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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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U r welcome didiThanks so much for your super comments. aapke aane se hi story meri khush ho jaati hai aur har post aapka inteaar karti hain
Thanks
CongratulationsU r welcome didi
With ur blessings & good wishes aap ki Raji ne "Rishton me hasin badlav" story ke 4 million views achieve kr liye hain.Thanks for ur inspiration dear mentor
Kya bat he anand babu holi aur sali vo bhi apni guddi ke samne. Gunja ki masumiyat ko mahesus kiya ja sakta hai. Bhale vo badmash nahi maha badmash ho. Harne me bhi jit hai. Aur tumne to khub mal pue ka swad le liya. Amezing.गुंजा संग होली की मस्ती
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गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
"अभी, और कस के, ... अच्छा हुआ ये नहा वहा के थोड़े बहुत चिकने मुकने हो गये हैं, जितना आप छह लोगों ने मिल के लगाया होगा, उससे ज्यादा रगडूंगी, और जब होली के हफ्ते बाद लौटेंगे न तब भी छोटी साली का लगाया रंग नहीं छूटेगा। और कोई जगह नहीं बचेगी, बल्कि अंदर तक, "
दो ऊँगली मेरी ओर दिखा की उसे शोख, शरारती साली ने अपना इरादा साफ़ किया और स्कूल का बैग खोल लिया।
और गुंजा के बैग खोलते ही मैं सहम गया,
बैग खूब फूला हुआ लेकिन, न एक कॉपी, न एक किताब, न पेन न पेन्सिल। सिर्फ रंग, पेण्ट और वार्निश की ढेर सारी डिबिया, एक दो खुली, सफेद चांदी के रंग की, और बाकी बंद।
उस टीनेजर ने मुड़ के अपनी चपल निगाहों से मुझे देखा और हलके से मुस्करायी, फिर रंग का सब भण्डार खाली करने में जुट गयी, सच में जितना रीत, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी ने मिल के लगाया था उससे ज्यादा मेरी छोटी साली ले के आयी थी।
और मेरे पास रंग की एक पुड़िया भी नहीं, लेकिन मुझे दूबे भाभी की सीख याद आयी,
" अरे स्साली, सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत पड़ती है क्या, एकदम बौरहे हो। गाल लाल करो चूम के, चूँची रंगो रगड़ के और बुरिया रंग डालो चोद चोद के "
और मैंने गुंजा को पीछे से धर दबोचा और उस किशोरी के मुलायम मुलायम मक्खन से गालों पर, कस के पहले चुम्मा, फिर होंठों के बीच में दबा के चूसना शुरू कर दिया, और हाथ मेरे कम लालची थे क्या और किस जवान मर्द की उँगलियाँ न होंगी जो दर्जा नौ वाली के छोटे छोटे बस आये आये टिकोरों को न छूना चाहें और यहाँ तो कच्ची मसलने का मौका था, तो गुंजा के छोटे छोटे उभार मेरी हथेलियों में, ... मसला सुबह भी था, लेकिन कपड़ो के अंदर से, थोड़ा सहमति झिझकते,
गुंजा गरमा रही थी, मस्ता रही थी, पीछे से अपने स्कर्ट में ढंके चूतड़ मेरे खड़े पागल खूंटे पे रगड़ रही थी पर हाथ उसके , हाथों में रंग लगाने पेण्ट के डिब्बे खोल के तैयारी करने में लगे थे।
लेकिन मन मेरा भी कर रहा था, यार एक दो लाल रंग की पुड़िया ही मिल जाती कहीं से,
गुंजा छुड़ाते हुए मुझे याद करती, फिर कुछ सोच के वो रंग छोड़ देती,... उसकी सहेलियां उसे चिढ़ाती, ' हे ये रंग किसने लगाया, हमने तो नहीं लगाया,"
और वो छेड़ती सहेलियों को अदा से बोलती, " नहीं बताउंगी, है न कोई ,... एकदम खास वाला। "
एक चीज मैंने जिंदगी में सीख ली थी की जब कहीं से भी मदद मिलने की उम्मीद बंद हो जाए, कोई चांस न बचे तो, ... गुड्डी मदद करती है, और बिना कहे। मेरी हरचीज बिना मेरे कहे उसे जादूगरनी को पता चल जाती है, जो बोलने की मेरी हिम्मत भी नहीं पड़ती वो भी,
तो गुड्डी ने मेरे हाथ में पक्के वाले गुलाबी रंग की एक डिबिया और काही रंग की दी चार पुड़िया कहीं से निकाल के पकड़ा दी , और जब कृपा बरसती है तो हर ओर से, मेरी छोटी साली जब रंगों का जखिरा सम्हाल रही थी तो सफ़ेद वार्निश की एक डिबिया लुढ़की और मेरे हाथ में ,
और होली मैंने ही शुरू कर दी,
और गुड्डी ने हड़का लिया, " हे वो छोटी है, पहले उसे लगाने दो "
लेकिन कहते हैं जब बीबी का मूड खराब हो तो साली काम आती है और मेरी साली तो बहुत ही काम वाली, वो मेरी ओर से बोली,
" लगाइये न जीजू,... दी, लगाने दो इनको, जब मैं लगाउंगी न तो उसके बाद बेचारे लगाने लायक नहीं रहेंगे, इनकी बहिन महतारी सब कर दूंगी आज, ...अभी एकलौती छोटी साली हूँ , "
और जब साली हाँ कर दे, वो भी एक सेक्सी टीनेजर चढ़ती उम्र वाली तो कौन जीजा छोड़ेगा, आठ दस कोट रंग के तो गुंजा पहले ही लगवा के आयी थी, अपनी सहेलियों से , बस मैंने वही वार्निश वाला डिब्बा खोला, और आराम से अपने दोनों हाथों में लगाया फिर,..
उस शोख, चढ़ती उमरिया वाली कोरी कच्ची कली के दोनों गाल मेरे हाथों में,...
रंग वंग तो बस,... असली मजा तो उंगलियों को उन कोमल, पुरइन के पात ऐसे चिकने गालों को छूने में सहलाने में आते हैं, जिन स्निग्ध, मालपुआ ऐसे गालों को छू के जब नजर फिसल जाती है तो उसी में मूसल चंद बौरा जाते हैं, ...आज तो वो गाल मेरे हाथ में थे।
सुबह की होली के बाद जिस तरह से संध्या भाभी और दूबे भाभी ने मुझे रंग लगाया था और नहाने में, छुड़ाने में जो हालत हुयी थी मैं भी कुछ कुछ सीख गया था, ऐसी जगह रंग लगाना जहाँ पहली बात तो जल्दी दिखाई न पड़े और दूसरी बात छुड़ाते समय वहां ठीक से हाथ भी न पहुंचे, तो एक बार वार्निश का कोट उस कोमलांगी के चन्द्रबदन पर लगाने के बाद, मैंने कान के पीछे और ईयर लोब्स पे, गर्दन के पीछे, कन्धों पर, नाक के किनारे किनारे, उन जगहों पर ढूंढ ढूंढ के वार्निश के कोट,
और थोड़ी देर तक उस शोख ने मेरे हाथों को पकड़ने की छुड़ाने की कोशिश भी की, लेकिन फिर बोली,
" ठीक है, जीजू मेरी बारी आएगी न तो मैं भी ऐसी ऐसी जगह लगाउंगी न की आप भी याद करेंगे बनारस में एक साली मिली थी, "
" वो तो हरदम याद रहेगी, छोटी साली वो भी मेरी गुंजा जैसी,... कोई भूल सकता है क्या "मैंने गुंजा को मक्खन लगाया
लेकिन साली तो साली होती है, और मेरी वाली बदमाश नहीं महाबदमाश,
दोनों हाथ तो उसने मेरे छोड़ दिए लेकिन उसके चूतड़ अब खुल के कस के टॉवेल में छुपे ढंके मूसलचंद को रगड़ने लगे, और ये आदत उसकी एकदम उसकी दी गुड्डी पे, दोनों को मुझसे ज्यादा जंगबहादुर से लगाव था और दोनों चाहती थी की वो खुली हवा में सांस ले, पिंजड़े में न रहे, इसलिए वो मुझसे ज्यादा अब वो गुड्डी की बात मानते थे और अब गुंजा की भी।
उस शरारती टीनेजर की शरारत का दो असर हुआ, मूसलचंद फनफनाने लगे और तौलिया सरसराकर नीचे,
" हे उठाने की नहीं होती, "
गुंजा और गुड्डी दोनों एक साथ बोलीं,
लेकिन मैंने भी जब तक गुंजा मेरी अगले कदम के बारे में सोचे हाथ सरक कर सीधे साली की पतली कटीली कमरिया पे, और स्कर्ट भी तौलिये के साथ दोस्ती निभा रही थी,
" जीजू बहुत महंगा पड़ेगा और अब चेहरे से आप का हाथ हट गया है तो दुबारा नहीं जा सकता " गुंजा खिलखिलाते हुए बोल।
और अब चेहरे पर मैं जाना भी नहीं चाहता था,
पहली बात वार्निश की एक ही डिबिया और मैं पूरी की पूरी उसे उस चंद्रमुखी के चेहरे पर खाली कर चुका था और हाथ ललचा रहे थे उस किशोरी के बस आते हुए जुबना का रस लेने को,
वार्निश ख़तम हो गयी थी तो गुड्डी का दिया रंग तो था, तो बस मैंने आराम से हाथ अब रंग पोता, और दोनों जोबन पे,, बस मैं यही सोच रहा था साली हो तो गुंजा ऐसी और ससुराल हो तो गुड्डी के मायके जैसी।
