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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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वाह कोमल मैम

कितने अच्छे से और गहराई से टीनेज की मनोदशा बताई है।

सादर
कहानी लिखते समय या कमेंट का जवाब देते समय कई बार मैं कोशिश करती हूँ यादों को कुरेदूँ , कई बार वो खुद सामने आके खड़ी हो जाती हैं और कहती हैं , मेरे बारे में नहीं लिखोगी, मुझे एकदम बिसरा दिया , और बस कलम उधर ही मुड़ जाती है।

और कैशोर्य तो बस, जाड़े की धूप की तरह, नरमाहट वाली गरमी, कुछ अलसायी सी, कुछ भाभी की छुप के काटी गयी चिकोटियां की तरह, ... परछाई को पकड़ने की कोशिश की तरह, झप्प से आता है, जब तक समझो समझो, चला जाता है फिर कभी पुराने गानों में कभी स्कूल की तस्वीरों में मिलता है।

कभी अच्छा लगता है, कभी दुःख भी देता है, काश,...

जिंदगी की कहानी में तो काश,... के कितने पल आते हैं और बाद में रोज के काम में दब जाते हैं

कितने गुड्डी और आनंद शादियों में मिलते हैं, बतियाते हैं, ... मुड़ मुड़ के देखते हैं और जिंदगी कही और मुड़ जाती है।

पर यह तो कहानी है इसमें तो मैं कोशिश कर सकती हूँ, गुड्डी और आनंद साथ साथ ही रहें,

जो भी थोड़े बहुत लोग आएं उनसे मिलने,... उनसे मिलें, बतियाएं, गप्पे मारें

और हम लोग भी मुड़ के पीछे देखें,... दुःख सालता है, लेकिन अच्छा लगता है कभी कभी।



आप का साथ इस कथा यात्रा में तो रहेगा ही लेकिन कमेंट पर आपके कमेंट देखकर अच्छा लगा।
 

komaalrani

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Bilkul sahi kaha komalji. Yaha muje kuchh alag laga to vo ye ki mohe rang de thi komal ki jubani. Ek nari ki chahat ,vedna, anubhav kahani. Vahi yaha to sajan ji. Matlab ek purush ki jubani har ek feelings ko. Amezing he. Dono hi.
लिखने वाली तो मैं ही हूँ दर्द छलक जाता है।

यह पहली और एकमात्र कोशिश थी मेरी की नैरेटर एक पुरुष पात्र हो, उस के नजरिये से कहानी लिखी जाए। मैंने मन को समझाया कहानी कहते समय अपने को पार कर के जाना चाहिए, वह हमेशा अपने अनुभव और यादों के इर्द गिर्द नहीं होनी चाहिए , इसलिए मैंने नैरेटर बदल दिया, कहानी कहने का जिम्मा आनंद बाबू को दे दिया, ... पर

पता नहीं मैंने बेईमानी की या गुड्डी और बाकी स्त्री पात्रों ने जोर दिखाया, और यह कहानी भी स्त्री प्रमुख ही है।

मोहे रंग दे में नैन मिले लेकिन महीने दो महीने में शादी हो गयी, वहां नैन मिलते समय नायिका कैशोर्य के उत्कर्ष पर थी,

पर यहाँ तो कैशोर्य के शुरू के सोपान थे जब गुड्डी बाबू और आनंद मिले, फिर तीन साल तक कभी कभी मिलते ही रहे, ... और जब कहानी शुरू हुयी तो इसलिए थोड़ा सा फ्लैश बैक

मोहे रंग दे में कहानी एक तरह से सुहागरात से शुरू होती थी और नव वधु के शुरू के दिन थे, इस फोरम में, बाहर भी पति पत्नी की कहानी या तो सेक्स की होती है या झगडे की। पर मोहे रंग दे पति पत्नी के बीच कैशोर्य के रोमांस की तरह की कहानी है इसलिए आप ऐसे विरले रससिक्त लोगों को छोड़ के ज्यादा आशीष नहीं मिला उसे, ...

फागुन के दिन चार में सुहागरात तो छोड़िये शादी भी अभी बहुत दूर है।
 

Shetan

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लिखने वाली तो मैं ही हूँ दर्द छलक जाता है।

यह पहली और एकमात्र कोशिश थी मेरी की नैरेटर एक पुरुष पात्र हो, उस के नजरिये से कहानी लिखी जाए। मैंने मन को समझाया कहानी कहते समय अपने को पार कर के जाना चाहिए, वह हमेशा अपने अनुभव और यादों के इर्द गिर्द नहीं होनी चाहिए , इसलिए मैंने नैरेटर बदल दिया, कहानी कहने का जिम्मा आनंद बाबू को दे दिया, ... पर

पता नहीं मैंने बेईमानी की या गुड्डी और बाकी स्त्री पात्रों ने जोर दिखाया, और यह कहानी भी स्त्री प्रमुख ही है।

मोहे रंग दे में नैन मिले लेकिन महीने दो महीने में शादी हो गयी, वहां नैन मिलते समय नायिका कैशोर्य के उत्कर्ष पर थी,

पर यहाँ तो कैशोर्य के शुरू के सोपान थे जब गुड्डी बाबू और आनंद मिले, फिर तीन साल तक कभी कभी मिलते ही रहे, ... और जब कहानी शुरू हुयी तो इसलिए थोड़ा सा फ्लैश बैक

मोहे रंग दे में कहानी एक तरह से सुहागरात से शुरू होती थी और नव वधु के शुरू के दिन थे, इस फोरम में, बाहर भी पति पत्नी की कहानी या तो सेक्स की होती है या झगडे की। पर मोहे रंग दे पति पत्नी के बीच कैशोर्य के रोमांस की तरह की कहानी है इसलिए आप ऐसे विरले रससिक्त लोगों को छोड़ के ज्यादा आशीष नहीं मिला उसे, ...

