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फागुन के दिन चार भाग २८ - आतंकी हमले की आशंका पृष्ठ ३३५
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Amezing. Sirf bato se hi kamukhta ki hade par kar di. Do nai kishoriya suhagrat ki charcha karte maze le rahi hai. Suhagraat me kya hoga. Ari binno jab tu sirf blouse aur saya me ho jae.सोलह सिंगार,
चूड़ी, महावर
अभी रीत और गुड्डी चूड़ियां पहना रही थी हरी-हरी और लाल कंगन।
और संध्या भाभी पैर में महावर लगा रही थीं,
रीत और गुड्डी एकदम चुड़िहारिनों की तरह बैठी थी। गुड्डी ने कलाई पकड़ रखी थी और रीत चूड़ियां पहना रही थी। और जैसे चुड़िहारिने नई नवेलियों को कुँवारी लड़कियों को छेड़ती हैं वो भी बस उसी तरह वो दोनों भी। गुड्डी ने मेरी कलाई को गोल मोड़ दिया चूड़ी अन्दर करने के लिए।
रीत ने छेड़ा- “हे हमारी तुम्हारी कब?”
“अरे पकड़ा पकड़ी होय जब…” गुड्डी ने जवाब दिया।
रीत ने जब चूड़ी घुसाई तो दर्द तो हुआ लेकिन रीत की बात सुनकर वो काफूर हो गया।
“अरे उह्ह… आह्ह… कब?” रीत ने पूछा।
“आधा जाय तब…” गुड्डी ने जवाब दिया।
“अरे मजा आये कब? निक लागे कब?” रीत ने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर पूछा।
“अरे पूरा जाय तब…” गुड्डी भी अब पीछे रहने वाली नहीं थी, और एक चूड़ी अन्दर चली गई।
उसके बाद तो उन दोनों ने मिलकर एकदम कुहनी तक चूड़ियां पहना दी। और दोनों मिलकर अपने इस द्विअर्थी पहेली कम डायलाग पे हँस पड़ीं।
“सुहागरात का पता कैसे चलेगा। जानू?” गुड्डी ने मुझे चिढ़ाते हुए पूछा।
“अरे जब रात भर चूड़ियां चुरूर मुरुर करें और आधी सुबह तक चटक जायं…” रीत मेरे गाल पे चुटकी काटकर बोली।
“क्यों संध्या याद है ना तुम्हारी सुहागरात में,... महावर वाली बात…” चंदा भाभी ने मुश्कुराकर पूछा।
“आप भी ना भाभी। वो तो सब की सुहागरात में होता है। आप भी कहाँ की बात ले बैठीं। वो भी इन बच्चियों के सामने…” रीत और गुड्डी की ओर देखकर, मेरे पैरों में महावर लगाती वो बोली।
रीत ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई गलत बात उन्होंने कह दी हो।
लेकिन बोली दूबे भाभी- “हे बच्चियां किन्हें कह रही हो? जब वो घूम-घूम के चूचियां दबवाने लगें तो ये बच्चियां नहीं रह जाती और ऊपर से मेरी ननदों की झांटे बाद में आती हैं, लण्ड पहले ढूँढ़ने लगती हैं। और वैसे भी कल के पहले इन दोनों की भी चटक-चटक के फट जायेगी। हम सब की कैटगरी में आ जायेंगी…” वो हड़का के बोली।
रीत और गुड्डी ने सहमति में सिर हिलाया।
रीत से संध्या भाभी अपनी सुहागरात के महावर का पूरा किस्सा सुनाया,
“ मेरी ननदों ने नाउन को चढ़ा दिया था। फिर उसने ये रच-रच के महावर लगाया, खूब गाढ़ा और गीला। आगले दिन सुबह जब हम दोनों कमरे से बाहर आये तो वो सब छिपकलियां मेरी ननदें पहले से तैयार बैठी थी। नाश्ता के समय पकड़ लिया उन्होंने तुम्हारे जीजू को- “हे भैया आपके माथे पे ये लाल-लाल? ये भाभी के पैर का रंग कैसे? कहीं रात भर भाभी ने आपसे पैर तो नहीं छूलवाया? ये बहुत गलत बात है…”
कोई बोली- “अरे भैया को कोई चीज चाहिए होगी इसलिए भाभी ने,... क्यों भैय्या? लेकिन भाभी ने दिया की नहीं। खूब तंग किया…”
संध्या भाभी बता भी रही थी और उस दिन की याद करके मुश्कुरा भी रही थी।
गुड्डी भी बोली- “लेकिन मेरी समझ में नहीं आया की कैसे जीजू के माथे पे आपके पैरों की महावर?”
उसकी बात काटकर संध्या भाभी मुश्कुराते हुए उसके उरोजों पे एक चिकोटी काटकर बोली-
“अरी बन्नो सब समझ में आ जाएगा। जब रात भर टांगें कंधे पे रहेंगी और रगड़-रगड़कर, ये चूची पकड़कर चोदेगा ना तो सब पता चल जाएगा की महावर का रंग कैसे माथे पे लगता है?”
रीत ने पाला बदला और संध्या की ओर हो गई- “आज जा रही है ना तू कल सुबह ही हम सब फोन करके पूछेंगे तुझसे। की रात भर टांगें उठी रही की नहीं? समझ में आया की नहीं?”
