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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २८ - आतंकी हमले की आशंका पृष्ठ ३३५

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Shetan

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देवर भौजाई का फागुन




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गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा- “पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”





मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं



" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"

और मैं देवर का हक पूरी तरह अदा कर रहा था।

लण्ड का बेस तो दूबे भाभी के हाथ था, और सुपाड़ा संध्या भाभी की चूत के मुहाने पे रगड़ खा रहा था। दूबे भाभी ने पीछे से ऐसे धक्का दिया की जैसे वही चोद रही हों। लेकिन फायदा मेरा हुआ, हल्का सा सुपाड़ा भाभी की चूत में। बस इतना काफी था उन्हें पागल करने के लिए।

चूत की सारी नशें तो शुरू के हिस्से में ही रहती हैं। मैंने हल्के से कमर गोल-गोल घुमानी शुरू की और सुपाड़ा चूत की दीवाल से रगड़ने लगा।

मैंने चारों ओर देखा और कान में बोला- “भाभी। आप कह रही थी ना की गधे घोड़े ऐसा। तो अगर सुपाड़े में इत्ता मजा आ रहा है तो पूरा घोंटने में कितना आएगा। और सुपाड़ा तो बस आप लील ही जायेंगी तो फिर पूरा लण्ड भी अन्दर चला जाएगा…”

संध्या भाभी मजे से सिसक रही थी और उनकी सिसकियों से ज्यादा जिस तरह उनकी कमर पीछे की ओर पुश कर रही थी, उनकी चूत चिपक, फ़ैल रही थी, बता रही थी उन्हें कितना मजा आ रहा था,



लेकिन गुड्डी को बिलकुल मजा नहीं आ रहा था, वो एकदम रिंग साइड सीट पर थी, लेकिन वो सौ कोस दूर भी होती तो मन में उसने जो जादुई शीशा लगा रखा था, उसे मेरी एक एक बात बिना देखे पता चल जाती थी, और जो उस की आदत थी, सब के समाने उसने जोर से हड़काया,

" अरे जरा से क्या होगा, संध्या दी का, बाकी क्या अपनी उस रंडी एलवल वाली के लिए बचा रखा है, अरे मैंने बोल दिया, रीत ने बोल दिया, दूबे भाभी की मुहर लग गयी की जब लौट के उसे साथ ले के आओगे तो उस पे रॉकी को चढ़ाएंगे, तेरा जीजा बनाएंगे, उसकी मोटी गाँठ का मजा एक बार ले लेगी तो जिंदगी भर तेरे गुन जाएगी, भाई हो तो ऐसा, राखी का पैसा माफ़ कर देगी, "

एक तो संध्या भाभी की देह की गर्मी, फिर गुड्डी का हुकुमनामा,

मेरी बात और काम दोनों दूबे भाभी ने पूरी की-

“अरे जो साली ये कहे की लण्ड मोटा है उसे घोंटने में दिक्कत होगी। इसका मतलब वो रंडीपना कर रही है, पैदाइशी छिनाल है मादरचोद। उसकी चूत और गाण्ड दोनों में पूरा ठोंक देना चाहिए और ना माने तो मेरी मुट्ठी है ही। अरे इत्ते बड़े-बड़े बच्चे इसी चूत से निकलते हैं, पूरी दुनियां इसी चूत से निकलती है, ये बोलना चूत की बेइज्जती करना है…”

और ये कहते हुए उन्होंने दो उंगलियां मेरे पीछे डाल दी, और इसका खामियाजा संध्या भाभी को भुगतना पड़ा।

एक न्यूटन नाम के आदमी थे न जिन्होंने एक कानून बनाया था एवेरी एक्शन हैज, वही वाला, तो वही हुआ।

उस झटके से मेरा पूरा सुपाड़ा अब उनकी कसी मस्त चूत में था।



मेरी दो उंगलियां जो भाभी की गाण्ड का हाल चाल ले रही थी, वो भी पूरी अन्दर। गनीमत था की उनकी चूची मैंने कसकर पकड़ रखी थी, वरना इतने तगड़े झटके से वो गिर भी सकती थी। आगे से लण्ड और पीछे से मेरी उंगलियां। संध्या भाभी को अब फागुन का पूरा रस मिलना शुरू हो गया था।

सुपाड़ा घुसते समय दर्द तो उन्हें बहुत हुआ, लेकिन जैसे चंदा भाभी कह रही थी की वो बचपन की चुदक्कड रही होंगी। उन्होंने अपने दांतों से होंठों को काटकर चीख रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन तब भी दर्द की चीख निकल गई और अब मजे की सिसकियां और हल्के दर्द की आवाज दोनों साथ निकल रही थी।

उनकी दर्द से हालत खराब थी और मेरी मजे से। एकदम मुलायम चूत खूब कसी, जिस तरह से कस कस के मेरे सुपाड़े को खड़े खड़े भींच रही थी, निचोड़ रही थी, दबोच रही थी, साफ़ लगा रहा था, कितनी नदीदी है, कितनी भूखी, और मैं तो उन्हें भर पेट भोजन करा देता, लेकिन छत पर खड़े खड़े सबके सामने एक कौर खिला के ही अभी, मन बस यही कह रहा था की यार जाने के पहले एक बार मन भर, जी भर के संध्या भौजी को चोद लेने का मौका मिल जाता, नयी ब्याहता औरतों पे चढ़ने का मजा ही कुछ और है,



संध्या भौजी को मजा तीन जगह से मिल रहा था, मैं कस कस के एक हाथ से उनकी बड़ी बड़ी चूँची दबा रहा था, दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ दो पोर तक उनके पिछवाड़े घुसी, साफ़ था की उनके मरद पिछवाड़ा प्रेमी नहीं थे, ये इलाका अभी कोरा था, और बिल में घुसा मेरा मोटा सुपाड़ा। और पिछवाड़े वाली ऊँगली भी कभी गोल गोल घूमती तो कभी अंदर बाहर होती, आखिर जब मेरे पिछवाड़े थोड़ी देर पहले ही हमला हुआ था तो संध्या भाभी ने पूरी ताकत से उसे चियारा था, अभी तक फट रही है, और सुपाड़े का एक हल्का धक्का भी संध्या भाभी की चीख निकलवा रहा था।



संध्या भाभी तो खुश थी ही, लेकिन उनसे ज्यादा दो लोग और खुश थीं, एक तो गुड्डी, ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी , दूसरे चंदा भाभी, रीत की वो जम के रगड़ाई कर रही थीं, लेकिन औरतों के कितनी आंख्ने होती हैं ये उन्हें भी नहीं मालूम होता तो वो अपने चेले का और अपनी ननद का खेल देख रही थीं। और गुरुआइन से ज्यादा चेले के अच्छा करने पे किसे ख़ुशी होगी ,

लेकिन ये वो भी जानती थी और मैं भी की इस खुली छत पे, दिन दहाड़े जहाँ चार और लोग भी हैं। फिल्म का ट्रेलर तो चल सकता था लेकिन पूरी फिल्म होनी मुश्किल थी।



“मेरी तुम्हारी होली…” वो मुश्कुराकर बोली।



लेकिन उनकी बात काटकर मैं बोला-


“होगी भाभी। अभी तो आज और फिर रंगपंचमी के दो दिन पहले ही मैं आ जाऊंगा ना, तो तीन दिन की रंगपंचमी करेंगे। मैं उधार रखने में यकीन नहीं रखता खास तौर पे ऐसी सेक्सी भाभी का…”

और अपनी बात के सपोर्ट में लण्ड का एक धक्का और दिया उनकी चूत में और चूची पूरी ताकत से दबोच ली।

हामी उनकी चूत ने भी भरी मेरे लण्ड को कसकर सिकोड़ के।

गुड्डी थी न, सिर्फ रिंग साइड पे दर्शक ही नहीं रेफरी भी, संध्या भाभी की ओर से बोली,



"दी, आज नगद कल उधार, और उधार प्रेम की कैंची है। काल करे सो आज कर, बस मैं इनको साथ ले नहीं जाउंगी जब तक ये बाकी का,... "

गुड्डी का इशारा काफी था और ये तो, ...और संध्या भाभी ने चख तो लिया ही था,



लेकिन न तो संध्या भाभी बचीं न उनकी रगड़ाई रुकी,

मेरी जगह दूबे भाभी ने ले ली और एक बार फिर साया उठ गया।

मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी के बीच सैंडविच बना हुआ था। दूबे भाभी कन्या प्रेमी थी, इसका अंदाज तो मुझे पहले ही चल गया था। दूबे भाभी ने संध्या भाभी की दूसरी चूची पकड़ ली थी और मजे ले रही थी।


मैंने धीमे से अपना लण्ड निकाला साड़ी साया ठीक किया और निकल आया।

क्या रगड़ाई की दूबे भाभी ने संध्या भाभी की, जिस प्रेम गली में पहले मेरी ऊँगली घुसी थी फिर मोटा सुपाड़ा,

वहां अब दूबे भाभी की चार चार मोटी उँगलियाँ, कभी कैंची की तरह फैला देतीं तो कभी हचक के चोद चोद के भाभी की हालत ख़राब करती, बुर तो संध्या भाभी की पहले ही लासा हो रही थी, गप्प से भौजी की उँगलियाँ घुस गयीं,

और थोड़ी देर में संध्या भाभी नीचे और दूबे भाभी ऊपर साया दोनों का कमर तक, दूबे भौजी कस कस के अपनी गर्मायी बुर संध्या भौजी की चूत से रगड़ रही थीं जब तक दोनों लोग झड़ नहीं जाएंगी मैं जानता था था हे ननद भाभी की देह की होली रुकेगी नहीं।

उधर चंदा भाभी और रीत की होली में युद्ध विराम हो चुका था।



जब मैं संध्या भाभी के साथ लगा था तब भी मैं उनकी लड़ाई का नजारा देख रहा था।

रीत से तो कोई जीत नहीं सकता ये बात स्वयं सिद्ध थी। लेकिन चंदा भाभी भी अपने जमाने की लेस्बियन रेसलिंग क्वीन रह चुकी थी। (और हिंदुस्तान में अगर “अल्टीमेट सरेंडर…” टाईप कोई प्रोग्राम हो, जिसमें लड़कियां एक दूसरे से सिर्फ कुश्ती ही नहीं लड़ती बल्की एक दूसरे की ब्रा और पैंटी को खोलकर अलग कर देती हैं और जो जिसकी चूत में जितनी हचक के उंगली करे। उसी प्वाइंट पे जीत हार होती है। आखिरी राउंड में दोनों बिना कपड़ों के ही लड़ती हैं। और अंत में इनाम के तौर पे जितने वाली की कमर में एक डिल्डो लगाया जाता है। जिससे वो हारने वाली को हचक-हचक के चोद सकती है उसकी गाण्ड मार सकती है। तो चंदा भाभी निश्चित फाइनल में पहुँचती)।



कपड़े वपड़े तो रीत और चंदा भाभी की होली में सबसे पहले खेत रहे। पहली बाजी चंदा भाभी के हाथ थी। वो ऊपर थी और अपनी गदरायी बड़ी-बड़ी 36डी चूचियों से रीत के मादक जोबन, जो अब पूरी तरह खुले थे, रगड़ रही थी। रीत के दोनों पैर भी उन्होंने फैला दिए थे। लेकिन रीत भी कम चालाक नहीं थी। उसने अपनी लम्बी टांगों से कैंची की तरह उन्हें नीचे से ही बांध लिया। अब बेचारी चंदा भाभी हिल डुल भी नहीं सकती थी और अब वो ऊपर थी।



जो ढेर सारे रंग मैंने उसके मस्त जोबन पे लगाए थे वो सब अब चंदा भाभी की चूचियों पे छटा बिखेर रहे थे।

उसने अपने दोनों हाथ चंदा भाभी के उभारों की ओर किये तो चंदा भाभी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ने की कोशिश की और वहीं वो मात खा गईं। रीत ने एक हाथ से उनके दोनों हाथों को पकड़ लिया और उसका खाली हाथ सीधे चंदा भाभी की जांघों के बीच। पिछली कितनी होलियों का वो बदला ले रही थी जब चंदा भाभी और दूबे भाभी मिलकर होली में उसकी उंगली करती थी। और आज जब मुकाबला बराबर का था तो तो रीत की उंगली चंदा भाभी की बुर में।

लेकिन थोड़ी देर में ही जब रीत रस लेने में लीन थी तो चंदा भाभी ने अपने को अलग कर लिया और फिर।

अगला राउंड शुरू। मुकाबला बराबर का था और दोनों पहलवान एक दूसरे को पकड़े सुस्ता रहे थे।

दोनों जोड़ियां बाकी दुनिया से बेखबर, छत के एक किनारे पे जहाँ वैसे भी अभी हुयी होली का रंग बिखरा था, ना जाने कितनी बाल्टी रंग बिखरा हुआ था, रंग की पुड़िया, पेण्ट की ट्यूब, और उस बहते हुए रंगों के बीच दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और रीत और चंदा भाभी,



सावन भादों की बारिश में कई बार लगता है झड़ी रुक गयी है, सिर्फ पेड़ों की पत्तियों से, ओसारे से टप टप बूंदे टपकती हैं, लेकिन फिर कहीं से पास के पोखर से, बगल के गाँव की नदी से बादल घड़े भर भर के लाते हैं और एक बार फिर बारिश शुरू हो जाती है, ठीक यही बात होली में होती है, खास तौर से घर में, ननद भौजाई में, कहीं किसी ने छेड़ दिया और फिर से होली,



और देह की होली में

तो रीत और चंदा भाभी रुकी थीं, थकी थीं, लेकिन फिर बीच बीच में, और दूबे भाभी और संध्या भाभी का कन्या रस तो हर बार एक नयी ऊंचाई पे।

पांच दस मिनट का इंटरवल और फिर दुबारा
Man gae komalji. Fagun to dewar bhabhi ka hi hota hai. Lo sandhya bhabhi ne khud kabula. Aur jab dewar hi jija bhi ho to kahena hi kya. Akhir guddi ke vo to tumhare jija lagenge na.

