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चिराग जवान था पर था तो मर्द ही। उसके लौड़े ने मां की बात मानने की पूरी कोशिश की पर नया माल बनाने के लिए गोटियों को वक्त चाहिए था और लौड़े को हार माननी पड़ी।
फुलवा चिराग का गिरा हुआ चेहरा देख कर हंस पड़ी। चिराग के गाल को चूमते हुए फुलवा ने उसकी चुटकी ली।
फुलवा, “शैतान कहीं के! कुछ तो शर्म करो! मुझे सुधारने निकले हो और खुद बिगड़ रहे हो? मेरे भोले आशिक जरा अपने बदन को वक्त दो की तुम्हारा उड़ाया पानी फिर बन जाए! एक और बात! अब हम प्रेमी हैं और हमारा एक दूसरे के बदन पर हक्क़ है पर अगर मैं या तुम रुको कहें तो दूसरे को रुकना होगा। मंजूर?”
चिराग अपनी मां की बात सुन कर शरमाया और मान भी गया। फुलवा फिर वापस नहाकर बाहर आई तो चिराग ने कुछ कपड़े बाहर निकाले थे।
फुलवा, “कहीं जा रहे हो?”
चिराग ने बताया की होटल में कसरत का कमरा है इस लिए दोनों को कसरत करने जाना है। फुलवा की भूख मिट चुकी थी और वह सच में कसरत करना चाहती थी।
दोनों T shirt और ट्रैक पैंट पहने कसरत करने गए तो वहां के लोगों को कसरत की खास पोशाक में पाया। चिराग और फुलवा बातें करते हुए अपनी कसरत करने लगे। बातों बातों में चिराग ने ठगने वाले व्यापारी से सौदे की बात की और फुलवा ने अपने अनुभव बताए।
SP किरण की मदद से जब फुलवा ने कैंटीन चलाया था तब एक सब्जीवाला उन्हें सब्जियां बहुत महंगी बेचने की कोशिश कर रहा था। दूसरा सब्जीवाला नही था तो फुलवा ने तरकीब इस्तमाल कर उसे ही ठग लिया। फिर उस सब्जीवाले ने कभी फुलवा के कैंटीन को तकलीफ नहीं दी। चिराग फुलवा की बात सुनकर सोच में पड़ गया।
1 घंटे तक अच्छे से कसरत करने के बाद मां बेटे रेस्टोरेंट में गए और नाश्ता किया। फुलवा ने juice और फल की प्लेट लेकर कल रात का देखा अपना रूप बदलने की ठानी। चिराग ने हमेशा की तरह दूध, उबले अंडे और पैनकेक लेकर अपनी मां के बने नाश्ते की तारीफ की।
मां बेटे को रेस्टोरेंट में देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि इन्हीं दोनों ने रात को क्या खेल खेले थे। चिराग ने अपनी मां से जल्दी जाते हुए उसे अकेले छोड़ने की माफी मांगी।
फुलवा चुपके से, “चिराग मुझे कुछ पैसे दे सकते हो? यहां तुम सब को सौ सौ रुपए देते हो। तुम्हारे जाने के बाद मुझे बाहर जाना पड़ा तो…”
चिराग ने अपनी मां के हाथ पर अपना हाथ रखा और मुस्कुराया।
चिराग, “मां यह पूरी जायदाद आपकी है! चलो मैं आप को क्रेडिट कार्ड इस्तमाल करना सिखाता हूं।”
चिराग ने रेस्टोरेंट का बिल चुकाते हुए फुलवा को कार्ड इस्तमाल करना सिखाया और कार्ड मां को देकर मीटिंग की तयारी में लग गया।
फुलवा ने तयार होकर निकले अपने सुंदर बेटे को गले लगाया और शुभ कामनाएं देकर भेजा। चिराग ने अपनी मां से वादा किया कि वह शाम को 6 बजे तक लौट आएगा।
फुलवा ने घड़ी में 9 बजते ही अपने अच्छे कपड़े पहने और होटल के दरवाजे के बगल में बनी बड़ी मेज पर गई। वहां की खूबसूरत लड़की ने मदद करनी चाही तो फुलवा ने अच्छे कपड़े खरीदने की दुकान पूछी। कुछ ही देर में एक गाड़ी फुलवा को लेकर एक चकाचौंध दुकानों की इमारत में गई। फुलवा ने लड़की के बताए दुकान का रास्ता पूंछा और वहां पहुंच गई।
Passion Dreams Boutique में कपड़ों से भरी खुली अलमारियां कतार में खड़ी थी। फुलवा हर बार एक सुंदर कपड़ा देख कर उसकी कीमत देखती और अचानक अपना हाथ पीछे कर लेती। फिर अपने आप को समझाकर दुबारा देखती। उसकी इस हरकत पर एक नजर पड़ी और वह औरत फुलवा की ओर बढ़ी।
औरत, “कुछ पसंद नहीं आ रहा?”
