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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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Awesome update
संध्या भाभी को फाग का रस मिल गया है अपने देवर से ।एक बार पूरी फिल्म बनते बनते रह गई
चंदा भाभी और रीत में जबरदस्त मस्तियां चल रही है दोनो एक दूसरे पर भारी पड़ रही है
अभी तो केवल बस चखा है..
पूरा स्वाद तो आना बाकी है...
 

motaalund

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Fantastic update
आनंद और गुड्डी की मस्तियां शुरू हो गई अब तो आनंद पूरा बेशर्म हो गया है अब उसकी पूरी जिझक खत्म हो गई है खुले में गुड्डी को अपनी गोद में बिठा के एक दूसरे के होठ से होठ के रसपान के साथ मिल कर गुझिया खा रहे हैं गुड्डी ने संध्या भाभी को पेलने का फरमान जारी कर दिया है इधर गुड्डी आनंद के हथियार का रसपान कर रही है वही दूसरी और रीत और चंदा भाभी 69 पोज में एक दूसरे के रस का रसपान कर रही है
अब चारों तरफ मस्ती छाई है...
 

motaalund

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दर्जी का उदहारण केवल एक कला से संबंधित पीड़ा और उससे जुड़े कार्यों के वेदना के लिए किया गया था..
कृपया अन्यथा न लें...
ये सही है कि ज्यादातर लोग अब ज़ोमैटो या स्विगी इत्यादि जैसे प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं ताकि उन्हें पका पकाया (रेडीमेड) खाना घर पर हीं मिल सके...
लेकिन क्या वही गुणवत्ता और स्वाद मिल सकती है जो घर के बने खाने में है...
मेरा मानना है कि... नहीं...

आपका प्रयास न केवल सार्थक रहा बल्कि झाड़ झुड़ कर पेश करने पर पुराने पाठकों के द्वारा दोहराव का आरोप लगाया जा सकता था...
लेकिन आपने वो सरल प्रक्रिया नहीं अपनाई और कुछ नया और परिवर्धित संस्करण पेश किया...
और पुराने के मुकाबले ये अब तक ५० प्रतिशत नया है...
नए पात्र.. नई घटनाएं... लेकिन बैकग्राउंड वही रखा...
जिसके कारण ऐसा लग रहा है कि कुछ नया पढ़ने को मिल रहा है...
कुछ नया और अछूता सा...
और यहाँ आपके हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी...

और जिस भी टैग से कहानी फोरम में उपलब्ध... उसमें व्यूअरशिप तो ठीक-ठाक क्या बहुत हीं अच्छा है...
लेकिन कमेंट में क्यूं नहीं तब्दील हो पा रहा है...
ये मेरी समझ से बाहर है..
शायद पारभासी दुनिया (virtual world) में लोग अपनी पहचान बताना नहीं चाहते... या फिर पहचाने जाने का डर हो... या फिर इंटरनेट की उपलब्धता ऑफिस वगैरह में हो... जहाँ दसियों restriction होते हैं....
क्यूंकि चाहे आप जितना भी अपने आपको छुपा लें.. ट्रैक करने के लिए काफी कुछ पीछे छूट जाता है...

और अगर खाना अच्छा हो तो खाना किसने बनाया.. किस बर्तन में बना... खाना जिस थाली में परोसा गया वो ठीक नहीं है...
ऐसा मीन मेख निकालने से खाने का लजीज स्वाद कम नहीं हो जाएगा...
और नुक्स निकालने वाले तो हर जगह नुक्स निकाल के दिखा सकते हैं..
फिल्म शोले के लिए एक यू-ट्यूबर ने पचासों गलतियां निकाल दी... (जिसमें १-ठाकुर की बहु लालटेन जलाती है... मतलब बिजली नहीं थी...लेकिन पानी की टंकी पर पानी कैसे ऊपर चढ़ाया जा सकता है... इत्यादि इत्यादि)
लेकिन कितने लोग इन बातों पर ध्यान देते हैं...
वो बस सिनेमा हॉल में जाते हैं और आनंद के कुछ पल बिता कर फिल्म के अलग अलग सीन की नकल कर एक दूसरे के साथ उन पलों को जीवंत करते हैं.. और ऐसा भी कुछ चुनिंदा फिल्मों के लिए होता है... वरना बकवास कहते हुए निकल जाते हैं...
और ऐसे लोगों का ध्येय केवल निंदा करना हीं होता है...

लेकिन सीरियल/फिल्मों में भी पात्रों के बाद के आचरण में विविधता ये सब कंटीन्यूटी की गलतियां है... जो इतनी बड़ी कहानी में बिल्कुल संभव है... जो कि सीरियल या फिल्म में एक ग्रुप द्वारा किया जाता है .. वो यहाँ पर एक व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है...
इसलिए ये बिल्कुल संभव है कि जो पात्र शुरुआत में एक अलग रूप में प्रस्तुत किया गया हो वो बाद में अपने मैच्योर होने पर एक अलग हीं गेटअप में हो...
इसलिए बाद में रीत अपने परिपक्व अंदाज में दिखी...
लेकिन अपनी बनारस की मूल प्रवृति(basic instinct) को भी साथ लिए चलती रही...
इसलिए इसे रीत के विकास क्रम में देखा जाना चाहिए...

