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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
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motaalund

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एकदम सही कहा आपने नयी नयी सुहागिन का सिंगार पूरा करा रही हैं रीत और गुड्डी और साथ में मनिहारिन जैसे छेड़ती हैं, मजेदार बातें करती हैं, एकदम वही
चूड़ी पहनाने वाली.. नोह टूंगने वाली(नाखून काटने जो गाँवों में आती थी)..
अपनी रस भरी बातों से मजमे को ठहाका लगाने को मजबूर कर देती थी...
 

motaalund

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लगभग एक दशक और कहानी का नवीकरण..
कोई भी दर्जी पुराने कपड़े को छोटा बड़ा करने या कुछ चेंज करने के बजाय नए कपड़े पर काम करना आसान समझता है..
लेकिन आपकी हिम्मत को सलाम...
क्या ही खूब घटनाओं और किरदारों के बीच समन्वय किया है...
नई पात्र श्वेता... छुटकी भी अपने अलग रंग में..
संध्या भाभी के किरदार में इजाफा ..
गुंजा... चंदा भाभी.. दूबे भाभी.. और सबसे बढ़कर गुड्डी...
और रीत तो एवरग्रीन है हीं..
आनंद बाबू का तो जैसे द्रौपदी की चीरहरण हीं हो रहा है... और कृष्ण की तरह दूबे भाभी ने आनंद बाबू को बचा लिया..
हर पात्र अपनी एक अलग छाप छोड़ रहा है...
आपके लिखने की शैली और विविधता साथ में संवादों में हास्य व्यंग्य..
होंठों पर बरबस मुस्कान ले आती है...
और होली के सीन तो जैसे ऊपर से नीचे तक सराबोर कर जाते हैं...
जोगीड़ा... कबीरा.. तो होली का एक अलग हीं समां बना लेते हैं...
साथ में लोकगीत और फिल्मी गानों का सम्मिश्रण ..
छवियों को आँखों के रास्ते दिल में उतार देता है...

और क्या कहूं .. इतना लिखने में हीं एक घंटे से ऊपर लग गया...
तो आपको इतनी बड़ी कहानी के हर सीन को सोचने और फिर लिखने में कितना समय और मेहनत लगता होगा...
और ऊपर से सीन के मुताबिक पिक्चर और GIF खोजना भी कम दुष्कर कार्य नहीं है...
ये तो स्वतः सोचने वाली बात है.. कि आपके इस प्रयास के लिए जितनी भी सराहना करें कम है...
लेकिन शायद आपके कहानी के अनुसार बराबरी करने वाले कमेंट्स लिखने की क्षमता सबमे नहीं है...

यही दिल से कामना है कि आप लिखती रहें और हम अनवरत पढ़ते रहें.

आपका आभार और धन्यवाद.
एकदम सटीक बातें लिखी हैं...
समय समय पर दर्शन देते रहें...
 

motaalund

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एकदम होगा और धूम धड़ाके से होगा, गुड्डी के राज में देर है अंधेर नहीं

संध्या भाभी के साथ भी न्याय होगा बस अगले एक दो पोस्ट में
लेकिन ऊपर तो आपने लिखा कि अगला अपडेट गुंजा पर बेस्ड होगा..
और वो भी जो अब तक उपलब्ध नहीं था...
 

motaalund

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इस खुली छत पे एकदम खुली होली का असली मकसद तो यही था

आनंद बाबू झिझक छोड़ के आनंद लेने लगें
होली तो खुल के हुई..
लेकिन कुछ और खुलने से रह गया...
 

motaalund

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वो भी चलेगी लेकिन छत पर और सबके सामने तो हो नहीं सकता था तो जब आनंद बाबू और संध्या भाभी अकेले हों और आधे घंटे, घंटे का टाइम हो, बस अगली एक दो पोस्टो में
टाईम तो दोनों को मिलकर निकालना पड़ेगा....
 
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