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Bilkul sahi lapet rakha hai. Joban hath me supada prem gai. Aur pichhvade ke dvar par unliya. Magar dube bhabhi ne tumhe kabu kar rakha hai. Khud tumhara khuta sandhya bhabhi ke prem gali me ragadte guru gyan de rahi hai.

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Hmmm tumhari guddi. Are use bhi tab tak maza nahi aaega jab tak gachak ke na pelo to. Kab se usi ki rah dekh rahi hai. Tabhi to mayke me uski bhabhi,chachi tai, aur bhabhi tarif karegi. Tere vala to sabse mast hai. Aur apne vale ki tarif sun ne ka maza use alag aaega.

Sab me anand babu ki bahen to bina chode hi chud jati hai. Anand babu ke hone vale sasural ke labzo se hi. Khas kar tumhari guddi. Are vo bhabhi hi kya jo apne marad ko uske bahen ke chut ki duhai na de to. Dekh lo. Ese hi eval vali pe chadhoge. Khush ho gai to rakhi ka pesa bhi nahi legi.

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Yahi to bat hoti hai ashli purane chaval ki. Jai ho guru dube bhabhi ki. Are jab bhabhi ne tere khute ki tarif kar di to kahe ruke hue ho. Ragad do sali ko. Agada bhi aur pichhada bhi.

Par sirf bhabhi gyan hi nahi deti kam bhi karti hai. Apne chele ka uddhar bhi karti hai. Dekha tumhari gandiya me ungli kari to gach se sabdhya bhabhi ki prem gali me khuta tumhara ghus gaya. Kya idea aaya he baki. Me ye note kar ke rakhungi idea. Apni story bat lenge ham ke lie.

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Bilkul sahi kaha. Ek to purana chawal aur lesbian ki purani sokhin. Maza aa gaya. Unhone bhi apni ungliyo ka jadu chalana shuru kar diya. Amezing.

Ye vala update alag hi rakhte to jyada maza aata. Nari ras matlab ki kanya ras dono hi. Reet ki abhi tak fati nahi hai. Par mukabla kate ka diya hai. Pichhli bar to 2 bhabhiya thi. Par ab mukabla kate ka diya hai. Chanda bhabhi purani kheli khai to reet kaha kabu aane vali hai.

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Amezing amezing amezing. Bas kanya ras kam pad gaya. Aur bhi bahot tha. Par yaad nahi aaya.
 

Shetan

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गुड्डी - मन जिसका तन उसका




छत के दूसरे कोने पे गुड्डी बैठी थी, जिस कमरे में कल मैं और चंदा भाभी, उस की चौखट पे .

गुड्डी भी एक प्लेट में गुझिया लेकर (अब हम सब भूल चुके थे की उसमें भांग पड़ी थी) गपक रही थी-जैसे लोहे के कण बिना बुलाये चुंबक से जा चिपकते हैं मेरी हालत वही थी, गुड्डी के लिए। बड़ौदा से यहाँ आने के लिए तीन बार मैंने ट्रेन बदली, बस किया और फिर टेम्पो में बैठकर,

तो अभी जैसे ही मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी की सैंडविच से निकला सीधे गुड्डी को सूंघता हुआ,


और दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और चंदा भाभी और रीत अपने में इतने मस्त थे की उन्हें फरक नहीं पड़ने वाला था की मैं और गुड्डी कहाँ है, क्या कर रहे है। जहाँ गुड्डी बैठी थी, वहां से छत का वो कोना जहाँ लेडीज रेसलिंग चल रही थी, दिखता तो था, लेकिन मुश्किल से।

मैं गुड्डी के बगल में बैठ गया और उस से चिपक के लिबराते बोलने लगा,

“हे, मुझे भी दे ना…”

पहले तो उसने चिढ़ाया, "नदीदे, मंगते, तेरी माँ बहने जैसे टांग फैला देती हैं पहला मौका पाते ही, वैसे ही तू हाथ फैला देते, ...मुझे भी दो "

फिर प्लेट के बची हुयी एकमात्र फूली फूली बड़ी सी गुझिया एक बार में गपक गयी, जैसे ठूंस ठूंस के मुंह में घुसाया हो, गाल एकदम फूले, फिर बड़ी रोमांटिक अदा में बोली

“ले लो तुम्हारे लिए तो सब कुछ हाजिर है…” उसने प्लेट बढ़ाई।

प्लेट एकदम खाली थी,



लेकिन मैंने उसका सिर पकड़कर पहले तो उसके होंठों को चूमा और फिर मुँह में जीभ डालकर उसकी खायी कुचली मुख रस में घुली गुझिया लेकर खा गया-

“ये ज्यादा रसीली नशीली है…”

मेरा एक हाथ अपने आप गुड्डी के खुले उरोजों की ओर चला गया। इन्हीं ने तो मुझे जवान होने का अहसास दिलाया था शर्म गायब की थी। वो मेरी मुट्ठी में थे।

गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था, चंदा भाभी ने उसकी फ्राक के ऊपरी हिस्से को तो चीथड़े चीथड़े कर दिया था और फ्रंट ओपन ब्रा को खोल के पहले तो कबूतरों को आजाद किया फिर रंगड़ा मसला, रंग, पेण्ट संब लगाया, लेकिन असली बात ये थी की मुझे फर्क नहीं पड़ रहा था।

खुली छत पर जहाँ चार लोग और भी थे मैं खुल के गुड्डी का जोबन रस ले रहा था।



मुझे चंदा भाभी की कल रात की बात याद आयी,

" कल तुझे और तेरी जाने आलम को यहीं कपडे फाड़ के नंगे नचाउंगी न सबके सामने तो तेरी झिझक निकल जायेगी, और तू भी जब सबके सामने उसको चूमेगा, मसलेगा, और उसके भी कपडे उतरेंगे, तो,... "

बस भाभी की बात याद आते ही मैंने गुड्डी को चूम लिया, सीधे गाल पे, और उसे खींच के अपनी गोद में बिठाने की कोशिश की, लेकिन वह मछली की तरह फिसल गयी, मैं उदास होने की सोचूं उसके पहले उसे पता चल जाता था,

खड़े खड़े प्यार से बोली,

" अरे आ रही हूँ जानू, एक तो तेरे ऐसा चोर मुंह में से मेरी गुझिया लूट ले गया, दूसरे बस,..."

गुझिया का स्टॉक सामने टेबल पर था और बियर की बॉटल्स का चंदा भाभी के कमरे में, प्लेट भर के गुझिया ( डबल डोज भांग वाली तो सभी थीं ) और दो बॉटल बियर की और लौटी तो धम्म से सीधे मेरी गोद में बैठ गयी। और दो बार एडजस्ट होने की ऐसी कोशिश की , कि गुड्डी के छोटे छोटे चूतड़ों से मेरे जंगबहादुर अच्छी तरह रगड़ गए और फनफनाने लगे। लेकिन जैसे मैंने गुझिया पर हाथ मारने कि कोशिश कि, जोर से एक पड़ी मेरे हाथ पे, और डांट भी,


' बिना तेरे हाथ लगाए काम नहीं होगा, देती हूँ न, लेकिन तुझे तो अभी भी हाथ वाली आदत है बचपन की "

मैं समझ रहा था वो किस ' हाथ वाली आदत " कि बात कर रही थी।

एक गुझिया गुड्डी ने उठायी जैसा मुझे पूरी उम्मीद थी आधा उसने खुद खा ली और आधी मेरी ओर बढ़ाई, मैंने खूब बड़ा सा मुंह खोला और

वो वाला भी गुड्डी के मुंह में।



मेरे हाथ में गुझिया नहीं आयी लेकिन और ज्यादा स्वादिष्ट चीजें आ गयी,

फ्रंट ओपन ब्रा खुलने में कितना टाइम लगता है, चुटपुट चुटपुट, और आज पहली बार दिन दहाड़े, दोनों कच्चे टिकोरे, खुली छत पे, मेरी मुट्ठी में, न रंग का बहाना, न टॉप के ऊपर से छूना सहलाना, सीधे चमड़ी से चमड़ी, मेरी हथेली कि तो आज बनारस में किस्मत खुल गयी थी, जोबन का रस तो आज मैंने सबका लूटा था,...


गूंजा ऐसी जस्ट टीन से लेकर दूबे भाभी ऐसी पक्की खेली खायी असली एम् आई एल ऍफ़ तक, और खुल के लूटा था लेकिन कभी कपड़ों कि छाँव में तो कभी रंग के बहाने

पर जिसके बारे में मैं सोते जागते सोचता था, वो मेरी गोद में दिन में खुली छत पे होगी, और उसके खुले उभार मेरी मुट्ठी में होंगे और ऐसा भी नहीं छत पे हम दोनों अकेले, लेकिन कुछ देर रगड़ने मसलने के बाद गुड्डी मेरी गोद से उठ गयी, और मेरा सर खींच के अपनी गोद में ले लिया। मैं अधलेटा सा उस सारंग नयनी, बनारस वाली कि गोद में सर रखे, उसकी बड़ी बड़ी आँखों को देखता, उसमे तिर रहे अपने सपनो को देखता,

कुछ तो है इस लड़की कि आँखों में एक बार आँख मिलने पर बोलती तो बंद होती ही है, सोचना भी बंद हो जाता है,


गुड्डी ने कस के एक हाथ से मेरे दोनों गालों को दबाया, चिरैया कि चोंच ऐसा मेरा मुंह खुल गया,

और जो गुझिया बड़े देर से वो चुभला रही थी, मुंह में रखे कूच रही थी, टुकड़े टुकड़े हो कर, गुझिया कम गुड्डी का मुख रस ज्यादा, उसमें लिसड़ा लिथड़ा, खूब गीला, बड़ी देर तक, गुड्डी अपने मुंह से उसके मुंह में, और फिर अंत में एक जबरदस्त चुम्मा,


" मुझे मालूम है तुझे क्या क्या नहीं पसंद है, सब ऐसे ही खाना पडेगा, मेरे सामने छिनरपन नहीं चलेगा, "

अपने होंठ उठा के वो खंजन नयन बोली,


मैं जान रहा था उसका उसका इशारा किधर है, लेकिन मैंने जिंदगी से वादा किया था, ये लड़की मिल जाए एक बार, एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, फिर तो चलेगी इसकी, इसकी १०० बात मंजूर। लेकिन आँखे पैदायशी लालची, उसकी फ्रंट ओपन ब्रा अभी भी ओपन थी और आँखे बेशर्म सीधे वहीँ



जितनी मेरी आँखे बेशरम उतनी गुड्डी की उँगलियाँ,... शोख,... शरारती


वो जानबूझ के बिच्छी की तरह उन कातिल उभारों पर डोल रही थीं, कभी बस जुबना को और उभार देतीं तो कभी टनटनाये निपल को अंगूठे और ऊँगली के बीच पकड़ के पिंच कर देतीं,

जितने गुड्डी के निपल टनटना रहे थे उसने मेरे जंगबहादुर फनफना रहे थे, और गुड्डी उस बेचारे की बेसबरी देख के मुस्करा रही थी, फिर खुद झुक के वो निपल एकदम मेरे होंठों के पास, लेकिन जैसे मैंने सर ऊपर किया, उभार और दूर,

गुड्डी तड़पाती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, दो चार बार के बाद, जैसे कोई फलों से लदी डाली खुद झुके, वो झुकी, निप्स उसने रगड़ा मेरे होंठों पे और जैसे ही मेरे होंठ खुले, वो अंदर

चुसूर चुसूर मैं मस्त हो कर चूस रहा था और अब दूसरा जोबन मेरे हाथ में,

और गुड्डी का एक हाथ मेरे सर को प्यार से सहला रहा था, और उँगलियाँ जैसे मेरे उलझे बालों को सुलझा रही हों, उनमे कंघी कर रही हो, मेरी आँखे सजनी की आँखों में डूबी, मेरे मुंह को तो उसने अपने उभार से बंद कर रखा था, लेकिन टीनेजर के होंठ तो खाली थे, वो बोली,

" मैं कह रही थी न संध्या दी बहुत गर्मायी है, अच्छा ट्रेलर दिखया तूने, लेकिन यहाँ से आज चलने के पहले उनका काम कर के जाना,"

बीच बीच में गुड्डी बियर की भी घूँट लगाती और असर अच्छा खासा हो गया था, बोली वो,...