फागुन के दिन चार में सुहागरात तो छोड़िये शादी भी अभी बहुत दूर है।
Ha ispar me bhi sahemat hu. Par kai bar hota he. Ham kosis karte ki purush ke najriye se soch kar likhe kuchh.
Par ham kuchh hi mamle me soch pate he. Thik vesa bhi unke lie bhi he. Log lady ke najariye se kahani likhte jarur he. Par vo bhi galtiya kar hi beth te he.
Me mohe rang de par hi atak is lie gai. Kyo ki usme aapne real feelings ko jata diya. Thik jo mahesus karti hu. Samajik jivan ke kisse mazak aap apne jarike se darshati ho jatatati ho. Achhi sab ko lag rahi he. Par unme unko kya achha laga ye alag bat ho jati he.

Mohe rang de ko feel kar ke hi mene komarya likhi. Jo romantic story he. Kahani alag par feelings vahi he.
 

Shetan

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भाभी, गुड्डी और भांग की गुझिया


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भाभी और चंदा भाभी की गाने की आवाज की टनकार तेज हो रही थी और मैं यादों की झुरमुट से वापस आया,



भाभी जोर जोर से मुझे सुना के गा रही थीं साथ में चंदा भाभी
“गंगाजी तुम्हारा भला करें गंगाजी…” भाभी ने अगली गारी शुरू कर दी थी।

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी

तोहरी बहिनी क तोहरी गुड्डी क बुरिया इनरवा जैसे पोखरवा जैसे

तोहरी अम्मा क भोंसड़ा इनरवा जैसे पोखरवा जैसे

नौ सौ गुंडा नहावा करें, मजा लूटा करें, बुर हर हर हुआ करे ,

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी।

तोहरी बहिनी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

तोहरी गुड्डी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

तोहरी अम्मा क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

ओहमें नौ मन चावल पका करे बुर फच फच हुआ करे

बुर फच फच हुआ करे, गंगा जी

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी

तोहरे बहिनी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

तोहरे गुड्डी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

तोहरे अम्मा क भोंसड़ा सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

अरे नॉ सौ गाडी चला करे बुर फट फट हुआ करे


गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी
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और एक के बाद एक नान स्टाप।



आनंद साल्ला पूछे अपनी बहना से अपनी गुड्डी से,

बहिनी तुम्हारी बिलिया में, क्या-क्या समाय,

अरे भैया तुम समाओ भाभी के सब भैया समाय

बनारस के सब यार समाय

आनंद मादरचोद पूछे अपनी अम्मा से अम्मा तोहरी बुरिया में का का समायी

अरे तोहरे भोंसडे में का का समायी , का का अमाई

भैया हमारे भोंसडे में कालीनगंज के सब भंडुए समाये, आजमगढ़ एक सब गंडुए समाये

बनारस के सब पण्डे समाये,


हाथी जाय घोड़ा जाय। ऊंट बिचारा गोता खाय। हमारी बुरिया में।


और।



हमारे अंगना में चली आनंद की बहिनी, अरे गुड्डी रानी,

गिरी पड़ी बिछलाईं जी, अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी।

अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गणियों में घुस गई लकड़िया जी।

हमारे अंगना में चली आनंद की अम्मा , अरे आनंद क महतारी

अरे वो तो गिरी पड़ी बिछलाईं जी,


अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी

अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गांडी में घुस गई लकड़िया जी।

मैं खाना खतम कर कर चुका था लेकिन मुझे कुछ अलग सा लगा रहा था। एकदम एक मस्ती सी छाई थी और मैंने खाया भी कितना। तब तक गुड्डी आई मैंने उससे पूछा-

“हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या? गुझिया में। मुझे कैसे लगा रहा है…”


वो हँसने लगी कसकर- “क्यों कैसा लग रहा है?”

“बस मस्ती छा रही है। मन करता है की। तुम पास आओ तो बताऊँ। था न कुछ गुझिया में…”

“ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी। और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाई थी उन्हीं से पूछिए ना। मैंने तो सिर्फ दिया था। सच कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है…”

मुझे चिढ़ाने में गुड्डी अपनी मम्मी से पीछे नहीं थी।
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और तब तक चन्दा भाभी आ गईं एक प्लेट में चावल लेकर।

“ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या?” गुड्डी ने मुड़कर चंदा भाभी से पूछा।

“मुझे क्या मालूम?” मुश्कुराकर वो बोली- “खाया इन्होंने खिलाया तुमने। क्यों कैसा लग रहा है?”

“एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा। और मैंने खाया भी कितना इसलिए जरूर गुझिया में…” मैं मुश्कुराकर बोला।

“साफ-साफ क्यों नहीं कहते। अरे मान लिया रही भी हो। तो होली है ससुराल में आए हो,साल्ली सलहज। यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा। ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है…” चंदा भाभी बोलीं

और वो झुक के चावल देने लगी। उनका आँचल गिर गया। पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में और उनके लो-कट लाल ब्लाउज़ से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे।
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मेरी नीचे की सांस नीचे, ऊपर की ऊपर। लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला- नहीं भाभी नहीं।

“क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह। तेरा तो सच में पैंट खोलकर चेक करना पड़ेगा। अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए, लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो…”

गुड्डी खड़ी मुश्कुरा रही थी। तब तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गई।

चन्दा भाभी उसी तरह मुश्कुरा रही थी। उन्होंने आँचल ठीक नहीं किया। “क्या देख रहे हो…” मुश्कुराकर वो बोली।


“नहीं, हाँ, कुछ नहीं, भाभी…” मैं कुछ घबड़ाकर शर्माकर सिर नीचे झुका के बोला। फिर हिम्मत करके थूक घोंटते हुए। मैंने कहा- “भाभी। देखने की चीज हो तो आदमी देखेगा ही…”

“अच्छा चलो तुम्हारे बोल तो फूटे। लेकिन क्या सिर्फ देखने की चीज है…”
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ये कहते हुए उन्होंने अपना आँचल ठीक कर लिया। लेकिन अब तो ये और कातिल हो गया था। एक उभार साफ साड़ी से बाहर दिख रहा था और एकदम टाईट ब्लाउज़ खूब लो कटा हुआ।

मेरा वो तनतना गया था। तम्बू पूरी तरह तन गया था। किसी तरह मैं दोनों पैरों को सिकोड़ के उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन चन्दा भाभी ना। वो आकर ठीक मेरे बगल में बैठ गईं। एक उंगली से मेरे गालों को छूते हुए वो बोली-

“हाँ तो तुम क्या कह रहे थे। देखने की चीज है या। कुछ और भी। देखूं तुम्हारी छिनार मायके वालियों ने क्या सिखाया है…”

तब तक मैंने देखा की उनकी आँखें मेरे तम्बू पे गड़ी हैं।

कुछ गुझिया का असर कुछ गालियों का। हिम्मत करके मैं बोल ही गया-

“नहीं भाभी। मन तो बहुत कुछ करने का होता है है। अब ऐसी हो। तो लालच लगेगा ही ना…” अब मैं भी उनके रसीले जोबन को खुलकर देख रहा था।

“सिर्फ ललचाते रह जाओगे…”
अब वो खुलकर हँसकर बोली-

“देवरजी जरा हिम्मत करो। ससुराल में हो हिम्मत करो। ललचाते क्यों हों? मांग लो खुलकर। बल्की ले लो, एकदम अनाड़ी हो…” और फिर जैसे अपने से बोल रही हों। एक रात मेरी पकड़ में आ जाओ। ना। तो अनाड़ी से पूरा खिलाड़ी बना दूँगी"

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और ये कहते हुए उन्होंने चावल की पूरी प्लेट मेरी थाली में उड़ेल दी।

“अरे नहीं भाभी मैं इत्ता नहीं ले पाऊंगा…” मैं घबड़ाकर बोला।

“झूठे देखकर तो लगता है की…” उनकी निगाहें साफ-साफ मेरे ‘तम्बू’ पे थी।


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फिर मुश्कुराकर बोली- “पहली बार ये हो रहा है की मैं दे रही हूँ और कोई लेने से मना कर रहा है…”

“नहीं ये बात नहीं है जरा भी जगह नहीं हैं…”

वो जाने के लिए उठ गई थी लेकिन मुड़ीं और बोली-

“अच्छा जी। कोई लड़की बोलेगी और नहीं अब बस तो क्या मान जाओगे। पूरा खाना है। एक-एक दाना। और ऊपर के छेद से ना जाए ना तो मैं हूँ ना। पीछे वाले छेद से डाल दूँगी…”

तब तक दरवाजा खुला और भाभी (गुड्डी की मम्मी) और गुड्डी अंदर आ गए। भाभी भी चन्दा भाभी का साथ देती हुई बोली-

“एकदम और जायगा तो दोनों ओर से पेट में ही ना…”
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और उसी समय मुझसे गलती हो गयी, ... गलती क्या हुयी, खता किसी और की थी सज़ा मुझे मिली। बताया था न गुड्डी की मम्मी के बारे में दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज चंदा भाभी इतना लो कट तो नहीं लेकिन कम भी नहीं,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... और मैंने कहा था एम् आई एल ऍफ़ की पहली पायदान पर तो चढ़ ही गयी थीं,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी



और उन्होंने मुझे देखते देख लिया



बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और वो लेवल बढ़ा दिया,



थाली में पड़े चावल का मौका मुआयना करते गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,...

" गुड्डी जरा किचेन से मोटका बेलनवा तो ले आना, बेलनवा से पेल के ठेल के पिछवाड़े घुसाय देंगे एक एक चावल "

गुड्डी खिस खिस हंसती रही.