होली में कभी टॉप के ऊपर से हलके से किसी टीनेजर साली के आते हुए उभार छूने का मौका मिल जाए, अगर साथ देने वाली सलहज हो , साली के हाथ पैर पकड़ने को तैयार तो कभी टॉप के अंदर सेंध लगा के उभारो के ऊपरी हिस्से को भी जीजा छू ले तो बस लगता है होली सफल हो गयी, और वैसी साली की जिंदगी भर गुलामी करने को तैयार,
पर यहाँ तो खुद साली अपने हाथ से,
और उभार भी कैसे, एकदम गुदाज, मुलायम, टेनिस बाल की तरह स्पंजी कड़े कड़े भी और मुलायम भी,
मेरे हाथ कुछ देर तक तो मुरव्वत करते रहे फिर कस के कभी दबाते, कभी रगड़ते और थोड़ी देर में पूरा रंग, लेकिन तभी गुड्डी बोली
जैसे क्रिकट के मैच में जिस बाल पर बैट्समन बोल्ड हो जाये, बॉलर खुशिया मनाये लेकिन नो बाल का हूटर बज जाए, एकदम उसी तरह
" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "
Wah gunja to reet aur guddi dono se hi aage nikli. Aur anand babu tumhari baheniya to inki galiyo aur tano se hi chud jaegi. Rocky aur najane kya kya. Aur dekha nahi hati na pichhe. Mast masti se erotic game khela tumhare khute se. Vo bhi with selfie. Maza aa gaya.गुंजा
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" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "
मेरी हिम्मत जो गुड्डी की बात नहीं मानता और मैं अलग, वैसे भी गुड्डी का दिया रंग ख़तम हो गया और गुंजा की निगाहें मुझे चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थी और मुझे दिखा दिखा के नीले, काही और बैंगनी रंग की कॉकटेल अपने हाथों पे बना रही थी, और फिर वो हाथ मेरे चेहरे पे
और अब मुझे समझ में आया, गुड्डी की बात,
अबतक तो मैं गुंजा को मैं पीछे से पकड़ के रंग लगा रहा था, मूसल चंद भी चूतड़ों के रस में डुबकी लगा रहे थे और अब तो गुंजा सामने थी,
उसके दोनों हाथ मेरे चेहरे पे बिजी, एकदम मुझसे चिपकी, अपने जोबन को मेरे सीने पे रगड़ती और उस पे जो मैंने रंग अभी पोता था वो मेरी चौड़ी छाती पे,
गुंजा की कोमल मुलायम उँगलियाँ मेरे चेहरे पे, किसी गोरी कुँवारी किशोरी की ऊँगली कहीं गलती से भी इधर उधर लग जाए तो लगता है की किसी बिच्छी ने डंक मार दिया, पूरी देह झनझना उठती है और अब मेरे गालों पे, पूरे चेहरे पे, वही बिच्छियां इधर उधर रेंग रही थी, सरसरा रही थीं, उस टीनेजर के कोमल कपोत, मुलायम सफ़ेद पंख मेरे सीने में रगड़ रहे थे और मैं उड़ रहा था,
नीले, काही और बैंगनी रंगों का खतरनाक कॉकटेल, और ऊपर से उस चतुर सुजान का हाथ,
कोई जगह नहीं बच रही थी, नाक के किनारे, कानों के पीछे, और कम से कम दो चार कोट, लेकिन ये तो रंगों का बेस था,
उसके बाद गुंजा ने डिब्बे पे डिब्बे खोलने शुरू किये, सफ़ेद वार्निश के, मुझे तो चोरी से एक मिल गया था, वो कोई दूकान लूट के लायी थी,बीसों, और वो मेरे चेहरे पे, और जो जगहें मैं सोच भी नहीं सकता था,
आँखें बंद करवा के, पलकों और भौंहो तक पे, क्या कोई कोई ब्यूटी पार्लर बाला आयी शैडो और मस्कारा लगाएगी, और गालों पर तो पता नहीं कितनी बार , लेकिन रंग तो बहाना था असली मजा तो गालों को रगड़ने मीसने का है, वार्निश के साथ उस किशोरी के हाथों के रस भी मेरे गालो पे,
पोता चेहरा जा रहा था पर होली तो पूरी देह की हो रही थी,
कभी उसके जोबन, नशीले मतवाले, बरछी ऐसे मेरे सीने में चुभ जाते, धंस जाते कभी वो जान बुझ के अपनी चूँचियों को रंगड़ देती, दबा देती, ये चढ़ती जवानी और उभरते जोबन वाली छोरियां, देखन में छोटे लगे गाह्व करे गंभीर, और जब वो इतनी नजदीक होती तो मेरे बावरे हुरियार मूसल चंद को भी अपनी गुलाबी सहेली को चुम्मा लेने का मौका मिल ही जाता
और अब मुझसे नहीं रहा गया,
मैंने कस के अपनी छोटी साली को गुंजा को दबोच लिया, कस कर मतलब, कस कर, खूब कस के, भींच के
और वो शोख चिंगारी भी लता की तरह लिपट गयी, मुझसे भी कस के, हाँ उसके हाथ दोनों अभी भी मेरे चेहरे पे वार्निश की चौथी कोट कर रहे थे पर अब उसके किशोर ३० सी उभार खुल के मेरे सीने में धंसे हुए रगड़ रहे थे, उसने अपनी दोनों लम्बी टांगों से मेरी टांगों को बाँध लिया था, नागपाश की तरह और कुछ अपनी चुनमुनिया, रस टपकाती जलेबी, मेरे बौराये खूंटे पे, खुले सुपाड़े पे रगड़ रही थी।
और मैं बस पागल नहीं हुआ,
मेरे दोनों हाथ कभी गुंजा की गोरी, खुली चिकनी पीठ पे टहलता तो कभी नीचे चक्कर लगा कर उस कमसिन के छोटे छोटे चूतड़ों को कस के दबोच लेता, आज होली के तरह तरह के रस मिले थे लेकिन ये बिना चढ़ती जवानी वाली छोटी साली से होलिका जो रस मिल रहा था वो सबसे अलग था। जितना मैं गुंजा की पीठ को कस के पकड़ के अपनी ओर खींचता उसके दूने जोर से वो अपनी कच्ची अमिया मेरी छाती में धंसाती, रगड़ती।
मेरे मन के सबसे भीतरी परत में जो बात दबी रहती है, जिसे मुझसे मेरा मन मुझसे भी बोलते सहमता है, वो गुड्डी न सिर्फ सुन लेती है बल्कि कर भी डालती है और तभी मेरा मन उसका बेखरीदा गुलाम है।
गुड्डी ने मेरे हाथों को खोला और आपने हाथों से ढेर सारा गाढ़ा ललाल रंग मेरी हथेलियों में लगा दिया,
और होली दो तरफा शुरू हो गयी, गुंजा की पीठ, कमर, पेट और सबसे ज्यादा मेरा मन जिसके लिए ललचा रहा था , जिसे ठुमका के वो चलती तो उसके मोहल्ले से स्कूल तक सारे लौंडो की पेंट टाइट हो जाती, उस किशोरी के छोटे लेकिन एकदम कसे चूतड़ , बार बार मेरे हाथ वही, और लाल रंग बीच की दरार में भी,
सफ़ेद पेण्ट की गुंजा को कोई कमी तो थी नहीं तो चेहरे के बाद, छाती, कन्धा पेट, पीठ यहाँ तक की हाथ पैर की उँगलियों के बीच और पैरों के तलुवे में भी, फिर वो गुड्डी से बोली,
" दी जरा निहराओ न इनको "
गुंजा के साथ गुड्डी और बौरा जाती है, जैसे सुबह इन दोनों ने मिल के मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिला के मेरी बुरी हालत कर दी थी, वही हाल फिर हो रही थी, दस गुना ज्यादा, वो मुझसे बोली,
' अबे स्साले निहुर, मेरी बहन कुछ कह रही है,... हाँ चूतड़ ऊपर और उठा, टांग फैलाओ कस के जैसे, " और कस के एक हाथ मेरे पिछवाड़े,
" अरे दी साफ़ साफ़ बोलिये न, जैसे, ...कह के क्यों छोड़ दिया, "
खिलखिलाते हुए पिछवाड़े सफेद वार्निश पोतते गुंजा ने गुड्डी को उकसाया।
गुंजा की हंसी, जैसे किसी ने दर्जनों मोती जमीन पर लुढ़का
" तुही बोल दे न, तेरी बात का ज्यादा असर होगा " गुड्डी ने गुंजा को लहकाया,
भांग और बियर का असर मुझसे और गुड्डी से ज्यादा असर गुंजा पे पड़ रहा था, वो मेरे नितम्बो के बीच की दरार पे रंग रगड़ते बोली,
" जीजू जैसे, फिर एक पल के लिए रुक गयी और हंस के बोली, ..."जैसे गाँड़ मरवाने के लिए उठाते हैं, हाँ ऐसे ही " और
जो काम रीत नहीं कर पायी, नौ इंच का डिलडो बाँध के आयी थी,... पर दूबे भाभी ने बचा लिया, ये कह के की अरे छुआ के सगुन कर दो, बाकी का जब होली के बाद आएंगे, तब तो असली वाले से,...वो गुंजा ने कर दिया
,
और गुंजा की ऊँगली गप्प से पूरी की पूरी अंदर,
फिर बाहर निकली तो उसके नीचे दूसरी ऊँगली लगा के, ...वो गुड्डी से बोली
" दी जरा कस के चियारना इनकी,,,,, और जोर लगाओ न " और गुड्डी एकदम गुंजा के साथ, वो दोनों मिल जाए तो किसी की भी ऐसी की तैसी कर दें,
और गुड्डी ने एक खुश खबरी गुंजा को सुनाई,
"तेरे जीजू जब होली के बाद आएंगे तीन चार दिन के लिए तो अपने साथ अपनी ममेरी बहन को ले आएंगे, अब उनकी कोई सगी तो है नहीं तो वो सगी से भी बढ़के,..."