" हचक के पेलना अपनी संध्या भाभी को, उन्हें भी पता चले लौंड़ा होता क्या है "



और गुड्डी ने राज खोला, साल भर मुश्किल से हुआ था, संध्या भाभी शादी के बाद बिदा हो के और अगले दिन सुबह, फोन पर सब भौजाइयां मोहल्ले की, और गुड्डी ऐसी जवान होती लड़कियां भी कान पारे, किसी ने स्पीकर फोन भी ऑन कर दिया था, सवाल सब वही , कितनी बार, कितना मोटा, कितनी देर तक, और संध्या भाभी विस्तार से, वो सब भाभियाँ भी जिनका मर्द पहले दिन ही बाहर पानी निकाल चूका हो या उन्ह कर के सो गया हो वो सब भी, खूब बढ़ा चढ़ा के, तो संध्या भाभी ने बोला

"बोलने लायक नहीं हैं बहुत रगड़ी गयी हैं, सुबह दो ननदें समझिये टांग के ले आयीं उन्हें। :

चंदा भाभी ने चिढ़ाया भी, बोलने लायक नहीं मतलब, क्या पहले दिन ही नन्दोई जी ने चमचम भी चुसवा दिया, अरे था कितना बड़ा,

और संध्या भाभी बड़े गर्व से बोलीं, अरे बहुत बड़ा है, नापा तो नहीं लेकिन ६ इंच तो होगा ही, या आसपास,

गुड्डी उस समय दसवें में थी और छह सात महीने पहले उसकी मेरे जंगबहादुर से दोस्ती हो चुकी थी, ज्यादा नहीं लेकिन हाथ उनसे मिला चुकी थी। उसे मालूम था इतना तो उसके यार का सोते समय, और जागने पर बित्ते से बड़ा ही,

और अबकी जब आयीं तब से अपने पति के औजार का गुणगान,

" फाड़ के रख देना, अपनी संध्या भौजी की चूत " गुड्डी हँसते बोली।

"एकदम, " मैं बोला, गुड्डी के उभार मेरे मुंह से बाहर हो गए थे लेकिन उसकी बात का जवाब भी देना जरूरी था, गुड्डी जो बियर की बॉटल पी रही थी उसी से टप टप अपने उभारों से गिराते हुए मेरे होंठों के बीच,

और मैं होंठों की ओक बना के पी रहा था, बियर में अचानक अल्कोहल कॉन्टेंट ४० % से बढ़कर ८० % हो गया था, जोबन का नशा,

" तेरी उँगलियों ने ही उनकी हालत खराब कर दी थी, जब पूरा मोटू घुसेगा तो पता चलेगा, " हँसते हुए गुड्डी बोली

और मेरी उँगलियाँ लेके सीधे मुंह में,


और मेरी चमकी दो उँगलियाँ तो संध्या भाभी की प्रेम गली की सैर करके आयी थीं, लेकिन दो ने पिछवाड़े भी डुबकी लगाई थी, मैंने ऊँगली हटाने की कोशिश की, और बोला भी, ..अरे ये ऊँगली संध्या भाभी के

मेरी बात काट के वो हड़काते हुए बोली,

" ऊँगली किसकी है, ...मेरी मर्जी, मुझे मालूम है "




मन जिसका तन उसका,



मैं थोड़ा ज्यादा ही रोमांटिक होने लगा, एक गुझिया और खाने को मिली, उसी तरह से पहले गुड्डी के मुँह में फिर उसके मुख रस से भीगी



बात मैंने कुछ सात जन्मों टाइप करने की कोशिश की तो जोर से डांट पड़ गयी,

" सुन यार अब सात जन्म में तो जो होना था होगा लेकिन आठवें जन्म में मैं पक्का लड़का बनूँगी और तुम लड़की, ...और तेरी झांट आने से पहले तेरी चूत का भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और सिर्फ तेरी ही ऐसी की ऐसी की तैसी नहीं करुँगी, तेरी माँ, बहन, सहेलियां सब की, पेलूँगी पहले पूछूँगी बाद में, ये नहीं की तेरी तरह आधे टाइम सिर्फ सोचने में, "



लेकिन तब तक हम दोनों का ध्यान रीत की सिसकियों ने खींच लिया, रीत तेज थी, स्मार्ट थी, लेकिन चंदा भाभी भी पुरानी खिलाड़ी

दोनों 69 की पोज में और चंदा भाभी ने आराम से रीत की गुलाबी फांको को फैलाया और कस के अपनी जीभ पेल दी,

गुड्डी, मैंने कहा न, कहने से ज्यादा करने में विश्वास करती थी और आज इस होली की मस्ती के बाद तो जरा भी झिझक नहीं बची थी। वो बात तो मुंह से कर रही थी लेकिन उसकी नरम हथेलियां जंगबहादुर की मालिश कर रही थीं, उनको तो गुड्डी ने कब का बाहर कर दिया, और वो टनटनाये और अब हाथ की जगह मुंह ने लिया,



पहले दो चार चुम्मी, फिर चुसम चुसाईं, सिर्फ सुपाड़े की, कभी जीभ की टिप पेशाब का छेद कुरेदती तो कभी गप्प से सब अंदर

लेकिन गुड्डी स्मार्ट जैसे ही रीत झड़ी,

गुड्डी ने मेरे औजार को कपड़ों के अंदर और हम दोनों अच्छे बच्चों की तरह प्लेट से गुझिया खा रहे थे



रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।
Bilkul sahi mili hai tumhe anand babu. Tum jitne sidhe sharmate utna hi vo tez tarar kya romantic mahol banaya hai aap ne. Maza hi aa gaya. Gujiya chot. Lekin chori thodi ki. Aap ne to chhin liya. Reeta aur chanda bhi bhi bas dekh ke maza le rahi hai. Kya kare har wakt to shararar nahi kar sakte na. Love it.

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komaalrani

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भाग २६ ------------पूर्वांचल और,
गुड्डी

Page 318


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Shetan

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फागुन के दिन चार -भाग १८

मस्ती होली की, बनारस की

२,१५,९३१



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रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।

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“अकेले अकले…” दोनों ने एक साथ मुझे और गुड्डी को देखकर बोला।

“एकदम नहीं…” और मैं गुझिया की प्लेट लेकर रीत के पास पहुँच गया। मैंने उसे गुझिया आफर की लेकिन जैसे ही वो बढ़ी मैंने उसे अपने मुँह में गपक ली।

“बड़ा बुरा सा मुँह बनाया…” तुम दिखाते हो ललचाते हो लेकिन देने के समय बिदक जाते हो…” वो बोली।

चंदा भाभी गुड्डी को लेकर अपने कमरे में चली गयी, कुछ उसे नहाने का सामन देना था। संध्या भाभी और दूबे भाभी पहले ही नीचे चले गए थे, छत पे सिर्फ मैं और रीत बचे थे और मुझे गुड्डी की आठवें जन्म वाली बात याद आ रही थी, न तुझे छोडूंगी, न तेरी माँ बहनो को न सहेलियों को।

“तुम्हीं से सीखा है…” गुझिया खाते हुए मैंने बोला।


“लेकिन मैं जबरदस्ती ले लेती हूँ…”

हँसकर वो बोली और जब तक मैं कुछ समझूँ समझूँ। उसके दोनों हाथ मेरे सिर पे थे, होंठ मेरे होंठ पे थे और जीभ मुँह में।

जैसे मैंने गुड्डी के साथ किया था वैसे ही बल्की उससे भी ज्यादा जोर जबरदस्ती से। मेरे मुँह की कुचली, अधखाई रस से लिथड़ी गुझिया उसके मुँह में। तब भी उसके होंठ मेरे होंठों से लाक ही रहे।

फिर तो पूरी प्लेट गुझिया, गुलाब जामुन की इसी तरह। हम दोनों ने, हाँ चंदा भाभी भी शरीक हो गई थी।

“हाँ अब दम आया…” अंगड़ाई लेकर वो हसीन बोली।

“तो क्या कुश्ती का इरादा है?” मैंने चिढ़ाया।

“एकदम। हाँ तुम हार मान जाओ तो अलग बात है…” वो मुश्कुराकर बोली।

“हारूँ और तुमसे। वैसे अब हारने को बचा ही क्या है? हमें तो लूट लिया बनारस की ठगनियों ने…” मैंने कहा।

“अच्छा जी जाओ हम तुम्हें कुछ नहीं कहते इसलिए। ना। और आप हमें ठग, डाकू, लूटेरे सब कह रहे हैं…” रीत बोली।

“सच तो कहा है झूठ है क्या? और आप लोगों ने एक से एक गालियां दी का नाम लेकर मेरी बहन का नाम लगा लगाकर। बहनचोद तक बना डाला…”

“तो क्या झूठ बोला। हो नहीं क्या?” वो आँख नचाते हुए बोली।

“और नहीं हो तो इस फागुन में तुम्हारी ये भी इच्छा पूरी हो जायेगी। बच्चा। ये मेरा आशीर्वाद है…” स्टाइल से हाथ उठाकर चंदा भाभी बोली।

आशीर्वाद तो मुझे रीत के लिए चाहिए था और वो अपनी पाजामी में पेंट की ट्यूब और रंग की खोंसी पेंट की ट्यूब और रंग की पुड़िया निकालकर अपनी गोरी हथेलियों पे कोई जहरीला रंगों का काकटेल बना रही थी।

“भाभी ये आशीर्वाद राकी को भी दे दीजिये ना इनकी तरह वो भी इनकी कजिन का दीवाना है…” ये बोलकर वो उठ खड़ी हुई और मेरी और बढ़ी।

मैं भागा।

पीछे-पीछे वो आगे आगे मैं।

अब होली की फिर नई जोड़ियां बन गई थीं। चंदा भाभी गुड्डी को कुछ यौन ज्ञान की शिक्षा दे रही थी कुछ उंगलियों से कुछ होंठों से।

संध्या भाभी एक बार फिर दूबे भाभी के नीचे और अपने ससुराल में सीखे हुए दावं पेंच आजमा रही थी।

“ये फाउल है…” पीछे से वो सारंग नयनी बोली।

मैं रुका नहीं मैं उसकी ट्रिक समझता था। हाँ धीमे जरूर हो गया।

“कैसा फाउल?” मैंने मुड़कर पूछा।

“क्यों प्यारी सी सुन्दर सी लड़की अगर पकड़ना चाहे तो पकड़वा लेना चाहिए ना…” वो भोली बनती बोली।

“एकदम मैं तो पकड़ने और पकड़वाने दोनों के लिए तैयार हूँ…” मैंने भी उसी टोन में जवाब दिया।

लेकिन जब वो पकड़ने बढ़ी तो मैंने कन्नी काट ली और बचकर निकल गया। वो झुकी लेकिन वहां रंग गिरा था और रीत फिसल गई।

मैं बचाने के लिए बढ़ा तो मैं भी फिसल गया लेकिन इसका एक फायदा हुआ रीत के लिए।

नीचे मैं गिरा और ऊपर वो। उसको चोट नहीं लगी लेकिन मुझे बहुत लगी, उसके जोबन के उभारों की जो सीधे मेरे चेहरे पे।

लेसी ब्रा सरक गई थी मेरी उंगलियों ने तो उन गुलाबी निपलों का रस बहुत लिया था। लेकिन अब मेरे होंठों को मौका मिल गया अमृत चखने का और उन्होंने चख भी लिया। पहले होंठों के बीच फिर जीभ से थोड़ा सा फ्लिक किया और दांत से हल्का सा काट लिया।

वो धीरे से बोली- “कटखने नदीदे…”

जवाब में मैंने और कसकर रीत के निपलों चूस लिए।

लेकिन अब वो थोड़ी एलर्ट हो गई थी। वो उठी और अपनी ब्रा ठीक करने लगी। मैं उसे एकटक देख रहा था एकदम मन्त्र मुग्ध सा, जैसे किसी तिलस्म में खो गया हूँ। घने लम्बे काले बाल उसकी एक लट गोरे गालों को चूमती। गाल जिनपे रंग के निशान थे और वो और भी शोख हो रहे थे।

लेसी ब्रा रंगों से गुलाबी हो गई थी और कुछ उरोजों के भार से कुछ रंगों के जोर से काफी नीचे सरक आई थी। एक निपल बाहर निकल आया था और दूसरे की आभा दिख रही थी। पूरे उरोज का गुदाजपन, गोलाईयां, रंग से भीगी जोबन से पूरी तरह चिपकी, उसका भराव, कटाव दर्शाती।

और नीचे चिकने कमल के पते की तरह पेट पे रंग की धार बहती। जो पिचकारियां मैंने उसे मारी थी, पाजामी सरक कर कुल्हे के नीचे बस किसी तरह कुल्हे की हड्डियों पे टिकी। वैसे भी रीत की कमर मुट्ठी में समां जाय बस ऐसी थी।

पाजामी भी देह से चिपकी और जो वो गिरी तो रंग जांघों के बीच भी और भरतपुर भी झलक रहा था।

वो रंग लगाना भूल गई। मैं तो मूर्ती की तरह खड़ा था ही।

“हे कैसे ऐसे देख रहे हो देखा नहीं क्या कभी मुझे?” रीत की शहद सी आवाज ने मुझे सपने से जगा दिया।

“हाँ नहीं। ऐसा कुछ नहीं…”