और गुड्डी की मम्मी, भाभी और,

" एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "
---
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और मैंने सर झुका के थाली में रखा चावल खाना शुरू कर दिया, लेकिन अब भाभी छोड़ने के मूड में नहीं थीं, मेरा गाल सहलाते चंदा भाभी से बोलीं,

" होली में ऐसे चिकने लौंडे की बिना लिए, नथ उतारे,... "

चंदा भाभी कौन काम थीं, साफ़ साफ़ पूछ लिया,... " अगवाड़े की पिछवाड़े "



" दोनों ओर " भाभी बोलीं, लेकिन चंदा भाभी ने जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली,... " अरे आप जाइये न निश्चिन्त होके, मैं हूँ न अच्छी तरह से नथ उतराई होगी इनकी आज। जैसे दालमंडी में इनकी बहन की होगी एकदम वैसे इनकी यहाँ "



मैं जान रहा था की अगर बोला तो मधुमखी के छत्ते में हाथ पड़ा,... इसलिए सर झुकाये बस खाना खाने में लगा था। लेकिन जंगबहादुर का क्या करें ऐसी रसीली बातें सुन के वो तो सर उठाये जा रहे थे. मैंने उनसे छुपाने के लिए एक पैर पर दूसरा पैर रखने की कोशिश की पर तब भी,... लेकिन भाभी की नजर से कोई चीज नहीं बच सकती थी, मुझसे बोली,



" ये क्या टांग पर टांग सटा के बैठे हो, तोहार बहिन महतारी तो हरदम टांग फैलाये रहती हैं, फैलाओ टांग वरना, .... गुड्डी जरा बेलनवा ले आओ "

मैंने टांग हटा दी और अब तम्बू में जबरदस्त बम्बू बित्ते भर का खड़ा, और अब तीनो मुस्करा रही थीं, भाभी और चंदा भाभी खुल के और गुड्डी मेरे पीछे खड़ी, खिस खिस,...

" जानती हो इनकी ये हालत काहें हुयी, " भाभी चंदा भाभी से पूछीं,

जानता तो मैं भी था और वो भी, उनके चोली फाड़ कड़क गद्दर जोबन जो सफ़ेद ब्लाउज से साफ़ झलक रहे थे उसी ने ये हालत की थी लेकिन देवर हो तो कौन भौजाई खींचने का मौका छोड़ देती है,



चंदा भाभी बोलीं ,


" अरे आप ने भैया को उनके अम्मा के भोंसडे की याद दिला दी, बेचारे उनको मातृभूमि की याद आ गयी और मातृभूमि के लिए लोग क्या क्या नहीं करते। "

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" गुड्डी, जरा इधर आना बेटी " दुलार से उन्होंने बुलाया और काम पे लगा दिया, ...

" यहीं रहना और अगर चावल बच गया, जितना दाना बचेगा, उतने लौंडे बनारस के इनकी बहन पे चढ़ेंगे,... वो भी फ्री। ये जिम्मेदारी तेरी हटना मत इनके पास से "

" एकदम " आज्ञाकारी बेटी की तरह गुड्डी ने सर हिलाया लेकिन क्लास में कुछ लड़कियां होती हैं न सबसे पहले हाथ उठाती हैं सवाल पूछने के लिए, गुड्डी उसी में से थी, अपनी मम्मी से बोली,...

" लेकिन मम्मी मैं गिन तो लूंगी लेकिन इनकी बहन तो यहाँ है नहीं अभी,.. "

" लेकिन ये तो हैं न यहाँ, इनकी बहन न सही यही सही " चंदा भाभी थीं न आग में घी डालनेवाली।

" और क्या इतना गोरा चिकना तो है, बहन इसकी अगवाड़े से घोंटती ये पिछवाड़े से घोंटेंगें। " भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने फैसला सुना दिया फैसले का कारण भी
"हम बनारस वाले छेद छेद में भेद नहीं करते, और होली में ससुरारी आएं है वो भी बनारस तो बिना नथ उतरे,... "
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वो दोनों तो हँस ही रही थी। वो दुष्ट गुड्डी भी मुश्कुराकर उन लोगों का साथ दे रही थी।

तबतक गुड्डी की छोटी बहन आ गयी सबसे छोटी, छुटकी हाथ में बेलन लेके

" मम्मी आपने बेलन मंगाया था "


अब तो चंदा भाभी और भाभी, गुड्डी की मम्मी की हंसी रुके नहीं रुक रही थी। गुड्डी भी खिस खिस,...

किसी तरह हंसी रोक के गुड्डी की मम्मी बोली,... " हाँ गुड्डी को दे दो "

फिर उन्हें याद आया की वो आयी किस लिए थीं, एक क्राइसिस हो गयी थी छोटी सी।

पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है, कितनी लेट है लेकिन उससे भी बड़ी बात थी, बर्थ की। दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।

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Anand babu to aaj kahi se bhi bach nahi pa rahe. Sharuat gariyane vale gane se. Fir chanda bhabhi aur guddi ki mummy. Vo chaval vala daylog to ekdam jabardast. Maza aa gaya. Upar se nahi khaya to pichhe se khila denge.

Aur vo bhi jabardast tha. Jitne chaval bachenge utne iski bahan aur mahtari pe chandgenge.

Erotic seen chanda bhabhi ke sath jabardast tha. Amezing komalji.
 

