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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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होली के ये कालजयी गाने हैं, और इस गाने पर डांस भी गजब का है इसलिए रीत के लिए मुझे यही गाना सही लगा, छेड़छाड़ भी, डांस भी,
परफेक्ट कॉम्बिनेशन ऑफ सॉंग एंड डांस...
 

motaalund

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अच्छी चीज के लिए इन्तजार करना ही पड़ता है

संध्या भाभी का प्रंसग इस नए संस्करण में ज्यादा है
लगता है .. इस बार रीत की जगह संध्या भाभी हीं...
 

motaalund

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पहले बेचारे आनंद को बिना कपड़ो के बाजार जाने का आदेश दे दिया लेकिन दुबे भाभी ने बचा लिया आनंद को कपड़े तो मिले लेकिन दुल्हन की तरह श्रृंगार कर दिया जैसे गावो में बारात जाने के बाद महिला दुल्हन और दूल्हा बनकर मस्ती करती हैं
लगता है अभी और खेला होबे .. आनंद बाबू के साथ...
 

motaalund

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
आनंद को तो दुल्हन की तरह तैयार कर दिया लगता है आज आनंद की सुहागरात हो के ही रहेगी संध्या के साथ उसकी ननदों ने बहुत ही अच्छा मजाक किया था आनंद को पायल और चुड़िया क्यों पहनाई जाती हैं सुहागरात में ये बता दिया वाह क्या बात है अब देखते हैं आनंद की कितनी चूड़ियां टूटती है और पायल कब तक बजती है
क्या पता आनंद बाबू से डांस भी करवाएं... पायल की थाप पे...
 
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motaalund

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बी दर्जिन आपकी शुक्रगुजार हैं की आपने हुनर की क़द्र की वर्ना ब्रांडेड और रेडीमेड के जमाने में इन तकलीफो को कौन समझता है।

असल में कोशिश मेरी भी यही थी की किसी तरह बक्से से निकाल के थोड़ा तह वह कर के, झाड़ झुड़ के पुराना माल टिका दूँ, लेकिन मेरी परेशानी ये नहीं की मेरे कहानियों के चाहने वाले कम हैं, वो तो उनकी किस्मत और ऊपर वाले की रहमत है, लेकिन असली परेशानी, जो भी थोड़े बहुत हैं, वो बहुत ही जानकार, नुक्स निकालने वाले और हद दर्जे के जानकार है और मेरी कहानियां भी पक्की बेवफा हैं , जो उनकी वफादार हैं, जैसे लड़की, ससुराल जाने के बाद माँ की जगह सास के साथ खड़ी हो जाती है, ( सास बहु वाली नहीं मेरी कहानी, मोहे रंग दे और छुटकी वाली सास बहू) एकदम उसी तरह।

और गलती मेरी भी थी किसी बच्ची की कोई ड्रेस सीने को दे और जब तक ड्रेस बन के तैयार हो, तो वो बच्ची माशा अल्ला अच्छी खासी जवान हो जाये, तो ड्रेस कैसे फिट आएगी। पायंचे छोटे होंगे, कहीं ज्यादा ही टाइट होगी, तो जब पहली बार यह कहानी पोस्ट हुयी तो जैसे सीरियल में होता है करेक्टर में बदलाव आ जाता है और कई बार शुरूआती दौर से मैच नहीं खाती।पूरे चार साल लग गए थे उस कहानी को पोस्ट होने में

और इस बात को पकड़ा मेरे अजीज दोस्त सूत्रधार जी ने जो बहुत कम बोलते हैं, सूत्र में कहते हैं, लेकिन उस सूत्र में पूरे समीकरण की व्याख्या हो जाती है। और पहली बात उन्होंने पकड़ी रीत के बारे में।

रीत इस कहानी की जान है। लेकिन होली की सीन में जो पहले रीत का जिक्र था वो बाद के ( मध्यांतर के बाद के ) उसके किरदार से मैं ये तो नहीं कहूँगी, की मेल नहीं खाता लेकिन कुछ लोगो को, जिसमे मैं भी शुमार हूँ, दुबारा पढ़ने पर जोर जोर से खटक रहा था। इसलिए बहुत कुछ सम्हाल के रीत में कुछ बदलाव इस तरह करना पड़ा की उसकी अहमियत न कम हो और आगे की पोस्टो से मैच करे ।

दूसरा मामला गुंजा का था, मेरी एक परेशानी और है मैं पोस्ट लिख के कहीं अलग से सेव नहीं करती और किया भी तो कभी डिलीट होगया कभी वाइरस खा गया तो कभी लैपटॉप बदल गया। लेकिन ये काम भी मेरे दोस्तों ने किया, विशेष रूप से जौनपुर जी ने उन्होंने उन्हें पइदी ऍफ़ में बदला, लेकिन पता नहीं क्यों ( और इस फोरम के पी डी ऍफ़ में भी वो गलती है ) एक बड़ा सा भाग छूट गया है, बात गुंजा से शुरू होती है और अचानक आनंद बाबू घर से जाने लगते हैं। तो करीब उस को भी फिर से लिखना पड़ा।

कहानी के बाद के हिस्सों में गुड्डी की बहनो का और गुड्डी की मम्मी का जिक्र बार बार आता है, लेकिन जब आनंद बाबू बनारस में थे बस बहुत हल्का सा, इसलिए वो किरदार भी बढे, और गुड्डी -आनंद बाबू के रिश्ते में रोमांस की शुरुआत की बात भी करनी थी तो ढेर सारा
फ्लैश बैक भी,

और कुछ मित्रों ने इरोटिका कांटेट बढ़ाने की बात की थी तो गुंजा और संध्या भाभी का विस्तार कुछ उसके कारण भी,