" वाह जीजू हों तो है ऐसे " गुंजा खुश होके बोली, पर गुड्डी ने उसे गरियाया,
" अरे स्साली, जीजू की चमची, पूरी बात तो सुन ली, अपना जो रॉकी है न, दूबे भाभी वाला, उस से गाँठ बँधवायेगी वो, "
गुंजा मुंह फुला के बोली,
" दी आप भी न ऐसे जीजू किस के होंगे, लोग साले सालियों की भी परवाह नहीं करते, ये तो राकी तक की, और वो बेचारा कितना उदास भी रहता है, खाली कातिक में मजा ले पाता था, "
" और क्या इनकी बहिनिया तो हरदम पनियाई रहती है " गुड्डी ने गुंजा की बात में बात मिलाई, लेकिन मुझे पता चला की पिछवाड़े का गुंजा गुड्डी का प्रोग्राम कुछ और भी था, रंग का,
" दी जरा और कस के " कभी गुंजा की आवाज सुनाई पड़ती,
" ये वाला भी " कभी गुड्डी की भी आवाज,
" थोड़ा सा और " गुंजा गुड्डी की सलाह मांगती,
" और क्या, इनकी बहन रॉकी का मुट्ठी इतना मोटा, जब गाँठ अंदर बनालेगा तो हंस हंस के घोंटेंगी,... तो ये थोड़ा सा और "
गुड्डी उसे और भड़काती, लेकिन मुझे खाली सुनाई पड़ रहा था, समझ में कुछ नहीं आ रहा था, क्योंकि बीच बीच में गुंजा की टीनेजर उँगलियाँ, लम्बे नाख़ून बस मेरे पागल खूंटे को कभी छू देती, कभी सहला देतीं,
और दोनों ने मिल के मुझे खड़ा कर दिया,
" क्यों मस्त लग रहे हैं न आपके मनमोहन,' गुंजा ने हँसते हुए गुड्डी से पूछ।
एकदम चांदी की मूरत, बालों तक में सफेद वार्निश और एक नहीं कई कोट,
इसलिए उसने कसम धरवाई थी की जीजू मेरे साथ बिना होली खेले, बिना मुझसे मिले वापस न जाइयेगा,
और फिर स्नैप स्नैप, मेरे मोबाइल से ही दर्जन भर फोटो, और फिर सबके मोबाईल में, गुंजा का जवाब नहीं था
" हे वो जगह क्यों छोड़ दिया " और गुड्डी ने गुंजा के कान में कुछ बोला और वो पहले तो झेंपी फिर खिलखिलाने लगी,
सच में वो आठ नौ इंच एकदम खड़ा, खूब मोटा, उस पे पेण्ट का एक टुकड़ा भी नहीं
" उस की तो अच्छी से और खास रगड़ाई करुँगी, आखिर आज रात भर मेरी दीदी के साथ मजे लेगा, मजे देगा वो "
गुंजा ने गुड्डी को छेड़ा और जब तक गुड्डी एक कस के धौल जमाती, गुंजा छटक के दूर,
" हे चल एक सेल्फी तो ले ले उस के साथ " गुड्डी ने गुंजा को चढ़ाया
" एकदम सही आइडिया तभी तो आप मेरी अच्छी वाली दी हो " गुंजा मुस्करा के बोली और ' उसे पकड़ के एक जबरदस्त सेल्फी , फिर खुले सुपाड़े पे चुम्मी लेते सेल्फी ,
गुड्डी समझ रही थी अब देह की होली का नंबर आ गया है और गुंजा को तो फरक नहीं पड़ता था लेकिन वो जानती थी की मैं किसी के सामने नहीं कर पाऊंगा,एकदम से असहज हो जाऊँगा तो एक घिसा पिटा बहाना बनाया और डांट पड़ी मुझे
लेकिन जो भी जिंदगी भर का अरेंजमेंट चाहते हैं ये पहले से जानते हैं की डांट वांट तो माना हुआ रिस्क है लेकिन उस मजे के आगे
तो अब गुड्डी अगर घंटे दो घंटे में मुझे एक बार कस के नहीं डांटती थी तो मुझे लगता है की ये सारंगनयनी, मेरी मनमोहिनी या तो नाराज है या इसकी तबियत नहीं ठीक है,
" यार तेरे चक्कर में, जल्दी बाजी के, ....अरे नहाने के बाद मैं कपडे धोना भूल गयी, और वो पांच दिन के बाद वाले कपडे, बस आती हूँ "
और वो छत से वापस, कमरे में और दरवाजा भी बंद, लेकिन दरवाजा बंद करने पहले गुंन्जा की ओर दिखा के ऊँगली से गोल बना के उसके अंदर दूसरी उंगल से अंदर बाहर कर के, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखा के अपने मन की बात कह गयी। दरवाजा सिर्फ बंद नहीं हुआ अब्ल्कि अंदर से सिटकिनी लगने की भी आवाज आयी, फटाक।
नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी,
मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
Man gae is gunja kishori ko. Najane kitne teer iske tarkash me hai. Isne to sabhi ko mat de di. Sabse jyada aage badh gai. Pahele to jija ke khute se bate ki. Fir apne bag se special rang nikal ke lagaya. Najane bag me aur kitna kuchh bhar rakha hai isne. Aur uske bad gap se nigal bhi gai.गुंजा -भीगे होंठ मेरे
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नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी, मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
लेकिन गुंजा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था,
उसने आराम से उसने अपने स्कूल बैग का बाहरी पाउच खोला, और पहले एक शीशी खोली उसमें से कुछ लिक्विड निकाला और कस कस के हाथ पे रगड़ा और धीरे धीरे हाथ में लगा सफ़ेद वार्निश काफी कुछ साफ़ साफ़ हो गया
और फिर उसी बाहर वाले पाउच से रंग के कुछ अलग से चार पांच पैकेट, बड़े बड़े, और लाल रंग का पाउच खोल के मुझे दिखाते हुए पूछने लगी
" कैसे लगेगा ये रंग मेरे यार पे "
" तो उसी से पूछ न " अपने तन्नाए मूसलचंद की ओर इशारा करते मैं बोला,
" अरे उसी से पूछ रही हूँ, बुद्धू राम, ...मैंने सुबह बोला था न स्कूल जाने से पहले मेरा इन्तजार करना फिर देखना इत्ती कस के इसकी रगड़ाई होगी, "
और वो लाल रंग गुंजा के कोमल कोमल हाथों से मेरे मोटे मूसल पे
कुछ देर तो वो पीछे से, मेरे पीठ पे अपने उभरते जुबना दबाती रगड़ती, एक मुट्ठी में उसके नहीं आ रहा था तो दोनों हाथों से पकड़ के जैसे कोई ग्वालिन दोनों हाथ से मथानी पकड़ के,
और फिर सामने से नीचे से बैठ के लाल के बाद हरा, और फिर नीला रंग बीच बीच में, और बदमाश इतनी की उस शोख किशोरी की नाचती गाती आँखे मेरी आँखों में झांकती, उकसाती, कभी खुले सुपाड़े को जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी बस छू के हटा लेती
मेरी हालत ख़राब मैं कहना चाहता था बोल नहीं पा रहा था तो गुंजा ने ही बोल दिया
." अरे जीजू, मैं दी की तरह कंजूस नहीं हूँ, ....बस एक बार बोल के देखिये आपकी साली सब कुछ दे देगी "
और जब उसने जीभ से छुआ तो मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा, " हे मुंह में ले ले न न बस जरा सा न, बस एक बार, बस थोड़ी देर,... "
गप्प
सुबह से मूसल चंद ने बहुत स्वाद चखा था, रीत की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ घिस कर के, संध्या भाभी की रसीली खेली खायी हलकी सी खुली फांको के बीच फंस के,
लेकिन होंठों का स्वाद नहीं मिला था, और मिला भी तो एकदम शोला और शबनम, गरम गर्म कच्ची अमिया वाली टीनेजर के खूब गुलाबी रसीली होंठों का, सुबह मैं ललचा ललचा के टेबल पे पर ही देख रहा था और स्कूल जाने के पहले एक छोटी सी ही सही मेरे होंठों को चुम्मी मिल गयी थी, लेकिन मेरे चर्मदण्ड की ये किस्मत,
मोटे कड़े मांसल सुपाड़े पे उस शोख सेक्सी टीन के रसीले होंठों का हल्का हल्का प्रेशर, और उस से भी थी उस बदमाश की कातिल कजरारी बड़ी बड़ी आँखे जो मेरी आँखों में मुस्करा के देख रही थीं,
" हे क्या कर रही है, गुंजा,... " मेरे मुंह से निकला।
और जवाब में उसने उन होंठों का दबाव मेरे पगला रहे सुपाड़ा पे बढ़ा दिया और सरकाते हुए इंच इंच आगे,
मजे से मेरी हालत खराब हो रही थी, अच्छा भी लग रहा था, मन भी कर रहा था की ये रुक जाए, ....और मन ये भी कह रहा था की और कस कस के चूसे,
अब मेरी छोटी,... स्कूल वाली साली की जीभ भी मैदान में आ गयी, होंठ हलके हलके दबा रहे थे, जीभ नीचे से रगड़ने लगा और जहाँ सुपाड़ा चर्मदण्ड से मिलता है, ठीक उस जगह पे जीभ की टिप से कुरेदने लगी, और साथ में अब उसने रुक रुक के चूसना भी शुरू कर दिया
मैं सिसक रहा था, कमर अपने आप हिल रही थी मस्ती से हालत खराब हो रही थी, सुबह से होली की मस्ती में पहली बार ऐसे हो रहा था की मेरा एकदम अपने ऊपर कंट्रोल नहीं था। किसी तरह से मैंने बोला,
." अरे निकालो न, अभी तूने इत्ता रंग पोता है सब तेरे मुंह में,.... " और मेरी उस छोटी मिर्च सी तीखी, रसगुल्ले सी मीठी साली ने जवाब दे दिया
पूरी ताकत से उसने अपने सर से, गले से पुश किया और अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची से भी रसीला, मोटा सुपाड़ा उस कच्ची कली के मुंह में,
और अब उसके दोनों हाथ भी मैदान में थे, बचा खुचा रंग अपने हाथ से लंड पे पोत रही, रगड़ रही थी, लेकिन रंग से ज्यादा कस कस के मुठिया रही थी। इतना कस के चूस रही थी वो स्साली की जैसी लंड के रस की एक एक बूँद आज घोंट के ही रहेगी,
मुझसे अब नहीं रहा गया, मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं, कस के मैंने गुंजा का सर दोनों हाथों से पकड़ा और बिना इस बात का ध्यान रखे की वो उमरिया की बारी है, ....आज पहली बार पहलवान से उसकी दोस्ती हो रही है, दोनों हाथो से उस कोमल किशोरी का, अपनी छोटी साली का मुंह पकड़ के मैंने ठेल दिया, और गुंजा ने भी कस के अपना मुँह फेला , धीरे धीरे कर के सुपाड़े के आगे भी,
जितना जोर से में पुश कर रहा था, उससे जोर के वो पुश कर रही थी,
खूब मुलायम, मखमली रस भरे, गुंजा का मुख रस मेरे मसल में अच्छे से लिथड़ रहा था, उस लड़की न। जैसे मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ रखा था,उसने मेरे चूतड़ को पकड़ के, कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया, धीरे धीरे कर के आधे से थोड़ा ही कम खूंटा उस के मुंह के अंदर था।
गुंजा की आँखे उबली पड़ रही थीं,
मोटे से खूंटे को घोंट के गाल एकदम फूले, फ़टे पड़ रहे थे, होंठों के कोनो से लार की एक धार कभी निकल रही थी पर न तो उसके चूसने के जोश में कभी न जीभ जिस तरह से चाट रही थी उसमे कोई कमी आयी, कुछ देर में उसका मुंह तक गया तो उसने बाहर निकाला लेकिन फिर भी नहीं छोड़ा, हाथ से पकड़ के मेरे मूसल को अपने चिकने गाल पे रगड़ने लगी, फिर जीभ से बेस से लेकर ऊपर तक लिक कर रही थी
और मुझे फिर वही बात याद आयी
" अरे क्या कर रही है इसमें लगा रंग तेरे मुंह में,... " मैंने फिर बोला,
हंस के उस हंसिनी ने सुपाड़े पे एक मोटा सा चुम्मा जड़ दिया और मुस्करा के बोली, उसकी दूध खिल सी हंसी बिखर पड़ी,
" जीजू आप भी न, आप की साली हूँ मेरी जो मर्जी वो मुंह में लूँ। "
फिर कुछ रुक के बोली
"आप भी न एकदम बुद्धू हो , तभी मेरी दी अभी तक बची है। अरे इस प्यारे प्यारे मोटू के लिए मैंने अलग इंतजाम किया था, इसलिए तो बाहर वाले पाउच में वो रंग रखे थे, ये सब खाने में डालने वाले, खाने वाले रंग है और वो भी स्ट्रबेरी और चॉकलेट फ्लेवर्ड, मेरी पसंद का इसलिए तो मैं चूसूंगी और मन भर के चूसूंगी। अभी सिर्फ इस लिए निकाल लिया की आप की बात का जवाब देना था। "
वो बोल रही थी, तब भी गुंजा के दोनों मुलायम हाथों में मेरा कड़ा पगलाया खूंटा मसला रगड़ा जा रहा था और फिर जैसे अपने बात पे जोर देने के लिए उसने लम्बी सी जीभ निकाली, पहले मुझे चिढ़ाया, फिर सीधे सुपाड़ा के छेद में, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप डाल के सुरसुरी करने लगी,
मेरी हालत खराब लेकिन गुंजा बदमाशी के नए नए रिकार्ड बना रही थी, जीभ से सुपाड़ा के चारो ओर, बार, कुछ उसके थूक से कुछ मेरे प्री कम से, एकदम गीला लसलसा, और ऊँगली से लगा के गुंजा ने उसी लसलस को अपनी प्रेम गली में और
मेरा मन खराब हो गया, गुंजा ने एक बार फिर से खूंटा मुंह में ले लिया था और कस के चूस रही थी, लेकिन अब एक बार प्रेम गली पे निगाह पे मेरी पड़ गयी तो अब हम दोनों 69 की मुद्रा में
Kya sali hai tumhari man gae. Chhutki ki yaad aa gai. Na forply me pichhr hati na satvane me. Are ise to tel vaslin na bhi lagaya hota to pichhe nahi hat ti. Kambakht kam hote hote rahe gaya.चुसम चुसाई होली में
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और अब चूसने चाटने का काम मेरा था.
