साले सालियों की भी परवाह नहीं करते, ये तो राकी तक की, और वो बेचारा कितना उदास भी रहता है, खाली कातिक में मजा ले पाता था, "
" और क्या इनकी बहिनिया तो हरदम पनियाई रहती है " गुड्डी ने गुंजा की बात में बात मिलाई, लेकिन मुझे पता चला की पिछवाड़े का गुंजा गुड्डी का प्रोग्राम कुछ और भी था, रंग का,
" दी जरा और कस के " कभी गुंजा की आवाज सुनाई पड़ती,
" ये वाला भी " कभी गुड्डी की भी आवाज,
" थोड़ा सा और " गुंजा गुड्डी की सलाह मांगती,
" और क्या, इनकी बहन रॉकी का मुट्ठी इतना मोटा, जब गाँठ अंदर बनालेगा तो हंस हंस के घोंटेंगी,... तो ये थोड़ा सा और "
गुड्डी उसे और भड़काती, लेकिन मुझे खाली सुनाई पड़ रहा था, समझ में कुछ नहीं आ रहा था, क्योंकि बीच बीच में गुंजा की टीनेजर उँगलियाँ, लम्बे नाख़ून बस मेरे पागल खूंटे को कभी छू देती, कभी सहला देतीं,
और दोनों ने मिल के मुझे खड़ा कर दिया,
" क्यों मस्त लग रहे हैं न आपके मनमोहन,' गुंजा ने हँसते हुए गुड्डी से पूछ।
एकदम चांदी की मूरत, बालों तक में सफेद वार्निश और एक नहीं कई कोट,
इसलिए उसने कसम धरवाई थी की जीजू मेरे साथ बिना होली खेले, बिना मुझसे मिले वापस न जाइयेगा,
और फिर स्नैप स्नैप, मेरे मोबाइल से ही दर्जन भर फोटो, और फिर सबके मोबाईल में, गुंजा का जवाब नहीं था
" हे वो जगह क्यों छोड़ दिया " और गुड्डी ने गुंजा के कान में कुछ बोला और वो पहले तो झेंपी फिर खिलखिलाने लगी,
सच में वो आठ नौ इंच एकदम खड़ा, खूब मोटा, उस पे पेण्ट का एक टुकड़ा भी नहीं
" उस की तो अच्छी से और खास रगड़ाई करुँगी, आखिर आज रात भर मेरी दीदी के साथ मजे लेगा, मजे देगा वो "
गुंजा ने गुड्डी को छेड़ा और जब तक गुड्डी एक कस के धौल जमाती, गुंजा छटक के दूर,
" हे चल एक सेल्फी तो ले ले उस के साथ " गुड्डी ने गुंजा को चढ़ाया
" एकदम सही आइडिया तभी तो आप मेरी अच्छी वाली दी हो " गुंजा मुस्करा के बोली और ' उसे पकड़ के एक जबरदस्त सेल्फी , फिर खुले सुपाड़े पे चुम्मी लेते सेल्फी ,
गुड्डी समझ रही थी अब देह की होली का नंबर आ गया है और गुंजा को तो फरक नहीं पड़ता था लेकिन वो जानती थी की मैं किसी के सामने नहीं कर पाऊंगा,एकदम से असहज हो जाऊँगा तो एक घिसा पिटा बहाना बनाया और डांट पड़ी मुझे
लेकिन जो भी जिंदगी भर का अरेंजमेंट चाहते हैं ये पहले से जानते हैं की डांट वांट तो माना हुआ रिस्क है लेकिन उस मजे के आगे
तो अब गुड्डी अगर घंटे दो घंटे में मुझे एक बार कस के नहीं डांटती थी तो मुझे लगता है की ये सारंगनयनी, मेरी मनमोहिनी या तो नाराज है या इसकी तबियत नहीं ठीक है,
" यार तेरे चक्कर में, जल्दी बाजी के, ....अरे नहाने के बाद मैं कपडे धोना भूल गयी, और वो पांच दिन के बाद वाले कपडे, बस आती हूँ "
और वो छत से वापस, कमरे में और दरवाजा भी बंद, लेकिन दरवाजा बंद करने पहले गुंन्जा की ओर दिखा के ऊँगली से गोल बना के उसके अंदर दूसरी उंगल से अंदर बाहर कर के, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखा के अपने मन की बात कह गयी। दरवाजा सिर्फ बंद नहीं हुआ अब्ल्कि अंदर से सिटकिनी लगने की भी आवाज आयी, फटाक।
नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी,
मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी, मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
लेकिन गुंजा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था,
उसने आराम से उसने अपने स्कूल बैग का बाहरी पाउच खोला, और पहले एक शीशी खोली उसमें से कुछ लिक्विड निकाला और कस कस के हाथ पे रगड़ा और धीरे धीरे हाथ में लगा सफ़ेद वार्निश काफी कुछ साफ़ साफ़ हो गया
और फिर उसी बाहर वाले पाउच से रंग के कुछ अलग से चार पांच पैकेट, बड़े बड़े, और लाल रंग का पाउच खोल के मुझे दिखाते हुए पूछने लगी
" कैसे लगेगा ये रंग मेरे यार पे "