बस मैं ऐसे चोर की तरह था जो रंगे हाथ पकड़ा गया हो। और पकड़ा मैं गया। रीत के हाथ में और अबकी उसके हाथ सीधे मेरे गालों पे उस रंग के काकटेल के साथ। बिजी मेरे हाथ भी हो गए। एक उस अधखुली ब्रा में घुसा और दूसरा रीत की पाजामी में।

बस मैं पागल नहीं हुआ। उन उभारों को जिन्हें छूना तो अलग रहा सिर्फ देखने के लिए मेरे नैन बेचैन थे। अब वो मेरी मुट्ठी में थे।

जिनका रस लेने के लिए सारा बनारस पागल था, वो रस का कलश खुद रस छलका रहा था बहा रहा था। और साथ में नीचे की जन्नत जिसके बारे में पढ़ के ही वो असर होता था जो शिलाजीत और वियाग्रा से भी नहीं हो सकता था। वो परी अब मेरे हाथों में थी।

उसके मुलायम गुलाबी पंख अब मैं छू रहा था सहला रहा था। एकदम मक्खन, मखमल की तरह चिकनी, छूते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। बिचारे लण्ड की क्या बिसात, वो तो बस उसके बारे में सोचकर ही खड़ा हो जाता था।

हिम्मत करके मैंने उस प्रेम की घाटी में लव टनेल में एक उंगली घुसाने की कोशिश की। एकदम कसी।

लेकिन मेरे एक हाथ की उंगलियां निपल को पिंच कर मना रही थी, मनुहार कर रही थी और दूसरा हाथ उस स्वर्ग की घाटी में। चिरौरी विनती करने में जाता था। कहते हैं कोशिश करने से पत्थर भी पसीज जाता है।

ये तो रीत थी।


जिसके शरीर के कुछ अंग भले ही पत्थर की तरह कड़े हों लेकिन उनके ठीक नीचे उसका दिल बहुत मुलायम था।

तो वो परी भी पसीज गई और मेरी उंगली की टिप बस अन्दर घुस पायी। लेकिन मैं भी ना धीरे-धीरे। आगे बढ़ता रहा और मेरे अंगूठे ने भी उस प्रेम के सिंहासन के मुकुट पे अरदास लगाई। क्लिट को हल्के से छू भर लिया और रीत ने जो ये दिखा रही थी की उसे कुछ पता नहीं मैं क्या कर रहा हूँ। जबर्दस्त सिसकी भरी।

रीत के दोनों हाथ मेरे चेहरे पे रंग लगा रहे थे। मैं जानता था की ये रंग आसानी से छूटने वाला नहीं है पर कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और मैं उसके काम में कोई रोक टोक नहीं कर रहा था और ना वो मेरे काम में।

बस जैसे ही मैंने क्लिट छुआ और मेरी उंगली ने अन्दर-बाहर करना शुरू किया। रीत ने मुझे कसकर पकड़ लिया उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ में धस गए।

और वो खुद अपने मस्त जोबन मेरे सीने पे रगड़ने लगी। मैंने इधर-उधर कनखियों से देखा सब लोग लगे हुए थे। दूबे भाभी संध्या भाभी के साथ और चंदा भाभी गुड्डी के साथ।

किसी का ध्यान हमारी ओर नहीं था। रीत भी यही देख रही थी और अब उसने कसकर मुझे भींच लिया। बाहों ने मुझे पकड़ा। उसके उभारों ने मेरे सीने को रगड़ा। और नीचे उसकी चूत ने कसकर मेरी अन्दर घुसी उंगली को जकड़ा। जवाब मेरे तन्नाये लण्ड ने दिया उसकी पाजामी के ऊपर से रगड़ कर। बस मेरा मन यही कह रहा था की मैं इसकी पाजामी खोलकर बस इसे यहीं रगड़ दूं। चाहे जो कुछ हो जाए।

लेकिन हो नहीं पाया। कुछ खटका हुआ या कुछ रीत ने देखा। (बाद में मैंने देखा संध्या भाभी शायद हमें देख रही थी इसलिए रीत ने)।


बस उसने मेरे कान को किस करके बोला- “हे दूँगी मैं लेकिन बस थोड़ा सा इंतेजार करो ना। मैं भी उतनी ही पागल हूँ इसके लिए…”
मैं और रीत जानते थे अभी इससे ज्यादा कुछ हो नहीं सकता था, गुड्डी दूर खड़ी थम्स अप दे रही थी, लेकिन,...
Wah amezing. Jija sali ka rista hi kuchh esa hi. Upar se reet se to do riste hai. Ek to nandoi vala aur dusra uski bahen jo hai. Pakki vali saheli bhi. To jija bhi ye pakke vale ho gae. To ab anand babu ne sali ke joban achhe se math lie. Upar se prem gali ki pankhdiyo se khel liya. Kya jija sali ka amezing romance likha hai. Jese reet se bhi dushra byah karvane vali ho. Aur apni reet bhi to raji hai. Bol to rahi he dungi me. Thoda sabar rakho.

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Shetan

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गुड्डी



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फिर ब्रेक हो गया और दूबे भाभी की आवाज सुनाई पड़ी

" अरे खाली रगड़ा रगड़ी ही करती रहोगी या कुछ नाच गाना भी होगा। इतनी सूनी होली थोड़े ही होती है…”

चंदा भाभी ने और आग लगाई,

“अरे इत्ता मस्त जोगीड़ा का लौंडा खड़ा है, जब तक पैरों में हजार घुँघुरु वाला इसके पैरो में न बांधा जाये, तब तक तो होली अधूरी है। ढोलक मजीरा हो, जोगीड़ा हो, "

और गुड्डी तो जहा सुई का छेद तलवार घुसेड़ देती थी, बोल उठी,

" एकदम सही कहा आपने, अपनी बहिनिया को दालमंडी में बिठाएंगे, तो कुछ तो मुजरा उजरा करेगी, कल जब मेरे साथ बजार गए थे तो किसी भंडुए से बात कर रहे थे, की वो कत्थक सीखी है तो नाच तो लेगी ही, उसको फोटो भी दिए थे तो वो बोला, होली के बाद ले आना, बसंती बायीं के कोठे पे बैठा दूंगा। "

दूबे भाभी और खुश, बोलीं

“अरे असली भंडुवा है ये, और गंडुवा आज तो बच गया, अगली बार आएगा तो बन ही जाएगा। लेकिन ढंग से गाने के लिए ढोलक और मजीरा तो चाहिए, रीत तू नीचे जा के, संध्या के घर में ढोलक होगी” "



रीत कत्तई नहीं जानी चाहती थी, उसने बहाना बनाया,

" अरे उसकी चाभी संध्या भाभी के पास होगी और फिर दो तीन ढोलक हैं एक खराब भी है, संध्या भाभी को भेज दीजिये वो चेक कर लेंगी, लेती भी आएँगी "

संध्या भाभी तो नीचे जाना ही चाहती थीं, उनके मरद का अब तक दस मिस्ड काल आ चुका होगा। पर गुड्डी ने रीत को एक और काम पकड़ा दिया,

" हे तुझे वो सब भी तो ले आना है " मेरी ओर इशारा कर के वो बोली।

"चल मैं भी चलती हूँ, मैं ढोलक खुद चेक कर लुंगी और मजीरा तुम सब ढूंढ नहीं पाओगी, "

दूबे भाभी नीचे और साथ में रीत और संध्या भाभी भी।



उन लोगो के नीचे जाते ही चन्दा भाभी हंस के बोलीं, " पंद्रह मिनट की छुट्टी "

इशारा उनका साफ़ था संध्या भाभी का फोन, …. मरद इतनी जल्दी तो छोड़ेगा नहीं. फिर दूबे भाभी ढोलक के मामले में एकदम परफक्शनिस्ट थीं, खुद बजा के चेक कर के, और आएँगी सब लोग साथ साथ।

और मेरी निगाह बार बार गुड्डी की ओर जा रही थी, वो मेरा इरादा समझ रही थी, मुस्करा रही थी, चाह वो भी रही थी और दो चाहने वाले चाहते हैं तो हो ही जाता है


चंदा भाभी का फोन बजा, एक ख़ास रिंग और गुड्डी ने चिढ़ाया, क़तर से भतार, अब देखती हूँ पंद्रह मिनट लगता है की बीस मिनट,



चंदा भाभी ने कस के एक घूंसा गुड्डी की पीठ पे जमाया और बोलीं,

" अभी से इतनी चिपका चिपकी होती है तेरी एक बार लग्न हो जाएगी फिर देखूंगी, रहेगी तो इसी घर में "

और करीब दौड़ते हुए अपने कमरे में और दरवाजा भी बंद कर लिया अंदर से, …की हम लोग न सुने .



छत पर मैं और गुड्डी अकेले, और गुड्डी के रंग लगे हाथ

और उसके रंग लगे हाथों ने बर्मुडा में डालकर मेरे लण्ड पे बचा खुचा रंग लगा दिया और मेरे बांहों से निकलते हुए बोलने लगी-

“देख ली तुम्हारी ताकत। जरा सा भी रंग नहीं डाल पाए। और अगर रंग नहीं डाल पाए तो बाकी कुछ क्या डालोगे…”


आँख नचाकर नैनों में मुश्कुराकर जिस तरह उसने कहा की मैं घायल हो गया। मैं उसके पीछे भागा और वो आगे। दौड़ते हुए उसके हिलते नितम्ब, मेरे बर्मुडा का तम्बू तना हुआ था।

मैंने चारों और निगाह दौडाई।

कहीं रंग की एक भी पुड़िया नहीं, एक भी पेंट की ट्यूब नहीं। लेकिन एक बड़ी सी प्लेट में अबीर रखी हुई थी। वही उठाकर मैंने गुड्डी के ऊपर भरभरा कर डाल दी।



वो अबीर-अबीर हो गई। उसकी देह पहले ही टेसू हो रही थी। नेह के पलाश खिल रहे थे और अब। तन मन सब रंग गया।



“हे क्या किया?” वो कुछ प्यार से कुछ झुंझला के बोली।

“तुम ही तो कह रही थी डालो डालो…” मैंने चिढ़ाया।

“आँख में थोड़ी…” वो बोली- “कुछ दिख नहीं रहा है…”

“मैं तुम्हें दिख रहा हूँ की नहीं?” मैंने परेशान होकर पूछा।

“तुम्हें देखने के लिए आँखें खोलनी पड़ती हैं क्या? मुश्कुराकर वो बोली लेकिन फिर कहने लगी- “कुछ करो ना आँख में किरकिरी सी हो रही है…”

मैं उसे सहारा देकर वाश बेसिन के पास लेकर गया। पानी से उसका चेहरा धुलाया। फिर अंजुरी में पानी लेकर उसकी बड़ी-बड़ी रतनारी आँख के नीचे ले जाकर कहा- “अब इसमें आँखें खोल दो…”

और उसने झट से आँखें खोल दी। उसकी आँख धुल गई। फिर मैंने ताजे पानी की बुँदे उसकी आँखों पे मारा। दो-चार बार मिचमिचा के उसने पलकें खोल दी और जैसे कोई चिड़िया सोकर उठे। और पंख फड़फड़ाये।

बस उसी तरह उसकी वो मछली सी आँखें। पलकें खुल बंद हुई और वो मेरी और देखने लगी।



“निकला…” मैंने चिंता भरे स्वर में पूछा।



“नहीं…” वो शैतान मुश्कुराते हुए बोली। वो अभी भी वाश बेसिन पे लगे शीशे में अपनी आँखें देख रही थी।

“क्या अबीर अभी भी नहीं निकला?” मैं पूछा।


“वो तो कब का निकल गया…” ये शीशे में मेरे प्रतिविम्ब की ओर इशारा करती गुड्डी बोली- “ये, अबीर डालने वाला नहीं निकला…”


मैं उसकी बात समझ गया।

“चाहती हो क्या निकालना?” मैं उसके इअर लोबस को अपने होंठों से हल्के से छूकर बोला…”

“मेरे बस में है क्या? इतना अन्दर तक धंसा है। कभी नहीं चाहूंगी उसे निकालना। ऐसे कभी बोलना भी मत…”

मुश्कुराकर शीशे में देखती वो सारंगनयनी बोली।



पीछे से मैंने उसे अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया और रसीले गालों पे एक छोटा सा चुम्बन ले लिया।



फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी।

भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी॥

छीन पितंबर कमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी।


नैन नचाई, कह्यौ मुसकाइ, लला। फिर खेलन आइयो होरी॥



***** *****

एकै सँग हाल नँदलाल औ गुलाल दोऊ,दृगन गये ते भरी आनँद मड़गै नहीं।

धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौंह, अब तो उपाय एकौ चित्त में चढ़ै नहीं।

कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौं कौन सुनै,कोऊ तो निकारो जासों दरद बढ़ै नही।


एरी। मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सों,कढ़िगो अबीर पै अहीर को कढ़ै नहीं।



“होली देह का रंग तो उतर जाएगा लेकिन नेह का रंग कभी नहीं उतरेगा…” मैंने बोला।



उस पल कोई नहीं शेष रहा वहाँ… न चंदा भाभी न दूबे भाभी न संध्या भाभी। और शायद हम भी नहीं। शेष रहा सिर्फ फागुन। रग-रग में समाया रंग और राग। एक पल के लिए शायद श्रृष्टि की गति भी ठहर गई।



न मैं था न गुड्डी थी। सिर्फ हम थे। पता नहीं कितने देर तक चला वो पल। निमिष भर या युग भर?

