मेरे संग संग आया तेरी यादों का मेला...लगता है जब सब कुछ पीछे छूट गया है, तब भी बहुत कुछ साथ चला आता है, जुड़ा रहता है और बनारस तो बना रस है
और आनंद बाबू तो आज रात के लिए काफी रस बना कर रखे होंगे...
गुड्डी को सराबोर (अंदर बोर) करने के लिए...
मेरे संग संग आया तेरी यादों का मेला...लगता है जब सब कुछ पीछे छूट गया है, तब भी बहुत कुछ साथ चला आता है, जुड़ा रहता है और बनारस तो बना रस है
कहीं ठहराव... कहीं बदलाव...बनारस जितना बदलता है उतना वही रहता है और गलियों का सिर्फ भूगोल ही नहीं केमस्ट्री भी एकदम अलग होती है। और ऊपर से बनारस की गलियां, इसलिए मैंने लिखा की गुड्डी की बातों की तरह, न ओर न छोर और मन करता है कभी ख़त्म ही न हों
वैसे जोरू का गुलाम में अगला अपडेट छप गया है, जहाँ से कहानी मुड़ती है।
और इसे आपने बाखूबी पिरोया है...हर गली में, हर घर में किसी इंसान की कहानी है, कुछ दुःख की कुछ हर्ष की और इस भाग में वो बातें भी कहने की कोशिश की गयी जो आजकल कोई कहता नहीं और कहता भी है तो इंटर फेथ कहानियों में बदल जाती है जिसमे स्टीरियोटाइप्स होते हैं
और सहेलियों के अरमान जगा देगी...ननद भाभी के रिश्ते में जाति, धर्म, उम्र कुछ भी आड़े नहीं आती
ननद तो ननद, छेड़ी ही जाएगी
यही परस्पर संबंध हीं तो समरसता को बढ़ावा देती है...और समरसता का रस भी बरसाती हैं
यही बुद्धू बकाल थे...बुकिंग की बोहनी हो गयी लेकिन ननद की बोहनी तो वही करेगा, जिसकी किस्मत में कोरी टटकी ननद लिखी है
ननद का भैया
दोहरा फायदा...जो दिखता है वो बिकता है और अगर ननद को सरे बाजार बेचना है तो उसे ड्रेस भी ऐसी पहनानी होगी
और मार्केटिंग और सेल्स के साथ डिस्काउंट अलग
प्रति पांच दिनों में एक अपडेट...नवंबर के अपडेट
१ जोरू का गुलाम
भाग २३२ खेल खिलौने पृष्ठ १३८४ --४ नवंबर
भाग २३३ बारिश और मस्ती पृष्ठ १३९७ - २७ नवंबर २
२ छुटकी -होली दीदी की ससुराल में
भाग ९३ - नन्दोई सलहज और सास पृष्ठ ९६३ -- १० नवंबर
भाग ९४ मस्ती सास और सलहज के साथ पृष्ठ ९७१ ---२१ नवंबर
फागुन के दिन चार
भाग २२ -मस्ती संध्या भाभी संग - पृष्ठ २९१ - ३ नवंबर
भाग २३ गुड्डी बनारस की गलियां और शॉपिंग - पृष्ठ २९९ - १७ नवंबर
अगला भाग जल्द
गुड्डी जैसी वाचाल की अनवरत चलती बातें और आनंद बाबू ध्यान से सुनते....
एक प्रमुख चौराहा...गोदौलिया चौराहा, बनारस