" तो उसी से पूछ न " अपने तन्नाए मूसलचंद की ओर इशारा करते मैं बोला,
" अरे उसी से पूछ रही हूँ, बुद्धू राम, ...मैंने सुबह बोला था न स्कूल जाने से पहले मेरा इन्तजार करना फिर देखना इत्ती कस के इसकी रगड़ाई होगी, "
और वो लाल रंग गुंजा के कोमल कोमल हाथों से मेरे मोटे मूसल पे
कुछ देर तो वो पीछे से, मेरे पीठ पे अपने उभरते जुबना दबाती रगड़ती, एक मुट्ठी में उसके नहीं आ रहा था तो दोनों हाथों से पकड़ के जैसे कोई ग्वालिन दोनों हाथ से मथानी पकड़ के,
और फिर सामने से नीचे से बैठ के लाल के बाद हरा, और फिर नीला रंग बीच बीच में, और बदमाश इतनी की उस शोख किशोरी की नाचती गाती आँखे मेरी आँखों में झांकती, उकसाती, कभी खुले सुपाड़े को जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी बस छू के हटा लेती
मेरी हालत ख़राब मैं कहना चाहता था बोल नहीं पा रहा था तो गुंजा ने ही बोल दिया
." अरे जीजू, मैं दी की तरह कंजूस नहीं हूँ, ....बस एक बार बोल के देखिये आपकी साली सब कुछ दे देगी "
और जब उसने जीभ से छुआ तो मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा, " हे मुंह में ले ले न न बस जरा सा न, बस एक बार, बस थोड़ी देर,... "
गप्प
सुबह से मूसल चंद ने बहुत स्वाद चखा था, रीत की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ घिस कर के, संध्या भाभी की रसीली खेली खायी हलकी सी खुली फांको के बीच फंस के,
लेकिन होंठों का स्वाद नहीं मिला था, और मिला भी तो एकदम शोला और शबनम, गरम गर्म कच्ची अमिया वाली टीनेजर के खूब गुलाबी रसीली होंठों का, सुबह मैं ललचा ललचा के टेबल पे पर ही देख रहा था और स्कूल जाने के पहले एक छोटी सी ही सही मेरे होंठों को चुम्मी मिल गयी थी, लेकिन मेरे चर्मदण्ड की ये किस्मत,
मोटे कड़े मांसल सुपाड़े पे उस शोख सेक्सी टीन के रसीले होंठों का हल्का हल्का प्रेशर, और उस से भी थी उस बदमाश की कातिल कजरारी बड़ी बड़ी आँखे जो मेरी आँखों में मुस्करा के देख रही थीं,
" हे क्या कर रही है, गुंजा,... " मेरे मुंह से निकला।
और जवाब में उसने उन होंठों का दबाव मेरे पगला रहे सुपाड़ा पे बढ़ा दिया और सरकाते हुए इंच इंच आगे,
मजे से मेरी हालत खराब हो रही थी, अच्छा भी लग रहा था, मन भी कर रहा था की ये रुक जाए, ....और मन ये भी कह रहा था की और कस कस के चूसे,
अब मेरी छोटी,... स्कूल वाली साली की जीभ भी मैदान में आ गयी, होंठ हलके हलके दबा रहे थे, जीभ नीचे से रगड़ने लगा और जहाँ सुपाड़ा चर्मदण्ड से मिलता है, ठीक उस जगह पे जीभ की टिप से कुरेदने लगी, और साथ में अब उसने रुक रुक के चूसना भी शुरू कर दिया
मैं सिसक रहा था, कमर अपने आप हिल रही थी मस्ती से हालत खराब हो रही थी, सुबह से होली की मस्ती में पहली बार ऐसे हो रहा था की मेरा एकदम अपने ऊपर कंट्रोल नहीं था। किसी तरह से मैंने बोला,
." अरे निकालो न, अभी तूने इत्ता रंग पोता है सब तेरे मुंह में,.... " और मेरी उस छोटी मिर्च सी तीखी, रसगुल्ले सी मीठी साली ने जवाब दे दिया
पूरी ताकत से उसने अपने सर से, गले से पुश किया और अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची से भी रसीला, मोटा सुपाड़ा उस कच्ची कली के मुंह में,
और अब उसके दोनों हाथ भी मैदान में थे, बचा खुचा रंग अपने हाथ से लंड पे पोत रही, रगड़ रही थी, लेकिन रंग से ज्यादा कस कस के मुठिया रही थी। इतना कस के चूस रही थी वो स्साली की जैसी लंड के रस की एक एक बूँद आज घोंट के ही रहेगी,
मुझसे अब नहीं रहा गया, मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं, कस के मैंने गुंजा का सर दोनों हाथों से पकड़ा और बिना इस बात का ध्यान रखे की वो उमरिया की बारी है, ....आज पहली बार पहलवान से उसकी दोस्ती हो रही है, दोनों हाथो से उस कोमल किशोरी का, अपनी छोटी साली का मुंह पकड़ के मैंने ठेल दिया, और गुंजा ने भी कस के अपना मुँह फेला , धीरे धीरे कर के सुपाड़े के आगे भी,