बहुत से बाते और भी हैं लेकिन वो स्प्वॉयलर अलर्ट की कैटगरी में आती है।

और आंनद बाबू का नाम भी इस बार बार आया है , कहानी में भी कमेंट्स में भी। परेशानी ये थी की ये मेरी अकेली कहानी है जो एक पुरुष के द्वारा फर्स्ट परसन में है और आनंद बाबू बार बार अपना नाम तो ले नहीं सकते और बातचीत में भी हम कहाँ किसी का नाम लेकर बात करते हैं और गुड्डी शुद्ध भारतीय नारी है, आनंद बाबू पर हक़ जताने में, हड़काने में और उनके मायके वालों को बुरा भला कहने में

लेकिन मेरी एक गुरु हैं, लेडी डाक्टर, उन्होंने मुझे अच्छी तरह समझा दिया की नाम कहानी की जरूरत है तो किसी भी जुगाड़ से पढ़ने वालों के मन में हीरो का नाम तो होना ही चाहिए इसलिए बार बार आनंद बाबू और अपनी होने वाली ससुराल में है तो बाबू ,

अब ये ड्रेस कैसे बन रही है अब आप ऐसे लोग रेगुलर आएंगे तो पता चलेगा ।

एक बार फिर से धन्यवाद, आप पुराने मित्र पाठक है इसलिए आपका इतना समय लिया।
कई बार कहानी हिरोइन प्रधान भी होती है...
और ड्रेस तो लाजवाब बना है...
खूब फब रही है...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग १९

गुंजा और गुड्डी

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रह गया छत पे मैं अकेला।



गुड्डी थी तो लेकिन बाथरूम में और वो बोलकर गई थी डेढ़ घंटे के पहले वो नहीं निकलेगी।

मैंने सीढ़ी का दरवाजा बंद किया और चंदा भाभी के बाथरूम में पहले तो सिर झुका के सिर में लगे रंग, फिर चेहरे, हाथ पैर के रंग। जो रीत ने सबसे पहले पेंट लगा दिया था उसका कमाल था या जो बेसन वेसन चंदा भाभी ने दिया था उसका। काफी रंग साफ हो गया। मैंने मुँह में एक बार फिर से साबुन लगाया तभी दरवाजे पे खट खट हुई। मुँह पोछते हुए मैं दरवाजे के पास पहुँचा। जल्दी से मैंने बस टॉवेल लपेटी

तब तक खट-खट तेज हो गई थी। जैसे कोई बहुत जल्दी में हो। कौन हो सकता है ये मैंने सोचा- “गुंजा…”

घड़ी की ओर निगाह पड़ी तो उसके आने में तो अभी पौन घंटे से ऊपर बाकी था। वो बोलकर गई थी की मेरे आने के पहले मत जाइएगा। बिना सबसे छोटी साली से होली खेले। कहीं जल्दी तो नहीं आ गई और मैंने दरवाजा खोला। साबुन अभी भी आँख में लगा था साफ दिख नहीं रहा था।

गुड्डी अभी भी लगता है बाथरूम में ही थी।

कपडे दिख नहीं रहे थे, किसी तरह एक छोटी सी टॉवेल लपेट के मैं निकला,

शैतान का नाम लो शैतान हाजिर और गुड्डी बाहर निकल आई।

लम्बे भीगे बाल तौलिया में बंधे, रंग उसका भी साफ हुआ था लेकिन पूरा नहीं और एक खूब टाईट शलवार सूट में।



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उसके किशोर जोबन साफ-साफ दिखते, छलकते और कसी शलवार में नितम्बों का कटाव, यहाँ तक की अगर वो जरा भी झुकती तो चूतड़ की दरार तक। मेरी निगाह उसके गदराये जोबन पे टिकी थी। मैं बेशर्मों की तरह उसे घूर रहा था।

“लालची…” वो मुश्कुराकर बोली बिना दुपट्टा नीचे किये।

“अच्छी चीज हो तो मुँह में पानी आ ही जाता है…” मैं बोला।

“मुँह में या कहीं और…” वो शैतान बोली और उसकी निगाह नीचे की ओर।

और मेरी निगाह भी नीचे पड़ी। टॉवेल थोड़ी सी खुली थी और ' वो शैतान' अपना माल देखकर ललचाते हुए झाँक रहा था।

“रहने दो ऐसे ही। थोड़ा हवा पानी लगने दो…” खिलखिलाते हुए वो बोली, फिर आँख नचाकर कहने लगी। अच्छा चलो मैं बंद कर देती हूँ और मेरे पास आकर अपनी कोमल उंगलियां। बंद किसे करना उसने हाथ अन्दर डालकर सीधे उसे पकड़ लिया।

वो थोड़ा सुस्ता रहा था। लेकिन फिर अब गुड्डी की उंगलियां। वो फिर कुनमुनाने लगा।

“तेरे लिए एक अच्छी खबर है…” मेरे कान में होंठ लगाकर गुड्डी बोली।

मैं- “क्या?”

“मेरी सहेली। वो पांच दिन वाली…” गुड्डी आँख नचाकर बोली।


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मेरे मन में चिंता की लहर दौड़ गई कहीं ये ठीक नहीं हुई तो। मैंने इतना प्लान बनाया था की रात भर आज इसे और फिर अब मेरे जंगबहादुर को स्वाद भी लग गया था।

गुड्डी मुझे इन्तजार कराके बोली-

“वो मेरी सहेली। टाटा, बाईं बाई। एकदम साफ। इसलिए तो नहाने में इतना टाइम लग गया था। अब तुम्हारा रास्ता एकदम क्लियर…”

“हुर्रे। ये तो बहुत अच्छी खबर है, तो पहले तो कुछ मीठा हो जाय…” मैंने भी उसे कसकर बाहों में भींच लिया। जवाब में उसके हाथ ने मेरे लण्ड को कसकर दबा दिया। सोया शेर अब जग गया था।

“एकदम क्यों नहीं…” और दो किस्सी गुड्डी ने मेरे होंठों पे दे दी।

“अरे इसे भी तो कुछ मीठा खिला दो। बिचारा भूखा है…” मैंने बोला।

“तो रहने दो न। बुद्धू लोगों के साथ यही होता है। अरे मेरे प्यारे बुद्धू। चल तो रही हूँ न तेरे साथ। आज रात से पूरे हफ्ते भर रहूंगी। दिन रात। । संध्या भाभी दावत तो दे के गयीं हैं बेचारी उनके दोनों मुंह में इतना पानी आ रहा था। अभी गुंजा आती होगी, स्साले तेरी सबसे छोटी साली, खिलाना उसको यहाँ तक, अपना मोटा लम्बा ब्रेड रोल। "

