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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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Wah sandhya bhabhi. Akhir zel gai tu to. Sandhya bhabhi bahen bol kar anand babu ko sikha rahi hai ki apni bahen ki kondam ho to tel ki jarurat nahi. Par janab ko to gunja yaad aa rahi hai. Vese chikhe to nikal di sandhya bhabhi ki. Ab ye ba bhule apne dewar ko. Amezing erotic.घुस गया, धंस गया - संध्या भाभी
" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।
लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया,
कम से कम १०० ग्राम कडुवा तेल और अपनी दोनों हथेलियों में लगा के सीधे मेरे खूंटे के बेस से लेकर एकदम ऊपर तक चार पांच बार, तेल न सिर्फ लगाया बल्कि एकदम सुखा दिया।
मुझे लगा की सब तेल वो मोटे सुपाड़े में लगाएंगी , आखिर घुसेगा तो वही पर उन्होंने सारा हथेली का तेल बाकी चर्मदण्ड पे, और फिर उन्होंने सुपाड़े को पकड़ के सीधे बोतल से बूँद बूँद कर के, जितना उनकी दोनों हथेली पे आया था उतना सिर्फ वहीँ टपका दिया और फिर मारे बदमाशी के मेरी आँखों में शरारत से देखते हुए, चिढ़ाते छेड़ते मेरे मांसल सुपाड़े को कस के बाएं हाथ से दबा दिया और उस बेचारे की एकलौती आँख खुल गयी बस वहीँ बूँद बूँद देसी कडुआ तेल, अंदर तक टपका टपका के,
जैसे ही तेल अंदर गया, पहले सुरसुराहट फिर जोर से छरछराने लगा और भौजी खिलखिलाने लगी,
फिर सुपाड़े पे लगा तेल फैला के और सीधे बोतल से और तेल, एकदम चुपड़ के, तेल में भीगा नहीं डूबा रही थी और भौजाइयों के साथ कल से मैंने सीखा मजा तो मिलता है, ज्ञान भी और वो खास तौर से गुड्डी के बारे में, गुड्डी उनकी भी तो छोटी बहन की ही तरह से,
" समझ लो, आज रात को तो तुम मेरी छोटी बहन की लोगे जरूर, लेकिन इसी तरह से पहले कडुवा तेल,... और वो तो एकदम कोरी है, तेरा तो इतना लम्बा मोटा है, जिसका छोटी ऊँगली टाइप केंचुआ स्टाइल का होता है, कुँवारी कोरी में उसका भी बिना तेल या चिकनाई लगाया इन्ही घुसता। वैसे मुझे तो सबसे अच्छा कडुवा तेल ही लगता है, कट पिटजाए अंदर छिल जाए तो उसका भी इलाज,
लेकिन बहुत लोग नहीं इस्तेमाल करते की दाग पड़ जाएगा, तो वेस्लीन,। लेकिन अगर इस मोटे मूसल के साथ वैसलीन भी लगाना हैं न तो कम से कम आधी शीशी खर्च करना और फिर अपनी ऊँगली में लगा के वैसलीन एक ऊँगली दो पोर तक अंदर उसके बाद ही,
वैसे एक बात और अगर कभी कंडोम लगाने की जरूरत पड़े तो तेल या वैसलीन नहीं उसकी जेली अलग आती है, जेल होते है लेकिन कंडोम तो तुम कभी इस्तेमाल करना मत। अरे इतना मस्त मुसल, जब तक चमड़े की चमड़े से रगड़ाई न हो, क्या मजा और जिस लड़की को बचाना होगा वो खुद,... इतनी तो गोली आयी है, बल्कि इस्तेमाल के बाद वाली भी, चुदने के २४ घंटे के अंदर खा लो तो पेट फूलने का कोई खतरा नहीं, और अभी तो किसी दर्जा आठ वाली का भी स्कूल का बस्ता खोल के देखोगे तो सबसे ऊपर गोली रखी मिलेगी। "
भौजी तेल पानी करके मुझे तैयार कर रही थीं, लेकिन मुझे गूंजा याद आ रही थी,
मन उसका भी कर रहा था, मेरा भी बहुत, चूस के तो मैंने उसे मस्त झाड़ दिया था लेकिन पेलने की बात और होती है। पर बिना तेल या चिकनाई के मैं समझ गया था एकदम पॉसिबिल नहीं था और वहां कोई जुगाड़ था नहीं।
भौजी ने अपनी हथेली का तेल फिर अपनी फांको पे लगाया और एक हाथ से दोनों फांके फैला के सीधे शीशी उसमें घुसेड़ के उलट ली। तेल अंदर।
मैं सोच रहा था करेंगे कैसे,
लेकिन भौजी के रहते देवर को क्या परेशानी,
वो खुद एक पाईप पकड़ के निहुर गयीं और कल चंदा भाभी को मैंने कुतिया बना के एक राउंड अच्छी तरह से चोदा था तो कोई पहली बार तो था नहीं।
मैंने हलके से संध्या भौजी के मोटे मस्त चूतड़ को हलके हलके सहलाया और वो सिहर गयीं एकदम गरमा गयीं थी वो।
चारो उँगलियों से मैंने उनके निहुरे, दोनों पैरों के बीच, फांको को सहलाया, और मेरी उंगलियां भी तेल से चुपड़ गयीं, बस थोड़ी देर तेल से लगी उँगलियाँ उनकी तेल में डूबी बुरिया पे मैं रगड़ता रहा।
संध्या भौजी सिसिया रही थीं, कातिक की कुतिया की तरह गरमा रही थीं। अपनी फैली जाँघे उन्होंने और फैला ली और अब दोनों पावरोटी की तरह फूली फांके साफ़ साफ़ दिख रही थीं।
" हे करो न "
मुंह मेरी ओर कर के वो बोलीं और जैसे उन्हें लगा मैं नौसिखिया शायद छेद न ढूंढ पा रहा हूँ तो हाथ से खुद पकड़ के अपने छेद पे, सटा दिया,
नौसिखिया तो मैं था, जिंदगी में दूसरी बार, लेकिन थ्योरी में तो बहुत पढ़ा लिखा और १०० में १०० मिलते, और कल चंदा भाभी ने रात भर में प्रैक्टिकल का भी कोर्स पूरा करा दिया लकिन ये भी सिखा दिया की थोड़ा तड़पाना, और मैंने मोटे तगड़े खूंटे को भौजी की फांको पे पहले थोड़ी देर रगड़ा, वो एकदम एक तार की चाशनी से भीगा, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, भौजी ने खुद ही अपनी फांको को फैला के मोटा सुपाड़ा फंसा लिया, और तेल से तो एकदम चिकना हो गया था, तो बस ,
एक धक्का पूरी ताकत से, और
गप्पाक
गप्प से भौजी की भूखी बुलबुल ने सुपाड़ा घोंट लिया, पूरा नहीं लेकिन आधा से ज्यादा ही।
जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना नहीं पड़ता, लड़कियों को चुदवाना नहीं सिखाना पड़ता वैसे ही लड़को को भी चोदना भी, तो मैंने भी संध्या भौजी की पतली कटीली कमरिया कस के पकड़ के ठेलना, पेलना शुरू कर दिया। एकदम सट के रगड़ता दरेरता बड़ी मुश्किल से घुस रहा था।
मान गया मैं भौजी को, काम से कम एक पाव ( २५० ग्राम ) कडुवा तेल उन्होंने लगाया था तब जा के, ....इतना अच्छा लग रहा था की,
मारे जोश के कस के मैंने संध्या भौजी की कमर पकड़ी और हचक के जितनी ताकत देह में थी सब लगा के पेल दिया और अबकी पूरा सुपाड़ा अंदर था, और भौजी मारे मस्ती के सिहर उठीं।
" उयी ईई ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ , हाँ हाँ ऐसे ही, ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईईईई " भौजी सिसक रही थीं, कस के पाइप को पकडे घोंट रही थीं।
कुछ देर तक मैं भौजी की कमर पकड़ के ऐसे ही पेलता रहा, धकेलता रहा और थोड़ी देर में आधा चर्मदण्ड अंदर, और फिर मैंने पल भर के लिए साँस ली, और जिस तरह से भौजी ने मुड़ के मुझे देखा मैं निहाल हो गया।
मुझे देखते हुए मस्ती से वो अपने भरे भरे लाल गुलाबी रसीले होंठ दांतों से काट रही थीं, आँखे आधी मुंदी हुयी और सिसक रही थीं। और मेरी ओर देख के हलके से मुस्करा दीं, ऐसी मुस्कराहट जिसमें दर्द भी हो, ख़ुशी भी हो और मस्ती भी हो।
जैसे बरसों के सूखे के बाद खेत में सावन जम कर बरस रहा हो और खेत निहाल हो गया, अंचरा फैला के एक एक बूँद बटोर रहा हो ,
भौजी के चूतड़ के साथ उनकी चूँचिया भी जबरदंग थीं आज ३० नंबर ( गुंजा ) से लेकर ३६ +++ ( दूबे भाभी ) तक का रस मिला लेकिन जो बात उस ३४ नंबर में थी, और अब मेरा एक हाथ संध्या भाभी की कमर पे था और दूसरा उनकी झुके हुए जोबन पे, और कस के मैंने निचोड़ दिया।
" उयी, उईईई नहीं ओह्ह्ह " कस के वो चीख उठीं लेकिन मरदों के लिए तो यही चीखें संगीत का काम करती हैं और ऐसी मस्त चूँची हाथ में आने के बाद कौन छोड़ता है। दबाया तो मैंने उनकी चूँची होली खेलते समय भी खूब था लेकिन अभी अलग मजा आ रहा, लंड आधा अंदर टाइट कसी कसी बुर में घुसा और साथ में जोबन का मर्दन, और मैंने दुबारा दबाते हुए और अंदर पेलना शुरू किया।
संध्या भौजी हर धक्के के साथ चीख रही थीं, सिसक रही थीं लेकिन साथ में चूतड़ भी कस के हिला रही थीं जैसे कोई सर हिला हिला के कह रहा हो और, और ,
और मैं कौन रुकने वाला था,... सुबह से कितनी बार कौर मुंह में जाते जाते बचा था और जब जा रहा था तो मैं पूरे स्वाद से मजे ले ले के खाने वाला था और मैंने धक्के मारने रोक दिए।
छह इंच से ज्यादा घुस गया था लेकिन अभी भी करीब एक तिहाई बाहर था, और ये नहीं की मैंने मजे लेना बंद कर दिया, अब मेरे दोनों हाथ भौजाई की रसीली चूँचियों को दबा रहे थे, निचोड़ रहे थे, कभी मैं निप्स को पिंच कर देता तो कभी हलके से नाख़ून गड़ा देता,
और संध्या भौजी कभी चीखतीं, कभी सिसकतीं, कभी प्यासी निगाहों से मुड़ मुड़ के मेरी ओर देखती लेकिन मैं जान बुझ के उन्हें तड़पा रहा था और कभी कभी उनकी पीठ सहला रहा था।
बस एक बार हलके से मैंने संध्या भाभी की कमर सहलाते हुए हलके से उन्हें पकड़ के अपनी ओर जरा सा खींचा और वो इशारा समझ गयीं।
एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।
लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और
संध्या भाभी काँप गयी।
उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके
Maza aa gaya. Khub gachak ke pela hai. Chanda bhabhi ke bad pure update me ab jakar dushri bar pura swad mila anand babu ko. Par abhi to dube bhabhi, reet aur gunja teeno baki hai. Par ye update to jabardast joshila hai. Amezing." करो न "
एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।
लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और,....
