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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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कन्डोम
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एक दुकान पे तो हद हो गई।

पहले उसने अपनी लिस्ट से वैसलीन की दो शीशी खरीदी, फिर मुझसे कहने लगी कि दो पैकेट कन्डोम के ले लो, दरजन वाले पैकेट लेना।

लेकिन मैं हिचक रहा था। एक तो दुकान पे सारी लड़कियां शापिंग कर रही थी और दूसरे एक को छोड़कर बाकी सारी सेल्सगर्ल्स थीं।

“क्यों कल तुमने आई-पिल खरीदी तो थी, इश्तेमाल के बाद वाली। वो क्या करोगी? और फिर तुमने तो प्रापर पिल भी ली है…”

फुसफुसाते हुये मैंने गुड्डी से कहा।



वहीं दुकान पे मेरे कान पकड़ती हुई वो बोली-

“तुमको मैं ऐसे ही बुद्धू नहीं कहती। अरे मैं तुम चाहोगे तो भी नहीं लगाने दूंगी। जब तक चमड़े से चमड़ा ना रगड़े। क्या मजा? मेरा तो छोड़ो, तुम्हारे उस माल से भी। लेकिन इश्तेमाल के बारे में बाद में सोचना। पहले जो कह रही हूँ वो करो…”

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मरता क्या ना करता, मैं काउंटर पे गया।

एक सेल्सगर्ल थी, थोड़ी डस्की, लेकिन बहुत ही तीखे नाक नक्श, गाढ़ी लिपस्टिक, हल्का सा काजल, उभार टाइट टाप में छलक रहे थे, कम से कम 34सी रहे होंगे, टाप और लांग स्कर्ट।

“व्हाट कैन आई डू फार यू…” टाईट टाप में बोली।

मैं पहले तो थोड़ा हकलाया, फिर अपने सारे अंग्रेजी नालेज का इश्तेमाल करके हिम्मत करके बोला- “आई वांट सम सम,… सम,… कन्ट्रासेप्टिव…”

“ओके। देयर आर मेनी टाईप्स आफ कन्ट्रसेप्टिव्स। पिल्स, जेली, एन्ड सो मेनी टाइप्स वी हैव। आपको क्या चाहिये?” डार्क लिपस्टिक बोली।
“जी,… जी। वो। उधर जो रखा है…” मैंने उंगली से रैक में रखे कन्डोम्स के पैकेट की ओर इशारा किया।

मैंने हकलाते हुए बोला, मेरी हालत खराब हो रही थी कभी उस लड़की को देखता तो कभी गुड्डी को, जिसे एकदम कुछ फरक नहीं पड़ रहा था। वो दूकान पर रखे बाकी सामान को ऐसे देख रही थी, जैसे मुझे जानती तक न हो। मैं बस यही मना रहा था की और कोई न आ जाये दूकान पे।

वो वहां गई और उस काउंटर के पास खड़ी होकर, एक बार मुझे देखा और कन्डोम के पैकेट के ठीक ऊपर एक स्प्रे रखा था उसे उठा लायी और मुझसे बोली-

“यू वांट दिस। ये बहुत अच्छा है। नाईस च्वाय्स। इट विल डिले बाई ऐट-लीस्ट सेवेन-एट मिनटस मोर। दो सौ अड्सठ रूपये…”

और मेरे हाथ में पकड़ा दिया।

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पीछे से गुड्डी मुझे कोन्च रही थी- “अरे साफ-साफ बोलो ना। कन्डोम…”

टाईट टाप अभी भी मेरे सामने खड़ी थी।



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मेरे अगल-बगल खड़ी लड़कियां मुँह दबाकर मुश्कुरा रही थी। मैं झेंप रहा था। लेकिन अब उसे मना कैसे करता, उस स्प्रे को मैंने पकड़ लिया, नाम पढ़ा और ध्यान से देखा जैसे किसी एक्सपर्ट की तरह एक्सपाइरी डेट और कम्पोजिशन देख रहा हूँ, बस मन कर रहा था गुड्डी उसे पे करे और हम लोग निकल लें।
काउंटर वाली बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी.
टाईट टाप ने फिर पूछा- “कुछ और। ऐनीथिंग मोर?”