मैं गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराया और वो मेरी और अब काहे का सूनापन।

लेकिन मान गया मैं गुड्डी को, मुझे किसी भी आसन्न खतरे से भविष्य की किसी आशंका से कोई बचा सकता था तो गुड्डी ही।



मुझसे बहुत पहले उसने सीढ़ियों से आती हुयी पदचाप सुन ली और जब तक मैं कुछ समझूं, सोचूं, वो छटक के दूर, एकदम से सीढ़ियों के पास और वहीँ से मुझे मीठे मीठे देख रही थी, फिर आँखो से उसने सीढ़ी की ओर इशारा किया,



और अगले ही पल सीढ़ी पर से हांफते,कांपते, रीत गले में खूब बड़ी सी ढोलक टाँगे, हाथ में एक बैग लिए, और उसके पीछे संध्या भाभी,हाथ में मजीरा और साथ में दूबे भाभी।


चंदा भाभी का भी क़तर से आया फोन ख़त्म हो गया और नेपथ्य से वह भी सीधे मंच पर।
Amezing... Kya romantic seen create kiya hai. Sab chale gae. Sandhya bhabhi phone par lag gai. Dube bhabhi saman nahi milega ke bahane se chali gai. Chanda bhabhi reet ke sath chali gai. Ab puru chhat par sirf guddi aur anand babu. Ab hogi pyar ki holi

He kya bol rahi hai suna nahi. Tumhe to vo ankhe band kiye bhi dekh sakti hai. Amezing romantic update.


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Shetan

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जा रे हट नटखट, न छू रे मेरा घूंघट


लेकिन पहले इनके पैरों में घुंघरू बंधेगा…” ये गुड्डी थी। उसने वो बैग खोल लिया जो रीत लायी थी। उस में खूब चौड़े पट्टे में बंधे हुए ढेर सारे घूँघरू।

“एकदम-एकदम…” संध्या भाभी ने भी हामी भरी।



मैं फिर पकड़ा गया और चंदा भाभी, संध्या भाभी और गुड्डी ने धर पकड़कर मेरे पैरों में घुंघरू बाँध दी। रीत दूर से मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

मैं क्यों उसे बख्शता। मैंने दूबे भाभी को उकसाया- “आप तो कह रही थी की आपकी ननद रीत बहुत अच्छा डांस कर है तो अभी क्यों?”

लेकिन जवाब रीत ने दिया- “करूँगी। करूँगी मैं लेकिन साथ में नाचना पड़ेगा…”

“मंजूर…” मैं बोला और रीत ने एक दुएट वाले गाना म्यूजिक सिस्टम पे लगा दिया। होली का पुराना गाना। दूबे भाभी को भी पसंद आये ऐसा। क्लासिकल टाइप नटरंग फिल्म का-




धागिन धिनक धिन,

धागिन धिनक धिन, धागिन धिनक धिन,

अटक अटक झटपट पनघट पर,

चटक मटक इक नार नवेली,

गोरी-गोरी ग्वालन की छोरी चली,


चोरी चोरी मुख मोरी मोरी मुश्कुये अलबेली।



दूबे भाभी ढोलक पे थी, संध्या भाभी बड़े-बड़े मंजीरे बजा रही थी, चंदा भाभी हाथ में घुंघरू लेकर बजा रही थी। गुड्डी भी ताल दे रही थी।



कंकरी गले में मारी

कंकरी कन्हैया ने

पकरी बांह और की अटखेली

भरी पिचकारी मारी

सा रा रा रा रा रा रा रा

भोली पनिहारी बोली

सा रा रा रा रा रा रा रा


रीत क्या गजब का डांस कर रही थी। संध्या भाभी की रंग से भीगी झीनी साड़ी उसने उठा ली थी और अपने छलकते उरोजों को आधे तीहे ढंकी ब्रा के ऊपर बस रख लिया था। तोड़ा, टुकड़ा उसके पैर बिजली की तरह चल रहे थे-



अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा




सबने धक्का देकर मुझे भी खड़ा कर दिया और अगला पार्ट गाने का मैं पूरा किया-



आया होली का त्यौहार

उड़े रंग की बौछार

तू है नार नखरेदार, मतवाली रे

आज मीठी लगे है तेरी गाली रे

ऊ। हाँ हाँ हाँ आ। हो।




लेकिन वो चपल चपला, हाथों में उसने पिचकारी लेकर वो अभिनय किया की हम सब भीग गए। खास तौर से तो मैं। उसके नयन बाण कम थे क्या?



तक तक न मार पिचकारी की धार

हो। तक तक न मार पिचकारी की धार

कोमल बदन सह सके न ये मार

तू है अनाड़ी बड़ा ही गंवार

कजरे में तुने अबीर दिया डार

तेरी झकझोरी से बाज आई होरी से

चोर तेरी चोरी निराली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा




और उसके बाद तो वो फ्री फार आल हुआ की पूछो मत। लेकिन इसके पहले सबने तालियां बजायीं खूब जोर-जोर से सिवाय मेरे और रीत के हमारे हाथ एक दूसरे में फँसे थे। वो मेरी बांहों में थी और मैं उसकी।
Waw var tyohar ho. Aur jija sali ho to, vahi janai sasural ho. Chahe hone vala. Aur upar se guddi jesi premika reet jesi sali to nach gana na ho esa ho hi nahi sakta. Amezing. Khushiyon se bhara update.

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Shetan

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होली बनारस की-देह की


जो चुनर उसने डांस के समय ओढ़ रखी थी अपनी ब्रा कम चोली के ऊपर।

वो तो मैंने नाचते नाचते ही उससे छीनकर दूर फेंक दी थी और अब उसके अधखुले उभार एक बार फिर मेरे सीने से दब रहे थे। उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे कंधे पे खरोंचे मार रहे थे।

फगुनाहट सिर्फ हम दोनों पे चढ़ी हो ऐसी बात नहीं थी।



संध्या भाभी अब चंदा भाभी के नीचे थी और चंदा भाभी ने जब उनकी टांगें उठायीं तो साया अपने आप कमर तक उठ गया। उनके भरतपुर के दर्शन हम सबको हो गए।

-- लेकिन अब किसी को उन छोटी मोटी चीजों की परवाह नहीं थी। चंदा भाभी का अंगूठा सीधे उनकी क्लिट पे। और दो उंगलियां अन्दर। माना संध्या भाभी ससुराल से होकर आई थी लेकिन अभी भी उनकी बहुत टाईट थी। जिस तरह से उनकी चीख निकली इससे ये बात साफ जाहिर थी पर चंदा भाभी को तो और मजा आ गया था। वो दोनों उंगलियां जोर-जोर से अन्दर गोल-गोल घुमा रही थी। दूसरा हाथ उनके मस्त गदराये जोबन का रस लूट रहा था।

संध्या भाभी सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी छटक रही थी। कभी मजे से कभी दर्द से।

लेकिन चंदा भाभी बोली-

“अरे ननद रानी ये छिनारपना कहीं और जाकर दिखाना। जब से बचपन में टिकोरे भी नहीं आये थे दबवाना शुरू कर दिया था। शादी के पहले 10-10 लण्ड खा चुकी हो। भूल गई पिछली होली मैंने ही बचाया था दूबे भाभी से। वरना मुट्ठी डालना तो तय था। तुमने वायदा किया था की जब शादी से लौटकर आओगी तो जरूर। और अब दो उंगली में चूतड़ पटक रही हो…”

“अरे लेगी-लेगी नहीं लेगी तो जबरदस्ती घुटायेंगे…” दूबे भाभी बोली।



वो गुड्डी को अब प्रेम पाठ पढ़ा रही थी। उसका एक किशोर उभार उनके हाथ में था और दूसरी टिट होंठों के बीच कस-कसकर चूसी जाती,

तो कभी दूबे भाभी के हाथ गुड्डी के जोबन को रगड़ते मसलते, और कस के निप पिंच कर लेती। गुड्डी की मस्ती में हालत खराब थी, फ्राक के ऊपर के हिस्से तो पहले ही चंदा भाभी ने चीथड़े चीथड़े कर दिए थे, ब्रा का ढक्कन बचा था, गुड्डी का। चंदा भाभी ने तो ब्रा के अंदर हाथ डाल के और हुक खोल के रंग लगा दिया था, लेकिन रंगो की होली तो कब की ख़तम हो चुकी थी अब तो सिर्फ देह की होली चल रही थी, और दूबे भाभी, दूबे भाभी थीं तो ऊपर झाँपर से उनका काम नहीं चलने वाला और उनके हाथ में ताकत भी बहुत थी, बस कस के ब्रा के बीच से

चरचरर र र

और गुड्डी की ब्रा की दोनों कटोरियाँ दो हिस्से में,


पर दूबे भाभी भी तो बड़ी बड़ी चूँचियाँ भी सिर्फ ब्रा से ढंकी थी, एक हुक रीत ने पहले ही तोड़ दिया था, बस एक हुक के सहारे और गुड्डी ने उसे भी खोल दिया और दूबे भाभी की ३६ ++ बड़ी बड़ी चूँचियाँ अच्छी तरह से रंग से लिपि पुती बाहर आ गयीं, आधे से ज्यादा रंग तो मेरे ही हाथ से लगा था दूबे भौजी के जोबन पे।

और अब मुकबला था ११ वी में पढ़ने वाली की उभरती हुयी चूँचियों और भौजी के पहाड़ों के बीच, गुड्डी नीचे दूबे भौजी ऊपर और जैसे चक्की के दो पाटे चल रहे हों, बीच बीच में वो गुड्डी के कान में कुछ कहती और मेरी ओर देखतीं,



अब मैं समझ गया ये सेक्स एजुकेशन का क्लास मेरे लिए चल रहा था की आज रात मुझे गुड्डी के साथ क्या करना है और आज रात ही क्यों मेरे मन की बात चल जाए तो हर रात,



ये नहीं था की मैं मस्ती नहीं कर रहा था, रीत मेरी गोद में और अब उसकी भी जालीदार ब्रा खुल चुकी थी और वो मुझसे भी एक हाथ आगे अपने चूतड़ों को कस कस के कपड़ो में ढंके मेरे जंगबहादुर पे रगड़ रही थी,


लेकिन दूबे भाभी की मज़बूरी थी, गुड्डी के कमर के नीचे अभी दूकान बंद थी, और असली मजा तो उसी खजाने में है।



चंदा भाभी की उँगलियाँ संध्या भाभी के उस खजाने में सेंध लगा चुकी थी, और संध्या भाभी बार बार सिसक रही थीं तो मन तो दूबे भौजी का भी कर रहा था किसी कच्ची कली के प्रेम गली में होली की सैर करने का,

तो जैसे युद्धबंदियों की अदला बदली होती है तो बस उसी तरह उन्होंने रीत की ओर इशारा किया, और रीत पांच कदम दूबे भाभी की ओर तो गुड्डी पांच कदम मेरी ओर, और थोड़ी देर में गुड्डी मेरी गोद में और रीत और दूबे भाभी की देह की होली शुरू हो गयी थी।


रीत के जिस भरतपुर स्टेशन पे मेरी उँगलियाँ आज सुबह से कई बार चक्कर काट चुकी थीं पर दर्शन नहीं हुआ था,

दूबे भाभी जिंदाबाद उनकी कृपा से भरतपुर का आँखों ने नयन सुख लिया। होली में तब से आज तक कितनी बार देखा है, समझदार भाभियाँ ननद की शलवार हो पाजामी हो, नाड़ा कभी खोलती नहीं, सीधे तोड़ देती हैं और दूबे भाभी ने वही किया, और जब तक रीत समझे,

सररर सररर

दूबे भाभी के हाथ, रीत की पजामी सरक के उसके घुटने तक, और दिख गयी,

गुलाबी गुलाबी चिकनी चिकनी



लेकिन बहुत देर तक नहीं वो दूबे भाभी के होंठों के बीच कैद हो गयी और क्या चूस रही थीं वो, और रीत जोर जोर से सिसक रही थी


और चंदा भाभी ने अब तीसरी उंगली भी संध्या भाभी की चूत में घुसेड़ दी। और क्लिट पे कसकर पिंच करके, मेरी ओर इशारा करके, दिखा के बोली-

“अरे चूत मरानो, इसको देख। अपनी कुँवारी अनचुदी बहन को बस दूबे भाभी और अपनी यार के एक बार कहने पे लेकर आने पे तैयार हो गया है भंड़ुआ, यही नहीं राकी से भी चुदवायेगी वो। और तू ससुराल में दिन रात टांगें उठाये रहती होगी और यहाँ उंगली लेने में चीख रही है…”

संध्या भाभी मुश्कुराते हुए बोली- “रात दिन नहीं भाभी सिर्फ रात में। दिन में तो कभी कभी। जब मेरे देवर को मौका मिल जाता था या। नंदोई जी आ जाते थे…”


