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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

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यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,


आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,


आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,



जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!



👏👏👏🤤🤤🤤
 

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फागुन के दिन चार के अंश

होली का राशिफल -

कन्या राशि की भाभियों के लिए



"आपके आने वाले दिन बहुत शुभ है. आपका लंड का अकाल ख़त्म होने वाला है। इस होली में एक से एक मोटी मोटी पिचकारियां मिलेंगी, पिचकाने को, आपके देवरों की। आपकी चोली फाड़ चूँचियाँ भी खूब रगड़ी जाएंगी। पिछवाड़े का बाजा बजने का पूरा चांन्स है. लेकिन इसके लिए आपको इस फागुन में कुछ विशेष उपाय करना पडेगा, ध्यान से पढ़ें और अमल करें।

इस होली विशेषांक के आखिरी पन्ने पर लंड पुराण का रोज जोर जोर से परायण करें और किसी कुंवारे देवर के मोटे औजार का ख्याल करें। इस होली में मौका निकल के किसी कुंवारे देवर की नथ उतार दें, भले ही जबरदस्ती करनी पड़े। इस होली में देवर की किसी कुँवारी कन्या की सील तोड़ने में पूरी सहायता करें। फागुन में किसी दो चूत में ऊँगली करें और उस कुँवारी चूत की सील तुड़वाने में सहायता करें। ऐसा करने से साल भर आप पर लंड देव की कृपा रहेगी। वैसे तो आप कहने को कन्या राशि की हैं, लेकिन बचपन की छिनाल हैं। इसलिए अगर आप कन्याओं को छिनाल बनाने में सहायता करेंगी तो लंड देव की आप पर विशेष कृपा रहेगी। इस होली में हर देवर का दिल रखें, बिल का दान करें। दान करने से जैसे धन नहीं घटता वैसे जोबन दान करने से बिल और मस्त होती है।

आपकी होली बहुत जोरदार होगी।
Uffffff kya likha hai 🔥🔥
 

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ऋतुओं का राजा बसंत -कुसुमाकर

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रसो का राजा श्रृंगार रस

और दोनों का साथ होली का पर्व


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बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।

मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ॥

श्रीमद्भगवद्गीता के दसवे अध्याय का पैंतीसवां श्लोक। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है ,जो ऋतुओ में कुसुमाकर अर्थात वसंत है , वह मैं ही तो हूँ।

यही कुसुमाकर तो प्रिय विषय है सृजन का। यही कुसुमाकर मौसम है कुसुम के एक एक दल को पल्लवित होने का। अमराइयों में मंजरियो के रससिक्त होकर महकने और मधुमय पराग लिए उड़ाते भौरों के गुनगुना उठाने की ऋतु है वसंत।

प्रकृति के श्रृंगार की ऋतु।

वसंत तो सृजन का आधार बताया गया है। सृष्टि के दर्शन का सिद्धान्त बन कर कुसुमाकर ही स्थापित होता है। यही कारण है कि सीजन और काव्य के मूल में तत्व के रूप में इसकी स्थापना दी गयी है। सृष्टि की आदि श्रुति ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में रचनाओं से लेकर वर्तमान साहित्यकारों ने भी अपनी सौंदर्य-चेतना के प्रस्फुटन के लिए प्रकृति की ही शरण ली है। शस्य श्यामला धरती में सरसों का स्वर्णिम सौंदर्य, कोकिल के मधुर गुंजन से झूमती सघन अमराइयों में गुनगुनाते भौरों पर थिरकती सूर्य की रशिमयां, कामदेव की ऋतुराज 'बसंत' का सजीव रूप कवियों की उदात्त कल्पना से मुखरित हो उठता है। उपनिषद, पुराण-महाभारत, रामायण (संस्कृत) के अतिरिक्त हिन्दी, प्राकृत, अपभ्रंश की काव्य धारा में भी बसंत का रस भलीभांति व्याप्त रहा है। अर्थवेद के पृथ्वीसूत्र में भी बसंत का व्यापक वर्णन मिलता है। महर्षि वाल्मीकि ने भी बसंत का व्यापक वर्णन किया है।

किष्किंधा कांड में पम्पा सरोवर तट इसका उल्लेख मिलता है-

अयं वसन्त: सौमित्रे नाना विहग नन्दिता।



बुध्दचरित में भी बसंत ऋतु का जीवंत वर्णन मिलता है।

भारवि के किरातार्जुनीयम, शिशुपाल वध, नैषध चरित, रत्नाकर कृत हरिविजय, श्रीकंठ चरित, विक्रमांक देव चरित, श्रृंगार शतकम, गीतगोविन्दम्, कादम्बरी, रत्नावली, मालतीमाधव और प्रसाद की कामायनी में बसंत को महत्त्वपूर्ण मानकर इसका सजीव वर्णन किया गया है।

कालिदास ने बसंत के वर्णन के बिना अपनी किसी भी रचना को नहीं छोड़ा है। मेघदूत में यक्षप्रिया के पदों के आघात से फूट उठने वाले अशोक और मुख मदिरा से खिलने वाले वकुल के द्वारा कवि बसंत का स्मरण करता है। कवि को बसंत में सब कुछ सुन्दर लगता है। कालिदास ने 'ऋतु संहार' में बसंत के आगमन का सजीव वर्णन किया है:-


