बहुत बहुत धन्यवाद आभार
आप जैसे समीक्षक, किसी कहानी को, लेखिका को मिल जाए, उससे ज्यादा क्या चाहिए। बीच में कुछ दिनों का अंतराल हो गया, लेकिन आपने बिसराया नहीं, सुधि लेते रहे।
आपने जो कहा है अक्षरश सत्य है, इन गलियों के जरिये मैंने बहुत कुछ कहने की कोशिश की है जो पहले संस्करण में नहीं था, एक गंगा जमुनी तहजीब से लेकर बदलाव का दर्द और और घुलते जहर के बीच भी रिश्तों का अमृत
और विषपायी का नगर यह, बड़े बड़े विष को अमृत में बदल देता है और उसकी कुछ झलक भी, अब आगे क्या होगा ये अगले पोस्ट में पता चलेगा, लेकिन बहुत से दृश्य नए जुड़ेंगे लेकिन कहानी वही रहेगी और आप का साथ मुझे विशवास है बना रहेगा
एक बार फिर से आभार