फुलवा संकोच करती, “असल में सब कुछ बहुत सुंदर है पर…”
औरत, “क्या हुआ?”
फुलवा शर्माकर डरते हुए, “मैंने कभी कपड़े खरीदे नहीं है! मुझे नहीं पता कैसे…”
औरत चौंककर, “कैसे मुमकिन है!!”
उस औरत का चेहरा इतना दोस्ताना और सच्चा था कि फुलवा उसे अपनी कहानी कुछ हद्द तक बताने लगी। फुलवा ने बताया की उसके बड़ा भाई उसके लिए बचपन में ही पैसा कमाने बाहर निकल गए। भाइयों ने पैसे कमाकर उसे 18वे साल लेने आने का वादा किया था। पर गरीब और अकेली लड़की को पहचान के आदमी ने भाइयों के शहर ले जाने के नाम पर कोठे पर बेचा। वहीं उसे बच्चा भी हुआ जो बाद में अनाथ पला बढ़ा। उसे एक कैद से दूसरे कैद में घुमाया गया जब एक दिन उसके जवान बेटे ने उसे ढूंढ कर बचाया। बाद में दोनों को पता चला की भाई एक्सीडेंट में गुजर चुके थे पर उन्होंने अपने दोस्त के पास उसके लिए कुछ पैसा छोड़ा था। अब फुलवा ने पहने कपड़े भी उसी दोस्त ने मदद करते हुए दिए कपड़े थे।
औरत के आंखों में आंसू थे पर होंठों पर निश्चय की मुस्कान।
औरत, “आप का बेटा किधर है?”
फुलवा, “उसे अपनी विरासत के साथ नई नौकरी मिली है। आज शाम तक वह मीटिंग में व्यस्त रहेगा!”
औरत, “फूलवाजी, मेरा नाम हनीफा है और मैं जानती हूं मर्दों के हाथों कैद होना कैसा होता है। आप मुझे एक दिन दीजिए और हम आपको बिकुल नया बना देंगे! सबसे पहले ब्यूटी पार्लर!!”
फुलवा, “लेकिन कपड़े?”
हनीफा हंसकर, “यह मेरी दुकान है! जब मैं चाहूं तब हमें कपड़े मिल सकते हैं!”
फुलवा को कुछ पता चलने से पहले उसे दूसरे दुकान के खास कमरे में ले जा कर उसके सारे कपड़े उतार दिए गए। फुलवा की बगलों और पैरों के बीच के जंगल को देख वहां की औरत कुछ बोली।
हनीफा, “बिना तराशे हुए हीरे को तुम्हारे हाथ में दोस्ती की वजह से दिया है! बोलो, कहीं और पूछूं?”