“यस। यस सेम रेक, जस्ट बिलो…”

वो फिर वहीं जाकर खड़ी हो गई- “हाँ बोलिये। क्या?”

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बड़ी हिम्मत जुटाकर मैं बहुत धीमे से बोला- “कन्डोम। कन्डोम…”

“कांट लिसेन। थोड़ा जोर से…” वो बोली।

पीछे से गुड्डी ने घुड़का- “अरे जोर से बोल ना यार…” तब तक दो-चार स्कूल की लड़कियां और आकर दुकान में खड़ी हो गई थी।

अब मेरी हालत और खराब हो गयी, कैसे उन लड़कियों के सामने बोलूं। क्या सोचेंगी सब, ये गुड्डी भी न, जबरदस्ती , मेरा तो बस चलता मैं दूकान से निकल जाता लेकिन गुड्डी जिस तरह देख रही थी, वो भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी।

उधर वो टाइट टॉप मेरी हालत समझ के जहाँ कंडोम रखे थे, वहीँ खड़ी थी, उसकी निगाहें मुझे चिढ़ा रही थी, कभी मुझे देखती कभी गुड्डी को।

वो स्कूल की लड़कियां भी हम सब को देख रही थीं।
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“कन्डोम। आई मीन कन्डोम। कन्डोम…” हिम्मत जुटाकर थोड़ा जोर से मैं बोला।

“यस आई नो व्हाट यू मीन…” वो मुश्कुराकर बोली।

एक-दो और सेल्सगर्ल उसके बगल में आकर खड़ी हो गई थी-

“लेकिन कैसा। डाटेड, या एक्स्ट्रा लुब्रिकेटेड, या अल्ट्रा थिन। फ्लेवर्ड भी हैं स्ट्राबेरी, बनाना…”

अब वह टाइट टॉप मेरी मज़बूरी समझ के और खिंचाई कर रही थी।

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मैंने कभी नहीं सोचा था की कंडोम ऐसी चीजे में भी इतनी कॉम्प्लिकेशन, तबतक मजे ले के जैसे उस टाइट टॉप के बगल की दूसरी काउंटर गर्ल ने पूछा और साइज



अब मेरी हालत और खराब हो गयी, मतलब किस चीज की साइज,... लेकिन टाइट टॉप वाली ने मामला साफ़ किया

मतलब पैकेट में कितने ३ या ५ या एक दर्जन

मुसीबत में मुझे बचाने और कौन आता, गुड्डी। तो बस वो आगे आ गयी।

लेकिन बिना मुझे बोलने का मौका दिये अब गुड्डी सामने आ गई और बोली- “दो लार्ज पैकेट, डाटेड, अल्ट्रा थिन…”

उसने निकालकर दे दिये लेकिन फिर मुझसे बोली- “मेरी ऐड़वाइस है। वी हैव सम विद ईडिबिल फ्लेवर्स। इम्पोर्टेड हैं, अभी-अभी आये हैं…”



मैं उसको मना नहीं कर सकता था या शायद मेरा मन कर रहाथा या बस मैं किसी तरह दुकान से निकलना चाहता था- “हाँ…” झटके से मैंने बोल दिया।

“एक और चीज है हमारे पास। सुडौल। फोर यंग ग्रोइंग गर्ल्स। बहुत बढ़िया और शेपली डेवलपमेंट होता है। इसमें एक होली आफर भी है। ब्रेस्ट मसाजर है 80% डिस्काउंट पे, साथ में। हफ्ते भर में वन कैन फील द डिफरेन्स…”

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स्कूल की लड़कियां जो आई थी उनमें से एक वही खरीद रही थी।