Shetan

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259
शलवार सूट वाली



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पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है और दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।



मैं डरा की कहीं इन लोगों का जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ तो मेरी तो सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी।


“अरे इत्ती सी बात भाभी आप मुझसे कहती…” मैंने हिम्मत बंधाते हुए कहा ओर एक-दो लोगों को फोन लगाया- मेरा एक बैचमेंट , वो मसूरी में मेरा रूम मेट भी था और टेनिस में पार्टनर भी उसे, रेलवे मिली थी और बनारस में ही ट्रेनिंग कर रहा था। और एक सीनियर थे हॉस्टल के वो भी रेलवे में यही थे,

“बस दस मिनट में पता चल जाएगा। भाभी आप चिंता ना करें…”

मैंने उन्हें एश्योर किया, बोल मैं भाभी, गुड्डी की मम्मी से रहा था लेकिन मेरी निगाह गुड्डी के चेहरे पर टिकी थी, वो भी परेशान लग रही थी। चार लोगों को जाना और दो की बर्थ नहीं तो कैसे, अब उसकी बहने इत्ती छोटी भी नहीं की एडजस्ट हो जाएंगी, एक बर्थ कम से कम,... और अगर कहीं उन लोगों का जाना टला लगा तो उस की भी होली पे ग्रहण लग जाएगा। वो उम्मीद से मेरी ओर देख रही थी।

मैंने एक बार फिर से मैंने फोन लगाया,

और थोड़ी देर में फोन आ गया।


“चलो मैं तो इतना घबड़ा रही थी…” चैन की साँस लेते हुए वो चली गई लेकिन साथ में गुड्डी को भी ले गईं…” चल पैकिंग जल्दी खतम कर और अपना सामान भी पैक कर ले कहीं कुछ रह ना जाय…”



मैंने जाकर भाभी को बता दिया। गुड्डी भी अपनी दोनों छोटी बहनों को तैयार होने में मदद कर रही थी।

मेरी तरह से वो भी बस यही सोच रही थी, इन लोगों के कानपुर जाने के प्रोग्राम में कोई विघ्न न पड़े, टाइम पे स्टेशन पहुँच जाए, ट्रेन में बैठें तो कल के उसके प्रोग्राम में कोई अड़चन न पड़े, दूसरे यह भी था की उसकी मम्मी के जाने के बाद मेरी रगड़ाई वो और अच्छी कर सकती थी, मम्मी के जानते बाद ये वतन चंदा भाभी के हवाले होना था और चंदा भाभी तो उसकी सहेली सी ही थीं। वैसे गुड्डी की दोनों छोटी बहने, सब उन्हें मझली और छुटकी ही कहते थे, इत्ती छोटी भी नहीं थी, एक नौवें में दूसरी आठवें में।

चन्दा भाभी भी वहीं बैठी थी।

“गाड़ी पंद्रह मिनट लेट है तो अभी चालीस मिनट है। स्टेशन पहुँचने में 20 मिनट लगेगा। तो आप लोग आराम से तैयार हो सकते हैं। “

मैंने उन्हें बताया

“नहीं हम सब लोग तैयार हैं। गब्बू जाकर रिक्शा ले आ…” पड़ोस के एक लड़के से से वो बोली।

“और रहा आपकी बर्थ का। तो पिछले स्टेशन को इन लोगों ने खबर कर दिया था। तो 19 और 21 नंबर की दो बर्थें मिल गई हैं। आप सब लोगों को वो एक केबिन में एडजस्ट भी कर देंगे। स्टेशन पे वो लोग आ जायेंगे। मैं भी साथ चलूँगा तो सब हो जाएगा…”

मैं बोल भाभी से रहा था लेकिन नजर गुड्डी के चेहरे से चिपकी थी। मैं बदलता रंग देख रहा था, अब वह एकदम खुश, अपनी सबसे छोटी बहन छुटकी को हड़का रही थी. एक नजर जैसे इतरा के उसने मुझे देखा,... फिर जब मुझे देखते पकड़ा, तो सबकी नजर बचा के जीभ निकल के चिढ़ा दी।

समझ तो वो भी रही थी की मैंने ये सब चक्कर किस लिए किया है,



“अरे भैया ये ना। बताओ अब ये सीधे स्टेशन पे मिलेंगे। अगर तुम ना होते ना। लेकिन मान गए बड़ी पावर है तुम्हारी। मैं तो सोच रही थी की,… एक बर्थ भी मिल जाती और तो बैठ के भी चले जाते, लेकिन तुम ने तो सब, जरा मैं नीचे से सबसे मिलकर आती हूँ…”

और वो नीचे चली गईं।

और अब गुड्डी खुल के मुझे देख के मुस्करायी।
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चन्दा भाभी ने गुड्डी को छेड़ते हुए कहा- “अरे असली पावर वाली तो तू है। जो इत्ते पावर वाले को अपने पावर में किये हुए हैं…”
वो शर्माई, मुस्करायी और बोली- “हाँ ऐसे सीधे जरूर हैं ये जो, …”

मैंने चंदा भाभी से कहा अच्छा भाभी चलता हूँ।

“मतलब?” गुड्डी ने घूर के पूछा।

“अरी यार 9:00 बज रहा है। इन लोगों को छोड़कर मैं रेस्टहाउस जाऊँगा। और फिर सुबह तुम्हें लेने के लिए। हाजिर…” मैंने अपना प्रोग्राम बता दिया।

“जी नहीं…” गुर्राते हुए वो बोली- “क्या करोगे तुम रेस्टहाउस जाकर। पहले आधा शहर जाओ फिर सुबह आओ, कोई जरूरत नहीं। फिर सुबह लेट हो जाओगे। कहोगे देर तक सोता रह गया। तुम कहीं नहीं जाओगे बल्की मैं भी तुहारे साथ स्टेशन चल रही हूँ। दो मिनट में तैयार होकर आई…”

और ये जा वो जा।



चंदा भाभी मुस्कराती हुए बोली- “अच्छा है तुम्हें कंट्रोल में रखती है…”
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मेरे मुँह से निकल गया लेकिन मेरे कंट्रोल में नहीं आती।

तब तक वो तैयार होकर आ भी गई। शलवार सूट में गजब की लग रही थी।



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आकर मेरे बगल में खड़ी हो गई।

“क्या मस्त लग रही हो?” मैंने हल्के से बोला।

लेकिन दोनों नें सुन लिया। गुड्डी ने घूर के देखा और चन्दा भाभी हल्के से मुश्कुरा रही थी। मुझे लगा की फिर डांट पड़ेगी। लेकिन गुड्डी ने सिर्फ अपने सीने पे दुपट्टे को हल्के से ठीक कर लिया और चंदा भाभी ने बात बदल कर गुड्डी से बोला-

“हे तू लौटते हुए मेरा कुछ सामान लेती आना, ठीक है…”

“एकदम। क्या लाना है?”