जितना जोर से में पुश कर रहा था, उससे जोर के वो पुश कर रही थी,
खूब मुलायम, मखमली रस भरे, गुंजा का मुख रस मेरे मसल में अच्छे से लिथड़ रहा था, उस लड़की न। जैसे मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ रखा था,उसने मेरे चूतड़ को पकड़ के, कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया, धीरे धीरे कर के आधे से थोड़ा ही कम खूंटा उस के मुंह के अंदर था।
गुंजा की आँखे उबली पड़ रही थीं,
मोटे से खूंटे को घोंट के गाल एकदम फूले, फ़टे पड़ रहे थे, होंठों के कोनो से लार की एक धार कभी निकल रही थी पर न तो उसके चूसने के जोश में कभी न जीभ जिस तरह से चाट रही थी उसमे कोई कमी आयी, कुछ देर में उसका मुंह तक गया तो उसने बाहर निकाला लेकिन फिर भी नहीं छोड़ा, हाथ से पकड़ के मेरे मूसल को अपने चिकने गाल पे रगड़ने लगी, फिर जीभ से बेस से लेकर ऊपर तक लिक कर रही थी
और मुझे फिर वही बात याद आयी
" अरे क्या कर रही है इसमें लगा रंग तेरे मुंह में,... " मैंने फिर बोला,
हंस के उस हंसिनी ने सुपाड़े पे एक मोटा सा चुम्मा जड़ दिया और मुस्करा के बोली, उसकी दूध खिल सी हंसी बिखर पड़ी,
" जीजू आप भी न, आप की साली हूँ मेरी जो मर्जी वो मुंह में लूँ। "
फिर कुछ रुक के बोली
"आप भी न एकदम बुद्धू हो , तभी मेरी दी अभी तक बची है। अरे इस प्यारे प्यारे मोटू के लिए मैंने अलग इंतजाम किया था, इसलिए तो बाहर वाले पाउच में वो रंग रखे थे, ये सब खाने में डालने वाले, खाने वाले रंग है और वो भी स्ट्रबेरी और चॉकलेट फ्लेवर्ड, मेरी पसंद का इसलिए तो मैं चूसूंगी और मन भर के चूसूंगी। अभी सिर्फ इस लिए निकाल लिया की आप की बात का जवाब देना था। "
वो बोल रही थी, तब भी गुंजा के दोनों मुलायम हाथों में मेरा कड़ा पगलाया खूंटा मसला रगड़ा जा रहा था और फिर जैसे अपने बात पे जोर देने के लिए उसने लम्बी सी जीभ निकाली, पहले मुझे चिढ़ाया, फिर सीधे सुपाड़ा के छेद में, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप डाल के सुरसुरी करने लगी,
मेरी हालत खराब लेकिन गुंजा बदमाशी के नए नए रिकार्ड बना रही थी, जीभ से सुपाड़ा के चारो ओर, बार, कुछ उसके थूक से कुछ मेरे प्री कम से, एकदम गीला लसलसा, और ऊँगली से लगा के गुंजा ने उसी लसलस को अपनी प्रेम गली में और
मेरा मन खराब हो गया, गुंजा ने एक बार फिर से खूंटा मुंह में ले लिया था और कस के चूस रही थी, लेकिन अब एक बार प्रेम गली पे निगाह पे मेरी पड़ गयी तो अब हम दोनों 69 की मुद्रा में
जैसे कोई पिया की प्यारी, मिलन की प्यासी खुद अपनी बांहे फैला दे, जैसे साजन की राह तकती, विरह में जलती नायिका, दरवाजे खोल के खड़ी हो जाए,
बस एकदम उसी तरह गुंजा ने अपनी मेरे होंठों के वहां पहुँचने से पहले ही अपनी दोनों कदली सी चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी, जैसे रस्ते खुद खुल गए हों,
मेरे प्यासे होंठ जो अब तक उस कुँवारी किशोरी के भीगे रसीले होंठों का, आ रहे उभारों का स्वाद चख चुके थे, उस रति कूप में डुबकी लगाने के लिए बेक़रार थे। पर सीधे कुंए में उतरने के पहले, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ना, उसके आसपास का हाल चाल,
चुंबन यात्रा जाँघों के उस ऊपरी हिस्सों से शुरू हुयी जहाँ, न धूप की किरण पड़ती थी न किसी की नजर, कभी मेरे होंठ हलके से चूमते, कभी सिर्फ जीभ जरा सा बाहर निकल कर बस उसकी टिप एक लाइन सी खींचती, रस्ता बताती उस प्रेम कूप की ओर जिसमें डुबकी लगाने के लिए मैं अब तड़प रहा था और कभी होंठ कस कस के चूसते, एक जांघ पर होंठ थे दूसरे से मेरी लम्बी काम भड़काने वाली उँगलियाँ, दोस्ती कर रही थीं। कभी बस छूतीं, कभी सहलाती तो कभी सरक सरक के प्रेम गली की ओर,....