“ठीक है। ओके…” मैं बोला।

गुड्डी ने उसे कार्ड पकड़ा दिया।


सब सामान लेकर जब हम बाहर आये तो गुड्डी हँसते हुये दुहरी हो रही थी। वो रुकती, फिर खिलखिलाने लगती- “कन्डोम बोल तो पा नहीं रहे थे। करोगे क्या? तुम भी ना यार। और वो। तुमको पूरी दुकान बेच देती लेकिन तुम कन्डोम नहीं बोल पाते…”

और कस के उसने मेरी पीठ पे एक मुक्का मारा।


बिना उसके बोले मैं अगली मेडिकल की एक दूकान में घुस गया और मूव की एक बड़ी ट्यूब,



लेकिन मेरी किश्मत,… एक और दुकान दिख गई और वो उसमें घुस गई।

जब वो निकली तो फिर एक बैग मेरे हाथ में, मेरी पूछने की हिम्मत नहीं थी कि इसमें क्या है? 11 बैग मैं उठाये हुये था।

“अगर तुम कहो तो। अब हम लोग रिक्शा कर लें। और कुछ तो नहीं…” मैंने थककर पूछा।



“नहीं,,,,, अभी याद नहीं आ रहा है…” लिस्ट चेक करते हुये वो बोली- “और फिर याद आ जायेगा तो तुम्हारे मायके जाने के पहले एक राउंड और कर लेंगे…”

खैर, हम रिक्शे पे बैठ गये और रेस्टहाउस के लिये चल दिये।
Mayeke jaane se pehle ek or round kr lenge. Abhi to is line ka matlab guddi ke liye dubara market jaane se hai ek do din bad 1 or round ka naya mtlb guddi samajh jayegi
 

komaalrani

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Mayeke jaane se pehle ek or round kr lenge. Abhi to is line ka matlab guddi ke liye dubara market jaane se hai ek do din bad 1 or round ka naya mtlb guddi samajh jayegi
Thanks, Guddi to smajhdaar hai hi vo ab Aaanad Babu ko Samjahdar bana rahi hai thanks for reading, enjoying and sharing your comment. Next post too has been posted . Please read and share your views
 

Sutradhar

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फागुन के दिन चार भाग २५ पृष्ठ ३०८

एक मेगा अपडेट पोस्टेड

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कोमल मैम

अत्यंत रोमांचकारी और लोमहर्षक अपडेट।

स्ट्रीट फाइट का जीवंत विवरण और गुड्डी की जीवटता।

आपकी लेखनी धन्य है।

सादर
 

Premkumar65

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सिद्दीकी
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थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-

“कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं,... कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”

इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं।

फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।



वार्ता जारी थी-

“नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं मेरा मतलब,.... अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी,... सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा,... जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी,... उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब,.... अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं,... कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा…”

फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया-

“साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं…”

थानेदार- “जी हाँ एकदम दुरुस्त…” और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।



माहौल एकदम बदल गया।

जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-

“जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन…”


वो दोनों पोलिस वाले भी मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-

“माताजी। माताजी हम। पापी हैं हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे…”

फर्क चारों ओर पड़ गया था।

दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे।

‘छोटा चेतन’ जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।

यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।

छोटा चेतन उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?


--------------

तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।



क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।

सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।


खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।



एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।


सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-


“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।



सिद्दीकी-

“साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना…”

तब तक फिर फोन की घंटी बजी।

डी॰बी॰- “सिद्दीकी पहुँचा?”