और प्रस्तुति में बिल्कुल गलती नहीं है...
क्योंकि समसामयिक घटनाओं का समावेश और उनका कहानी में उचित स्थान प्रयोग तारीफ के काबिल है...
तो कपड़े के छोटे बड़े होने का सवाल मेरे ख्याल से लागू नहीं होता...
और ये केवल अतिश्योक्ति नहीं... बल्कि एक पाठक के रूप में मेरा आंकलन है...

सूत्रधार जी काफी मंझे हुए और अनुभवी व्यक्ति हैं...
और वो काफी संयमित और सटीक आंकलन करते हैं...

और दुबारा आपने पढ़कर काफी कुछ सुधार किया है.. इस नए और परिवर्धित संस्करण में...

और ड्रेस तो क्या हीं शानदार बन रहा है...
बल्कि उम्दा और अद्वितीय... साथ में मौलिक भी...

और आपने हम सबका समय नहीं लिया...
बल्कि अपनी कहानियों और ज्ञान के माध्यम से हमें कृतज्ञ किया है...
और अंत में इतना हीं कहना चाहता हूँ कि आप विनम्र और संयमी है...
ये आपके कमेंट्स से भी लक्षित है...
वाह.. कोमल रानी के जवाब का जवाब भी बहुत खूब दिया है...
सचमुच हम कोमल रानी जी के आभारी और अनुगृहित हैं....
 

motaalund

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आपने सचमुच एक भव्य आवेशित और विस्तृत/विशाल अपडेट दिया है...
जिसमें लोग उन पलों में डूबने और उतराने लगते हैं...
शाजिया .. नादिया.. महक के साथ मिलकर गुड्डी ने मस्ती की एक नई परिभाषा गढ़ दी है...
आपकी यही विशेषता कि कुछ नया पेश करें .. बरबस हीं हमें खींच लाता है...
स्कूल में का खिलंदड़ापन ...
जवानी के इस मोड़ पर की मस्तियाँ.. ताजिंदगी याद रहती हैं...
और उन कुछ पलों को आप की प्रस्तुति हमें भूतकाल में ले जाकर गुदगुदा जाती है....
और बच्चों में इस तरह की प्रतियोगिता..(गाली देने में श्रेष्ठता) या अन्य खेल उनकी क्रिएटिविटी को दिखाते हैं...

"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."

इस तरह की पैरोडी... कुछ स्टडी डेस्क पर पुराने सीनियर्स द्वारा उकेरे गए कमेंट्स ...
अब तक मस्तिष्क के किसी कोने में छुपे हुए हैं...
एक अलग हीं मुस्कान बिखेर देते हैं...

और किसका मन नहीं करेगा... ऐसी सुनीतवा .. अनीतवा से मिलने को...

अब तो नहाए हुए आनंद बाबू को गुंजा नहवा के हीं छोड़ेगी... वो भी होली और प्यार के रंगों में...

और हाँ .. सचमुच के मनमोहन बाबू बन गए .. आनंद बाबू से...

गुंजा ने शाही लीची का स्वाद ले हीं लिया....

एक बार फिर से रंगों से सराबोर कर दिया आपने...
क्या हीं समेकित कमेंट्स किया है...
सचमुच बेजोड़ ...
 
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motaalund

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
एक बार फिर से आनंद के मजे हो गए गुड्डी के साथ जो lip to lip किया था वो ही रीत ने कर दिया एक और कन्या के होठों का रसपान हो गया एक बार फिर से रीत को रगड़ दिया लेकिन आगे कुछ भी नही हुआ
सही कहा...
तरस रहे हैं.. बरसने को..
 

motaalund

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आखिर मुजरा करवा ही दिया साथ में रीत को भी शामिल कर लिया
रीत और आनंद बाबू की डांस जोड़ी तो अनुपम है...
 
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motaalund

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बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है रंगो की होली तो खत्म हो गई अब तो अंग से अंग रगड़ने की होली शुरू हो गई है चंदा भाभी ने तो संध्या भाभी को गरम करके उसकी आग को भड़का दिया है चंदा भाभी गुड्डी के साथ मिलकर संध्या भाभी को आनंद का हथियार दिखा कर मजे ले रही है जैसे छोटे बच्चे को लॉलीपॉप दिखाकर उसको नही देते हैं वैसा ही संध्या भाभी के साथ हो रहा है उनको हथियार की सख्त जरूरत है रीत की सहेली भी आ गई है देखते हैं उसके साथ भी होली खेलते हैं या नहीं
और उसी लॉलीपॉप के लिए संध्या भाभी ठिनक रही हैं...
 

motaalund

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
दुबे भाभी द्वारा गाया गया जोगीडा बहुत ही शानदार था जिसमे आनन्द की बहन को टारगेट करके गाया था रीतिका फिल्मी जोगीडा दुबे भाभी वाले से भी ज्यादा मजेदार था
ससुराल की होली में तो गरियाए हीं जाएंगे...
 
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