सब हो-हो करके हँसने लगी लेकिन गुड्डी शर्मा गई और मैं भी।
संध्या भाभी ने महावर के रंग की कटोरी में जाने क्या और मिलाया और मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं-
“मैं लेकिन उससे भी गाढ़ा लगा रही हूँ और चटक भी, पंद्रह दिन तक तो नहीं छूटेगा, लाख पैर पटक लेना…”
महावर के साथ उन्होंने पैरों के नाखून भी रंगे और जैसे गाँव में औरतों की विदाई होने के समय महावर के साथ पैरों पे डिजाइन बनाते हैं। वैसे डिजाइन भी बना दी। वो तो मैंने बाद में देखा।
एक पैर पे डिजाइन में उन्होंने लिखा था बहन और दूसरे पे चोद।
दूबे भाभी और चंदा भाभी बड़ी देर से चुप बैठी मजे ले रही थीं, लेकिन दूबे भाभी अपने रूप में आयी, " तो कोई लौण्डेबाज इसकी गांड माएगा तो उसके माथे पे लगेगा "
और अब सब हो हो,
लेकिन मैंने फुसफुसा के भाभी से सिफारिश की, भाभी, गुड्डी के पैर में भी लगा दीजिये न "
वो महावर ख़तम करते, उसी तरह धीरे से बोलीं,
" लगाउंगी, लगाउंगी, इससे भी चटक और गाढ़ा, जब तुम इसको हरदम के लिए बिदा करा के ले जाओगे, और अगली सुबह वीडियो काल में तेरे माथे पे वही महावर देखूंगी "
फिर वो और चंदा भाभी पैरों में पायल और बिछुए पहनाने लगी वो भी खूब घुंघरू वाले। चौड़ी सी चांदी की पायल।
चंदा भाभी गुड्डी से हँसकर बोली “अब ये मत पूछना की दुल्हन को ये क्यों पहनाते हैं?” फिर कहने लगी- “इसलिए बिन्नो की जब रात भर दुल्हन की चुदाई हो तो रुनझुन, रुनझुन। ये पायल बजे और बाहर खड़ी सारी ननद भौजाइयों को ये बात मालूम चल जाय की अब नई दुल्हन चुद रही है, "
बिछुवे बहुत ही ज्यादा घुंघरू वाले थे।
Are kardhan ke bare me na jana to kya jana. Bat to sahi kahi jab jab mard chup chap rahe to aurat hi kaman sambhalti hai. Komalji kahaniyo me bata chuki hai. Ise kahete haiछोटे घुंघरू वाला बिछुआ
दूबे भाभी बैठकर गाइड कर रही थी। वो मुझे चिढ़ाते हुए गाने लगी-
“अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला,
वो बिछुवा पहने आनंद की बहना, गुड्डो छिनारी, एलवल वाली (मेरी ममेरी बहन के मोहल्ले का नाम)
अरे अरवट बाजे करवट बाजे, लड़िका के दूध पियावत बाजे,
अरे यारन से चूची मिजवावत बाजे, दबवावत बाजे,
अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।
अरे अरवट बाजे करवट बाजे, अपने भइय्या से रोज चुदावत बाजे,
अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।
गुड्डी और रीत हाथ के श्रृंगार में लगी थी, नेल पालिश।
गुड्डी बोली- “क्यों ये बात सच है ले चुके हो उसकी?”
रीत ने आँख तरेरी और दूबे भाभी की ओर इशारा किया, जिन्होंने हुक्म दिया था की होली में सब ‘खुल कर’ बोले-
“अरे माना इनकी बात सीधी है, अभी तक नहीं चुदी है। तो अब चोद देंगे ऐसा क्या? बिछुवे तो बजेंगे ही उसके…” रीत ने बात पूरी की।
उसके बाद गहनों का और चेहरे के श्रृंगार का नंबर था।
संध्या भाभी ने मुझे एक करधनी पहनाई वो भी घुंघरू वाली और मुश्कुराकर रीत और गुड्डी की ओर देखकर बोला- “हे ये मत बताना की तुम्हें इसका भी मतलब नहीं मालूम है की ये कब बजती है?”
रीत की मुश्कुराहट से साफ झलक रहा था की वो चतुर सुजान है। लेकिन गुड्डी वैसी की वैसी तो संध्या भाभी ने फिर बोला-
“अरे बुद्धू। कोई जरूरी थोड़े ही सै की यही तुम्हारे ऊपर चढ़कर चोदे। अरे ऐसा बुद्धू हो तो कई बार लड़की को ही कमान अपने हाथ में लेनी होती है। और जब लड़की ऊपर होती है, तो उछल-उछलकर ऊपर-नीचे करके चोदती है। तो करधन के ही घुंघरू बोलते हैं…”
रीत मुश्कुराती हुई मेरे चेहरे का मेकप करने में बिजी थी, लाल लिपस्टिक।
और गुड्डी से बोली, हे देख हैं न खूब चूमने लायक, चूसने लायक होंठ, लौंडिया मात।
" अरे तो चूम ले न " गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली और रीत ने चूम लिया।
गालों पे रूज, आँख में काजल, मस्कारा, आइब्रो और साथ में कानों में झुमके, नाक में नथ, कान नाक में छेद तो था नहीं इसलिए कहीं से इन लोगों ने स्क्रू वाले झुमके और नथ का इंतजाम किया था। नथ भी बड़ी सी उसकी मोती होंठों पे। नथ गुड्डी पहना रही थी। मैं थोड़ा ना-नुकुर कर रहा था।
तब चंदा भाभी ने हड़काया- “अरे पहन लो पहन लो, वरना उतारी क्या जायेगी?”