मैंने बोला- “हाँ…”

डी॰बी॰- “उसको फोन दो ना…”


मैंने फोन पकड़ा दिया।

सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा। सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा।



सिद्दीकी- “जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, ....रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए,... उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही,... मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर…”

और उसने फोन मुझे पास कर दिया।



डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- “अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग…”


मैं- “मोबाइल। मतलब?” मेरी कुछ समझ में नहीं आया।

डी॰बी॰- “अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था…” वो बोले।

मैंने बताया की घर जा रहा हूँ बस पकड़ के तो वो फिर बोले

- “अरे खाना वाना खाकर घर जाते बस पकड़कर। लेकिन ये सब… “तो ठीक है सिद्दीकी जैसे निकले उसके बाद। हाँ ये बताने की जरूरत नहीं की किसी को बताना मत कुछ भी और तुम्हारे साथ वही है ना। जिसकी चिट्ठी आती थी?”



मैं- “हाँ वही। गुड्डी…”



डी॰बी॰- “अरे यार तुम लोग शाम को घर आते। खैर, लौटकर मिलवाना जरूर…”



मैंने फोन बंद किया।


सिद्दीकी अभी भी मुझे देख रहा था-

“साहेब बहुत दिन हो गए मुझे भी गुंडे बदमाश देखे साहब। लेकिन जो हाथ आपने लगाये हैं न। बस सुनते थे या। वो जो चीनी टाइप है हाँ जैकी चान उसकी पिक्चर में देखते थे। सब एकदम सही जगह पड़ा है। अभी से ये हालात है तो जब आप यहाँ आयेंगे तो क्या हाल होगा इन ससुरों का? कैडर तो आप का भी यूपी है ना?”

“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।



सिद्दीकी बोला-

“अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”

और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-

“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) बजर में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”



जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-

“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”



थाने के पोलिस वाले चले गए। तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।



गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।



“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।



“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…” आगे से ड्राइवर बोला।
Wowww Komal ji Superb post full of action and drama. I am fan of your versatility.
 

Rajizexy

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पलटा पासा

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दूसरे ने सेठजी का कंधा पकड़ा और कहने लगा-

“अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हें चाचा जी क्यों बोल रही थी? दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो?”

और जो आदमी गुड्डी को पकड़े हुए था…, उससे बोला-

“हे जरा साली की चूची दाब के तो बता। ये स्साली तो सेठजी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें-

“भैया हम लोगों को जाने दो। हम लोगों से कोई मतलब नहीं है बस। चले जा रहे हैं…”

बोलते गिड़गिड़ाते मैं नीचे झुका, जैसे मैं उनके पाँव पड़ने की की कोशिश कर रहा हूँ। और नीचे झुकते ही रंगों के डिब्बो के साथ-साथ एक खुले बरतन में लाल पिसी मिर्च का पाउडर और बगल में हल्दी का पाउडर।

झुके-झुके लाल पाउडर मैंने उठाया और तेजी से ऊपर उठाते हुए उसकी आँखों में पूरा का पूरा झोंक दिया।

जैसे ही वो सम्हलता, दूसरी मुट्ठी फिर।

अबकी आँख के साथ नाक और मुँह में। छींक से उसकी बुरी हालत हो गई।



तभी गुड्डी ने साथ-साथ, दूसरे आदमी के पैर में अपनी लम्बी तीखी हील भी पहले तो कसकर घुसा दी और फिर गोल-गोल घुमाने लगी। उसकी पकड़ ढीली हो गई और गुड्डी के दोनों हाथ छूट गए। गुड्डी ने उस आदमी के पेट में पूरी ताकत लगाकर अपनी कुहनी दे मारी।



बस वो मौका मिल गया जो मैं चाहता था।

दोनों से एक साथ निपटना असंभव था और दोनों के पास ही हथियार थे। चाकू, कट्टा या ऐसे कुछ भी।

गुड्डी को मैंने हल्का सा धक्का दिया और वो उस आदमी को लिए दिए सामान के ढेर के बीच जा गिरी।

जिसकी आँख में मैंने मिर्च झोंकी थी वो अब कुछ संभल रहा था।

आँखें खोलने की कोशिश करते हुए वो अपने साथी से बोला-

“पकड़ ले साली को। इस सेठ की लौंडिया को तो तीन दिन में छोड़ दिया था सिर्फ एक ओर से मजा लेकर। इसकी तो चूत का भोंसड़ा बना देंगे। और तुझे तो गाण्ड पसंद है न…”

