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कहानी लिखते समय या कमेंट का जवाब देते समय कई बार मैं कोशिश करती हूँ यादों को कुरेदूँ , कई बार वो खुद सामने आके खड़ी हो जाती हैं और कहती हैं , मेरे बारे में नहीं लिखोगी, मुझे एकदम बिसरा दिया , और बस कलम उधर ही मुड़ जाती है।वाह कोमल मैम
कितने अच्छे से और गहराई से टीनेज की मनोदशा बताई है।
सादर
और कैशोर्य तो बस, जाड़े की धूप की तरह, नरमाहट वाली गरमी, कुछ अलसायी सी, कुछ भाभी की छुप के काटी गयी चिकोटियां की तरह, ... परछाई को पकड़ने की कोशिश की तरह, झप्प से आता है, जब तक समझो समझो, चला जाता है फिर कभी पुराने गानों में कभी स्कूल की तस्वीरों में मिलता है।
कभी अच्छा लगता है, कभी दुःख भी देता है, काश,...
जिंदगी की कहानी में तो काश,... के कितने पल आते हैं और बाद में रोज के काम में दब जाते हैं
कितने गुड्डी और आनंद शादियों में मिलते हैं, बतियाते हैं, ... मुड़ मुड़ के देखते हैं और जिंदगी कही और मुड़ जाती है।
पर यह तो कहानी है इसमें तो मैं कोशिश कर सकती हूँ, गुड्डी और आनंद साथ साथ ही रहें,
जो भी थोड़े बहुत लोग आएं उनसे मिलने,... उनसे मिलें, बतियाएं, गप्पे मारें
और हम लोग भी मुड़ के पीछे देखें,... दुःख सालता है, लेकिन अच्छा लगता है कभी कभी।
आप का साथ इस कथा यात्रा में तो रहेगा ही लेकिन कमेंट पर आपके कमेंट देखकर अच्छा लगा।