जैसे कोई पिया की प्यारी, मिलन की प्यासी खुद अपनी बांहे फैला दे, जैसे साजन की राह तकती, विरह में जलती नायिका, दरवाजे खोल के खड़ी हो जाए,
बस एकदम उसी तरह गुंजा ने अपनी मेरे होंठों के वहां पहुँचने से पहले ही अपनी दोनों कदली सी चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी, जैसे रस्ते खुद खुल गए हों,
मेरे प्यासे होंठ जो अब तक उस कुँवारी किशोरी के भीगे रसीले होंठों का, आ रहे उभारों का स्वाद चख चुके थे, उस रति कूप में डुबकी लगाने के लिए बेक़रार थे। पर सीधे कुंए में उतरने के पहले, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ना, उसके आसपास का हाल चाल,
चुंबन यात्रा जाँघों के उस ऊपरी हिस्सों से शुरू हुयी जहाँ, न धूप की किरण पड़ती थी न किसी की नजर, कभी मेरे होंठ हलके से चूमते, कभी सिर्फ जीभ जरा सा बाहर निकल कर बस उसकी टिप एक लाइन सी खींचती, रस्ता बताती उस प्रेम कूप की ओर जिसमें डुबकी लगाने के लिए मैं अब तड़प रहा था और कभी होंठ कस कस के चूसते, एक जांघ पर होंठ थे दूसरे से मेरी लम्बी काम भड़काने वाली उँगलियाँ, दोस्ती कर रही थीं। कभी बस छूतीं, कभी सहलाती तो कभी सरक सरक के प्रेम गली की ओर,....
गुंजा तड़प रही थी, सिसक रही थी,
और ये नहीं की वो मेरे चर्मदंड को भूल गयी थी,... उसके होंठ कभी मेरे होंठों की नक़ल करते उसके आस पास चाटते तो कभी मुट्ठी में पकड़ के वो कच्ची अमिया वाली हलके हलके आगे पीछे,
मस्ती के मारे मेरी आंखे जो अब तक बंद थी जब खुलीं तो बस एक पल ही देखा जो, वो आँखों से कभी भी न बिसरे बस इसलिए पलक के दोनों पपोटों में समा के मैंने आँखों की सांकल कस के बंद कर ली,
चिकनी गुलाबी खूब फूली फूली रस से छलकती दोनों फांके,
आम की दो बड़ी बड़ी रस चुआती फांको को जैसे किसी ने कस के चिपका दिया हो,
छेद क्या दरार भी नहीं दिखती थी, लेकिन जैसे चाशनी से भीगी, डूबी ताज़ी निकली जलेबी हो, शीरे में डूबी, उसी तरह रस में गीली, भीगी पता चल रहा था की ये कच्ची कली किस तरह चुदवासी थी,
कभी अपनी जाँघे जोर जोर से रगड़ती, कभी सिसकती, " जीजू करो न, अच्छे जीजू, प्लीज, "
और कौन जीजू साली की बात टालता है वो भी फागुन में,
रति कूप के चारो ओर मेरे होंठ अब चक्कर काट रहे थे, कभी जीभ से बस बस मैं एक लाइन सी खींचता दोनों मोटे मोटे भगोष्ठों के चारो ओर, लेकिन गुंजा को मालूम था की मेरे एक्सीलेरेटर पर कैसे पैर रखा जाता है एक बार सुपाड़ा फिर उसके होंठों के बीच और वो कस कस के चूस रही थी तो मैं अब कैसे छोड़ता,
पहले मेरी जीभ ने उस कच्ची कोरी रस में भीगी चूत की चासनी को धीरे धीरे कर के चाटा, फिर हलके हलके चूसना शुरू किया,
फुद्दी फुदकने लगी, और मेरी चूसने की रफ़्तार बढ़ गयी,
होंठों का प्रेशर दोनों फांको पे , जो अब पूरी तरह मेरे मुंह थी, चूसने के साथ मेरी जीभ दोनों फांको को अलग करने की कोशिश कर रही थी, चाटने चूसने से चाशनी कम होने की बजाय और बढ़ रही थी, रस से एक ेदक गीली थी और अब होंठों ने दोनों फांको को हथेली के लिए छोड़ा और खुद क्लिट को छेड़ने में जुट गए, इस दुहरे से हमले तो खूब खेली खायी भी गरमा जाती, गुंजा तो पहले से ही पिघल रही थी,
थोड़ी देर हथेली से रगड़ने के बाद मैंने तर्जनी से दोनों फांको को फ़ैलाने की कोशिश की, लेकिन फेविकोल का जोड़ मात, इतनी कस के दोनों चिपकी थी,
जैसे दो बचपन की सखियाँ कस के गल बंहिया डाल के बैठी हों कोई छुड़ा न पाए, एकदम स्यामिज ट्विन्स की तरह जुडी चिपकी,
कलाई के पूरे जोर से तर्जनी को घुसाने की कोशिश की,
उईईई गुंजा जोर से चीखी,
ऊँगली का बस सिरा ही घुसा था, मैंने गोल गोल घुमाने की फिर घुसाने की कोशिश की जैसे बरमे से कोई कठोर लकड़ी में छेद कर रहा हो पर उस कच्ची कली की पंखुडिया इतनी कस के चिपकी थीं,
और मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आयी, बात तो वो गुड्डी के सिलसिले में कर रही थीं, लेकिन बात हरदम के लिए सही थी,
" देख बिना चिकनाई लगाए कभी भी नहीं करना चाहिए ,सबसे अच्छा तो देसी सरसों का तेल है, लेकिन उसको रखने का झंझट है और नहीं तो लगभग वैसा ही है वैसलीन, ( मुझे याद आया गुड्डी ने जब कल वैसलीन ली थी दूकान से तो दूकान वाला बोला, बड़ी शीशी है चलेगी तो गुड्डी मेरी ओर देख के मुस्कराते बोली एकदम बड़ी शीशी ही दे दीजिये"
और सरसों का तेल हो तो पहले अपने मूसल पे लगाओ, लेकिन उसके पहले हथेली पे और ऊँगली पे और हल्का सा नहीं बल्कि चुपड़ लो।तेल की शीशी में सीधे डाल लो ऊँगली पहचान ये है की ऊँगली से तेल टप टप चूए, और उससे फिर दोनों फांको के बीच,.... धीमे धीमे, ...तेल अपने आप जगह बनाएगा, और जैसे ही दरार थोड़ी सी फैले, ...उसमें बूँद बूँद तेल चुआ चुआ करके, जबतक ऊपर तक न छलक जाए,.... फिर हथेली से थोड़ी देर पूरी बुर रगड़ो, हलके हलके, और जब तेलिया जाए, तो फिर तेल में डूबी ऊँगली,जब तक दो पोर एक ऊँगली की न चली जाए तब तक, और उसके बाद गोल गोल घुमाओ,
फिर उसी ऊँगली के पीछे दूसरी ऊँगली एकदम चिपका के, दोनों ऊँगली एक पोर तक और हर बार पहले तेल अंदर, दो ऊँगली जब सटा सट जाने लगे तो उसके बाद सुपाड़े को एकदम तेल में चुपड़ के, तब धीरे धीरे, "
भाभी समझा भी रही थी और मेरे खूंटे पे तेल चुपड़ भी रही थी।
मुझसे नहीं रहा गया और मैं पूछ बैठा, " भाभी ने तो बताया था किआप करीब करीब छुटकी की उमर की थीं, जब आपके जीजा ने आपके साथ, तो कैसे आपकी तो एकदम, "
वो जोर से हंसी और तेल की धार सीधे सुपाड़े के छेद में और खूंटे को तेल लगे हाथों से मुठियाते बोलीं,
" देवर जी, पहली बात तो मेरे जिज्जा की महतारी आपकी महतारी की तरह गदहे के साथ नहीं सोई थीं, जीजा का आदमी ऐसा था , तोहरी तरह गदहा, घोडा छाप नहीं। दूसरी बात हमरे जीजा तोहरे तरह बुद्धू नहीं थे, खूब खेले खाये चतुर सुजान, और फिर हमार भौजी उनके साथ,...
तो पहले उनकी सलहज, हमार भौजी,... हमार बिल फैलाये के सीधे कडुवा तेल की बोतल का मुंह उसी में लगा के ढरका दीं, आधी बोतल, फिर बुरिया के ऊपर दबा के देर तक रगड़ रगड़ के जब तक तेल अंदर सोख नहीं लिया, फिर अपनी तेल में चुपड़ी दो ऊँगली,…
और हमार भौजी तो पिछली होली में ऊँगली घुसा के, नेवान कर दी थी, और फिर तो मैं खुद भी, ….