गुंजा तड़प रही थी, सिसक रही थी,
और ये नहीं की वो मेरे चर्मदंड को भूल गयी थी,... उसके होंठ कभी मेरे होंठों की नक़ल करते उसके आस पास चाटते तो कभी मुट्ठी में पकड़ के वो कच्ची अमिया वाली हलके हलके आगे पीछे,
मस्ती के मारे मेरी आंखे जो अब तक बंद थी जब खुलीं तो बस एक पल ही देखा जो, वो आँखों से कभी भी न बिसरे बस इसलिए पलक के दोनों पपोटों में समा के मैंने आँखों की सांकल कस के बंद कर ली,
चिकनी गुलाबी खूब फूली फूली रस से छलकती दोनों फांके,
आम की दो बड़ी बड़ी रस चुआती फांको को जैसे किसी ने कस के चिपका दिया हो,
छेद क्या दरार भी नहीं दिखती थी, लेकिन जैसे चाशनी से भीगी, डूबी ताज़ी निकली जलेबी हो, शीरे में डूबी, उसी तरह रस में गीली, भीगी पता चल रहा था की ये कच्ची कली किस तरह चुदवासी थी,
कभी अपनी जाँघे जोर जोर से रगड़ती, कभी सिसकती, " जीजू करो न, अच्छे जीजू, प्लीज, "
और कौन जीजू साली की बात टालता है वो भी फागुन में,
रति कूप के चारो ओर मेरे होंठ अब चक्कर काट रहे थे, कभी जीभ से बस बस मैं एक लाइन सी खींचता दोनों मोटे मोटे भगोष्ठों के चारो ओर, लेकिन गुंजा को मालूम था की मेरे एक्सीलेरेटर पर कैसे पैर रखा जाता है एक बार सुपाड़ा फिर उसके होंठों के बीच और वो कस कस के चूस रही थी तो मैं अब कैसे छोड़ता,
पहले मेरी जीभ ने उस कच्ची कोरी रस में भीगी चूत की चासनी को धीरे धीरे कर के चाटा, फिर हलके हलके चूसना शुरू किया,
फुद्दी फुदकने लगी, और मेरी चूसने की रफ़्तार बढ़ गयी,
होंठों का प्रेशर दोनों फांको पे , जो अब पूरी तरह मेरे मुंह थी, चूसने के साथ मेरी जीभ दोनों फांको को अलग करने की कोशिश कर रही थी, चाटने चूसने से चाशनी कम होने की बजाय और बढ़ रही थी, रस से एक ेदक गीली थी और अब होंठों ने दोनों फांको को हथेली के लिए छोड़ा और खुद क्लिट को छेड़ने में जुट गए, इस दुहरे से हमले तो खूब खेली खायी भी गरमा जाती, गुंजा तो पहले से ही पिघल रही थी,
थोड़ी देर हथेली से रगड़ने के बाद मैंने तर्जनी से दोनों फांको को फ़ैलाने की कोशिश की, लेकिन फेविकोल का जोड़ मात, इतनी कस के दोनों चिपकी थी,
जैसे दो बचपन की सखियाँ कस के गल बंहिया डाल के बैठी हों कोई छुड़ा न पाए, एकदम स्यामिज ट्विन्स की तरह जुडी चिपकी,
कलाई के पूरे जोर से तर्जनी को घुसाने की कोशिश की,
उईईई गुंजा जोर से चीखी,
ऊँगली का बस सिरा ही घुसा था, मैंने गोल गोल घुमाने की फिर घुसाने की कोशिश की जैसे बरमे से कोई कठोर लकड़ी में छेद कर रहा हो पर उस कच्ची कली की पंखुडिया इतनी कस के चिपकी थीं,
और मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आयी, बात तो वो गुड्डी के सिलसिले में कर रही थीं, लेकिन बात हरदम के लिए सही थी,
" देख बिना चिकनाई लगाए कभी भी नहीं करना चाहिए ,सबसे अच्छा तो देसी सरसों का तेल है, लेकिन उसको रखने का झंझट है और नहीं तो लगभग वैसा ही है वैसलीन, ( मुझे याद आया गुड्डी ने जब कल वैसलीन ली थी दूकान से तो दूकान वाला बोला, बड़ी शीशी है चलेगी तो गुड्डी मेरी ओर देख के मुस्कराते बोली एकदम बड़ी शीशी ही दे दीजिये"
