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भाग ३१ ---चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और गुड्डी के आनंद बाबू पृष्ठ ३५४
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बहुत ही कामुक गरमागरम और जबरदस्त अपडेट हैमस्ती संध्या भौजी की
लेकिन मैंने तो उसी दिन सपना देख लिया और कुछ भी करने को तैयार था उसे पूरा करने के लिए, तो मैंने संध्या भौजी से सीरियसली बोला
" भौजी, कुछ भी, सब मंजूर लेकिन अब तो ससुराल यहीं होगी "
और अपनी बात पे मुहर लगाते मैंने मूसल को करीब बाहर तक खिंचा और पूरी ताकत से कामदेव के तीर की तरह छोड़ा, और वो वज्र सीधे संध्या भौजी बच्चेदानी पे, लोहार के घन की तरह लगा।
उईईई , उईईई संध्या भौजी पहले दर्द से चीखीं, फिर मजे से, आँखे उनकी उलटी हो गयी देह कांपने लगी, लेकिन मैं अपना बित्ते भर का लंड जड़ तक ठेले रहा और कभी मेरे होंठ ने उनके इधर उधर चुम्मा लिया तो कभी उँगलियाँ सहलाती रहीं
भाभी झड़ती रहीं।
मैं अबतक सीख गया था लड़की को एक बार किसी तरह झाड़ दो तो उसके बाद जो वो गर्माएगी, तो सब लाज छोड़ के मस्ती में चुदाई में साथ देगी,
और मैं कस के उन्हें दबोचे रहा, चूमता रहा, सहलाता रहा और एक बार धीरे धीरे संध्या भाभी जब नार्मल हो रही थीं तो बहुत धीरे धीरे मैंने भाला बाहर निकालना शुरू किया, भौजी को लगा की चुदाई का पार्ट २ शुरू होगा, लेकिन मेरे मन तो कुछ और था, मैंने पूरा ही मूसल बाहर निकाल लिया ।
" हे क्या करते हो, करो न "
भौजी ने हलके से गुहार लगाई लेकिन मैं अब उनकी बात नहीं सुनने वाला था, कस के मैंने उनकी जाँघे फैलाई।
ताज़ी ताज़ी झड़ी बुर का स्वाद कुछ और ही होता, जब तक भाभी समझे मेरा मुंह उस रसीली के रसीले निचले काम रस से भीगे होंठों पे चिपक गया और बिना रुके मैंने कस कस के चूसना शुरू कर दिया।
जीभ मेरी भौजी की बिल के अंदर और होंठों से दोनों फांके को कस के भींच रखा था।
चूसने के साथ जीभ , क्या कोई औजार पेलता होगा, कभी अंदर बाहर, कभी गोल गोल, मुझे भी मालूम था की सभी नर्व एंडिंग्स योनि के शुरू में दो तीन इंच में अंदरूनी दीवालों, पे तो मेरी जीभ कभी उन्हें सहलाती तो कभी दरेरती, और भौजी मस्ती में चूतड़ पटकती, कभी छटपटाती लेकिन मैंने उनके दोनों कलाइयों को कस के पकड़ रखा था।
कुछ देर में जब भौजी का छटपटाना थोड़ा कम हुआ तो मैंने बाएं हाथ से भौजी की क्लिट पे रगड़ाई शुरू कर दी। अब एक बार से फिर से उनकी हालत और खराब
" छोड़ साले छोड़, ओह्ह नहीं नहीं " भौजी छटपटा रही थीं,
और मैंने छोड़ दिया, उनकी कलाई लेकिन वो उँगलियाँ अब एक साथ, एक दो नहीं सीधे पूरी तीन उनकी भीगी गीली बुर में
और होंठ से कस कस के क्लिट की चुसाई, दूसरे हाथ से भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया रगड़ाई
भौजी कस कस के चूतड़ उछाल रही थीं, उनकी बुर मेरी अंदर घुसी उँगलियों को निचोड़ रही थी, पांच सात मिनट में जब उनकी हालत खराब हो गयी और मेरे लिए भी अपने को रोक करना मुश्किल था मैंने एक बार फिर से भौजी की दोनों टांगों को अपने कंधे पे, बगल में रखे सरसों के तेल की बोतल से तेल अच्छी तरह सुपाड़े पे लिथड़ा, बुर की दोनों फांको को फैलाया और पूरी ताकत से वो जोर का धक्का मारा
भौजी जोर से चीखीं,
" उईईई उईईईईई ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्ह नही उईईईईई "
चीख इतनी जोर थी की पक्का पहली मंजिल पे गुड्डी को भी सुनाई पड़ गयी होगी, लेकिन बिना रुके मैंने थोड़ा सा पीछे खींच के जो धक्का मारा तो अबकी सुपाड़े का हथोड़ा सीधे भौजी की बच्चेदानी पे
" उईईई उईईई नहीं नहीं , निकाल साले, बस एक मिनट उफ़ दर्द हो रहा है नहीं बस नहीं, उईईईईई "
ये चीख पहली बार से भी तेज थी। लेकिन बिना रुके अब मैंने ताबतोड़ पेलाई शुरू कर दी, और कुछ देर में भाभी भी मेरा साथ दे रही थी चार पांच धक्को के बाद मैंने रुकता तो नीचे से उनके धक्के चालू हो जाते।
१२ -१५ की नानस्टाप तूफानी चुदाई के बाद मैं झड़ने के कगार पर था,