लेकिन उस दिन इतना तेल पानी करने पे भी, जब झिल्ली फटी तो भौजी कस के हमार हाथ गोड़ दोनों छान के पूरी ताकत से,तब भी मैं ऐसी उछली, …..इसलिए पहली बात,... तेल पानी चिकनाई पहले और फिर ऊँगली पूरी अंदर कर के गीली कर के,... और जीजा का तो दो ऊँगली इतना मोटा रहा होगा, तेरा तो मेरी कलाई के बराबर, जब तक दो ऊँगली अंदर कम से कम दो पोर तक न घुस जाए तोहरे अस मूसल, घुसब बहुत मुश्किल है बल्किल कोशिश भी नहीं करनी चाहिए , बिना तेल लगाए, बिना दो पोर तक ऊँगली अंदर किये "
और यहाँ तो तेल की शीशी क्या तेल की एक बूँद भी नहीं थी, और मैं समझ गया बिना तेल, चिकनाई के, लेकिन जब सामने छपन भोग की थाली हो, तो
मैं एक बार कस के फिर से चूसने चाटने में लग गया,
मैं सीधे पांचवे गियर में पहुँच गया, कस के गुंजा की दोनों फैली जांघो को और बुरी तरह फैला दिया, अंगूठे को अपने मुंह में ले जाकर अपना सारा थूक उसपे लिपटा सीधे दरार के बीच, और अब मैं बजाय अंदर घुसाने की कोशिश करने के थोड़ी सी फैली फांको के बीच उसे रगड़ने लगा, और असर तुरंत हुआ,
" जीजूउउउउ " गुंजा ने जोर की सिसकी भरी।
वो हलके हलके चूतड़ उछाल रही थी, तड़प रही थी, उह्ह्ह आआह नहीं, हाँ कर रही थी कस कस के सिसक रही थी।
मुंह में मैंने ढेर सारा थूक भरा, दोनों अंगूठों से उस कोरी कच्ची कली की पंखुड़ियों को कस के फैलाया, और सारा का सारा थूक उसी खुली दरार में, और फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के चिपका के हलके हलके आपस में रगड़ना शुरू किया और गुंजा मस्ती से पागल हो गयी,
" ओह्ह्ह, क्या कर रहे हो जीजू, उफ़ कैसा लगता है , जीजू तू, ओह्ह जीजू ओह्ह्ह "
वो टीनेजर लम्बी लम्बी साँसे भर रही थी, कुछ भी मेरा बोलना उस जादू को तोड़ना होता। और फिर मेरी जीभ और होंठों को बोलने के और भी तरीके आते थे, एक बार फिर से जीभ ने मेरी छोटी साली के योनि कपाटों को बस हलके से खोला और जो दरार दिखी उसी में सेंध लगा दी
आगे पीछे, गोल गोल, उस प्रेम गली के मुहाने पे वो बार बार दरवाजा खटखटा रही थी, और मेरी जीभ का असर, मेरी साली की चढ़ती जवानी का असर,
जैसे पाताल गंगा निकल पड़ी हों, रस का एक झरना फूट पड़ा हो, पहले बूँद बूँद, फिर एक तार की चाशनी जैसा, लसलसा, लेकिन
क्या गंध, क्या स्वाद, क्या स्पर्श, और चुसूर चुसूर मेरे होंठ अंजुरी बना के उस कुँवारी कच्ची योनि रस को सुड़कने लगे
"ओह्ह्ह बहुत अछ्छा लग रहा है जीजू क्या हो रहा है जीजू उफ़ उफ़ हाँ हाँ, "
रुक रुक के वो जवानी की चौखट पे खड़ी टीनेजर कभी सिसकती कभी रुक रुक के बोलती
मेरे दोनों हाथों ने अब पूरा जीभ के लिए छोड़ दिया था
लेकिन वो दोनों शैतान हाथ अब भी रस ले रहे थे, पीछे गुंजा के छोटे छोटे नितम्बों को छू के दबा के दबोच के, और उंगलिया जिसे बहुत लोग वर्जित समझते हैं वहां भी जांच पड़ताल कर रही थीं
और जीभ पंखुड़ियों पे एक मिनट में १०० बार, २०० बार तितली की तरह पंख फड़फड़ा रही थी, फ्लिक कर रही थी,
गुंजा पागल हो रही थी
होंठ कभी चूसते कभी चाटते, कभी ऊपर जा कर उस कोमल कली की कड़ी कड़ी क्लिट पे भी सलामी बजा देते
ओह्ह आह बस ऐसे ही, क्या करते हो , बहुत बहुउउउत अच्छाआ लग रहा है ओह्ह्ह्हह्हह ओह्ह्ह्हह
और मैं समझ गया की मेरी साली अब एकदम झड़ने के कगार पे है, मैंने चूसने की चाटने की रफ़्तार बढ़ा दी
लेकिन छेड़ने का हक़ क्या सालियों का है , सुबह का ब्रेड रोल मैं भूला नहीं था, बस जब वो वो एकदम कगार पे पहुँच गयी,
मैं रुक गया
और गालियों की झड़ी लग गयी,
"करो न जीजू, ओह्ह्ह्ह रुक क्यों गए, अच्छा लग रहा था, ओह्ह प्लीज स्साले,.... तेरी बहन की, तेरी उस एलवल वाली की,... कर ना"
मेरे होंठ उस रसीली की रसभरी फांको से अब इंच भर ऊपर थे, मैंने चिढ़ाया
" क्या करूँ गुंजा रानी, मेरी प्यारी साली "
" स्साले, जो अबतक कर रहे थे, बहन के भंड़ुवे, " गुंजा अब एकदम बनारस वाली रसीली साली बन गयी थी।
" अरे स्साली वही तो पूछ रहा हूँ, " मैंने उस रस की पुतली को फिर उकसाया,
" अपनी बहन की चूत चाट चाट के चूस चूस के जो सीख के आया हैं न वही, " और फिर से एकदम स्वीट स्वीट
" जीजू प्लीज करो न चुसो न कस कस के बहुत अच्छा लग रहा था, चूस मेरी चूत, चाट कस के "
वो अपने चूतड़ उचका के खुद अपनी रस की गुल्लक मेरे होंठों के पास ला रही थी और मैं होंठ और ऊपर,
लेकिन साली जब अपने मुंह से कह दे, उसके बाद तो, फिर से चूसना चाटना, शुरू तो मन्द्र सप्तक से हुआ, मदिर मदिर समीर से लें ऐसी चढ़ती जवानी हो तो हवा को तूफ़ान में बदलने में कितनी देरी लगती है
और अबकी जब गुंजा झड़ने के कगार पर पहंची तो मैंने घोड़े को और एड दे दी, वो हवा में उड़ने लगा और गुंजा भी,
ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईई नहीं हां उफ्फ्फ आअह्ह्ह अह्ह्ह्हह
जवालामुखी फूट पड़ा, मैं कस के उसे दबाये था तभी वो चूतड़ उछाल रही थी, उचक रही थी, तड़प रही, जाल में आने वाली मछली जैसे हवा में उछलती है फ़ीट भर एकदम उसी तरह
लेकिन न मेरे चूसने में कमी हुयी न चाटने में
बस जीजू बस, बस एक पल, ओह्ह ओह्ह्ह देह उसकी एकदम ढीली हो गयी थी
उसकी बात मान के मैं एक पल को रुका फिर से चूसना शुरू कर दिया और दो चार मिनट में वो फिर झड़ रही थी , उसके बाद तो ये हालत हो गयी की मैं बस उसके रस कूप पे होंठ लगाता, क्लिट पे जीभ छुआता और वो,
तीसरी बार, चौथी बार
एकदम थेथर होगयी, थकी, निढाल और तब मैं रुका और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बेसुध, फिर मैं ही उठा और कस के उसे अपनी गोद में बिठा के चूम लिया, और बदले में क्या उस लड़की ने चूमा मेरे होंठों को, चाट चाट के चूस के, थकान से सपनों से लदी उसकी पलकें अभी भी बंद थी, लेकिन जब बड़ी बड़ी आँखे खोल के उस खंजननयनी ने देखा तो उसे अहसास हुआ,
जो वो चूस चाट रही थी उसका अपना योनि रस था,
वो एकदम से शर्मा गयी, मेरे पीठ पे मुक्के से मारने लगी, ' गंदे, बदमाश "
और मैंने उसे कस के भींच लिया और कान में पूछा, " हे अच्छा लगा "
और अबकी वो और जोर से शर्मा गयी, मेरी बाहों में कस के दुबक गयी। और फिर जवाब उसके एक मीठे वाले चुम्बन ने दिया,
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे कस के चिपके, एक दूसरे को बाहों में भींचे रहे, और गुंजा को अपने नितम्बो में धंस रहे खूंटे का अहसास हुआ वो अभी भी जस का तस खड़ा,कड़ा, और गुंजा ने मेरे कानो में धीरे से बोला,
" सॉरी जीजू "
समझ तो मैं रहा था लेकिन मैं उसे हड़काते बोला, " साली, गाली देती हैं, सॉरी नहीं बोलती, न जीजा न साली "
" वो तेरा, : कस के बिन बोले अपने चूतड़ों से मेरे खड़े मूसल को दबाते बिन बोले उसने इशारा किया
" इत्ता मजा तो मिला, तेरे भीगे भीगे मीठे मीठे होंठों का शहद से मुंह का "
मैं बोला और गुंजा और कुछ बोलती उसके पहले मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये और जीभ ने मेरी साली के मुंह में सेंध लगा ली। कुछ देर पहले जो सुख मेरे लिंग को मिल रहा था अब वही मेरे जीभ को मिल रहा था, चूसे जाने का,
अब न गुंजा बोल सकती थी न मैं
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" गुंजा, " बड़ी जोर से आवाज गूंजी।
उसकी सहेली.... वही जो सुबह उसे बुलाने आयी थी, मोहल्ले भर में नहीं तो चार पांच घरों में जरूर सुनाई पड़ा होगा,
और उछल के गुंजा मेरी गोद से खड़ी हो गयी,
' स्साली कमीनी छिनार '
बुदबुदाते हुए झट से मेरे तौलिये के ऊपर आराम फरमा रही अपनी स्कर्ट को चढ़ा लिया और फिर स्कूल वाली टॉप को, और मैंने भी तौलिया बाँध लिया।
और मेरी ओर मुड़ के उस कामिनी ने एक झट से चुम्मी ली, और बड़ी बड़ी आँखे झुका के बोली,
" सॉरी जीजू मैं भूल ही गयी थी, मेरी एक एक्स्ट्रा क्लास है थोड़ी देर में, और उसमे जाना,... "
तबतक गुड्डी धुले हुए कपड़ो का गट्ठर लेके बाथरूम से निकल आयी थी, और गुंजा की बात सुन के बोली, " क्यों मोहिनी मैडम ""