संध्या भाभी काँप गयी। उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके से
" करो न "
" क्या करूँ " मैंने भी उसी तरह से उन्हें चिढ़ाते हुए बोला,
वो अभी भी सिसक रही थीं, देह उनकी काँप रही थी बहुत हलके से बोलीं
" जो अभी तक कर रहे थे " लेकिन समझ गयीं मेरी बदमाशी और अपनी असलियत पे आ गयीं, असली बनारस वाली भौजाई,
" स्साले, मादरचोद , जो अपनी महतारी के साथ करते हो, उनके भोंसडे में, पेल कस कस के, ....वरना तेरी महतारी पे बनारस के सांड चढ़ाउंगी "
गुड्डी की मम्मी के बाद पहली बार किसी ने महतारी को लेकर कुछ कहा था वरना सब गालियां आग तक मेरी ममेरी बहन गुड्डी को लेकर मुझसे लेकर गदहे और रॉकी, दूबे भाभी के बुलडाग को जोड़ के सुनाई जाती थीं और उस गाली का असर हुआ,
कस कस के मैं संध्या भाभी के दोनों जोबन को पकड़ के निचोड़ने लगा और एक बार फिर से आधा लंड बाहर निकल के जो धक्का मारा, संध्या भाभी हिल गयीं, लेकिन उन्हें मजा भी जबरदस्त आया। अपनी जाँघे भी उन्होंने थोड़ी सिकोड़ ली और उसी तरह गरियाती बोलीं
" देखो बुरा मत मानना, तोहार गुड्डी के क्लास वाली बहिनिया तो अभी तक कुँवार है उसकी झिल्ली भी नहीं फटी है और वो मेरी गुड्डी अपने सामने तुझी से फड़वा के बनारस ले आएगी, तो आखिर इतना हचक हचक के चोदना कैसे सीखे हो? अपनी महतारी क भोंसड़ा मार मार के न,... वैसे मैं उनसे मिल भी चुकी हूँ, जब वो साल डेढ़ साल पहले सावन में आयी थीं, मेरी शादी के पहले, क्या मस्त चूतड़ हैं बड़े बड़े, "
बस मैं और जोश में आ गया, मेरी आँखों के सामने,....और फिर तो
क्या हचक हचक के पेलना शुरू किया, जिस तरह से उन्होंने बोला था एकदम से जोश, दोनों हाथ मेरे कस कस के भौजी के रसीले जोबन का रस निकाल रहे थे और धक्के पूरी स्पीड से चल रहे थे लेकिन संध्या भौजी और जोर से, कभी चीख रही थीं कभी गरिया रही थीं, एकदम गरमा गयीं थीं
" स्साले, मादरचोद, तेरी माँ का भोंसड़ा नहीं है जो इस तरह से पेल रहा है, तेरी माँ के भोंसडे में तो बनारस के सांड भी चढ़ जाए तो पता न चले उस भोंसड़ी वाली को, अरे जरा आराम से, ओह्ह्ह उफ्फ्फ लग रहा है यार, अरे एक मिनट रुके, ओह्ह्ह्ह रुक, रुक स्साले, तेरी माँ की, "
पता नहीं भौजी की बातों का असर था या उनकी चीखों का मैं एकदम से, कभी कस के अपने नाख़ून भौजी की चूँची में गड़ा देता, कभी झुक के निहुरि हुयी भौजी की कंधे पे, पीठ पे चूमते हुए कस के काट लेता, कभी उनका बाल पकड़ के खींच देता, मैं एकदम से आखिरी गियर में पहुँच गया था
भौजी ने पीछे मुड़ के शिकायत की निगाह से मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में दर्द और शिकायत के साथ एक गजब की मस्ती भी
और अब मुझसे नहीं रहा गया, बस मेरे होंठ और संध्या भौजी के रसीले होंठ, लेकिन अबकी मामला चुम्मा चाटी पे नहीं छूटा .
मैं कचकचा के भौजी के होंठ अपने होंठो के बीच दबा के चूस रहा था, कस कस के काट रहा था, लंड एकदम जड़ तक घुसा था और मैं उसके बेस से भाभी की क्लिट रगड़ रहा था। भौजी ने कुछ देर के बाद जैसे मेरे होंठों ने उन के होंठों को छोड़ा, उलटे मेरे होंठों को पकड़ लिया अपने होंठों में,.... और जो मैंने काटा था वो तो कुछ नहीं इतनी जोर से वो काट रही थीं, जैसे मेरे होंठ न हो उनकी बुर में घुसा धंसा मेरा लंड हो।
क्या गर्मी क्या मस्ती थी।
बस, होंठों का जैसे खेल ख़त्म हुआ मैंने भाला आलमोस्ट बाहर निकाला, पल भर के लिए भौजी की सहली को आराम मिला लेकिन उसे क्या मालूम था की जैसे भौजी मेरी महतारी गरिया रहीं थीं वैसे ही अब उनकी गुलाबो की मैं माँ चोद देने वाला था।
एक बार फिर से मैंने दोनों हाथ से भौजी की कमर पकड़ी, ३४ के जोबन और ३६ के चूतड़ पे संध्या भाभी की २६ की कमर एकदम ही कटीली लगती थी। और क्या तूफानी धक्का मारा, बस दो चार धक्के में जब मेरे मोटे सुपाड़ी का हथोड़ा पूरी तेजी से संध्या भौजी की बच्चेदानी पे पड़ा, उन्हें दिन में तारे नजर आ गए, वो चीख पड़ी
" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "
दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा
भौजी सिसक रही थीं,
कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा,
होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं
" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, ....भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो "
Are guddi sun legi to sun legi. Vese uski to chhut hai. Vo bhi to yahi chahti hai. Aur tera vaha puchhe to bol dena ki nandoi ji ne pel diya. Jija aur nandoi ko kon mana karta hai. Amezing shararar.बेटी,... महतारी दोनों
" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "
दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा
भौजी सिसक रही थीं,
कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा, होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं
" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो ?"
खूंटा एकदम जड़ तक धंसाए, मैंने भौजी को छेड़ा,
" अरे तो क्या हुआ बोल दीजियेगा, मेरे नन्दोई मिल गए थे, अब नन्दोई को कोई ना थोड़े करता है और बहुत गर्माएंगी, तो मै होली के बाद आऊंगा तो मिलवा दीजियेगा, उनको भी मोटे मूसल का मजा दे दूंगा,"
भौजी खुश नहीं महा खुश, लेकिन बोलीं,
अरे उनकी तो उमर, फिर कुछ सोच के बोलीं,
"लेकिन उसकी बेटी एकदम गरम माल है, गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की उमर की है, उसी के क्लास में पढ़ती है मस्त चोदने लायक, "
मेरी आँखों के सामने छुटकी तस्वीर जो सुबह वीडियो काल में देखी थी वो घूम गयी
और मारे जोश के मैंने मोटा मसल आधे से ज्यादा निकाला और हचक के चोदते हुए भौजी से बोला,
" अरे भौजी, तोहार हुकुम हो तो बेटी महतारी दोनों को एक साथ चोद दूंगा "
और अबकी नान स्टाप चुदाई, जैसे धुनिया रुई धुनता है बस थोड़ी देर में भौजी झड़ने के कगार पे पहुँच गयी लेकिन अबकी मैं रुका नहीं और रफ़्तार बढ़ी दी,
" ओह्ह उन्हह उफ़ उफ़ " भौजी की साँसे लम्बी होती गयीं, बिल दुबदुबा रही थी, और झड़ते समय उनकी प्यारी हसीना अपने बुर को कस कस के निचोड़ रही थी, झड़ते समय संध्या भौजी की हालत खराब थी। लग रहा था पूरी देह का रस किसी ने निचोड़ लिया है, सब ताकत ख़तम हो गयी है, देह एकदम ढीली पड़ती जा रही थी, आँखे बंद हो रही थी, हलकी हलकी सिसकियाँ और फिर एकदम से, उनकी देह स्थिर,....
लेकिन मैं इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ने वाला था,
हाँ मैंने स्पीड कम कर दी, फिर रुक गया।
चार मिनट तक भौजी एकदम कांपती रही, फिर मुड़ के जो मेरी ओर से प्यार से देखा फिर लजा गयीं, और मैंने कस के उन्हें पकड़ के गालों से लेकर नितम्बों तक चूम लिया।
खूंटा मेरा अभी भी जड़ तक धंसा था और भौजी की बिलिया अच्छी तरह फैली कस के उसे प्यार से दबोची थी।
भौजी अभी जस्ट झड़ी थीं, इसलिए मैं धक्के नहीं लगा रहा था लेकिन मेरे होंठ, उँगलियाँ भौजी को फिर से गरमा रहे थे।
कभी उँगलियाँ उनकी रेशमी जाँघों को सहलातीं और चूतड़ पे चिकोटी काट लेतीं, तो कभी मेरे होंठ उड़ते भौंरे की तरह उनके गालों पे बैठ के रस चूस लेता तो कभी मेरी जीभ, कंधे से लेकर नितम्बो तक उनकी रीढ़ की हड्डी के ऊपर से, गहरी चिकनी पीठ पर एक गीली सी लाइन खींच देती। हाथ भी अब एक बस खुल के, कस के जुबना का रस ले रहे थे और भौजी गरमाने लगीं, हीटर की मोटी रॉड तो अंदर तक बालिश भर धंसी ही थी।
संध्या भाभी ने निहुरे निहुरे एक बार मुड़ के मेरी ओर फिर से देखा, आँखों में प्यास, उनकी मांग में भरभराता खूब गहरा सिन्दूर, माथे पर बड़ी सी बिंदी, गले में लटकता मंगल सूत्र, सुहागिन के निशान देख के एक बार मैं एकदम जोश में भर गया और कस के उस सिन्दूर को पहले चूमा, फिर बिंदी को फिर होंठों पे कस के चुम्मा लेके हलके हलके, मोटा सांप बिल से सरकते हुए धीरे धीरे, हाँ चूँची कस कस के रगड़ी जा रही थी,
लेकिन मैंने आलमोस्ट सुपाड़ा बाहर तक निकाल के रोक दिया, और भौजी की हालत ख़राब
लेकिन बेचारा मेरा मोटू भी तो कितनी बार ताल पोखरी के पास सुबह से जा के बिना डुबकी लगाए, रीत, संध्या भौजी और सबसे बढ़कर वो कोरी गुंजा, सिर्फ जरा सा सरसों के तेल न होने से बिन चुदे रह गयी, वो बेचारी तो मुझसे भी ज्यादा गर्मायी थी,
" हे डालो न " शिकायत के स्वर में भौजी की हलकी सी आवाज आयी।
" क्या डालूं, भौजी, " मैंने भी उनके कान के लोब्स को हलके से काटते पूछा।
लेकिन मैं भूल गया था की संध्या भौजी असली बनारस वाली हैं, पलट के उन्होने जवाब दिया,
" स्साले मादरचोद, जो अपनी महतारी के भोंसड़ा में डालते हो, वही, ....की उनसे भी पूछते हो, भोंसडे में डालूं की गांड में, पेल साले तेरी महतारी के भोंसडे में, " और फिर जो गालियों की गंगा बही,
भौजी को मालूम था मेरा एक्सिलरेटर कब और कैसे दबाना चाहिए, और बस उनकी महतारी की गारी का जवाब मैंने हचक के पेल के दिया और बोला,
" भौजी, आज तोहार बुर क भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और लौट के आऊंगा तो तोहरी ननद और ओकर बिटिया जो आप कह रही थीं गुड्डी की छुटकी बहिनिया के बराबर है उसका भी, लीजिये सम्हालिए " मैंने कस के धक्का मारते हुए बोला,
" ओह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ उईईई उईईई नहीं, ओह्ह आह्ह्ह्हह रुक स्साले, एक मिनट, ओह फट जायेगी, इतना जोर से नहीं "
भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं , संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।
लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज
जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,
Lo idhar sandhya bhabhi ke sath dewar bhabhi vala chal raha hai to udhar dube bhabhi reet ke sath kanya ras ka swad le rahi hai. Amezing erotic update. Anand babu jane se pahele sali ka to kuchh hona hi chahiye. Mast erotic seen.सिसकियाँ और चीखें
भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं ,
संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।
लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज,
जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,
" चंदा भाभी प्लीज, चूसो न, झाड़ दो न, सुबह से बार बार, मेरी अच्छी भौजी, मेरी प्यारी भौजी, तोहार हाथ जोड़ रही हूँ, गोड़ पड़ रही हूँ "
और चंदा भाभी की ओर से दूबे भाभी की आवाज आयी, " अरे झाड़ तो ये देगी मेरी देवरान, लेकिन तुझको भी इसकी चूस चूस के झाड़नी पड़ेगी, "
" एकदम भौजी, मंजूर सब मंजूर " सिसकते हुए रीत की आवाज आ रही थी।
" सोच ले, जो जो चुसवाऊँगी, चटवाउंगी, सब चाटना पडेगा, जीभ अंदर डाल के, फिर अगर पीछे हटी न तो, " खिलखिलाते हुए चंदा भाभी की आवाज आयी।
" अगर पीछे हटी न तो मैं हूँ न , इसके पिछवाड़े मुट्ठी पेल दूंगी, अरे अगवाड़े की झिल्ली बचानी है लेकिन पिछवाड़े का क्या " उसी तरह हँसते हुए दूबे भाभी की आवाज सुनायी दी, और लगता है चंदा भाभी ने चूसना शुरू कर दिया था क्योंकि रीत की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी
और फिर जब इधर संध्या भाभी झड़ रही थीं, उधर रीत के उह आह्ह की आवाज आ रही थीं वो भी झड़ रही थीं।
और अब जब मैं एक बार कस के संध्या भाभी को चोद रहा था, भौजी गरिया रही थीं, सिसक रही थीं चीख रही थीं, उधर से भी चंदा भाभी की आवाज आ रही थीं
" हाँ रीत हाँ ऐसे ही चूस, झाड़ दे मुझे मेरी ननदिया, "
लेकिन थोड़ी देर बार रीत की उन्ह आह नहीं नहीं इधर नहीं की आवाज आ रही थीं और फिर जवाब में दूबे भौजी की गरजने की
' स्साली छिनार, खोल मुँह पूरा , और चौड़ा, जीभ अंदर तक जानी चाहिए, वरना तेरी गांड का गोदाम बनेगा आज, बिना चूड़ी उतारे कोहनी तक पेलुँगी "
मैं समझ गया खेल,
चंदा भाभी अब अपने बड़े चूतड़ फैला के, पिछवाड़ा खोल के, और रीत मुंह बना रही होगी, लेकिन दूबे भभकी बात और उधर से आवाजें आना बंद हो गयीं, और मैं समझ गया अब रीत रानी चंदा भौजी के पिछवाड़े चूसुर चुसूर, गोल दरवाजे का रस चूस रही होंगी
बस ये सोच के ही इतना जोश आया मुझे की संध्या भौजी की दोनों चूँची पकड़ के मैंने वो हलब्बी धक्का मारा की उनकी भी चीख निकल पड़ी
" उययी उययी ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ "
चुदाई के समय लड़कियों की चीखें लड़को का जोश और बढ़ा देती हैं, और जैसे कोई पहली बार पेली जा रही बछिया को जबरदस्त सांड़ छाप लेता है, अगले दोनों पैरों से दबोच लेता है, उसी तरह अपने हाथों से संध्या भौजी को कस के दबोच के, मैं धक्के पे धक्के मार रहा था
चार पांच धक्के के बाद उनके कान में जीभ घुमाते हुए पूछा
" काहें भौजी, मजा आ रहा है "
" अरे स्साले, सपने में भी ऐसा मजा नहीं मिला जो आ जा मिल रहा है, जेके बियहबा तू वो धन्य हो जाई"
और मारे ख़ुशी के भौजी की बात सुन के मैंने उनका मालपुवा अस गाल कचकचा के काट लिया और चिढ़ाया,
" अब तोहार ननद पूछेंगी तो का बताइयेगा "
" इहे की हमारे मायके में एक नंबरी चोदू है, ओहके लगा तोहार बयाना बटा दे दिए हैं, होली के बाद आयी तो तोहरो चुदाई ऐसे ही करी /"
खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं और इसी बात पे मैंने दूसरा गाल भी कस के काट लिया। मेरे दांत के निशान कोई रंग तो थे नहीं जो बेसन और साबुन से छूट जाते।
और दोनों जुबना मसलते हुए मेंने एक धक्का और मारा और बोला
" हमरे भौजी का हुकुम हम टाल नहीं सकते, हचक के पेलूँगा, लेकिन एक के साथ एक फ्री "
मेरा इशारा संध्या भाभी ने जो अपनी ननद की बेटी के बारे बताया था, गुड्डी की सबसे छोटी बहन के क्लास वाली, उसकी ओर था,
अब चुदाई सावन के झूले की तरह चल रही थीं, एक ओर से मैं पेंग मारता तो दूसरी ओर से वो कभी झूला धीरे धीरे तो कभी एकदम तेज , सुहागिन साल भर की ब्याहता औरतों को चोदने का यही तो मजा है, पूरा साथ देती हैं और मेरा जैसा नौसिखिया हो बढ़ बढ़ के मजे देने में हिस्सा लेती हैं। संध्या भौजी हंसती हुयी बोलीं
" अरे हमरे ननद के पहले तो वही टांग फैलाएगी, मैं जाती हूँ उनके यहाँ, चूतगंज ( संध्या भौजी अपने नन्द के मोहल्ले चेतगंज को चूतगंज ही कहती थीं ) तो उसी के साथ सोती हूँ, इतनी गर्म है, खुद मेरा हाथ पकड़ के अपनी गुच्ची पे, रात भर गुच्च गुच्च, एक पोर तो ऊँगली का आराम से घोंट लेती है और थोड़ा जोर लगाती हूँ तो दो पोर तर्जनी का,
लेकिन है अभी कोरी कुँवारी, चूँचिया भी बस एकदम कच्ची अमिया, गुड्डी की छुटकी की तरह से, लेकिन एक बात समझ लो लल्ला, ऐसी चूँचिया उठान वाली को चोदने का मजा ही अलग है। कभी नहीं छोड़ना चाहिए, बहुत पाप लगता है, फिर एक बार ओह उम्र वाली की पेल के फाड़ दोगे न तो जिन्नगी भर, "
उनकी ननद की बेटी को तो मैंने नहीं देखा था लेकिन गुड्डी की छुटकी को तो मैंने देखा ही था, मेरी खिंचाई करने में अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रही थीं और आज सुबह जिस तरह से उसने छोटे छोटे जोबन की झलक दिखाई थीं,
बस मैंने पूरा बाहर निकाल के ऐसी ताकत से मारा की मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भाभी की बच्चेदानी पे लगा और वो काँप गयीं, बुर उनकी फूलने पिचकने लगी, और मैंने अपनी मन की बात उनसे कह दी, डर जो था,
" भौजी मेरा, थोड़ा, ..."
संध्या भाभी मेरे पूरे घुसे खूंटे को मस्ती से अपनी बिल को सिकोड़ के निचोड़ते बोलीं,
" थोड़ा, किसको बता रहे हो, अरे गदहे का लंड है मनई का नहीं, मनई का पांच छह इंच का होता है तोहार तो बालिश्त से भी, तोहार ममेरी बहन गदहे वाली गली में रहती हैं न तो जरूर तोहार महतारी गदहे के साथ सोई होंगी तभी, लेकिन क्या होगा बहुत होगा थोड़ा सरसो का तेल ज्यादा लगेगा, तो कौन कंजूसी, कमा तो रहे हो, और चीखेगी चिल्लायेगी, तो चीखने देना, यही चीख सोच सोच के तो खुश होगी बाद में "
बगल के बाथरूम से चंदा भाभी की सिकियाँ तेज हो गयी थीं लग रहा था रीत ने उन्हें चूस के झाड़ दिया है और वो आवाजे सुन के मैं और जोश में आ गया और संध्या भाभी भी बस भौजी के मोटे मोटे चूतड़ को पकड़ के मैंने कस के धक्के मारने शुरू कर दिया
" लो भौजी लो ,ये गदहे का लंड " मैंने जोश में बोला,
" दे, मादरचोद, दे, चोद जैसे अपनी महतारी का भोसड़ा चोदता है, देखती हूँ तेरी ताकत "
मेरी ओर मुंह कर के निहुरे निहुरे संध्या भाभी बोली और मैंने कस के उनके होंठ चूस लिए फिर कचकचा के काट लिए,
भौजी की फैली हुयी टाँगे भी अब थोड़ी सिकुड़ गयी थीं, वो प्रेम गली अब पहले से संकरी हो गयी थीं और मूसल रगड़ते, घिसटते दरेररते जा रहा था। मैंने भी तिहरा हमला कर दिया, एक हाथ भौजी की कड़ी कड़ी चूँची मसल रहा था, दूसरी चूँची मेरे होंठों के बीच और दूसरा हाथ मेरा सीधा भौजी की फूलती पिचकती क्लिट पे
धक्के भी लगातार और हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे
ओह्ह उफ़ नहीं हाँ और और हाँ ऐसे ही संध्या भाभी बोल रही थीं, एकदम झड़ने के कगार पे और अब मैं भी नहीं रुकने वाला था, थोड़ी देर में वो झड़ने लगीं, जोर जोर से सिसक रही थीं
उईईई ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ्फ़ हाँ रुक स्साले, उफ्फ्फ उईईईईई उईईई
पर मैं अबकी नहीं रुकने वाला था न स्पीड धीमे करने वाला, एक बार दो बार वो झड़ी होंगी और फिर मैं भी उनके अंदर, ढेर सारी मलाई,
एक बार मेरा झड़ना रुका तो फिर हलके हलके धीरे धीरे और फिर दुबारा बचा खुचा, डॉट बोतल में कस के लगी थीं तब भी रिस रसी के एक दो बूँद बाहर निकल कर जाँघों पे सरकती रेंगती
थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे, संध्या भाभी झुकी, निहुरि और मैं चढ़ा उनके ऊपर, फिर हम दोनों बाथरूम के फ्लोर पे बैठ गए और अब जब संध्या भाभी ने देखा तो शर्मा गयीं
फिर थोड़ी देर बाद अपनी बड़ी बड़ी दीये जैसी आँखों को खोल के उन्होंने मुझे देखा और कस के दबोच के चूम लिया और बोलीं, लाला तुम जितने अनाड़ी दीखते हो उतने हो नहीं।
बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।
बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
Amezing. Sandhya bhabhi bhi soch me pad gai ki abhi tak guddi ke sath kuchh huaa nahi. Par bhabhi hi salah de rahi hai ki aaj rat hi ho jae. Pichhla itihas bhi anand babu ne bata hi diya. Par bhabhi ko bhi sab samaz aa hi gayaफागुन के दिन चार भाग २१ -
संध्या भाभी और गुड्डी
2,70,398
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बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।
बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
संध्या भाभी मुस्कराते हुए, आँखे नचा के बोलीं,
" गुड्डी को ले जा रहे हो, आज रात हचक के पेलना, महीना उसका ख़तम हो गया न "