वो बोली,.... और साथ में अब जोर-जोर से मुठिया रही थी।

मेरा सुपाड़ा तो चंदा भाभी के हुकुम के बाद खुला ही रहता था, बस गुड्डी ने अपने अंगूठे से उसे भी रगड़ना शुरू कर दिया।

एक बात मैंने देखी, जब भाभियों ने मेरा चीर हरण कर के पूरी तरह निर्वस्त्र किया, जितना कड़क औजार देख के भाभियाँ पनियाती हैं उससे भी ज्यादा मोटे बौराये खुले सुपाड़े को देख के.... नीचे की मंजिल में एक तार की चासनी निकलने लगती है।

“ये भी तो पांच दिनों के बाद…” शलवार के ऊपर से मैं भी अब उसकी चुनमुनिया को रगड़ रहा था।

“तुम ना बेसबरे। एक से एक भोजन है यहाँ और, चलो अभी गुंजा आयेगी ना। रीत और संध्या भाभी को तो दूबे भाभी और चंदा भाभी इत्ती जल्दी बिना पूरी तरह निचोड़े छोड़ने वाली नहीं, लेकिन गुंजा बस आ ही रही होगी, सुबह तो उसे दिखा भी दिया, पकड़ा भी दिया और बाकी काम अब, तुम्हें कुछ नहीं मालूम अरे यार अभी तो नहाई हूँ ना। छ: सात घंटे तक कुछ नहीं…” गुड्डी बोली।

“एक उंगली भी नहीं। आखीरकार, इसका उपवास भी तो टूटना चाहिए न…” मैं मुँह बनाते बोला।

खिलखिला के वो हँसने लगी और एक बार फिर मुझे किस कर लिया और बोली-

“इसका उपवास पांच दिन का नहीं …. और वो उंगली से नहीं इससे टूटेगा, मेरे बेसबरे बालम। तुम लेते लेते थक जाओगे मैं देते देते नहीं थकूँगी। प्रामिस है मेरा। बस थोड़ा सा। इंतेजार…”


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गुड्डी की उंगलियां लगातार चल रही थी और अब मेरे लण्ड की हालत खराब हो रही थी। अब मैंने उसके होंठ पे कसकर एक चुम्मी ली, उसके निचले होंठों को मुँह में लेकर चूस लिया। गुड्डी का गुलाबी रसीला होंठ मेरे होंठों के बीच में था।

मैं उसे चूस रहा था, चुभला रहा था साथ में मेरा एक हाथ टाईट कुरते को फाड़ती चूची को दबा रहा था और दूसरा उसके चूतड़ के कटाव की नाप जोख कर रहा था। हाथ गुड्डी के भी खाली नहीं थे। एक से तो वो मेरा लण्ड अब खुलकर कस-कसकर मुठिया रही थी और दूसरे से उसने मेरी पीठ पकड़ रखी थी और अपनी ओर पूरी जोर से खींच रखा था।

“हे वहां एक छोटा सा किस बस जरा सा। देखो ना उसका कितना मन कर रहा है…” मैंने फिर मनुहार की।

“छोटा सा क्यों, पूरा क्यों नहीं। यहाँ से यहाँ तक…” और उसने अपनी नाजुक उंगली से, लम्बे नाखून से मेरे खुले सुपाड़े से लेकर लण्ड के बेस तक लाइन खींच दी। लेकिन अगली बात ने उम्मीद तोड़ दी।

“लेकिन अभी नहीं। बोला ना। अच्छा चलो। बनारस से निकलने से पहले बस किस दूंगी वहां…” और उसने मेरे सुपाड़े को अपने अंगूठे से दबाकर इशारा साफ कर दिया की वो किस कहाँ होगा।

“अभी…” मैंने फिर अर्जी लगाई।

“उनहूँ…” अब उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसा दी थी और मैं उसे कसकर चूस रहा था। कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए होंठ अलग हुए तो मैंने फिर गुहार की- “बस थोड़ा सा…”

फिर आँख नचाके वो शोख बदमाश बोली, " हाँ एक बात बता सकती हूँ, मिल सकता है इसको किस भी, चुसम चुसाई भी " सुपाड़े की एकलौती आँख पे अपने नाख़ून से सुरसुरी करती उसने एक उम्मीद जगाई, और मैं कुछ पूछता उसके पहले उसने बता भी दिया,

" तेरी छोटी साली, दर्जा नौ वाली,




चुसवाना उससे मन भर के, बस आती ही होगी और वैसे भी अभी घंटे भर तक तो नीचे बाथरूम में कुश्ती चलेगी ननद भाभियों की। अभी गुंजा आती होगी उससे चुसवाना…”

थोड़ा सा वो पसीजी। कम से कम साफ मना तो नहीं किया।

“गुंजा। अरे यार वो छोटी है अभी…” मैंने उसे फिर मुद्दे पे लाने की कोशिश की।


असली बात ये थी की मैं न नौ नगद न तेरह उधार वाला था, जंगबहादुर फनफनाये थे, गुड्डी मेरी बाँहों में थी, छत पर सन्नाटा और उसके रसीले होंठ इसलिए मैं गुंजा के पोस्ट डेटेड चेक पर नहीं टलने वाला था, पर गुड्डी गुस्सा हो गयी।

पहले तो उसने मेरे कान का पान बनाया और हड़काते हुए बोली,

" स्साले, तेरी किस्मत अच्छी थी की मैं तुझे ऊपर से लिखवा के ले आयी, वरना, कुछ लोग बुद्धू होते हैं तू महाबुद्धु है। सुबह दबा के मीज के रगड़ के ऊपर वालों की नाप जोख कर ली,