मैं समझ रहा था ये सिर्फ बोल नहीं रहा है।

और हमारे पास सिर्फ एक रास्ता था, हमला।

मैंने जूते पूरी ताकत से उसके घुटने पे दे मारे और एक के बाद एक, चार बार वहीं। एक पैर उसका खतम हो गया।

लेकिन उसके गिरने से पहले ही मैंने एक हाथ से उसे पकड़ा और दूसरे हाथ से एक चाप सीधे उसके कान के नीचे और अब वो जो गिरा तो मैं समझ गया की कुछ देर की छुट्टी।



लेकिन मैं कनखियों से देख रहा था की दूसरा जिसे मैं गुड्डी के साथ धक्का देकर गिरा दिया था अब अपने पैरों पे खड़ा था और उसके हाथ की चेन हवा में लहरा रही थी और अगले ही पल ठीक मेरे ऊपर। अगर मैं झटके से बैठता नहीं। और बैठे-बैठे ही मैंने मेज जिस पर सामान रखा था उसकी ओर दे मारा।

लेकिन वो सम्हल गया और पीछे खिसक गया। चेन अभी भी उसके हाथ में लहरा रही थी। मैं चेन की रेंज से तो बाहर हो गया था, क्योंकि अब बीच में मेज और गिरा हुआ सामान था लेकिन मैं भी उसे पकड़ नहीं सकता था।



तब तक नीचे गिरे आदमी ने उठने की कोशिश की और मैंने बायां हाथ बढ़ाकर उसका दायां हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा। जैसे ही वो थोड़ा उठा, मेरे खाली हाथ ने एक चाप उसके दायें हाथ की कुहनी पे दे मारा और साथ ही में पैर उसके घुटने पे। मैं अपने निशाने के बारे में कांफिडेंट था की अब सारे कार्टिलेज घुटने और कुहनी के गए। और वो अब उठने के काबिल नहीं है।


दूसरा चेन वाला ज्यादा फुर्तीला और स्मार्ट था। मेज से बस वो आधे मिनट ही रुक पाया और घूमकर पीछे से उसने फिर चेन से मेरे ऊपर वार किया। मैं अब फँस गया। मेरे उन आर्म्ड कम्बैट के लेशन तब काम आते जब वो पास में आता और चेन से एक-दो बार से ज्यादा बचना मुश्किल था। वो एक बार अगर हिट कर देती तो। और फिर गुड्डी।



बचते हुए मैं दुकान के दूसरे हिस्से पे आ गया था, जहाँ इन्सेक्ट रिपेलेंट, मास्किटो रिपेलेंट ये सब रखे थे। और अब मैंने चेन वाले को पास आने दिया। वो भी समझदार था अब वो दूर से चेन नहीं घुमा रहा था। अपनी ताकत उसने बचा रखी थी और जब वो मेरे नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई।

लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकड़े काकरोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में।

एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गई और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़कर मोड़ दी जिसमें चेन थी। एक बार क्लाकवाइज और दुबारा एंटीक्लाक वाइज और वो लटक के झूल गई।



उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक मेरी उंगलियां सारी एक साथ उसके रिब केज पे। वो दर्द से झुककर दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे। साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे। जब तक वो सम्हलता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी।



“बचो…” गुड्डी जोर से चीखी।
Vaah didi ab fighting bhi story mein 👌👌👌
 

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चाक़ू और तीसरा आदमी


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और जब वो मेरे नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई।

लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकड़े काकरोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में।

एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गई और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़कर मोड़ दी जिसमें चेन थी। एक बार क्लाकवाइज और दुबारा एंटीक्लाक वाइज और वो लटक के झूल गई।



उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक मेरी उंगलियां सारी एक साथ उसके रिब केज पे। वो दर्द से झुककर दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे। साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे। जब तक वो सम्हलता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी।