" हाँ, भौजी, नहा के निकली थी बाल धो के, खुद ही बोली, पांच दिन वाली आंटी जी गयीं, " मुस्कराते हुए मैंने कबूला।
" अरे तब तो आज बहुत गर्मायी होगी, छनछना रही होगी खुद ही लंड लेने को, मेरा महीना तो कल ख़तम हुआ था तब से ऐसी आग लगी थी, बुर में ऐसे चींटे काट रहे थे, वो तो तुमने अभी हचक के पेला है तो जा के ठंडक आयी है। कब से चक्कर चल रहा है तुम दोनों का ? "
भौजी अब एकदम पक्की दोस्त की तरह बतिया रही थीं। क्या बताता मैं, कुछ सोचा,... कुछ जोड़ा और बोल दिया,
" भौजी, ढाई तीन साल तो हो गया होगा, बल्कि शायद ज्यादा ही । "
संध्या भाभी आश्चर्य चकित हो के मुझे देखने लगीं, फिर कस के मुझे पकड़ के मेरी आँखों में देखते बोलीं
" ढाई तीन साल ? और अभी तक पेले नहीं हो उसको ? गुड्डिया सहिये कहती है, एकदम बुरबक हो। आजकल के लड़के तो सबेरे लड़की से बात होती है, नाम पूछते हैं और शाम को पर्स में बोरोलीन की ट्यूब और कंडोम लेके पहुँच जाते है और तुम तीन साल से लटकाये टहल रहे हो। "
कुछ देर वो चुप बैठी रहीं, मैं भी क्या जवाब देता, फिर वो कुछ सोच के, समझ के बोलीं,
" गुड्डी ही मना करती थी क्या, झिझकती होगी, लेकिन लड़की तो मना करेगी ही, लड़के का काम है थोड़ा जोर जबरदस्ती, थोड़ा मनाना, "
मैं क्या बोलता उनसे, झिझक तो मेरी सब गुड्डी ने ही दूर की, मैं तो खाली उसे देख के ललचाता रहता था।
उसकी कच्ची अमिया देख के मुंह में पानी आता था, ....और समझती तो वो थी ही, पिक्चर हाल के अँधेरे में उसने खुद मेरा हाथ खींच के अपने टिकोरों पे रखा था , डेढ़ पौने दो साल पहले और उसी बार पाटी से पाटी सटा के हम दोनों सोते थे नीचे बरामदे में गर्मी में, कभी बतियाते, कभी बस देखते रहते, और उसी ने खींच के मेरा हाथ अपनी शलवार के ऊपर, और मुझसे नाड़ा नहीं खुला तो खुद नाड़ा खोल के मेरा हाथ अंदर, उस भट्ठी को पहली बार मैंने छुआ था और गुड्डी ने भी मेरे पाजामे में हाथ डाल के ' उसका हाल चाल ' लिया था लेकिन तब भी मेरी हिम्मत नहीं पड़ी।
कुछ तो ये डर की बरामदे में खुले में, और कुछ मेरी झिझक, लेकिन संध्या भाभी की बात का जवाब तो देना ही था तो मैंने बोल दिया
" नहीं, नहीं गुड्डी ने कभी मना नहीं किया, झिझकता मैं ही ज्यादा था, फिर लगता था हम दू बरामदे में हैं कोई आ गया तो, गुड्डी ने आज तक मुझे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया। "
मैंने कबूल कर लिया।
" तो आज, कैसे " संध्या भाभी सब बात पूछ लेना चाहती थीं जैसे कम्पनी के कंसल्टेंट सब बात पूछ के उसी से कुछ रिपोर्ट बना के दे देत्ते हिन्
" अभी तो हलकी ठडंक है, हम लोग कमरे में ही रहेंगे, नीचे वाली मंजिल में, और भैया भाभी तो ऊपर वाले कमरे में और एक बार भाभी ऊपर चली जाती हैं तो फिर सुबह ही उतरती हैं, बर्तन वाली आती है तो दरवाजा मैं ही खोलता हूँ तो इसलिए इस समय,"
मैंने धीरे से अपनी प्लानिंग बताई।
और संध्या भौजी खिलखिलाने लगीं,
" एकदम सही कह रहे हो, बिंन्नो दी ( मतलब मेरी भाभी ) भी यही कह रही थीं की तेरे भैया तो एकदम चुंबक हैं, चिपक जाते हैं तो रात भर छोड़ते नहीं हैं, तीन बार से तो कम कभी नहीं और कई बार तो सुबह भी और कभी पिछवाड़ा भी , ....एक बार वो ऊपर गयीं तो फिर दरवाजा बंद तो सुबह ही खुलता है और घडी की सुई नौ पे गयी नहीं की ऊपर से पुकार आने लगती है "
मैं भी याद करके मुस्कराने लगा और बोला,
" एकदम यही है, कई बार मुझसे गप्प मारने में भाभी को देर हो गयी, और सबसे पहले मुझे अपने सामने बैठा के डांट डांट के खिलाती हैं, और नौ बज गया तो अपना खाना ले के ऊपर "
" तो नीचे और कोई नहीं, तोहार महतारी तो दक्षिण की तीर्थ यात्रा पे निकली हैं वो तो मई जून में आएँगी, "
संध्या भाभी को काफी कुछ मालूम था तब भी उन्होंने पूछा,
" नहीं एक मंजू भौजी हैं, ....घर की ही समझिये बल्कि घर से बढ़के, घर सम्हालती वही हैं वो पीछे दो कोठरिया बनी है उसमें रहती हैं , ...तो नीचे मैं और गुड्डी ही " मैंने मुस्कराते हुए भौजी से कबूला।
वो भी जोर से मुस्करायीं, उनकी आँखों में चमक आयी और फिर उन्होंने हलके से थोड़ा सोये थोड़ा जागे, जंगबहादुर को सहलाते, दुलराते
मेरे गाल पे छोटी सी चुम्मी ले के कहा, "स्साले फिर तो तेरी चांदी है, ...पेलना मजे ले ले के "
Wah sandhya bhabhi khub gyan de rahi hai. Apni dono kachi nandiya ko pelvane ke lie. Guddi aur anand babu se jyada to sandhya bhabhi jyada utavli hai.ज्ञान की बातें -संध्या भाभी
लेकिन कुछ सोच के उन्होंने कुछ समझना शुरू किया,
" देख, तुम हो तो अभी नौसिखिया ही और गुड्डी का भी पहली बार ही होगा, इसलिए बता रही हूँ, जब नयी सील खोलनी हो, तो कुछ बातों का जरूर ध्यान देना चाहिए और ये जिम्मेदारी लड़के की है। सब सोचते हैं की टाँगे फैला लो, जाँघे खोल लो तो कच्ची कोरी बिल में घुसने का काम हो गया। एकदम गलत है, ये सब बातें ठीक हैं लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है तकिया। "
और बजाय रहस्य खोलने के वो मुस्कराने लगीं और मैं चकित हो के देखता रहा ।
मैंने मदन मंजरी से लेकर असली सचित्र कोकशास्त्र ८४ आसन सचित्र, बड़ा तक छुप छुप के पढ़ा था लेकिन कहीं तकिये का नाम नहीं आया। मैंने पूछ ही लिया
" मतलब "
" अबे स्साले तेरी उस भोंसड़ी वाली महतारी ने कुछ सिखाया नहीं, खाली अपने भोंसडे में, अरे भोंसड़ा चोदने और मेरी कुँवारी कोरी कच्ची छोटी बहिनिया को पेलने में बहुत फर्क है "
संध्या भौजी अपने रंग में आ गयी थीं, लेकिन उन्होंने मेरे बाल सहलाते हुए समझा दिया
" तकिया मतलब, ...चूतड़ के नीचे गुड्डी के तकिया जरूर लगाना. जितना चूतड़ उठा पाओगे, चार अंगुल, एक बित्ता, ....उतना ही उसकी बुर खुल के सामने आएगी और जब दोनों टांगों को गुड्डी के कंधे पे रखोगे न तो उसकी फूली फूली मालपुवे ऐसे बुर एकदम उभरी रहेगी,
तुझे दोनों फांको को फैला के तेल, वैसलीन जो भी लगाना हो, फांक दोनों फैला केअपने इस बदमाश को अंदर सरकाना हो, तो ज्यादा आसान रहेगा, वरना तेरे ऐसा बुरबक रात भर बिल का छेद ढूंढने में ही लगा देगा और मेरी गुड्डी तड़पती रहेगी। और हाँ एक बात और,..."
लेकिन बजाय एक बात और बताने के संध्या भाभी चुप हो गयीं, वो मुझसे कहलवाना चाहती थीं और मैंने पूछ ही लिया
" क्या बात भौजी? "
अब वो मेरे खूंटे को कस कस के दबा रही थीं, मूसल कड़ा भी हो रहा था, भौजी के मुलायम हाथ अब उसने पहचान लिए थे, वो बोलीं
" एक बात बल्कि, दो बात, एक तो कभी किसी लड़की को, औरत को, तोहार बहिन, महतारी, चाची, बूआ, मौसी जो भी हो, एक बार चोद के कभी मत छोड़ना। पहली बार में तो यही सोचने में लग जाता है लड़की को की स्साला टू मिंट नूडल है या लम्बी रेस का घोडा, और दूसरी बार ही असली मजा आता है, दोनों खिलाड़ी एक दूसरे को जान समझ लेते हैं। तो गुड्डी को एक बार पेलने के बाद गरम कर के दुबारा, बल्कि ऊपर तोहरी भाभी हैट ट्रिक करेंगी तो तुम भी कम से कम कम तीन बार, इस उम्र में रात सोने के लिए थोड़े ही होती है।
और मौका मिले तो दिन में भी नंबर जरूर लगाना, वैसे गुड्डी को कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?
मैंने कुछ मन में जोड़ा, कुछ ऊँगली पे और संध्या भाभी को बताया,
" देखिये भौजी, चार दिन बाद तो होली है, और ओकरे बाद, ,...पहिले तो हम दोनों वहीँ आजमगढ़ में ही, लेकिन अब एक तो दूबे भाभी बोलीं हैं की रंग पंचमी के एक दो दिन पहले तो फिर उनकी बात और, गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी हो सकता है कानपूर से जल्दी आ जाएँ तो हम दोनों उनसे बोले हैं की उन लोगो को लेने के लिए मैं और गुड्डी स्टेशन पे रहेंगे, तब भी छह सात दिन, सात दिन तो पक्का "
मैंने जोड़ के बोला
और जब मैंने गुड्डी की मम्मी मतलब मम्मी बोला तो जिस तरह से समझ के संध्या भाभी ने देखा, ...एक पल के लिए मैं लजा गया।
लेकिन संध्या भाभी भी कुछ जोड़ घटाना कर रही थीं, जोड़ के बोलीं,
" तो चलो सात दिन और जैसा तेरा बम्बू है और ताकत है तो रात में तो किसी दिन तीन बार से कम नहीं और दिन में भी एकाध बार जरूर नंबर लगाना और कुछ नहीं हो तो चुसम चुसाई, तो २८ बार, और उतना नहीं तो २०-२२ बार तो कम से कम, तो मेरे इस मुन्ने की दावत हो गयी। "
और उनका मुन्ना, उनकी मुट्ठी से बाहर आने के लिए जंग कर रहा था, अब वो एकदम बड़ा और खड़ा दोनों हो गया था और भौजी भी अब खुल के मुठिया रही थीं। एक तो गुड्डी का नाम लेने से ही वो मेरा जंगबहादुर आप से बाहर हो जाता था फिर संध्या भौजी का कोमल कोमल हाथ
संध्या भौजी ने सुपाड़े को अंगूठे से रगड़ते हुए कहा
" और असली दावत तो तेरी यहाँ पहुँचने पे होगी, गूंजा, गुड्डी की बहने,...."
और उनकी बात काट के मैंने याद दिलाया " और आपकी ननद और उसकी बेटी "
वो जोर से हंसी, " पहले आज गुड्डी को तो निबटाओ, "
पर मुझे याद आया उन्होंने दो बात कही थी और सिर्फ एक ज्ञान तकिये वाला देकर बात मोड़ दी पर मैं नहीं भूला था, मैंने तुरंत याद दिलाया,
" भौजी, आपने दो बात कही थी लेकिन दूसरी बात, "
" तुम स्साले, कुछ भुलाते नहीं हो " मुस्करा के भौजी बोलीं और समझाया,
" बात चिकनाई की है और खास तौर से कोरी कच्ची कली की, और तोहरे किस्मत में खाली गुड्डी नहीं दर्जनो की झिल्ली फाड़ना लिखा है, पहले तो वो तोहार बहिनिया, ...दूबे भाभी का हुकुम है. फिर यहाँ आओगे तो गूंजा, और गुड्डी की बहने,.. और भी .