चुनमुनिया भी सहला ली, सुबह से उसने चिक्क्न मुक्क्न कर के रखी है। अरे दो ढाई साल पहले से उसका बिना घाव के खून निकलना शुरू हो गया है। छोटी कतई नहीं है,

दो बाते सुन भी लो और समझ लो, साल डेढ़ साल पहले से उसके क्लास की आधे से ज्यादा लड़कियों की चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी है, मेरे ही स्कूल की है और एक एक बात बताती भी है। और दूसरी उससे भी ज्यादा जरूरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती। साली साली होती है। "


फिर उसे ध्यान आया की बहुत देर से और बहुत कस के कान पकडे है तो कान छोड़ के मुस्कराते हुए बोली,


" अरे यार दीदी की छुट्टी चल रही हो तो छोटी साली ही काम आएगी न "

मेरे मन की बदमाशी मुझसे पहले उसे पता चल गयी थी, वो समझ गयी की मैं उसकी दोनों छोटी बहनों के बारे में सोच रहा हूँ। उसकी नाचती गाती दीये सी बड़ी बड़ी आँखे मुझे बता रही थी, की मैं क्या सोच रहा हूँ उसने पकड़ लिया है।

मैंने भी शरारत से पूछा, " सिर्फ साली ही या, "

जोर का मुक्का और जोर से पड़ा और गालिया भी, " हिम्मत हो तो मम्मी के सामने बोलना, मैं समझ रही हूँ तेरी बदमाशी। "

सच में मेरे मन में पता नहीं कहाँ से गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ही आ गयीं थी,खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, खूब टाइट चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, उभार भी क्या जबरदस्त और उतने ही कड़े कठोर,


फिर वो मम्मी की परी खुद ही बोली, मेरी ओर से तो सब के लिए ग्रीन सिग्नल है और जहाँ तक मम्मी का सवाल है वो तो वो खुद ही तुझे सीधे रेप , अब सोच लो "

मैं लेकिन बात पटरी पर वापस ले आना चाहता था

“अच्छा बस एक छोटा सा किस। बहुत छोटा सा बस एक सेकंड वाला…” गुंजा की बात सोचकर मेरा लण्ड और टनटना गया। लेकिन बर्ड इन हैंड वाली बात थी।

गुड्डी घुटने के बल बैठ गई और मेरी आँखों में अपने शरारती आँखें डालकर ऊपर देखती हुई बोली-

“चलो। तुम भी क्या याद करोगे किस बनारस वाली से पाला पड़ा है…”

और टॉवेल के ऊपर से ही उसने तने हुए तम्बू पे एक किस कर लिया। बिच्चारा मेरा लण्ड। लेकिन अगले ही पल उसने खुली हवा में साँस ली। जैसे स्प्रिंग वाला कोई चाकू निकलकर बाहर आ जाय 8” इंच का। बस वही हालत उसकी थी। मैंने उसे पकड़कर गुड्डी के होंठों से सटाने की कोशिश की तो गुड्डी ने घुड़क दिया।



“चलो हटाओ हाथ अपना। छूना मत इसे। मना किया था ना की अब हाथ मत लगाना इसे अब जो करूँगी मैं करूँगी, या तेरी साली, सलहज, फिर कुछ रुक के मुस्करा के आँख नचा के बोली,... सास करेंगी। …”

उतनी डांट काफी थी। मैंने दोनों हाथ पीठ के पीछे बाँध लिए। की कहीं गलती से ही। हाथ गुड्डी ने भी नहीं लगाया। सुपाड़ा पहले से ही । मोटा लाल गुस्सैल, खुला हुआ और लण्ड चितकबरा हो रहा था। दूबे भाभी के हाथ की लगायी कालिख, रीत और गुड्डी के लगाये लाल गुलाबी रंग।

गुड्डी ने अपने रसीले प्यारे होंठ खोल दिए। मुझे लगा की अब ये किशोरी लेगी लेकिन उसनी अपनी जीभ निकाली और फिर सिर्फ जीभ की टिप से, मेरे पी-होल को, सुपाड़े के छेद पे हल्के से छुआ दिया। जोर का झटका जोर से लगा।
उसकी गुलाबी जुबान पूरी बाहर निकली थी। कभी वो पी-होल के अंदर टिप घुसेड़ने की कोशिश करती तो कभी बस जुबान से सुपाड़े के चारों ओर जल्दी-जल्दी फ्लिक कराती।

और जब उसकी जुबान ने सुपाड़े के निचले हिस्से को ऐसे चाटा जैसे कोई नदीदी लड़की लालीपाप चाटे तो मेरी तो जान निकल गई। मेरी आँखें बार-बार गुहार कर रही थी, ले ले यार ले ले। कम से कम सुपाड़ा तो ले ले।



गुड्डी जीभ से सुपाड़ा चाटते हुए मेरे चेहरे को, मेरी आँखों को ही देखती रहती जैसे उसे मुझे तड़पाने में, सताने में मजा मिल रहा ही और फिर उसने एक बार में ही गप्प। पूरा मुँह खोल कर पूरा का पूरा सुपाड़ा अन्दर। जब उसके किशोर होंठ सुपाड़े को रगड़ते हुए आगे बढ़े और साथ में नीचे से जीभ भी चाट रही थी लेकिन ये तो शुरूआत थी। मजे में मेरी आँखें बंद हो गई थी।

अब गुड्डी ने चूसना शुरू कर दिया। पहले धीरे-धीरे फिर पूरे जोश से।

लेकिन सुपाड़े से वो आगे नहीं बढ़ी। हाँ अब उसकी उंगलियां भी मैदान में आ गईं थी। वो मेरे बाल्स को सहला रही थी, दबा रही थी। एक उंगली बाल्स और गाण्ड के बीच की जगह पे सुरसुरी कर रही थी और दूसरे हाथ का अंगूठा और तरजनी लण्ड के बेस पे हल्के-हल्के दबा रहे थे। और गुड्डी ने मुँह आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। ओह्ह… आह्ह… हांआ मेरे मुँह से आवाजें निकल रही थी।

तभी सीढ़ी पे हल्के से कदमों की आवाजे आई। गुड्डी ने झटके से अपना मुँह हटाया और शेर को वापस पिंजड़े में किया।
ओहो.. तो गुड्डी रीत की उन शरारतों में भी आनंद बाबू की भलाई छुपी हुई थी...
छप्पन भोग... में से पहले किस पर हाथ फेरेंगे...