और सरसों का तेल हो तो पहले अपने मूसल पे लगाओ, लेकिन उसके पहले हथेली पे और ऊँगली पे और हल्का सा नहीं बल्कि चुपड़ लो।तेल की शीशी में सीधे डाल लो ऊँगली पहचान ये है की ऊँगली से तेल टप टप चूए, और उससे फिर दोनों फांको के बीच,.... धीमे धीमे, ...तेल अपने आप जगह बनाएगा, और जैसे ही दरार थोड़ी सी फैले, ...उसमें बूँद बूँद तेल चुआ चुआ करके, जबतक ऊपर तक न छलक जाए,.... फिर हथेली से थोड़ी देर पूरी बुर रगड़ो, हलके हलके, और जब तेलिया जाए, तो फिर तेल में डूबी ऊँगली,जब तक दो पोर एक ऊँगली की न चली जाए तब तक, और उसके बाद गोल गोल घुमाओ,
फिर उसी ऊँगली के पीछे दूसरी ऊँगली एकदम चिपका के, दोनों ऊँगली एक पोर तक और हर बार पहले तेल अंदर, दो ऊँगली जब सटा सट जाने लगे तो उसके बाद सुपाड़े को एकदम तेल में चुपड़ के, तब धीरे धीरे, "
भाभी समझा भी रही थी और मेरे खूंटे पे तेल चुपड़ भी रही थी।
मुझसे नहीं रहा गया और मैं पूछ बैठा, " भाभी ने तो बताया था किआप करीब करीब छुटकी की उमर की थीं, जब आपके जीजा ने आपके साथ, तो कैसे आपकी तो एकदम, "
वो जोर से हंसी और तेल की धार सीधे सुपाड़े के छेद में और खूंटे को तेल लगे हाथों से मुठियाते बोलीं,
" देवर जी, पहली बात तो मेरे जिज्जा की महतारी आपकी महतारी की तरह गदहे के साथ नहीं सोई थीं, जीजा का आदमी ऐसा था , तोहरी तरह गदहा, घोडा छाप नहीं। दूसरी बात हमरे जीजा तोहरे तरह बुद्धू नहीं थे, खूब खेले खाये चतुर सुजान, और फिर हमार भौजी उनके साथ,...
तो पहले उनकी सलहज, हमार भौजी,... हमार बिल फैलाये के सीधे कडुवा तेल की बोतल का मुंह उसी में लगा के ढरका दीं, आधी बोतल, फिर बुरिया के ऊपर दबा के देर तक रगड़ रगड़ के जब तक तेल अंदर सोख नहीं लिया, फिर अपनी तेल में चुपड़ी दो ऊँगली,…
और हमार भौजी तो पिछली होली में ऊँगली घुसा के, नेवान कर दी थी, और फिर तो मैं खुद भी, ….
लेकिन उस दिन इतना तेल पानी करने पे भी, जब झिल्ली फटी तो भौजी कस के हमार हाथ गोड़ दोनों छान के पूरी ताकत से,तब भी मैं ऐसी उछली, …..इसलिए पहली बात,... तेल पानी चिकनाई पहले और फिर ऊँगली पूरी अंदर कर के गीली कर के,... और जीजा का तो दो ऊँगली इतना मोटा रहा होगा, तेरा तो मेरी कलाई के बराबर, जब तक दो ऊँगली अंदर कम से कम दो पोर तक न घुस जाए तोहरे अस मूसल, घुसब बहुत मुश्किल है बल्किल कोशिश भी नहीं करनी चाहिए , बिना तेल लगाए, बिना दो पोर तक ऊँगली अंदर किये "
और यहाँ तो तेल की शीशी क्या तेल की एक बूँद भी नहीं थी, और मैं समझ गया बिना तेल, चिकनाई के, लेकिन जब सामने छपन भोग की थाली हो, तो
मैं एक बार कस के फिर से चूसने चाटने में लग गया,
मैं सीधे पांचवे गियर में पहुँच गया, कस के गुंजा की दोनों फैली जांघो को और बुरी तरह फैला दिया, अंगूठे को अपने मुंह में ले जाकर अपना सारा थूक उसपे लिपटा सीधे दरार के बीच, और अब मैं बजाय अंदर घुसाने की कोशिश करने के थोड़ी सी फैली फांको के बीच उसे रगड़ने लगा, और असर तुरंत हुआ,
" जीजूउउउउ " गुंजा ने जोर की सिसकी भरी।
वो हलके हलके चूतड़ उछाल रही थी, तड़प रही थी, उह्ह्ह आआह नहीं, हाँ कर रही थी कस कस के सिसक रही थी।
मुंह में मैंने ढेर सारा थूक भरा, दोनों अंगूठों से उस कोरी कच्ची कली की पंखुड़ियों को कस के फैलाया, और सारा का सारा थूक उसी खुली दरार में, और फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के चिपका के हलके हलके आपस में रगड़ना शुरू किया और गुंजा मस्ती से पागल हो गयी,
" ओह्ह्ह, क्या कर रहे हो जीजू, उफ़ कैसा लगता है , जीजू तू, ओह्ह जीजू ओह्ह्ह "