“बताती हूँ लेकिन पहले पैसा तो ले ले…”

“अरे आप भी ना। खिलखिलाती हुई, मेरी और इशारा करके वो बोली-
“ये चलता फिरता एटीएम तो है ना मेरे पास…” और मुझे हड़काते हुए उसने कहा- “हे स्टेशन चल रहे हैं कहीं भीड़ भाड़ में कोई तुम्हारी पाकेट ना मार ले, पर्स निकालकर मुझे दे दो…”
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चन्दा भाभी भी ना। मेरे बगल में खड़ी लेकिन उनका हाथ मेरा पिछवाड़ा सहला रहा था। वो अपनी एक उंगली कसकर दरार में रगड़ती बोली-

“अरे तुझे पाकेट की पड़ी है मुझे इनके सतीत्व की चिंता हैं कहीं बीच बाजार लुट गया तो। ये तो कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे…”
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गुड्डी मुस्कराती हुई मेरे पर्स में से पैसे गिन रही थी।

तभी उसने कुछ देखा और उसका चेहरा बीर बहूटी हो गया।

मैं समझ गया और घबड़ा गया की कहीं वो किशोरी बुरा ना मान जाए। जब वो कमरे से बाहर गई थी तो उसके दराज से मैंने एक उसकी फोटो निकाल ली थी, उसके स्कूल की आई कार्ड की थी, स्कूल की यूनिफार्म में। बहुत सेक्सी लग रही थी। मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई।

“क्यों क्या हुआ पैसा वैसा नहीं है क्या?” चन्दा भाभी ने छेड़ा।

मेरी पूरे महीने की तनखाह थी उसमें।

“हाँ कुछ खास नहीं है लेकिन ये है ना चाभी…” मेरे पर्स से कार्ड निकालकर दिखाते हुए कहा।

“अरी उससे क्या होगा पासवर्ड चाहिए…” चन्दा भाभी ने बोला।

“वो इनकी हर चीज का है मेरे पास…” ठसके से प्यार से मुझे देखकर मुश्कुराते हुए वो कमलनयनी बोली।
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उसकी बर्थ-डेट ही मेरे हर चीज का पास वर्ड थी, मेल आईडी से लेकर सारे कार्डस तक।

लेकिन चन्दा भाभी के मन में तो कुछ और था- “अरे इनके पास तो टकसाल है। टकसाल…” वो आँख नचाते बोली।

“इनके मायके वाली ना, एलवल वाली, जिसका गुण गान आप लोग खाने के समय कर रही थी…” गुड्डी कम नहीं थी।

“और क्या एक रात बैठा दें। तो जित्ता चाहें उत्ता पैसा। रात भर लाइन लगी रहेगी…” चंदा भाभी बोली।

“और अभी साथ नहीं है तो क्या एडवांस बुकिंग तो कर ही सकते हैं ना…” गुड्डी पूरे मूड में थी। फिर वो मुझे देखकर बोलने लगी।

कुछ लोगों को चोरी की आदत लग जाती है,

मैं समझ रहा था किस बारे में बात कर रही है फिर भी मैं मुस्कराकर बोला-

“भाभी ने मुझे आज समझा दिया है, अब चोरी का जमाना नहीं रहा सीधे डाका डाल देना चाहिए…”

फिर बात बदलने के लिए मैंने पूछा- “भाभी आप कह रही थी ना। बाजार से कुछ लाना है?”

“अरे तुम्ह क्या मालूम है यहाँ की बाजार के बारे में, गुड्डी तू सुन…” चंदा भाभी ने हड़का लिया

“हाँ मुझे बताइये। और वैसे भी इनके पास पैसा वैसा तो है नहीं…” हवा में मेरा पर्स लहराते गुड्डी बोली।

“वो जो एक स्पेशल पान की दुकान है ना स्टेशन से लौटते हुए पड़ेगी…”

“अरे वही जो लक्सा पे है ना। जहां एक बार आप मुझे ले गई थी ना…” गुड्डी बोली।

“वही दो जोड़ी स्पेशल पान ले लेना और अपने लिए एक मीठा पान…”
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“लेकिन मैं पान नहीं खाता। आज तक कभी नहीं खाया…” मैंने बीच में बोला।

“तुमसे कौन पूछ रहा है। बीच में जरूर बोलेंगे…” गुड्डी गुर्रायी। ये तो बाद में देखा जाएगा की कौन खाता है कौन नहीं। हाँ और क्या लाना है?”