लेकिन हर बार की तरह... फिर सीढ़ी पर आहट...
ये सीढ़ी तो विलेन बना बैठा है...
 

motaalund

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गुंजा
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खुला दरवाजा निकली- गुंजा।

भूत.,,,नहीं सारी, चुड़ैल लग रही थी।

सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,





लेकिन स्कूल यूनिफार्म करीब करीब बची, सिवाय,… सही समझा


सबसे जबर्दस्त लग रहा था उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज़ पे ठीक उसके उरोज पे, उभरती हुई चूची पे किसी ने लगता है निशाना लगाकर रंग भरा गुब्बारा फेंका था। फच्चाक।

और एकदम सही लगा था,… साइड से। लाल गुलाबी रंग। और चारों ओर फैले छींटे। सफ़ेद ब्लाउज यूनिफार्म का एकदम गीला, जुबना से चपका, उभार न सिर्फ साफ़ साफ़ झलक रहे थे बल्कि उस नौवीं वाली के उभार का कटाव, कड़ापन, साइज सब खुल के, मैं उसे दुआ दे रहा था जिसने इतना तक के गुब्बारा मारा था



गुड्डी की निगाह भी वहीं थी।

“ये किसने किया?” हँसकर उसने पूछा। आखीरकार, वो भी तो उसी स्कूल की थी।

“और कौन करेगा?” गुंजा बोली।

“रजउ…” गुड्डी बोली और वो दोनों साथ-साथ हँसने लगी।

पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है। हर लड़की को देखकर बस ये पूछता है- “का हो रज्जउ। देबू की ना। देबू देबू की चलबू थाना में…” और लड़कियों ने उसका नाम रजउ रख दिया है। छोटा मोटा गुंडा भी है। इसलिए कोई उसके मुँह नहीं लगता।

“हे टाइटिल क्या मिली?” गुड्डी ने पूछा।

“धत्त बाद में…” उसकी निगाहे मेरी ओर थी।

“अरे जीजू से क्या शर्माना। दे ना तेरे लिए एक गुड न्यूज भी है चल…” गुड्डी बोली।

गुंजा ने टाइटिल वाला कागज अपने सीने के पास छिपाने की कोशिश की। और वही उसकी गलती हो गई। मैंने कागज तो छीना ही। साथ में जोबन मर्दन भी कर दिया।


“हमने माना हम पे साजन जोबनवा भरपूर है…”

मैंने सस्वर पाठ किया। सही तो है उसकी उठती चूचियों को देखते हुए मैंने कहा।

“बस साजन की जगह जीजा होना चाहिए…” गुड्डी ने टुकड़ा लगाया।

“जाइए मैं नहीं बोलती। लेकिन वैसे जीजू आप अच्छे हैं मेरे लिए रुके रहे, लेकिन वो गुड न्यूज क्या है…” गुंजा मुश्कुराकर बोली।


“वही तो तेरे जीजा इत्ते फिदा हो गए तेरे ऊपर की रंग पंचमी में हम लोगों के साथ ही रहेंगे और वो भी दो दिन पहले आ जायेंगे। है ना गुड न्यूज…” गुड्डी हँसकर बोली।

“अरे ये तो बहुत बहुत अच्छी मस्त न्यूज है। एकदम…” और गुंजा आकर मुझसे चिपट गई।

उसकी ठुड्डी उठाकर मैं बोला- “तो फिर कुछ मीठा हो जाए…”

“एकदम…” वो बोली और उसके होंठ सीधे मेरे होंठों पर।

और मैं सुबह की याद कर रहा था इस स्वॉट सेक्सी टीनेजर ने कैसे मुझसे प्रॉमिस करवाया था और मेरी उँगलियों को बदले में अपनी हवा मिठाई का स्वाद,



मैं गुंजा को प्रॉमिस कर रहा था, पक्का तेरा वेट करूँगा, तेरे स्कूल से तेरे आने के बाद ही, तुझसे होली खेल के ही जाऊँगा , श्योर कसम से

लेकिन गूंजा हड़काते हुए बोली,

" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "

और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,

मेरे दोनों हाथों में गोल गोल हवा मिठाई,


मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।

" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।

मैं बोला ,

" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,

" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "

और गुंजा भी, गुड्डी से भी चार हाथ आगे, मुड़ी और मेरे होंठों पर पहले होंठ रखे फिर बोली,
" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "



जितने जोर से मैं उसे नहीं चूम रहा था उससे ज्यादा जोर से वो मेरे होंठ चूस रही, अपने भीगे गीले झलकते उभार मेरे खुले सीने पे वो टीनेजर रगड़ रही थी,

गुड्डी दूर खड़ी देख रही थी, मुश्कुरा रही थी। मानो कह रही हो, देख लो तुम कह रहे थे ना। बच्ची है। कोई बच्ची वच्ची नहीं है। तुम्हीं बुद्धू हो।

और गुड्डी की बात की ताईद गुंजा के नव अंकुरित उभारकर रहे थे जो मेरे सीने में दब रहे थे। मैंने गुंजा को और कसकर भींच लीया और मैंने भी पहले तो उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसा और फिर उसके गाल पे भी एक छोटा सा किस किया और उसके फूले फूले गालों को मुँह में भरकर हल्के से काट लिया।

उईई वो चीखी। कुछ दर्द से कुछ अदा से। फिर गुड्डी को देखकर बोली-

“देख दीदी जीजू ने काट लिया। कटखने…”

गुड्डी उसे देखती मुश्कुराती रही और बोली- “तुम सबसे छोटी साली हो, तुम जानो ये जाने। बिचारे तुम्हारे आने का इंतेजार कर रहे थे तो कुछ तो…”

तभी गुड्डी को कुछ याद आया, बोली,

" हे माना यूनिफार्म पे रंग नहीं है लेकिन अंदर, ...?"