द्रुमा सपुष्पा: सलिलं सपदमंस्त्रीय: पवन: सुगंधि:।

सुखा प्रदोषा: दिवासश्च रम्या:सर्वप्रियं चारुतरे वतन्ते॥


यानी बसंत में जिनकी बन आती है उनमें भ्रमर और मधुमक्खियाँ भी हैं।


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'कुमारसंभवम्' में कवि ने भगवान शिव और पार्वती को भी नहीं छोड़ा है। कालिदास बसंत को शृंगार दीक्षा गुरु की संज्ञा भी देते हैं:-


प्रफूल्ला चूतांकुर तीक्ष्ण शयको,द्विरेक माला विलसद धर्नुगुण:

मनंति भेत्तु सूरत प्रसिंगानां,वसंत योध्दा समुपागत: प्रिये।


वृक्षों में फूल आ गये हैं, जलाशयों में कमल खिल उठे हैं, स्त्रियाँ सकाम हो उठी हैं, पवन सुगंधित हो उठी है, रातें सुखद हो गयी हैं और दिन मनोरम, ओ प्रिये! बसंत में सब कुछ पहले से और सुखद हो उठा है।



हरिवंश, विष्णु तथा भागवत पुराणों में बसंतोत्सव का वर्णन है।

माघ ने 'शिशुपाल वध' में नये पत्तों वाले पलाश वृक्षों तथा पराग रस से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्प समूहों से सुगंधित बसंत ऋतु का अत्यंत मनोहारी शब्दों वर्णन किया है।


नव पलाश पलाशवनं पुर: स्फुट पराग परागत पंवानम्

मृदुलावांत लतांत मलोकयत् स सुरभि-सुरभि सुमनोमरै:

प्रियतम के बिना बसंत का आगमन अत्यंत त्रासदायक होता है। विरह-दग्ध हृदय में बसंत में खिलते पलाश के फूल अत्यंत कुटिल मालूम होते हैं तथा गुलाब की खिलती पंखुड़ियाँ विरह-वेदना के संताप को और अधिक बढ़ा देती हैं।

महाकवि विद्यापति कहते है -

मलय पवन बह, बसंत विजय कह,भ्रमर करई रोल, परिमल नहि ओल।

ऋतुपति रंग हेला, हृदय रभस मेला।अनंक मंगल मेलि, कामिनि करथु केलि।

तरुन तरुनि संड्गे, रहनि खपनि रंड्गे।


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विद्यापति की वाणी मिथिला की अमराइयों में गूंजी थी। बसंत के आगमन पर प्रकृति की पूर्ण नवयौवना का सुंदर व सजीव चित्र उनकी लेखनी से रेखांकित हुआ है:-

आएल रितुपति राज बसंत,छाओल अलिकुल माछवि पंथ।

दिनकर किरन भेल पौगड़,केसर कुसुम घएल हेमदंड।

हिन्दी साहित्य का आदिकालीन रास-परम्परा का 'वीसलदेव रास' कवि नरपतिनाल्हदेव का अनूठा गौरव ग्रंथ है। इसमें स्वस्थ प्रणय की एक सुंदर प्रेमगाथा गाई गई है। प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव से विरह-वेदना में उतार-चढ़ाव होता है। बसंत की छमार शुरू हो गई है, सारी प्रकृति खिल उठी है। रंग-बिरंगा वेष धारण कर सखियाँ आकर राजमती से कहती हैं:-

चालऊ सखि!आणो पेयणा जाई,आज दी सई सु काल्हे नहीं।

पिउ सो कहेउ संदेसड़ा,हे भौंरा, हे काग।

ते धनि विरहै जरि मुई,तेहिक धुंआ हम्ह लाग।

विरहिणी विलाप करती हुई कहती है कि हे प्रिय, तुम इतने दिन कहाँ रहे, कहाँ भटक गए? बसंत यूं ही बीत गया, अब वर्षा आ गई है।



आचार्य गोविन्द दास के अनुसार:-

विहरत वन सरस बसंत स्याम।

जुवती जूथ लीला अभिराम

मुकलित सघन नूतन तमाल।

जाई जूही चंपक गुलाल पारजात मंदार माल।

लपटात मत्त मधुकरन जाल।


जायसी ने बसंत के प्रसंग में मानवीय उल्लास और विलास का वर्णन किया है-

फल फूलन्ह सब डार ओढ़ाई। झुंड बंधि कै पंचम गाई।

बाजहिं ढोल दुंदुभी भेरी। मादक तूर झांझ चहुं फेरी।

नवल बसंत नवल सब वारी। सेंदुर बुम्का होर धमारी।

भक्त कवि कुंभनदान ने बसंत का भावोद्दीपक रूप इस प्रकार प्रस्तुत किया है:-

मधुप गुंजारत मिलित सप्त सुर भयो हे हुलास, तन मन सब जंतहि।

मुदित रसिक जन उमगि भरे है न पावत, मनमथ सुख अंतहि।

कवि चतुर्भुजदास ने बसंत की शोभा का वर्णन इस प्रकार किया है-

फूली द्रुम बेली भांति भांति,नव वसंत सोभा कही न जात।

अंग-अंग सुख विलसत सघन कुंज,छिनि-छिनि उपजत आनंद पुंज।



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कवि कृष्णदास ने बसंत के माहौल का वर्णन यूं किया है:-

प्यारी नवल नव-नव केलि

नवल विटप तमाल अरुझी मालती नव वेलि,

नवल वसंत विहग कूजत मच्यो ठेला ठेलि।

सूरदास ने पत्र के रूप में बसंत की कल्पना की है:-

ऐसो पत्र पटायो ऋतु वसंत, तजहु मान मानिन तुरंत,

कागज नवदल अंबुज पात, देति कमल मसि भंवर सुगात।


तुलसी दास के काव्य में बसंत की अमृतसुधा की मनोरम झांकी है:-

सब ऋतु ऋतुपति प्रभाऊ, सतत बहै त्रिविध बाऊं

जनु बिहार वाटिका, नृप पंच बान की।

जनक की वाटिका की शोभा अपार है, वहां राम और लक्ष्मण आते हैं:-

भूप बागु वट देखिऊ जाई, जहं बसंत रितु रही लुभाई।


घनांद का प्रेम काव्य-परम्परा के कवियों से सर्वोच्च स्थान पर है। ये स्वच्छंद, उन्मुक्त व विशुध्द प्रेम तथा गहन अनुभूति के कवि हैं। प्रकृति का माधुर्य प्रेम को उद्दीप्त करने में अपनी विशेष विशिष्टता रखता है। कामदेव ने वन की सेना को ही बसंत के समीप लाकर खड़ा कर दिया:-

राज रचि अनुराग जचि, सुनिकै घनानंद बांसुरी बाजी।

फैले महीप बसंत समीप, मनो करि कानन सैन है साजी।


रीतिकालीन कवियों ने जगह-जगह बसंत का सुंदर वर्णन किया है। आचार्य केशव ने बसंत को दम्पत्ति के यौवन के समान बताया है। जिसमें प्रकृति की सुंदरता का वर्णन है। भंवरा डोलने लगा है, कलियाँ खिलने लगी हैं यानी प्रकृति अपने भरपूर यौवन पर है। आचार्य केशव ने इस कविता में प्रकृति का आलम्बन रूप में वर्णन किया है:-

दंपति जोबन रूप जाति लक्षणयुत सखिजन,

कोकिल कलित बसंत फूलित फलदलि अलि उपवन।

बिहारी प्रेम के संयोग-पक्ष के चतुर चितेरे हैं। 'बिहारी सतसई' उनकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक है। कोयल की कुहू-कुहू तथा आम्र-मंजरियों का मनोरम वर्णन देखिए:-

वन वाटनु हपिक वटपदा, ताकि विरहिनु मत नैन।

कुहो-कुहो, कहि-कहिं उबे, करि-करि रीते नैन।

हिये और सी ले गई, डरी अब छिके नाम।

दूजे करि डारी खदी, बौरी-बौरी आम।

'पद्माकर' ने गोपियों के माध्यम से श्रीकृष्ण को वसंत का संदेश भेजा है:-

पात बिन कीन्हे ऐसी भांति गन बेलिन के,

परत न चीन्हे जे थे लरजत लुंज है।

कहै पदमाकर बिसासीया बसंत कैसे,

ऐसे उत्पात गात गोपिन के भुंज हैं।

ऊधो यह सूधो सो संदेसो कहि दीजो भले,

हरि सों हमारे हयां न फूले बन कुंज है।

ऋतू वर्णन जब करते है तब पद्माकर फिर गाते है -

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में

क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है.

कहे पद्माकर परागन में पौनहू में

पानन में पीक में पलासन पगंत है

द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में

देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है

बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में

बनन में बागन में बगरयो बसंत है

कवि 'देव' की नायिका बसंत के भय से विहार करने नहीं जाती, क्योंकि बसंत पिया की याद दिलायेगा:-

देव कहै बिन कंस बसंत न जाऊं, कहूं घर बैठी रहौ री

हूक दिये पिक कूक सुने विष पुंज, निकुंजनी गुंजन भौंरी।

सेनापति ने बसंत ऋतु का अलंकार प्रधान करते हुए बसंत के राजा के साथ रूपक संजोया है-

बरन-बरन तरू फूल उपवन-वन सोई चतुरंग संग दलि लहियुत है,

बंदो जिमि बोलत बिरद वीर कोकिल, गुंजत मधुप गान गुन गहियुत है,

ओबे आस-पास पहुपन की सुबास सोई सोंधे के सुगंध मांस सने राहियुत है।

आधुनिक कवियों की लेखनी से भी बसंत अछूता नहीं रहा। रीति काल में तो वसंत कविता के सबसे आवश्यक टेव के रूप में उभर कर स्थापित हुआ है। महादेवी वर्मा की अपनी वेदनायें उदात्त और गरिमामयी हैं-

मैं बनी मधुमास आली!

आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी,

बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी

उमड़ आई री, दृगों में

सजनि, कालिन्दी निराली!

रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली,

जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पंचम तान लीं;

बह चली निश्वास की मृदु

वात मलय-निकुंज-वाली!

सजल रोमों में बिछे है पाँवड़े मधुस्नात से,

आज जीवन के निमिष भी दूत है अज्ञात से;

क्या न अब प्रिय की बजेगी

मुरलिका मधुराग वाली?

मैथिलीशरण गुप्त ने उर्मिला के असाधारण रूप का चित्रण किया है। उर्मिला स्वयं रोदन का पर्याय है। अपने अश्रुओें की वर्षा से वह प्रकृति को हरा-भरा करना चाहती है:-

हंसो-हंसो हे शशि फलो-फूलो, हंसो हिंडोरे पर बैठ झूलो।

यथेष्ट मैं रोदन के लिए हूं, झड़ी लगा दूं इतना पिये हूं।

जयशंकर प्रसाद तो वसंत से सवाल ही पूछ लेते है - पतझड़ ने जिन वृक्षों के पत्ते भी गिरा दिये थे, उनमें तूने फूल लगा दिये हैं। यह कौन से मंत्र पढ़कर जादू किया है:-

रे बसंत रस भने कौन मंत्र पढ़ि दीने तूने

कामायानी में जयशंकर प्रसाद ने श्रध्दा को बसंत-दूत के रूप में प्रस्तुत किया है-

कौन हो तुम बसंत के दूत?

विरस पतझड़ में अति सुकुमार

घन तिमिर में चपला की रेख

तमन में शीतल मंद बयार।

🙇🙇🙇🙇🙇🙇🙇
 

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आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी,
बोरी गई रंगन सुगंधन झकोरै है ।

कहि पदमाकर इकंत चलि चौकि चढ़ि,
हारन के बारन के बंद-फंद छोरै है ॥


घाघरे की घूमनि, उरुन की दुबीचै पारि,
आँगी हू उतारि, सुकुमार मुख मोरै है ।


दंतन अधर दाबि, दूनरि भई सी चाप,
चौवर-पचौवर कै चूनरि निचौरै है ॥


photo high
👏👏👏👏👏👏
 

komaalrani

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Rango ki duniya ki alag hi kahani he. Rang rasiya sabad hamare lie bahot uchit sabad he. Vese rang rasiya geet konse rag me gaya. Ye to muje pata nahi par shashtriya sangit ka gajab sangit he. Har rang ki apni alag pahechan alag hi kahani he. Har rang jyotish shashtro me alag hi mukam rakhta he.
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Lal (red) ; ye rang zunun se bhara he. Kahete he. Naksho par or patro me ye jung ko darsata he. Ye graho me surya ko jatata he. Behat garam or joshila. Ye kundli me gussa or josh ko darsata he. Ye rango ka raja he
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Keshariya (orange); koi ise bhagva bhi kaheta he. Pavitra rang ye graho me mangal ko darsata he. Graho or rango dono me ye shenapati ki bumika adah karra he. Ye pavitrata or nabhi pe cantrol ko darsata he. Behat adbhut or imandar.
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Pila (yellow) ; ye rang graho me guru ka he. Vidhya gyan kudli me bhi iska karya yahi he.

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Safed (White) ; shanti. Yudh samapti. Is ka karya yahi he. Hathiyar dalse se jyada safed zanda laherana jyada uchit he. Ye ek ahinsha vadi vichar he. Moti dahi jese tatva. Ye graho me chandrama ko arpit he. Isi lie kundli se sache prem ko darsata he.
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Hara (green) ; vese to ye rang budh ka he. Budh matlab vanijya vyopar. Is ka karya yahi he. Budhi ka sahi prayog. Rajniti or chanakya niti bhi iske hi adhin he.
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Kala (black) ; ye rang graho me shani ka he. Kuchh log ise nakar atmak mante he. Par ye ek saja dene vala bhi rang he. Ye darsata he ki apne farz se muh mod lene valo ke lie chunoti. Tantva loha. Desh sar jamin se gardari karne vale or mata pita ko dukh dene valo ke lie kal. Par ye rang he bahot khubshurat. Sabse alag hi.
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Nila (blue) ; ye rang graho me shukra ka he. Ye inshan ki vasna ko darsata he. Sath nan ke andar ki nakar atmak bhavna bhi. Sayad name se purling he. Par darsal ye striling he. Iska tantva virya he. Ankho me iska sthan no 6 he. Behat mahatvapurn
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In sath rango se hi samast bhramhand ki rachna he.
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Har rang har graho se or anko se juda huaa he. Agar koi ankh se rango ko khoje ya rango se ankho ko khoje to bhi safalta mil jaegi.
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Bina rango ke jvan ek bimari he. Jese color blaind. Rango ke bina ye duniya adhuri he.
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Socho jivan me rang na ho to ye duniya kesi lagegi. Ek viran. Mahesus to yahi hoga.
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Duniya ka har rang ki alag kahani. Rango se hi bhavnao ka pata chalta he. Gussa khushi dunkh sukh.
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Kisi ko kisi rang se bahot lagav hota he to kisi ko bahot jyada nafarat. Meri najar me to rango ki yahi kahani he.


Bura na mano holi he.
Adbhut kya likha hai aapne

:thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you:
 

komaalrani

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होली देवर भाभी की

कम्मो

( मोहे रंग दे -होली प्रसंग )


"कम्मो बहुत नाराज थी आप से , आप उसे भौजी नहीं मानते वो कह रही थी। उसे भी पता चल गया की आपका मन तो बहुत करता है उसकी चोली में हाथ डालने का , जोबन जबरदंग हैं ही उसके , लेकिन होली में भी ,... वो कह रही थी , की उसकी बेइज्जती तो वो बर्दास्त कर लेती जबरदंग जोबन की बेइज्जती आज तक किसी ने नहीं की , ... कहीं वो काम वाली है इसलिए तो नहीं , ... ये बात उसने नहीं कही थी मैं कह रही हूँ ,

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भूल गए ससुराल में नाउन क बहू कैसी रगड़ाई की थी और नाउन के बेटी भी , ... उन दोनों का तो छोडो सलहज , साली का रिश्ता लगता है , नाउन खुदे बोल रही थी , अपनी सलहज से पूछ लेना , आने दो पाहुन को सास का रिश्ता लगने से क्या होता है , होली ने नई उम्र की बहुओं का कान काटूंगी ,...

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और चमरौटी , भरौटी वाली , पानी भरने वाली कहाईन , गुलबिया ,...सब ,... और ये सब ,...



" नहीं ये नहीं है , ऐसा कुछ नहीं हमने तो उनको हरदम भौजी माना है , माना का है , हैं ही लेकिन ,... "

जवाब उन्होंने दे दिया लेकिन ऐन मौके पर रुक गए।



" लेकिन क्या बताओ न साफ़ साफ़ , ... " मैंने पूछ लिया।



" मन तो मेरा बहुत कर रहा था उसकी चोली में हाथ डालने को , लेकिन मन कर रहा था की कहीं भौजी गुस्सा न हो जाये , फिर ,... फिर तुम भी बैठी थी सामने , ... "



ये भी न एक तो बहुत सीधे है , फिर लजाते भी कितना है , पता नहीं ये लड़का कैसे सुधरेगा , ... मैंने उनके कान का पान बनाया और प्यार से समझाया ,



" यार तेरी गलती नहीं है , जो बुद्धू होते हैं न बुद्धू ही रहते हैं ,... अरे बुद्धूराम , ... वो तो इन्तजार कर रही थीं , खुद मुझसे बोलीं , होली में देवर भाभी की चोली न खोले तो ये भाभी की बेइज्जती है , ... और मैं क्यों बुरा मानती। मैं तो इस बात का बुरा मान रही थी की चोली फटी नहीं , अरे ऊपर झाँपर से तो होली में हर कोई चोली दबा लेता है

देवर का हक तो सीधे चोली के अंदर का है , ... ससुराल जा के साली सलहज के सामने नाक कटाओगे , ... खैर चलो , अगर कल चोली नहीं फटी और तेरी कम्मो भाभी का पेटीकोट नहीं खुला तो मैं भी उनके साथ मिल के तेरा ,... "

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देवर भौजी की असली होली अगले दिन हुयी सुबह सुबह ,


कम्मो भी तैयार थी और अब इनकी हिचक झिझक भी ,...

और मेरी जेठानी सास थे भी नहीं ,... इनकी और इनके कम्मो भौजी की होली अगले दिन कैसे शुरू हुयी , ये बताने का कोई मतलब नहीं , ...

देवर भाभी की होली तो कभी भी शुरू हो जाती है , कहाँ भी कैसे भी , और फागुन हो ,


कम्मो ऐसी रसीली जबरदंग जोबन वाली भौजी हो , जो अपने हर देवर को साजन बना के , ...


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फिर तो , बस परेशानी इनकी झिझक की थी तो कल रात में मैंने इन्हे खूब हड़काया था , ...

और कम्मो को भी समझाया था , देवर तोहरे थोड़े ज्यादा सीधे हैं , तो तोहिंके ,...


फिर सुबह सुबह मैंने दोनों को , देवर को भी भौजाई को भी , डबल भांग वाली एक नहीं दो दो गुझिया भी , ...


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मैं बरामदे में बैठी देख रही थी , मजे ले रही थी और आज मेरी सास जेठानी कोई थी भी नहीं ,
और तभी चरर की आवाज से मेरा ध्यान एक बार फिर से इनकी और इनकी कम्मो भौजी की ओर लौट गया। उनका ब्लाउज ,.... मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।

कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,

खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , ... 38 डी डी ,

मम्मे देखकर तो ये वैसे ही ललचाते थे , और इनकी कम्मो भौजी के मम्मे तो और एकदम जबरदंग , और ऊपर से वो कभी भी ब्रा नहीं पहनती थी और ब्लाउज भी एकदम पतला , ... झलकते छलकते रहते थे , दोनों मम्मे

कल होली की शुरआत में बेचारे ब्लाउज के अंदर भले हाथ न डाल पाए हों पर रंग से भीगे , देह से चिपके पतले पारभासी ब्लाउज से झलक के एकदम साफ़ साफ़ दिख रहे थे , और ऊपर से जब वो ब्लाउज के ऊपर से अपनी कम्मो भौजी के ३८ डी डी वाले उभार दबा रहे थे , मसल रहे थे ,

वो भी उन्हें उकसा रही थी अपने कड़े कड़े बड़े बड़े चूतड़ कस कस के अपने देवर के भीगे पाजामे में तने बौराये खूंटे पे रगड़ रगड़ कर के ,

समझ तो ये भी रहे थे की उनकी भौजी फागुन में क्या चाहती हैं , और आज तो ,

एक तो कल रात मैंने उन्हें साफ़ साफ़ समझा दिया था , उनको भी , उनके उस मूसलचंद को भी , ... फागुन में भौजी , साली सलहज का हक इसपर मुझसे पहले है ( और मुझे तो शक था की जब ये ससुराल पहुंचेंगे तो उस लिस्ट में उनकी सास भी जुड़ जाएंगी ) ,
उन से ज्यादा उनकी कम्मो भौजी को ,

उनके देवर गौने की दुल्हिन से भी ज्यादा लजाते शर्माते हैं , जबतक कुछ जोर जबरदस्ती नहीं करेंगी वो , तो फागुन ऐसे सूखा चला जाएगा ,

और फिर आज सुबह देवर भौजाई दोनों को डबल भांग की दो दो गुझिया ,

और आज मेरी जेठानी, सास भी नहीं थी , सिर्फ मैं , और मैं तो खुद ही उन दोनों लोगो को चढ़ा रही थी ,
उनका एक हाथ ब्लाउज के अंदर घुस गया , चरर चररर , रहा सहा ब्लाउज भी फट गया ,... और अब दोनों हाथों की चांदी ,

कोई छोटे मोटे उभार नहीं थे , एकदम बड़े बड़े मक्खन के कटोरे , मुश्किल से उनके देवर के दोनों हाथों में आ रहे थे और ऊपर से उनकी कम्मो भौजी बजाय छुड़ाने के गरिया रही थीं

" अभिन हमहुँ फाड़ेंगी तोहार , लेकिन खाली पजामा नहीं पजामे अंदर वाला भी , ... बचपन में गांड मरवाये होंगे न वो याद आजायेगा , ... लौंडे तेल वैसलीन लगा के इस चिकने की मारते रहे होंगे पर मैं सूखी मारूंगी ,... "



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मैं बरामदे में बैठी बैठी देवर भाभी की मस्ती देख रही थी , पर मैं अपने को नहीं रोक पायी , ... वहीँ से खिलखिलाते हुए बोली ,

" अरे नहीं , अभी इनकी कोरी है , कोहबर में खुद अपनी सास सलहज के सामने कबूला था इन्होने "



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तब तक ये कस कस के कम्मो भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया मसल रहे थे , और जोबन मर्दन में तो जैसे इन्होने पी एच डी कर रखी थी , मुझसे ज्यादा कौन जानता था इस बात को , बस एक बार चोली खुल जाए और इनका हाथ लड़की के उभारों पर छू बस जाए , फिर तो वो खुद टाँगे फैला देगी , ...

कौन

और कम्मो तो खूब खेली खायी , ... उसकी हालत तो एकदम , ... वो एक जोबन एक निपल फ्लिक कर रहे थे तो दूसरे को पूरी ताकत से मीज रहे थे

सच में देवर भाभी की होली हो , जीजा साली की या नन्दोई सलहज की रंग तो बहाना है ,असली चीज तो जोबन मीजना मसलना रगड़ना है , और होली में जिसने भौजाई , साली , सलहज के जोबन नहीं मसले रगड़े न वो असली देवर , जीजा या नन्दोई है , और जिसने न मलवाया वो असली भौजाई , साली , सलहज नहीं ,

लेकिन कम्मो भौजी असली भौजी थीं , और उन्हें डर ये था की कहीं उनका देवर बिचक न जाये , इसलिए नाम के लिए भी वो इनका हाथ नहीं पकड़ रही थी , पर उन्हें गरियाने से कौन रोक सकता था

मैं तो कत्तई नहीं ,





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और हँसते हुए मैं बोली

" एकदम सही कह रही हो आप , लेकिन उस एलवल वाली की कच्ची अमिया , .. जरूर अपनी महतारी के साथ , ... उन्ही की बड़ी बड़ी हैं , ... "
" एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "
मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,
“”


" हे कहाँ से सीखा अइसन चूँची मीजना , मसलना , बचपन से आपन बहिन महतारी चूँची मीज मीज , के, स्साले तेरी बहन की गाँड़ मारुं ,... " कम्मो उन्हें गरिया रही थी ,
एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "
मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,

“”

Garam baate 🔥🔥🔥🔥🔥
 

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ननद भाभी की होली

( मोहे रंग दे -रंग प्रसंग )

ननदे , ज्योति,


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नीता ,..

