धीरे धीरे रे मना..आप का साथ रहेगा तो
धीमे धीमे ही सही, यह कहानी भी छोटे छोटे पग धरते आगे बढ़ेगी अब देखिये कितने पन्ने, कितने व्यूज कितने कमेंट्स
धीरे सबकुछ होय...
धीरे धीरे रे मना..आप का साथ रहेगा तो
धीमे धीमे ही सही, यह कहानी भी छोटे छोटे पग धरते आगे बढ़ेगी अब देखिये कितने पन्ने, कितने व्यूज कितने कमेंट्स
और वही तीर सबको भेद रहा है...बात सही है तीर तो एक ही है।
True.. complex human emotions are adeptly described.कोमल जी,
आप की प्रतिक्रिया पढ़कर बहुत खुशी हुई। यह आपकी विनम्रता और सादगी का प्रतीक है।
सच कहूँ तो, आपकी कहानियों ने मुझे गहरे स्तर पर प्रेरित किया है.. छोटे शहरों का सटीक चित्रण, वहां के पात्रों की जीवंतता और उनके जीवन के जटिल पहलुओं को आपने जिस बारीकी से छुआ है, वह वाकई अप्रतिम है.. आपकी लेखनी में एक विशेष प्रकार की सच्चाई और सरलता है, जो पाठकों को अपने भीतर समेट लेती है.. और ईसी कारणवश, पाठक आपकी कहानियों से एक अकथित जुड़ाव भी महसूस करते है..
गुजारिश है, की आप हमेशा ऐसी ही सुंदर कहानियाँ लिखती रहें.. आपकी लेखनी, न सिर्फ मुझे, बल्कि औरों को भी प्रेरित करती है.. मैं आभारी हूँ कि मुझे आपकी रचनाएँ पढ़ने का अवसर मिला, और मैं आशा करता हूँ कि आप आगे भी इसी तरह की अनमोल रचनाएँ लिखती रहें, जो हमें जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं को अधिक गहराई से समझने का अवसर दें
आपका लेखन निरंतर समृद्ध हो, इसी शुभकामना के साथ
सादर,
वखारिया
जरूरत पड़ने पर सख्त..मर्द की पहचान बिस्तर पर नही होती । औरत के सामने डींग हांकने से नही होती । मर्द की पहचान आनंद साहब की तरह दिलेर और आत्मसम्मान के रक्षा करने से होती है । जरूरतमंद की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से होती है ।
आपकी यह एक लाइन ही काफी है, इस पोस्ट के मूल तत्व को बताने के लिए।
मैंने पहले ही कहा था की इस कहानी में एक नया मोड़ आने वाला है और इस ऐक्शन सीन से कहानी की थीम और प्रकृति दोनों में बदलाव हुआ लेकिन सबसे अच्छी बात है की आप ऐसे समीक्षक जो कहानी की आत्मा तक पहुंच जाते हैं उनकी नज़रे इनायत इस कहानी पर है और इसलिए यह कहानी आगे बढ़ पा रही ही।
बस आभार और ये चाहत की इस कहानी के साथ आप साथ इस तरह बना रहे।
एक परिवर्धित संस्करण में आपको सबका समावेश मिलेगा...Page 10 tak ki kahani badhiya aur romanchak hai.
एक लंबा एल पर दो अंडे...देखिये गुड्डी नंबर कितना देती है
ये नया पुराना का संगम हीं गुदगुदा जाता है...आगे आगे देखिये कुछ नया कुछ पुराना
बल्कि दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं...आनंद की गुड्डी को देखकर मुझे अपनी गुड्डी की याद आ जाती है । उसकी चंचलता , उसकी नाॅन स्टाप बक - बक , उसका मसखरापन , उसका दिल्लगीपन जैसे एक बार फिर से मेरे यादों के झरोखे से बाहर आ गई हो ।
सच कहूं तो यह गुड्डी , बिल्कुल मेरी गुड्डी - जो सरगम फिल्म के जया प्रदा जी की तरह दिखती थी - लग रही है ।
फर्क इतना है कि मेरी प्रेम कहानी के प्रारब्ध मे वियोग लिखा था और इनके प्रेम कहानी का अंजाम संयोग है ।
गुड्डी का बार बार आनंद पर हक जमाना उसके विश्वास को परिभाषित करता है कि वो सिर्फ आनंद के लिए बनी है ।
आनंद का गुड्डी के साथ बनारस के तंग गलियों मे विचरण करना , इन गलियों मे स्थित शैयद चच्चू का छोटा मकान , अस्मा और उसकी भाभी नूर , इन गलियों से लगे बंगाली टोला , लक्सा माॅल , प्राची सिनेमाघर एवं इस इलाके की रौनक और अपनापन मुझे भयभीत करने पर मजबूर कर रहा है कि फ्यूचर मे होने वाले बम ब्लास्ट का टार्गेट यही क्षेत्र न हो !
शायद यह रौनक आने वाले कल की तबाही न हो !
इस कहानी मे एक किरदार वगैर अपनी उपस्थिति के , वगैर एक सीन्स के रीडर्स के लिए सबसे बड़ी हिरोइन बन गई । वह हिरोइन है रंजीता उर्फ गुड्डी ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे वो दोनों...एकदम खुल्लम खुल्ला ही होगा, फागुन में क्या लुकाना छिपाना वो भी बनारस में
बस हवा (कहानी) के साथ साथ.. घटा (कमेंट्स) के संग संग..आपका साथ, आपकी शुभाशीष और शुभ कामनाओं का पाथेय इसी तरह प्राप्त होता रहे तो रुक रुक कर ही सही, पथ के देवता की कृपा से यह कहानी भी अपने लक्ष्य तक पहुंचेगी, कई बदलाव और जुड़ाव के साथ