और इसके जवाब में चंदा भाभी ने अपनी तीनों उंगलियां बाहर निकल ली और अपने होंठ चिपका दिए संध्या भाभी की चूत पे। दो हाथों से उनकी जांघें कसकर फैलाए हुए थी वो।

चंदा भाभी और संध्या भाभी एक दूसरे की चूत के ऊपर कस-कसकर रगड़ घिस कर रही थी।

रीत और दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी एकदम खुल के मस्ती कर रहे थे, उन्हें कुछ फरक नहीं पड़ रहा था की मैं और गुड्डी बैठे सब देख रहे हैं,

और पहल गुड्डी ने ही की, जरा सा ही सही,

दूबे भाभी के पास से निकलने के समय गुड्डी ने अपनी फटी दो टुकड़ो में बँटी ब्रा को किसी तरह से अपने उभारों पर टिका लिया था, मन तो मेरा बहुत कर रहा था की जैसे दूबे भाभी कस कस के गुड्डी की छोटी छोटी अमिया मसल रही थी, रगड़ रही थी, मैं भी उसी तरह, लेकिन, बस वही

पर गुड्डी, मुझसे भी ज्यादा मुझको जानती थी, और उसने हाथ उठा के बस वहीँ, जैसे उस दिन पिक्चर हाल में, आज से डेढ़ दो साल पहले, जब वो नौवीं में थी और मैंने पहली बार जोबन रस लिया था, भले ही फ्राक के ऊपर से,

और आज तो फ्राक चंदा भाभी ने चीर दी थी और ब्रा दूबे भाभी ने दो टूक कर दी थी,

और जैसे ही मेरा हाथ पड़ा फटी हुयी ब्रा खुद सरक के, उसे मालुम हो गया की इस जोबन का असली मालिक आ गया है और अब मैं कस के खुल के दबा रहा था, मसल रहा था, कभी रीत को रगड़ती दूबे भाभी देख लेती, मुझे देख के मुस्कराती और कभी चंदा भाभी



लेकिन मेरी मस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, और मैंने झुक के गुड्डी के रसीले होंठो को चूम भी लिया, लेकिन गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठेल दी और मैं कस के चूसने लगा,


हाथों को गुड्डी के जोबन रस का सुख मिल रहा था और होंठों को गुड्डी के मुख रस का, और वो भी सबके सामने,



लेकिन तभी छोटा सा विघ्न हो गया, रीत की कोई सहेली आयी थी, वो नीचे से आवाज लगा रही थी, तो रीत और दूबे भाभी दोनों सीढ़ी से उतरकर धड़ धड़ नीचे


पर हम चारों का जोश और बढ़ गया,


चंदा भाभी के तरकस में एक से एक हथियार थे, कभी वो कस कस के संध्या भाभी की चूत कस कस के चाटती और चूस चूस के उन्हें झड़ने के कगार पे ले आती पर जब संध्या भाभी, सिसकती चिरौरी करतीं

" भौजी झाड़ दो, हफ्ता हो गया पानी निकले, मोर भौजी "

बस चंदा भाभी चूसना बंद कर के कस के संध्या भौजी का जोबन रगड़ने लगती, उनके मुंह के ऊपर बैठ के चंदा भाभी अपनी बुर चुसवाती और संध्या भाभी की खूब चासनी से गीली तड़पती, फड़फड़ाती बुर साफ़ साफ़ दिखती और गुड्डी मुझे छेड़ती,

" हे देख तोहरी संध्या भौजी की कितनी रसीली गली है, घुस जाओ न अंदर "


गुड्डी के गाल चूम के मैं बोला " लेकिन मुझे तो इस लड़की की गली में घुसना है "



" तो घुसना न रात भर, मैंने कौन सा मना किया है अरे अभी छुट्टी है वरना यही छत पे तेरी नथ सबके सामने उतार देती " गुड्डी हँसते हुए बोली

संध्या भाभी के ऊपर चढ़ी चंदा भाभी ने गुड्डी को इशारा किया की मेरे मोटे जंगबहादुर को आजाद कर दे, और बस अगले पल वो तन्नाए , फनफनाये बाहर,

और गुड्डी ऊपर से मुठियाते हुए संध्या भाभी को दिखा रही थी, जैसे पूछ रही हो चाहिए क्या,



चंदा भाभी ने संध्या भाभी के मुंह को आजाद कर दिया और अब वो भी गुड्डी के साथ खेल तमाशे में शामिल हो गयीं और संध्या भाभी से बोली

" अरे ननद रानी कुछ मन कर रहा हो तो मांग लो, गुड्डी एकदम मना नहीं करेगी "

" अरे दिलवा दो न अपने यार का " संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोली लेकिन गुड्डी कम नहीं थी, मेरे गाल पे खुल के चुम्मा लेते हुए बोली


" यार तो है मेरा, थोड़ा बुद्धू है तो क्या अब मेरी किस्मत में यही है, लेकिन क्या चाहिए ये खुल के बोलिये न "

" लंड चाहिए, इत्ता मोटा लम्बा कड़क है, एक बार चोद देगा तो घिस थोड़े ही जाएगा, हफ्ते भर से उपवास चल रहा है चूत रानी का, गुड्डी तुझे बहुत आशिरवाद मिलेगा, मुझे एक बार दिलवा देगी तो तो तुझे ये हर रोज मिलेगा, जिंदगी भर, सात जनम। "

संध्या भाभी सच में गर्मायी थीं।

लेकिन चंदा भाभी उन्हें अभी और तड़पाना चाहती थी, जैसे मेन कोर्स के चक्कर में लोग स्टार्टर कम खाते हैं एकदम उसी तरह, किनारे पे ले जाके बार बार रुक जाती थीं


चंदा भाभी ने संध्या भाभी को छोड़ दिया और गुड्डी को चुम्मा लेने का, मेरे खूंटे को दिखा के इशारा किया और गुड्डी ने झुक के एक लम्बी सी चुम्मी मेरे सुपाड़े पे जड़ दी।

संध्या भाभी की हालत और खराब हो गयी।

तब तक सीढ़ियों से फिर पदचाप की आवाज सुनाई पड़ी और हम सब के जो भी थोड़े बहुत कपडे थे, देह पर, जंगबहादुर अंदर।

पहले रीत आयी, अपनी उस सहेली को गरियाती और मेरे और गुड्डी के पास बैठ गयी, फिर दूबे भाभी।

हम सब चुप थे, और ये चुप्पी टूटी दूबे भाभी की आवाज से,
Bilkul sahi name diya hai. Deh ki holi. Anand babu ho tum sasural me. Sandya bhabhi to garam ho gai. Maza aa gaya. Kya kamukh shararar bhara conversation hai sandya bhabhi vala

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Shetan

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. जोगीड़ा


और ये टूटा दूबे भाभी की घोषणा के साथ- “अरी छिनारों एक गाना सुनाने के बाद वो भी फिल्मी। चुप हो गए। क्या मुँह में मोटा लण्ड घोंट लिया है। अरे होली है जरा जोगीड़ा हो इस साले को कुछ सुनाओ…”

रीत बोलना चाहती थी- “नहीं भाभी लण्ड मुँह में नहीं है कहीं और है…”

लेकिन मैंने उसके मुँह पे हाथ रख दिया। और झट से हम दोनों ने कपड़े ठीक किये और इस तरह अलग हो गए जैसे कुछ कर ही नहीं रहे थे।

“भाभी जोगीड़ा सुना तो है लेकिन आता नहीं…” रीत बोली।

“अरे बनारस की होकर होली में कबीर जोगीड़ा नहीं। क्या हो गया तुम सबों को, चल मैं गाती हूँ तू सब साथ दे…” चंदा भाभी बोली।

गुड्डी और रीत ने तुरंत हामी में सिर हिलाया।



चंदा भाभी और दूबे भाभी चालू हो गईं बाकी सब साथ दे रही थी। यहाँ तक की मुझे भी फोर्स किया गया साथ-साथ गाने के लिए। इन सारंग नयनियों की बात मैं कैसे टाल सकता था।




अरे होली में आनंद जी की, अरे देवरजी की बहना का सबकोई सुना हाल अरे होली में,

अरे एक तो उनकी चोली पकड़े दूसरा पकड़े गाल,

अरे इनकी बहना का, गुड्डी साली का तिसरा धईले माल। अरे होली में।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कोई उनकी चूची दबलस कोई कटले गाल,

तीन-तीन यारन से चुदवायें तबीयत भई निहाल।

जोगीड़ा सा रा सा रा

अरे हमरे खेत में गन्ना है और खेत में घूंची,

गुड्डी छिनरिया रोज दबवाये भैया से दोनों चूची,

जोगीड़ा सा रा सा रा। अरे देख चली जा।

चारों और लगा पताका और लगी है झंडी,

गुड्डी ननद हैं मशहूर कालीनगंज में रंडी।

चुदवावै सारी रात। जोगीड़ा सा रा रा ओह्ह… सारा।

ओह्ह… जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा।

अरे ओह्ह… जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा। अरे

अरे इनकी बहन की अरे इनकी बहन की बुर से पानी बहता

और गुड्डी की बुर हो गई लासा।

एक ओर से सैंया चोदे एक ओर से भैया।

यारों की लाइन लगी है। जरा सा देख तमाशा


जोगीड़ा सा रा सा रा।



तभी कोई बोला- “अरे डेढ़ बज गए चलो देर हो गई…” रीत का चेहरा धुंधला गया। चाँद पे बदली छा गई।

मैंने बात सम्भालने की कोशिश की। दूबे भाभी से मैं बोला- “अरे आप लोगों ने तो गा दिया। लेकिन आपकी इन ननदों ने। सब कहते हैं रीत ये कर सकती है वो कर सकती है…”


“मैं फिल्मी गा सकती हूँ होली के भी…” रीत बोली।

“नहीं नहीं जोगीड़ा। गा सकती हो तो गाओ वरना चलते हैं देर हो रही है…” दूबे भाभी बोली।

“अच्छा चलो। फिल्मी ही लेकिन जोगीड़ा स्टाइल में एकदम खुलकर…” मैंने आँख मारकर रीत को इशारा किया। वो समझ गई और बोली ओके चलो तुम्हारे पसंद का।

“मेरा तो फेवरिट वही है, मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त। लेकिन याद रखना होली स्टाइल में…” मैं बोला- “और साथ में डांस भी…”


फिर तो रीत ने क्या जलवे दिखाए। रवीना टंडन भी पानी भरती।


पहले तो उसने जो घुंघरू मुझे पहनाये गए थे। वो अपने दोनों पैरों में बाँधा और फिर उसने जो चुनरी मैंने हटा दी थी एक बार फिर से अपनी चोली कम ब्रा के ऊपर बस इस तरह ढंकी की एक जोबन तो पूरी तरह खुला था और एक थोड़ा सा चुनर के अन्दर। सिर्फ म्यूजिक उसने स्टार्ट कर दी और साथ में उसके अपने बोल। जो ढप गुड्डी के हाथ में थी वो भी उसने ले ली और चालू हो गई।



मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त,

नहीं मुझको कोई होश होश, उसपर जोबन का जोश जोश।




ये कहते हुए उसने चूनर उछाल के सीधे मेरे ऊपर फेंक दी और वो चूचियां उछाली की बिचारे मेरे लण्ड की हालत खराब हो गई। मसल रही थी और जैसे इतना नाकाफी हो मुझे दिखाकर वो अपने दोनों उरोज रगड़ रही थी मसल रही थी।



म्यूजिक आगे बढ़ा।




नहीं मेरा- कोई दोष दोष मदहोश हूँ मैं हर वक्त वक्त,

मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त।




बस मैं ये इंतजार कर रहा था की ये इसमें होली का तड़का कैसे लगती है। गाना वैसे भी बहुत भड़काऊ हो रहा था। उसपर जोबन का जोश जोश गाते वो अपनी चोली नीचे कर थोड़ा झुक के चक्कर लेकर चूचियों को बड़ी अदा से पूरी तरह दिखा दे रही थी। फिर उसने अपना हाथ पाजामी की ओर बढ़ाया और थोड़ा और नीचे सरका के वो चूत उभार-उभार के ठुमके लगाये-



मेरी चूत बड़ी है मस्त मेरी चूत बड़ी है चुस्त चुस्त,

करती है लण्ड को पस्त पस्त। करती है लण्ड को पस्त पस्त।

रख याद मगर तू मेरे दीवाने

तेरा क्या होगा अंजाम न जाने।




और ये कहते-कहते रीत मेरे पास आ गई और उसने मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। और अपने हाथ से सीधे मेरे लण्ड पे रगड़ते हुए गाने लगी।



रखूंगी अन्दर हर वक्त वक्त। लण्ड को कर दूंगी एकदम मस्त-मस्त।



और हम सबने जोरदार ताली बजायी। मेरी ओर विजयी मुश्कान से उसने देखा। मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। संध्या भाभी ने फिर गुहार लगाई। चलो ना। सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।
Wah kya gane set kiye hai. Song and dance amezing. Anand babu mukabla karvane lage. Inki to sali reet ne to ekdam hi khula ga kar bol diya hai. Amezing.

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Shetan

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मेरे कपड़े?


सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।

“हे मेरे कपड़े?” मैं जोर से चिल्लाया।

“अरे लाला पहने तो हो, इत्ते मस्त माल लग रहे हो…” दूबे भाभी मुश्कुराकर बोली।

“लेकिन इसको पहनकर। अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्टहाउस। फिर घर…” मैं परेशान होकर बोला। अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो?

“मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहनकर बाजार चलेंगे। जोगीड़े में तो लड़के लड़कियां बनते ही हैं। लौंडे के नाच में भी। तो लोग सोचेंगे होगा कोई स्साला चिकना नमकीन लौंडा ” गुड्डी हँसकर बोली।

रीत ने भी टुकड़ा लगाया- “हे, अगर गुड्डी को आपको साथ ले जाने में परेशानी नहीं है तो फिर किस बात का डर?”

“हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो…” मैं गुड्डी से गिड़गिड़ा रहा था।

“वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना…” गुड्डी खिलखिलाती हुई बोली।

“अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही माँगते हैं। मांग लो ढंग से। दे देगी…” संध्या भाभी ने आँख मारकर मुझसे कहा।

“एकदम…” रीत ने हँसकर कहा।

मैं- “तो फिर कैसे मांगूं?”

“अरे पैर पड़ो। हाथ जोड़ो। दिल पसीज जाएगा तो दे देगी। अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोली।
खैर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। मैंने पूछा- “क्यों दंडवत हो जाऊं?”

और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के हँस पड़ी। संध्या भाभी बोली- “क्या बोले। लण्डवत?” और तीनों फिर खिलखिला के हँस पड़ी।

रीत बोली- “अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती। चल गुड्डी…दे देते हैं, जब ढोलक मजीरा और घुंघरू आये थे तो रीत एक बैग भी लाद के ले आयी थी।

और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया। साड़ी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था, वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी। इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह-जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे।

हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कहकर की सुहाग की निशानी हैं और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्की साफ-साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं, गान्डूओं की निशानी है।


मैंने बहुत जोर दिया की महंगे होंगे तो हँसकर बोली, रीत से कहना। ये सब उसी की कारस्तानी है। लेकिन मैं बताऊं सब 20 आने वाला माल है।

तब तक रीत और गुड्डी ने जादूगर की तरह उस बैग में से हाथ डाल के साथ साथ निकाला।

एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी।



“हे भाभी किसे 20 आने वाला माल कह रही हो। कहीं मुझे तो नहीं…” हँसकर रीत ने पूछा।

“हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को 20 आने वाला माल कह दे। जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा हो…” चंदा भाभी बोली।

“पीछे मतलब। मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज मस्त-मस्त है…” संध्या भाभी भी रीत को चिढ़ाने में शामिल हो गईं।



“अरे आगे-पीछे इसकी सब मस्त-मस्त है। लेकिन इत्ते मस्त गोल-गोल चूतड़ हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना। चूची चूतड़ दोनों का साथ-साथ। क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं…”


मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया।

रीत की बड़ी-बड़ी हँसती नाचती कजरारी आँखें मुझे ही देख रही थी।

मैं शर्मा गया।

रीत शर्ट लेकर मेरी और बढ़ी- “चलो पहनो…”

शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चुका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन।

मैंने 34सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गई थी और उसमें भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया- “अरे यार इन्हें तो पहले उतारो…”

“क्यों क्या बुरा है इनमें अच्छे तो लग रहे हो…” गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।

“हे बाबू ये सोचना भी मत। मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे…” रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी।

“वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है…” गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया।

मैं- “हाँ मेरी बनयान और चड्ढी। वो…”

“अरे जो मिल रहा है ले लो। तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है। एक से संतोष नहीं है। एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गड़ाएंगे और तीसरी का नंबर लगाकर रखेंगे…” रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया।

मैं सच में घबड़ा गया। इन बनारस की ठग से कौन लगे- “अच्छा चलो रहने दो। ऊपर से ही शर्ट पहना दो…” मैं हार कर बोला।

“अरे ब्रा पहनने का बहुत शौक है तुम्हें लगता है। बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लण्ड में लगाकर मुट्ठ मारते थे। लाला…” संध्या भाभी बोली। चित भी उनकी पट भी उनकी।

रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा। होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना। बस वैसे। लेकिन। रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी।

रीत और गुड्डी ने मिलकर मुझे शर्ट पहनाई।



गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा-मोटा लिखा था- “बहनचोद। "

इत्ता बड़ा बड़ा की बहुत दूर से भी साफ दिखे…” और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था-

“बहन का भंड़ुआ। होली डिस्काउंट। बनारस वालों के लिए खास…”

और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता (गुड्डी) लिखा था। लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका। वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो,



लिखा था रेट लिस्ट पीछे।

अब तक मैंने पीछे नहीं देखा था। जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गई। जैसे कोई सस्ते विज्ञापन। ऊपर लिखा था-


खुल गई। चोद लो। मार लो। और उसके नीचे,--- गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।



उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-



चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया

चूची मिजवायी- 40 रूपया

चुसवायी- 50 रूपया

चुदवाई- 75 रूपया

सारी रात 150 रूपया।




और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे। बस गनीमत ये थी की सिर्फ 9 नंबर ही दिए गए थे। एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था। लेकिन दूसरा?

मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली- “मेरा है…” गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेती हूँ आखीरकार, तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बिना ऐड के कहाँ बिकता है?

“तो उस साली का नम्बर क्यों नहीं दिया?” संध्या भाभी ने पूछा।

“अरे तो इस भंड़ुए का क्या होता। मेरे ये कहाँ से नोट गिनते…” गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा।

“नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं। अरे उसके पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे। मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ। जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए। तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को। अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं। डिमांड ज्यादा होगी होली में। टर्न ओवर की बात है। बोल?”

रीत वास्तव में बी॰काम॰ में पढ़ने लायक थी। उसका बिजनेस सेन्स गजब का था।

और जब तक मैं रोकूँ रोकूँ, ...गुड्डी ने दनदनाते हुए। नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया-
तब तक मुझे ध्यान आया, गुड्डी ने तो पूरा ही दसों नंबर बता दिया।

“हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने?” मैंने बोला।

गुड्डी को भी लगा तो वो रीत से बोली- “हे यार उसका तो पूरा नम्बर लिख गया। एक मिटा दे ना…”

रीत सीधी होती हुई बोली- “अब कुछ नहीं हो सकता। ये ना मिटने वाली स्याही है…” और ये नम्बर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे।

पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया। मैं हाथ जोड़ता रहा- “हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो…”

“बता दूं किसके पास है?” गुड्डी ने आँख नचाकर रीत से पूछा।

“बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं…” हँसकर अदा से रीत बोली।

“तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है। गुंजा के पास वो पहनकर स्कूल गई है। कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी और वैसे भी उसने तुम्हें अपनी रात भर की पहनी हुई टाप और बर्मुडा दिया था। तो क्या सोचते हो ऐसे ही। एक्सचेंज प्रोग्राम था…”

गुड्डी ने हँसते हुए राज खोला।

पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गई थी।

गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उसपे सफेद, गोल्डेन पेंट से।


पीछे मेरे चूतड़ पे खूब बड़े लेटर्स में गान्डू लिखा था। आगे भंड़ुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियां। शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे, उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे।

“चलो न अब नीचे नहाने बहुत देर हो रही है। और इनको गुड्डी को जाना भी है…” संध्या भाभी बोली और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थी। एक अजीब तरह की चमक। और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में।

और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया- “चल तू भी…”

रीत की निगाहें मेरी और गड़ी थी।

और दूबे भाभी भी दुविधा में थी- “मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़कर जाने के लिए…” मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोली।

“अरे आएगा वो हफ्ते भरकर अन्दर। फिर तो तीन-चार दिन रहेगा ना। बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है…” चंदा भाभी ने उन्हें समझाया।

तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी। गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धोकर नहाना था, ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके “वो पांच दिन…” खतम हो रहे थे। इसलिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी।


“और मैं?” मैं फिर बोला।


“अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे। रंग वंग…” लेकिन रीत की बात खतम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी।
“अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी। फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो। जा तो रहे हैं अपने मायके। अपनी उस एलवल वाली बहन से साफ करवा लेंगे…”

चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा। कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा। मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे।

तय ये हुआ की मैं छत पे ही रंग साफ कर लूँगा और उसके बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में। भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गईं।



सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही। जाते-जाते मेरा हाथ दबाकर बोली,..... मिलते हैं ब्रेक के बाद.
Kitna sharmate ho anand babu. Lo mil gae na kapde. Apne sasural valo ko itna bhi berahem mat samzo. Amezing.

Sath jane ne bhi dar rahe ho. Are itna daroge to mango ge kese. Reet ki masti ne to maza hi la diya. Vo rate vala dekh ke to sach me maza aa gaya. Kya jabardast consept dakti ho aap. Amezing.

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Shetan

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फागुन के दिन चार भाग १९

गुंजा और गुड्डी

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रह गया छत पे मैं अकेला।



गुड्डी थी तो लेकिन बाथरूम में और वो बोलकर गई थी डेढ़ घंटे के पहले वो नहीं निकलेगी।

मैंने सीढ़ी का दरवाजा बंद किया और चंदा भाभी के बाथरूम में पहले तो सिर झुका के सिर में लगे रंग, फिर चेहरे, हाथ पैर के रंग। जो रीत ने सबसे पहले पेंट लगा दिया था उसका कमाल था या जो बेसन वेसन चंदा भाभी ने दिया था उसका। काफी रंग साफ हो गया। मैंने मुँह में एक बार फिर से साबुन लगाया तभी दरवाजे पे खट खट हुई। मुँह पोछते हुए मैं दरवाजे के पास पहुँचा। जल्दी से मैंने बस टॉवेल लपेटी

तब तक खट-खट तेज हो गई थी। जैसे कोई बहुत जल्दी में हो। कौन हो सकता है ये मैंने सोचा- “गुंजा…”

घड़ी की ओर निगाह पड़ी तो उसके आने में तो अभी पौन घंटे से ऊपर बाकी था। वो बोलकर गई थी की मेरे आने के पहले मत जाइएगा। बिना सबसे छोटी साली से होली खेले। कहीं जल्दी तो नहीं आ गई और मैंने दरवाजा खोला। साबुन अभी भी आँख में लगा था साफ दिख नहीं रहा था।

गुड्डी अभी भी लगता है बाथरूम में ही थी।

कपडे दिख नहीं रहे थे, किसी तरह एक छोटी सी टॉवेल लपेट के मैं निकला,

शैतान का नाम लो शैतान हाजिर और गुड्डी बाहर निकल आई।

लम्बे भीगे बाल तौलिया में बंधे, रंग उसका भी साफ हुआ था लेकिन पूरा नहीं और एक खूब टाईट शलवार सूट में।



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उसके किशोर जोबन साफ-साफ दिखते, छलकते और कसी शलवार में नितम्बों का कटाव, यहाँ तक की अगर वो जरा भी झुकती तो चूतड़ की दरार तक। मेरी निगाह उसके गदराये जोबन पे टिकी थी। मैं बेशर्मों की तरह उसे घूर रहा था।

“लालची…” वो मुश्कुराकर बोली बिना दुपट्टा नीचे किये।

“अच्छी चीज हो तो मुँह में पानी आ ही जाता है…” मैं बोला।

“मुँह में या कहीं और…” वो शैतान बोली और उसकी निगाह नीचे की ओर।

और मेरी निगाह भी नीचे पड़ी। टॉवेल थोड़ी सी खुली थी और ' वो शैतान' अपना माल देखकर ललचाते हुए झाँक रहा था।

“रहने दो ऐसे ही। थोड़ा हवा पानी लगने दो…” खिलखिलाते हुए वो बोली, फिर आँख नचाकर कहने लगी। अच्छा चलो मैं बंद कर देती हूँ और मेरे पास आकर अपनी कोमल उंगलियां। बंद किसे करना उसने हाथ अन्दर डालकर सीधे उसे पकड़ लिया।

वो थोड़ा सुस्ता रहा था। लेकिन फिर अब गुड्डी की उंगलियां। वो फिर कुनमुनाने लगा।

“तेरे लिए एक अच्छी खबर है…” मेरे कान में होंठ लगाकर गुड्डी बोली।

मैं- “क्या?”