लेकिन तोहार मूसल जस है, कउनो खूब चुदी चुदाई हो तोहरे बहिन महतारी की तरह,.... तब भी हर बार तेल पानी जरूरी है। कुछ लोग ये सोचते हैं की बिल में पानी गिरा है तो सट्ट से चला जाएगा, दुबारा करने पे। सबके लिए होगा तोहरे लिए नहीं,... एक तो बुरिया में जो बीज गिरता है केतना होता है फिर गिरता तो एकदम अंदर है, तो उससे कितनी चिकनाई होगी। हाँ एक बार सुपाड़ा घुस जाने के बाद,... इसलिए जितनी बार करो तेल पानी लगा के, और गुड्डी के साथ तो आज रात एकदम ध्यान रखना,"
और जैसी उनकी आदत थी ऐन मौके पे वो चुप हो गयीं जिससे मैं निहोरा करूँ, जैसे कुछ लिखने वालियां होती हैं न ऐन मौके पे पोस्ट पे ब्रेक दे देती हैं और फिर जब तक कमेंट न करो, आगे की पोस्ट आती नहीं है, एकदम वैसे।
और मैंने बोला,
" बताइये न भौजी, गुड्डी के साथ क्या, आज की रात के लिए " मैं एकदम उकता रहा था।
संध्या भौजी ने एक पल के लिए अपने मोटू मुन्ना को सहलाना बंद किया और मेरी आँखों में देखती बोलीं
" देख सबसे पहली बात ये सिर्फ तेरे साथ नहीं है सब मर्दो के साथ,...ख़ास तौर से नए लौंडो के साथ कच्ची चूत चोदने को सब पगलाए रहते हैं लेकिन इंतजाम नहीं करते "
मुझे भी लगा इसी गलती से आज गुंजा बच गयी अगर थोड़ा सा भी कडुवा तेल या कुछ भी होता तो बिना फाड़े मैंने उसे जाने नहीं देता लेकिन लौट के आऊंगा तो सबसे पहले उसी का नंबर लगेगा, जेब में अब से बोरोलीन की ट्यूब या वैसलीन की छोटी शीशी,
लेकिन अबकी संध्या भाभी रुकी नहीं उनका ज्ञान जारी था,
" देख यार सबसे अच्छा तो सरसो का तेल, एकदम सटासट जाता है ,
लेकिन आधी रात में कहाँ रसोई में डब्बा ढूंढते फिरोगे, फिर दाग धब्बा और सूंघने वाले अगले दिन भी सूंघ लेते हैं की सरसो की तेल की झार मतलब गपागप हुआ है तो तेल तो नहीं तो वैसलीन, इसका इंतजाम, "
मैं उन्हें क्या बोलता, मेरे बस का कुछ नहीं है लेकिन वो जो मेरी सारंग नयनी है जो मेरे जनम जिंदगी का ठेका ले के पैदा हुयी है उसने वैसलीन, की सबसे बड़ी शीशी खुद खरीदी है, मुझे दिखा के।
" और उसके बाद ऊँगली "
संध्या भाभी से आज मैं बहुत कुछ सीख रहा था, फिर उन्होंने जोड़ा,
"बहुत लोग बिस्तर पे जाने पे के पहले माउथवाश, मंजन सब करते हैं लेकिन ऊँगली का ध्यान नहीं रखते। "
मैं ध्यान से सुन रहा था और भौजी बोलीं " ऊँगली में एक तो नाख़ून एकदम नहीं, और दूसरे साफ़, एकदम साफ़, जैसे अमिताभ बच्चन नहीं हाथ धो के दिखाते हैं डिटॉल वाले में बस वैसे ही, "
" ये ऊँगली पे इतना जोर क्यों " मैं सच में इन मामलों में एकदम स्लो था। एक प्यार की चपत मेरे गाल पे मार के बोलीं
" स्साले मादरचोद, वैसलीन लगाएगा किस चीज से? लंड से की अपनी महतारी की बड़ी बड़ी चूँची से ? अरे लंड से पहले तोहरी जानेजाना, गुड्डी रानी की बुरिया में का घुसी, इहे उँगरिया न। "
फिर एक जोर की चुम्मी संध्या भाभी ने मेरे गाल पे ली और कचकचा के गाल काट लिया और बोलीं
"देख साले, कब भी कोरी बुर चोदो, और हमार आशीर्वाद है तोहें एक से कली मिलेंगी जिनकी झांट भी ठीक से नहीं आयी हो,... तो पहली बात ये याद रखो, एक ऊँगली का तर्जनी का कम से कम दो पोर,... और दोनों ऊँगली तर्जनी और मंझली का एक पोर.
पहले एक ऊँगली डाल के खूब तेल में, वैसलीन में चुपड़ के हलके हलके धँसाओ, पुश मत करना, और फिर गोल गोल, एक तो उससे बिलिया थोड़ी खुलेगी, दूसरे लौंडिया स्साली गर्माएगी, पनियायेगी, खुद चूतड़ पटकेगी लंड लेने के लिए। और जब दो पोर देर तक गोल गोल तो वो ऊँगली निकल के फिर से चिकनाई लगा के उसके पीछे एकदम चिपका के दूसरी ऊँगली और थोड़ी देर बाद दोनों ऊँगली अलग अलग, चूत की अंदर की दीवार पे, ....सब मजा तो वहीँ हैं, कभी अंदर बाहर कभी कैंची की फाल की तरह फैला दिया, चीखेगी स्साली, जोर से चीखेगी, तो घबड़ाना मत। तेरा इत्ता मोटा सुपाड़ा है कम से कम दोनों फांके इतनी तो खुल जाएँ, की सुपाड़े का मुंह उसमे फंस जाये, तो,.... चिकनाई और ऊँगली। "
भौजी की सब बाते मैंने गाँठ बाँध ली।
उन्होंने कुछ बात ही ऐसे की माहौल सीरियस हो गया, पहले तो मुस्करा के वो बोलीं,
" देखो २०-२५ बार तो वहां और यहाँ भी तीन चार दिन रहोगे तो मौका निकाल के आठ दस बार, तो जाने के पहले ३० -३५ बार तो पेलोगे ही उसको, लेकिन अभी भी मान नहीं सकती की आज के जमाने में तोहरे अस कोई लड़का, लड़की ढाई तीन साल से पटी, खुद शलवार का नाडा खोल दिया, औजार भी इतना मस्त तगड़ा, हरदम टनटनाया रहता है फिर भी चोदा नहीं, एकदम ही अलग हो। "
मैं क्या बोलता बस मुस्करा दिया। ३० -३५ बार का जो उन्होंने टारगेट दिया था अब गुड्डी के साथ मुझे डाँकना था,
लेकिन संध्या भाभी इस बार बिना मेरी हुंकारी के बोलीं,
" देखो, चुदाई का रिश्ता तीन चार तरह का, एक तो रंडी टाइप, उसमें भी कोई बुराई नहीं, और वो नहीं जो दालमंडी में खड़ी रहती हैं जहाँ तेरी बहनिया आके,... मेरा मतलब स्कूल में नंबर के लिए पास कराई, नौकरी में प्रमोशन, पोस्टिंग कुछ भी बात के लिए, लेकिन दोनों का काम होता है दोनों की ख़ुशी, तो मुझे इसमें कोई गलत नहीं लगता।
लेकिन ज्यादातर, जब दोनों की मर्जी हो, दोनों गर्मायें हो , दोनोंमज़ा लेना चाहते हों,... अब हर बार जिसको चोदोगे या लड़की जिससे चुदवायेगी उससे शादी थोड़ी हो ।जायेगी अब मैंने ही तुझसे चुदवाया सच में ऐसा मजा आज तक नहीं आया था और अब जब भी मिलोगे, स्साले, बिना तुझसे गपागप किये, भले मुझे तेरा रेप करना पड़े मैं छोडूंगी नहीं , लकिन शादी तो मेरी पहले ही हो गयी है।
फिर गुंजा है और गुड्डी की बहने, और भी लड़कियां, औरतें,.... तो सबसे शादी थोड़े कोई करेगा और ये बात लड़के से पहले लड़की को मालूम होती है इसलिए वो गोली वोली का इंतजाम किये रहती है। हाँ मजा असली तभी आता है जब पहले मन मिले, मन करे और लड़का केयरिंग हो, और तुझसे बड़ा केयरिंग तो मैंने देखा नहीं। सही कह रही हूँ न "
अबकी उन्होंने हुंकारी भरवाई और मैंने भरी भी बोला भी, " एकदम सही कह रही है आप , "
अब कल रात में मैंने चंदा भाभी को तीन बार चोदा था, अभी संध्या भाभी और दोनों शादी शुदा और गुंजा बस चुदवाती चुदवाती रह गयी, दो छटांक तेल के चक्कर में,... तो उस का भी तो रिश्ता तो जीजा साली का था।
लेकिन अब जो संध्या भाभी ने बात की,
"तो वही गुड्डी के साथ, मतलब ३०-४० बार तो, मेरा मतलब की तुम दोनों का मजा लेने का या,... मतलब अब कैसे कहूं, अब हर बार चुदाई के बाद बियाह, और का पता तोहरे घर वाले कहीं और लड़की वड़की देख के, ....या कोई और लड़की वाले तोहरे घरे, मतलब, देखो गुड्डी को मैं जानती हूँ , वो न बोलेगी न बुरा मानेगी"
मैं धक्क से रह गया, कुछ बोल ही नहीं निकल रहे थे बस किसी तरह से आवाज फूटी,
" मैं, मतलब, ....मेरा क्या, गुड्डी नहीं बोलेगी लेकिन मैं फिर, ....फिर मेरे रहने का क्या मतलब, होने का क्या मतलब, ....अगर वो, "
जैसे कोई भीत भहरा गयी।
जो कुछ मैंने कभी गुड्डी से भी नहीं, किसी से भी नहीं कहा था वो सब मेरे मुंह से निकल रहा था, मुझे पता भी नहीं
Shararat aur masti ke bich ek bhavuk update. Bat to sandhya bhabhi ne sahi boli. Agar teri maa ne kisi aur ko chun liya ya koi aur aake rista pakka kar gaya to??गुड्डी -सिर्फ गुड्डी
लेकिन अब जो संध्या भाभी ने बात की,
"तो वही गुड्डी के साथ, मतलब ३०-४० बार तो, मेरा मतलब की तुम दोनों का मजा लेने का या, मतलब अब कैसे कहूं, अब हर बार चुदाई के बाद बियाह, और का पता तोहरे घर वाले कहीं और लड़की वड़की देख के, या कोई और लड़की वाले तोहरे घरे, मतलब, देखो गुड्डी को मैं जानती हूँ , वो न बोलेगी न बुरा मानेगी "
मैं धक्क से रह गया, कुछ बोल ही नहीं निकल रहे थे बस किसी तरह से आवाज फूटी,
" मैं, मतलब, मेरा क्या, गुड्डी नहीं बोलेगी लेकिन मैं फिर, फिर मेरे रहने का क्या मतलब, होने का क्या मतलब, अगर वो, "
जैसे कोई भीत भहरा गयी।
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जो कुछ मैंने कभी गुड्डी से भी नहीं, किसी से भी नहीं कहा था वो सब मेरे मुंह से निकल रहा था, मुझे पता भी नहीं चल रहा था मैं क्या बोल रहा हूँ , संध्या भाभी को कैसे लगेगा, बस जो बादल इतने दिन से उमड़ घुमड़ रहे थे सब बरस गए।
संध्या भाभी बस मुझे देख रही थीं।
" भौजी, मुझे गुड्डी चाहिए। कम से कम इस जन्म के लिए, उस के बिना तो मेरे रहने का ही मतलब नहीं। कैसे बताऊँ। वो मुझे एक दिन सेक्स न करने दे, चलेगा। चुम्मी भी न दे तो भी, छूने भी न दे। वो जब पास में रहती हैं न तो भले मुझे बात भी न करे, अपने काम में बिजी रहे , तब भी, अपनी सहेलियों के साथ भी रहे न तो जिस तरह से एक बार मुड़ के देख लेती है, हल्के से मुस्करा देती हैं, बस। उससे ज्यादा क्या चाहिए किसी को जिंदगी में। इसलिए ये तो मैं सोच भी नहीं सकता। "
संध्या भाभी कभी मेरे बाल सहलातीं कभी कभी गाल और बस हलके हलके मुस्करा रही थीं। और मैं बिना रुके बोले चला जा रहा था
" आप सोच नहीं सकती, मुझे उससे कुछ कहना नहीं पड़ता, मेरे बिना कहे उसे पता चल जाता है की मेरा क्या मन कर रहा है। और मेरी कोई परेशानी हो, छोटी बड़ी, जो मुझे एकदम परेशान किये हो, कुछ न समझ में आ रहा हो, उससे बोलूं तो बस एक मिनट में, और फिर मेरा काम आसान। वो रहेगी तो बस मुझे सोचना ही नहीं, सोचने का काम उसका और मेरा काम बस जो वह कहे उसकी बात मान लूँ "
" और उसकी बात टालने की तेरी हिम्मत नहीं "
मेरे कान मरोड़ते हुए संध्या भाभी मुस्करा के बोलीं,
" बुद्धू हूँ लेकिन इतना भी नहीं, जो उसकी बात टालूँ, ...पिटना है क्या " मैं भी मुस्कराते हुए बोला,
,मैं उन्हें क्या बताऊँ, जो मेरी नौकरी मिली, वो भी सब, धौलपुर हाउस में इंटरव्यू के आधे घंटे पहले मेरी हालत ख़राब थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब कह रहे थे बड़ा टफ बोर्ड है, एक शिफ्ट में चार लोगो का इंटरव्यू, जो जो इंटरव्यू दे के आ रहे थे पसीने पसीने, और ये सोच सोच के मेरी हालत खराब, क्या पूछेंगे, कहीं सब भूल गया।
आखिर में मैंने गुड्डी को फोन लगाया, वो हसंते हुए बोलीं, 'हो गया' , और मैंने कहा " यार मेरी फटी पड़ रही है और तू हंस रही है, बार बार,"
मेरी बात काटते वो सुनयना बोली,
" अरे यार फटेगी तो तेरी है ही और अच्छे से फटेगी, ...तेरे शहर के मोची भी नहीं सिल पाएंगे, लेकिन तेरी फाड़ेंगे मेरे मायके वाले और मैं , और उनके अलावा और किसी का हक़ नहीं है तेरी फाड़ने का,.... और मन में, ...तो एक इत्ती अच्छी प्यारी सी सेक्सी लड़की से बात कर रहे हो, उसी के बारे में सोचो, सब चिंता भाग जायेगी। "
और मैंने वही किया, बस उसी के बारे में,... और एकदम नॉमर्ल हो के इंटरव्यू, २५० में २२५ मिला और रैंक भी अच्छी। जिस दिन रिजल्ट आया वो घर में ही थी और सब के साथ पीछे पड़ी मिठाई खिलाओ, और मैंने उसकी कच्ची अमिया को देख के बड़ी हिम्मत से कह दिया
" मिठाई तो मुझे खानी है " बस उस ने मेरी ओर से अनाउंस कर दिया की मैं सबको पिक्चर दिखाने वाला हूँ और पिक्चर में मेरा हाथ खींच के अपनी हवा मिठाई पे
हम दोनों चुप थे, संध्या भाभी मुस्करा रही थीं, बोली,
"तुम पागल हो। और फिर पुछा गुड्डी से कुछ कहा, आजकल तो लड़के नाम बाद में पूछते हैं आई लव यू पहले बोलते हैं, तो ये सब,....कभी उससे कहा है,... आई लव यू बोला है, गुड्डी को।"
मैं उचक गया।
" अरे भौजी पिटना है क्या, " हंस के बोला।
और भौजी ने प्यार से एक चांटा मेरे गाल पर लगा दिया. लेकिन हल्के से नहीं और बोली क्या ऐसे मारती है , वो।
" नहीं नहीं इससे भी जोर से, लेकिन मुक्का और पीठ पे, फिर पूछती है लगा तो नहीं और फिर सहलाती है " हंस के मैंने अपनी,... गुड्डी की बात बताई।
" तो आज तुम बदला लेना, मार के उसकी, तुम पहले सहलाना फिर मारना " खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं।
मैं भी हंसने लगा लेकिन भौजी फिर सीरियस हो गयीं।
" तेरे यहाँ फैसला लेगा कौन, तेरी महतारी तो लेंगी नहीं " और मैं कुछ बोलता उसके पहले उन्होंने राज खोला।
बात ये थी की जब मेरी माँ सावन में महीने भर गुड्डी के यहाँ थीं, उनकी मनौती थी सावन में बनारस में रहने की और हर सोमवार....तो मेरी अपनी भाभी ने भी बोला और गुड्डी की मम्मी ने भी तो, वो गुड्डी के यहाँ ही रुकी थीं महीने भर तो सावन फिर पंद्रह बीस दिन और .