वो टीनेजर लम्बी लम्बी साँसे भर रही थी, कुछ भी मेरा बोलना उस जादू को तोड़ना होता। और फिर मेरी जीभ और होंठों को बोलने के और भी तरीके आते थे, एक बार फिर से जीभ ने मेरी छोटी साली के योनि कपाटों को बस हलके से खोला और जो दरार दिखी उसी में सेंध लगा दी
आगे पीछे, गोल गोल, उस प्रेम गली के मुहाने पे वो बार बार दरवाजा खटखटा रही थी, और मेरी जीभ का असर, मेरी साली की चढ़ती जवानी का असर,
जैसे पाताल गंगा निकल पड़ी हों, रस का एक झरना फूट पड़ा हो, पहले बूँद बूँद, फिर एक तार की चाशनी जैसा, लसलसा, लेकिन
क्या गंध, क्या स्वाद, क्या स्पर्श, और चुसूर चुसूर मेरे होंठ अंजुरी बना के उस कुँवारी कच्ची योनि रस को सुड़कने लगे
"ओह्ह्ह बहुत अछ्छा लग रहा है जीजू क्या हो रहा है जीजू उफ़ उफ़ हाँ हाँ, "
रुक रुक के वो जवानी की चौखट पे खड़ी टीनेजर कभी सिसकती कभी रुक रुक के बोलती
मेरे दोनों हाथों ने अब पूरा जीभ के लिए छोड़ दिया था
लेकिन वो दोनों शैतान हाथ अब भी रस ले रहे थे, पीछे गुंजा के छोटे छोटे नितम्बों को छू के दबा के दबोच के, और उंगलिया जिसे बहुत लोग वर्जित समझते हैं वहां भी जांच पड़ताल कर रही थीं
और जीभ पंखुड़ियों पे एक मिनट में १०० बार, २०० बार तितली की तरह पंख फड़फड़ा रही थी, फ्लिक कर रही थी,
गुंजा पागल हो रही थी
होंठ कभी चूसते कभी चाटते, कभी ऊपर जा कर उस कोमल कली की कड़ी कड़ी क्लिट पे भी सलामी बजा देते
ओह्ह आह बस ऐसे ही, क्या करते हो , बहुत बहुउउउत अच्छाआ लग रहा है ओह्ह्ह्हह्हह ओह्ह्ह्हह
और मैं समझ गया की मेरी साली अब एकदम झड़ने के कगार पे है, मैंने चूसने की चाटने की रफ़्तार बढ़ा दी
लेकिन छेड़ने का हक़ क्या सालियों का है , सुबह का ब्रेड रोल मैं भूला नहीं था, बस जब वो वो एकदम कगार पे पहुँच गयी,
मैं रुक गया
और गालियों की झड़ी लग गयी,
"करो न जीजू, ओह्ह्ह्ह रुक क्यों गए, अच्छा लग रहा था, ओह्ह प्लीज स्साले,.... तेरी बहन की, तेरी उस एलवल वाली की,... कर ना"
मेरे होंठ उस रसीली की रसभरी फांको से अब इंच भर ऊपर थे, मैंने चिढ़ाया
" क्या करूँ गुंजा रानी, मेरी प्यारी साली "
" स्साले, जो अबतक कर रहे थे, बहन के भंड़ुवे, " गुंजा अब एकदम बनारस वाली रसीली साली बन गयी थी।
" अरे स्साली वही तो पूछ रहा हूँ, " मैंने उस रस की पुतली को फिर उकसाया,
" अपनी बहन की चूत चाट चाट के चूस चूस के जो सीख के आया हैं न वही, " और फिर से एकदम स्वीट स्वीट
" जीजू प्लीज करो न चुसो न कस कस के बहुत अच्छा लग रहा था, चूस मेरी चूत, चाट कस के "
वो अपने चूतड़ उचका के खुद अपनी रस की गुल्लक मेरे होंठों के पास ला रही थी और मैं होंठ और ऊपर,
लेकिन साली जब अपने मुंह से कह दे, उसके बाद तो, फिर से चूसना चाटना, शुरू तो मन्द्र सप्तक से हुआ, मदिर मदिर समीर से लें ऐसी चढ़ती जवानी हो तो हवा को तूफ़ान में बदलने में कितनी देरी लगती है
और अबकी जब गुंजा झड़ने के कगार पर पहंची तो मैंने घोड़े को और एड दे दी, वो हवा में उड़ने लगा और गुंजा भी,
ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईई नहीं हां उफ्फ्फ आअह्ह्ह अह्ह्ह्हह
जवालामुखी फूट पड़ा, मैं कस के उसे दबाये था तभी वो चूतड़ उछाल रही थी, उचक रही थी, तड़प रही, जाल में आने वाली मछली जैसे हवा में उछलती है फ़ीट भर एकदम उसी तरह
लेकिन न मेरे चूसने में कमी हुयी न चाटने में