“मेरी सहेली। वो पांच दिन वाली…” गुड्डी आँख नचाकर बोली।


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मेरे मन में चिंता की लहर दौड़ गई कहीं ये ठीक नहीं हुई तो। मैंने इतना प्लान बनाया था की रात भर आज इसे और फिर अब मेरे जंगबहादुर को स्वाद भी लग गया था।

गुड्डी मुझे इन्तजार कराके बोली-

“वो मेरी सहेली। टाटा, बाईं बाई। एकदम साफ। इसलिए तो नहाने में इतना टाइम लग गया था। अब तुम्हारा रास्ता एकदम क्लियर…”

“हुर्रे। ये तो बहुत अच्छी खबर है, तो पहले तो कुछ मीठा हो जाय…” मैंने भी उसे कसकर बाहों में भींच लिया। जवाब में उसके हाथ ने मेरे लण्ड को कसकर दबा दिया। सोया शेर अब जग गया था।

“एकदम क्यों नहीं…” और दो किस्सी गुड्डी ने मेरे होंठों पे दे दी।

“अरे इसे भी तो कुछ मीठा खिला दो। बिचारा भूखा है…” मैंने बोला।

“तो रहने दो न। बुद्धू लोगों के साथ यही होता है। अरे मेरे प्यारे बुद्धू। चल तो रही हूँ न तेरे साथ। आज रात से पूरे हफ्ते भर रहूंगी। दिन रात। । संध्या भाभी दावत तो दे के गयीं हैं बेचारी उनके दोनों मुंह में इतना पानी आ रहा था। अभी गुंजा आती होगी, स्साले तेरी सबसे छोटी साली, खिलाना उसको यहाँ तक, अपना मोटा लम्बा ब्रेड रोल। "

वो बोली,.... और साथ में अब जोर-जोर से मुठिया रही थी।

मेरा सुपाड़ा तो चंदा भाभी के हुकुम के बाद खुला ही रहता था, बस गुड्डी ने अपने अंगूठे से उसे भी रगड़ना शुरू कर दिया।

एक बात मैंने देखी, जब भाभियों ने मेरा चीर हरण कर के पूरी तरह निर्वस्त्र किया, जितना कड़क औजार देख के भाभियाँ पनियाती हैं उससे भी ज्यादा मोटे बौराये खुले सुपाड़े को देख के.... नीचे की मंजिल में एक तार की चासनी निकलने लगती है।

“ये भी तो पांच दिनों के बाद…” शलवार के ऊपर से मैं भी अब उसकी चुनमुनिया को रगड़ रहा था।

“तुम ना बेसबरे। एक से एक भोजन है यहाँ और, चलो अभी गुंजा आयेगी ना। रीत और संध्या भाभी को तो दूबे भाभी और चंदा भाभी इत्ती जल्दी बिना पूरी तरह निचोड़े छोड़ने वाली नहीं, लेकिन गुंजा बस आ ही रही होगी, सुबह तो उसे दिखा भी दिया, पकड़ा भी दिया और बाकी काम अब, तुम्हें कुछ नहीं मालूम अरे यार अभी तो नहाई हूँ ना। छ: सात घंटे तक कुछ नहीं…” गुड्डी बोली।

“एक उंगली भी नहीं। आखीरकार, इसका उपवास भी तो टूटना चाहिए न…” मैं मुँह बनाते बोला।

खिलखिला के वो हँसने लगी और एक बार फिर मुझे किस कर लिया और बोली-

“इसका उपवास पांच दिन का नहीं …. और वो उंगली से नहीं इससे टूटेगा, मेरे बेसबरे बालम। तुम लेते लेते थक जाओगे मैं देते देते नहीं थकूँगी। प्रामिस है मेरा। बस थोड़ा सा। इंतेजार…”


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गुड्डी की उंगलियां लगातार चल रही थी और अब मेरे लण्ड की हालत खराब हो रही थी। अब मैंने उसके होंठ पे कसकर एक चुम्मी ली, उसके निचले होंठों को मुँह में लेकर चूस लिया। गुड्डी का गुलाबी रसीला होंठ मेरे होंठों के बीच में था।

मैं उसे चूस रहा था, चुभला रहा था साथ में मेरा एक हाथ टाईट कुरते को फाड़ती चूची को दबा रहा था और दूसरा उसके चूतड़ के कटाव की नाप जोख कर रहा था। हाथ गुड्डी के भी खाली नहीं थे। एक से तो वो मेरा लण्ड अब खुलकर कस-कसकर मुठिया रही थी और दूसरे से उसने मेरी पीठ पकड़ रखी थी और अपनी ओर पूरी जोर से खींच रखा था।

“हे वहां एक छोटा सा किस बस जरा सा। देखो ना उसका कितना मन कर रहा है…” मैंने फिर मनुहार की।

“छोटा सा क्यों, पूरा क्यों नहीं। यहाँ से यहाँ तक…” और उसने अपनी नाजुक उंगली से, लम्बे नाखून से मेरे खुले सुपाड़े से लेकर लण्ड के बेस तक लाइन खींच दी। लेकिन अगली बात ने उम्मीद तोड़ दी।

“लेकिन अभी नहीं। बोला ना। अच्छा चलो। बनारस से निकलने से पहले बस किस दूंगी वहां…” और उसने मेरे सुपाड़े को अपने अंगूठे से दबाकर इशारा साफ कर दिया की वो किस कहाँ होगा।

“अभी…” मैंने फिर अर्जी लगाई।

“उनहूँ…” अब उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसा दी थी और मैं उसे कसकर चूस रहा था। कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए होंठ अलग हुए तो मैंने फिर गुहार की- “बस थोड़ा सा…”

फिर आँख नचाके वो शोख बदमाश बोली, " हाँ एक बात बता सकती हूँ, मिल सकता है इसको किस भी, चुसम चुसाई भी " सुपाड़े की एकलौती आँख पे अपने नाख़ून से सुरसुरी करती उसने एक उम्मीद जगाई, और मैं कुछ पूछता उसके पहले उसने बता भी दिया,

" तेरी छोटी साली, दर्जा नौ वाली,




चुसवाना उससे मन भर के, बस आती ही होगी और वैसे भी अभी घंटे भर तक तो नीचे बाथरूम में कुश्ती चलेगी ननद भाभियों की। अभी गुंजा आती होगी उससे चुसवाना…”

थोड़ा सा वो पसीजी। कम से कम साफ मना तो नहीं किया।

“गुंजा। अरे यार वो छोटी है अभी…” मैंने उसे फिर मुद्दे पे लाने की कोशिश की।


असली बात ये थी की मैं न नौ नगद न तेरह उधार वाला था, जंगबहादुर फनफनाये थे, गुड्डी मेरी बाँहों में थी, छत पर सन्नाटा और उसके रसीले होंठ इसलिए मैं गुंजा के पोस्ट डेटेड चेक पर नहीं टलने वाला था, पर गुड्डी गुस्सा हो गयी।

पहले तो उसने मेरे कान का पान बनाया और हड़काते हुए बोली,

" स्साले, तेरी किस्मत अच्छी थी की मैं तुझे ऊपर से लिखवा के ले आयी, वरना, कुछ लोग बुद्धू होते हैं तू महाबुद्धु है। सुबह दबा के मीज के रगड़ के ऊपर वालों की नाप जोख कर ली,




चुनमुनिया भी सहला ली, सुबह से उसने चिक्क्न मुक्क्न कर के रखी है। अरे दो ढाई साल पहले से उसका बिना घाव के खून निकलना शुरू हो गया है। छोटी कतई नहीं है,

दो बाते सुन भी लो और समझ लो, साल डेढ़ साल पहले से उसके क्लास की आधे से ज्यादा लड़कियों की चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी है, मेरे ही स्कूल की है और एक एक बात बताती भी है। और दूसरी उससे भी ज्यादा जरूरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती। साली साली होती है। "


फिर उसे ध्यान आया की बहुत देर से और बहुत कस के कान पकडे है तो कान छोड़ के मुस्कराते हुए बोली,


" अरे यार दीदी की छुट्टी चल रही हो तो छोटी साली ही काम आएगी न "

मेरे मन की बदमाशी मुझसे पहले उसे पता चल गयी थी, वो समझ गयी की मैं उसकी दोनों छोटी बहनों के बारे में सोच रहा हूँ। उसकी नाचती गाती दीये सी बड़ी बड़ी आँखे मुझे बता रही थी, की मैं क्या सोच रहा हूँ उसने पकड़ लिया है।

मैंने भी शरारत से पूछा, " सिर्फ साली ही या, "

जोर का मुक्का और जोर से पड़ा और गालिया भी, " हिम्मत हो तो मम्मी के सामने बोलना, मैं समझ रही हूँ तेरी बदमाशी। "

सच में मेरे मन में पता नहीं कहाँ से गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ही आ गयीं थी,खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, खूब टाइट चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, उभार भी क्या जबरदस्त और उतने ही कड़े कठोर,


फिर वो मम्मी की परी खुद ही बोली, मेरी ओर से तो सब के लिए ग्रीन सिग्नल है और जहाँ तक मम्मी का सवाल है वो तो वो खुद ही तुझे सीधे रेप , अब सोच लो "

मैं लेकिन बात पटरी पर वापस ले आना चाहता था

“अच्छा बस एक छोटा सा किस। बहुत छोटा सा बस एक सेकंड वाला…” गुंजा की बात सोचकर मेरा लण्ड और टनटना गया। लेकिन बर्ड इन हैंड वाली बात थी।

गुड्डी घुटने के बल बैठ गई और मेरी आँखों में अपने शरारती आँखें डालकर ऊपर देखती हुई बोली-

“चलो। तुम भी क्या याद करोगे किस बनारस वाली से पाला पड़ा है…”

और टॉवेल के ऊपर से ही उसने तने हुए तम्बू पे एक किस कर लिया। बिच्चारा मेरा लण्ड। लेकिन अगले ही पल उसने खुली हवा में साँस ली। जैसे स्प्रिंग वाला कोई चाकू निकलकर बाहर आ जाय 8” इंच का। बस वही हालत उसकी थी। मैंने उसे पकड़कर गुड्डी के होंठों से सटाने की कोशिश की तो गुड्डी ने घुड़क दिया।



“चलो हटाओ हाथ अपना। छूना मत इसे। मना किया था ना की अब हाथ मत लगाना इसे अब जो करूँगी मैं करूँगी, या तेरी साली, सलहज, फिर कुछ रुक के मुस्करा के आँख नचा के बोली,... सास करेंगी। …”

उतनी डांट काफी थी। मैंने दोनों हाथ पीठ के पीछे बाँध लिए। की कहीं गलती से ही। हाथ गुड्डी ने भी नहीं लगाया। सुपाड़ा पहले से ही । मोटा लाल गुस्सैल, खुला हुआ और लण्ड चितकबरा हो रहा था। दूबे भाभी के हाथ की लगायी कालिख, रीत और गुड्डी के लगाये लाल गुलाबी रंग।

गुड्डी ने अपने रसीले प्यारे होंठ खोल दिए। मुझे लगा की अब ये किशोरी लेगी लेकिन उसनी अपनी जीभ निकाली और फिर सिर्फ जीभ की टिप से, मेरे पी-होल को, सुपाड़े के छेद पे हल्के से छुआ दिया। जोर का झटका जोर से लगा।
उसकी गुलाबी जुबान पूरी बाहर निकली थी। कभी वो पी-होल के अंदर टिप घुसेड़ने की कोशिश करती तो कभी बस जुबान से सुपाड़े के चारों ओर जल्दी-जल्दी फ्लिक कराती।

और जब उसकी जुबान ने सुपाड़े के निचले हिस्से को ऐसे चाटा जैसे कोई नदीदी लड़की लालीपाप चाटे तो मेरी तो जान निकल गई। मेरी आँखें बार-बार गुहार कर रही थी, ले ले यार ले ले। कम से कम सुपाड़ा तो ले ले।



गुड्डी जीभ से सुपाड़ा चाटते हुए मेरे चेहरे को, मेरी आँखों को ही देखती रहती जैसे उसे मुझे तड़पाने में, सताने में मजा मिल रहा ही और फिर उसने एक बार में ही गप्प। पूरा मुँह खोल कर पूरा का पूरा सुपाड़ा अन्दर। जब उसके किशोर होंठ सुपाड़े को रगड़ते हुए आगे बढ़े और साथ में नीचे से जीभ भी चाट रही थी लेकिन ये तो शुरूआत थी। मजे में मेरी आँखें बंद हो गई थी।

अब गुड्डी ने चूसना शुरू कर दिया। पहले धीरे-धीरे फिर पूरे जोश से।

लेकिन सुपाड़े से वो आगे नहीं बढ़ी। हाँ अब उसकी उंगलियां भी मैदान में आ गईं थी। वो मेरे बाल्स को सहला रही थी, दबा रही थी। एक उंगली बाल्स और गाण्ड के बीच की जगह पे सुरसुरी कर रही थी और दूसरे हाथ का अंगूठा और तरजनी लण्ड के बेस पे हल्के-हल्के दबा रहे थे। और गुड्डी ने मुँह आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। ओह्ह… आह्ह… हांआ मेरे मुँह से आवाजें निकल रही थी।

तभी सीढ़ी पे हल्के से कदमों की आवाजे आई। गुड्डी ने झटके से अपना मुँह हटाया और शेर को वापस पिंजड़े में किया।
Man gae komalji. Kya chemistry likhi he guddi aur anand babu ki. Guddi ne tarsa diya. Aur jo aap bich bich me shararti sabd dalte ho na. Jo bas chhota sa aur ekdam normal hota hai. Par usme jo feel hota he na amezing.

Lalchi....
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Ufff bayan karna mushkil hai. Aur guddi ki shararat to amezing hai. Bas unki chhoti sali aa rahi hai. Itna batame me to unhe tarsa hi diya. Bahot maza aaya ye padhne me superb... Aur is bar to guddi ne gunja aur bhabhi matlab guddi ki mammy ki yaad dila dila kar kya kamukhta dikhai hai. Sayad guddi ne ye pahela sexual game start kiya is story me. Ab tak to sab upar upar aur bato ke jadu hi tha. Maza aa gaya par.
 
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