संध्या भौजी थक कर थेथर हो रही थीं, फागुन के महीने में भी वो जेठ बैशाख की तरह पसीने में डूबी थीं, पर उनकी मस्ती में कोई कमी नहीं आ रही थी। हर धक्के का जम के मजा भी ले रही थी, चूतड़ उछाल उछाल के अपनी चूँचियों को मेरे सीने पे रगड़ रगड़ के मेरी भी हालत ख़राब कर रही थी। उन्हें मैंने एक बार झाड़ दिया था, इसलिए उन्हें अभी टाइम तो लगाना था ही , लेकिन इस जबरदस्त और नॉन स्टाप पिलाई से अब हम दोनों एक बार कगार पे पहुँच रहे थे।
लेकिन कल रात की चंदा भाभी की पाठशाला और अभी संध्या भाभी की क्लास के बाद अब मैं भी इतना नौसिखिया नहीं था। मस्तराम जी की कितनी किताबे कंठस्थ थीं, कोका पंडित के तो पन्ने तक याद पर हाँ प्रैक्टिस में एकदम कोरा, फिर झिझक, पर कल रात चंदा भाभी ने जिस तरह मेरी नथ उतारी, अब मैं एकदम
तो बस मैंने पिस्टन बाहर निकाल लिया और संध्या भाभी एकदम से तड़प उठीं, लेकिन मैं उन्हें तड़पाना ही चाहता था, अभी तो मुझे उनकी बड़ी उम्र की एम् आई एल ऍफ़ टाइप ननद और गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की समौरिया उनकी ननद की बेटी, जो अभी कोरी थी को भी पेलना था। और बिना भौजी को तड़पाये, तो बस मैंने मूसल बाहर निकाल लिया और संध्या भौजी की गारियाँ चालू
" स्साले क्यों निकाल लिया, तेरी महतारी भी तो नहीं है यहाँ जिसके भोंसडे में आग लगी हो तेरा लंड घोंटने के लिए, पेल नहीं तो तो, "
यही सब तो मैं सुनना चाहता था लेकिन कल मैंने चंदा भौजी से सीख लिया था की मरद के तरकश में बहुत से तीर होते हैं मोटे मूसल के साथ साथ, तो बस अब एक बार फिर से संध्या भौजी की टाँगे उठी, जाँघे फैली और पहले तो मैंने अंगूठे से कस के उनकी फुदकती फड़फड़ाती क्लिट को रगड़ा और बेचारी भौजी पगला गयीं, लेकिन अभी तो शुरुआत थी। ऊँगली जगह होंठों ने लिया, फुद्दी के होंठों को मेरे होंठ कस कस के चूसने चाटने लगे।
ऐसी मीठी चाशनी भाभी की बिल से निकल रही थी, और थोड़ी देर में होंठों का साथ देने के लिए उँगलियाँ भी कूद पड़ी।
होंठ चाट चूस रहे थे और उंगलिया एक नहीं दो एक साथ रस के कुंवे में डुबकी लगा रही थीं और भौजी मारे मस्ती के कभी चूतड़ पटकती तो कभी गरियाती,
चुदती औरत के मुंह से गालियां बहुत अच्छी लगती हैं। और बनारस वालियों की गालियां तो सीधे माँ बहिन कोई नहीं बचती और गदहे घोड़े कुत्ते से कम में चढ़ता नहीं माँ बहिन पे और ये एक बैरोमीटर भी है उनकी मस्ती का, कितनी चुदवासी हो रहीं हैं।
थोड़ी देर उन्हें और पागल करने के बाद दुबारा भौजी पर चढ़ाई करने के लिए मैंने मुंह और उंगलिया उनकी गुलाबो से हटाया लेकिन भौजी तो भौजी और मैं अभी भी नौसिखिया देवर कहें, ( मेरी भाभी के रिश्ते से ) बहनोई कहें ( गुड्डी के रिश्ते से ),
संध्या भाभी ने हल्का सा धक्का दिया जैसे चुमावन के समय भाभियाँ देती हैं, पर मैं पीछे हाथ कर के सम्हल गया, बाथरूम में दीवाल के सहारे बैठ गया, और भौजी मेरी गोद में। मेरा खूंटा खड़ा था वैसा ही टनटनाया और भौजी ने अपने हाथ से पकड़ के के अपनी बिल के दरवाजे पे सटाया और पूरी ताकत से बैठ गयीं। एक तो मैंने पहले ही छँटाक भर तेल अपनी भौजी की बुरिया को पिलाया था और फिर रगड़ मसल के जो चाशनी निकली थी, धीरे धीरे कर के इंच इंच मेरा आधा से ज्यादा मूसल उनके अंदर,
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है संध्या भौजी और आनंद ने मजे कर लिएसीख- संध्या भाभी की
संध्या भाभी ने हल्का सा धक्का दिया जैसे चुमावन के समय भाभियाँ देती हैं, पर मैं पीछे हाथ कर के सम्हल गया, बाथरूम में दीवाल के सहारे बैठ गया, और भौजी मेरी गोद में। मेरा खूंटा खड़ा था वैसा ही टनटनाया और भौजी ने अपने हाथ से पकड़ के के अपनी बिल के दरवाजे पे सटाया और पूरी ताकत से बैठ गयीं।
एक तो मैंने पहले ही छँटाक भर तेल अपनी भौजी की बुरिया को पिलाया था और फिर रगड़ मसल के जो चाशनी निकली थी, धीरे धीरे कर के इंच इंच मेरा आधा से ज्यादा मूसल उनके अंदर,
मैंने नीचे से धक्का मारने की कोशिश की पर भौजी ने इशारे से मना कर दिया वो उस मोटू मल की कड़ाई मोटाई अपनी बिल में महसूस करना चाहती थीं।
हम दोनों ने एक दूसरे को बस कस के भींच रखा था पर कमान अभी भौजी के हाथों में थी। कभी वो अपनी मोटी मोटी चूँचियाँ मेरी छाती पे रगड़ती तो कभी कस के चूमते हुए मेरे होंठों को काट लेती, जीभ अपनी मेरे मुंह में पेल देतीं। लेकिन कुछ देर में सावन के झूले की तरह, कभी वो पेंग मारती और मोटूराम अंदर और कभी मैंने पेंग मारता तो थोड़ा और घुस जाता लेकिन अगली बार वो चूतड़ उछाल के एक दो इंच बाहर निकल देतीं।गोद में बिठा के किसी को चोदने का ये एकदम अलग ही मजा था।