तो संध्या भाभी उसी समय,... उनका भी शादी के बाद पहला सावन था तो मायके में आयी थी और फिर दोनों लोगों में पक्की दोस्ती हो गयी।
पहले तो मेरी भाभी से संध्या भाभी का बहन का रिश्ता तो मेरी माँ से सास बहू का रिश्ता और छेड़छाड़, फिर घाट पे दोनों लोग साथ साथ,... तो एकदम सहेली वाला मामला भी और शुद्ध बनारसी गारी का भी, संध्या भाभी बोलीं की अगर किसी दिन बिना गरियाये बात की, तो वो पूछती 'तेरी तबियत ठीक है न'। तो उन्हें भी मालूम था की साल में पांच छह महीना तो घर से बाहर ही,.... और किसी काम के लिए कोई पूछता तो वो कह देती, 'बहू क्यों लायी हूँ अब जो फैसला करना होगा वो करेगी। '
इसलिए मेरे बारे में भी उनका यही फैसला था जो कुछ होगा,... उनकी बहू मतलब मेरी भाभी।
" तो तेरे भैया और भाभी बचे " संध्या भाभी अब लॉजिकल सोच रही थीं।
और मैं जोर से हंसा,
" भैया तो घर में घुसते ही सीधे ऊपर अपने कमरे में और भाभी का पांच मिनट में बुलावा आ जाता है। एक बार किसी ने मेरी शादी के बारे में बोला भी तो भैया ने तुरंत मेरे और भाभी के ऊपर टाल दिया, की आनंद और उनकी भाभी जाने, तो भाभी बोलीं की देवरानी मेरी आएगी की इसकी,... तो आनंद से क्या मतलब?"
संध्या भाभी ने बात मुझे आगे नहीं खींचने दिया और बोलीं की इसका मतलब की बिन्नो दी ही फैसला करेंगी, और देखो, कौन औरत अपनी छोटी बहन को देवरानी नहीं बनाना चाहती, और गुड्डी तो उनकी सगी छोटी बहन से बढ़ के, लेकिन बोलना तुझे ही पडेगा उनसे, बिना तेरे कहे वो कुछ करेंगी भी नहीं और अबकी जब जा रहे हो तो कुछ भी करके होली के पहले उन्हें बोल देना।
लेकिन तुझे ये बात भी सोचनी चाहिए की गुड्डी के यहाँ कौन फैसला करेगा और किस तरह से करेगा।
बात तो संध्या भाभी की एकदम सही थी, ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। लेकिन संध्या भाभी ने ही हल भी बताया।
Are sari imtihaan pas karenge hamare anand babu. Ye charo khubiya hai bhi to inke pas. Nokri bhi hai sarkari vali. To khuta bhi inka tagda hai. Vess to hai bhi ek number ke chudakad. Bas sharmate hai thoda. Joru ke gulam bhi tagde vale. Guddi kuchh bole to vo na mane. Ho hi nahi sakta. Aur bina guddi ke vo kisi par najar na dale. Aur rahi bat inke mayke valo ki. To unki maa bahen chudva lo. Koi na nahi hai. Yakin na ho to banaras bulva lena. Rocky ko chadhva lena. Koi mana nahi hai inki.गुड्डी की मम्मी और गुड्डी के लिए शर्तें
" देखो गुड्डी के यहाँ बिना गुड्डी की मम्मी के कहे तो पत्ता भी नहीं हिलता, सब फैसला वही लेती हैं तो उनका मानना जरूरी है और उन्होंने पहले से दूबे भाभी को बोला था की वो गुड्डी के मरद में चार बात देखेंगी तभी हाँ करेगीं । हम लोगो की आपस की बात तुझे बताना तो नहीं चाहिए लेकिन तुम्हारी इतनी खराब हालत है तो बोल देती हूँ।"
जैसे किस को खजाने का नक्शा मिल जाए मैं इस तरह से गौर से संध्या भाभी की बात सुन रहा था, लेकिन मैं जानता था की ज्यादातर माँ अपनी बेटियों के लिए कैसा लड़का खोजती हैं, या मैं सोचता था की मैं जानता हूँ, और मैंने बोलना शुरू कर दिया,
" पहली बात तो नौकरी, वो भी सरकारी, ....तो मुझे नौकरी मिल भी गयी है, ट्रेनिंग में भी तनख्वाह पूरी मिलती है और वो ट्रेनिंग भी बस दो चार महीने में ख़तम होने वाली है तो अगर नौकरी तो
लेकिन मैं अपनी नौकरी की और यशोगाथा गाता उसके पहले भौजी ने पतंग की डोर काट दी
" नहीं नहीं नौकरी नहीं, ....नौकरी भी है लेकिन वो सबसे बाद में . गुड्डी की मम्मी का मानना है की आज कल तो लड़कियां भी पढ़ लिख के कमा लेती हैं और मरद है तो कुछ कमायेगा ही, असली बात कुछ और है लेकिन स्साले घबड़ा मत उसमे तुझे १०० में ११० नंबर मिलेंगे "
हँसते हुए वो बोलीं और कस के मेरे तन्नाए मुन्ना को पकड़ के मुठियाने लगीं, और बोलीं
" गुड्डी की मम्मी का मानना है की ये हथोड़ा जबरदस्त न हो तो भी ठीक ठाक होना चाहिए, ५ इंच वाला नहीं चलेगा। तो तेरा तो जबरदस्त ही नहीं सुपर जबरदस्त है, जितना लोग तेल लगा के मुठिया के बहुत जोर लगा के खड़ा करते हैं स्साले उतना तो तेरा सोता रहता है तब होता है, और खड़ा होने में भी टाइम नहीं लगाता फिर आज सबने देख भी लिया, नाप जोख भी कर लिया,
और दूबे भाभी भी यही मानती है की लड़की जब तक ढंग से चोदी न जाए, न उसे ठीक से नींद आती है न सुख मिलता है। तो जो तुम ये बोलते हो न की तुम्हे तो गुड्डी को सिर्फ देखना है, साथ रहने से ही काम हो जाएगा तो एकदम नहीं होगा। कल ही देखना तेरी होने वाली सास का फोन आएगा सुबह अपनी बेटी के पास और सिर्फ एक चीज पूछेंगी, ' चुदी की नहीं' , इसलिए सिर्फ पेलने से नहीं, बल्कि हचक हचक के पेलने से काम बनेगा सुबह गुड्डी की आवाज से उसकी महतारी को लगे की,... बेटी जम के चुदी है "
" एकदम भौजी " मैंने प्वाइंट नोट कर लिया और मन तो मेरा भी यही कर रहा था, अब चोर सिपाही बहुत होगया अब खेल खिलाडी का होना चाहिए।
" और सिर्फ लम्बा मोटा ही नहीं नंबरी चुदक्क्ड़ होना चाहिए, उसमें थोड़ा तुममे झिझक है, शरमाते बहुत हो लेकिन बनारस ससुराल होगी तो ससुराल वालियां सब ठीक कर देंगी। "
संध्या भाभी ने प्यार से मूसल को दुलराते हुए कहा और जोड़ा
"और गुड्डी के साथ तो एकदम खुल के बोला करो, लंड, बुर. चुदाई उसके बिना मजा नहीं आता, समझे बुद्धू राम। "
और संध्या भाभी ने एक खूब प्यार भरी चुम्मी ले ली और मैं शर्मा गया।
" और दूसरी बात भौजी " मुझे कुछ भी हो इस चार की कसौटी पे पूरी उतरना था।
" दूसरी बात की चिंता न करो हम सबने देख लिए और वो आएँगी कानपुर से तो उन्हें पता भी चल जायेगी। "संध्या भाभी मुस्कराते बोली और फिर उन्हें लगा अभी भी मैं दुविधा में हूँ तो उन्होंने वो प्वाइंट भी बता दिया ,
' केयरिंग, ख्याल रखने वाला, केतना भी चोदू क्यों न हो और गर बीबी का ख्याल न करे तो फिर जिंदगी बेकार लड़की की। लेकिन हम सब ने देखा, मस्ती तुम मेरे साथ कर रहे थे , रीत के साथ लेकिन निगाह बार बार गुड्डी की ओर ही थी , और वो मुस्करा के और उकसा रही थी। तो बिना कहे कोई भी कह देगा गुड्डी को तुझसे बात मनवानी नहीं पड़ेगी तुम खुद उसके पीछे पीछे,..."