और दोनों सहेलियों की तरह खिलखिलाई उस मैडम के नाम पर, गुड्डी चू दे बालिका विद्यालय की पुरानी खिलाडन, गुंजा की दो साल सीनियर,
बालिका विद्यालय की उन दोनों बालिकों के वार्तालाप से ये पता चला की,
मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है, और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।
और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,
तबतक गुंजा का नाम फिर जोर से लेकर वो सहेली चिल्लाई, और बोली, मैं ऊपर आ रही हूँ क्या कर रही है कमीनी,
" आती हूँ, यहाँ होली चल रही है अगर आयी तो जा नहीं पाएगी सोच ले " गुंजा ने जबरदस्त बहाना बनाया
लेकिन गुंजा के बाद एक और आवाज नीचे से पुकारने की आयी,
" गुड्डी, गुड्डी " और ये आवाज तो बुलंद थी ही मैं सबसे अलग, दूबे भाभी की। और गुड्डी धड़धड़ा के नीचे,
" स्साली छिनार, क्लास में अभी आधा घंटा है, सुबह एक बार चुदवा मन नहीं भरा तो इस समय भी "
गुंजा अपनी सहेली के बारे में बोल रही थी फिर उसने राज खोला की एक यार है उसका तो गुंजा को पंद्रह मिनट चौकीदारी करनी पड़ेगी,
" पन्दरह मिनट में हो जाता है,... " अचरज से मैं बोला। और गुंजा जोर से खिलखिलाई
" जीजू मैं ज्यादा बोल रही हूँ, दस मिनट, पांच मिनट कपडा उतारने और पहनने में, दो मिनट में वो मुठिया के खड़ा करती है, फिर मुश्किल से तीन मिनट। सुबह वाले को तो उसने मुंह में लिया था, मैं बाहर घडी देख रही थी, कुल दो मिनट बीस सेकेण्ड चूसा होगा, और मलाई बाहर, " हंस के मेरी छोटी प्यारी दुलारी साली बोली।
तब तक गुड्डी के वापस सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी और गुंजा ने मेरी टॉवेल को उठा के अभी भी तन्नाए सुपाड़े पे एक कस के चुम्मी ली, और उससे और मुझसे दोनों से बोली
" जीजू, चुदुँगी तो तुझसे ही, ,,,आज नहीं हुआ तो, " और उसकी बात मैंने पूरी की
" जब होली के बाद लौटूंगा न तो सबसे पहले तेरी चुनमुनिया ही फाड़ूंगा " और मन में कसम खायी आयी से जेब में एक छोटी वैसलीन की शीशी कुछ न हो तो बोरोलीन की ट्यूब ही सही,
" एकदम " वो चंद्रमुखी खिल उठी और खड़ी हो के मुझे बाँहों में बाँध के जोर से एक चुम्मी ली।
तबतक गुड्डी आ गयी और मुझसे बोली " जल्दी नीचे जाओ, दूबे भाभी का बुलावा है, संध्या भाभी तेरे रंग छुड़ायेंगी। "
गुंजा सीढ़ी पर नीचे, और मैंने बोला" हे मैं भी आता हूँ "
" नहीं नहीं जीजू, " मना करती वो सुनयना बोली,
" वो कमीनी एक बार देख लेगी न और अगर मेरी क्लास की सहेलियों को खबर हो गयी तो फिर सब की सब, ....कोई नहीं छोड़ने वाली आपको, एक बार मैं निकल जाऊं "
और थोड़ी देर में गुंजा की नीचे से आवाज आयी, " मम्मी, मेरी एक्स्ट्रा क्लास है मैं जा रही हूँ , तिझरिया में लौट आउंगी "
बाथरूम के अंदर से चंदा भाभी की आवाज आयी ठीक है
और मैं भी सीढ़ी पर नीचे,
एक बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, संध्या भाभी झाँक रही थीं, ....सीढ़ी की ओर टकटकी लगाए।
Are wah sabdhya bhabhi. Badi chatur hai. Gunja aa gai kya. Bhabhi gunja ka pata karne aai ho ya apne nae navele jija jo dewar bhi hai. Uska khuta dekhne. Ha vese ek bar dekhne pakadne aur satane ke bad kaha aap se ruka jaega.फागुन के दिन चार भाग २०
संध्या भाभी
संध्या भौजी की आँखे कह रही थीं, वो कितनी प्यासी थीं, टकटकी लगाए बस वो सीढ़ी की ओर देख रही थीं बाथरूम का दरवाजा आधा खुला आधा बंद और और वो उस दरवाजे के पीछे से, सिर्फ टॉवेल लपेटे,
जब तक मैं बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचूं, बगल के बाथरूम से रीत की हंसी और चंदा भाभी की गुहार सुनाई पड़ी, दूबे भाभी के लिए मदद के लिए,
और संध्या भाभी को धकियाती दूबे भाभी बाथरूम से बाहर निकली,
मैं समझ गया एक भौजाई के साथ एक ननद, दूबे भाभी, संध्या भौजी का रंग छुड़ा रही थीं और चंदा भाभी रीत का लेकिन रीत से पार पाना आसान था क्या तो मदद के लिए दूबे भाभी बगल के बाथरूम में
लेकिन मुझे देख के वो ठिठक गयीं और फिर हंसी की एक लहर शुरू होती और उसके रुकने के पहले दूसरी, बड़ी मुश्किल से बोल पायीं,
" गुंजा आ गयी क्या "
मैं एकदम चांदी की मूर्ति बना, सर से पैर तक सफ़ेद वारनिश ( और जहाँ नहीं थीं वो अंग छोटी सी टॉवेल में छुपा था,)
जवाब अंदर से चंदा भाभी ने दिया, " हाँ, लेकिन चली भी गयी, कोई क्लास था अभी "
दूबे भाभी चंदा भाभी वाले बाथरूम में घुसी और संध्या भाभी ने मुझे अपने बाथरूम में खींच कर दरवाजा बंद कर लिया।
और मैं बाथरूम में देख रहा था, कन्या रस की मस्ती के साथ वाकई में रंग छुड़ाने का काम भी बड़ी शिद्द्त से हुआ था। तरह तरह के देह से निकले रंग से बाथरूम का फर्श पटा था, और साथ में रंग छुड़ाने के लिए तरह तरह की सामग्री, सरसो के तेल में सना बेसन, थोड़ा सा सिरका, तरह तरह के साबुन , शैम्पू,म्वासचराइजर, कंडीशनर के साथ कपडे के साबुन तक थे।
लेकिन मैं उस वार्निश के लिए परेशान था पर संध्या भाभी छेड़ने पर जुटी थीं, बोली,
'गुंजा सच में असली छोटी साली है, सही रगड़ा है जल्दी छूटेगा नहीं "
" और मैं घर कैसे जाऊँगा, ऐसे ही, फिर बाजार भी जाना है "
रोकते रोकते भी मेरी परेशानी फुट पड़ी। और संध्या भाभी ने मुझे कस के बांहों में भर लिया और एक जबरदस्त चुम्मी।
टॉवेल उनकी, उनके जबरदस्त उभारों को बड़ी मुश्किल से ढंक पा रही थी, बस निप्स के नीचे से
" अरे मुन्ना मैं हूँ न अभी सब जगह का रंग छुड़ाउंगी और जो सफ़ेद रंग तुमने बचा के रखा है न अपनी बहिनिया के लिए वो भी निकालूंगी। "
भौजी बोली और टॉवेल के ऊपर से ही उसे रगड़ दिया।
' उस ' की हालत वैसे ही खराब थी, गुंजा ने चूस चूस के मुझे पागल कर दिया था और झड़ने का उसे मौका मिल नहीं रह था और उसके बाद इतना खुला ऑफर,
लेकिन मामला उसके आगे नहीं बढ़ा,
भौजी उस बेचारे को ऐसे छोड़ के ही बाथरूम के बाहर चली गयीं और लौटी तो उनके हाथ में एक बड़ी सी बोतल,... मैं आधी खुली आँखों से ही थोड़ा बहुत देख पा रहा था,
भौजी ने जाते जाते मुंझे शावर के नीचे खड़ा कर दिया था और सर में उसके पहले ढेर सारा शैम्पू उलट दिया था। बड़ी सी बोतल के साथ दूसरे हाथ में एक कोई छोटी सी शीशी भी थी जो संध्या भौजी ने अपने चौड़े पिछवाड़े छिपा रखा था, लेकिन उसकी तेज झार से मैं पहचान गया और ये भी की उस का रंग छुड़ाने से कोई मतलब नहीं,
हाँ अगर वो मेरे पास होता तो गुंजा का खून खच्चर हो गया होता।
लेकिन देवर कितना भी चालाक हो भौजाई की तेज आँख से बच नहीं सकता। और जोर से डांट पड़ी,
" हे बेईमानी नहीं, आँख बंद कर "
और हँसते हुए उन्होंने मेरी बदमाशी की सजा भी दे दी। टॉवेल मेरी पकड़ के खींच दी।
और जंगबहादुर सैल्यूट करते खड़े हुए, उस टीनेजर गुंजा ने जो इत्ता कस कस के अपने मीठे मीठे मुंह से कस कस के चूसा था उसका असर इतनी जल्दी नहीं ख़त्म होना था। और जब तक भौजी की ललचाती निगाह उस मोटे लम्बे खिलौने पे अटकी थी, मैंने भी उनकी टॉवल खींच दी, और मिचमिचाती आंखों से देखा की संध्या भौजी के गोरे गोरे कड़े कड़े जुबना पे जो मैंने काही और गाढ़ा नीला रंग कस कस के लगाया था वो अभी भी बचा था, आस पास के रंग भले ही धुल गए हों।
लेकिन तब तक भौजी मेरे पीछे,... और बड़ी वाली बोतल का तेल निकाल के अपने दोनों हाथों से अपने हाथों में लगा के मेरे चेहरे पे,... और क्या ताकत थी संध्या भाभी के हाथों में,
पर अब मेरी आँखे बंद थीं और वैसे भी संध्या भौजी पीछे थीं।
लेकिन देवर को भौजी को देखने के लिए आँख की जरूरत थोड़ी पड़ती है, पूरी देह आँख हो जाती है और वो भी एक्स रे आईज, जो चोली के पीछे जुबना और साये के अंदर दरार देख लेती हैं और भौजी भी देवर को ये देखते ललचाते देख लेती है।
अभी भी संध्या भौजी की उँगलियाँ वो जादुई तेल मेरे चेहरे पे रगड़ रही थीं, उनके गदराये उभार मेरी पीठ पे रगड़ रहे थे, उनके खड़े खड़े निप्स उनकी हालत भी बता रहे थे और बरछी की तरह पीठ में छेद भी कर रहे थे और रंग छुड़ाते छुड़ाते उन्होंने बताया की वो क्यों बुला रही थीं .