शरारत से आँखे नचा के वो मेरी वाली बोली, आखिर वो भी तो उसी स्कूल में पढ़ती थी, बस गुंजा से दो ही क्लास आगे

' कमीनी सब छोड़तीं और वो शाजिया,... " खिलखिलाते हुए गुंजा बोली,

"दिखाओ दिखाओ दिखाओ,... "

मैं गुंजा को गुदगुदी लगाने लगा, लेकिन गुड्डी ने मुझे इशारा किया, सुबह से बनारस की होली खेल के मैं पक्का हो गया था, होली में कुछ भी चलता है और अगर दो एक ओर हों तो, बस पीछे से मैंने उस चंचल रंगी पुती किशोरी की नरम नरम कलाइयां कस के दबोच ली,

और गुड्डी ने आराम से धीरे धीरे, उस का स्कूल का सफ़ेद टॉप उतार के छत के एक कोने में फेंक दिया।

मैं तो पीछे से गुंजा की कलाई पकडे थे लेकिन पीठ पे ही जितना रंग लगा था उसी से मैं चौंक गया, जबरदस्त होली हुयी थी गुंजा की क्लास में।


" हे ये किसके निशान हैं ?" गुड्डी ने सामने से पूछा और गुंजा खिलखिलाती रही, पर गुड्डी बिना मुझे हड़काये कैसे रह सकती थी, तो बोली,

" छोटी स्साली से खाली होली खेलने का शौक है, पूछा नहीं कुछ खाया की नहीं, भूखी तो नहीं है " और गुंजा से बोली,


" बहुत जीजा जीजा करती हो न, देख लो अपने जीजा को, ....चलो मैं लाती हूँ"

चलने के पहले गुंजा को गुड्डी ने हल्का सा धक्का दिया और गुंजा मेरे ऊपर, और मैं नीच।


हम दोनों चौखट के पास बैठे, गुंजा, मेरी साली मेरी गोद में,

और तब मैंने देखा उसकी सहेलियों की बदमाशी, इतना तो मुझे भी अंदाज था मौका पाके लड़कियां टॉप के ऊपर से कभी दबा देती हैं या टॉप की एक दो बटन खोल के ऊपर से अबीर, गुलाल,

लेकिन गुंजा के उभार एक तो वैसे ही जबरदस्त, ऊपर से लाल, काही, नीला, कई कोट रंग अच्छी तरह से उसकी सहेलियों ने रगड़ा पर सबसे मजेदार बात थी


उसकी किसी सहेली के दोनों हाथ के निशान, लगता है गोल्डन पेण्ट दोनों हाथ में लगा के, हथेली फैला के, दोनों उभारों पे पांच पांच उँगलियाँ, जैसे कोई कस कस के उसकी उभरती चूँचीयो पे ,


सुबह स्कूल जाने के पहले इसी टॉप के अंदर छुप छुप के मेरी उँगलियों ने खूब छुआ छुववल खेली थी, हल्के से भी भी दबाया था और कस के रगड़ा भी था,

लेकिन अब एकदम सामने, मैंने गुंजा की कमर को दोनों हाथों से पकड़ रखा था

लेकिन गुंजा, गुंजा थी, गुड्डी की असली छोटी बहन, खुद खींच के उसने मेरे दोनों हाथ अपने रसीले मस्त मस्त किशोर उभारों पर रख के दबा दिए, फिर मैं क्यों छोड़ता, अगर कोई साली खुद अपने हाथ से मीठा मीठा मालपूआ अपने जीजा को खिलाये तो कौन जीजा छोड़ सकता है,

लेकिन, गुंजा के कान पे हलकी सी चुम्मी लेते हुए मैं बोला, " सुन यार, मैं तो पहले से ही टॉपलेस था, सिर्फ छोटी सी तौलिया, और तू भी टॉपलेस हो गयी तो क्या "

गुंजा को जो मैंने और गुड्डी ने मिल के उसके दूनो जुबना को आजाद कर दिया था, उसपे कोई एतराज नहीं था, हाँ मेरे टॉवेल पे शायद था।

उसने अपने छोटे छोटे चूतड़ जरा सा रगड़ा और मेरे जंगबहादुर एक बार फिर से फनफना के तौलिये से बाहर निकल आये, हल्की सी तो गाँठ थी, वो भी ढीली पड़ गयी। मेरी छोटी स्साली उन्ह कर के जरा सा उठी और फिर बैठ गयी, इसी में उसका स्कर्ट पीछे से कमर तक उठ गया और

मेरे मूसल राज की किस्मत खुल गयी। नीचे भी कोई ढक्कन नहीं था। मेरे पहलवान की गुंजा की सहेली से मुलाकात हो गयी।

मुझसे पहले वो खुद हलके हलके अपनी कमर आगे पीछे करने लगी, मोटा खुला सुपाड़ा, आप ही सोचिये किसी गोरी बारी उमरिया वाली दर्जा नौ वाली की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ा जाएगा तो क्या हालत होगी, और साथ में मेरे हाथ भी, साली के जोबन मुट्ठी में होंगे तो रस लेने को कौन जीजा छोड़ देगा, ऊपर से मेरी गुड्डी ने बोल ही दिया की पहली बात गुंजा छोटी नहीं है और दूसरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती, साली होती है। और उभार मेरी साली के सच में गुड्डी से थोड़े ही छोटे होंगे, ३० ++,... कम से कम,

तभी तो उसे टाइटल मिली, हम ने माना हम पर साजन जोबनवा भरपूर है,

वो मिडल ऑफ टीन वाली टीनेजर, सिसक रही थी, मेरे गाल पे अपना गाल रगड़ रही थी,

उसके दोनों हाथ मेरे हाथों को हलके हलके दबा रहे थे जिनमे गुंजा के रसकलश थे, जाँघे गुंजा की हल्के फ़ैल रही थी और कमर भी हिल रही थी। और मेरे लिंगराज भी इतनी लिफ्ट पाके हलके हलके ठीक दोनों दोनों फांको के बीच धक्के लगा रहे थे,