लेकिन ये बात मुझे जंची नहीं मैंने बोल दिया,
'लेकिन उसमें मेरी क्या गलती, गुड्डी है ही ऐसी, ....उसे देखने के बाद मैं सोच नहीं सकता,... मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है बस जो वो कहे। "
संध्या भौजी खिलखिला के हंसी और मेरे सीधे होंठों पे चुम्मी ले ली और बोली, "किस्मत अच्छी है उसकी भी तेरी भी , लेकिन एक बाद उसकी मम्मी की मैं भी मानती हूँ,.... ख्याल रखने का मतलब ये नहीं की तुम उसी से बंधे रहो, ...जिस से मन करे उसको चोदो, लेकिन धोखा नहीं देना चाहिए. उसकी स्साले मादरचोद तेरी औकात नहीं है और वो दस बार किसी लड़की को बोलेगी तब तुम उसकी ओर , ....इसलिए इस पर्चे में भी पूरे नम्बर मिलेंगे।
और तीसरा और चौथा, मैं जल्दी से जल्दी ये इम्तहान पास करना चाहता था, तो मैंने संध्या भाभी को आगे बढ़ाते हुए पूछा,
गुड्डी की मम्मी की शर्ते मालूम होने का मतलब परचा आउट होना है। और गुड्डी को पाने के लिए तो मैं कुछ भी करना चाहता था।
संध्या भौजी भी, जिसे देवर के मन की बात मालुम हो जाएँ तो और उसे तंग करती हैं बस उसी तरह से मुझे आँखों से चिढ़ा रही थीं और मुझे चार बार बोलना पड़ा, भौजी प्लीज, बोलिये ना।
" देख यार, मान लो मरद मस्त चुदककड़ हो, तेरी तरह से बुद्धू न हो, बीबी का भी ख्याल करता हो, एकदम असली तेरी तरह का जोरू का गुलाम, लेकिन ससुराल में सब एक से एक कंटाइन,.... तो का जिंदगी होगी बेचारी की, मर्द तो रात को आएगा, टांग उठाएगा, धँसायेगा, बीबी ज्यादा बोलेगी, उसकी माँ बहन भौजाई की बुराई करेगी तो टाल देगा, बोलेगा, ' सुबह यार आफिस जाना,... यही ऑफिस में दिन भर बॉस किच किच, सोने दो '
और उसकी बीबी को तो दिन भर सास जेठानी ननद को झेलना पडेगा न।
ननद तो चलो पैदाशी छिनार कुछ दिन बाद ससुराल चली जायेगी या अपने यारों में उलझी रहेगी, लेकिन असली खेल तो सास, जेठानी, तो उनका कहना है की लड़के के साथ उसकी माँ और भौजाई को भी ,.... कोई पहले की जान पहचान वाले लोग हों तो बहुत अच्छा ,"
मैंने चैन की साँस ली और झट से बोला, लेकिन भाभी तो हमारी,
और संध्या भाभी बोलीं, ' बिन्नो दी की तो बात ही मत करना, हम सब की आँख की पुतरी है लेकिन उनहुँ से ज्यादा दोस्ती अब गुड्डी की ममी की तोहरी महतारी से, यह सावन ने जो महीने भर थीं उनके साथ, "
मुझे गुड्डी की मम्मी, मतलब मम्मी की बात याद आ गयी, क्या क्या गन्दी गन्दी गालियां और बातें, और सावन के बारे, हाँ ये बात सही है की सावन भर वो यहीं थीं, मैं ही छोड़ के गया था, इसी बहाने गुड्डी से मिलना भी हो गया और मैंने भाभी से कह दिया ,
" अरे भौजी, वो तो पता नहीं, मम्मी अइसन किस्सा बना बना के कह रही थी बनारस के पंडा, १०० से ऊपर "
" एकदम सही कह रहे हो एकदम बढ़ा चढ़ा के बोलती हैं कभी कभी, " संध्या भाभी हँसते बोलीं,
फिर जोड़ा, ' १०० से ऊपर तो कतई नहीं पण्डे, मैंने ही तो लिस्ट बनायीं थी, कुल ५१ थे शुभ संख्या। सब का फोन नंबर दिन मेरी डायरी में , अरे जेवन कराने की बात थी, सावन भर पंडो को, लेकिन गुड्डी की मम्मी बोलीं जेवन के बाद नेग भी तो देने होता है गोड़ छू के, और यहाँ बीस आना से काम नहीं चलेगा जेवन के बाद जोबन क दान और तीनो गोड़ छूना होगा तो बस, बनारस के पण्डे सब नंबरी चोदू,, ....'
तो गुड्डी की मम्मी से और मुझसे उनकी पक्की दोस्ती हो गयी कई बार तो साथ साथ, घाट पे , नदी नहाते समय भी खूब मस्ती, बस,
तो ये सवाल भी तेरे पक्ष में जाएगा और चौथी बात नौकरी वाली, सरकारी तो वो तुम्हारी है ही। "
नौकरी की बात आते ही मैंने प्लस प्वाइंट को लीवरेज किया, " एकदम भाभी और जल्दी ही पोस्टिंग "
पर भौजी ने उस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और लेकिन कह के रुक गयी और मेरी साँस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे
Bat bhi sahi hai. Guddi ke papa bahar to damad to esa dhudhna hi padega na. Vese ye starting vala pura kissa padha tha. Vo station chhodne vala jab guddi ko leke gaye the ye. Amezing pal tha.मम्मी
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पर भौजी ने उस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और लेकिन कह के रुक गयी और मेरी साँस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे
और मैं जानता था भौजी खुद ही राज खोलेंगी और लम्बी सांस लेके वो बोलीं,
" देखो इत्ते दिन में तुम समझ गए हो गुड्डी के पापा को, ...महीने में 20 दिन तो बाहर रहते हैं और जब रहते भी है तो कभी काम तो कभी दोस्ती यारी, "
संध्या भाभी चुप हो गयीं, और मैं भी समझ गया,
कल ही तो की बात है, जब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहने पहले तो वो सीधे स्टेशन पर ही पहुंचे और फिर जब बाद में ट्रेन चलने के घण्टे दो घंटे बाद में गुड्डी ने मम्मी से बात कराई तो वो अपनी बर्थ श्वेता के लिए छोड़ के,.... दूसरे डिब्बे में किसी अपने दोस्त के पास, ...और उनके नहीं रहने पे मम्मी और दोनों बहने जयादा खुले खुले,
" और कुछ नहीं, कुछ उनकी नौकरी है ऐसी आधे टाइम पे तो टूर पे और फिर काम धंधे का प्रेशर, और दोस्ती यारी भी ज्यादा है, इसलिए "
संध्या भाभी ने समझाया और बात आगे बढ़ाई,
" तो गुड्डी क मम्मी अस सोचती हैं की जो उनकी सबसे बड़ी बेटी का, ....मतलब बड़ा दामाद हो, एकदम हंसमुख, खुला खुला और सबसे बढ़ के उनका भी हाथ बटावे, और दोनों छोटी बहनों का भी, मतलब उन्हें बच्ची न माने,... साली माने, वो तो अभी से दोनों को चिढ़ाती हैं, 'ज्यादा दिन इन्तजार नहीं करना पड़ेगा तुम दोनों का, गुड्डी का बियाह मैं जल्दिये करा दूंगी, फिर वो तुम दोनों की भी झिल्ली फाड़ेगा'' लेकिन वो दोनों भी इतनी खुली, मेरे सामने ही, वो चिढ़ा रही थीं तो मंझली जो बहुत कम बोलती है, बोली, ' मैं तो दीदी के पहले कोहबर में ही नंबर लगवा लूंगी, ' तो छुटकी तो हर बात में उससे आगे रहने की होड़ में, चढ़ के गुड्डी से बोली, " कोहबर तक मैं इन्तजार न करने वाली, सगाई में ही, दीदी उनको ऊँगली में अंगूठी पहनाएंगी तो मैंने अपनी गुलाबी अंगूठी, ' और उसकी बात काट के उसकी मम्मी बोलीं, ' तिसरकी टांग में ' और सब एकदम खुल के '
और मुझे गलती का अहसास हुआ.
साल में एक दो चक्कर तो औरंगाबाद का, गुड्डी के घर का, लग ही जाता था, लेकिन वहां पहुँचते ही गुड्डी के अलावा मुझे कुछ दिखता नहीं था, वो पास में न भी हो, उसकी बहने मुझसे बात कर रही हों लेकिन ध्यान मेरा वहीँ,गुड्डी के पास, में एकदम गुड्डी की दोनों छोटी बहनों को ऐसे नजअंदाज करता था जैसे वो वहां हों ही नहीं। लेकिन कल से दो तीन बार बात हो गयी थी फोन से, तो मैं मुस्कराते हुए बोला,
" फोन से बात हुयी थी उन लोगों से कल ट्रेन में थी वो और आज कानपुर पहुँचने पे "
लेकिन संध्या भाभी सख्त एक्जामिनर थीं, तुरंत पूछ लिया, ' फोन किसने किया था'
' गुड्डी ने , फिर उसने मुझसे मम्मी से बात कराई, फोन पे छुटकी और श्वेता भी थीं। "
मैंने बोला लेकिन मेरे जवाब के पूरा होते होते मुझे अहसास हो गया की गलती कहाँ हुयी और भौजी ने तुरंत कान पकड़ लिया,
" तुम्हारे पास फोन नहीं है क्या, तुम नहीं कर सकते थे ? "
मैंने झट कान पकड़ लिया, मेरा चेहरा भी उतर गया और भौजी ने मामला हल्का करना लिए के मुझे गरियाना शुरू कर दिया,
" फोन अपनी महतारी के भोसड़े में तो नहीं घुसेड़ दिया था,... की अपनी उस एलवल वाली बहिनिया के लिए ग्राहकों की एडवांस बुकिंग कर रहे थे, वैसे तेरी महतारी के ग्राहक भी बहुत है इस बनारस में, जो जो पण्डे सावन में उतरे थे सब गुणगान कर रहे हैं "
मैंने बोल भी दिया और सोच भी लिया आज घर पहुँच के नहीं तो कल सुबह पक्का लेकिन भौजी ने दूसरी गलती का भी अहसास दिला दिया
" बात सिर्फ गुड्डी की महतारी से ही मत करना, .....उनकी दोनों बेटियों से भी "
और मैंने मूढ़मति की तरह सर हिलाया,
सच में गलती यही थी की मेरा तो बस अर्जुन की तरह ध्यान चिड़िया की आँख पे, गुड्डी पे ही और ये बात भी थी की दोनों को मैं एकदम छोटी समझता था। रिक्शे पे भी गुड्डी ने जानबूझ के मुझे अपनी दोनों बहनों के साथ और मुझे अंगूठा दिखा के मम्मी के साथ, और छुटकी रिक्शे पे भी जिद कर रही थी, मेरी गोद में बैठने की लेकिन मैंने हड़का लिया, गिर जाओगी और उसने जो डबल मीनिंग डायलॉग धीरे से बोला था वो मुझे अब समझ में आया,
" मैं तो नहीं गिरूँगी, लेकिन आप तो नहीं गिर जाओगे ? '।
मेरा ध्यान तो अगले रिक्शे पे बैठी गुड्डी पे था, जो शलवार कुर्ती में बहुत हॉट लग रही थी। और स्टेशन में भी उन दोनों को मैंने बच्चो वाली कॉमिक और चॉकलेट दिलवाई, तो छुटकी बोली,
' गुड्डी दी को कौन सी चॉकलेट खिलाते हैं हमें भी वही चाहिए '
लेकिन किसी तरह दोनों को डिब्बे में चढ़ाकर मैं अपनी सारंग नयनी का दर्शन लाभ के चक्कर में ,
फिर मुझे चंदा भाभी की बात याद आयी,... जब वो अपनी होली में पहली चुदाई जो उनकी पड़ोस के एक जीजा ने की थी, उसका जिक्र करते हुए बताया था की वो छुटकी की ही उम्र की थीं फिर आगे ये भी जोड़ा की पिछले साल होली में उन्होंने छुटकी की बिल में खूब ऊँगली की थी, बहुत मस्ती की और उसकी चिड़िया एकदम उड़ने को तैयार है,
मैंने संध्या भाभी से सिर्फ ये कहा, " भौजी चंदा भाभी कह रही थीं की पिछले साल होली में उन्होंने छुटकी के साथ,.... "
भौजी के गाल गुलाबी नैन शराबी हो गए उस होली को याद कर के, बोलीं
"सच में बहुत मजा आया था, छुटकी, मैं और श्वेता, और गुड्डी की मम्मी, चंदा भाभी, दूबे भाभी, फिर कुछ सोच के वो मुस्करायी और कस के मुंझे डांटा
" अच्छा तो तू सोचता है की कुँवारी लड़की की ऊँगली कैसे, ....कहीं झिल्ली फटफटा तो नहीं जायेगी, एकदम नहीं। तुझे मालूम भी है की झिल्ली होती कहाँ है और कैसी होती है। स्साले, तीन साल से लौंडिया पटी है और अब तक पेली नहीं, ......तेरा ऐसा बुरबक, ये तो अच्छा है की गुड्डी है,... दूसरी कोई होती तो कोई और ढूंढ लेती।
पहली बात तो झिल्ली थोड़ा नीचे होती है, अंदर, तो एक पोर, दो पोर ऊँगली करने से फटेगी नहीं।
दूसरी बात, झिल्ली बहुत इलास्टिक होती है, एकदम लचीली, तो ऊँगली का जरा सा जोर पड़ भी गया तो नीचे धंस जाती है
और तीसरे जो लड़किया एक दूसरे को या खुद ऊँगली कर के झाड़ती हैं न वो सबसे पहले तो दोनों फांको को आपस में रगड़ के, या हथेली से रद्द के और ऊँगली डाला भी तो लंड की तरह धक्के नहीं मारती, जैसे कान खुजाते हैं बस वैसे ही, थोड़ा सा मोड़ के अंदर घुसेड़ के और एक बार बुर की अंदर की दीवार पे ऊँगली रगड़ती हैं न तो बेचारी नहीं लड़की का तो पानी निकलना तय है एकदम। "
और फिर संध्या भाभी, टाइम मशीन पर बैठ कर पिछले साल की होली में पहुँच गयीं।
और बात और किसकी, होली की और रीत की । बोलीं,
" इस साल होली में बहुत मस्ती हुयी, रीत तो एकदम उधरा गयी थी, तुम्हारे और गुड्डी के चक्कर में। नहीं तो, लेकिन पिछले साल भी, बहुत दिन बाद पहली बार वो होली में निकली, ....निकली क्या गुड्डी खींच के ले आयी और उसके बाद उन दोनों ने क्या धमाल मचाया, लेकिन आज की तरह नहीं, बस घण्टे दो घंटे, अगले दिन दोनों का ही परचा था, गुड्डी का दर्जा दस का मैथ्स का और रीत का बारहवीं का अंग्रेजी का, इसलिए, और मंझली की भी तबियत खराब थी। "
" क्या हो गया था मंझली को,"? मैंने पूछा.