एकदम एक नया ही मजा मिल रहा था, झड़ने की जल्दी न उन्हें न मुझे और वो अब समझ गयी थीं की मैं लम्बी रेस का घोडा हूँ तो
और साथ भौजी की बातें भी कभी गुड्डी के बारे में कभी उसी सबसे छोटी बहन के बारे में तो कभी गुड्डी की मम्मी के बारे में
" देख साले आज गुड्डी को पहली बार पेलोगे न तो ये ध्यान रखना, पहली बार तो ठीक है पटक के ऊपर चढ़ के टांग उठा के, लेकिन रात में दूसरी बार या फिर कभी भी, एक पोज में नहीं, थोड़ा बदल बदल के करोगे तो उसको भी ज्यादा मजा आएगा और स्साले तुझे भी। "
बात तो सही थी।
गोद में बैठा के चोदने में एक अलग ही मजा था, धक्को में वो ताकत तो नहीं थी, लेकिन बतियाने का, चेहरा देखने का चूमने चाटने का, पीठ पकड़ के अपनी ओर पुल करने का अलग ही मजा आ रहा था। कल चंदा भाभी ने ऊपर चढ़ के, पहली बार तो ऐसे ही चोदा था लेकिन बाद में समझया भी था की अगर औरत ऊपर हो तो भी मरद उसके चूतड़ को पकड़ के उसे ऊपर नीचे करके, नीचे से चूतड़ उठा उठा के धक्का मार के कंट्रोल अपने हाथ में ले सकता है लेकिन ये तरीका कच्ची उम्र की लौंडियों के लिए नहीं है उन्हें तो ऊपर चढ़ के रगड़ रगड़ के उनकी फाड़ने का मजा है क्योंकि जब वो तड़पेंगी, चिखेंगी, उनकी जब फटेगी तो दर्द से परपरायेगी वो देखने का मजा ही अलग है हाँ बहुत हुआ तो बाद में एक बार झिल्ली फट जाए तो निहुरा के।
लेकिन थोड़ी देर बाद संध्या भाभी नीचे मैं ऊपर और मैं उन्हें हचक हचक के चोद रहा था। हर धक्का बच्चेदानी पे और हर बार क्लिट भी रगड़ी जा रही थी। दोनों टाँगे उनकी मेरे कंधे पे, भौजी की हालत खराब थी लेकिन अबकी मैं रुकने वाला नहीं था।
हम दोनों साथ साथ झड़े और एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।
जब कुछ देर बाद साँस लेने की हालत हुयी तो भौजी मुस्करा के लेकिन शिकायत के अंदाज में बोलीं,
" इत्ता दर्द तो जब पहली बार फटी थी तब भी नहीं हुआ था। "
" और इत्ता मजा भौजी ? " मैंने भी हंस के पूछा।
" सोच भी नहीं सकती थी, लगते सीधे हो, पर हो एकदम खिलाड़ी "
हंस के मुझे गले लगा के बोलीं, फिर कचकचा के मेरे गाल काट के बोलीं,
" मस्त कलाकंद हो, एकदम देख के गपागप करने का मन करता है। अच्छा निकलो, तुम लोगो को अभी बाजार भी जाना है और शाम के पहले आजमगढ़ भी पहुंचना होगा, जो तौलिया पहन के आये थे बस उसी को पहन के एकदम दबे पाँव निकल लो, सीधे ऊपर। जब तुम सीढ़ी पे चढ़ जाओगे तो मैं निकलूंगी। "
और उन्होंने मेरा तौलिया पकड़ा दिया।
बाथरूम से निकलते ही, रीत के कमरे से खूब जोर से खिलखिलाने की आवाज आ आरही थी, मैं समझ गया उसकी सहेलियां होंगी और एक बार मैं पकड़ गया तो फिर से होली का चक्कर शुरू हो जाएगा।
इसलिए बस दबे पाँव सीढ़ी से ऊपर, जब तक मैं छत पे पहुंचा नीचे से बाथरूम से संध्या भाभी भी बस एक टॉवेल लपेटे,
कमरे में गुड्डी मेरा इंतज़ार कर रही थी और झट्ट से टॉवेल खींच के उतार दिया,
" हे ये टॉवेल चंदा भाभी की है यही छोड़ के जाना है , चोरी की आदत अच्छी नहीं। "
और झुक के बोली, आया मजा, कित्ती बार?
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है मजे करके बाथरूम ने निकलने के बाद एक बार फिर से आनंद की इज्जत खतरे में पड़ गई गुड्डी ने चीर हरण कर दिया साथ ही रेट लिस्ट वाली शर्ट पहना दी चंदा भौजी ने आनंद के लिए खिचड़ी खाने का सारा इंतजाम कर दिया है साथ ही गुड्डी को सीक्रेट ज्ञान भी दे दिया हैगुड्डी
बाथरूम से निकलते ही, रीत के कमरे से खूब जोर से खिलखिलाने की आवाज आ आरही थी, मैं समझ गया उसकी सहेलियां होंगी और एक बार मैं पकड़ गया तो फिर से होली का चक्कर शुरू हो जाएगा। इसलिए बस दबे पाँव सीढ़ी से ऊपर, जब तक मैं छत पे पहुंचा नीचे से बाथरूम से संध्या भाभी भी बस एक टॉवेल लपेटे,
कमरे में गुड्डी मेरा इंतज़ार कर रही थी और झट्ट से टॉवेल खींच के उतार दिया,
" हे ये टॉवेल चंदा भाभी की है यही छोड़ के जाना है , चोरी की आदत अच्छी नहीं। "
और झुक के बोली, आया मजा, कित्ती बार?