बस जीजू बस, बस एक पल, ओह्ह ओह्ह्ह देह उसकी एकदम ढीली हो गयी थी
उसकी बात मान के मैं एक पल को रुका फिर से चूसना शुरू कर दिया और दो चार मिनट में वो फिर झड़ रही थी , उसके बाद तो ये हालत हो गयी की मैं बस उसके रस कूप पे होंठ लगाता, क्लिट पे जीभ छुआता और वो,
तीसरी बार, चौथी बार
एकदम थेथर होगयी, थकी, निढाल और तब मैं रुका और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बेसुध, फिर मैं ही उठा और कस के उसे अपनी गोद में बिठा के चूम लिया, और बदले में क्या उस लड़की ने चूमा मेरे होंठों को, चाट चाट के चूस के, थकान से सपनों से लदी उसकी पलकें अभी भी बंद थी, लेकिन जब बड़ी बड़ी आँखे खोल के उस खंजननयनी ने देखा तो उसे अहसास हुआ,
जो वो चूस चाट रही थी उसका अपना योनि रस था,
वो एकदम से शर्मा गयी, मेरे पीठ पे मुक्के से मारने लगी, ' गंदे, बदमाश "
और मैंने उसे कस के भींच लिया और कान में पूछा, " हे अच्छा लगा "
और अबकी वो और जोर से शर्मा गयी, मेरी बाहों में कस के दुबक गयी। और फिर जवाब उसके एक मीठे वाले चुम्बन ने दिया,
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे कस के चिपके, एक दूसरे को बाहों में भींचे रहे, और गुंजा को अपने नितम्बो में धंस रहे खूंटे का अहसास हुआ वो अभी भी जस का तस खड़ा,कड़ा, और गुंजा ने मेरे कानो में धीरे से बोला,
" सॉरी जीजू "
समझ तो मैं रहा था लेकिन मैं उसे हड़काते बोला, " साली, गाली देती हैं, सॉरी नहीं बोलती, न जीजा न साली "
" वो तेरा, : कस के बिन बोले अपने चूतड़ों से मेरे खड़े मूसल को दबाते बिन बोले उसने इशारा किया
" इत्ता मजा तो मिला, तेरे भीगे भीगे मीठे मीठे होंठों का शहद से मुंह का "
मैं बोला और गुंजा और कुछ बोलती उसके पहले मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये और जीभ ने मेरी साली के मुंह में सेंध लगा ली। कुछ देर पहले जो सुख मेरे लिंग को मिल रहा था अब वही मेरे जीभ को मिल रहा था, चूसे जाने का,
अब न गुंजा बोल सकती थी न मैं
=====
" गुंजा, " बड़ी जोर से आवाज गूंजी।
उसकी सहेली.... वही जो सुबह उसे बुलाने आयी थी, मोहल्ले भर में नहीं तो चार पांच घरों में जरूर सुनाई पड़ा होगा,
और उछल के गुंजा मेरी गोद से खड़ी हो गयी,
' स्साली कमीनी छिनार '
बुदबुदाते हुए झट से मेरे तौलिये के ऊपर आराम फरमा रही अपनी स्कर्ट को चढ़ा लिया और फिर स्कूल वाली टॉप को, और मैंने भी तौलिया बाँध लिया।
और मेरी ओर मुड़ के उस कामिनी ने एक झट से चुम्मी ली, और बड़ी बड़ी आँखे झुका के बोली,
" सॉरी जीजू मैं भूल ही गयी थी, मेरी एक एक्स्ट्रा क्लास है थोड़ी देर में, और उसमे जाना,... "
तबतक गुड्डी धुले हुए कपड़ो का गट्ठर लेके बाथरूम से निकल आयी थी, और गुंजा की बात सुन के बोली, " क्यों मोहिनी मैडम ""
और दोनों सहेलियों की तरह खिलखिलाई उस मैडम के नाम पर, गुड्डी चू दे बालिका विद्यालय की पुरानी खिलाडन, गुंजा की दो साल सीनियर,
बालिका विद्यालय की उन दोनों बालिकों के वार्तालाप से ये पता चला की,
मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है, और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।
और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,
तबतक गुंजा का नाम फिर जोर से लेकर वो सहेली चिल्लाई, और बोली, मैं ऊपर आ रही हूँ क्या कर रही है कमीनी,