फुलवा के बगल के बालों और नीचे के बालों को हटाया गया तब तक वहां और तीन औरतें आ गई थी।
हनीफा, “फूलवाजी, इनसे मिलो! यह हैं मीना सोलंकी जो कुछ बड़े अस्पताल की मालिक हैं। यह हैं साफिया जो एक ऐसी कंपनी की साझेदार और चलाती हैं जो आप ना जाने तो बेहतर! (फुलवा चौंक गई और बाकी औरतें इस मजाक पर हंस पड़ी लेकिन किसी ने उसे गलत नहीं कहा) और आखिर में यह हैं रूबीना, मेरी मां!”
फुलवा चौंक कर, “मां?”
रूबीना अपने मंगलसूत्र को छू कर, “कम उम्र में निकाह कराया गया पर अब मैं अपने सच्चे प्यार के साथ हूं। आप को हमसे डरने की कोई जरूरत नहीं!”
बाकी का दिन पांच औरतों ने बातें करते, हंसते, चिढ़ाते और मर्द जात को गालियां देते हुए बिताया। फुलवा को सच में सहेलियां मिल गई जिन्होंने खुद दर्द, धोखा और प्यार पाया था। सब औरतों को जोड़ता एक मर्द था जो सबसे ज्यादा गलियों और किस्सों का हक्कदार था। जिसे सब दानव कहती थी पर उनके आवाज में दोस्ती और प्यार झलक रही थी।
फुलवा ने ब्यूटी पार्लर से वापस बुटीक में जाते हुए, “आप उसे दानव क्यों कहती हो?”
तीन औरतों ने आह भरते हुए अपनी नाभि के नीचे दबाया तो साफ़िया ने अपनी आंखें बंद कर मुंह बनाया।
साफ़िया, “आप को डरने की जरूरत नहीं! वह अब सब कुछ अपनी सौतेली बेटी को देकर खुद आराम की जिंदगी जी रहा है!”
बात वहां से जरूरी मुद्दों पर आ गई।
हनीफा, “फूलवाजी, आप को अपनी अंडरवियर अभी बदलनी होगी! जिसने भी इन्हें खरीदा है वह या तो अंधा था या आप को देखा ही नहीं था! आओ मेरे साथ!”
फुलवा को अपने बदन की नुमाइश करने की आदत थी पर जब एक छोटे कमरे में 4 औरतें मिलकर तय करें की क्या HOT और क्या NOT है तो जरा मुश्किल हो जाता है। शाम ढलते हुए फुलवा के पास न केवल उसे चाहिए थे वैसे कसरत के कपड़े थे पर उनके साथ रोज के इस्तमाल के लिए, घूमने के लिए, पार्टी के लिए, समारोह के लिए और हाथ लगे तो मर्द को रिझाने के लिए भी!
फुलवा के दिल की धड़कने तेज होने लगी थीं और उसका बदन गरमा रहा था जब उसने होटल में वापस कदम रखा। फुलवा नहीं जानती थी कि वह अपनी बीमारी से भूखी हो रही थी या अपने बेटे को सब दिखाने के लिए!
फुलवा ने अपने गॉगल साफिया की तरह अपने सर पर रखे और अपने सेट किए बालों को रूबीना की तरह लहराते हुए होटल की मेज पर अपनी चाबी मांगी तो वहां के आदमी की आंखें लगभग बाहर निकल आईं। किसी ने उसे धक्का देते हुए फुलवा का सामान उठाते हुए बताया की सर ऊपर जा चुके हैं। फुलवा ने उसे एक मुस्कान देते हुए मीना की तरह इठलाते हुए लिफ्ट में चढ़ गई। आदमी फुलवा को किसी जानी मानी मॉडलिंग एजेंसी के बारे में बता रहा था जब चिराग ने मुस्कुराते हुए रूम का दरवाजा खोला।
चिराग के चेहरे पर आए हैरानी के भाव देख कर फुलवा के अंदर की औरत इतराई। चिराग ने आदमी के हाथ में 100 की नोट थमाकर फुलवा को अंदर खींच लिया।
चिराग ने अपनी मां को देखा और देखता रह गया। फुलवा ने चिराग के गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा,
“बेटा भूख लगी है। कुछ खिला सकते हो?”