मुश्कुराती हुई रीत ने गुड्डी को आँख मारकर बोला- “पहना दे तू लेकिन उतारूंगी मैं ही…”
तभी रीत का ध्यान मेरे ब्लाउज़ पे गया जिसके अन्दर संध्या भाभी की ब्रा थी। वो हल्के से बोली- “माल तो मस्त है लेकिन थोड़ा सा कसर है…” और वो भाग के अन्दर गई।
जब वो बाहर आई तो उसके हाथ में रंग के भरे दो गुब्बारे थे। उसने झट से मेरी ब्रा खोलकर उसके अन्दर डाल दिया और बोली- “हूँ अब मस्त माल लग रही है एकदम 34सी बल्की डी…” और मुझे खड़ा कर दिया गया था।
Is bar to me khud shikayat kar rahi hu aap se. Itna bada update kyo??? Ispar to teen comment banti thi. Kya kahu kya na me khud bokhla gai hu.सिन्दूर दान, - यादों के झुरमुट से
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दूबे भाभी जो अब तक दूर से गाइड कर रही थी, पास में आई और बोली- “सही है लेकिन बस एक कसर है…” और उन्होंने अपने माथे से अठन्नी की साइज की टिकुली मेरे माथे पे लगा दी और बोला- “अब हुआ शृंगार पूरा। नहीं लेकिन एक कसर है…”
सब मुझे घेर के खड़े थे। चंदा भाभी, संध्या भाभी और रीत और गुड्डी तो एकदम सटकर अगल-बगल। किसी को कुछ समझ में नहीं आया।
दूबे भाभी- “अरी सालियों। इत्ती मस्त दुल्हन लेकिन उसकी मांग तो सूनी है। सिन्दूर कौन भरेगा?”
रीत ने गुड्डी की ओर इशारा किया तो गुड्डी ने रीत की ओर।
चंदा भाभी ने उकसाया- “अरे सोचो मत। इसकी बहन पे तो तीन-तीन एक साथ चढ़ेंगे, तुम तो दो ही हो कर दो एक साथ…”
दूबे भाभी ने हड़काया- “अरे तुम लोग बनारस की हो। लखनऊं की नहीं की जो पहले आप, पहले आप कर रही हो”
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कई बार अतीत बिन बोले वर्तमान पर छा जाता है, भांग का नशा था, सामने रीत भी गुड्डी भी,
लेकिन वो सीन चार पांच साल पहले का, भाभी की शादी में, जब ऐसे ही तो भाभी की सहेलियों भाभियों के झुरमुट में पकड़ा गया था मैं और वही सिंगार, गुड्डी नेलपॉलिश लगा रही थी अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ के,
नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,
" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,
" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,
मैंने गुड्डी की ओर देखा, बड़ी बड़ी दीये सी आँखे, नेह का तेल, प्यार की बाती, दीये जगमगा उठे लेकिन लाज ने पल भर के लिए गुड्डी की पलकों को झुका दिया, और उसी झिझक ने मेरे होंठों पर फेविकोल चिपका दिया,
लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।
" काहें तुम्ही कह रहे हो, डांस अच्छा करती है , कल गाना भी सुन लिया होगा तुम्हारी बहिन महतारी सब का हाल, .... "
गुड्डी की मम्मी , मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा उठा के गाल सहलाते हुए आँख में आँख डाल के पूछीं।
मेरी आँखे झुकी, लाज से मेरी हालत खराब,
अब सब लोग एक साथ हँसे, भाभी ( गुड्डी की मम्मी ), विमला भाभी, रमा सब,... खिलखिला रही थी विमला भौजी बोलीं
" इतना तो लड़किया नहीं लजाती शादी की बात पे जितना भैया तुम लजा रहे हो, ... गौने क दुल्हिन झूठ "
लेकिन तब तक भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने गुड्डी से पूछ लिया
" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "
नेलपॉलिश तो कब की गुड्डी लगा चुकी थी, अनजाने में उसने कस के मेरा हाथ हल्के से दबा दिया लेकिन मेरी तरह से वो लजा नहीं रही थी, खुल के मुझे देख रही थी.
मजाक में गाँव में शादी के माहौल में कोई किसी को छोड़ता नहीं न रिश्ता न उम्र देखी जाती है। " बोलो, ठीक से देख लो अगर पंसद हो बस हाँ बोल दो " गुड्डी की मम्मी , गुड्डी के पीछे पड़ गयी।
अब मुझे लगता है हाँ बोल देना चाहिए था, इतना छोटा भी नहीं था, इंटर कर चुका था, आई आई टी में सेलेक्शन भी हो गया था,
मुझे अब तक याद है, गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...और मैं उन पलकों में बंद हो चुका था,
कैद तो उस सारंगनयनी ने पहली बार ही कर लिया था, मैं थोड़ा सा रिजर्व, लेकिन वो जनवासे में अपनी सहेलियों के साथ और दांत देखने के बहाने, रसगुल्ला खिला के चली गयी और साथ में, मुझे भी ले गयी। और जैसे वो काफी नहीं था, डांस करते समय भी जब वो गाती,
जिस तरह वो दोनों हाथों की चूड़ियां आपस में बजा के दिखा दिखा के कहती लग रहा था जैसे मुझ से ही कह रही हो,...
मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा
जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा
स्टेज के किसी कोने में वो होती लेकिन आँख उसकी बस मेरे पास,...
और उसके बाद, बस मैं मौका खोज रहा था उससे मिलने का लेकिन उसके पहले ही, बीड़ा मारने की रस्म, बादलों में बिजली सी वो भी दिखी, और भाभी का हाथ उठा, उसके साथ ही उसका भी,...
भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन गुड्डी का एकदम सीधे मेरे सीने पर,
द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,
वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।
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अब भी यही बात साल रही है की उस दिन गुड्डी की मम्मी की बात, बियाह करोगे इससे, मन तो बस यही कर रहा था की ये लड़की मिल जाए, बस उसके बाद और कोई चीज नहीं मांगूंगा, लेकिन, वही झिझक,
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और अभी डेढ़ साल पहले, घर पे, पढ़ाई भी हो चुकी थी और पढ़ते हुए ही सेलेक्शन भी हो गया था, आल इंडिया सर्विस में फर्स्ट अटेम्प्ट में, रैंक भी अच्छी थी और कैडर भी होम यानि यू पी मिलना करीब तय था,
मेरी आम की चिढ जग जाहिर थी, और सिर्फ खाना नहीं पसंद है ये बात नहीं, नाम लेने से लेकर आस पास भी, और सब लोग ध्यान भी करते थे , मेरे सामने
लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी, और मैं भी हर मौका ढूंढ़ता था उसके आस पास मंडराने का, नौवें पास कर लिया था उसने,
गरमी का सीजन था, गुड्डी, साथ में उसकी सहेली और मेरी कजिन, एक दो और अड़ोस पड़ोस की लड़कियां और मंजू, वैसे तो घर में काम करती थी, लेकिन हम लोगो के लिए भौजी ही थी, और रिश्ता निभाती भी थी, मजाक न एकदम खुल कर बल्कि देह तक पहुँच जाता था.
वो सब लोग मिल के सुतुही से कच्चे आम छील रहे थे और मैं चुपके चुपके गुड्डी की कच्ची अमिया निहार रहा था, अपनी सहेलियों से २० नहीं २२ थी, वो कुछ भी होती, दर्जनों लड़कियां खड़ी हों दिखती मुझे वही थी,
लड़कियां एक खेल खेलती थीं, जब आम की गुठली बचती थी तो उसे दो उँगलियों में पकड़ के दबाकर छोड़ती थी और वो उछलती थी, लेकिन उसके उछलने के पहले किसी लड़की का नाम लेकर पूछती थी, उसकी शादी कहाँ होगी, और जिधर वो गुठली जाती फिर सब मिल के उस लड़की को चिढ़ाती की उसकी ससुराल पूरब होगी या जिधर भी वो गुठली उछल के गिरे
मंजू ने एक गुठली पकड़ी और गुड्डी को दिखाते, चिढ़ाते, दबा के पूछा,
बिजुली रानी, बिजुली रानी, कहाँ होई,
गुड्डीया का बियाह कहाँ होई
और वो गुठली उछली, मेरी ओर और सीधे मेरे ऊपर ही गिर गयी,
मंजू जोर से खिलखिलाई, “अरे सब क गुठली तो ससुराल की ओर जाती है ये तो सीधे दूल्हे पे ही गिर गयी, गुड्डी देख लो, है लड़का पसंद, चाहे तो बियाहे के पहले एकाध बार ट्राई कर के देख लो, "
और फिर सब लड़कियां गुड्डी के पीछे, लेकिन गुड्डी से ज्यादा मैं झेंप गया, उठा लेकिन जाने के पहले एक बार गुड्डी को भर आँख देखने की लालच नहीं रोक पाया,
और फिर वो आँखे जो मुस्करायीं, गुनगुनुनाईं,
और थोड़ी देर बाद वो मिली, अकेले थे हम दोनों, वो कुछ लेने आयी थी मेरे कमरे से और मैंने हिम्मत कर के पूछ लिया,
" हे वो, वो वाली बात, सच हो जाए तो "
वो समझ रही थी मैं क्या पूछ रहा हूँ, लेकिन उसकी चिढ़ाती आँखों ने और छेड़ा मुझे, मुस्करा के बोली,
" कौन सी बात?"
" वही गुठली वाली बात, बिजुली बिजुली "
" अरे वो सब लड़कियों का खेल तमाशा, " हंस के वो बोली और बाहर जाने के लिए मुड़ी, लेकिन फिर ठिठक के रुक गयी और आलमोस्ट मुझसे सट के फुसफुसाते हुए बोली,
" और सच हो भी जाये तो मैं तुझसे डरती थोड़े ही हूँ "
कह के उसने मेरी नाक पकड़ ली, मारे ख़ुशी के मेरी बोलती बंद हो गयी लेकिन अगली बात जो नाक पकडे पकडे मेरी, बोली तो मैं एक पल के लिए हदस गया। उस सारंगनयनी ने कहा,
" लेकिन ललचाते बहुत हो "
मैं समझ गया, मेरी चोरी पकड़ी गयी, जो २४ घंटे उसकी बस उभरती हुयी कच्ची अमिया ताकता रहता था, क्या करूँ, आँखे मेरी मन की गुलाम, और मन तो जो सामने खड़ी थी उसमें उलझा,
बड़ी मुश्किल से मेरे बोल फूटे, बहुत धीमे से थूक निगलते बोल पाया , " गुस्सा,.... तुम गुस्सा हो ?"