“बचो…” गुड्डी जोर से चीखी।
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मैं उस तीसरे आदमी को भूल ही गया था।

अब तक वो चूहे बिल्ली की लड़ाई की तरह हम लोगों को देख रहा था। उसे पूरा कांफिडेंस था की उसके दोनों मोहरे मुझसे निपटने के लिए काफी थे, और वो अपना हाथ गन्दा नहीं करना चाहता था। दूसरा, आर्गेजेशन में वो अब मैंनेजमेंट पोजीशन में पहुँच चुका था लेकिन अब दूसरे बन्दे के गिरने के बाद उसके हाथ में चाकू था और तेजी से उसने मेरी ओर फेंका।
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निशाना उसका भयानक था।
मेरे बगल में हटने के बावजूद वो मेरी शर्ट फाड़ते हुए हल्के से बांह में लगा।



अगर गुड्डी ना बोली होती,.. तो सीधे गले में।



डेड लाक की हालत थी। उसने पलक झपकते जेब से रिवाल्वर निकाल लिया था और ये कोई कट्टा (देसी पिस्तोल) नहीं था की मैं रिस्क लूं की शायद ये फेल कर जाय।

उसने नहीं चलाया।


मैं पल भर सोचता रहा फिर मेरी चमकी।

दो बातें थी। एक तो उसके मोहरे को मैंने पकड़ लिया था और उस गुत्थमगुत्था में गोली किसे लगेगी ये तय नहीं हो सकता था। दूसरे दिन का समय था, चारों ओर बस्ती थी और गोली चलने की आवाज सुनकर कोई भी आ सकता था।

मैंने एक रिस्क लिया। उस चेन वाले मोहरे को आगे करके मैं बढ़ा। ये बोलते हुए-

“प्लीज गोली मत चलाना, मैं निहत्था हूँ। हम लोगों से कोई मतलब नहीं बस हम दोनों को निकल जाने दीजिये प्लीज। बाकी आपके और सेठजी के बीच है बस हम दोनों को…”

वो थोड़ा डिसट्रैक्ट हुआ लेकिन रिवालवर ताने रहा, और कहा-

“हे इसको छोड़ो पहले। फिर हाथ ऊपर…”

“बस-बस जी करता हूँ जी गोली नहीं जी…”

मैं गिड़गिड़ा रहा था।


उस चेन वाले के हाथ से मैंने चेन ले ली और मुट्ठी में लेकर चेन वाले मोहरे को उसकी ओर थोड़ा धक्का देकर छोड़ दिया। उसके घुटने और कुहनी तो जवाब दे ही चुके थे, वो धड़ाम से उसके सामने जा गिरा। मैंने हाथ ऊपर कर लिया था ये बोलते हुए की

"जी देखिये,.... मेरे हाथ ऊपर है,... प्लीज।"

जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा, उसका ध्यान बंट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था।

मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी।

रिवाल्वर छटक के दूर गिरी। मैंने पैरों से मारकर उसे गुड्डी की ओर फेंक दिया।



वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा।

इतना होने के बाद भी वो तुरंत बाक्सिंग के पोज में और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर। मैं बाक्सर न हूँ, न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्की पैर की एंड़ी ने दिया। सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर, और उसका बैलेंस बिगड़ गया। वो सीधे मेरे पैरों के सामने धड़ाम गिरा।



मैं जानता था,.... वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं।
Didi kya fighting scene dikhaya hai 🌟🌟🌟
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Rajiii
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फागुन के दिन चार भाग २५ पृष्ठ ३०८

