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फुलवा की संस्था ने birth certificate जमा कर उनके वहां के लोगों से मिलान कर पता लगाया की 19 लड़कियां गायब थी। रूबीना की किसी दोस्त के हाथों यह खबर न्यूज चैनल तक पहुंचाई गई और पुरानी दिल्ली में भूचाल आ गया।
पुलिस कमिश्नर ने अपना तबादला रोकने के लिए वहां के रिश्वतखोर अधिकारियों को निकाला और खुद छानबीन की। देश भर से 15 लड़कियां मिली तो 3 खुद को आज़ाद करा कर भाग चुकी थी। कमिश्नर को बड़ी नाकामयाबी से बताना पड़ा की एक लड़की की बलि दी जाने की आशंका है और ओझा को ढूंढा जा रहा था। ओझा मिलना मुश्किल था क्योंकि उन कोठों पर कुछ दिन पहले हमला हुआ था और वहां के सारे भड़वे मारे गए थे और लड़की का बाप लापता था।
उसी वक्त मुंबई में प्रिया दसवीं की परीक्षा की तयारी कर चुकी थी और बारहवीं की भी तयारी में लग गई थी। प्रिया ने अपनी कला को दिखाते हुए सूरज की पहली किरण में चमकती बेहद खूबसूरत औरत का चित्र फुलवा को बना कर दिखाया।
राज नर्तकी की यह तस्वीर रूबीना मांग कर ले गई और दो दिन बाद उसके पति ने प्रिया को अपने स्टूडियो में बुलाया। भक्तावर नाम को न जानने वाली शागिर्द से मिलकर भक्तावर खुश हुआ और दोनों ने एक एक चित्र बनाने की प्रतियोगिता लगाई। भक्तावर ने अपनी बेटी की तस्वीर बनाई तो प्रिया ने रूबीना से जिद्द करते उसके बेटे को कागज पर उतारा।
भक्तावर ने महिला मंडल से बात की और प्रिया की चित्रकारिता और पेंटिंग की पढ़ाई शुरू हो गई। मदद के लिए शुक्रिया अदा करते हुए प्रिया ने “राज नर्तकी” को भक्तावर को भेंट कर दिया।
चिराग का जन्मदिन मनाने लखनऊ से नारायण जी, मोहनजी और उनका परिवार आया था। छोटे रक्षित ने धीरे से अपने पिता को बताया की वह बड़ा बनकर जेवरातों का डिजाइनर बनेगा तो सभी ने उसकी महत्वकांक्षा की प्रशंसा की। सत्या महिला मंडल के साथ एक दिन बिताकर लौटी तो मोहन का मुंह खुला रह गया।
जन्मदिन की पार्टी के बाद नारायण जी ने अपने और फुलवा के परिवार को साथ बिठाया। रक्षित का यहां होना सत्या को ठीक नहीं लगा पर जरूरी था।
नारायण, “मैं आप लोगों को डराना नहीं चाहता पर आगाह करना जरूरी है। कोई राज नर्तकी और उस ओझा को ढूंढ रहा है। यह एक इंसान है या गिरोह यह पता नहीं पर इन्हें खून खराबे से परहेज नहीं है। इन्होंने ओझा को ढूंढते हुए पुरानी दिल्ली के कोठे पर हमला किया। वहां के हर भड़वे को कतार में खड़ा किया और उन सब का गला काट कर उन्हे बीच सड़क में छोड़ दिया। प्रिया के अब्बू का कोई पता नहीं है। और अब कोई लौटाए खजाने को लौटाने वाले को ढूंढ रहा है।”
फुलवा, “इसका मतलब आप को खतरा है!”
नारायण, “मैंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए! मैने अपने एक आदमी, चूतपुर के दीवान का मुनीम, विजय राणा के हाथों खजाना लौटाया। उसे कोई नहीं पहचानता और सब जानते हैं कि चूतपुर के दीवान थोड़े अजीब हैं! उसे कोई कुछ नहीं पूछेगा!”
चिराग, “हमें क्या करना होगा?”
नारायण रक्षित और प्रिया की ओर देखते हुए, “कभी भी किसी को भी राज नर्तकी या खजाने के बारे में कुछ मत बताना! राज नर्तकी के घुंघरू, कमरपट्टा नवाबजादे का खंजर और नवाबजादे के बीवी की जेवर अनोखे है। उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है इस लिए उन्हें विजय राणा के हाथों मैंने संग्रहालय को दान किया। बाकी के जेवरात कीमती है पर बेशकीमती नहीं। उन्हें ठिकाने लगा कर उनका मोल मिल जायेगा। अब उस खजाने और ओझा को प्रिया से जोड़ने वाला राज़ सिर्फ इस कमरे में है और यहीं रहना चाहिए!”
रक्षित भी इस मामले की अहमियत समझता था और सब लोग राज़ को भूल जाने पर सहमत हो गए। जब नारायण जी और उनका परिवार वापस जाने से पहले होटल में रात गुजारने के लिए लौटा तब प्रिया चिराग को जन्मदिन का तोहफा देने उसके कमरे में गई। एक महीना अपने नए परिवार के साथ बिताकर प्रिया बहुत खुश थी।
प्रिया ने चिराग के लिए एक रंगों के घुलते मिलते छटाओं की पेंटिंग बनाई थी जिस में गौर करें तो चिराग की तस्वीर नजर आती थी। प्रिया ने हमेशा की तरह चुपके से चिराग के कमरे का दरवाजा खोला पर अंदर का नजारा देख कर जम गई।
चिराग ने फुलवा को पीछे से पकड़ कर बेड पर धक्का देकर गिराया। फुलवा हंसकर बेड पर पेट के बल गिर गई।
फुलवा हंसते हुए, “बेटा!!…
ये क्या कर रहे हो?…”
चिराग ने अपनी पैंट और कच्छा नीचे उतार कर नीचे से नंगे होते हुए, “अपने जन्मदिन का तोहफा ले रहा हूं!!”