मुझे पता था की इस किशोरी की अब क्या चाहिए था, स्कूल की लड़कियों के साथ होली ने इसे एकदम गर्मा दिया था।

और तभी गुड्डी आ गयी, बियर की बोतले और एक प्लेट में वही भांग वाली गुझिया, बियर मैंने उस शोख टीनेजर अपनी साली की ओर बढ़ाई, तो उसने हलके से बोली , मैंने कभी पहले नहीं पी, बुदबुदा के बोली, और मैंने मुंह में लगा के एक तिहाई बियर खुद, तबतक गुड्डी उसे हड़काते बोली

" अरे कैसी साली हो, जो जीजा को मना करती हो, अरे जो चीज पहले कभी नहीं घोंटी वही तो जीजा घोटात्ते हैं "


" तो घोटाये न मैं कब मना कर रही हूँ, देखिये दीदी, आप भी अब अपने वाले की ओर से बोल रही हैं, पहली बात तो मैं उन सालियों में नहीं जो मना करती हैं , मेरी तो एडवांस में हाँ हर चीज के लिए। लेकिन उससे बड़ी दूसरी बात, वो जीजा कौन जो साली के मना करने पे मान पे जाए, जबरदस्ती न, "

खिलखिलाती मेरी छोटी साली बोली,

" स्साली पूरा बोल न,... जबरदस्ती न पेल दे "

हंसती हुयी गुड्डी बोली और कस के एक धौल गुंजा की पीठ पे

और मैंने गुंजा का सर कस के अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुंह में अपना मुंह चिपका के, मेरे मुंह की सारी बियर अब उस कच्ची काली के मुंह में और वो गट गट कर के पी गयी और मेरे हाथ से बियर की बोतल ले एक बार और,

कस के सुड़क गयी,
“हमने माना हम पे साजन जोबनवा भरपूर है…”
ये तो महिमा यारों की इमे गुंजा का क्या कसूर है...

ये तो कंप्लीट नया है...
नए लोग.. नया रंग ढंग ..
नई कलाबाजी... नई शरारतें....
उफ्फ... तौबा तौबा...
 

motaalund

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स्कूल में होली

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" हे तेरे स्कूल में होली जबरदस्त हुयी " मैंने कस के दोनों उभारों को मसलते हुए पूछा, जहाँ उसकी सहेलियों ने जम के रंग लगाया था।


गुंजा जोर से खिलखिलाई और गुड्डी की ओर इशारा करते बोली,

" अपनी दिलजनिया से पूछिए न, वो भी तो उसी स्कूल में हैं और दो दिन पहले जब ११ वी की छुट्टी हुयी तो क्या मस्ती काटी इनलोगो ने "

गुड्डी ने गुझिया मुझे खिलाते हुए गुंजा को बनावटी गुस्से से हड़काया, " हे ' अपनी ' का क्या मतलब, तू इनकी नहीं है कुछ क्या ?"

अपना हक़ जताते हुए मेरे खड़े खूंटे पे कस कस के अपने छोटे छोटे खुले चूतड़ गुंजा ने कस के रगड़ा, और बोली,


" एकदम हूँ, और साली का हक़ तो पहले होता है वो भी छोटी साली का, इसलिए तो मैं गोद में बैठी हूँ, क्यों जीजू "

और गुंजा ने कस के चुम्मी ली और अबकी गुंजा के मुंह से , उसके मुख रस के स्वाद के साथ बियर मेरे मुंह में।



और गुड्डी ने सुनाना शुरू किया लेकिन हंसी के मारे, वो बोली, एक तो हम दोनों के स्कुल का नाम ऐसे और फिर ही ही ही


बात गुंजा ने पूरी की और आगे होली के बदलते नियमो की बात भी



एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,

लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने अपने हाथ से बियर मुझे पिलाते हुए हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"

" तो चुदवा ले न , देख बेचारे इतनी दुर्गत सह के भी छोटी साली के लिए रुके थे "


गुड्डी ने मेरी ओर देखते हुए गुंजा को चढ़ाया,



गुंजा ने बड़े प्यार से मेरे गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बोली, मेरे जीजू चाहे जो करें और गुड्डी ने स्कूल की होली का किस्सा शुरू किया।


पहले रूल्स बहुत स्ट्रिक्ट थे, जब गुड्डी क्लास ८ में थी, होली एकदम मना थी, लेकिन लड़कियां कहाँ मानती थीं तो जबतक गुड्डी नौ में पहुंची तो अबीर गुलाल की होली परमिट हो गयी लेकिन क्लास में नहीं, और वो भी सिर्फ टीका लगा के,


" दी उसमें क्या मजा आता होगा, जबतक अंदर हाथ डाल के गुब्बारे न रगड़े जाएँ " गुंजा ने बियर की एक घूँट लेते हुए कहा।



गुड्डी उसे देख के मुस्करा रही थी, बोली,

" तू क्या सोचती है, मैं थी न। मैं घर से तो गुलाल ही ले गयी घर पे भी नोटिस आयी थी अगर कोई लड़की रंग लाते हुए पकड़ी गयी या उसके बैग में रंग मिला तो फाइन। लेकिन मैं भी, रस्ते में एक दूकान से पूरे ढाई सौ ग्राम पक्का लाल रंग , ये बोल के की दुपटा रंगना है, और उसी गुलाल में मिला दिया और गुलाल का पैकेट फिर से बंद। स्कूल में भी सब के बैग चेक हुए दो चार के बैग में रंग पकड़ा गया तो वहीँ सब के सामने कान पकड़ के,... और सब पैकेट जब्त। "

फिर मैंने हुंकारी भरते हुए गुड्डी की ओर तारीफ़ की नजर से देखा और गुंजा ने अपने हाथ की बियर की बॉटल से मुझे बियर पिलाया।

असल में बियर पिलाने का कभी अपने मुंह से कभी बियर की बॉटल से गुंजा कर रही थी और भांग वाली गुझिया खिलाने का काम गुड्डी

मेरी तो मज़बूरी थी, दोनों हाथ फंसे थे, बिजी थे, उस सेक्सी किशोरी के उभरते हुए उभारों को मसलने रगड़ने में

और गुड्डी ने जब वो गुंजा की क्लास में थी उस समय की होली का किस्सा आगे बढ़ाया,



गुड्डी बोली,

" तो मेरा और मेरी और छह साथ सहेलियों के पास ' असली गुलाल ' वाला पैकेट था, फिर तो वही पक्का रंग मिला गुलाल, जबतक कोई टीचर देखती तो बस माथे पे और बहुत हुआ तो गाल पे, और टीचर भी तो कभी हम लोगो की तरह थीं तो जहां वो निकलीं,...