“कल तुम इनके मायके जाओगी ना। तो एक किलो स्पेशल गुलाब जामुन नत्था के यहाँ से। बाकी तेरी मर्जी…” चंदा भाभी ने अपनी लिस्ट पूरी की
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पर्स में से गुड्डी ने मुड़ी तुड़ी एक दस की नोट निकाली और मुझे देती हुई बोली-

“रख लो जेब खर्च के लिए तुम भी समझोगे की किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
तब तक नीचे से आवाज आई। रिक्शा आ गया। रिक्शा आ गया।

हम लोग नीचे आ गए। मैंने सोचा की गुड्डी के साथ रिक्शे पे बैठ जाऊँगा लेकिन वो दुष्ट जानबूझ के अपनी मम्मी के साथ आगे के रिक्शे पे बैठ गई ओर मुझे मुड़कर अंगूठा दिखा रही थी।

वो जान रही थी, की मेरा इरादा प्लानिंग, रिक्शे पे साथ बैठता तो कम से कम कंधे पे तो हाथ रखी लेता अगर उसके आगे नहीं बढ़ता, दस पंद्रह मिनट का अकेले का टाइम मिलता बतियाने का। लेकिन वो मुझसे ज्यादा चालाक थी, मैं जब तक प्लानिंग करता वो चाल चल देती थी। एक तो मुझे तंग करने का इन्तजार करने का , दूसरे मम्मी के साथ बैठ के रस्ते भर उनसे बतिया सकती थी.



मुझे उसकी बहनों के साथ बैठना पड़ा।



गनीमत थी की गाड़ी ज्यादा लेट नहीं थी इसलिए देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा। बर्थ भी मिल गई और स्टेशन पे स्टाफ आ भी गया था। स्टेशन पहुँचने के पहले रास्ते में ही टीटी ने पैसेंजर से बात करके इनकी कन्फर्म बर्थ और खाली बर्थों को मिला के एक केबिन करवा दिया था, दो लोवर दो अपर एक ही केबिन में , डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट ने खुद उन लोगो को केबिन में पहुंचाने के बाद टी टी को भी बोल दिया। उसके पापा मम्मी इत्ते खुश थे की,… गुड्डी की मम्मी तारीफ़ से बार बार मुझे देख रही थीं।

मैं भाभी की निगाह में देख रहा था वो कितनी इम्प्रेस्ड थीं, स्टेशन के स्टाफ यूनिफार्म में, एक जी आर पी वाला भी कही से आ गया था, हम लोगो को सामान की चिंता भी नहीं करनी पड़ी स्टेशन स्टाफ ने सामन सेट कर दिया, यहाँ तक की केबिन में चारों बर्थ पे बिस्तर भी लगा था. गुड्डी के पापा के कोई परिचित मिल गए थे तो वो पास के केबिन में उनके पास चले गए थे, हम लोगों के केबिन में गुड्डी, उसकी मम्मी दोनों बहिने और मैं। दोनों उधम मचा रही थीं, तबतक डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट आये और बोले, " सर, इंजन चेंज होगा तो पंद्रह बीस मिनट लगेगा, आप लोग आराम से बैठिये, ट्रेन रेडी हो जायेगी तो मैं बता दूंगा। "



उन के जाते ही भाभी फिर मुझे देख के मुस्करायीं, मैंने छुटकी और मझली से कहा चलो अभी टाइम है तुम दोनों को चॉकलेट दिलवा देता हूँ,



मुझे चिप्स भी चाहिए छुटकी बोली, मंझली ने जोड़ा कॉमिक्स, पांच मिनट बाद मैं दोनों को लेकर वापस,... चॉकलेट, चिप्स, कॉमिक्स, पेप्सी



और मैंने भाभी से बोला, कानपुर में भी इन लोगो ने बोल दिया है कोई सामान उतरवाने कोई आ जाएगा और आप लोग लौटिएगा कब,...



" अभी पता नहीं हो सकता है होली के दो दिन बाद, हो सकता है तीन दिन बाद, अभी तो लौटने का रिजर्वेशन "



उनकी बात काट के मैं बोला, " अरे आप गुड्डी को बोल दीजियेगा, उसकी चिंता मत करियेगा, लौटने का रिजर्वेशन भी हो जाएगा, स्टेशन पर कोई आ भी जाएगा, मैं भी होली के चार पांच दिन बाद ही लौटूंगा, तब तक आप लोग आ जाइयेगा तो मुलाकात हो जायेगी, ... "



अब भाभी आपने रूप में आ गयीं, हंस के बोली,

" मुलाकात नहीं तोहार रगड़ाई होइ,... और कम से कम दो तीन दिन, ... हमार तोहार फगुआ उधार बा, एक इंच जगह बचेगी नहीं न अंदर न बाहर,... "

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फिर सीरियस होके बोलीं, भैया तोहार तो,... और ये बनारस में भी तोहार,... "
उनकी बात ख़तम होते ही मैं बोला, " एकदम भाभी,... अरे हो सकता है मई से ही दो तीन महीने की ट्रेनिंग बनारस में ही हो, यहाँ आफिसर्स मेस है, रेस्टहाउस,

भाभी एकदम आग, गुड्डी गुर्राने लगीं ऊपर से उसकी दोनों बहने भी कान पारे,



" एकदम नहीं, घर में रहना होगा, और खाना दोनों टाइम घर में " भाभी और गुड्डी दोनों साथ साथ बोली, और दोनों बहनों ने भी ऊपर से हामी भरी,...