" बुद्धू " वो बोली और खिलखिलाई, हजारों मोती फर्श पर लुढ़क गए, और नाक छोड़ के बोली,
" गुस्सा होउंगी, वो भी तुझ पे, भूल जा "
और बाहर, लेकिन दरवाजे के पास रुक के एक पल के लिए ठिठकी, मुड़ी मेरी ओर देखा और हलके से मुस्करा के बोली, " लालची "
उसी दिन शाम को पिक्चर हाल में, बताया तो था, हम सब लोग फिल्म देखने गए थे, सबसे किनारे मैं, मेरे बगल में गुड्डी और उसके बाद मेरी कजिन, और फिर बाकी लोग, पिकचर शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही, मेरा हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने पे, और कुछ देर बाद हलके से दबाया भी, और रात में भी, नीचे हम दोनों ही सोते थे, गरमी के दिन, तो बरामदे में चारपाइयाँ सटी, और रात में भी
नहीं बात छुआ छुववल से आगे नहीं बढ़ी, लेकिन पहल हर बार गुड्डी ही करती थी
और अभी गुड्डी ने ही पहल की, ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में, भरभरा कर
संध्या भाभी ने सिंदूर की डिबिया बढ़ाई और,… सिन्दूर दान किया गुड्डी ने ही, और ढेर सारा,
उसके मन में इतनी ख़ुशी थी और उससे ज्यादा मेरे मन में,
कब ये मौका आये बदले में मैं कब मांग भरूंगा इसकी। फिर रोज सुबह उठूंगा तो इसका चेहरा देखकर और सोऊंगा तो इसका चेहरा देखकर।
कुछ मेरी नाक पे भी गिर गया। संध्या भाभी ने चिढ़ाया- “नाक पे सिन्दूर गिरने का मतलब जानते हो तुम्हारी सास बहुत खुश रहेंगी…”
चंदा भाभी ने रीत को किसी काम से किचेन में भेज दिया था, और संध्या भाभी एक बार फिर से चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ मिल के छत के दूसरे कोने पे अगली योजना की प्लानिंग कर रहे थे,
लेकिन अब मेरी बोलने की बारी थी, बहुत देर से मैं चुप था।
मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”
वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली, " चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, मना थोड़े ही करुँगी "
मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,
" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "
और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली, " और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा "
Mar dalogi kya. Sach kahu to me khud ghabra gai thi.सुहाग रात - बच गया पिछवाड़ा
मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”
वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली,
" चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, "
मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,
" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "
और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली,
" और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा
लेकिन तब तक भाभियों का ध्यान हमारी ओर मुड़ गया और दूबे भाभी बोलीं
" हे तोता मैना क्या गुपचुप हो रहा है "
संध्या भाभी ने गुड्डी की ओर से जवाब दिया, " अरे यही पूछ रहे होंगे न की सिन्दूर दान हो गया तो अब सुहागरात "
चंदा भाभी बोली- “बड़ी छिनार दुल्हन है, जबरदस्त खुजली इसकी चूत में मची है…”
लेकिन रीत बढ़कर आगे आई और हँसकर मेरा मुँह उठाकर बोली- “अरे जरूर मनाई जायेगी। और वो भी अभी…”
गुड्डी इस काम में पीछे हट गई थी ये कहकर की उसके वो दिन चल रहे हैं।
“लेकिन कैसे आवश्यक सामग्री है तुम्हारे पास?” मैंने भी हँसकर सवाल दागा।
“एकदम…”
और जो बैग वो सुबह अपने साथ लायी थी उसमें से एक मोटा लम्बा डिल्डो निकाला। गुलाबी एकदम मेरी साइज के बराबर रहा होगा। स्ट्रैप आन। जिसे लड़कियां पहनकर एक दूसरे के साथ या लड़कों के साथ।
और जवाब उसकी ओर से खिलखिलाती, गुड्डी ने दिया, वो युद्धस्थल से थोड़ी दूर आराम से बैठ कर मेरी दुरगति देख रही थी।
" अरे यही लाने तो आपकी साली गयी थी, अभी जो चंदा भाभी के किचन में, पसंद आया न "
" अरे नहीं यार काम पूरा नहीं हुआ, " रीत ने गुड्डी की ओर देखकर बड़े उदास मुंह से जवाब दिया,
" क्यों, "
एक साथ संध्या भाभी और गुड्डी ने पूछा, मतलब मेरे पिछवाड़े पर आसन्न हमले की प्लानिंग में में ये तीनो शामिल थी, जिनके लिए जान हथेली पर लेकर मैं दूबे भाभी के पास, मेरी सहायता से इन तीनों ने बनारस की होली के इतिहास में पहली बार दूबे भाभी का चीर हरण किया, साड़ी ब्लाउज दोनों, सच में ये दुनिया विश्वास करने लायक नहीं, लेकिन उसके बाद रीत ने जो जवाब दिया सच में मेरा दिल दहल गया,
" असल में मैं किचेन में बहुत देर तक मिर्चे वाला पुराना अचार ढूंढ रही थी, सोच रही थी उसका तेल लगा के तो अच्छी तरह से परपरायेगा, याद रहेगी ससुराल की, .....लेकिन मिला नहीं तो, "
गुड्डी ने भी थोड़ा उदास सा मुंह बना लिया, फिर बोली," तो क्या हुआ, दी सूखे मार लीजिये, ये कौन जेब में वैसलीन की शीशी लेकर घूमते हैं। "
मेरे मन में तो आया, की बोलूं, कल मेरे सामने दवा की दूकान से माला डी और आई पिल की गोली के साथ बड़ी सी वैसलीन जेली की शीशी गुड्डी ने खरीदी थी, तो क्या मुंह में लगाने के लिए।
तब तक दूबे भाभी का कमान जारी हुआ- “निहुराओ साली को…”
चंदा और संध्या भाभी ने मिलकर मुझे झुका दिया और साड़ी साया सब मेरी कमर पे।
दूबे भाभी बोली- “अरे क्या मस्त चिकने चूतड़ हैं नाम तो लिखो साले का…”
और फिर एक बार संध्या भाभी और गुड्डी, एक ने मेरे एक चूतड़ पे गाँ लिखा और दूसरे ने दूसरे पे डू। वो भी काली प्रिंटर इंक से, खूब बड़े-बड़े। वो भी संध्या भाभी के महावर की तरह 15 दिन से पहले छूटने वाला नहीं था।
मुझे अपने नितम्बों पे एक प्यार भरे हाथ की सहलाहट मालूम हुई।
आँख बंद करके भी मैं रीत के स्पर्श को पहचान सकता था, और दो लोग मिलकर मेरे नितम्बों को कसकर फैला रहे थे। चंदा भाभी और संध्या भाभी।
फिर दरार पे एक उंगली, और उसके बाद डिल्डो का दबाव, पहले हल्का फिर थोड़ा तेज।
गुड्डी मेरे सामने एक बार फिर से बैठी थी, थोड़ी दूर पे, और हम लोगों का नैन मटक्का कोई नहीं देख पा रहा था , बाकी सब लोग मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, रीत तो नौ इंच की तलवार बांधे, मेरे पिछवाड़े सटाये, संध्या भाभी दोनों हाथों से मेरे नितम्बो की चियारे, चंदा भाभी उन दोनों को चढाती, और दूबे ओवरआल कंट्रोल में,
ये कहूं की दर्द नहीं हो रहा था तो गलत होगा, जिस तरह से रीत प्रेस कर रही थी और संध्या भाभी पूरी ताकत से फैलाये थीं,
लेकिन जब सामने गुड्डी बैठी हो, उसकी कजरारी, रतनारी आँखे, मीठी मीठी मुस्कान, और हम दोनों बिन बोले बतिया रहे थे, (ये तरीका एक बार इश्क हो जाए तभी पता चलता है,) फिर दर्द कहाँ पता चलता है.