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो डांट पड़ गयी,
" अबे चुप्प, तुझसे नहीं इससे बात कर रहीं हूँ "
मेरे जंगबहादुर की ओर इशारा करते बोली और पलंग पे जो मेरी शर्ट पेंट पड़ी थी खुद अपने हाथ से पहनाने लगी।
अब गुड्डी पहना रही थी तो मना भी नहीं कर सकता था लेकिन मेरी निगाह बार शर्ट पे पड़ रही थी जिस पे मेरी बहन के रेट और उसका मोबाइल नंबर लिखा था, वो भी सारा का सारा।
गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।
उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-
चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया
चूची मिजवायी- 40 रूपया
लंड चुसवायी- 50 रूपया
चुदवाई- 75 रूपया
सारी रात 150 रूपया।
फिर डांट पड़ी मुझे ,
" मैं समझ रही हूँ, क्यों परेशान हो रहे हो। अरे ये तेरी बहना की रेट लिस्ट पहना के तुझे तेरे मायके नहीं ले जाऊंगी । शॉपिंग के बाद तेरे रेस्ट हाउस चलेंगे न तो बदल लेना वहां "
और मैं तैयार था लेकिन तब तक मेरी निगाह एक बड़े से बैग, अटैची पर पड़ी,
" हे यह गधे का बोझ कौन लाद के चलेगा " मैंने गुड्डी से बोला।
तब तक चंदा भाभी आ गयीं , और हँसते हुए बोलीं
" जिसका गदहा अस होगा वो गदहे का बोझ लादेगा, अब तो सबने देख ही लिया है और जिसकी महतारी गदहे संग सोई होगी,... लेकिन घबड़ा मत अभी तो सामान थोड़ा और बढ़ेगा।अच्छा मैं जरा कुछ सामान दे रही हूँ ले जाने ले लिए। तुम्हारे साथ…”
वो बोली।
“नहीं भाभी नहीं। बेकार कहाँ…” मैंने मना किया।
“तुम ना। तुम्हें तो लड़की होना चाहिए था। हर बात पर ना करते हो…” वो बोली और अपने कमरे में चल दी
मैं भी भाभी के पीछे-पीछे उनके कमरे में। चंदा भाभी ने अपनी ननद या मेरी भाभी के लिए गुलाब जामुन, गुझिया (कहने की जरूरत नहीं सब भांग वाली थी) इत्यादि दी और फिर एक आलमारी खोलकर बोली-
“अरे तेरा सामान भी तो दे दूँ। तुझे मायके में बहुत जरूरत पड़ेगी…”
उन्होंने फिर वो स्पेशल सांडे का तेल जिसका इश्तेमाल उन्होंने मेरे ऊपर कल रात को किया था। वो शिलाजीत और ना जाने क्या-क्या पड़ा लड्डू जिसका असर उनके हिसाब से वियाग्रा से भी दूना होता है वो सब दिया और समझाया भी। फिर उन्होंने अपना लाकर खोलकर एक छोटी सी परफ्यूम की शीशी दी और कहा की उसकी एक बूँद भी लड़की को लगा दो तो वो पागल हो जायेगी, बिना चुदवाये छोड़ेगी नहीं।
तब तक गुड्डी आ गई थी। उन्होंने उसके कान में सब कुछ समझाया और कहने लगी की हम लोग खाना खाकर जायें।
“नहीं भाभी। इतना गुझिया, दहीबड़ा, मिठाई सब कुछ तो खाया है…”
मैंने मना किया। गुड्डी ने भी ना ना में सिर हिलाया।
“अरे आगरा का पेठा, बनारस की रबड़ी
बलिया का सत्तू, आजमगढ़ की खिचड़ी।
भाभी ने हँसकर गाया और बोली- “रबड़ी छोड़कर जा रही हो कल से खिचड़ी खाना, सटासट-सटासट…”
मैं हँसकर बोला- “अरे भाभी कल से क्यों आज रात से ही। इतना इंतजार क्यों कराएंगी बिचारी को…”
चंदा भाभी ने गुड्डी को चिढ़ाया।
“क्यों, गई तुम्हारी सहेली। ठीक हो गया पेट खिचड़ी खाने को…”
गुड्डी शर्मा गई और झिझकते हुए बोली- “धत्त। हाँ…”
अब सिर्फ मैं, गुड्डी और चंदा भाभी छत पे थे।
“भाभी जरा इसको कुछ समझा दीजिये की कैसे, क्या?” मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए चंदा भाभी से बोला।
लेकिन वो अबकी नहीं शर्माई और चंदा भाभी ने भी उसी का साथ दिया-
“इसे क्या समझाना है। तुम्हीं पीछे हट जाते हो शर्माकर। बोलोगे जाने दो कल,... और जो करना है वो तुम्हें करना है। इस बिचारी को क्या करना है?”
चंदा भाभी गुड्डी के पास जाकर खड़ी हो गईं, और उसके कंधे पे हाथ रखकर बोली।
“और क्या?” हिम्मत पाकर गुड्डी भी बोली।
“तो राजी हो। आज हो जाय…” मैंने छेड़ा।
गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गई और हल्के से बोला- “धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा- “और थोड़ी हिम्मत बटोर के चंदा भाभी की ओर देखकर बोली-
“कपड़े लौटा दिए है ना इसलिए बोल रहे हैं। बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं। तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है। रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है जाते जाते एक बार फिर से रीत ने आनंद के साथ होली खेल ली बनारस वाली साली ने जीजा के फिर से मजे ले लिए पहले ब्रा पहना दी फिर पानी के बहाने एक बार फिर से रंग दियागुड्डी संग.
गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गई और हल्के से बोला- “धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा- “और थोड़ी हिम्मत बटोर के चंदा भाभी की ओर देखकर बोली-
“कपड़े लौटा दिए है ना इसलिए बोल रहे हैं। बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं। तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है। रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी। समझे…”
मैं कुछ बोलता उसके पहले रीत आ गई.
“दूबे भाभी ने बोला है की बोलना 5 मिनट रुकेंगे वो भी आ रही हैं…”
लेकिन मेरे आँख कान रीत से चिपके थे। पक्की कैटरीना कैफ। हरे रंग का इम्ब्रायडर किया हुआ धानी कुरता और एक बहुत टाईट पाजामी।
मेरी ओर देखकर मुश्कुराई और गुड्डी के कान में कुछ बोला।
गुड्डी गुलाल हो गई। लेकिन हाँ में सिर हिलाया। (बाद में बहुत हाथ पैर जोड़ने पे गुड्डी ने बताया की रीत ने उससे पूछा था। वैसलीन रखा है की नहीं।)
रीत मेरे पास आई और मेरी ओर देखकर चंदा भाभी से पूछा- “हे कुछ गड़बड़ लग रहा है ना। कुछ मिसिंग है…”
और बिना उनके जवाब का इंतजार किये मुझे हड़काया- “शर्ट के अन्दर कुछ नहीं पहना, ऐसे बाहर जाओगे झलकाते हुए वो भी मेरी छोटी बहन के साथ नाक कटवाओगे हम लोगों की। तुम्हारे उस खिचड़ी वाले शहर में तुम्हारी बहनें बिना अन्दर कुछ पहने झलकाती घूमती होंगी यहाँ ये नहीं होता…”
सब लोग अपनी मुश्कान दबाए हुए थे सिवाय मेरे।
घबड़ाकर मैं बोला- “लेकिन। लेकिन मेरे पास वो तो कल गुड्डी ने। आप ही ने तो…”
“क्या गुड्डी गुड्डी रट रहे हो? मैंने कुछ पहनाया नहीं था तुम्हें। कहाँ है वो?” तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी उसे उतारने की?”
अब मैं समझा उसकी शरारत।
गुड्डी ने पास पड़ी रंग में लथपथ ब्रा की ओर इशारा किया। जिसे रीत ने होली के श्रृंगार के समय पहनाया था लेकिन मैंने बाद में उतार दिया था। झट से उसने मेरी शर्ट उतारकर फिर से ब्रा पहनाई और फिर से शर्ट। और देखती बोली-
“लेकिन अभी भी कुछ कमी लग रही है…”
और जब तक मैं समझूँ रीत अन्दर से दो रंग भरे गुब्बारे ले आई और फिर से ब्रा के अन्दर। मैं लाख चीखता चिल्लाता रहा। लेकिन कौन सुनता बल्की अब चंदा भाभी भी उन्हीं के साथ-
“अरे लाला फागुन का टाइम है लोग सोचेंगे कोई जोगीड़ा का लौडा है…”
दूबे भाभी भी आ गईं। सबको नमस्कार करके जब मैं चलने के लिए हुआ तो दूबे भाभी ने याद दिलाया- “हे अपने उस माल को साथ लाना मत भूलना और रंग पंचमी से दो दिन पहले…”
और रीत से बोली- “अरे पाहुन जा रहे हैं, जाने से पहले पानी पिला के भेजना चाहिए सगुन होता है, आज कल की लड़कियां…”
रीत मुझसे गले मिलते हुए बोली- “मिलते हैं ब्रेक के बाद…”
हाँ चार-पांच दिन की बात है फिर तो मैं वापस। मैं भी बोला।
“नहीं नहीं मेरी आँख फड़क रही है। मुझे तो लगता है शाम तक फिर मुलाकात और…” वो मेरे कान में मुझे चिपकाए हए बोली।
गुड्डी सामन लेकर बाहर निकल चुकी थी। जैसे ही मैं निकला पानी का ग्लास रीत के हाथ - “लीजिये साली के हाथ का पानी पीकर जाइए…” और जैसे मैंने हाथ बढ़ाया उस दुष्ट ने पूरा ग्लास मेरे ऊपर। गाढ़ा लाल गुलाबी रंग।
“अरे ठीक है होली का प्रसाद है। चलिए…” चंदा भाभी बोली।
मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है।
और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।
और वही हुआ। पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी- “पैसा है तुम्हारे पास। चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली।
तब मुझे याद आया। मेरा मोबाइल, कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था- “हे मेरा पर्स वो। लेकिन मैंने। तो…” हिम्मत करके मैंने बोलने की कोशिश की।
“जगह-जगह नोटिस लगी रहती है। यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन पढ़े लिखे होकर भी। मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…” बड़बड़ाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला। बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी। ऊपर से वो मेरा पर्स निकालकर मुझे दिखाते हुए बोली-
“देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ। तुम्हारी तरह नहीं…” और फिर जिप बंद कर दिया।
उसमें मेरी पूरी महीने की सेलरी पड़ी थी। और उसके बाद रास्ते की बात पे तो वो एकदम तेल पानी लेकर मेरे ऊपर चढ़ गई- “बनारस की कौन है। मैं या तुम?” वो आँख निकालकर बोली।
“तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पहले रीत ने मार ली फिर गुड्डी ने पूरे रास्ते आनंद की खटिया खड़ी कर दी साथ ही मजे भी ले लिएफागुन के दिन चार भाग २३
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गुड्डी, बनारस की गलियां और शॉपिंग
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मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है। और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।
और वही हुआ। पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी-
“पैसा है तुम्हारे पास। चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली।
तब मुझे याद आया। मेरा मोबाइल, कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था-
“हे मेरा पर्स वो। लेकिन मैंने। तो…” हिम्मत करके मैंने बोलने की कोशिश की।
“जगह-जगह नोटिस लगी रहती है। यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन पढ़े लिखे होकर भी। मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…”
बड़बड़ाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला। बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी। ऊपर से वो मेरा पर्स निकालकर मुझे दिखाते हुए बोली- “देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ। तुम्हारी तरह नहीं…” और फिर जिप बंद कर दिया।
उसमें मेरी पूरी महीने की सेलरी पड़ी थी। और उसके बाद रास्ते की बात पे तो वो एकदम तेल पानी लेकर मेरे ऊपर चढ़ गई-
“बनारस की कौन है। मैं या तुम?” वो आँख निकालकर बोली।
“तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली।
“फिर…?”
मैं चुप रहा। ऐसे सवाल का जवाब देना भी नहीं चाहिए।
“अरे उलटा पड़ेगा। लेकिन तुम्हें तो बचपन से ही सब काम उल्टे करने की आदत है। यहाँ से गौदालिया कित्ता पास है। बगल में वो लक्सा वाली रोड पे एक माल भी खुल गया है। नई सड़क के बगल वाली गली में सब चीजें इतनी सस्ती मिलती हैं। लेकीन कल से तुम्हें रेस्टहाउस जाने की जल्दी पड़ी है…”
फिर मुझे मनाते हुए मेरे कंधे पे हाथ रखकर बोली-
“अरे मेरे बुद्धू राम जी। मैं मना थोड़े ही कर रही हूँ लेकिन इससे टाइम बचेगा। यहाँ की एक-एक गलियां मैं जानती हूँ…”
लेकिन गुड्डी का सारा सामान। एक बड़ा सा बैग उठाकर तो मैं चल रहा था। ऊपर से जनाब जी ने तुर्रा ये की मना कर दिया था की मैं इसे अपने पीठ पे ना रखूं।
मैं बड़बड़ा रहा था- “गधे का बोझ उठाकर कौन चल रहा है?”
“जो गधे ऐसी चीज रखेगा। वही गधे का काम करेगा। और क्या?”
उसने मुश्कुराती आँखों से मुझे देखते हुए चिढ़ाया। और साथ में बोली-
“अच्छा चलो अब ये ब्रा उतार दो बहुत देर से पहने हो हाँ तुम्हारा मन कर रहा हो तो अलग बात है…”
आँख नचाकर वो दुष्ट बोली।
और जैसे ही मैंने उतारा सम्हालकर उसने अपने बैग में रख लिया।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है बेचारे को बोलने पर भी डांट पड़ रही हैं गुड्डी भी सांड को देखकर आनंद की बहनिया के नाम से मजे ले रही है आखिर है तो बनारस वालीबनारस की गलियां
गुड्डी की बातें और बनारस की गलियां एक तो कभी ख़तम नहीं होतीं और दूसरे एक से दूसरी निकलती रहती हैं,
लेकिन मेरी ऑब्जर्वेशन वाली आदत और ऊपर से आज एक और फेलू दा की फैन मिल गयी थी, रीत,मगज अस्त्र में प्रवीण, तो मैं थोड़ा ही ज्यादा इधर उधर और मुझे जय बाबा फेलूनाथ की सीन्स एक के बाद एक याद आ रही थीं।
एक पतली सी गली में बड़ा सा महल सा मकान, बाहर दीवाल पर सिपाही और घुड़सवार के चित्र और ऐसा ही एक घर दिखा, गली ज्यादा पतली तो नहीं थी लेकिन चौड़ी भी नहीं, और गुड्डी चालू हो गयी,
" अरे एक बड़े पुराने रईस का घर है, मैं आ चुकी हूँ इनके याहं दूबे भाभी के साथ एक शादी में। अब बेचारे अकेले ही रहते हैं, हाँ शादी में आये थे सब लड़के बच्चे कोई बंबई, कोई दिल्ली, एक बेटी तो अमेरिका में, सब लोग कहते हैं होटल बना दीजिये, बेच के बच्चों के पास, और किसी से तो नहीं लेकिन दूबे भाभी से बोले, " अमरीका, और गंगा जी कैसे जाऊँगा रोज, बाप दादों का घर होटल, पता नहीं कैसे कैसे लोग आयंगे, जितना बचा है ऐसे ही काट लेंगे "
तब तक हम लोग आगे आ गए थे और बात के चक्कर में गुड्डी एक गली मिस कर गयी और डांट मुझे पड़ी,
तेरे चक्कर में न, आज तक मैं ये मोड़ कभी मिस नहीं करती, चलो मुड़ो,
और गलती उस की भी नहीं थी, एकदम संकरी सी गली और उस के बाहर एक वृषभ महोदय बैठे किसी बछिया का इन्तजार कर रहे थे, एक दो मोटरसाइकलें भी खड़ी थी, गली का मुहाना कहीं दिख नहीं रहा था।
बनारसी सांड के बगल से गुजरते मैं थोड़ा ठिठका, तो गुड्डी ने चिढ़ाया,
" क्यों क्या देख रहे हो तेरी बहिनिया के लिए सही है की नहीं. ...स्साला तेरा वो बचपन का माल साथ होता न,... तो ये अबतक फनफना के खड़े हो गए होते, वैसे उस माल को देख के खड़ा तो तेरा भी होता है,.... है न और सिर्फ तेरी बहिनिया या,.... और कोई भी है, "
अब गुड्डी जब पीछे पड़ जाए ख़ास तौर से मेरी मायकेववालियों के तो पीछे हटने में ही भलाई होती है,
इसलिए मैं बचते बचाते उसका १२ किलो का सामान लादे कभी पीछे पीछे तो कभी बगल में,
रास्ता तो उसे ही मालूम था। एक बचत यह होगयी की रीत आख्यान चालू हो गया और अगर कोई रीत फैंस क्लब बने तो बिना इलेक्शन के वो लाइफ टाइम प्रेजिडेंट हो जायेगी, हाँ ऑर्डिनरी मेंबर मैं भी बन जाऊँगा।
" अरे मुझे तो कुछ नहीं मालूम है, ये तो आस पास की गलियां हैं, रीत दी को तो बनारस की एक एक गली, आँख में पट्टी बाँध के उन्हें चला दो तो भी किसी से पहले खाली गली गली यहाँ से लंका, अस्सी घाट, मैदागिन, नाटी इमली सब जगह, और कितनी बार तो मैं उनकी एक्टिवा पे बैठ के उनके पीछे पीछे, जहाँ मैं सोचती भी नहीं थी वहां से भी एक्टिवा निकाल लेती हैं, "
गुड्डी का रीत पुराण चालू था।
लेकिन मैं तब तक ठिठक गया।
आब्जर्वेशन पावर मेरी भी जबरदस्त थी और फिर ट्रेनिंग में, सर्वेलेंस में अच्छी तरह से सिखाया भी गया था , ये गली आगे पहुँच के बंद हो जाती थी। एक दरवाजा था जो बंद था, और कोई मोड़ भी नहीं दिख रहा था। मैं अगल बगल के घरों को चारो धयान से देख रहा था और बीसो बार मैंने अपने को समझाया था गुड्डी जो कहे आँख मूँद के मानना चाहिए, सवाल नहीं करना चाहिए, लेकिन मुंह से निकल गया,
" अरे ये गली तो आगे से बंद है "
और पड़ गयी डांट,
" अभी रीत दी होतीं न तो तेरी माँ बहन सब एक कर देतीं। बनारस में हो बनारस वालियों की बात माननी चाहिए,... बल्कि अपने मायके में भी, "
Ek ek ward ko feel kar ke padhne ka maza hi kuchh aur hai. Aur aap ki shararat to vese bhi amezing hai. Kuchh apna kam baki hai. Use complete karne ke bad baki ke updates bhi padhi hu.आपके कमेंट्स पढ़ के मजा आ गया
एक एक लाइन, एक एक शब्द जैसे लगता है आपके मन में उतर गया हो और फिर आपने रस में डूब कर कमेंट किया
यह थ्रेड धन्य है आप जैसी मित्र को पा के
Kya shandar update diya hai komalhi. Shuruat hi samose se ki. Jaljog ke samose. Aur anand babu ne bhi mana nahi kiya. Guddi bechari ankhe dikha rahi hai. Kitna khaoge. Yaha gunja ke lie guddi ki jan atki padi hai. Aur anand babu jo hai saomse. Janjog ke sanose. Lagta hai vaha ke femos hai.समोसा
चपरासी को उन्होंने 3 चाय के लिए बोला और मुझसे पूछा- “समोसा चलेगा। जलजोग का…”
मैंने बोला- “एकदम दौड़ेगा…”
गुड्डी ने मुझे आँख दिखाई- “कितना खाओगे?” लेकिन जलजोग का समोसा मैं नहीं मना कर सकता था।
डी॰बी॰- “हाँ तो। मैं क्या कह रहा था? हाँ तीसरी बात- उसका मोबाइल फोन। कोई टेररिस्ट मोबाइल पे बात नहीं करता। अगर करेगा तो अपने आका से करेगा, पोलिस से नहीं। एक बार उसने थाने पे यहीं रिंग किया और दूसरी बार अरिमर्दन से बात हुई, तब तक मैं भी यहाँ आ गया था। मोबाइल मतलब अपना सब अता पता बता देता है, तो इसलिए मुश्किल है ये सोचना की …”
मैंने बात बीच में रोक कर पूछा- “वो सिम कहाँ का है?”
डी॰बी॰- “यार क्या बच्चों जैसे। आज कल सिम का क्या? और वो तो पहली चीज इंस्पेक्टर भी देख लेता है। बक्सर के पास किसी जगह से ली गई थी, आधे घंटे में उसकी कुंडली भी आ जायेगी। लेकिन वो सब फर्जी मिलेगी। इतनी बात तो वो सोनी पे कौन सा सीरियल आता है?” डी॰बी॰ बोले।
अबकी बात काटने का काम गुड्डी ने किया। बड़े उत्साह से उसने अपने ज्ञान का परिचय दिया- “सी॰आई॰डी॰ मैं भी देखती हूँ…” वो चहक कर बोली।
डी॰बी॰ बोले- “वही तो मैं कह रहा था, बच्चों को भी ये सब चीजें मालूम होती हैं। सिम विम से क्या होगा?”
मैंने थोड़ी रिलीफ की सांस ली- “तो इसका मतलब की टेरर वेरर की बात…”
डी॰बी॰- “नहीं ऐसा कुछ नहीं है। कुछ कह नहीं सकते, मान लो निकल जाय कोई तो? प्रिकाशन तो लेनी पड़ेगी…” वो बोले- “और ये भी नहीं कह सकते की कोई गुंडा बदमाश है…”
मैं- “क्यों?” मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
डी॰बी॰- “तीन बातें हैं…”
ये तीन बातों का चक्कर उनका पुराना हास्टल के दिनों का था।
डी॰बी॰ ने फिर समझाना शुरू किया-
“देखो पहली बात आज कल नई-नई सरकार आई है अभी सेट होने में टाइम लगेगा सब कुछ, तो उस समय नार्मली ये सब एक्टिविटी स्लो रहती हैं। फिर आज कल बनारस में वैसे ही हम लोगों ने झाड़ू लगा रखी है। एक मोटा असामी था उसका पत्ता तुमने साफ करा दिया। फिर क्रिमिनल भी रिटर्न देखता है- ठेका हो, माइनिंग हो, प्रोटेक्शन हो। अब किडनैपिंग तक तो होती नहीं फिर ये होस्टेज वोस्टेज का चक्कर क्रिमिनल्स के बस का नहीं, ना उनका कोई फायदा है इसमें। आधी चीज तो मोटिव है, वो क्या होगी? फिर तुम जानते हो। ज्यादातर बड़े क्रिमिनल अब नहीं चाहते की फालतू का लफड़ा हो। उनकी असली कमाई तो अब सेमी-लीगल धंधों से होती है। कई ने तो थानों पे फोन करके बोला जैसे ही चैनेल पे खबर आई की उनका कोई लेना देना नहीं है इस इंसिडेंट से…”
तब तक चपरासी समोसा और चाय लेकर आ गया। गरम-गरम ताजा समोसे। डी॰बी॰ ने इन्सिस्ट किया की गुड्डी पहले समोसा ले।
गुड्डी ने समोसा तो ले लिया लेकिन जो सवाल उसे और मुझे तब से परेशान किये हुए था, पूछ लिया-
“वो तीन। तीन लड़कियां जो। नाम क्या है पता चला?”
समोसा खाते हुए डी॰बी॰ ने बोला- “हूँ हूँ कुछ। बताता हूँ। हाँ लेकिन मैं क्या कह रहा था?”
मैंने याद दिलाया- “तीन। तीन बातें क्यों वो गुंडे बदमाश नहीं हो सकते? एक आप बता चुके हैं की बड़े गुंडों के लिए इस तरह की हरकत प्रोफिटेबल नहीं है…”
चाय पीते हुए डी॰बी॰ ने बात जारी रखी-
“हाँ। दूसरी बात- बाम्ब। ये कन्फर्म है की उनके पास बाम्ब है और उसमें ट्रिगर डिवाइस भी है। नार्मली छोटे मोटे गुंडों के पास इम्पैक्ट बाम्ब, यानी जो फोड़ने या फेंकने पे फूटते हैं वही होते हैं। ये साफीस्टीकेटेड बाम्ब हैं।
जो लड़कियां बचकर आई हैं उन्होंने जो बताया है। उसके हमने स्केच बनवाये हैं और उसके अलावा जहाँ-जहाँ यहाँ बाम्ब बनाते हैं, सोनारपुरा में, लंका में आस पास के गाँवों में गंगा पार रामनगर। हर जगह से हम लोगों ने चेक कर लिया की ये उनकी हरकत नहीं। और जो लोकल माफिया हैं या तो गायब हो चुके हैं या उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए हैं…”
जब तक वो तीसरी बात पे आते मैंने बचा हुआ समोसा भी उठा लिया।
गुड्डी ने मुझे बड़ी तेजी से घूरा लेकिन मैंने पूरा ध्यान समोसे की ओर और डी॰बी॰ की ओर दिया।
डी॰बी॰ ने तीसरा कारण शुरू कर दिया- “तीसरी बात- बहुत सिंपल। हमारे किसी खबरी को लोकल बन्दों की हवा नहीं है। तो। …”
अबकी मैंने सवाल दाग दिया- “तो ये हैं कौन?”
डी॰बी॰- “यही तो? अगर साफ हो जाय कोई टेररिस्ट ग्रुप है तो हमें मोटा-मोटा उनकी मोडस आप्रेंडी, काम करने का तरीका मालूम है। क्रिमिनल को तो हम लोग आसानी से टैकल कर लेते हैं। पर अभी तक पिक्चर। …” तब तक उनका फोन बजा।
“सी॰एस॰ का फोन है…” किसी दरोगा ने बताया।
अब तक मैं भी इन शब्दों से परिचित हो चुका था की सी॰एस॰ का मतलब चीफ सेक्रेटरी। और वो स्टेट गवर्नमेंट में सबसे ऊपर होते हैं।
डी॰बी॰ ने पूछा- “साहब खुद लाइन पे हैं या?”
“नहीं पी॰एस॰ हैं…” उधर से आवाज आई।
डी॰बी॰- “उनको बोल दो की मैं मोबाइल पे सीधे रिंग कर लूँगा…” वो बोले और उठकर कमरे के दूसरे कोने की ओर चले गए।
यहाँ मुझ पर डांट पड़ना शुरू हो गई- “तुम यहाँ समोसा खाने आये हो की,... कितना खाते हो, वहां अभी होटल में,... फिर समोसा। हम यहाँ समोसा खाने आये हैं की गुंजा का पता लगाने आये हैं?”
गुड्डी ने घुड़का।
मैंने बात बदलने की कोशिश की- “नहीं वो बात नहीं है। “देखो ये लोग बीजी हैं। अभी चीफ सेक्रेटरी से बात हो रही है…”
गुड्डी बोली- “तुम लोग ना। तुम भी इन्हीं की तरह हो। सिर्फ बातें करते हो काम वाम नहीं…”
मैं- “अरे करेंगे। काम वाम भी करेंगे। प्रामिस घर पहुँचने दो तुम्हारी सारी शिकायत दूर…” कहकर मैंने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की।
गुड्डी शर्मा गई- “धत्त। तुम भी न कहीं भी कुछ भी…”
तब तक बात करते-करते डी॰बी॰ नजदीक आ गए थे और हम लोग चुप हो गए।
डी॰बी॰-
“थैंक्स सर। दो बटालियन आर॰ए॰एफ॰ और एक प्लाटून सी॰आर॰पी॰एफ॰। नहीं सर। दैट विल बी ग्रेट हेल्प। जी मैं भी यही सोच रहा हूँ। आज जो भी होगा उसके रियक्शन का रिस्पोंस प्लान तो करना पड़ेगा, कुछ अमंगल हो जाए तो और कम्युनल टेंशन तो यहाँ। नहीं इतना काफी होगा।
एस॰टी॰एफ॰ की कोई जरूरत तो नहीं है। आप जानते हैं सर, पिछली सरकार में तो वो एक तरह से सरकार ही बन गये थे।
काम सब लोकल पुलिस का होता है। इंटेलिजेंस सब कुछ। उनके आने में तो चार-पांच घंटे लगेंगे तब तब तो मैं इसे। मैं समझ रहा हूँ। सर। वो अपने राज्य मंत्री जी। एस॰टी॰एफ॰ के हेड उनके जिले में एस॰एस॰पी॰ रह चुके हैं और पुराना परिचय है। स्पेशल प्लेन से आ रहे हैं। कोई बात नहीं। मैं आपको इन्फार्म करूँगा। कोई प्राब्लम होगा तो बताऊंगा…”
एस॰टी॰एफ॰ मतलब स्पेशल टास्क फोर्स। इतना तो मैं समझ गया था। लेकिन अब डी॰बी॰ के चेहरे पे थोड़ी एस॰टी॰एफ॰ मतलब स्पेशल टास्क फोर्स। इतना तो मैं समझ गया था। लेकिन अब डी॰बी॰ के चेहरे पे थोड़ी परेशानी साफ दिख रही थी।
Mohe rang de ek esi kahani hai. Jisme mere dill par ek alag hi chhap chhodi hai. Aapne sayad mohe rang de par meri last farmaish nahi padhi. Me chahti thi ki ya aap us story ka part 2 likhe ya fir koi highlight. Ek kissa jo tuoda vapas hame pati patni ke prem sagar me dubo de. Vo puri kahani mene ab tak 2 bar padhi hai. Aur us kahani ko jitna mene barike se padha hai ki ek ek kissa ab tak mere jahen me hai.आप के बिना मेरी कोई कहानी आगे नहीं बढ़ती।
मोहे रंग दे पर आप की उपस्थिति ने चार चाँद लगा दिए।
और अब एक बार फिर आप इस कहानी पर आ गयी हैं तो यह छलांगे लगाते हुए आगे बढ़ेगी।
स्वागत है और इतनी व्यस्तता के बावजूद मेरी तीनो कहानियों पर पोस्ट वार कमेंट, कोई भी आभार कम होगा।
और हर कमेंट रसीला और जबरदस्त पकड़ वाला होता है,
कमेंट पढ़ने से ही लगता है पढ़ने वाले ने पोस्ट का पूरा रस लिया है