मामला उनका भी ननद भौजाई का था, और हर भौजाई की तरह वो भी अपने ननद का नाम बिना गाली दिए नहीं ले सकती थीं तो उन्होंने अपनी परेशानी बतानी शुरू की,
" वो चंदा बाई चूतगंज वाली का फ़ोन आया तो मैं समझ गयी हुआ सब गबड़जंग, ( मैं ये समझ गया की चंदा उनकी ननद का नाम है लेकिन चूतगंज,... फिर मेरी चमकी, मतलब वो चेतगंज में रहती होंगी और ननद हैं तो चेतगंज का चूत गंज बोलना तो,.... )।
और चेहरे पे तेल मलने के बाद संध्या भौजी मेरी छाती और पीठ पे जो वार्निश गुंजा रानी ने पोती थी उसे छुड़ा रही थीं और साथ में अपनी ननद का पात्र परिचय कराया,
उनकी ननद उनसे काफी बड़ी थीं, बारह चौदह साल बल्कि थोड़ी और ज्यादा, एक बेटी भी थी. गुड्डी की सबसे छोटी बहन छुटकी की उम्र की। लेकिन ननद तो ननद,... उनसे यह नहीं देखा गया की उनकी भौजाई मायके में मस्ती कर रही हैं तो उन्होंने बोल दिया की शाम को चेतगंज आ जाना और ये भी की संध्या भाभी के मरद आएंगे तो वो भी अपनी बहन के यहाँ ही रुकेंगे, और वो भी होली के पहले वाली शाम को।
संध्या भाभी ने छाती का रंग छुड़ाते छुड़ाते मेरे मेल टिट्स को जोर से पिंच कर दिया और जब मैं चीखा तो चिढ़ाते हुए बोलीं
" अभी थोड़ी देर पहले जो मेरी चूँची कस कस के दबा रहे थे, अपनी छुटकी बहिनिया की समझे थे क्या "
और कचकचा के मेरे गाल काट लिए तो मैंने भी उन्हें छेड़ा, " अरे भौजी ननद हैं तो ननदोई भी तो होंगे. उनसे मजा ले लीजियेगा, "
संध्या भौजी ने जोर से मुंह बिचकाया और बोलीं
" अरे वो तो, उनकी मेहरारू के आगे उनकर हिम्मत है की भर नजर देख भी लें और वो भी दो दिन के लिए बाहर गए हैं .तभी तो चंदा बाई चूत गंज वाली गर्मायी हैं, रात भर का पेला पेली का, घिस्सा घिस्सी का प्रोग्राम है तभी मोहाई हैं.उससे भी बड़ी बात है की होली के अगले दिन ही शायद हमको लौटना पड़े, इलसिए होली के बाद तो तोहसे मुलाकात हो नहीं पाती , इसलिए मैंने कहा, और वैसे भी भी मैं नौ नगद और तरह उधार वाली हूँ, तो मुझे उधार नहीं रखना था। "
और तब तक भौजी के हाथ फनफनाये खड़े मूसलचंद पे और सामने आके उसे देखते बोलीं, " गनीमत थी गुंजा ने यहाँ पेण्ट नहीं लगाया "
मैं उन्हें क्या बताता की उस शोख शरारती साली ने वहां पहले खाने वाला रंग लगाया और फिर खुद खा गयी,
हाँ उसकी उँगलियों के निशान अभी भी बचे थे।
संध्या भाभी ने एक सूखे तौलिये से तेल जो मेरे चेहरे पे लगाया था उसे रगड़ रगड़ के साफ़ किया और फिर दुबारा वही तेल और उसके बाद बेसन तेल लगा के रगड़ घिस और फिर मुझे शावर के नीचे,
और अब जब मैंने बाथरूम में लगे आदमकद देखा तो वार्निश पेण्ट पूरी तह साफ़ था लेकिन मेरी साली, दर्जा नौ वाली आखिर गुड्डी की ही छोटी बहन थी। असली खेल था वार्निश के नीचे जो उसने रगड़ रगड़ के चेहरे पे लाल नीला रंग लगाया था वो करीब करीब वैसे ही और संध्या भाभी ने भी हाथ खड़ा कर लिया
" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "
और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।
2,57,920
Wah sandhya bhabhi. Sandhya rani sali ka swad mitakar khud ka chadhana chahti ho kya. Apne hatho se nahla rahi ho. Kar diya ekdam varnish safशावर में मस्ती
" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "
और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।
और अब बाकी रंगों का नंबर था
तो भौजी ने खींच के मुझे अपने साथ शावर में खड़ा कर दिया। पहले साबुन, फिर तेल मिला बेसन और फिर साबुन,
शावर में हम दोनों चिपके, देह पर घूमती, नाचती पागल करती भौजी की रसीली उँगलियाँ, साबुन लगाते कभी चिकोटी काट लेतीं तो कभी गुदगुदा देतीं और कभी कस के अपनी ओर खींच लेती। जिसने जिसने भौजाई की मीठी चिकोटियां और गुदगुदी का मजा लिया होगा उसे मालूम होगा की कामदेव के बाण भी उसके आगे फेल, और जब ये सब हो तो बेचारे मूसल चंद बौरायँगे ही, और वो अपनी प्यारी सहेली को सूंघ कर उसके दरवाजे पर जोर जोर से ठोकर मारने लगे,
और अब शावर में मजा लेना मैं भी सीख रहा था,
ऊपर से भौजाई ने मेरे हाथ में साबुन पकड़ा दिया, उनकी देह में लगाने को। बस।
साबुन के झाग के साथ मेरी उंगलिया, संध्या भाभी की कभी पतली कटीली कमरिया पे तो कभी केले के पत्ते को भी शर्माने वाली चिकनी चिकनी गोरी गोरी पीठ पर, पर असली चीज जो मुझे पागल किये थी जैसे मैंने उन्हें देखा था वो थे उनके मोटे मोटे नितम्ब और एक हाथ साबुन के साथ सीधे वहीँ, दोनों नितम्बों को पकड़ के मैं उन्हें अपनी ओर खींचने लगा,
तो वो तो और खेली खायी थीं, साल भर से रोज बिना नागा जिस खायीं में कुदाल चल रही थी और जो दस दिन से उपवास पे थी, उसकी भूख तो उन्हें भी बेबस किये थी। बस उन्होंने भी अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुझे अपनी ओर खींच लिया।
और शावर में ही खुल के ग्राइंडिंग होने लगी, रगड़ घिस, रगड़ घिस,
लेकिन संध्या भौजी असली उस्ताद थीं, उन्होंने खुद अपनी दोनों जाँघे फैला दी और मेरा खड़ा खिलाडी, सूंघते ढूंढते उन जाँघों के बीच, जैसे कोई मोटा भूखा चूहा, रोटी के लालच में सूंघते सूंघते अंदर घुसे और चूहेदानी का दरवाजा, खट्ट बंद हो जाए, बस एकदम उसी तरह मूषक राज भौजी की दोनों जाँघों के बीच पकडे गए, दबोचे गए और संध्या भाभी की कदली की तरह की जाँघों ने उसे कस कस के रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।
इतना मजा तो कभी सपने में भी मुट्ठ मारने में नहीं आ सकता था। और भौजी का दुहरा हमला था, साथ में उनकी मोटी मोटी चूँचिया मेरे सीने पे रगड़ रही थीं और उनके हाथ मेरे नितम्बो को कभी दबोचते कभी उनकी लम्बी ऊँगली नितम्बो के बीच की दरार को कुरेद देती।
उंचासो पवन काम के चल रहे थे, मैंने अपने को भौजी के हवाले कर दिया था।
अब मैं सिर्फ देह था।
भौजी की जांघो के बीच रगड़ रगड़ कर मेरे मोटे मूसल की हालत खराब हो गयी थी,
और अब कमान पूरी तरह संध्या भौजी ने अपने हाथ में ले ली थी जैसे कल रात चंदा भाभी ने ले लिया था।
लेकिन चार पांच मिनट की रगड़ घिस के बाद भौजी मेरे हाथों की बेचैनी समझ गयी
और अब उनकी पीठ मेरे सीने की ओर थी और गप्पाक से मेरे दोनों हाथों ने भौजाई के जोबन को गपुच लिया, होली में सब देवर भौजाई का जोबन देख देख के ही खुस हो जाते हैं, रंग में भीगी देह से चिपकी साड़ी और गीली चोली के बीच से झांकता, ललचाता जोबन ही होली को सफल बना देता है और कोई लकी देवर और उदार भौजी हुईं तो बस चोली के ऊपर हिस्सों से रंग लगाने के बहाने, छुआ छुअल,
लेकिन यहाँ तो दोनों जोबना मेरी जमींदारी हो गए थे। कस कस के मैं मसल रहा था, मूसल राज अब गोरे गोरे मांसल नितम्बो के बीच कुण्डी खड़का रहे थे, एक बार फिर जाँघों का दरवाजा खुला, मूसल राज भौजी की दोनों मखमली जांघो के बीच गिरफ्तार, कैद बमश्क्क्त,जैसे जेल में कैदी चक्की चलाते हैं यहाँ वो खुद जाँघों की चक्की के बीच पीसे जा रहे थे
लेकिन मैंने भी रात में चंदा भाभी की पाठशाला में न सिर्फ पढ़ाई की थी बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुआ था।
एक हाथ जोबन के गर्व को मसल के चूर कर रहा था और दूसरा दक्षिण दिशा में योनि के किले पर चढ़ाई करने, ....थोड़ी देर हथेली से मैंने सहलाया, फिर एक ऊँगली अंदर बाहर और अंगूठा क्लिट पे।
भौजी जबरदस्त गरमाई थीं, जिस तरह से उनकी जादुई अंगूठी, क्लिट कड़ी कड़ी हो गयी थी, एकदम साफ़ लग रहा था और जॉबन और भौजी की गुलाबो दोनों के रगड़ने मसलने का नतीजा जल्द सामने आया,
वो सिसकने लगीं, उनकी बिल शहद फेंजने लगी, एकदम गाढ़ा गाढ़ा, मीठा मीठा, ऊँगली में लगा के मैंने भौजी को चटा दिया और भौजी ने अपने होंठों से मुझे।
और भौजी समझ गयी असली खेला का टाइम आ गया,
वो शावर से बाहर निकली, मैंने शावर धीमे किया और संध्या भौजी ने निचे छुपी एक पतली शीशी निकाल ली। जब वो वार्निश निवारक तेल लायी थीं तभी और उसकी झार से ही मैंने पहचान लिया था, कोल्हु का शुद्ध देसी सरसों का तेल।
संध्या भौजी ने अपनी खूब गहरी गदोरी में कम से कम १००- १५० ग्राम कडुवा तेल , और उनकी गहरी हथेली देख के मुझे कल रात की चंदा भाभी की एक बात याद आ गयी।
चुदाई की पढ़ाई के साथ औरतों को समझने और पटाने के भी उन्होंने १०१ नुख्से बताये थे एकदम कच्ची कलियों से चार चार बच्चों की माँ तक के लिए,
और उसी में उन्होंने बताया था की जिस औरत की हथेली जितनी गहरी होती है उसकी बुर भी उतनी ही गहरी होती है और उतनी ही जबरदस्त चुदवासी, छोटे मोटे लंड से उसका मन नहीं बुझता और उस कहीं तेरे ऐसा मुस्टंडा वाला डंडा मिल जाए तो खुद पकड़ के घोंट लेगी और उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।
एक बार उसका मन भर गया तो कुछ भी करेगी और उसके आशीर्वाद का भी बड़ा असर होगा, जो किसी से न पटे, वो लौंडिया खुद ही टांग फैला देगी , अगर गहरी हथेली वाली को हचक के पेल दो तो। और हचक के पेलवाने के साथ उस औरत को गारी देने में, रगड़ने और रगड़वाने में भी बहुत मजा आता है।
संध्या भाभी की हथेली एकदम वैसे ही थी, ...खूब गहरी,
लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने चंदा भाभी से पूछ ही लिया,
" भाभी और लड़को के भी साइज पता करने का कोई तरीका हैं क्या "
और वो बहुत जोर से हंसी, हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। किसी तरह से बोलीं,
" अबे स्साले, तुझे तो देख के ही मैं समझ गयी थी। और फिर उनकी हंसी चालू और अब जब रुकी तो चंदा भाभी बोलीं की मुझे लगा की,....मैंने गुड्डी की मम्मी से बोला तो वो हँसते हुए बोलीं की तुम सोचती हो मुझे अंदाज नहीं था और उन्होंने तो साइज भी, मैं जानती थी बड़ा होगा लेकिन गुड्डी की मम्मी हम सबसे आगे हैं इन सब मामलों में। वो बोलीं की जब तुम भैया के बियाह में बिन्नो की शादी में आये थे तो तुम्हे छेड़ रही थीं, तभी अंदाज लगा लिया था उसी समय, ऊँगली देख के, "