रीत ने और जोर लगाया, कभी वो गोल गोल घुमाती तो कभी पुश करती, लेकिन न कोई चिकनाई न रीत को पिछवाड़े के हमले की प्रैक्टिस, चंदा भाभी से वो शोख बोली,
" ये जो गुड्डी का माल है न, स्साले इसके मायके वाले सब के सब या तो जनखे हैं या गंडुए, ये भी स्साला चिकना कोरा है, इसकी बहन भी कोरी है, कोई मारने के चक्कर में नहीं पड़ा "
संध्या भाभी का ललचाता हाथ, अब मेरे लटके खूंटे पे एक बार फिर पहुँच गया था, और उसे छूते सहलाते वो बोलीं,
" देख यार जनखे वाली बात तो मैं नहीं मान सकती, हाँ गंडुआ और भंडुआ दोनों बात सही है "
चंदा भाभी ने और जोड़ा, " यार रीत, फायदा तो इसके ससुराल वालों का बनारस वालों का ही होगा न अगर ये कोरा है और इसकी बहिनिया भी कोरी है "
रीत ने एक बार फिर जोर लगाने की कोशिश की।
तभी दूबे भाभी की आवाज अमृत की तरह मेरे कानों में पड़ी वो रीत से बोल रही थी-
“जाने दे यार सगुन तो तुमने कर दिया ना। अभी रंग पंचमी में तो ये आयेंगे ना। तो फिर इनकी बहन और इनको साथ-साथ घोंटायेंगे। अभी कहीं फट फटा गई तो अपने मायके में जाकर सबको दिखाएंगे…”रीत ने भी उसे हटा लिया और कसकर एक हाथ मेरे चूतर पे जमाते हुए, हँसकर बोली- “बच गई आज तेरी…”
रीत से तो बच गई लेकिन भाभियों से तो बचने का तो सवाल ही नहीं था, और उनकी उंगलियों से,
उसके बाद तो वो होली शुरू हुई।
गालियां गाने और अब भले मेरी ड्रेस बदली हुई थी लेकिन था तो वही। और एक बार फिर से होली जबर्दस्त शुरू हो गई थी। गाने, गालियां, रंग, अबीर, रगड़ना, मसलना सब कुछ जो सोच सकते हैं वो भी और जो नहीं सोच सकते हैं वो भी।
Amezing erotic update. Kar diya kamukhta ka karar. Kyo ki sandhya bhabhi ho gai taiyar. Man gae. Sandhya bhabhi ko daboch liya. Aur bachane ke bahane dube bhabhi ne madad kar di. Guddi bhi to yahi chahti hai. Ab to bhabhi ne hi mast kissi lekar fagun aur devar ki duhai de di., संध्या भाभी-
देह की होली -जरा सी
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मैंने संध्या भाभी को पकड़ा और बिना किसी बहाने के सीधे हाथ उनके जोबन पे। एकदम परफेक्ट साइज थी उनकी ना ज्यादा छोटी ना ज्यादा बड़ी, 34सी। पहले तो मैंने थोड़ा सहलाया लेकिन फिर कसकर खुलकर रगड़ना मसलना। अब सब कुछ सबके सामने हो रहा था।
रंग वंग तो पहले ही होगया था अब तो सिर्फ देह की होली,
संध्या भाभी के जोबन एकदम कड़क थे, मेरा एक हाथ नीचे से सहलाते हुए ऊपर जाता और जहाँ निपल बस टच होता कस कस मसलना रगड़ना, दूसरा तो मेरी मुट्ठी में कैद था पहले से ही।
दोनों हाथों में लड्डू और इस रगड़ने मसलने का असर दो लोगों पर हो रहा था, एक तो संध्या भाभी पे वो ऐसी गरमा रही थीं, मचल रही थी, जाँघे अपनी आपस में रगड़ रही थी, गुड्डी की पांच दिन वाली आंटी आज जाने वाली थीं, लेकिन संध्या भाभी की कल ही चली गयीं थी वो पांच दिन वाली और उसके बाद तो जो गरमी मचती है चूत महरानी को, पांच दिन की छुट्टी और उसके पहले भी पति से दूर लेकिन सबसे बढ़कर संध्या भाभी ने जिस मोटे खूंटे को पकड़ा मसला था, कभी सपने में भी नहीं सोचा था, इतना मोटा और मस्त हो सकता है, बस मन कर रहा था वो अब अंदर घुस जाए,
और संध्या भाभी से ज्यादा अगर कोई खुश था तो वो गुड्डी,
" बुद्धूराम को कुछ अक्ल तो आयी वरना सोते जगते तो उन्हें बस एक ही चीज दिखाई पड़ती थी, गुड्डी।
और आज भी गुड्डी ने जो बोला था उन्हें संध्या भाभी के लिए उसी का असर, और सबसे बड़ी बात सब लड़कियों से तो लोग सुहागरात के बाद पूछते हैं, कैसा था मरद, मतलब कितना लम्बा, कितना मोटा, कितनी देर रगड़ा, झाड़ के झडा या ऐसे ही और फिर मन ही मन अपने यार या मरद से कम्पेयर करते हैं, या गुड्डी ने खुद ही, देख लो, कोई दूर दूर तक नहीं टिकेगा, हाँ थोड़ा झिझकता है तो गुड्डी है न, जिसकी बात वो सपने में भी नहीं टाल सकता,
दोनों जोबन कस के मसले जा रहे थे, खूंटा जबरदस्त खड़ा, भले साली सलहजों ने मिल के नारी का रूप बना दिया हो लेकिन उस नौ इंच के मोटे मूसल का क्या करतीं जिसको घोंटने के लिए सब दिवाली थी, गूंजा से लेकर दूबे भाभी तक
जरा सा निपल कस के पिंच कर दिया तो संध्या भाभी सिसक पड़ीं
“क्यों भाभी कैसा लग रहा है मेरा मसलना रगड़ना? मैं जोर से कर रहा हूँ या आपके वो करते हैं?”
मैंने निपल कसकर पिंच करते हुए पूछा। मेरे मन से अभी वो बात गई नहीं थी, उन्होंने कहीं थी की मैं तो अभी बच्चा हूँ।
रीत को चंदा भाभी ने दबोच लिया था। आखीरकार, रिश्ता उनका भी तो ननद भाभी का था।
चंदा भाभी का एक हाथ रीत की पाजामी में था और दूसरा उसके जोबन पे। वही से वो बोली-
“अरे पूरा पूछो न। इसके 10-10 यार तो सिर्फ मेरी जानकारी में मायके में थे, और ससुराल में भी देवर, नन्दोई सबने नाप जोख तो की ही होगी। सब जोड़कर बताओ न ननद रानी की चूची मिजवाने का मजा किसके साथ ज्यादा आया?”
लेकिन संध्या भाभी को बचाने आई दूबे भाभी और साथ में गुड्डी।
बचाना तो बहाना था, असली बात तो मजा लेने की थी।
दूबे भाभी ने पीछे से मुझे दबोच लिया और उनके दोनों हाथ मेरी ब्रा के ऊपर, और पीछे से वो अपनी बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी 38डीडी चूचियां मेरी पीठ पे रगड़ रही थी, और कमर उचका-उचका के ऐसे धक्के मार रही थी की क्या कोई मर्द चोदेगा,
और साथ में गुड्डी भी खाली और खुली जगहों पे रंग लगा रही थी। और साथ में मौका मुआयाना भी कर रही थी की मैं उसकी संध्या दी की सेवा ठीक से कर रहा हूँ की नहीं, और गरिया भी रही थी, उकसा भी रही थी, भांग का असर गुड्डी पे भी जबरदस्त था और गालियां भी उसी तरह से डबल डोज वाली,
" स्साले, तेरी उस एलवल वाली बहन की फुद्दी मारुं, अरे तेरी उस एलवल वाली, गदहे की गली वाली बहिनिया ( मेरी ममेरी बहन,, गुड्डी के क्लास की ही और उसकी पक्की सहेली, एलवल उसके मोहल्ले का नाम और जिस गली में वो रहती थी तो बाहर कुछ धोबियों का घर तो पांच छह गदहे हरदम बंधे रहते थे तो वो गली चिढ़ाने के लिए गदहे वाली गली हो गयी थी ) की तरह नहीं है मेरी दी, जो झांट आने से पहले से ही गदहों का घोंट रही है, जवान बाद में हुयी भोसंडा पहले हो गया, अरे शादी शुदा हैं तो क्या दो तीन ऊँगली से ज्यादा नहीं घोंट सकती "
अभी तो मैं ऊपर की मंजिल पे उलझा था इसी बहाने गुड्डी ने संध्या भाभी की निचली मंजिल की ओर ध्यान दिलाया,
होली में चोली के अंदर हाथ तो पास पडोसी भी डाल लेते हैं, जोबन रगड़ मसल लेते हैं लेकिन असली देवर ननदोई तो वो जो चूत रानी की सेवा करें ,
गुड्डी का इशारा काफी था, दो उँगलियाँ संध्या भाभी की चूत में।
क्या मस्त कसी चूत थी, एकदम मक्खन, रेशम की तरह चिकनी, पहले एक उंगली फिर दूसरी भी।
क्या हाट रिस्पांस था। कभी कमर उचका के आगे-पीछे करती और कभी कसकर अपनी चूत मेरी उंगलियों पे भींच लेती। मैंने अपने दोनों पैर उनके पैरों के बीच डालकर कसकर फैला दिया। एक हाथ भाभी की रसीली चूचियों को रगड़ रहा था और दूसरा चूत के मजे ले रहा था। दो उंगलियां अन्दर, अंगूठा क्लिट पे। मैं पहले तो हौले-हौले रगड़ता रहा फिर हचक-हचक के।
अब तो संध्या भाभी भी काँप रही थी खुलकर मेरा साथ दे रही थी-
“क्या करते हो?” हल्के से वो बोली।
“जो आप जैसी रसीली रंगीली भाभी के साथ करना चाहिए…”
और अबकी मैंने दोनों उंगलियां जड़ तक पेल दी। और चूत के अन्दर कैंची की तरह फैला दिया और गोल-गोल घुमाने लगा।
मजे से संध्या भाभी की हालत खराब हो रही थी।
गुड्डी खुश नहीं महा खुश। यही तो वो चाहती थी, मेरी झिझक टूटे और उसके मायकेवालियों को पता चले की कैसा है उसका बाबू, और साथ में वो बोली मुझसे ,
" जो खूंटा घोंट चुकी हो उसका ऊँगली से क्या होगा "
जो हरकत मैं संध्या भाभी के साथ कर रहा था, करीब-करीब वही दूबे भाभी मेरे साथ कर रही थी और गुड्डी भी जो अब तक हर बात पे ‘वो पांच दिन’ का जवाब दे देती थी खुलकर उनके साथ थी।
दूबे भाभी ने मेरे कपड़े उठा दिए। कपडे मतलब, अभी तो गुड्डी के मायकवालियों ने मिल के मुझे साड़ी साया पहना दिया था वो वही साड़ी साया
साड़ी का जो फायदा पुराने जमाने से औरतों को मिलता आया है वो मुझे मिल गया, उठाओ। काम करो, कराओ और पहला खतरा होते ही ढक लो।
मेरे लण्ड राज बाहर आ गए, और साथ ही मैंने भी संध्या भाभी का साया हटा दिया था और वो सीधे उनकी चूतड़ की दरार पे,
तो पिछवाड़े मेरे मूसल राज रगड़घिस्स कर रहे थे और संध्या भाभी की प्रेम गली में मेरी दोनों उँगलियाँ, कभी गोल गोल, तो कभी चम्मच की तरह मोड़ के काम सुरंग की अंदर की दिवालो पर,