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आवाज तो मैं पहचान ही गयी थी , मेरी मोहल्ले की दो लड़कियां इंटर वाली , दोनों ननदे , ज्योति , नीता ,... और दोनों पक्की छिनार , ज्योति तो खूब दबवा मिजवा के गदरा गयी थी , जोबन उसके आलमोस्ट मेरे साइज के , दोनों ११ वे पढ़ती हैं , वहीँ जहाँ गुड्डी पढ़ती है , हम लोगो के घर के बगल वाले गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज ,
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नीता भी कम मस्त नहीं है , हंसती है तो गाल में गड्ढे पड़ते हैं ,

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और दोनों मुझे जबसे मैं आयी तबसे होली का नाम ले ले कर धमका रही थीं , " भाभी अभी आप भैया से मजा ले लीजिये , आने दीजिये होली , इस होली में आपके कपडे से नहीं सिर्फ देह से होली होगी " नीता छेड़ती रहती ,
और ज्योति और
" अरे हमारी भाभी बनारस की डांसिंग क्वीन थीं , आने दो होली को इस आंगन में हम ननदें नचाएंगी , हाँ बिना कपडे के , और सेल्फी वीडियो , सब ,... "

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वही दोनों , उन दोनों को पता चल गया था की मैं होली में नहीं रहूंगी , सीधे होली के तीन दिन पहले अपने मायके ,
जैसे मैंने किवाड़ खोला , दोनों जोर जोर से बोलती घुसी ,



" अरे भाभी ये सख्त नाइंसाफी है , होली में अपने मायके यारों की पिचकारी का मजा लेने जा रही है , आप डर गयीं की होली में यहाँ ननदें नंगे नचाएंगी न ,
अरे बचपन की छिनार अपने भाइयों का भौजी आपने बहुत मजा लिया होगा अबकी अपने देवर और ननदों का रस लेना चाहिए था न , भाभी ये एकदम फाउल है "

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उन दोनों को क्या मालूम था मैं केवाड़ी के पीछे छुपी खड़ी हूँ , बनारस वाली हूँ इन आजमगढ़ वालियों की लेने के लिए आयी हूँ , ...

पीछे से मैंने नीतू को धर दबोचा और आगे से कम्मो ने ज्योति को अपनी अँकवार में कस के भींच लिया ,

कम्मो की पकड़ लोहे की सँडसी से भी जबरदस्त , चार चार बच्चो की माँ उससे पार नहीं पा सकती , ये ज्योति तो नयी बछेड़ी थी ,

ज्योति शलवार सूट में , जोबन उसके छलक रहे थे , ...

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बोली , " नहीं नहीं भाभी , ये ड्रेस मेरा , रंग से , ... आप लोग ,... "

उसकी निगाह रंग से लिथड़ी कम्मो पर पड़ी।

कम्मो ने बिना बोले , पहले उसे हलके से गुदगुदी लगाई , जब तक वह सम्हले , पीछे से उसकी दोनों कलाई कम्मो के हाथ में ,
और मुंह से ही उसने ज्योति का दुप्पटा खींच लिया , और हँसते हुए बोली

" ननद रानी ई जोबना फागुन में मिजवाने मसलवाने के लिए हैं , काहें हमारे देवर को ललचाती हो , देखाओ न खुल के , ... "

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और आराम से ज्योति के दोनों हाथ दुप्पटे से बाँध दिए ,

मैंने नीतू के दोनों हाथ पीछे से पकड़ रखे थे , वो टॉप और स्कर्ट में थी। कम्मो ने ज्योति की शलवार का नाड़ा न सिर्फ खोला बल्कि खींच कर निकाल दिया और उसी नाड़े से अब नीतू के हाथ बंधे थे ,

हम चारो अब आंगन में थे , आंगन में चारो ओर रंग बिखरा था , बाल्टियों में रंग भरा था , लग रहा था भी जबरदस्त होली हुयी थी ,
नीतू ने भी वही गुहार लगायी भाभी ये ड्रेस , रंग नहीं छूटेगा इस पर से , प्लीज हम दोनों कल आ जायेगीं , फिर ,

मैंने उसके गालों को मीठे मीठे चूमते हुए समझाया

" अरे ननद रानी , चलो तोहार वाली भी , ... होली ननद से खेलनी है उसके कपडे से थोड़े ही , "

और मैंने खींच के उसका टॉप उतार के , बरामदे में सम्हाल के रख दिया और तब तक कम्मो ने भी पहले तो ज्योति के कुर्ते के बटन खींचे और वो भी नीतू के टॉप के पास , ज्योति की शलवार सरक के उसकी टांगो के नीचे ,
और मैंने भी नीतू की स्कर्ट ,
अब दोनों ननदें ब्रा और पैटी में ,

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कपडे उनके ले जा कर मैं अपने कमरे में रख के आयी और फिर कम्मो के कान में फुसफुसाया , और हँसते हुए कम्मो ने एक शर्त रखी ,

" बहुत कपड़ा कपड़ा कर रही थी छिनार , अब कल आ के ले जाना , ... वरना एक छोटी सी शर्त है। "

खाली ब्रा पैंटी में , ... दोनों की हालत खराब , दोनों साथ साथ बोलीं " भौजी कौन शर्त है ,

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" सिम्पल , फागुन का स्ट्रिप डांस , ... देखो अब ब्रा पैंटी तो तुम दोनों की उतरनी ही है , तुम लोग उतारेगी तो बची रहेगी , और भौजाई उतारेंगी तो फाड़ के रख देंगी , ... तो पहली शर्त है की ज्योति तुम एक स्ट्रिप डांस पहले ब्रा के ऊपर से जोबन मसलो रगड़ो , जैसे तेरे यार रगड़ते हैं वैसे ही , फिर धीरे धीरे ब्रा उतार के फेंक दोगी , फिर अपनी दोनों चूँची हाथों से छिपा के , हलके हलके खोलोगी , उसके बाद दोनों जोबन को मसलते हुए डांस करोगी , और उसके बाद पैंटी , भी उसी तरह , पैंटी के ऊपर से अपनी चूत रगड़ो मसलो , फिर पैंटी उतार के चूत को हथेली से , और सबसे अंत में एक मिनट तक फिंगरिंग , कुल ढाई मिनट की फिंगरिंग , और नीतू तुम रिकार्ड करना , ... "

मैंने शर्त बता दी दोनों ननदों को, अब होली का असली मजा आने वाला था।

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थोड़ी देर तक तो दोनों नौटंकी की , लेकिन कम्मो के आगे ,

ज्योति ने स्ट्रीप टीज शुरू की और मैंने नीतू को ज्योति का ही फोन दे दिया , रिकार्ड करने को , मैं अपने आई फोन से , ...

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अपने पहले फागुन में ही ननद को नंगी नचाने का ख़्वाब तो हर भाभी का होता है , और ये दोनों तो मुझे चैलेंज कर रही थीं ,

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क्या मस्त ज्योति अपने जोबन दबा रही थी , चूत सहला रही थी , ...

और फिर फिंगरिंग , ...


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" अरे छिनार जड़ तक ऊँगली पेल , हमको मालूम नहीं है की का कित्ते साल पहले केकरे साथ झिल्ली फड़वा चुकी हो , रंडी की औलाद ,... वरना अभ कम्मो भौजी की पूरी मुट्ठी घोंटनी होगी , ... "

बेचारी ज्योति , लेकिन सच में थी नंबरी छिनार , मस्त ऊँगली कर रही थी , ...
और उसके बाद नीतू का नंबर , और अबकी रिकार्डिंग ज्योति के जिम्मे ,

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डांस ख़तम नहीं हुआ था की होली शुरू हो गयी , जब तक वो दोनों डांस कर रही थी , कम्मो कालिख का पूरा डिब्बा ले आयी , पेण्ट और रंग की जबरदस्त कॉकटेल हम दोनों ने अपने हाथ पार बना ली थी , और बाकि बरामदे में , ...

मैंने शुरआत की , एक लाल रंग की बाल्टी डांस करती नीतू के ऊपर उड़ेल कर , पर कम्मो को तो मजा हाथ से लेना था , और ज्योति के दोनों जोबन उसके हाथों के बीच

मुझको रीतू भौजी और अपने गाँव की बड़की भौजी की याद आ गयी , जोबन मींजने मसलने में मरद मात ,

और मैंने हाथ में लगा रंग ज्योति के गालों पर , ...
ज्योति चिल्लाई ,

" अरे भाभी एक के साथ साथ दो , ... "

" काहें कभी एक साथ दो दो का मजा नहीं लिया है , हम तो सुने थे की हमार ससुराल वाली , आजमगढ़ वाली सब बचपन की छिनार होती हैं , ... "मैंने चिढ़ाया

" अरे तो का पिछवाड़ा कोरा है अभी , ... " कम्मो बोली ,

मैं भी अब एकदम कम्मो के रंग में आ गयी थी , रंग एक बार फिर से लगा के मैं ज्योति के छोटे छोटे चूतड़ रंग रही थी और फिर एक ऊँगली सीधे पिछवाड़े के छेद पर डालते हुए मैं कम्मो से बोली

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" क्या करे ये ,... असल में हमारे देवर सब ही पैदायशी गांडू , तो इन सबकी गाँड़ मारने का काम भी हम भौजाइयों के जिम्मे आएगा , ... "असल में मैंने इन्हे देख लिया था , ये थे तो बॉथरूम में लेकिन जब नीतू की स्ट्रिप टीज शुरू हुयी और मैंने मोबाइल पर गाना लगा दिया था



"डलवाला छिनार होली में , डलवाला , "

तभी मैंने देख लिया था की बाथरूम की खिड़की थोड़ी सी खुली और ये हलके से झाँक रहे थे ,

मैंने जबरदस्त आँख मारी इन्हे , और इशारा किया ,


लगे रहो मुन्ना भाई , आखिर तेरी बहने हैं , .
😍😍😍😍
 

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Rango ki duniya ki alag hi kahani he. Rang rasiya sabad hamare lie bahot uchit sabad he. Vese rang rasiya geet konse rag me gaya. Ye to muje pata nahi par shashtriya sangit ka gajab sangit he. Har rang ki apni alag pahechan alag hi kahani he. Har rang jyotish shashtro me alag hi mukam rakhta he.
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Lal (red) ; ye rang zunun se bhara he. Kahete he. Naksho par or patro me ye jung ko darsata he. Ye graho me surya ko jatata he. Behat garam or joshila. Ye kundli me gussa or josh ko darsata he. Ye rango ka raja he
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Socho jivan me rang na ho to ye duniya kesi lagegi. Ek viran. Mahesus to yahi hoga.
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Duniya ka har rang ki alag kahani. Rango se hi bhavnao ka pata chalta he. Gussa khushi dunkh sukh.
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Kisi ko kisi rang se bahot lagav hota he to kisi ko bahot jyada nafarat. Meri najar me to rango ki yahi kahani he.


Bura na mano holi he.
Bahut mast Shetan
 
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