और अब यह कहानी यहीं ख़तम होती है , पढ़ने वालों , सुनने वालों, और कहने सुनने वालों से बस अब यहीं अलविदा
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हो सकता है इस कहानी के अब तक बचे, कुछ गिने चुने पाठकों में से दो चार को अच्छा न लगे, एक दो शायद सोचें भी यहाँ क्यों रुक गयी ये कहानी , तो बस उनके लिए,
पहली बात, इस कहानी का नाम ही है , था, मोहे रंग दे , एक दुसरे के रंग में रंगने की कहानी, साजन के सजनी के और सजनी की साजन के रंग में डूबने सराबोर हो जाने की कहानी, जब बिना कहे बोले , एक की बात दूसरा समझ ले , इशारे की भी जरूरत न पड़े, .. जो अंग्रेजी में कहते हैं , व्हेयर इच इज बोथ,... तो बस ये कहानी वही कहना चाहती थी , और मेरे नेते वो कहानी, कहानी नहीं जो कुछ कहे नहीं। पति पत्नी का रिश्ता, बनने और आगे बढ़ने की कहानी, और शादी के पहले की भी थोड़ी ताकाझांकी जो कहते हैं न लव कम अरेंज्ड तो उसमें भी तो लव पहले आता है,... गाँव जो आलमोस्ट क़स्बा बन चुका है , और शहर जो अपने दिल में अभी भी गाँव है , ... उन के बीच के रिश्तों की कहानी , रिश्तों की गर्माहट और मीठी मीठी छेड़छाड़ की कहानी,... तो बस जब दोनों रंग चुके हैं , तो बस मुझे लगा एक यही मुकाम है , ठहरने का,...
दूसरी बात, ... मैंने पहले ही तय कर लिया था की १,००० पेज ( एम् एस वर्ड्स में ) से ज्यादा नहीं,... जोरू का गुलाम को लम्बा करने की सज़ा मैं अभी तक भुगत रही हूँ, फोरम पहले बंद हो गया , कहानी पूरी हो नहीं पायी, खैर उस बात को अभी यहीं छोड़ती हूँ , तो १,००० पेज जब पूरे हुए तो मेरे एक मित्र ने जिन्होंने मेरी ढेर सारी कहानियों को पी डी ऍफ़ किया,... बताया की उनके हिसाब से तो १००० कभी के पूरे हो गए, और होली आगयी तो मैंने पिछले साल कुछ होली के सीन डाल दिए बस उसके बाद , अब होली में कोई लिमिट तो होती नहीं, अपने यहाँ तो होली का लिमिट और शराफत दोनों से कोई नाता नहीं, ... इसलिए और फिर ननद भाभी वाला मामला , तो थोड़ी फंतासी नुमा,... लेकिन अब इस कहानी के मेरी लैपी पर १,१५४ पन्ने और ३,१८, ७२४ शब्द हो चुके हैं। तो फिर ,...
तीसरी बात, शायद आप में से अभी नहीं लेकिन बाद में कोई कभी, मरा पुराना पाठक भटकता हुआ और रवायतन पूछ बैठे, इसके आखिर में डाटा की और भी ढेर सारी कन्सर्न्स हैं तो क्या इस कहानी का दूसरा भाग भी आएगा , नहीं और हाँ,
और सही बात है की मैं नहीं जानती,
जब पिछला फोरम बंद हुआ था तो मैंने सोचा था, बस और नहीं, फिर कुछ पुरानी कहानियां लेकिन उनमे भी इतनी चीजें जुड़ गयी की वो एकदम नया वर्ज़न ( नमूने के तौर पर सोलहवां सावन, कितने नए हिस्से उसमें जुड़ गए ) और फिर ये कहानी शुरू हुयी तो , बढ़ती गयी, और जब उसमें एक बार रीत घुस गयी, और जिसने पुराने फोरम में रीत से भेंट मुलाकात की होगी, या मेरी कहानी फागुन के दिन चार पढ़ी होगी, वो जानते हैं की अगर रीत कहीं घुस गयी तो उसके बाद जो होता है वो रीत करती है,... लेकिन अगर अगला भाग आया तो , एक तो वो इरोटिक नहीं होगा , शायद बहुत हुआ तो एरोटिक थ्रिलर हो, हो सकता है एक डिस्टोपियन दुनिया का किस्स्सा हो , ... लेकिन कहानी सुनाने के साथ अक्सर हम सुनाने वाले सुनने वाले की पसंद नापसन्द भूल जाते हैं और फिर सर धुनते है, कोई सुनता नहीं , सुनता है तो हुँकारी नहीं भरता,.. और डिस्टोपियन किस्सों के अपने,... और फोरम के भी कानून कायदे, तो आप जिसके मेहमान है , जब आप ने जहाँ बरसों से अड्डा जमा रखा था, और वो नशेमन उजड़ गया, किसी ने अपने यहाँ सर छुपाने की जगह दी , पर उसके यहाँ अगर कायदा है की चप्पल घर के बाहर उतार दें, रात में दस के बाद गाना न बजाएं तो उसे मानना ही होगा,...
तो मैं नहीं जानती और अगर कुछ हुआ भी तो अगले छह महीने साल भर, जिस तरह की बातें मैं सोच रही हूँ , उसके लिए बहुत इंटेंसिटी चाहिए,
चौथी बात , शायद कोई ये भी पूछे अब क्या होगा मेरी छुटकी ननदिया का जो इत्ती सारी प्लानिंग थी मेरी और कम्मो की, और वो अनुज जो बनारस में है,
छुटकी ननदिया के साथ वही होगा है जो होना होना है , लेकिन शुरू से अबतक यह कहानी फर्स्ट परसन में हैं और फिर जिस जगह कहानी सुनाने वाली ही नहीं होगी तो वहां की बातें कैसे होंगी , फिर मैंने पहले भी कहा था न यह कहानी थी मोहे रंग दे , साजन सजनी के एक दूसरे के रंग में रंगने रंगाने की,...
तो यह कहानी तो यही ख़तम हो रही है लेकिन थ्रेड मैं नहीं बंद कर रही,
हाँ पर देवर ननद की बातें कुछ उनके ऊपर कुछ आपकी कल्पनाओं पर छोड़ती हूँ , ... लेकिन कोई यह कहे की ऐसा थोड़े ही होता है,... तो घबड़ाइये मत, , दोनों के मेरी ननद के और देवर के, देवर की बातें देवर की अनुज की जुबान से , और ननद की बातें , कम्मो की ओर से , ... लेकिन अभी नहीं , पर जल्द ही , कुछ बातें ,... कम्मो और अनुज की ओर से,...
तो इतने दिनों तक धैर्य तक साथ देने के लिए धन्यवाद, और अगर किसी के कमेंट आएंगे तो मैं सर झुका के धन्यवाद देने जरूर आउंगी।