मंझली मतलब, गुड्डी की मंझली बहन, जो उस समय नौवीं में थी।
संध्या भाभी जोर से खिलखिलाई,
" होगा क्या, स्कूल में जबरदस्त होली हुयी, घंटों
और कोई गड्ढा था उसमे पानी भरा था तो मंझली ने कुछ लड़कियों को उसमे धकेला तो चार पांच लड़कियों ने पकड़ के उसे भी, और सब जगह, अच्छी तरह से, बस भीग गयी थी तो सर्दी जुकाम और बुखार, तो एक दो घण्टे के बाद रीत और गुड्डी एक ही कमरे में बंद कर के, पढाई से ज्यादा ये डर था कहीं भीग गयीं तो इम्तहान, और मंझली भी उसी कमरे में और कमरा हम लोगो ने बाहर से भी बंद कर दिया था।
" तो फिर होली का, ....रीत गुड्डी और मंझली तो, " मैं अपनी आशंका ठीक से उजागर भी करता फिर उनका खिलखिलाना शुरू हो गया और कस के उन्होंने मुझे पकड़ के चूम लिया और बोलीं,
" स्साले, बहन महतारी के भंडुए, अभी तूने देखा ही क्या है, आज जितना चंदा और दूबे भाभी रगड़ाई कर रही थीं उससे कही ज्यादा गुड्डी की मम्मी अकेले,.... और जो तेरा पिछवाड़ा बच गया न आज, अगर गुड्डी की मम्मी होतीं न तो सीधे मुट्ठी जाती अंदर, और तेरे ऊपर चढ़ के रेप करतीं वो अलग। होली के दिन एकदम से, न रिश्ता न उमर बस मस्ती, ...."
मेरी आँखों के सामने उनकी तस्वीर आ गयी भाभी की शादी में, अकेला छोटा भाई था, अभी इंटर ही पास किया था, हाँ JEE में हो गया था,
और औरतों में घिरा, मंडप में ,कप्तान गुड्डी की मम्मी ही थीं और गुड्डी भी रस ले रही थी, मुझे आँखों से चिढ़ा रही थी,
गुड्डी की मम्मी ने अपना आँचल भी नहीं ठीक किया, बस एकदम सट के, उन्हें अपने गद्दर ब्लाउज से झांकते जोबन का मेरे ऊपर असर मालूम पड़ गया था। दोनों जोबन एकदम मेरे सीने से सटा कर, अपनी बड़ी सी अठन्नी साइज की लाल लाल टिकुली, अपने चौड़े माथे से निकाल के मेरे माथे पे चिपका दीं और वार्निंग भी दे दी ,
" खबरदार, अपनी महतारी के भतार,.... अगर इसे उतारा कल बिदाई के पहले, तोहरे सुहाग क निशानी है । "
और जोबन से खूब जोरदार धक्का दिया और धीरे से बोलीं,
" अरे मालूम है मुझे इसका असर, बहुत टनटना रहा है न। पहला पानी इसी में दबा के रगड़ रगड़ के निकालूंगी, फिर अंजुरी में भर के तोहीं को पिलाऊंगी, ऐसी गरमी लगेगी, सीधे अपनी महतारी के भोंसडे में जाकर डुबकी मारोगे तभी गरमी शांत होगी। "
Man gae komalji. Jo kanya ras nari ras ka swad muje aap ke sabdo me aata hai. Vo aur kahi nahi aata. Upar se jab aap kishori ke sath kheli khai ko jod deti ho. Vo to ek alag hi feel hota hai.फागुन के दिन चार भाग २२
मस्ती संध्या भाभी संग
तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।
लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए। और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,
" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।
और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,
एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था
और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,
साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,
और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस
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संध्या भौजी बाथरूम के फर्श पर थीं।
मैंने इधर उधर देखा, ढेर सारे भीगे कपडे, रंगों से लथपथ, उनके भी दूबे भाभी के भी, बस उन्ही को मोड़ तोड़ के, दोनों हाथो से भौजी के चूतड़ को उठा के सीधे उस के नीचे, भौजी के बड़े बड़े रसीले चूतड़ अब कम से कम कम एक बित्ता फर्श से उठा था और उनकी चाशनी से भीगी, रस की रानी साफ़ साफ़ दिख रही थ।
जाँघे भी उन्होंने खुद फैला दी और अपनी लम्बी गोरी टाँगे भी मेरे कंधे पे,
उन्हें भले जल्दी हो मुझे तो एकदम नहीं थी , अबकी खूब रस ले ले के लेना था उन्हें।
और जो उन्होंने सिखाया था, कैसे गुड्डी को खूब गरम करके लेना है, कल चंदा ने भाभी की पाठशाला में जो पढ़ाई हुयी थी, वो सब उनके ऊपर, कस कस के मैंने एक हाथ से अपने मोटे मस्त मूसल को उनकी भीगी गुलाबो के फांको के ऊपर रगड़ना शुरू किया, और दूसरा हाथ कस के उनकी कमर को दबोचे था।
भौजी ने मुझे जोर से घूरा और मैं अपनी गलती समझ गया। झट से बगल में रखी सरसो के तेल की शीशी खोल के एक ढक्क्न तेल पहले हथेली पे फिर उसी हथेली को बार बार अपने खूंटे पे, जैसे कल रात में चंदा भाभी कर रही थीं, और आज थोड़ी देर पहले ही संध्या भौजी ने किया था, और अब संध्या भौजी देख के मुस्करा रहीं थी की ये बुद्धू सीख तो रहा है, भले ही धीरे धीरे। और फिर मैंने खुली शीशी से ही थोड़ा सा तेल अपने मोठे बौराये सुपाड़े पे,
और संध्या भौजी मुझे चिढ़ाते बोलीं,
" अपने बूआ, चाची, मौसी और महतारी के भोंसडे में भी पेलना तो ऐसे ही कडुवा तेल लगा के, सटासट जाएगा, छिनरों के भोंसडे में, "
कभी कभी गाली भी अच्छी लगती है और जब मीठे मीठे रिश्ते वाली हो भौजी या सलहज हो और वो संध्या भौजी ऐसी मीठी भी हो नमकीन भी,
उन्हें देख के मुस्कराते हुए उनकी भरी बहरी पकड़ी ऐसी फूली चुनमुनिया की दोनों फांको को मैंने बहुत प्यार से धीरे धीरे अलग किया, हलकी सी प्यार भरी चपत लगाई, और उस लाल गुलाबी सुरंग में,
टप,टप,टप, टप,
कडुवा तेल की छोटी मोटी बूंदे, लुढ़कती हुयी, सरकती हुयी, भौजी की रसीली बुरिया में जा रही थीं,
कडुवा तेल की झार पूरे बाथरूम में फ़ैल रही थी।
कडुवा तेल भौजी आपन बुर चियारे घोंट रही थीं।
पूरे ढक्क्न भर कडुवा तेल मैंने भौजी की चुनमुनिया को पिलाया,
आखिर सब धक्के तो उसी बेचारी को झेलने थे और तेल घुसने के बाद भी उनकी बुलबुल की चोंच मैं फैलाये रहा। बहुत प्यारी प्यारी लग रही थी। फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के मैंने कस के जकड़ लिया जिससे तेल की एक एक बूँद भौजी की बुरिया की दीवालों में आराम से रिस जाए और फिर हथेली से कुछ देर तक उसे रगड़ता रहा।
भौजी बहुत प्यार से मुझे देख रही थीं।
और हलके से फिर गुरु ज्ञान दिया, ऐसे करोगे तो चाहे गुड्डी की छुटकी बहिनिया हो या गुंजा सब रट चिल्लाते घोंट लेंगी ये गदहा क लौंड़ा ।
" उह्ह्ह, उह्ह्ह, ओह्ह " भौजी सिसक रही थी, देह उनकी कसक मसक रही थी, और कुछ देर बाद में जब उनसे नहीं रह गया तो खुद बोलीं,
" कर ना, करो न प्लीज, ओह्ह्ह उह्ह्ह "
कस कस के सुपाड़ा उनकी गीली बुर के होंठों पे रगड़ते मैंने चिढाया, " का करूँ भौजी "
अब उनसे नहीं रहा गया और अपने बनारसी रूप में आ गयीं,
" स्साले जो अपनी बहन महतारी के साथ करते हो, चाची, मौसी और बूआ के साथ करते हो, पेल साले, पेल पूरा "
और बहन महतारी की गारी सुनने के बाद कौन रुक सकता था तो मैंने पेल दिया, पूरी ताकत से, कमर का जोर लगा के और
गप्पांक
सुपाड़ा अंदर, बुर खूब अच्छी तरह से फैली और अब भौजी की चीख निकल गयी,
यही तो मैं चाहता था लेकिन अब मैं रुक गया।
अब मेरे होंठ भी मैदान में आ गए, कभी भौजी की एक गद्दर चूँची काट लेता तो कभी निपल चूस लेता,
हाथ भी उनकी क्लिट को हलके से छू के दूर हो जाता और फिर मैंने भौजी से पूछा,
" भौजी मजा आरहा है "
" बहुत रज्जा "
कहकर भौजी ने कस के नीचे से अपने चूतड़ उछाले, उनसे रहा नहीं जा रहा था और वो सीधे चौथे गेयर में जाना चाहती थीं लेकिन मैं उनको थोड़ा और तड़पना चाहता था, सब कुछ कबुलवाना चाहता था उन्ही के मुंह से, और मैंने धक्के का जवाब बजाय धक्के के देने के कस के उनके गाल को फिर से, जहाँ पहले काटा था, वहीँ काट लिया और भौजी चीख पड़ीं,