एक मेगा अपडेट पोस्टेड

कृपया, पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
Very exciting ,thrilling & suspenseful
👌👌👌👌👌👌👌
💯💯💯💯💯💯
✔️✔️✔️✔️✔️
 

komaalrani

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" शठे शाठ्यम समाचरेत " - मतलब दुष्ट को उसी के भाषा मे समझाना चाहिए । जिस तरह पहले आनंद ने शहर के गुंडे शुक्ला और उसके दो पंटरों की धुलाई करी और उसके बाद बजाय मेहरबानी डी बी सर , पुलिस आफिसर सिद्दीकी साहब ने भ्रष पुलिसिए की इज्ज़त उतारी वह दुष्ट को उसी के जुबान मे जबाव देना था । वह शठे शाठ्यम समाचरेत निहितार्थ करता था ।

अपडेट के प्रारंभ मे आप ने जिस तरह ग्रासरी के दुकान और उसके आस-पास के परिवेश का वर्णन किया तब एक बार के लिए मुझे फिल्म ' शोले ' के होली वाला वह दृश्य याद आ गया जब गब्बर सिंह रामगढ़ गांव पर हमला करने वाला था । डाकुओं के आने से पहले कुछ कुछ ऐसी ही चहल-पहल उस वक्त गांव मे भी थी ।
यही नही जिस तरह अमिताभ बच्चन साहब ने रंग और अबीर- गुलाल डाकुओं के आंख मे झोंक कर पासा ही पलट दिया था ठीक वैसे ही आनंद ने इन गुंडों के आंखों मे लाल मिर्ची डालकर किया ।

आप ने पुलिस आफिसर सिद्दीकी साहब की तुलना अमिताभ बच्चन और सलमान खान से की जब की मेरा मानना है असल अमिताभ बच्चन तो आनंद साहब थे । अकेले ही तीन तीन हथियारबंद गुंडों को जमीन पर सुला दिया । फाइटिंग स्किल की बानगी पेश कर दी । यही नही एक हीरो की तरह अपनी हीरोइन की रक्षा भी करी । अपने पुलिस आफिसर दोस्त की मदद से इस शहर से गुंडों का आतंक समाप्त कर दिया ।

लेकिन दुख हुआ उस ग्रासरी के मालिक को देखकर । उनकी बेटी के साथ बहुत ही गलत हुआ था , इसका हमे बेहद ही अफसोस है लेकिन इसके बावजूद भी इन गुंडों का सामना करना तो दूर भीगी बिल्ली की तरह उनके कदमों पर बिछे बिछे पड़े हुए थे ।
अपने मान सम्मान , अपनी इज्ज़त से बढ़कर कुछ नही होता । गलत के खिलाफ मौन साध लेना बुजदिली की पहचान है , कायरतापूर्ण है ।

मर्द की पहचान बिस्तर पर नही होती । औरत के सामने डींग हांकने से नही होती । मर्द की पहचान आनंद साहब की तरह दिलेर और आत्मसम्मान के रक्षा करने से होती है । जरूरतमंद की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से होती है ।

यह अध्याय बहुत बहुत खुबसूरत था । इरोटिका लेखन की आप क्विन हो यह सर्वविदित है पर एक्शन सीन्स लिखने मे भी आप को महारत हासिल है , यह इस अपडेट ने सिद्ध कर दिया ।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट ।
मर्द की पहचान बिस्तर पर नही होती । औरत के सामने डींग हांकने से नही होती । मर्द की पहचान आनंद साहब की तरह दिलेर और आत्मसम्मान के रक्षा करने से होती है । जरूरतमंद की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से होती है ।

आपकी यह एक लाइन ही काफी है, इस पोस्ट के मूल तत्व को बताने के लिए।

मैंने पहले ही कहा था की इस कहानी में एक नया मोड़ आने वाला है और इस ऐक्शन सीन से कहानी की थीम और प्रकृति दोनों में बदलाव हुआ लेकिन सबसे अच्छी बात है की आप ऐसे समीक्षक जो कहानी की आत्मा तक पहुंच जाते हैं उनकी नज़रे इनायत इस कहानी पर है और इसलिए यह कहानी आगे बढ़ पा रही ही।

बस आभार और ये चाहत की इस कहानी के साथ आप साथ इस तरह बना रहे।
 
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