लेकिन ऊँगली से, कैसे, उस समय तो मैं वैसे भी, " मेरे अचरज का ठिकाना नहीं था, जितनी बातें चंदा भाभी से सीख रहा था।
उनकी हंसी फिर चालू हो गयी, फिर किसी तरह हंसी रोक के बोलीं,
" ये सब औरतों की बातें, सब कुछ एक दिन में ही सीख लेगो क्या, लेकिन चलो बता देती हूँ , तर्जनी की लम्बाई और जिस ऊँगली में अंगूठी पहनते हैं बस उसी से, तर्जनी अंगूठी वाली ऊँगली से जितनी छोटी हो मरद का मूसल उतना ही बड़ा होता है और फिर औरत की निगाह, गुड्डी की मम्मी ने तो साइज का भी अंदाज ही लगा लिया था लेकिन पहली बार वो गलत थी, कल बताउंगी मैं उन्हें। "
" मतलब " मेरी अभी भी कुछ समझ में नहीं आया,
" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है... लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।
लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया
Wah sandhya bhabhi. Akhir zel gai tu to. Sandhya bhabhi bahen bol kar anand babu ko sikha rahi hai ki apni bahen ki kondam ho to tel ki jarurat nahi. Par janab ko to gunja yaad aa rahi hai. Vese chikhe to nikal di sandhya bhabhi ki. Ab ye ba bhule apne dewar ko. Amezing erotic.घुस गया, धंस गया - संध्या भाभी
" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।
लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया,
कम से कम १०० ग्राम कडुवा तेल और अपनी दोनों हथेलियों में लगा के सीधे मेरे खूंटे के बेस से लेकर एकदम ऊपर तक चार पांच बार, तेल न सिर्फ लगाया बल्कि एकदम सुखा दिया।
मुझे लगा की सब तेल वो मोटे सुपाड़े में लगाएंगी , आखिर घुसेगा तो वही पर उन्होंने सारा हथेली का तेल बाकी चर्मदण्ड पे, और फिर उन्होंने सुपाड़े को पकड़ के सीधे बोतल से बूँद बूँद कर के, जितना उनकी दोनों हथेली पे आया था उतना सिर्फ वहीँ टपका दिया और फिर मारे बदमाशी के मेरी आँखों में शरारत से देखते हुए, चिढ़ाते छेड़ते मेरे मांसल सुपाड़े को कस के बाएं हाथ से दबा दिया और उस बेचारे की एकलौती आँख खुल गयी बस वहीँ बूँद बूँद देसी कडुआ तेल, अंदर तक टपका टपका के,
जैसे ही तेल अंदर गया, पहले सुरसुराहट फिर जोर से छरछराने लगा और भौजी खिलखिलाने लगी,
फिर सुपाड़े पे लगा तेल फैला के और सीधे बोतल से और तेल, एकदम चुपड़ के, तेल में भीगा नहीं डूबा रही थी और भौजाइयों के साथ कल से मैंने सीखा मजा तो मिलता है, ज्ञान भी और वो खास तौर से गुड्डी के बारे में, गुड्डी उनकी भी तो छोटी बहन की ही तरह से,
" समझ लो, आज रात को तो तुम मेरी छोटी बहन की लोगे जरूर, लेकिन इसी तरह से पहले कडुवा तेल,... और वो तो एकदम कोरी है, तेरा तो इतना लम्बा मोटा है, जिसका छोटी ऊँगली टाइप केंचुआ स्टाइल का होता है, कुँवारी कोरी में उसका भी बिना तेल या चिकनाई लगाया इन्ही घुसता। वैसे मुझे तो सबसे अच्छा कडुवा तेल ही लगता है, कट पिटजाए अंदर छिल जाए तो उसका भी इलाज,
लेकिन बहुत लोग नहीं इस्तेमाल करते की दाग पड़ जाएगा, तो वेस्लीन,। लेकिन अगर इस मोटे मूसल के साथ वैसलीन भी लगाना हैं न तो कम से कम आधी शीशी खर्च करना और फिर अपनी ऊँगली में लगा के वैसलीन एक ऊँगली दो पोर तक अंदर उसके बाद ही,
वैसे एक बात और अगर कभी कंडोम लगाने की जरूरत पड़े तो तेल या वैसलीन नहीं उसकी जेली अलग आती है, जेल होते है लेकिन कंडोम तो तुम कभी इस्तेमाल करना मत। अरे इतना मस्त मुसल, जब तक चमड़े की चमड़े से रगड़ाई न हो, क्या मजा और जिस लड़की को बचाना होगा वो खुद,... इतनी तो गोली आयी है, बल्कि इस्तेमाल के बाद वाली भी, चुदने के २४ घंटे के अंदर खा लो तो पेट फूलने का कोई खतरा नहीं, और अभी तो किसी दर्जा आठ वाली का भी स्कूल का बस्ता खोल के देखोगे तो सबसे ऊपर गोली रखी मिलेगी। "
भौजी तेल पानी करके मुझे तैयार कर रही थीं, लेकिन मुझे गूंजा याद आ रही थी,
मन उसका भी कर रहा था, मेरा भी बहुत, चूस के तो मैंने उसे मस्त झाड़ दिया था लेकिन पेलने की बात और होती है। पर बिना तेल या चिकनाई के मैं समझ गया था एकदम पॉसिबिल नहीं था और वहां कोई जुगाड़ था नहीं।
भौजी ने अपनी हथेली का तेल फिर अपनी फांको पे लगाया और एक हाथ से दोनों फांके फैला के सीधे शीशी उसमें घुसेड़ के उलट ली। तेल अंदर।
मैं सोच रहा था करेंगे कैसे,
लेकिन भौजी के रहते देवर को क्या परेशानी,
वो खुद एक पाईप पकड़ के निहुर गयीं और कल चंदा भाभी को मैंने कुतिया बना के एक राउंड अच्छी तरह से चोदा था तो कोई पहली बार तो था नहीं।
मैंने हलके से संध्या भौजी के मोटे मस्त चूतड़ को हलके हलके सहलाया और वो सिहर गयीं एकदम गरमा गयीं थी वो।
चारो उँगलियों से मैंने उनके निहुरे, दोनों पैरों के बीच, फांको को सहलाया, और मेरी उंगलियां भी तेल से चुपड़ गयीं, बस थोड़ी देर तेल से लगी उँगलियाँ उनकी तेल में डूबी बुरिया पे मैं रगड़ता रहा।
संध्या भौजी सिसिया रही थीं, कातिक की कुतिया की तरह गरमा रही थीं। अपनी फैली जाँघे उन्होंने और फैला ली और अब दोनों पावरोटी की तरह फूली फांके साफ़ साफ़ दिख रही थीं।
" हे करो न "
मुंह मेरी ओर कर के वो बोलीं और जैसे उन्हें लगा मैं नौसिखिया शायद छेद न ढूंढ पा रहा हूँ तो हाथ से खुद पकड़ के अपने छेद पे, सटा दिया,
नौसिखिया तो मैं था, जिंदगी में दूसरी बार, लेकिन थ्योरी में तो बहुत पढ़ा लिखा और १०० में १०० मिलते, और कल चंदा भाभी ने रात भर में प्रैक्टिकल का भी कोर्स पूरा करा दिया लकिन ये भी सिखा दिया की थोड़ा तड़पाना, और मैंने मोटे तगड़े खूंटे को भौजी की फांको पे पहले थोड़ी देर रगड़ा, वो एकदम एक तार की चाशनी से भीगा, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, भौजी ने खुद ही अपनी फांको को फैला के मोटा सुपाड़ा फंसा लिया, और तेल से तो एकदम चिकना हो गया था, तो बस ,
एक धक्का पूरी ताकत से, और
गप्पाक
गप्प से भौजी की भूखी बुलबुल ने सुपाड़ा घोंट लिया, पूरा नहीं लेकिन आधा से ज्यादा ही।
जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना नहीं पड़ता, लड़कियों को चुदवाना नहीं सिखाना पड़ता वैसे ही लड़को को भी चोदना भी, तो मैंने भी संध्या भौजी की पतली कटीली कमरिया कस के पकड़ के ठेलना, पेलना शुरू कर दिया। एकदम सट के रगड़ता दरेरता बड़ी मुश्किल से घुस रहा था।
मान गया मैं भौजी को, काम से कम एक पाव ( २५० ग्राम ) कडुवा तेल उन्होंने लगाया था तब जा के, ....इतना अच्छा लग रहा था की,
मारे जोश के कस के मैंने संध्या भौजी की कमर पकड़ी और हचक के जितनी ताकत देह में थी सब लगा के पेल दिया और अबकी पूरा सुपाड़ा अंदर था, और भौजी मारे मस्ती के सिहर उठीं।
" उयी ईई ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ , हाँ हाँ ऐसे ही, ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईईईई " भौजी सिसक रही थीं, कस के पाइप को पकडे घोंट रही थीं।
कुछ देर तक मैं भौजी की कमर पकड़ के ऐसे ही पेलता रहा, धकेलता रहा और थोड़ी देर में आधा चर्मदण्ड अंदर, और फिर मैंने पल भर के लिए साँस ली, और जिस तरह से भौजी ने मुड़ के मुझे देखा मैं निहाल हो गया।
मुझे देखते हुए मस्ती से वो अपने भरे भरे लाल गुलाबी रसीले होंठ दांतों से काट रही थीं, आँखे आधी मुंदी हुयी और सिसक रही थीं। और मेरी ओर देख के हलके से मुस्करा दीं, ऐसी मुस्कराहट जिसमें दर्द भी हो, ख़ुशी भी हो और मस्ती भी हो।
जैसे बरसों के सूखे के बाद खेत में सावन जम कर बरस रहा हो और खेत निहाल हो गया, अंचरा फैला के एक एक बूँद बटोर रहा हो ,
भौजी के चूतड़ के साथ उनकी चूँचिया भी जबरदंग थीं आज ३० नंबर ( गुंजा ) से लेकर ३६ +++ ( दूबे भाभी ) तक का रस मिला लेकिन जो बात उस ३४ नंबर में थी, और अब मेरा एक हाथ संध्या भाभी की कमर पे था और दूसरा उनकी झुके हुए जोबन पे, और कस के मैंने निचोड़ दिया।
" उयी, उईईई नहीं ओह्ह्ह " कस के वो चीख उठीं लेकिन मरदों के लिए तो यही चीखें संगीत का काम करती हैं और ऐसी मस्त चूँची हाथ में आने के बाद कौन छोड़ता है। दबाया तो मैंने उनकी चूँची होली खेलते समय भी खूब था लेकिन अभी अलग मजा आ रहा, लंड आधा अंदर टाइट कसी कसी बुर में घुसा और साथ में जोबन का मर्दन, और मैंने दुबारा दबाते हुए और अंदर पेलना शुरू किया।
संध्या भौजी हर धक्के के साथ चीख रही थीं, सिसक रही थीं लेकिन साथ में चूतड़ भी कस के हिला रही थीं जैसे कोई सर हिला हिला के कह रहा हो और, और ,
और मैं कौन रुकने वाला था,... सुबह से कितनी बार कौर मुंह में जाते जाते बचा था और जब जा रहा था तो मैं पूरे स्वाद से मजे ले ले के खाने वाला था और मैंने धक्के मारने रोक दिए।
छह इंच से ज्यादा घुस गया था लेकिन अभी भी करीब एक तिहाई बाहर था, और ये नहीं की मैंने मजे लेना बंद कर दिया, अब मेरे दोनों हाथ भौजाई की रसीली चूँचियों को दबा रहे थे, निचोड़ रहे थे, कभी मैं निप्स को पिंच कर देता तो कभी हलके से नाख़ून गड़ा देता,
और संध्या भौजी कभी चीखतीं, कभी सिसकतीं, कभी प्यासी निगाहों से मुड़ मुड़ के मेरी ओर देखती लेकिन मैं जान बुझ के उन्हें तड़पा रहा था और कभी कभी उनकी पीठ सहला रहा था।
बस एक बार हलके से मैंने संध्या भाभी की कमर सहलाते हुए हलके से उन्हें पकड़ के अपनी ओर जरा सा खींचा और वो इशारा समझ गयीं।
एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।
लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और
संध्या भाभी काँप गयी।
उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके