Sanju@
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बहुत ही कामुक गरमागरम और जबरदस्त अपडेट हैमस्ती संध्या भौजी की
लेकिन मैंने तो उसी दिन सपना देख लिया और कुछ भी करने को तैयार था उसे पूरा करने के लिए, तो मैंने संध्या भौजी से सीरियसली बोला
" भौजी, कुछ भी, सब मंजूर लेकिन अब तो ससुराल यहीं होगी "
और अपनी बात पे मुहर लगाते मैंने मूसल को करीब बाहर तक खिंचा और पूरी ताकत से कामदेव के तीर की तरह छोड़ा, और वो वज्र सीधे संध्या भौजी बच्चेदानी पे, लोहार के घन की तरह लगा।
उईईई , उईईई संध्या भौजी पहले दर्द से चीखीं, फिर मजे से, आँखे उनकी उलटी हो गयी देह कांपने लगी, लेकिन मैं अपना बित्ते भर का लंड जड़ तक ठेले रहा और कभी मेरे होंठ ने उनके इधर उधर चुम्मा लिया तो कभी उँगलियाँ सहलाती रहीं
भाभी झड़ती रहीं।
मैं अबतक सीख गया था लड़की को एक बार किसी तरह झाड़ दो तो उसके बाद जो वो गर्माएगी, तो सब लाज छोड़ के मस्ती में चुदाई में साथ देगी,
और मैं कस के उन्हें दबोचे रहा, चूमता रहा, सहलाता रहा और एक बार धीरे धीरे संध्या भाभी जब नार्मल हो रही थीं तो बहुत धीरे धीरे मैंने भाला बाहर निकालना शुरू किया, भौजी को लगा की चुदाई का पार्ट २ शुरू होगा, लेकिन मेरे मन तो कुछ और था, मैंने पूरा ही मूसल बाहर निकाल लिया ।
" हे क्या करते हो, करो न "
भौजी ने हलके से गुहार लगाई लेकिन मैं अब उनकी बात नहीं सुनने वाला था, कस के मैंने उनकी जाँघे फैलाई।
ताज़ी ताज़ी झड़ी बुर का स्वाद कुछ और ही होता, जब तक भाभी समझे मेरा मुंह उस रसीली के रसीले निचले काम रस से भीगे होंठों पे चिपक गया और बिना रुके मैंने कस कस के चूसना शुरू कर दिया।
जीभ मेरी भौजी की बिल के अंदर और होंठों से दोनों फांके को कस के भींच रखा था।
चूसने के साथ जीभ , क्या कोई औजार पेलता होगा, कभी अंदर बाहर, कभी गोल गोल, मुझे भी मालूम था की सभी नर्व एंडिंग्स योनि के शुरू में दो तीन इंच में अंदरूनी दीवालों, पे तो मेरी जीभ कभी उन्हें सहलाती तो कभी दरेरती, और भौजी मस्ती में चूतड़ पटकती, कभी छटपटाती लेकिन मैंने उनके दोनों कलाइयों को कस के पकड़ रखा था।
कुछ देर में जब भौजी का छटपटाना थोड़ा कम हुआ तो मैंने बाएं हाथ से भौजी की क्लिट पे रगड़ाई शुरू कर दी। अब एक बार से फिर से उनकी हालत और खराब
" छोड़ साले छोड़, ओह्ह नहीं नहीं " भौजी छटपटा रही थीं,
और मैंने छोड़ दिया, उनकी कलाई लेकिन वो उँगलियाँ अब एक साथ, एक दो नहीं सीधे पूरी तीन उनकी भीगी गीली बुर में
और होंठ से कस कस के क्लिट की चुसाई, दूसरे हाथ से भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया रगड़ाई
भौजी कस कस के चूतड़ उछाल रही थीं, उनकी बुर मेरी अंदर घुसी उँगलियों को निचोड़ रही थी, पांच सात मिनट में जब उनकी हालत खराब हो गयी और मेरे लिए भी अपने को रोक करना मुश्किल था मैंने एक बार फिर से भौजी की दोनों टांगों को अपने कंधे पे, बगल में रखे सरसों के तेल की बोतल से तेल अच्छी तरह सुपाड़े पे लिथड़ा, बुर की दोनों फांको को फैलाया और पूरी ताकत से वो जोर का धक्का मारा
भौजी जोर से चीखीं,
" उईईई उईईईईई ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्ह नही उईईईईई "
चीख इतनी जोर थी की पक्का पहली मंजिल पे गुड्डी को भी सुनाई पड़ गयी होगी, लेकिन बिना रुके मैंने थोड़ा सा पीछे खींच के जो धक्का मारा तो अबकी सुपाड़े का हथोड़ा सीधे भौजी की बच्चेदानी पे
" उईईई उईईई नहीं नहीं , निकाल साले, बस एक मिनट उफ़ दर्द हो रहा है नहीं बस नहीं, उईईईईई "
ये चीख पहली बार से भी तेज थी। लेकिन बिना रुके अब मैंने ताबतोड़ पेलाई शुरू कर दी, और कुछ देर में भाभी भी मेरा साथ दे रही थी चार पांच धक्को के बाद मैंने रुकता तो नीचे से उनके धक्के चालू हो जाते।
१२ -१५ की नानस्टाप तूफानी चुदाई के बाद मैं झड़ने के कगार पर था,
संध्या भौजी थक कर थेथर हो रही थीं, फागुन के महीने में भी वो जेठ बैशाख की तरह पसीने में डूबी थीं, पर उनकी मस्ती में कोई कमी नहीं आ रही थी। हर धक्के का जम के मजा भी ले रही थी, चूतड़ उछाल उछाल के अपनी चूँचियों को मेरे सीने पे रगड़ रगड़ के मेरी भी हालत ख़राब कर रही थी। उन्हें मैंने एक बार झाड़ दिया था, इसलिए उन्हें अभी टाइम तो लगाना था ही , लेकिन इस जबरदस्त और नॉन स्टाप पिलाई से अब हम दोनों एक बार कगार पे पहुँच रहे थे।
लेकिन कल रात की चंदा भाभी की पाठशाला और अभी संध्या भाभी की क्लास के बाद अब मैं भी इतना नौसिखिया नहीं था। मस्तराम जी की कितनी किताबे कंठस्थ थीं, कोका पंडित के तो पन्ने तक याद पर हाँ प्रैक्टिस में एकदम कोरा, फिर झिझक, पर कल रात चंदा भाभी ने जिस तरह मेरी नथ उतारी, अब मैं एकदम
तो बस मैंने पिस्टन बाहर निकाल लिया और संध्या भाभी एकदम से तड़प उठीं, लेकिन मैं उन्हें तड़पाना ही चाहता था, अभी तो मुझे उनकी बड़ी उम्र की एम् आई एल ऍफ़ टाइप ननद और गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की समौरिया उनकी ननद की बेटी, जो अभी कोरी थी को भी पेलना था। और बिना भौजी को तड़पाये, तो बस मैंने मूसल बाहर निकाल लिया और संध्या भौजी की गारियाँ चालू
" स्साले क्यों निकाल लिया, तेरी महतारी भी तो नहीं है यहाँ जिसके भोंसडे में आग लगी हो तेरा लंड घोंटने के लिए, पेल नहीं तो तो, "
यही सब तो मैं सुनना चाहता था लेकिन कल मैंने चंदा भौजी से सीख लिया था की मरद के तरकश में बहुत से तीर होते हैं मोटे मूसल के साथ साथ, तो बस अब एक बार फिर से संध्या भौजी की टाँगे उठी, जाँघे फैली और पहले तो मैंने अंगूठे से कस के उनकी फुदकती फड़फड़ाती क्लिट को रगड़ा और बेचारी भौजी पगला गयीं, लेकिन अभी तो शुरुआत थी। ऊँगली जगह होंठों ने लिया, फुद्दी के होंठों को मेरे होंठ कस कस के चूसने चाटने लगे।
ऐसी मीठी चाशनी भाभी की बिल से निकल रही थी, और थोड़ी देर में होंठों का साथ देने के लिए उँगलियाँ भी कूद पड़ी।
होंठ चाट चूस रहे थे और उंगलिया एक नहीं दो एक साथ रस के कुंवे में डुबकी लगा रही थीं और भौजी मारे मस्ती के कभी चूतड़ पटकती तो कभी गरियाती,
चुदती औरत के मुंह से गालियां बहुत अच्छी लगती हैं। और बनारस वालियों की गालियां तो सीधे माँ बहिन कोई नहीं बचती और गदहे घोड़े कुत्ते से कम में चढ़ता नहीं माँ बहिन पे और ये एक बैरोमीटर भी है उनकी मस्ती का, कितनी चुदवासी हो रहीं हैं।
थोड़ी देर उन्हें और पागल करने के बाद दुबारा भौजी पर चढ़ाई करने के लिए मैंने मुंह और उंगलिया उनकी गुलाबो से हटाया लेकिन भौजी तो भौजी और मैं अभी भी नौसिखिया देवर कहें, ( मेरी भाभी के रिश्ते से ) बहनोई कहें ( गुड्डी के रिश्ते से ),
संध्या भाभी ने हल्का सा धक्का दिया जैसे चुमावन के समय भाभियाँ देती हैं, पर मैं पीछे हाथ कर के सम्हल गया, बाथरूम में दीवाल के सहारे बैठ गया, और भौजी मेरी गोद में। मेरा खूंटा खड़ा था वैसा ही टनटनाया और भौजी ने अपने हाथ से पकड़ के के अपनी बिल के दरवाजे पे सटाया और पूरी ताकत से बैठ गयीं। एक तो मैंने पहले ही छँटाक भर तेल अपनी भौजी की बुरिया को पिलाया था और फिर रगड़ मसल के जो चाशनी निकली थी, धीरे धीरे कर के इंच इंच मेरा आधा से ज्यादा मूसल उनके अंदर,