फुलवा पीछे मुड़ कर देखते हुए, “अच्छा?…
बताओ मेरे बेटे को क्या चाहिए?”
चिराग अपनी मां की साड़ी कमर तक ऊपर उठाकर उसकी गीली पैंटी उतारते हुए, “मां की गांड़!!…”
प्रिया चौंक गई और उसके मुंह से आह निकल गई। फुलवा का सर ऊपर उठा पर उसने दरवाजे की ओर नहीं देखा तो प्रिया कोने में चिपककर देखती रही।
फुलवा, “बेटा अगले महीने मेरा जन्मदिन है। मैं 38 की हो जाऊंगी! तुम मुझे पसंद तो करोगे ना?”
चिराग ने अपने लौड़े को अपनी लार से चमकाया और अपनी मां के ऊपर लेट गया। अपनी मां की टांगों को फैलाकर उसकी गांड़ पर अपना सुपाड़ा लगाकर चिराग ने अपनी मां के गाल को चूम।
चिराग, “आपको पसंद ना करने की कोई गुंजाइश ही नहीं। आप तो आ…
आ…
आह…
आह!!!…
आप ही हो!!…”
फुलवा ने अपनी गांड़ मारते अपने बेटे को चूमते हुए अपनी कमर उठाकर हिलाई।
फुलवा, “आह!!…
हां…
मेरे बच्चे!!…
ऐसे!!…
ऐसे ही!!…
चोद दे!!…
मार मेरी…
गा…
आ…
आ…
आंड!!…
हा!!…
हा!!…
आह!!…”
चिराग ने अपनी टाई निकाली और उसे फुलवा के गले में पट्टे की तरह अटकाकर खींचा। प्रिया ने देखा की अब फुलवा अपने गले के पट्टे को पकड़ कर चिराग के लौड़े को अपनी गांड़ में दबाए हुए थी।
फुलवा का दम घूट रहा था और साथ की उसकी गांड़ मारी जा रही थी। प्रिया अपनी मां को उसके बेटे से बचाने बढने लगी जब फुलवा ने अपनी कमर को हिलाकर अपनी गांड़ को तेजी से मरवाना शुरू किया।
प्रिया को पसीने छूट गए थे और अब वह अपना मुंह दबाए दीवार से चिपकी हुई थी। प्रिया की गीली पैंटी के अंदर चींटियों का ढेर महसूस हो रहा था। ये सारी चींटियां उसे अपनी गीली जवानी को खूजाने पर मजबूर कर रही थीं।
प्रिया अपनी मां को चिराग के लौड़े से अपनी गांड़ मरवाते देख कर डरते हुए अपनी स्कर्ट को अपनी उंगलियों से उठाने लगी। प्रिया की उंगलियों ने उसकी पैंटी के सबसे गीले चींटी चढ़े हिस्से को छू लिया और जैसे उसके बदन में बिजली की नंगी तार घुस गई।
प्रिया सिसकर रोते हुए नीचे बैठने पर मजबूर हो गई। प्रिया की सफेद कॉटन पैंटी का बीच वाला हिस्सा मानो अनदेखी आग में जल रहा था। एक ऐसी आग जिसे बुझाने का कोई जरिया नहीं था। एक अजीब भूख से जलती आंखों के सामने चिराग अपने लंबे मोटे कीड़े से फुलवा की गंदी जगह को कूट रहा था। प्रिया नहीं जानती थी कि वह क्या चाहती है पर उसे इस आग से छुटकारा और भूख से निजाद चाहिए था।
प्रिया की चूत में से बाहर निकला रस उसकी गांड़ पर से होते हुए नीचे छोटा डबरा बना रहा था। प्रिया की भूखी आंखें अपनी मां की दर्दनाक चुधाई को देखती उसका बदन जला रही थी।
फुलवा चीख पड़ी और उसकी गांड़ ने चिराग को निचोड़ लिया। अपनी मां के साथ झड़ते हुए चिराग ने अपनी मां की गांड़ में अपना गरम रस भर दिया।
प्रिया अपना मुंह दबाए जल रही थी जब उसने अपना नाम सुना।
चिराग थक कर, “प्रिया क्या?”
फुलवा, “प्रिया भी जवान है, खूबसूरत है और अच्छे पोषण के साथ उसका शरीर भी भर जाएगा! मेरे मम्मे पिचकने लगेंगे जब उसके फूलने लगेंगे। क्या तुम्हें यकीन है कि तुम उसे पसंद नहीं करोगे?”
प्रिया की सांस अटक गई और वह दीवार से चिपक कर बैठी रही।
चिराग, “प्रिया आप की बेटी है। मैं उसके साथ ऐसा करने का सोच भी नही सकता!”
प्रिया के अंदर अंगड़ाई लेती हसीना को इस तरह नकारा जाना बिलकुल रास नहीं आया पर प्रिया चिराग के तेजी से फूलते लौड़े से अपनी आंखें हटा भी नहीं पाई। चिराग ने अपनी मां को नंगा किया और उसकी एड़ियों को अपने कंधे पर रख कर उसकी गांड़ मार दी।
प्रिया बड़ी मुश्किल से अपने घुटनों के बल रेंगती वहां से अपने बिस्तर पर आई और पूरी रात जवानी की आग में जलते हुए गुजारी।