सोचना भी मत कहीं और रहने को " भाभी भी बोलीं, तीन बार मुझसे हामी भरवाई और फिर जब मैंने कबूल कर लिया,... कान पकड़ा, तो भाभी अपने रंग में

" अरे दिन में ट्रेनिंग आफिस में करना, रात में मैं ट्रेनिंग दूंगी, रोज बिना नागा। "



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गुड्डी मंद मंद मुस्करा रही थी फिर बोली और खाने के साथ गारी भी रोज सुननी पड़ेगी ये भी बोल दीजिये, ...


" वो कोई कहने की बात है, बिना गारी के खाना कैसे पचेगा,... " हँसते हुए वो बोलीं फिर अपने रूप में एकदम कह मुझसे रही थी बोल गुड्डी से रही थीं


" और गारी क्या सब सही सही बोल रही थी , तुम तो जा ही रही हो इनके साथ, इनके बहन का हाल देख लेना, और जहाँ तक इनकी महतारी का हाल है , मैं अपने मन से कुछ नहीं कहती। बिन्नो की तिलक में जितने तिलकहरु गए थे, नाइ बारी कहार पंडित सब उनके पोखरा में डुबकी लगा के आये थे, कई कई बार, वही सब बता रहे थे,... "


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तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में भाभी ने कुछ समझाया भी।

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Amezing romantic. Vo pursh se jo photo nikla aur guddi ka mushkurana. Ekdam gudgudane vala seen dala he. Maza aa gaya. Jabardast. Aur peso pe hak jamana vo sagai aur nai nai shadi hui ho vesi feelings de raha tha. Reservation confirm karvakar to anand babu ne impression jama diya. Maza aa gaya. Jabardast. Masti kahi bhi kam nahi hui. Ye to sach he anand babu. Khana to tabhi pachega. Jab tumhri mahtari aur baheniya ki gari sunoge. Amezing. ....
 

Shetan

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Thanks aapko First part accha laga . I am sure ki second part bhi aapko pasand aayegaa,

Thanks so much.
Muje pura intjar he. Dhire dhire ek akasar padhungi.
 

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २१८

अपडेट पोस्टेड
ब्रेक -
गुड्डी का पिछवाड़ा और उनके भैया






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गुड्डी एकदम थेथर, अभी तीन बार तो उसकी गाँड़ कूटी गयी थी, तीन मर्दो की मलाई भरी थी गुड्डी की गांड में। मेरे दोनों जीजू, अजय और कमल और रीनू के जीजू मेरे ये, मेरा सोना मोना।

मेरी कमीनी बहिनिया की आँखे फटी पड़ रह थी जिस तरह से ये अपनी बहन की मार रहे थे अब तक हम सब कमल जीजू जो ही पिछवाड़े का पी एच डी मानते थे लेकिन रीनू ने इन्हे देख कर पूछा, पी एच डी के आगे कौन सी डिग्री होती है।

सच में जबरदस्त मारी थी गाँड़ इन्होने अपनी बहना की और अब ये अपनी साली के साथ,... अजय जीजू वाली पेसल सिगी, रीनू ने गुड्डी के मुंह में भी एक खोंस दी थी। गुड्डी और रीनू में खूब दोस्ती भी हो गयी थी, गुड्डी रीनू को मीठी भाभी कहने लगी थी।



दोनों जीजू फ्रेश होने गए थे और मैं सोच रही थी,... थोड़ी देर पहले के बारे में



गुड्डी को दर्द के साथ मजे भी दे रहे थे ये,...ऐसी बात नहीं थी की मेरी ननद को दर्द नहीं हो रहा था , बीच बीच में उसे चिलख उठती थी तो वो जोर से चीख उठती थी , चेहरे से दर्द छलक उठता था , तूफान में पत्ते की तरह उसकी देह लरज़ उठती थी , ... लेकिन वो साथ भी दे रही थी , जब वो झुक के उसके होंठों को चूमते , ... तो इनकी ममेरी बहन के थके होंठ एक बार फिर खुल उठते , वो भी चुम्मी का जवाब चुम्मी से देती , खुद उनके होठ चूस लेती , अपनी जीभ इनके मुंह में डाल देती ,


कृपया पढ़िए, आनंद लीजिये, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 

komaalrani

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Anand babu to aaj kahi se bhi bach nahi pa rahe. Sharuat gariyane vale gane se. Fir chanda bhabhi aur guddi ki mummy. Vo chaval vala daylog to ekdam jabardast. Maza aa gaya. Upar se nahi khaya to pichhe se khila denge.

Aur vo bhi jabardast tha. Jitne chaval bachenge utne iski bahan aur mahtari pe chandgenge.

Erotic seen chanda bhabhi ke sath jabardast tha. Amezing komalji.
Thanks for wonderful comments and support.
 

komaalrani

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Amezing romantic. Vo pursh se jo photo nikla aur guddi ka mushkurana. Ekdam gudgudane vala seen dala he. Maza aa gaya. Jabardast. Aur peso pe hak jamana vo sagai aur nai nai shadi hui ho vesi feelings de raha tha. Reservation confirm karvakar to anand babu ne impression jama diya. Maza aa gaya. Jabardast. Masti kahi bhi kam nahi hui. Ye to sach he anand babu. Khana to tabhi pachega. Jab tumhri mahtari aur baheniya ki gari sunoge. Amezing. ....
Thanks so much.
 

Ritz

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Yes you are right komalji. So much add on in the story. Enjoyable and you have cleverly focused on the untold part of your previous writing... Like kohabar narratives and station departure. Lots will come along with komalji 's khas teasing erotica.. Definitely it is going to be a blockbuster.
 
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