और साढ़े सात बजे रोज की तरह चाय लेकर ये जगा रहे थे , लेकिन आज अच्छे बच्चे की तरह एकदम तैयार
उठ न यार देर हो रही है, ... मायका मेरा पहुंचने की जल्दी इन्हे हो रही थी, हम चाय पी ही रहे थे की, इनकी साली का , छुटकी का , मेरी बहन का फोन ा गया , और क्या हड़काया उसने,... जीजू अभी तक चले नहीं आप ,... और फिर पीछे से रीतू भाभी , एक से एक अच्छी वाली गाली , इनकी माँ बहन सब को जोड़ जोड़ के ,
जब तक मैं नहा के तैयार हुई,... नीचे पहुंची सारा सामान लेकर ये नीचे, गाडी में रखवा रहे थे,...
और मेरी सास भी, मेरे पीछे , " अरे बहू देर हो जायेगी , जल्दी से कुछ मुंह में डाल लो,... "
फिर दही गुड़ , ...क्या कोई बिटिया बिदा करेगा,...
मैं अपनी बिदाई में नहीं रोयी थी , लेकिन मैं जब उनका पैर छूने के लिए झुकी, खींच के उठा के उन्होंने अँकवार में भर लिया , और मैंने भी कस के दबोच लिया, बड़ी देर तक, आवाज मेरी भी नहीं निकली , उनकी भी नहीं,... हाँ आँखे दोनों की भर आयी थीं, ... डबडबाती रहीं , उन्होंने आँचर की कोर से पोंछ लिया और जैसे माँ बेटी की विदा करती है , मुझे अपने हाथ से गाड़ी का दरवाजा खोल कर के बैठाया उन्होंने मुझे,
जानती मैं भी थी , वो भी , अब पता नहीं कब आउंगी, ... मायके से इनकी पोस्टिंग पर , फिर वहां से कब छुट्टी , काज अकाज ,...
देर तक मैं मुड़ मुड़ कर देखती रही,...
बार बार रीत दी की बातें भी याद आ रही थी ,सारी रात तो उसी में,...
और उन के कंधे पर सर रख कर मैं सो गयी ,
कार उसी सड़क पर दौड़ती जा रही थी , जिस सड़क से साढ़े चार महीने पहले मैं आयी थी, इसी तरह इनके कंधे पर सर धरे, और ये मुझे सम्हाले,...
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और अब यह कहानी यहीं ख़तम होती है , पढ़ने वालों , सुनने वालों, और कहने सुनने वालों से बस अब यहीं अलविदा