कल रात चंदा भाभी की पाठशाला के नाइट स्कूल में भाभी ने सब ज्ञान दे दिया था, नर्व एंडिंग्स कहाँ होती हैं और जी प्वॉइंट कहाँ, छू के ही लड़की को पागल कैसे बनाते हैं और आज वह सब सीखा पढ़ा पाठ, संध्या भाभी के साथ ।
भाभी की चूत एक तार की चाशनी फेंक रही थी, मेरी उँगलियाँ रस से एकदम गीली, फुद्दी फुदक रही थी, कभी सिकुड़ती तो कभी फैलती, और तवा गरम समझ के उँगलियों का आखिरी हथियार भी मैंने चला दिया,
अंगूठे से क्लिट के जादुई बटन को रगड़ना,
और अब संध्या भाभी की देह एकदम ढीली पड़ गयी, मुंह से बस सिसकियाँ निकल रही थीं, आँखे आधी मुंदी और जाँघे अपने आप फैली,
गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।
मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा-
“पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”
मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-
“फागुन तो देवर का होता है…”
चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं
" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"
Read my story Mohe Rang de and it is a hard rain and you will get a lot of answersJo bhi ho
Ye kamukta ka silsila to chalta rhega
Ek bat hai
Mai janta hu kya bura hai kya sahi hai
Lekin mai kamuk hu mai control nhi kr pata isiliye padta hu apki kahaniya lekin wahi ,muth marne ke bad संत ho jata hun
Khair jo bhi ho
Ek bar padiyega aur jawab dijiyega
Mai janana chahta hun ki apki kya राय hai :
1. Kya porn ya aisi kahaniya jo aap likhti hai, wo ek major vajah nhi hai mad sexuality ka (jaha log riste नैतिकता sab bhul kar sexual freedom khoj rahe hai)
Kya ye ek badi vajah nhi hai increased rape cases in india ka
Immediate example is recent kolkata doctor rape case jaha rapist ne pahle porn dekha aur phir jo bhi kiya
Apko guilt nhi feel nhi hota??
2. Mai janta hu aap bhi सामान्य logo ki hi tarah sexuality control nhi kr pati lekin apka kya kahna hai Osho (I bet you know him) ke upar jo kahte hai ki karo lekin involve mat hona
Matlb har samay to admi sexual nhi ho sakta, aap bhi nhi, to phir ye kam aap consciously karti hai; Sayad roji roti ke liye; To aap kya sochti hai sahi galat ko lekar ?
Remember mai sex ke khilaaf nhi hun sexuality ke khilaaf hu jo andar hi aag bankar kisi masum par bhadakta hai aur uski aur uske family ki life kha jata hai.
Some request
• Pls koi mere upar ye na chillaye ki "phir tu kya kr raha hai yaha, Osho ko Jake sun bla bla .." ==> It is because of curiosity I asked, mai bhi insaan hun aur sex mere bhi माथे पर चढ़ता है
Mai nhi control kr pata to yaha akar story padta hun phir पछताता hun ki mai galat kr rha hu
• Kisi ko agar bura lage meri bat to chupchap sah le, gali galauch na kare kyo ki mai thoda sa hi achha hu
• Aur apki (sab logo) ki humble logical answer ka swagat hai.
• Aur jo sawal komalraani (apne) pucha tha : सत्य क्या है
Ye philosophical question hai
Mera question factual hai
Mai banaras ke aspas se hu aur mujhe lagta hai ki aap banaras se hi hai
To yaha ki society kaisi hai
Aap apne hisab se data percentage me bata sakti hai like 15% log aise baki waise hai.
Haa ye bhi batayega ki kis degree tak sexuality exist krti hai
Matlb apki kahaniyo ke level tak ki bhi??
Aur Komalraani se आग्रह hai ki answer tabhi likhe jab sexually aroused na ho
Matlb neutral condition me
Ye nhi ki sexual hokar kuchh bhi.
Aur ha mai student hu.
Belated happy new year
aapko bhi bahoot bahoot shubhkamamayeKomal ji
Nav varsh ki hardik shubh kamnaye
Prabhu aapki lekhni ko aur maadakta Pradan karen