बस दो लड़कियां पीछे से हाथ पकड़ती और मैं यूनिफार्म वाले ब्लाउज के खोल के सीधे कबूतरों पे वो वाला गुलाल, और आराम से सहलाना मसलना और साथ में गरियाना भी,

"स्साली जाके अपने भाइयों से चूँची मिजवाओगी, रगड़वाओगी और हम लोगो से मसलवाने में शर्म आ रही है "




" दी एकदम सही कह रही हैं मेरी क्लास में भी करीब आधे से ज्यादा तो अपने भाइयों के साथ ही, ....दो चार तो सगे,रोज घपाघप करवाती हैं, बिना नागा और,... अगले दिन हम लोगो को जलाती हैं। ""


गुंजा मुझे बियर पिलाते बोली।

" लेकिन तब भी तो सूखा रंग ही रहा न, झाड़ झुड़ के " मेरे समझ में अभी गुड्डी की पूरी प्लानिंग नहीं आयी तो मैंने पूछ लिया।



" अरे तो फिर रंगरेज के यहाँ से दुपट्टे रंगने वाले रंग लेने का फायदा क्या, "

गुड्डी मुझे घूरते बोली, फिर उसने राज खोला,

उसकी और सहेलियों ने , कुछ ने रुमाल तो कुछ ने दुप्पट्टे ही स्कूल से निकलने के पहले गीले कर लिए थे और फिर निकलते समय फिर वही, एक ने पीछे से दोनों कलाई पकड़ी और गीली रुमाल या गीले दुपट्टे से तो टॉप के अंदर डाल के निचोड़ दिया, सूखा रंग गीला हो गया, और उसके बाद रगड़ रगड़ के फिर से दोनों गुब्बारे,




ज्यादातर लड़कियां जब हफ्ते भर की होली की छुट्टी के बाद लौटी तब भी उनके रंग पूरी तरह नहीं छूटे थे।



मान गया गुड्डी को मैं,


हम तीनो खूब हँसे, और गुंजा ने जोड़ा,

"तभी दीदी,… पिछले साल से जब आप दसवीं में थी, मुझे याद है , रंग परमिट हो गया था आखिरी दिन लेकिन बस अब दो कंडीशन है, यूनिफार्म पे रंग नहीं पड़ना चाहिए और क्लास में होली नहीं होगी, बाकी कुछ भी कर लो। अब तो आखिरी पीरियड में टीचर सब हर क्लास की, बस अटेंडेंस लेके चली जाती हैं टीचर रूम में और घंटे भर हम लोगों की मस्ती, और आज तो मस्ती हुयी, ....इंटरवल के बाद ही हम लोगो की टीचर चली गयी, बस दो घण्टे,"



"और ये किसने किया,"... गुड्डी ने एक भांग वाली गुझिया को सीधे गुंजा के मुंह में डालते हुए पूछा, "

गुड्डी का इशारा गुंजा के दोनों उभारों पर उँगलियों के निशानों पर था,

" और कौन करेगा, " गुझिया खाते हुए गुंजा बोली और फिर जोड़ा,

' वही शाजिया,




और अकेले पार तो पा नहीं सकती मुझसे तो वो कमीनी छिनार महक, उसने मेरे दोनों हाथ पीछे से पकड़ के अपने दुपट्टे से बाँध दिया और शाजिया ने गोल्डन पेण्ट अपने हाथ में लगा के, पूरे पांच मिनट तक दबाती रही, और बोली, यार तेरे जोबन इत्ते जबरदस्त हैं, जो भी तेरा यार होगा कम से कम मेरा इसी बहाने नाम पूछेगा "



" सच में दोनों बहने होली में एकदम पागल हो जाती हैं " मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो गुड्डी ने मैं कुछ बोलूं, उसके पहले एक बियर की बोतल खोल के मेरे मुंह में, और बोलना शुरू कर दी,


" नादिया, ...नादिया है शाजिया की बड़ी बहन, मेरी अच्छी दोस्त है। वो और श्वेता, होली में ऐसे दोनों बौरातीं हैं, लड़कियां तो छोड़, लड़के भी उन दोनों से पनाह मानते हैं, श्वेता से तो कल वीडियो काल पे मिले थे, छुटकी के साथ,... "


और मैंने एक फैसला कर लिया।


गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहनों का तो कानपुर से होली के बाद लौटने का रिजर्वेशन तो कराना ही है , श्वेता का एकदम पक्का, उसने गुड्डी की दोनों बहनों के साथ होली आफ्टर होली में मेरा बटवारा कर लिया था, सर से कमर तक छुटकी के हिस्से, घुटने के नीचे दोनों पैर मंझली के हवाले और कमर से लेकर घुटने तक श्वेता के कब्जे में।

और गुझिया ख़तम कर के गुंजा ने अपने क्लास की होली की हाल बतानी शुरू की, लेकिन उसके पहले गुड्डी ने पूछ लिया और गाने में कौन जीता, और ये बात भी मेरे समझ में नहीं
आयी।
ओहो.. चूड़ा देवी विद्यालय... शॉर्ट में (चु. दे. विद्यालय)...

लेकिन ये शॉर्ट फॉर्म भी कई बार कमाल कर जाता है...
जैसे चुनावों के समय किसी उम्मीदवार का चू.चि.(चुनाव चिन्ह) जरुरी है...
 
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