" आती हूँ, यहाँ होली चल रही है अगर आयी तो जा नहीं पाएगी सोच ले " गुंजा ने जबरदस्त बहाना बनाया
लेकिन गुंजा के बाद एक और आवाज नीचे से पुकारने की आयी,
" गुड्डी, गुड्डी " और ये आवाज तो बुलंद थी ही मैं सबसे अलग, दूबे भाभी की। और गुड्डी धड़धड़ा के नीचे,
" स्साली छिनार, क्लास में अभी आधा घंटा है, सुबह एक बार चुदवा मन नहीं भरा तो इस समय भी "
गुंजा अपनी सहेली के बारे में बोल रही थी फिर उसने राज खोला की एक यार है उसका तो गुंजा को पंद्रह मिनट चौकीदारी करनी पड़ेगी,
" पन्दरह मिनट में हो जाता है,... " अचरज से मैं बोला। और गुंजा जोर से खिलखिलाई
" जीजू मैं ज्यादा बोल रही हूँ, दस मिनट, पांच मिनट कपडा उतारने और पहनने में, दो मिनट में वो मुठिया के खड़ा करती है, फिर मुश्किल से तीन मिनट। सुबह वाले को तो उसने मुंह में लिया था, मैं बाहर घडी देख रही थी, कुल दो मिनट बीस सेकेण्ड चूसा होगा, और मलाई बाहर, " हंस के मेरी छोटी प्यारी दुलारी साली बोली।
तब तक गुड्डी के वापस सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी और गुंजा ने मेरी टॉवेल को उठा के अभी भी तन्नाए सुपाड़े पे एक कस के चुम्मी ली, और उससे और मुझसे दोनों से बोली
" जीजू, चुदुँगी तो तुझसे ही, ,,,आज नहीं हुआ तो, " और उसकी बात मैंने पूरी की
" जब होली के बाद लौटूंगा न तो सबसे पहले तेरी चुनमुनिया ही फाड़ूंगा " और मन में कसम खायी आयी से जेब में एक छोटी वैसलीन की शीशी कुछ न हो तो बोरोलीन की ट्यूब ही सही,
" एकदम " वो चंद्रमुखी खिल उठी और खड़ी हो के मुझे बाँहों में बाँध के जोर से एक चुम्मी ली।
तबतक गुड्डी आ गयी और मुझसे बोली " जल्दी नीचे जाओ, दूबे भाभी का बुलावा है, संध्या भाभी तेरे रंग छुड़ायेंगी। "
गुंजा सीढ़ी पर नीचे, और मैंने बोला" हे मैं भी आता हूँ "
" नहीं नहीं जीजू, " मना करती वो सुनयना बोली,
" वो कमीनी एक बार देख लेगी न और अगर मेरी क्लास की सहेलियों को खबर हो गयी तो फिर सब की सब, ....कोई नहीं छोड़ने वाली आपको, एक बार मैं निकल जाऊं "
और थोड़ी देर में गुंजा की नीचे से आवाज आयी, " मम्मी, मेरी एक्स्ट्रा क्लास है मैं जा रही हूँ , तिझरिया में लौट आउंगी "
बाथरूम के अंदर से चंदा भाभी की आवाज आयी ठीक है
और मैं भी सीढ़ी पर नीचे,
एक बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, संध्या भाभी झाँक रही थीं, ....सीढ़ी की ओर टकटकी लगाए।
वाकई.. सुपर भी... टर्बो भी..
और माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में २५ से ऊपर पेज...
लंबा और दिलकश अपडेट....
और चार्जड तो ऐसा कि अब तक टॉवर सिग्नल डाउन करने को तैयार नहीं...
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
जिस तरह बकरे को हलाल करने से पहले सजाया जाता है उसी तरह आनंद बाबू को भी दुल्हन की तरह सजाया गया है तीन औरते और दो कन्या ने । दुल्हन को देखकर लगता है पक्का सुहागरात होने वाली है वो भी पिछवाड़े की
आज तो दुबे भाभी ने आनंद का पिछवाड़ा बचा दिया वरना आज तो पिछवाड़े की हालत खराब हो जाती आनंद ने संध्या भाभी को और चंदा भाभी ने रीत को पकड़ कर कबूतरों को मिंझना शुरू कर दिया है देवर भौजाई का फाग शुरू हो गया है अब तो देवर सयाना हो गया है संध्या भाभी की आग को भड़का दिया है पेलने की सहमति संध्या भाभी ने दे दी है